प्रगतिवादी साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ रुढ़ियो का विरोध -- प्रगतिवादी साहित्य विविध सामाजिक एवं सांस्कृतिक रुढ़ियो एवं मान्यताओं का विरोध प्रस्तुत करता है। उसका ईश्वरीय विधान, धर्म, स्वर्ण, नरक आदि पर विश्वास नहीं है। उसकी दृष्टि में मानव महत्व सर्वोपरि है। शोषण का विरोध इस की दृष्टि में मानव शोषण एक भयानक अभिशाप है। साम्यवादी व्यवस्था मानव शोषण का हर स्तर पर विरोध करती है। यही कारण है कि प्रगतिवादी कवि मजदूरों, किसानों ,पीड़ितों की दीन दशा का कारूणिक खींचता है। निराला की भिक्षुक कविता में यही ईश्वर है। बंगाल के आकार का दुखद चित्र खींचे हुए निराला जी लिखते हैं:- बाप बेटा भेचता है भूख से बेहाल होकर । ________________________________ शोषण कर्ताओं के प्रति घृणा का स्वर:- प्रगतिवादी कविता में पूंजीवाद व्यवस्था को बल प्रदान करने वाले लोगों के प्रति घृणा का स्वर है। 'दिनकर' का आक्रोश भरा स्वर देखिए - श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं ______________________________ क्रांति की भावना :- वर्गहीन समाज की स्थापना प्रगतिवाद का पहला लक्ष्य है इसलिए वह आर्थिक परिवर्तनो