Madhyamik Hindi Notes

 Madhyamik Hindi

 Notes

Class 10
Subject : Hindi (First Language) 
Syllabus for exam 
 प्रथम एकक परीक्षा हेतु पाठ्यक्रम : पूर्णांक-40
First unit test 
पाठ संचयन

(अ) पद्म खण्ड : (i) रैदास के पद-रैदास (ii) आत्मत्राण-रवीन्द्रनाथ टैगोर (बंगला से अनुवाद) (iii) नीड़ का निर्माण फिर-फिर हरिवंश राय बच्चन 

(आ) गद्य खण्ड : (i) धुमकेतु-गुणाकर मुले (ii) नौबतखाने में इबादत-यतीन्द्र मिश्र (iii) उसने कहा था- चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'

कथा संचयन :
(iv) नन्हा संगीतकार- हेनरिक सेंकेविच (अंतराष्ट्रीय साहित्य)
(v) तीसरी कसम फणीश्वर नाथ रेणु 
(i) कमनाशा की हार-डॉ० शिव प्रसाद सिंह
व्यकरण: (i) कारक (ii) समास, रचना- निबंध । 

द्वितीय एकक परीक्षा हेतु पाठ्यक्रम : पूर्णांक - 40

पाठ संचयन
(अ) पद्य खण्ड : (i) मनुष्य और सर्प-रामधारी सिंह दिनकर 
(ii) रामदास-रघुवीर सहाय
 (iii) नौरंगिया कैलाश गौतम
 (iv) देशप्रेम-अनामिका

(आ) गद्य खण्ड
: (i) चप्पल-कावटूरि वेंकट नारावण राव
 (ii) नमक- रज़िया सज्जाद जहीर
(iii) धावक संजीव
(1) जांच अभी जारी है-ममता कालिया
कथा संचयन:
एकांकी : दीपदान डॉ० रामकुमार वर्मा
व्याकरण : 
(i) वाच्य (ii) वाक्य, रचना : (i) अनुवाद (ii) संवाद लेखन या प्रतिवेदन

रैदास के पद

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Very Important long question


 









*अंश की ससंदर्भ व्याख्या कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में संत कवि रैदास ने कहा है कि हे ईश्वर! आप ही बताएँ कि मैं आपकी भक्ति किस प्रकार करूँ? मेरी बुद्धि तो माया के वश में होने के कारण आप की भक्ति में लीन नहीं हो पा रहा और अपनी यह विवशता आप के समक्ष रख रहा हूँ।












लघूत्तरीय प्रश्न


















'नीड़ का निर्माण फिर-फिर'


                                                 ---हरिवंश राय 'बच्चन'

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न-1-:. 'नीड़ का निर्माण फिर-फिर' कविता में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए। 
अथवा,

'नीड़ का निर्माण फिर-फिर' कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मनुष्य को प्रकृति से किस तरह की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?


उत्तर-हरिवंश राय बच्चन की सम्पूर्ण कविता की रीढ़ उनकी जीवनी-शक्ति है।'सतरंगिनी' से उद्धृत प्रस्तुत कविता कवि की आशावादी कविता है जिसमें ईश्वर के प्रति आस्था की अभिव्यक्ति हुई है। अपनी पहली पत्नी ( श्यामा) की मृत्यु के पश्चात् कवि दुःख से आच्छन्न हो गया। चारों तरफ दुःखों का अँधेरा छा गया, लेकिन प्राची से सूर्य निकला जिसके प्रकाश ने जीवन के प्रति आस्था जगा दी। आशा रूपी पक्षी ने (द्वितीय पत्नी-तेजी बच्चन) आकर जीने की चाह जगा दी और फिर से नीड़ के निर्माण की (नयी गृहस्थी बसाने की) आकांक्षा मन में जाग उठी|


 मनुष्य का प्रकृति से शिक्षा ग्रहणः 
आकाश में बवण्डर का उठना -
कविवर हरिवंश राय 'बच्चन' चिड़िया के माध्यम से जीवन का सन्देश देते हुए बताते हैं कि व्यक्तिरूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवनरूपी नीड़ का निर्माण करते रहना चाहिए।

आँधी-तूफान में सब कुछ तहस-नहस होना -
भयानक आँधी-तूफान के आने पर यदि सब ओर विनाश भी मच जाए, व्यक्तिरूपी चिड़िया के घोंसले का चाहे तिनका-तिनका बिखर जाए, पेड़ जड़ से उखड़कर चाहे भूमि पर गिर पड़े, मगर चिड़िया को नवनिर्माण की आशा को अपने मन में संजोकर आकाश में ऊँचे और ऊँचे चढ़ते चले जाना है।

प्रलय के बाद फिर सृष्टि होती है - 
 कविवर बच्चन व्यक्तिरूपी चिड़िया को सांत्वना देते हुए कहते हैं कि तुझे इस प्रलयंकारी आँधी तूफान के विनाश को देखकर घबड़ाना नहीं चाहिए और न हीं यह सोचकर निर्माण कार्य से विरत हो जाना चाहिए कि अब सब-कुछ नष्ट हो गया है, इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि व्यक्ति को यह बात सदैव ध्यान रखनी चाहिए कि प्रलय के बाद नई सृष्टि का निर्माण अवश्य होता है।
 
प्रस्तुत कविता में कवि के जीवन का उल्लास और उत्साह छलक रहा है। कविता द्वारा कवि ने जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सब कुछ नष्ट हो जाने पर भी फिर से नया निर्माण करने की प्रेरणा दी है।
प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मानव को दुःख में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि फिर उठ ही न सके। मनुष्य को सदा आशावान होना चाहिए।

प्रश्न-2-'नीड़ का निर्माण फिर-फिर' नामक पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर -प्रस्तावना - प्रस्तुत कविता में कवि के जीवन का उल्लास और उत्साह छलक रहा है। कविता द्वारा कवि ने जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सब कुछ नष्ट हो जाने पर भी फिर से नया निर्माण करने की प्रेरणा दी है। जिसका सारांश निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :- 

आकाश में बवण्डर का उठना - कविवर हरिवंश राय 'बच्चन' चिड़िया के माध्यम से जीवन का सन्देश देते हुए बताते हैं कि व्यक्तिरूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवनरूपी नीड़ का निर्माण करते रहना चाहिए।

आँधी-तूफान में सब कुछ तहस-नहस होना - भयानक आँधी-तूफान के आने पर यदि सब ओर विनाश भी मच जाए, व्यक्तिरूपी चिड़िया के घोंसले का चाहे तिनका-तिनका बिखर जाए, पेड़ जड़ से उखड़कर चाहे भूमि पर गिर पड़े, मगर चिड़िया को नवनिर्माण की आशा को अपने मन में संजोकर आकाश में ऊँचे और ऊँचे चढ़ते चले जाना है। 

प्रलय के बाद फिर सृष्टि होती है - कविवर बच्चन व्यक्तिरूपी चिड़िया को सांत्वना देते हुए कहते हैं
कि तुझे इस प्रलयंकारी आँधी-तूफान के विनाश को देखकर घबड़ाना नहीं चाहिए और नहीं यह सोचकर निर्माण कार्य से विरत हो जाना चाहिए कि अब सब-कुछ नष्ट हो गया है, इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि व्यक्ति को यह बात सदैव ध्यान रखनी चाहिए कि प्रलय के बाद नई सृष्टि का निर्माण अवश्य होता है।




प्रश्न-3. कविवर हरिवंश राय 'बच्चन' का जीवन परिचय लिखो|

उत्तर - हरिवंश राय 'बच्चन' उत्तर छायावादी युग के एक ऐसे कवि हैं जिनकी मधुशाला के मधु ने युवा-वर्ग को मदोन्मत्त कर दिया था। आप आस्थावादी कवि हैं। आपकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति आपको कुशल कवि बनाती है। आप काव्य की संगीतात्मकता, सरलता एवं मार्मिकता के कवि के रूप में सदैव याद किए जायेंगे। जीवन-परिचय : श्री हरिवंश राय 'बच्चन' का जन्म 27 नवम्बर 1907 ई० में प्रतापगढ़ के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री प्रतापनारायण था। आपने काशी और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त कर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की| आप कई वर्षों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे। 1955 ई० में आप हिन्दी विशेषज्ञ होकर विदेश मंत्रालय में चले गये 1966 ई० में आपको राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। कुछ समय तक आप आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। आप युवाकाल में ही राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे थे । आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण आपकी प्रथम पत्नी श्यामा का अल्पवय में ही असाध्य रोग से निधन हो गया । पत्नी के वियोग ने आपको दुःख से भर दिया। कुछ समय बाद आपने दूसरा विवाह तेजी से करके सुखी दाम्पत्य जीवन में
प्रवेश किया। आपके जीवन पर उमर खय्याम का विशेष प्रभाव था । 'मधुशाला' रचना इसका जीवन्त प्रमाण है।
कर्मक्षेत्र में साहित्य की आराधना करते हुए यह महान् विभूति 18 जनवरी, 2003 ई० को पंचतत्त्व में विलीन होगा।


व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1)
2)
3)
(v) 'रात-सा' में कौन सा अलंकार है।

उत्तर - 'रात-सा' में उपमा अलंकार है।
4)

5)

6)

बहुविकल्पीय प्रश्न










लघूत्तरीय प्रश्न










मनुष्य और सर्प


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

★ 1. 'मनुष्य और सर्प' नामक कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।

 उत्तर- 'महाभारत' नामक महाकाव्य के अनुसार कुरुक्षेत्र में कौरव और पाण्डव-दोनों के मध्य महासंग्राम हुआ। धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि 100 पुत्र तथा उनके सहायक मित्र राजाओं की 18 अक्षौहिणी (लगभग 2 लाख 20 हजार सभी अंग) तथा पाण्डवों के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना थी। उस युग के सभी महान योद्धा तथा भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य एवं कर्ण जैसी विभूतियाँ कौरवों के पक्ष में युद्ध कर रहे थे। पाण्डवों का एकमात्र आधार भगवान् श्रीकृष्ण थे।

युद्ध की भीषण पराकाष्ठा के अवसर पर जब एक-दूसरे के विनाश के लिए कर्ण और अर्जुन भीषण वाण-वर्षा कर रहे थे तभी कर्ण द्वारा बाण के लिए तरकश में हाथ डालने पर उन्हें किसी सर्प की फुफकार सुनाई दी। इसके साथ मानव जैसी आवाज में नागों के राजा ने प्रस्ताव किया कि वह (कर्ण) उन्हें (अश्वसेन) अपने धनुष से अर्जुन तक किसी प्रकार पहुँचा दे। शेष कार्य वह स्वयं कर लेगा। कवि के शब्दों में -


“तरकश में से फुंकार उठा,

कोई प्रचण्ड विषधर भुजंग।।"


अश्वसेन ने कहा कि वह सर्पों का राजा तथा अर्जुन का जन्मजात शत्रु है और कर्ण का हितकारी मित्र है। वह अपने शत्रु के विनाश में कर्ण का सहयोग चाहता है। अगर कर्ण उसे सहयोग देगा तो अपने मन के सम्पूर्ण विष को अर्जुन के शरीर में उड़ेल देगा। इस प्रकार कर्ण के शत्रु अर्जुन का अन्त हो जायेगा।

इस पर कर्ण ने उत्तर दिया कि मानव की विजय या पराजय उसकी अपनी आत्म-शक्ति पर निर्भर करती है। एक सच्चा योद्धा किसी भी दशा में शत्रु के विनाश के लिए शत्रु के शत्रु की सहायता नहीं लेता। कर्ण ने कहा वह और अर्जुन दोनों ही मनुष्य हैं। इस दशा में वह मानव शत्रु अर्जुन के विनाश में किसी भी दशा में किसी सर्प की सहायता नहीं ले सकता। अगर उसने ऐसा किया तो उसका सारा आदर्श और नैतिकता खत्म हो जायेगी और इतिहास और भविष्य की संतति उसे कभी क्षमा नहीं करेंगे. -


"तेरी सहायता से जय तो, मैं अनायास पा जाऊँगा।

आने वाली मानवता को, लेकिन क्या मुख दिखलाऊँगा ।। "


ऐसा करने पर कर्ण को निश्चिय ही कठोर आलोचना और बदनामी भी सहनी होगी। कर्ण के विचार में लोग कहेंगे कि नीच कर्ण ने अपने मानव शत्रु के विनाश के लिए सर्प की सहायता ली।


शत्रु और शत्रुता के सम्बन्ध में कर्ण के विचार :- अपने सहयोगी के रूप में उपस्थित अश्वसेन के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कर्ण ने कहा कि अर्जुन और वह दोनों ही मनुष्य हैं। उनकी यह शत्रुता केवल इसी जीवन तक सीमित है। कर्ण के विचार में बुद्धिमान मनुष्य शत्रुता को अपने जीवन तक ही सीमित रखते हैं। वे उसे आगे नहीं बढ़ाते। उनके विचार में अर्जुन से उसका सम्बन्ध इस रूप में केवल इस जीवन तक है। दोनों की मृत्यु के साथ यह शत्रुता समाप्त हो जाएगी। जो मूर्ख हैं वे ही इस शत्रुता को अनावश्यक रूप से पीढ़ियों तक बढ़ाते हैं। कवि के शब्दों में


"संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवनभर ही तो है।"


कर्ण ने कहा कि इस दशा में वह (कर्ण) उस सर्प की बातों में आकर अगले जन्म को क्यों खराब करे। अगर वह अपने शत्रु अर्जुन के वध के लिए सर्प से सहयोग लेता है तो वह नीचता ही होगी। इसलिए कर्ण अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए किसी से कोई सहयोग नहीं लेगा।

कवि के विचार में वर्तमान युग में सर्प, मानव वेश में भी छिपे हुए रूप में दिखाई देते हैं। ऐसे छिपकर वार करके किसी भी साधन से अपने शत्रु के विनाश का प्रयत्न करते हैं। मानव सामने के शत्रु से तो सावधान रहकर उसका सामना कर सकता है, किन्तु छिपा हुआ शत्रु उस पर कभी और किसी भी रूप में वार करके हानि पहुँचा सकता है कर्ण के विचार में ये छिपे शत्रु मानवता के अस्तित्व को खतरे में डाल देते हैं। अन्त में कर्ण ने अपने शत्रु अर्जुन के विनाश के लिए उसके शत्रु अश्वसेन की सहायता अस्वीकार करके यह दिखा दिया कि नीच और दुर्बल चरित्र के व्यक्ति अनैतिक और अनुचित साधनों से शत्रु के विनाश से नहीं झिझकते जबकि चरित्रवान व्यक्ति केवल सामने ..और प्रत्यक्ष युद्ध में ही विश्वास करते हैं। इतना कहकर कर्ण ने अश्वसेन नामक सर्प को भागने को कहा।


2. कर्ण के पास स्वेच्छा से सहायतार्थ आए सर्प तथा कर्ण में परस्पर हुई बातचीत का उल्लेख करें। 

उत्तर – महाभारत का भीषण युद्ध चल रहा है। हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है। युद्ध भूमि में कुन्ती पुत्र अर्जुन और कौरव सेनापति कर्ण आमने-सामने हैं। दोनों वीर हर क्षण घोर शब्द उत्पन्न करते हुए लड़ रहे हैं। दोनों एक दूसरे पर अचूक शक्तियों से प्रहार कर रहे हैं। जब कर्ण ने अपने तरकश में से तीर निकाल के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो, अचानक एक अत्यन्त विषैला भयानक साँप फुंकार कर उठा। उसने कर्ण को सम्बोधित करते हुए कहा कि मैं अश्वसेन नाम का विषधारी हूँ। मैं पृथा पुत्र अर्जुन का मुख्य शत्रु हूँ और यदि उससे आपकी शत्रुता है तो मैं तुम्हारा अनेक प्रकार से भला कर सकता हूँ क्योंकि शत्रु का शत्रु तो मित्र ही होता है।

हे कर्ण! तुम बस एक बार मुझे अपने धनुष पर चढ़ा लो और मुझे मेरे परम शत्रु अर्जुन तक जाने का अवसर प्रदान करो ताकि मैं उसे इसी वक्त मौत रूपी निद्रा दे सकूँ। साँप अश्वसेन फिर कहता है कि वह अपना बदला लेने के लिए जीवन भर का इकट्ठा किया गया ज़हर अर्जुन के शरीर में उगल देगा। इस प्रकार वे दोनों अर्जुन से अपना बदला ले सकते हैं।

साँप अश्वसेन की बातें सुनने के बाद कर्ण ने हँसकर कहा, हे कपटी यह क्या, तुम तो छल करने की बात कह रहे हो ? यदि मनुष्य को जीत प्राप्त करनी हो तो उसे जीत के लिए प्रयास रूपी सामान स्वयं ही जुटाना पड़ता है। यदि उसकी बाहों में बल हो तो वह जीत के लिए प्रयास कर सकता है। तुम मुझ से कह रहे हो कि मैं मनुष्य होकर मनुष्य के साथ ही युद्ध करने के लिए तुम जैसे साँप की सहायता लूँ। सम्पूर्ण जीवन भर मैंने जिस निष्ठापूर्ण निश्चय का पालन किया, जो योग्यता प्राप्त की, आज तुम्हारे द्वारा दी जानेवाली सहायता प्राप्त करके मैं अपने चरित्र के, अपने व्यवहार के विपरीत आचरण कैसे करूँ ?

कर्ण अश्वसेन से कहता है कि यदि मैं तुम्हारी सहायता ले लूँ तो मुझे बिना परिश्रम के ही जीत तो प्राप्त हो जाएगी, पर मैं आने वाली मानवता को क्या मुँह दिखाऊँगा ? क्योंकि छल तो सामने आ ही जाता है। अतः मेरी जीत का छल भी सामने आएगा तो मैं क्या उत्तर दूँगा ? सारा संसार यही कहेगा कि दानवीर कर्ण ने अपने शत्रु को पराजित करने के लिए एक साँप से सहायता ली। उस पापी ने जीवन भर किए गए दान-पुण्य राख कर दिया क्योंकि वीर योद्धा को छल से परास्त किया। 

कर्ण फिर कहता है कि अपने शत्रु को मारने के लिए साँप का सहारा तो नीच, पापी तथा कपटी लोग लेते हैं क्योंकि उनमें स्वयं अपने प्रतिद्वंदी का सामना करने का साहस नहीं होता। अत: है अश्वसेन! यदि मैं तुम्हारे द्वारा दी गई सहायता लेता हूँ तो मनुष्य के रूप में जो साँप इस समाज में विद्यमान हैं, उनमें मेरा भी नाम लिया जाएगा। लोग कहेंगे कि कर्ण ने भी छल रूपी जहर से शत्रु का नाश किया। तब आने वाली पीढ़ी मुझे श्रेष्ठ मानकर, मुझे अपना आदर्श बनाकर मानवता के नाश की तरफ बढ़ेगी। इस प्रकार संसार मानवतावादी नहीं रहेगा। इसलिए ध्यान से सुनो-अर्जुन मेरा परम शत्रु है, पर वह साँप तो नहीं है जो मैं तुम्हारी सहायता लूँ। अर्जुन एक मानव है और उसका सामना मैं स्वयं अपने बाहुबल से करूंगा। ऐसा कहते हुए कर्ण सांप द्वारा प्रस्तुत की गई सहायता को अस्वीकार कर देता है।


3.कविता 'मनुष्य और सर्प' में कवि ने कर्ण के मानवतावादी विचारों को किस प्रकार व्यक्त किया है?

उत्तर - महाभारत का भीषण युद्ध चल रहा है। कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में मृत्यु अपना तांडव नृत्य कर रही है। हर व्यक्ति के अन्दर बदला लेने के लिए आग जल रही है। बदला लेने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। अश्वसेन नामक सौंप द्वारा युद्ध में कर्ण को सहायता का प्रस्ताव पेश किए जाने पर कर्ण साँप से कहता है कि मैं बदले की भावना में पड़कर, वैर में अंधा बनकर अपना अगला जन्म क्यों बिगाड़ू ? उसका कहने का अभिप्राय यह है कि अगले जन्म में भी इस जन्म में किए गए छल-कपट का फल तो भोगना ही पड़ेगा। अतः मैं तुम जैसे साँप का आश्रय लेकर, मनुष्य के रूप में साँप बनकर भला अर्जुन को क्यों मारूँ? हे साँप ! तू मनुष्यता का शत्रु है, तू यहाँ से भाग जा क्योंकि तू मेरी मित्रता के योग्य नहीं है। तू मेरा मित्र है, और मैं तुम्हारी सहायता से अर्जुन का वध करूं, ऐसा भयंकर कलंक मैं अपने चरित्र पर नहीं लगा सकता। इसलिए तुम यहाँ से चले जाओ।


तात्पर्य यह है कि सर्प मनुष्यता का शत्रु है और आज समाज में मानव के रूप में जितने भी सर्प हैं, कर्ण की तरह हम सब को उनका त्याग कर देना चाहिए न कि स्वार्थ पूर्ति के लिए उनसे मित्रता। इसी से मनुष्य जाति बच सकेगी। यहाँ साँप द्वारा दी जा रही सहायता लेने से मना करते हुए कर्ण का पक्ष कवि ने अच्छी प्रकार से रखा है जो अपनी बात में सार्थक प्रतीत होता है।


V.I.4.'मनुष्य और सर्प' कविता में निहित संदेश तथा उदेश्य को लिखें।

अथवा, 'मनुष्य और सर्प' कविता के उद्देश्य को लिखें।

 अथवा, 'मनुष्य और सर्प' कविता के आधार पर कवि के व्यक्त विचारों को लिखें। 

अथवा, 'मनुष्य और सर्प' कविता के द्वारा कवि ने हमें क्या संदेश देना चाहा है ?

उत्तर : कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता "मनुष्य और सर्प में महायोद्धा कर्ण को मनुष्यता का प्रतीक तथा सर्प (अश्वसेन) को मनुष्यता का शत्रु, छल-कपट का प्रतीक माना गया है।


      महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ था। इस युद्ध में कर्ण कौरवों की तरफ से लड़ा था।


      कुरुक्षेत्र का मैदान रक्तरंजित था। घोड़े, हाथी और सैनिकों का रक्त एक साथ मिलकर बह रहा था अर्जुन और कर्ण - दोनों प्रतिद्वन्द्वी आमने-सामने एक दूसरे को वध करने के लिए वाणों की वर्षा कर रहे थे, परन्तु समान योग्यता, सम बल होने के कारण सारी चेष्टाएँ (वध करने की) व्यर्थ हो जा रही थी।

        ऐसे समय में अर्जुन का शत्रु अश्वसेन, जो साँपों का राजा है, वह कर्ण को प्रस्ताव देता है कि कर्ण उसे वाण पर चढ़ाकर लक्ष्य अर्थात् अर्जुन तक पहुँचने दे जब वह अपने शत्रु तक पहुँच जाएगा, तो अपने विष से अर्जुन को मृत्युरुपी रथ पर सवार कर देगा।


       साँपों का राजा अश्वसेन यह प्रस्ताव यह सोचकर देता है कि दुश्मन का दुश्मन मित्र बन जाता है, परन्तु महायोद्धा कर्ण इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। अश्वसेन की बातों को सुनकर कर्ण को हँसी आ जाती है । वह इस सत्य को जानता है कि जो सच्चे वीर होते हैं, उन्हें अपनी भुजाओं की शक्ति पर भरोसा होता हैं।

        कर्ण मानव जाति का प्रतीक है। साँप से मिलकर अर्जुन के खिलाफ युद्ध करना -इसे वह नीच कर्म मानता है। यह उसके लिए मुमकिन नहीं है कि वह मनुष्य के स्वाभाविक शत्रु सर्प से मिलकर अर्जुन से युद्ध करे|


        कर्ण का चरित्र उज्जवल है। वह ऐसा कोई नीच कार्य नहीं करना चाहता है कि उसके चरित्र पर कोई कलंक लगे। आने वाली पीढी उसका नाम साँपों की श्रेणी में रखे, इसके लिए वह कोई भी पाप कार्य नहीं कर सकता है। चाहे जो भी हो वह अपने माथे पर कलंक का टीका नहीं लगा सकता है। इस प्रकार दिनकर जी ने कर्ण के ऐसे उज्जवल चरित्र को प्रस्तुत किया है, जो उपेक्षित होकर, समस्याओं से घिरे होने पर भी मानवता का परित्याग नहीं करता है। उसे अपने पुरुषार्थ पर विश्वास है और वह छल-कपट का सहारा नहीं लेता है|


         महायोद्धा कर्ण का चरित्र आधुनिक समय में हम सभी के लिए अनुकरणीय है। आगे बढ़ने की दौड़ में मनुष्य स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी मनुष्यता को भूलकर छल-कपट का सहारा ले रहा है- जो नितान्त गलत है। 


          वर्तमान समय में कर्ण का चरित्र हमें मनुष्यता का पाठ पढ़ाता है,मनुष्यता पर टिके ने की प्रेरणा प्रदान करता है। चाहे कैसी भी विकट परिस्थिति हो, हमें छल-कपट का सहारा नहीं लेना चाहिए। हमें सदैव याद रखना चाहिए कि हम मनुष्य है और मानवता ही हमारा धर्म है| यही इस कविता का उद्देश्य है और कवि दिनकर जी ने इस कविता के माध्यम से मानवता का संदेश दिया है।



 व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1. कहता कि 'कर्ण! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ, जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।

(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति मनुष्य और सर्प नामक पाठ से ली गई है। 
(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश में कविवर दिनकर जी ने उस दृष्टान्त का वर्णन किया है तब अश्वसेन नामक सर्प, कर्ण द्वारा तरकस से तीर निकालने पर एक विषैले सर्प के रूप में फुंकार कर अर्जुन को हराने के लिए उसकी (कर्ण) की) सहायता देने को तत्पर है।
(iv) प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
 उत्तर - कविवर दिनकर जी के अनुसार कुरुक्षेत्र को युद्ध भूमि में जिस समय कौरव सेनापति कर्ण एवं अर्जुन एक-दूसरे पर बड़ी कुशलता एवं निपुर्णता से वाणों की वर्षा कर रहे थे, उसी समय कर्ण अपने तरकश से तीर निकालने के लिए उसकी (तरकस की ओर देखा। तो तरकस में से एक अत्यन्त भयानक विषैला सर्प फुंकार की आवाज के साथ उठ खड़ा हुआ। उसने कर्ण को सम्बोधित करते हुए कहा, "हे कर्ण ! मैं सर्पों में प्रसिद्ध 'सर्प राजा अश्वसेन' हूँ। मैं पार्थ (कुन्ती पुत्र अर्जुन) का एक महान शत्रु हूँ। मैं तुम्हारा अनेक प्रकार से हित चाहने वाला हूँ।"

★ 2. "कर वमन गरल जीवन-भर का, संचित प्रतिशोध, उतारूंगा, तू मुझे सहारा दे, बढ़कर, मैं अभी पार्थ को मारूँगा।"

(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है?
 उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मनुष्य और सर्प नामक पाठ से ली गई है।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर हैं। 

(iii) प्रतिशोध की भावना किसमें और किसके प्रति थी ?
उत्तर - प्रतिशोध की भावना अश्वसेन में अर्जुन के प्रति थी। 
(iv) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में कविवर दिनकर जी ने कर्ण एवं विश्रुत सर्पों का राजा अश्वसेन की परस्पर वार्तालाप का उल्लेख किया है। इसमें अश्वसेन नाम का भयंकर विषधारी सर्प अपने परम शत्रु पार्थ (अर्जुन) से अपना बदला उसे मौत रूपी निद्रा में सुलाकर लेना चाहता है।

(v) प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कविवर दिनकर जी के अनुसार भयंकर विषधर सर्प अश्वसेन कर्ण से कहता है कि 'हे कर्ण! मैं अपना बदला लेने के लिए सम्पूर्ण जीवन का एकत्रित विष अर्जुन के शरीर में प्रतिशोध के रूप में उगल दूँगा। हे कर्ण! तू मुझे इस कार्य में आगे बढ़कर तुरन्त सहयोग करे। मैं तुरन्त इसी समय पार्थ (अर्जुन) को मारकर अपना बदला लूँगा। इस प्रकार सर्प अश्वसेन एवं कर्ण दोनों ही पार्थ से बदला लेने में समर्थ्यवान हो सकते हैं।

★3. "ये नर भुजंग मानवता का, पथ कठिन बहुत कर देते हैं, प्रतिबल के वध के लिए नीच, साहाय्य सर्प का लेते हैं।"
(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है ?
 उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मनुष्य और सर्प नामक पाठ से ली गई है।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं? 
उत्तर -प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर हैं।

(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
 उत्तर - प्रस्तुत पद में कविवर दिनकर जी ने महाभारत कथा में वर्णित प्रसंग में कौरव सेनापति कर्ण, सर्पराज अश्वसेन की सहायता लेने से मना करते हुए उससे कहता है कि मेरे द्वारा तुझ जैसे सर्पों की सहायता लेना सम्पूर्ण मानवता को नष्ट करने के समान है, अतः वह इस प्रकार का कुकृत्य नहीं कर सकता।

(iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कविवर दिनकर जी के अनुसार सर्प को सम्बोधित करते हुए कर्ण कहता है कि रे अश्वसेन ! छल द्वारा दूसरों को हानि पहुँचाने वाले मानव पृथ्वी पर सब जगह रहते हैं। ये न तो स्वयं मानव की तरह रहते हैं और न ही मानवता को रहने देते हैं। ये मानवरूपी सर्प मानवता की राह अत्यन्त कठिन कर देते हैं, जिससे मानव ही मानव का शत्रु बन जाता है। अपने सशक्त प्रतिद्वन्दी (शत्रु) को मारने के लिए सर्प का सहारा नीच लोग ही लेते हैं क्योंकि उनमें अपने शत्रु का सामना करने की शक्ति एवं हिम्मत नहीं होती है।

4. गत्वर, गैरेय, सुधर भूधर से, लिए रक्तरंजित शरीर,
थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर । 
(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मनुष्य और सर्प नामक पाठ से ली गई है। 
(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता रामधारी सिंह 'दिनकर' हैं।
 (iii) पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
उत्तर - प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में कविवर 'दिनकर' जी ने 'महाभारत' के युद्ध का जीवन्त दृश्य प्रस्तुत किया है। कौरवों का सेनापति कर्ण एवं पांडवों की ओर से अर्जुन जब एक-दूसरे के सामने आकर युद्ध करते हैं तो दोनों योद्धा युद्ध क्षेत्र को भयानक बना देते हैं।
व्याख्या - कविवर 'दिनकर' जी के अनुसार काल, पृथ्वी को धारण करने वाले भगवान् शेष नाग जी ने खून से सने हुए शरीरों को मानों बलपूर्वक तेजी से छीनकर लिए जा रहा हो। कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में कुन्ती पुत्र अर्जुन एवं कौरव सेनापति कर्ण पल-पल पर भयानक गरजना करके एक-दूसरे से युद्ध कर रहे थे।

5. "अर्जुन है मेरा शत्रु, किंतु वह सर्प नहीं, नर ही तो है, संघर्ष, सनातन नहीं, शत्रुता, इस जीवन-भर ही तो है।
(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है? 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मनुष्य और सर्प नामक पाठ से ली गई है।
(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता रामधारी सिंह 'दिनकर' हैं। 
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत पद में कविवर 'दिनकर' जी ने कर्ण के माध्यम से यह व्यक्त किया है कि आज के समाज में मानवरूप में जितने भी सर्प सम्पूर्ण पृथ्वी पर निवास करते हैं हम सभी को उन्हें त्याग देना चाहिए क्योंकि ये सम्पूर्ण मानवता के परम शत्रु हैं।
(iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर - कविवर 'दिनकर' जी के अनुसार - कर्ण, सर्पराज अश्वसेन से कहता है कि हे सर्पराज अश्वसेन! अर्जुन मेरा महान् शत्रु है, परन्तु वह सर्प नहीं है जो मैं तुम्हारी सहायता स्वीकार करू। वह तो एक सामान्य मानव है। हमारा, अर्जुन के साथ संघर्ष अतिप्राचीन नहीं है अर्थात् जन्म-जन्मान्तर का नहीं है, बल्कि इसी जन्म का है। इसके पश्चात् शायद यह शत्रुता नहीं रहेगी।

6."जा भाग, मनुज का सहज शत्रु मित्रता न मेरी पा सकता,
मैं किसी हेतु भी यह कलंक, अपने पर नहीं लगा सकता।" 
(i) प्रस्तुत अंश के कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - प्रस्तुत अंश के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' एवं कविता का नाम मनुष्य और सर्प है।
(ii) कौन, किस कलंक से बचना चाहता है ? 
उत्तर - कर्ण, अश्वसेन से सहायता लेकर अर्जुन का वध करने के कलंक से बचना चाहता है क्योंकि यह मानवता के प्रति अपराध होगा।
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर - इस कविता में 'दिनकर' जी ने वीर योद्धा कर्ण के मानवीय दृष्टिकोण को उजागर किया है। उनके अनुसार सर्प मानवता का शत्रु है। आज के समाज में मानव रूप में जितने भी सर्प विद्यमान हैं, उन्हें, हमें कर्ण की भाँति ही त्याग करना चाहिए, तभी मनुष्य जाति की रक्षा हो सकेगी। कवि द्वारा आज के समाज को इसी प्रकार की सीख दी गई है।
(iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कविवर 'दिनकर' जी के अनुसार कर्ण सर्पराज अश्वसेन को सम्बोधित करते हुए कहता - है कि हे अश्वसेन ! तू सम्पूर्ण मानवता का स्वाभाविक शत्रु है, तू यहाँ से तुरन्त भाग जा, क्योंकि तू मेरी मित्रता को नहीं प्राप्त कर सकता है। मैं तेरा मित्र बनकर और तेरी सहायता लेकर अर्जुन का वध करूँ, इस प्रकार का यह भयानक कलंक मैं अपने ऊपर नहीं लगा सकता क्योंकि यह मानवता के प्रति अपराध होगा।
(v)वक्ता कौन है ? वह किसे भाग जाने को कहता है और क्यों ?
उत्तर : वक्ता कर्ण है। वह अश्वसेन को धिक्कारते हुए कहता है कि तुम तो मानव तथा मानवता के शत्रु हो। तुम्हारे साथ मेरी मित्रता कभी नहीं हो सकती। मैं तुम्हारी सहायता लेकर अपने माथे पर कलंक का टीका नहीं लगा सकता चाहे जो भी हो।

★7. 'जन्म से पार्थ का शत्रु परम तेरा बहु विधि हितकामी हूँ' 
(i) यहाँ कौन किसको संबोधित कर रहा है?
उत्तर - यहाँ अश्वसेन कर्ण को सम्बोधित कर रहा है।
 (ii) प्रस्तुत अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - "हे कर्ण ! मैं सर्पों में प्रसिद्ध सर्पराज 'अश्वसेन' हूँ। मैं पार्थ (कुन्ती पुत्र अर्जुन) का एक महान शत्रु हूँ। (क्योंकि शत्रु का शत्रु होना मित्र कहलाता है)। 
मैं तुम्हारा अनेक प्रकार से हित चाहने वाला हूँ।"

8.रे अश्वसेन ! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी, सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुर, ग्राम-घरों में भी।
प्रश्न : पाठ का नाम लिखें।
उत्तर : पाठ 'मनुष्य और सर्प है।

प्रश्न : अश्वसेन कौन था?
उत्तर : अश्वसेन सर्प था। पांडवों के द्वारा खांडव वन में आग लगा दिए जाने पर उसकी माँ जल गई थी। उसी की मौत का बदला वह पाण्डवों से लेना चाहता था।

प्रश्न: पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर: कर्ण अश्वसेन से कहता है कि तुम्हारे कई वंशज मनुष्य के रूप में भी हैं। वे ऊपर से भले ही मनुष्य दिखते हैं लेकिन वे साँप की तरह जहरीले हैं। साँप केवल जंगलों में नहीं रहते, वे नगर, गाँव और घरों में भी बसते हैं।

Q.9.दोनों रण - कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ, दोनों पर दोनों की अमोध, थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ ।

प्रश्न: प्रस्तुत पद्यांश के पाठ का नाम लिखें।
उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश 'मनुष्य और सर्प' पाठ से लिया गया है।

प्रश्न : पद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में दिनकर ने कौरव और पांडव दोनों पक्षों के रण कौशल तथा बल का वर्णन किया है। कौरव और पाण्डव दोनों ही युद्ध की कला में पारंगत हैं। दोनों के बल समान हैं। दोनों ही हर प्रकार से समर्थ हैं। दोनों के हो निशाने अचूक हैं लेकिन बाण की वर्षा व्यर्थ ही सिद्ध हो रही है।

Q.10.बस एक बार कृपा धनुष पर चढ़ शख्य तक जाने दे,
इस महाशत्रु को अभी तुरत, स्पंदन में मुझे सुलाने दे।

प्रश्न : रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। 
उत्तर : रचना 'मनुष्य और सर्प' है तथा इसके रचनाकार रामधारी सिंह 'दिनकर' हैं।
प्रश्न: वक्ता कौन है?
उत्तर: वक्ता अश्वसेन नामक सर्प है। 

प्रश्न: पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर : प्रस्तुत प्रसंग खाण्डव वन से जुड़ा है। पांडवों द्वारा खाण्डव वन में आग लगा दिए जाने पर अश्वसेन को सर्पमाता उसमें जल मरी थी। अश्वसेन उसी का बदला लेना चाहता था। इसलिए वह कर्ण से कहता है कि वह एक बार कृपा करे। उसे अपने वाण पर चढ़ा अपने लक्ष्य तक पहुँचने दे। जब वह अपने शत्रु तक पहुँच जाएगा तो अपने विष से उसे मृत्युरूपी रथ पर सवार कर देगा।


आत्मत्राण

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न -1- रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित 'आत्मत्राण' नामक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-सारांश - प्रस्तुत कविता 'आत्मत्राण' कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बंगला भाषा में रची गई है।इसका हिन्दी अनुवाद हिन्दी के महान साहित्यकार तथा टैगोर के प्रिय शिष्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया है।द्विवेदी जी ने इस कविता के अनुवाद से यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अन्य भाषा से अनुवाद की प्रक्रिया में मूल रचना की आत्मा को किस प्रकार बचाये रखा जा सकता है।
इस कविता में कवि कहता है कि प्रभु में सब कुछ करने की असीम क्षमता है, लेकिन वह यह नहीं चाहता है कि प्रभु ही उसका सब काम कर दें । कवि कामना करता है कि प्रभु उसकी विपोत्तियों व कष्टों को दूर न करें, बल्कि उसको उन विपत्तियों से संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करें और उसे विपत्तियों से निडर बनाएँ । कवि कहता है कि हे प्रभु, आप दुःख व कष्टों से पीड़ित मेरे चित को शान्त न करें अपितु उसको कष्ट सहन करने की शक्ति प्रदान करें। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि यदि मेरा नुकसान भी हो जाए, तो मैं उसको अपनी क्षति न मानूँ। लेकिन यदि मेरे दुखों का भार बढ़ जाए तो उसको मैं स्वयं वहन कर सकूँ इतनी शक्ति अवश्य दे देना। साथ ही मुझे इतनी समझ अवश्य देना कि मैं कभी भी आप पर संशय न करूँ।

प्रश्न-2-'आत्मत्राण' कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ? 
अथवा,
 'आत्मत्राण' कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर -आत्मत्राण' कविता में कवि स्वयं अपने बल पर अपने दुःखों से त्राण पाना चाहता है। वह दुःखों से मुक्ति नहीं चाहता, बल्कि दुःखों को सहने तथा उनसे उबरने की आत्मशक्ति चाहता है। इस तरह यह कविता हमें प्रेरणा देती है कि हम भी संसार के दु:खों से भागें नहीं। हम दुःखों को निर्भय होकर सहन करें, उनसे उबरें, उन पर विजय पाएँ और आस्थाशील बने रहें। हम दुःखों से क्षुब्ध होकर टूटें न, रोएँ न, निराशावादी न बनें, परमात्मा के प्रति संदेह और क्षोभ से न भरें । हमें परमात्मा से माँगना ही है तो दुःख सहन करने की शक्ति माँगें। हम सुख में भी परमात्मा को याद करना, कुछ धन्यवाद देना तथा उनके प्रति विनय प्रकट करना न भूलें।


प्रश्न'-3- 'आत्मत्राण' कविता के माध्यम से कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करते हैं?
अथवा,
 कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर किससे और क्या प्रार्थना कर रहे हैं? 

उत्तर - कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर प्रभु से प्रार्थना कर रहे हैं। इस कविता में कवि कहता है कि प्रभु में सब कुछ करने की असीम क्षमता है, लेकिन वह यह नहीं चाहता है कि प्रभु ही उसका सब काम कर दें। कवि कामना करता है कि प्रभु उसकी विपत्तियों व कष्टों को दूर न करें,बल्कि उसको उन विपत्तियों से संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करें और उसे विपत्तियों से निडर बनाएँ।कवि कहता है कि हे प्रभु, आप दुःख व कष्टों से पीड़ित मेरे चित्त को शान्त न करें अपितु उसको कष्ट सहन करने की शक्ति प्रदान करें। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि यदि मेरा नुकसान भी हो जाए, तो मैं उसको अपनी क्षति न मानँ। लेकिन यदि मेरे दुखों का भार बढ़ जाए तो उसको मैं स्वयं वहन कर सकूँ इतनी शक्ति अवश्य दे देना। साथ ही मुझे इतनी समझ अवश्य देना कि मैं कभी भी आप पर संशय न करूँ।


प्रश्न'-3-आत्मत्राण कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर : कविगुरू रवीन्द्रनाथ ठाकुर में बौद्धिक प्रतिभा के साथ-साथ आध्यात्मिक विचारों की एक गहरी धारा उनके भीतर प्रवाहित हो रही थी। उन्हें यह प्रकाश की धारा किस प्रकार मिली उसके बारे में उन्होंने लिखा है
       "सूर्य देवता सामने के वृक्षों से झाँक रहे थे। वृक्षों पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं । इस अपूर्व दृश्य का वर्णन मानवी शक्ति के परे है। सूर्य की किरणें हर्ष और सौंन्दर्य से उत्फुल्ल प्रतीत होने लगीं । इस समय एकाएक दिव्य प्रकाश मिल गया।"

कविगुरू ईश्वर से यह निवेदन करते हैं कि उन्हें विपदाओं (मुसीबतों) से न बचाएं। वे उसपर इतनी कृपा करें कि जीवन में जब कभी भी विपदा आए तो उन्हें भय न हो।

यदि आप मेरे दुख-ताप से भरे हृदय को ढाढ़स न भी दें तो कोई बात नहीं, लेकिन इतनी करुणा अवश्य करें कि मैं अपने दुःखों पर विजय प्राप्त कर सकूँ। यदि दुःख के दिनों में मुझे कोई सहायता करने वाला न भी मिले तो भी मेरा आत्मबल कम न हो। अपने आत्मबल के सहारे ही मैं अपने दुःख-ताप को पार कर जाऊँगा क्योंकि इस संसार में आत्मबल ही सबसे बड़ा बल है।

हो सकता है कि इस संसार में मुझे हानि ही उठानी पड़े, लाभ मेरे लिए मात्र एक धोखा हो। फिर भी मैं इसे अपनी हानि नहीं मानूं। इन सारी चीजों से तुम मुझे प्रतिदिन मुक्ति दो- मैं ऐसा भी नहीं चाहता । मैं तुमसे त्राण पाने की प्रार्थना नहीं करता। तुम तो मेरे ऊपर केवल इतनी कृपा करो कि मुझमें इन मुसीबतों से त्राण पाने की स्वस्थ शक्ति हो ।

अगर आप मेरे भार को कम न कर सकें, मुझे मुसीबत के दिनों में ढाढ़स भी न बंधा सकें तो भी मेरे ऊपर इतनी कृपा रखेंगे कि मैं अपने दुःख को निर्भय होकर सहन कर सकूँ। अपने सुख के दिनों में भी मैं नत सिर होकर प्रत्येक क्षण आपको स्मरण कर सकूँ।

कवि कहते हैं कि जब दुःखरूपी रात्रि में यह सारा संसार भी मुझे धोखा दे तब आपकी मेरे ऊपर कुछ ऐसी कृपा हो कि मैं आप पर संदेह न कर सकूँ। कहने का भाव यह है कि जब मेरा विश्वास इस दुनिया से उठ जाये तो भी मेरा विश्वास आपके ऊपर टिका रहे।

प्रस्तुत कविता की सबसे बड़ी विशेषता इस उद्देश्य में निहित है कि उन्होंने मानवतावाद को ईश्वरवाद के साथ जोड़कर देखा है। मनुष्य की सत्ता ईश्वर से अलग नहीं है। इसीलिए तो वे कहते हैं-

         सुन हे मानुष भाई
         सवार ऊपरे मानुष सत्य
          ताहार ऊपरे नाई।


व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


* 1. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही तो भी मन में ना मानूँ क्षय ।

(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई हैं? 

उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ आत्मत्राण नामक पाठ से ली गई हैं।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखिए।
 उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं।
 
 (iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर -प्रस्तुत अवतरण में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसकी कितनी भी हानि क्यों न हो कि उसे वह अपनी क्षति न माने, बल्कि ईश्वर का वरदान समझे।

(iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर -कवि कहता है कि यदि मुझे जीवन में लाभ बिल्कुल न हो और हानि ही होती रहे, तो भी मेरे मन में निराशा आदि के भाव उत्पन्न न हों| मेरी आस्था और विश्वास कभी न डगमगाए।

2.हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
 तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना बस इतना होवे करूणामय
तरने की हो शक्ति अनामय।

(i) : रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।

उत्तर : रचना आत्मत्राण' है तथा रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं।

(ii) :प्रस्तुत अंश का भावार्थ लिखें।

उत्तर : कवि कहता है कि यदि मुझे जीवन में लाभ बिल्कुल न हो और हानि ही होती रहे, तो भी मेरे मन में निराशा आदि के भाव उत्पन्न न हों| मेरी आस्था और विश्वास कभी न डगमगाए। इन सारी चीजों से तुम मुझे प्रतिदिन मुक्ति दो- मैं ऐसा भी नहीं चाहता। मैं तुमसे त्राण पाने की प्रार्थना नहीं करता । तुम तो मेरे ऊपर केवल इतनी कृपा करो कि मुझे इन मुसीबतों से त्राण पाने की स्वस्थ शक्ति हो ।


3.'दु:ख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही उस दिन ऐसा हो करुणामय, तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

(i) इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखिए। 
उत्तर- इस पद्यांश के रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं । 

(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखिए।

उत्तर - कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करता है - हे प्रभु! जब मैं दुःख की रात से घिर जाऊँ। सारे संसार के लोग उस दुःख में मुझे और भी पीड़ा पहुँचाएँ, धोखा दें, तब भी हे करुणामय ईश्वर! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं आप पर किसी प्रकार का संदेह न करूँ। मेरे मन में आपके प्रति भक्ति-भाव बना रहे ।





*4.पर इतना होवे करुणामय, दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय ।
 (i) प्रस्तुत पंक्ति के पाठ का नाम बताइए।

उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति 'आत्मत्राण' शीर्षक पाठ से अवतरित है। (ii) प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट करें।

उत्तर - अर्थ : कवि प्रभु से निवेदन करता है - हे प्रभु! यदि मेरा हृदय दुःख और कष्ट से पीड़ित हो, तो आप उन दु:खों को सहन करने की शक्ति अवश्य देना । उन पर नियंत्रण करने की ताकत जरूर देना ।

5.दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही 
पर इतना होवे (करुणामय)
दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।

(i) इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखिए। 
उत्तर- इस पद्यांश के रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं । 

 (ii) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए ।

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक पाठ संचयन में आत्मत्राण नामक शीर्षक से ली गई है। इसके रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर जी हैं।

 (iii) प्रस्तुत पंक्तियों का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
 प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे विपत्ति में धैर्य प्रदान करे। 
 (iv) प्रस्तुत पंक्तियों की व्याख्या कीजिए। 
अथवा,
प्रस्तुत पद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
अथवा,
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखिए।

उत्तर- व्याख्या : कवि प्रभु से निवेदन करता है - हे प्रभु! यदि मेरा हृदय दुःख और कष्ट से पीड़ित हो, तो आप उन दुःखों को सहन करने की शक्ति अवश्य देना । उन पर नियंत्रण करने की ताकत जरूर देना।

6.दुःख - ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही

पर इतना होवे करूणामय दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

कोई कहीं सहायक न मिले

तो अपना बल पौरूष न हिले।

(i) : प्रस्तुत अंश का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : कवि प्रभु से निवेदन करता है - हे प्रभु! यदि मेरा हृदय दुःख और कष्ट से पीड़ित हो, तो आप उन दुःखों को सहन करने की शक्ति अवश्य देना । उन पर नियंत्रण करने की ताकत जरूर देना। यदि दुःख के दिनों में मुझे कोई सहायता करने वाला न भी मिले तो भी मेरा आत्मबल कम न हो। अपने आत्मबल के सहारे ही मैं अपने दुःख-ताप को पार कर जाऊँगा क्योंकि इस संसार में आत्मबल ही सबसे बड़ा बल है।

7.विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं

केवल इतना हो (करुणामय)

कभी न विपदा में पाऊँ भय।

(i)इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखिए।
 उत्तर-इस पद्यांश के रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं।
 
 (ii) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए ।
संदर्भ - प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक पाठ संचयन में आत्मत्राण नामक शीर्षक से ली गई है। इसके रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर जी हैं।

 (iii) प्रस्तुत पंक्तियों का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण में कवि विपदाओं से भयभीत न होने की प्रार्थना करता है।

 (iv) प्रस्तुत पंक्तियों की व्याख्या कीजिए। 
अथवा,
प्रस्तुत पद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
अथवा,
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखिए।

उत्तर- व्याख्या : कवि प्रभु से कहता है - हे प्रभु! मैं आपसे यह प्रार्थना नहीं करता कि आप मुझे संकटों से बचाओ। मैं केवल इतनी प्रार्थना करता हूँ कि आप करुणावान हैं। अतः आपकी करुणा पाकर मैं किसी भी संकट में भयभीत न होऊँ।


बहुविकल्पीय प्रश्न


*1. नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय हैं -

(क) पं० जवाहर लाल (ख) लाला लाजपत राय (ग) मुंशी प्रेमचन्द (घ) रवीन्द्रनाथ टैगोर

उत्तर - (घ) रवीन्द्रनाथ टैगोर

*2. 'आत्मत्राण' कविता का हिन्दी में अनुवाद किसने किया?

(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी

(ख) सोहनलाल द्विवेदी

 (ग) कृपाराम द्विवेदी

(घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

उत्तर - (घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

*3. रवीन्द्रनाथ ठाकुर को किस कृति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था ?

(क) गीतांजलि

(ख) काव्यांजलि

(ग) गोरा

(घ) काबुलीवाला।

उत्तर - (क) गीतांजलि।

4. कवि भगवान से क्या प्रार्थना कर रहा है?

(क) विपत्तियों से बचाने की 
(ख) स्वस्थ रखने की
(ग) विपदा में कभी न डरने की
(घ) धन-दौलत देने की

उत्तर (ग) विपदा में कभी न डरने की

5 . आत्मत्राण शीर्षक कविता निम्नलिखित में से किसके द्वारा रचित है?

(क) वीरेन डंगवाल

(ख) कैफी आजमी

(ग) रवीन्द्रनाथ ठाकुर

(घ) रामधारी सिंह 'दिनकर'

उत्तर (ग) रवीन्द्रनाथ ठाकुर


6.'आत्मत्राण' शीर्षक कविता का मूल भाव क्या है?

(क) कवि के जीवन में दुःख न आए।

(ख) प्रभु उसके कष्ट शीघ्र दूर करें।

(ग) प्रभु कवि को दुःखों से लड़ने की शक्ति दें।
 (घ) प्रभु उसे सदैव हानि से बचाए।

उत्तर - (ग) प्रभु कवि को दुःखों से लड़ने की शक्ति दें।

7. 'आत्मत्राण' शीर्षक कविता मूलतः किस भाषा में रचित है

(क) भोजपुरी

(ख) अवधी

(ग) ब्रजभाषा

(घ) बंगाली।

उत्तर - (घ) बंगाली।

*8. 'आत्मत्राण' कविता में कवि किस पर जय करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है?

(क) अहंकार

(ख) भय

(ग) क्रोध

(घ) दु:ख।

उत्तर (घ) दुःख।

*9. 'आत्मत्राण' कविता में 'करुणामय' किसे कहा गया है ?

(क) कवि को

(ख) ईश्वर को

(ग) वृक्ष को

(घ) विज्ञान को

उत्तर (ख) ईश्वर को

*10. 'आत्मत्राण' कविता में कवि किससे कभी भय पाना नहीं चाहता ?

(क) क्रोध से

(ख) लोभ से

(ग) छल से

(घ) विपद से

उत्तर (घ) विपद से।

11. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्थापना की -

(क) विश्वभारती विश्वविद्यालय

(ख) टैगोर पुस्तकालय

(ग) टैगोर कला मंदिर

(घ) रवीन्द्र पाठशाला।

उत्तर - (क) विश्वभारती विश्वविद्यालय ।

12. रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ-

(क) 6 मई 1861 ई०
(ख) 7 मई 1862 ई०
(ग) 6 मई 1862 ई०
(घ) 9 मई 1862 ई०

उत्तर (क) 6 मई 1861 ई० 

13. टैगोर की मृत्यु हुई -

(क) सन् 1942 ई०
(ख) सन् 1940 ई०
(ग) सन् 1941 ई०
(घ) सन् 1939 ई०

उत्तर (ग) सन् 1941 ई०

14. 'संगीत' के क्षेत्र में किस नाम से गान व नृत्य की धारा प्रवाहित हो रही है -

(क) रवीन्द्र संगीत

(ख) रवीन्द्र गीत

(ग) रवीन्द्र कला

(घ) रवीन्द्र नाट्य

उत्तर - (क) रवीन्द्र संगीत

15.गीतांजलि' किसकी रचना है -

(क) रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) शरत चन्द्र

(ग) वंकिम घोष

(घ) बंकिम चन्द्र

उत्तर (क) रवीन्द्रनाथ टैगोर

16.रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता का क्या नाम था?

(क) शैलेन्द्रनाथ ठाकुर
(ख) दीनबन्धु ठाकुर 
(ग) नरेन्द्रनाथ ठाकुर
(घ) देवेन्द्रनाथ ठाकुर 
उत्तर - (घ) देवेन्द्रनाथ ठाकुर

17.नाश के दुःख से क्या नहीं दबता

(क) अपराधियो का मनोबल

(ख) कवि के बोल

(ग) निर्माण का सुख

(घ) भूधर

उत्तर - (ग) निर्माण का सुख

18.'आत्मत्राण' में किससे प्रार्थना की गई है?

(क) स्वयं से

(ख) कवि से

(ग) ईश्वर से

(घ) राजा से

उत्तर - (ग) ईश्वर से

19.कवि किस पर संशय न करने की प्रार्थना करते हैं?

(क) स्वयं पर
(ख) दुःख पर

(ग) ईश्वर पर ।

(घ) निखिल मही पर
उत्तर - (ग) ईश्वर पर

20.रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?

(क) महिषादल

(ख) जोड़ासाँकू।

(ग) रवीन्द्र सदन

(घ) रवीन्द्र सरणी

उत्तर - (ख) जोड़ासाँकू

21.रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से संगीत की कौन-सी धारा प्रावाहित हुई?

(क) लोक संगीत

(ख) रवीन्द्र संगीत।

(ग) सुगम संगीत

(घ) बंगला संगीत

उत्तर :(ख) रवीन्द्र संगीत

22.रवीन्द्रनाथ ठाकुर अपने प्रभु से क्या चाहते हैं?

(क) उनपर ईश्वर की कृपा बनी रहे 
(ख) प्रभु उनके लिए सबकुछ कर दें
(ग) प्रभु उनके लिए कुछ न करें
 (घ) प्रभु उन्हें लाभ पहुँचायें

उत्तर :(क) उनपर ईश्वर की कृपा बनी रहे ।

23.कवि किसके त्राण की बात करते हैं?

(क) स्वयं की
(ख) विश्व की
(ग) दुःख की
(घ) रात्रि की
उत्तर :(क) स्वयं की
24.'आत्मत्राण' किस विधा की रचना है?

(क) कहानी

(ख) कविता

(ग) उपन्यास

(घ) निबंध
उत्तर :(ख) कविता ।

25.रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने किस संस्था की स्थापना की?

(क) शांति निकेतन

(ख) संगीत निकेतन

(ग) नृत्य निकेतन

(घ) बाऊल निकेतन
उत्तर :(क) शांति निकेतन ।


26.'आत्मत्राण' कविता में दुःख की तुलना किससे की गई है?

(क) दिन से
(ख) रात्रि से।
(ग) वंचना से
(घ) लाभ से

उत्तर :(ख) रात्रि से













लघूत्तरीय प्रश्न

 *1. 'आत्मत्राण' गीत में कवि ने किस चीज की प्रार्थना की है ?


उत्तर - आत्मत्राण गीत में कवि ने ईश्वर से विपद में भय नहीं पाने की प्रार्थना की है।


2.आत्मत्राण' शीर्षक कविता को बंगला से हिन्दी में अनुवाद किसने किया था ? 

उत्तर -आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने।


3. 'आत्मत्राण' शीर्षक कविता मूलतः किस भाषा में रचित है?


उत्तर -बंगाली में।


4. आत्मत्राण' कविता किस प्रकार की कविता है ?


उत्तर - प्रार्थना गीत।


5. रवीन्द्रनाथ ठाकुर को किस कृति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था ?


उत्तर - गीतांजलि के लिए।


6. रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कब हुआ था?


उत्तर -सन् 1861, 6 मई।


7. टैगोर के पिता का क्या नाम था?


उत्तर -देवेन्द्रनाथ ठाकुर ।


8. टैगोर की मृत्यु कब हुई थी?


उत्तर -सन् 1941 में।


9. टैगोर की पुरस्कृत रचना का नाम बताइए।


उत्तर - गीतांजलि (नोबल पुरस्कार)।


*10. कवि किसे सांत्वना नहीं देने को कह रहे हैं? 


उत्तर - कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर का कथन है कि हे प्रभु आप हमारे दुःख और ताप से व्यथित चित्त को यदि सांत्वना नहीं देते हैं तो कोई बात नहीं परन्तु मुझे दुःखों से उबरने की शक्ति अवश्य प्रदान करें। 


★11. 'आत्मत्राण' कविता किस कोटि की है ?


उत्तर - 'आत्मत्राण' कविता एक प्रार्थना गीत है।


*12. 'क्षणिका' किसकी रचना है?


उत्तर - रवीन्द्र नाथ ठाकुर


*13. 'विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है? 

अथवा, 

कवि रवीन्द्रनाथ ईश्वर से सहायता क्यों नहीं लेना चाहते ?


उत्तर -कवि परमात्मा से अपने लिए विशेष सुविधा नहीं चाहता। वह अन्य लोगों की तरह संसार के दुःखों और कष्टों का अनुभव करना चाहता है। इसलिए वह यह नहीं चाहता कि प्रभु उसे संकटों से बचा लें। वह तो बस उन कष्टों को सहन करने की शक्ति चाहता है।


* 14.कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर 'सुख के दिन' में परमात्मा के प्रति कैसा भाव रखते हैं ?


 उत्तर - कवि सुख के दिनों में परमात्मा के प्रति विनय, कृतज्ञता और आस्था व्यक्त करना चाहता है।वह अपने हर सुख में भगवान की कृपा मानना चाहता है। वह हर पल परमात्मा को याद रखना चाहता है तथा अपने अहं का परिष्कार करना चाहता है।


15.'आत्मत्राण' कविता की प्रार्थना अन्य प्रार्थना -गीतों से अलग कैसे है?


 उत्तर - आत्मत्राण' कविता की प्रार्थना अन्य प्रार्थना-गीतों से अलग इस प्रकार है । 

 

16. दुःख आने पर कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर परमात्मा से क्या निवेदन करते हैं ?


उत्तर-कवि दुःख आने पर परमात्मा से दुःख को सहन करने की शक्ति माँगता है। वह दुःख से मुक्ति नही माँगता, बल्कि आत्मबल, पौरुष, निर्भयता, विजयशीलता और प्रबल आस्था माँगता है जिसके बल पर वह दुःखों पर विजय पा सके।


17. 'आत्मत्राण' कविता में चारों ओर से दुःखों से घिरने पर कवि परमेश्वर में विश्वास करते हुए भी अपने से क्या अपेक्षा करता है ?


उत्तर-कवि चारों ओर दु:खों से घिरा हुआ है। फिर भी उसका परमेश्वर पर अटल विश्वास है। ऐसे में वह अपने से अपेक्षा करता है कि उसका प्रभु पर विश्वास बना रहे और हर संकट को हँसते-हँसते सहन कर लें।



*18. 'तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय'-पद्यांश के माध्यम से कवि क्या प्रार्थना करते हैं ?

 उत्तर - कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करता है - हे प्रभु! जब मैं दुःख की रात से घिर जाऊँ; सारे संसार के लोग उस दुःख में मुझे और भी पीड़ा पहुँचाएँ, धोखा दें, तब भी हे करुणामय ईश्वर! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं आप पर किसी प्रकार का संदेह न करूँ। मेरे मन में आपके प्रति भक्ति-भाव बना रहे ।


*19. आत्मत्राण कविता के कवि किससे कभी भी विपदा में क्या नहीं पाना चाहते हैं?


 उत्तर -कवि ईश्वर से विपदा में कभी भी भय नहीं पाना चाहता है।


20. कवि प्रभु से क्या प्रार्थना नहीं करते हैं ?

उत्तर :कवि प्रभु से यह प्रार्थना नहीं करता है कि वे उसे विपदाओं से बचाएँ।


21. कवि ने कौन-सा नवगान फिर-फिर गाने को कहा है? 

उत्तर :कवि ने सृष्टि का नवगान फिर-फिर गाने को कहा है।


22.कवि किससे छिपने की बात पूछते हैं?

उत्तर :कवि आशा रूपी विहंगम से छिपने की बात पूछते हैं।


23.किसकी मोहिनी मुस्कान बार-बार नीड का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करती है?

उत्तर : ऊषा की मोहिनी मुस्कान बार-बार नीड का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करती है।


24. दुःख के समय मनुष्य क्या सोचता है? 

उत्तर :दुःख के समय मनुष्य यह सोचता है कि इस दुःख का उसके जीवन से कभी अंत होने वाला नहीं है।

 

25.'वज्र दन्तों' किसे कहा गया है?

उत्तर :आकाश में चमकने वाली बिजली को 'वजदन्तों कहा गया है।


26. कवि किस बात का क्षय (हानि) अपने मन में नहीं मानने की प्रार्थना ईश्वर से करता है? 

उत्तर :अगर कवि को इस संसार में हानि उठानी पड़े, उसे धोखा मिले फिर भी वह इस बात का क्षय अपने मन में नहीं मानने की प्रार्थना ईश्वर से करता है।


27. दुःख के समय किसी सहायक के न मिलने की स्थिति में कवि ईश्वर से क्या कामना करते हैं? 

उत्तर :दुख के समय किसी सहायक के न मिलने की स्थिति में कवि ईश्वर से यह कामना करते हैं कि उनका बल पौरूष न हिले।


28. कवि कब ईश्वर पर संशय न होने की प्रार्थना करता है?


 उत्तर : जब पूरा संसार दुःख के दिनों में उसकी उपेक्षा कर दे तब कवि यह कामना करता है।


29. किस कवि को 'कविगुरू' की उपाधि दी गई है?

उत्तर : रवीन्द्रनाथ ठाकुर को 'कविगुरू' की उपाधि दी गई है।


*30. जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर कवि क्या प्रार्थना करता है ?

उत्तर- जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मेरा अपना बल और पराक्रम डाँवाडोल न हो । मैं विपत्ति में घबड़ा न जाउँ । 


31.कवि विपदा के समय प्रभु से क्या चाहते हैं?

उत्तर :कवि विपदा के समय प्रभु से यह चाहता है कि वह भय नहीं पाए। 


*32. जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर कवि क्या प्रार्थना करता है ?

उत्तर- जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मेरा अपना बल और पराक्रम डाँवाडोल न हो । मैं विपत्ति में घबड़ा न जाउँ । 


33.'आत्मत्राण' कविता के कवि की कामना क्या है?

उत्तर :'आत्मत्राण' कविता के कवि की कामना यह है कि किसी भी आपद-विपद में, किसी भी द्वंद्व में सफल होने के लिए संघर्ष वह स्वयं करें, प्रभु को कुछ न करना पड़े।




नौरंगिया

                                                   -----कैलाश गौतम


प्रश्न 1. 'नौरंगिया' कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
 [ मा० प० 2017 ] 

उत्तर - नौरंगिया शीर्षक कविता में जनवादी कविता कैलाश गौतम ने भारतीय कृषक महिला के जीवन का जीवन्त चित्रण किया है। नौरंगिया गंगापार की रहनेवाली है। गंगापार का अंचल दियारा अंचल कहलाता है। उस अंचल के भौगोलिक प्रभाव के कारण वहाँ के लोग मजबूत और मेहनती होते हैं। लंबी छरहरी कद-काठी इस अंचल के निवासियों की अपनी विशेषता है। यह सच है कि भारतीय कृषक परिवार की महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा जुझारू होती हैं।

         कवि ने दर्शाया है कि नौरंगिया देवी-देवताओं की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने की अपेक्षा अपने कर्म पर ज्यादा विश्वास करती है। वह बेहद भोली है। उसके मन में छल-प्रपंज नहीं है, लेकिन वह बहुत जुझारू है। वह रसूखदार लोगों के आगे घुटने नहीं टेकती है। अपने दम पर वह खेती-गृहस्थी का सारा काम संभाल लेती है। उसका पति आलसी, निकम्मा है। वह ऐसे कोयले की तरह है, जो जलावन के काम नहीं आता। ऐसे निकम्मे पति के साथ भी वह शान से जीती है। उसके साथ प्रेमपूर्वक जीवन बिताती है। उसके रूप-गुण की चर्चा गाँव-घर में इस प्रकार होती है जैसे अखबार की किसी खास खबर की चर्चा होती है।

          नौरंगिया जवान है। उसकी मेहनती देह स्वस्थ और सुन्दर है। उसका रंग इतना साफ है, जैसे शीशे के वर्तन में रखा हुआ पानी पारदर्शी दीखता है। आम की गुठली से निकली कोमल पत्तियाँ जैसे हवा में हरदम काँपती रहती है, उसी प्रकार वह हर पल चौकन्नी रहती है। उसके चेहरे पर काले भौंरे की तरह काली लटें खेलती रहती हैं। पानी से बार-बार धुले चेहरे की तरह उसका चेहरा दमकता रहता है। तथाकथित सभ्य महिलाओं की तरह उसके होंठो पर बनावटीपन नहीं है। उसके होंठ हरदम खुले रहते थे। उसका सौंदर्य देखकर ऐसा लगता है मानों वह विधाता की अनुपम रचना हो। ऐसी सुन्दरी के सामने समाज की कुदृष्टि से स्वयं को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। लगान वसूलने वाले कर्मचारी से लेकर ठेकेदार तक उसके पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं।
          अपने काम को निबटाने के लिये वह रात-दिन जुटी रहती है। वह काम में से कभी हार नहीं मानती है। वह जब तक जगती है लगातार काम करती रहती है। वह जिस परिवेश में पली-बढ़ी है, वहाँ साँप, गोजर, बिच्छू बिलबिलाते रहते हैं। अपने परिवेश ने उसे इतना साहसी बना दिया है कि उनसे वह बड़ी सहजता से निबट लेती है। उसके हृदय में सौंदर्य-बोध भी है। वह रेडियो से विविध भारती के संगीत चुनती है। वह सीधी लाठी की तरह सीधे स्वभाव की है। जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण अत्यन्त आशावादी है। बड़े उत्साह के साथ त्योहारों की तैयारी करती है।

       नौरंगिया गरीबी में अपना जीवन यापन करती है। उसके घर की मिट्टी की दीवार ढह ढनमना गई है। उस पर पुरानी सी छप्पर का छाजन है। उसकी फसल के तैयार होते ही उसके द्वार पर महाजन वसूली के लिए आ जाते हैं। जीवन के गुजारे के लिये उसके गहने गिरवी पड़े हैं। अपने गिरवी पड़े गहनों को नहीं छुड़ा पाने के कारण वह मन मसोस कर रह जाती है। उसके जीवन संघर्ष की अंतिम सीमा रेखा कहाँ पर समाप्त होती है यह कोई नहीं बता सकता है। उसके सारे सपने साकार होने से पहले ही बिखर गये, लेकिन उसने कभी अपना मन मलीन नहीं होने दिया। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह मुस्कुराती रहती है। उसके पैरों में किसी की दी हुई चप्पल है। उसने कर्ज-उधार लेकर अपनी देह पर नई साड़ी पहन रखी है। नौरंगिया के संघर्षपूर्ण जीवन के माध्यम से कवि ने भारतीय कृषक परिवार की महिला की करुण गाथा को अभिव्यक्ति दी है।


'मश्न-2. 'नौरंगिया' कविता के आधार पर नौरंगिया का चरित्र चित्रण कीजिए। 

उत्तर - नौरंगिया का चरित्र चित्रण :- नौरंगिया शीर्षक कविता में जनवादी कवि कैलाश गौतम ने एक भारतीय कृषक महिला के चरित्र का जीवन्त चित्रण किया है एवं ग्रामीण जीवन की समस्याओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। नौरंगिया कविता के आधार पर नौरंगिया की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं -

(1) ग्रामीण महिला - नौरंगिया गंगापार की रहनेवाली महिला है। गंगापार का क्षेत्र दियारा अंचल कहलाता है। ग्रामीण सभ्यता के कारण वह सीधी-सादी, सरल एवं गरीब है। गाँव में रहने के कारण वह अपने पति से अधिक कर्मठ एवं जुझारू है। कवि ने उसके निवास स्थान के बारे में कहा है-

 गाँव गली की चर्चा में वह सुर्खी-सी अखबार की है
नौरंगिया गंगा पार की है।

(2) पतिव्रता नारी - नौरंगिया का पति निकम्मा, नामर्द और स्त्रैण प्रवृत्तिवाला (मउगा) है। वह ऐसे कोयले की तरह है जो जलावन के काम नहीं आता। ऐसे निकम्मे पति के साथ भी वह शान से जीती है। उसके साथ प्रेमपूर्वक जीवन व्यतीत करती है। वह अपने बल पर खेती और घर का सारा कार्य करती है । कवि ने कहा है -
मरद निखट्टू जनखा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला, 
उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती, संग-संग पीती ।

(3) सुन्दरता की प्रतिमूर्ति - नौरंगिया जवान है। वह स्वस्थ एवं सुन्दर है। उसका रंग इतना उज्ज्वल हैं जैसे शीशे के बर्तन में रखा हुआ जल दिखाई देता है। उसके गोरे मुखड़े पर काली लटें खेलती रहती हैं, जैसे किसी सुन्दर एवं ताजे फूल पर भौंरे मँडराते रहते हैं। उसका चेहरा चमकता रहता है। उसके होठों पर कोई बनावटीपन नहीं है। उसके चेहरे का निखार देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह विधाता की अनुपम कृति है। कवि कैलाश गौतम जी की पंक्तियों में - कसी देह और भरी जवानी, शीशे के साँचे में पानी

सिहरन पहने हुए अमोले, काला भँवरा मुँह पर डोले ।

 (4) परिश्रमी नारी - नौरंगिया अपने काम को पूरा करने के लिए दिन-रात शारीरिक परिश्रम करती है। वह काम से कभी हार नहीं मानती है। वह जब तक जागती है, अपने काम में जुटी रहती है। वह बड़े उत्साह और उल्लास के साथ त्योहारों की तैयारी करती है। उसका जीवन उमंग एवं उल्लास से परिपूर्ण है। "जब देखो तब जाँगर पीटे, हार न माने काम घ

जब तक जागे, तब तक भागे, काम के पीछे, काम के आगे ।" ] 

(5) निर्धन नारी - नौरंगिया अत्यन्त गरीबी में अपना जीवन व्यतीत करती है। उसके घर की मिट्टी की दिवाल ढहने को है। उस पर पुरानी-सी छप्पर की छावनी है। उसकी फसल जब पककर तैयार होती है तो उसके द्वार पर वसूली के लिए महाजन आ धमकते हैं। उसके सारे गहने गिरवी पड़े हैं। उसके पैरों में किसी की दी हुई पुरानी चप्पल है। वह कर्ज लेकर नई साड़ी खरीद लेती है, जिससे उसका तन ढँका रहे ] कवि के शब्दों में - -

“ढहती भीत पुरानी छाजन, पकी फसल तो खड़े महाजन | 
गिरवी गहना छुड़ा न पाती, मन मसोस फिर-फिर रह जाती।"
 इस प्रकार हम देखते हैं कि नौरंगिया एक आदर्श, परिश्रमी, स्वाभिमानी, साहसी और आशावादी भारतीय कृषक महिला है।












Q.1.नौरंगिया के फसल पकने पर क्या होता है ?

उत्तर : फसल पकने पर महाजन नौरंगिया को दिए गए कर्ज को वसूलने के लिए सिर पर आ खड़ा होता है।

Q.2.नौरंगिया विपदा में भी क्या नहीं छोड़ती है ?

उत्तर : नौरंगिया विपदा के दिनों में भी हँसना नहीं छोड़ती है।

Q.3.विविध भारती क्या है ?

उत्तर : विविध-भारती आकाशवाणी का एक कार्यक्रम है जिसमें आग्रह (फरमाइश पर लोकप्रिय फिल्मी गाने सुनाए जाते हैं।

Q.4. 'जांगर पीटने' का क्या अर्थ है?

उत्तर :जांगर पीटने का अर्थ है - तैयार कटी फसल के डंठल को पटक-पटक कर उससे अनाज के दाने अलग करना।

 Q.5. नौरंगिया कहाँ की है ?

उत्तर : नौरंगिया गंगा पार की है।

Q.6.ईश्वर की अद्भुत रचना किसे और क्यों कहा गया है ?(Board Sample Paper)

उत्तर : नौरंगिया को ईश्वर की अद्भुत रचना कहा गया है क्योंकि गरीब घर में जन्म लेने के बाद भी वह सुंदर और समझदार है।

Q.7. 'जैसी नीयत' का भावार्थ क्या है?
उत्तर : 'जैसी नीयत' का भावार्थ है - बुरी नीयत

★ 8. नौरंगिया की आँखों में कैसे सपने हैं?

उत्तर - नौरंगिया का जीवन के प्रति दृष्टिकोण अत्यन्त आशावादी है। उसका मन बहुत की कोमल है। वह भी अपने मन के अन्दर सकुमार सपने संजोए हुए है।

★ 9. नौरंगिया देवी-देवता को क्यों नहीं मानती थी ?

उत्तर - नौरंगिया भाग्यवादी नहीं है। वह देवी-देवताओं की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने की अपेक्षा अपने कर्म पर विश्वास करती है।

★ 10. नौरंगिया का 'मर्द' कैसा था ?
उत्तर - नौरंगिया का मरद निहायत कामचोर, आलसी एवं अकर्मण्य है।

11.नौरंगिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है ?
उत्तर - नौरंगिया एक सुन्दर एवं आकर्षक नारी है। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है बुरी नजर रखनेवाले बड़े लोगों से अपना बचाव करना ।

12.नौरंगिया किसके साथ शान से जीती है ?

उत्तर : नौरंगिया का पति उसके लायक नहीं है फिर भी वह उसके साथ शान से जीती है।

13. 'नौरंगिया' कौन है?
उत्तर -  नौरंगिया गंगा पार की रहने वाली भारतीय कृषक महिला है।

★ 14. 'लाल न होता ऐसा कोयला' का क्या अर्थ है ?

उत्तर - यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है जलावन के भी काम न आने वाला अर्थात् अनुपयोगी।

★ 15. नौरंगिया ने क्या गिरवी रखा था ?
 उत्तर - नौरंगिया ने अपने गहने को गिरवी रखा था।

★ 16. गरीबी की मार सहते हुए भी नौरंगिया क्या करना नहीं भूलती थी? उत्तर -गरीबी की मार सहते हुए भी नौरंगिया विविध भारती सुनना नहीं भूलती थी।


17.नौरंगिया देवी-देवता को क्यों नहीं मानती है ?

उत्तर :नौरंगिया कर्मपूजा को ही सबसे पड़ी पूजा मानती है, इसलिए वह देवी-देवता को नहीं मानती है।

Q.18.नौरंगिया क्या नहीं मानती और क्या नहीं जानती ?

उत्तर : नौरंगिया देवी-देवता को नहीं मानती तथा छल-कपट नहीं जानती । 

Q.19.ताकतवर से कौन लोहा लेती है ?

उत्तर : ताकतवर से नौरंगिया लोहा लेती है।

Q.20.'लोहा लेना' का क्या अर्थ है ?

उत्तर : लोहा लेना का अर्थ है - डटकर जवाब देना ।

Q.21.नौरंगिया ने चप्पल कैसे पाया है ?

उत्तर : नौरंगिया ने किसी से मंगनी कर (माँग कर) चप्पल पाया है।

Q.22. गाँव-गली में किसकी चर्चा है ?

उत्तर :गाँव-गली में नौरंगिया की कर्मठता, उसके रूप-सौंदर्य की चर्चा है।

Q.23. नौरंगिया जगे रहने तक किसके आगे-पीछे भागती रहती है ? 
उत्तर : नौरंगिया जगे रहने तक काम के आगे-पीछे भागती रहती है।

Q.24.] नौरंगिया के सीधेपन की तुलना किससे की गई है ?

उत्तर :नौरंगिया के सीधेपन की तुलना लाठी से की गई है।

Q.25.नौरंगिया ने नई साड़ी कैसे ली है ?

उत्तर :नौरंगिया ने नई साड़ी उधार ली है।





गद्य खण्ड


निबन्ध

धूमकेतु


गुणाकर मूले

* प्रश्न- 1. धूमकेतु क्या है ? वह हमारे लिए भयप्रद क्यों नहीं हैं?
अथवा,
अब लोगों में धूमकेतु का भय क्यों नहीं रह गया है ?
उत्तर -धूमकेतु में 'धूम' का अर्थ है धुआँ और 'केतु' का अर्थ है पताका अर्थात् आकाश में जो धुएँ के पताका जैसा दिखे वह धूमकेतु है।
         धूमकेतु के भयप्रद न होने का कारण- इनके प्रति व्याप्त पन्द्रहवीं शताब्दी में एडमंड हेली ने अपने शोध के द्वारा हमें धूमकेतुओं के बारे में नयी जानकारी से अवगत कराया और हमारी गलत अवधारणा को समाप्त किया।
         धूमकेतुओं के बारे में जो जानकारी मिली है उसके अनुसार धूमकेतु भी सौरमंडल के सदस्य हैं, अन्य ग्रहों की तरह ये भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । इससे हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी उनके बारे में हमें पूर्ण जानकारी नहीं है। इसके लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एवं अन्य विकसित देशों ने अपने यान प्रक्षेपित किए हैं । इससे हमें और अधिक एवं प्रामाणिक जानकारी मिलेगी।

प्रश्न- 2.धूमकेतु पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - डा० गुणाकर मुले द्वारा लिखित धूमकेतु एक शोध निबंध है; जिसमें विद्वान लेखक ने धूमकेतुओं के बारे में बड़ी ही रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी प्रदान की है। धूमकेतुओं के बारे में सदियों से प्रचलित भ्रमित धारणाओं को निर्मूल सिद्ध करते हुए बताया है कि धूमकेतु भी अन्य ग्रहों की तरह सूर्य मंडल के सदस्य हैं। ये भी अन्य ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और इनका भी एक भ्रमण पथ है जो अण्डाकार होते हुए भी अन्य ग्रहों से थोड़ा भिन्न है। धूमकेतु ग्रहों के समतल के साथ कई अंशों का कोण बनाते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इसी कारण ये कभी-कभी पिंडों के प्रभाव में आकर अपने भ्रमण कक्ष से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चले जाते हैं।

            जिस प्रकार धूमकेतु का दर्शन अपने देश में अशुभ एवं अमंगलकारी माना जाता था, उसी प्रकार विश्व के प्रायः समस्त देशों में इसे भयावह एवं अमंगलकारी माना जाता है। पर वैज्ञानिक शोध के द्वारा हमें इस अवधारणा से मुक्ति मिल गई है कि ये डरावने नहीं हैं, हैं अमंगलकारी नहीं है। ये भी अन्य ग्रहों की ही तरह हैं। हमारे देश में वैदिक काल एवं महाभारत में भी धूमकेतु की चर्चा है। वराहमिहिर जैसे प्रमुख ज्योतिषी ने अपनी वृहत्संहिता नामक ग्रंथ में धूमकेतुओं के शुभाशुभ फलों की चर्चा की है।

            धूमकेतुओं के प्रति व्याप्त हमारी अवधारणा को पन्द्रहवीं शताब्दी में एडमंड हेली ने अपने शोध के द्वारा हमें धूमकेतुओं के बारे में नयी जानकारी से अवगत कराया और हमारी गलत अवधारणा को समाप्त किया। हेली के अनुसार धूमकेतुओं की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी पूँछ से धरती निकल सकती है। इसके तीन अंग होते हैं सिर, नाभिक एवं पूँछ। सिर का घेरा हजारों लाखों किलोमीटर एवं पूँछ की लम्बाई 20 करोड़ किलोमीटर तक हो सकती है इसीलिए आम्रोई पेरी ने इन्हें आकाश के राक्षस की संज्ञा दी है। प्रस्तुत निबंध में धूमकेतुओं के बारे में जो जानकारी मिली है उसके अनुसार धूमकेतु भी सौरमंडल के सदस्य हैं, अन्य ग्रहों की तरह ये भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी उनके बारे में हमें पूर्ण जानकारी नहीं है इसके लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एवं अन्य विकसित देशों ने अपने यान प्रक्षेपित किए हैं। इससे हमें और अधिक एवं प्रामाणिक जानकारी मिलेगी।


प्रश्न- 3.-धूमकेतुओं के बारे में नवीन अवधारणा को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- डा० गुणाकर मुले द्वारा लिखित धूमकेतु एक शोध निबंध है; जिसमें विद्वान लेखक ने धूमकेतुओं के बारे में बड़ी ही रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी प्रदान की है। धूमकेतुओं के बारे में सदियों से प्रचलित भ्रमित धारणाओं को निर्मूल सिद्ध करते हुए बताया गया है कि धूमकेतु भी अन्य ग्रहों की तरह सौर मंडल के सदस्य हैं। ये भी अन्य ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और इनका भी एक भ्रमण पथ है जो अण्डाकार होते हुए भी अन्य ग्रहों से थोड़ा भिन्न है। धूमकेतु ग्रहों के साथ कई अंशों का कोण बनाते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इसी कारण ये कभी-कभी पिंडों के प्रभाव में आकर अपने भ्रमण कक्ष से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चले जाते हैं।

          पन्द्रहवीं शताब्दी में एडमंड हेली ने अपने शोध के द्वारा हमें धूमकेतुओं के बारे में नई जानकारी से अवगत कराया और उसके प्रति व्याप्त हमारी गलत अवधारणा को समाप्त किया। हेली के अनुसार धूमकेतुओं की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी पूँछ से धरती निकल सकती है। इसके तीन अंग होते हैं सिर, नाभिक एवं पूँछ। सिर का घेरा हजारों लाखों किलोमीटर एवं पूँछ की लम्बाई 20 करोड़ किलोमीटर तक हो सकती है इसीलिए आम्रोई पेरी ने इन्हें आकाश के राक्षस की संज्ञा दी है।

           प्रस्तुत निबंध में धूमकेतुओं के बारे में जो जानकारी मिली है उसके अनुसार धूमकेतु भी सौरमंडल के सदस्य हैं, अन्य ग्रहों की तरह ये भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी उनके बारे में हमें पूर्ण जानकारी नहीं है इसके लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एवं अन्य विकसित देशों ने अपने यान प्रक्षेपित किए हैं। भविष्य में इससे हमें और अधिक एवं प्रामाणिक जानकारी मिलेगी।


प्रश्न-4.हेली इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे कि धूमकेतु सौरमण्डल के सदस्य हैं ? [ मा० प० - 2018] 
* अथवा, धूमकेतुओं के विषय में हेली ने अपने अध्ययन से क्या निष्कर्ष प्रस्तुत किया ? [मॉडल प्रश्न]

उत्तर - प्राचीनकाल में ऐसी अवधारणा थी कि धूमकेतु का दर्शन बड़ा ही अशुभ एवं अमंगलकारी होता है। लोग इसे विनाशक मानकर डरते थे। प्राचीन ग्रंथों में इस बात की जानकारी मिल जाती है कि धूमकेतु कब दिखाई पड़े। हेली ने इस जानकारी का अध्ययन किया और माना कि सन् 1531 और 1607 में धूमकेतु दिखाई दिया था। सन् 1682 में स्वयं उन्होंने धूमकेतु को देखा था। हेली ने सोचा कि सभी ग्रह सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण उसकी परिक्रमा करते हैं और एक निश्चित अवधि में अपना चक्कर पूरा करते हैं। धूमकेतु भी एक ग्रह है इसे भी एक निश्चित अवधि के बाद आकाश में दिखाई देना चाहिए। हेली 1531, 1607 और 1682 में दिखाई दिए जाने वाले धूमकेतुओं पर विचार करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह एक ही धूमकेतु है जो 75, 76 वर्षों के अन्तर में दिखाई देता है अतः धूमकेतु भी सौर मंडल के सदस्य हैं और सौर मंडल की सीमाओं का चक्कर लगा 75 या 76 वर्ष में वही सूर्य के पास लौटता है।



प्रश्न - 5. 'धूमकेतु' शीर्षक निबंध में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए

उत्तर - 'धूमकेतु' शीर्षक निबंध में निहित उद्देश्य :- ‘धूमकेतु' शब्द दो शब्दों से बना है, 'धूम' और ‘केतु’। ‘धूम' का अर्थ है धुआँ और 'केतु' का अर्थ है पताका। इसलिए आकाश में जो दृश्य धुएँ की पताका जैसा दिखाई देता है, उसे धूमकेतु कहा जाता है। धूमकेतु को 'पुच्छल तारा' भी कहते हैं। पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु को ‘कॉमेट' कहते हैं। यह शब्द यूनानी भाषा के 'कोमते' शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है 'लंबे बालों वाला' ।

           महाभारत में धूमकेतु के बारे में कहा गया है - ‘महाभयंकर धूमकेतु जब पुष्य नक्षत्र के पार पहुँचेगा तो भयंकर युद्ध होगा।' इस प्रकार पुराने जमाने में धूमकेतु को भयंकर ख़तरे का सूचक समझा जाता था। धूमकेतुओं से दूसरे देशों के लोग भी बहुत डरते थे। सन् 1528 ई० में यूरोप के आकाश में एक धूमकेतु प्रकट हुआ। जिसके डर से कई लोग मर गए और बहुत से बीमार पड़ गए।

           लेकिन अब घूमकेतुओं से कोई डरता नहीं है और न कोई बीमार पड़ता है। यूरोप के महान ज्योतिषी तीखे ब्राहे ने पहली बार सन् 1577 ई० में सिद्ध किया कि धूमकेतु पृथ्वी से बहुत दूर होते हैं, चन्द्रमा से भी अधिक दूर होते हैं। सर आइजक न्यूटन के एक मित्र एडमंड हेली ने बताया कि ग्रहों की तरह धूमकेतु पृथ्वी से बहुत दूर होते हैं, एडमंड हेली ने बताया कि ग्रहों की तरह धूमकेतु भी हमारे सौर मंडल के सदस्य हैं और ये सूर्य की परिक्रमा करते हैं। हेली ने 1531, 1607 और 1682 में दिखाई दिए धूमकेतुओं पर विचार किया। इनमें 76 और 75 साल का अन्तर है। हेली इस नतीजे पर पहुँचे कि यह वास्तव में एक ही धूमकेतु है और सौर मंडल में चक्कर लगाकर 75 या 76 साल में पुनः सूर्य के पास लौटता है और सचमुच सन् 1758 ई० में आकाश में वह धूमकेतु प्रकट हुआ। इस तरह लेखक का उद्देश्य धूमकेतु के बारे में जानकारी देकर हमें यह बताना है कि धूमकेतु से हमें डरने की आवश्यकता नहीं है। यह एक खगोलीय घटना है।

प्रश्न 6. धूमकेतुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है, यह कैसे सिद्ध हुआ है ?

उत्तर- हेली का धूमकेतु 75 या 76 वर्ष में अपनी परिक्रमा पूरी करता है। जिन धूमकेतुओं की कक्षा छोटी होती है। वे तीन या दस साल में अपनी परिक्रमा पूरी कर लेते हैं; पर वे सूर्य के प्रभाव एवं उष्मा से शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।

         जल्दी खत्म हो जानेवाला विएला का धूमकेतु था । यह करीब सात साल में सूर्य का चक्कर लगाता था। सन् 1832 और 1839 में इसे देखा गया था। सन् 1845 में खगोलविदों द्वारा इसकी प्रतीक्षा की जा रही थी । पर देखा गया कि वह दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। धीरे-धीरे दोनों टुकड़े एक दूसरे की विपरीत दिशा में चले गए । सन् 1872 ई० में खगोलविदों ने देखा कि जिस स्थान पर धूमकेतु को प्रकट होना था वहाँ से उल्काओं की वर्षा होती थी। इससे इस बात का अंदाजा लगता है कि धूमकेतु विखंडित होकर उल्कापात करते हैं।

*प्रश्न- 7. 'धूमकेतु' निबंध के लेखक गुणाकर मूले का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचना संसार का परिचय दीजिए।

उत्तर- गुणाकर मूले का जन्म सन् 1935 ई. में महाराष्ट्र प्रदेश के अमरावती जिला में हुआ था। आधुनिक काल का यह रचनाकार खगोल एवं वैज्ञानिक शोध निबंधों के लेखन में सिद्धहस्त है। गुणाकर मुले मूलतः गणितज्ञ हैं। आप विज्ञान एवं खगोल विज्ञान के जटिल विषयों को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत करने में समर्थ रहे हैं।

रचनाएँ- भारतीय अंक पद्धति की कहानी, नक्षत्र लोक पर, सौरमण्डल, अंतरिक्ष यात्रा, अन्तरकथा, प्राचीन भारत के वैज्ञानिक आदि। उत्तर प्रदेश हिन्दी समिति ने इनकी दो पुस्तकों पर पुरस्कार देकर इन्हें नवाजा है। दिल्ली की हिन्दी अकादमी ने इन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया है। आपकी तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

           डा० मुले ने विज्ञान के जटिल विषयों को अपने लेखन का विषय बनाया। उनको सरल भाषा में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। विज्ञान को साहित्यिक पुट देने में इन्हें महारत हासिल है। प्रस्तुत निबंध 'धूमकेतु' उनका एक रोचक निबंध है, जिसमें उन्होंने धूमकेतु और उनकी रचना प्रक्रिया का सहज एवं सरल विश्लेषण किया है।



बहुविकल्पीय प्रश्न


निम्नलिखित में से सही विकल्पों को चयनित कीजिए

*1 उल्का शब्द मिलता है -

(क) सामवेद

(ख) अथर्ववेद

(ग) ऋगवेद

(घ) यजुर्वेद

उत्तर - (ख) अथर्ववेद

2. धूमकेतु किसके ताप से गर्म हो जाता है।

(क) मंगल के

(ख) शुक्र के

(ग) सूर्य के

(घ) शनि के

उत्तर – (ग) सूर्य के

*3. 'धूमकेतु' को कौन सा तारा कहते हैं

(क) ध्रुवतारा
(ख) शुक्र तारा
(ग) पुच्छल तारा
(घ) मेष तारा
उत्तर- (ग) पुच्छल तारा।

*4. नई जानकारी के अनुसार हेली के धूमकेतु का नाभिक है

(क) 20x18 किलोमीटर
(ख) 16x9 किलोमीटर
(ग) 100x100 किलोमीटर
(घ) 22.168x11.666 किलोमीटर

उत्तर – (ख) 16x9 किलोमीटर

*5. धूमकेतु के नाभिक से प्रतिसेकेण्ड कितने टन धूलि उत्सर्जित होती है -

(क) 20 टन

(ख) 30 टन

(ग) 10 टन

(घ) पाँच टन

उत्तर - (ग) 10 टन

*5. 'आकाश के राक्षस' क्या है ?

(क) कविता

(ख) उपन्यास

(ग) धूमकेतु

(घ) पुस्तक

उत्तर - (घ) पुस्तक
*6. महाभारत में महाभयंकर धूमकेतु के किस नक्षत्र के पार पहुँचने पर भयंकर युद्ध होने की बात कही गई थी ?

(क) अद्य
(ख) पुष्य
(ग) व्याल
(घ) केतु

उत्तर - (ख) पुष्य

7. धूम का अर्थ है -

(क) धूम मचाना
(ख) घूमना
(ग) धुँध
(घ) धुआँ
उत्तर - (घ) धुआँ

8. केतु का अर्थ है -

(क) राहु-केतु
(ख) कदली
(ग) पताका
(घ) एक ग्रह

उत्तर - (ग) पताका

*9. धूमकेतु को क्या कहते हैं?

(क) ध्रुवतारा
(ख) सप्तर्षि तारामण्डल
(ग) कर्ण और अर्जुन
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर (घ) इनमें से कोई नहीं।

*10. बृहत्संहिता के रचनाकार हैं

(क) वाराहमिहिर
(ख) पाणिनि
(ग) गुणाकर मुले
(घ) विष्णु गुप्त

उत्तर - (क) वाराहमिहिर

*11. धूमकेतु परिक्रमा करते हैं -

(क) चन्द्रमा का
(ख) मंगल का
(ग) सूर्य का
(घ) पृथ्वी की
उत्तर - (ग) सूर्य का

12. हेली का धूमकेतु पृथ्वी और सूर्य के समीप कब आएगा

(क) 2045 ई० में
(ख) 3062 ई० में
(ग) 2062 ई० में
(घ) 2020 ई० में
उत्तर - (ग) 2062 ई० में

★13. 'कोमेते' किस भाषा का शब्द है ?

(क) रोमन
(ख) फारसी
(ग) इंग्लिश
(घ) यूनानी

उत्तर - (घ) यूनानी

* 14. आइजेक न्यूटन के मित्र थे -

(क) आमोई पेरी
(ख) एडमंड हेली
(ग) वाराहमिहिर
(घ) निकोला तेस्ला

उत्तर - (ख) एडमंड हेली

*15. पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु को कहते हैं

(क) सॉनेट
(ख) कॉमेट
(ग) रॉकेट
(घ) सॉकेट

उत्तर - (ख) कॉमेट

*16. 'बिएला धूमकेतु' कितने वर्षों में सूर्य का चक्कर लगाता था ?

(क) पाँच वर्ष
(ख) नौ वर्ष
(ग) सात वर्ष
(घ) ग्यारह वर्ष
उत्तर - (ग) सात वर्ष

*17. कोमते का अर्थ है ।

(क) कॉमेट
(ख) पुच्छल तारा
(ग) धूमकेतु
(घ) लम्बे बालों वाला।

उत्तर (घ) लम्बे बालों वाला।

*18. धूमकेतु का अधिकांश द्रव्य कहाँ होता है?

(क) इसके नाभिक में
(ख) इसके आँख में
(ग) इसके पूँछ में
(घ) इसके सिर में

उत्तर (क) इसके नाभिक में

*19. खगोलविदों ने अब तक धूमकेतुओं की कितनी कक्षाएँ निर्धारित की हैं?

(क) एक हजार
(ख) डेढ़ हजार
(ग) दो हजार
(घ) तीन हजार

उत्तर (ख) डेढ़ हजार।

20.धूमकेतुओं के शुभ-अशुभ फलों का जिक्र किया -

(क) पाणिनी ने
(ख) गुणाकर मुले ने
(ग) बाराहमिहिर ने
(घ) विष्णुगुप्त ने
उत्तर -(ग) बाराहमिहिर ने

21."महाभयंकर धूमकेतु जब पुष्य नक्षत्र के पार पहुँचेगा तो भयंकर युद्ध होगा।” - किस ग्रन्थ में लिखा गया है?

(क) रामायण
(ख) महाभारत
(ग) मनु स्मृति
(घ) कुरान
उत्तर -(ख) महाभारत

22.'बिहार का कर्पूरी ठाकुर स्मृति सम्मान' इनमें से किस रचनाकार को प्राप्त है?

(क) गुणाकार मुले
(ख) यतीन्द्र मिश्र
(ग) संजीव
(घ) शिवमूर्ति
उत्तर -(क) गुणाकार मुले

23.आज हम धूमकेतु को किसका धूमकेतु कहते हैं ?

(क) न्यूटन का
(ख) हेली का
(ग) पृथ्वी का
(घ) चन्द्रमा का
उत्तर -(ख) हेली का
24.धूमकेतु किसकी परिक्रमा करते हैं?

(क) पृथ्वी को
(ख) वृहस्पति की
(ग) चन्द्रमा की
(घ) सूर्य की
उत्तर -(घ) सूर्य की।

25.धूमकेतु की पूँछ रहती है?

(क) पृथ्वी के विपरीत
(ख) सूर्य के विपरीत।
(ग) चन्द्रमा के विपरीत
(घ) शनि के विपरीत
उत्तर -(ख) सूर्य के विपरीत
26. न्यूटन का कौन सा सिद्धांत विश्वप्रसिद्ध है?
(क) गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत
(ख) पूँजीवाद का सिद्धान्त
(ग) मार्क्सवाद का सिद्धांत
(घ) समाजवाद का सिद्धान्त
उत्तर -(क) गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत

27.धूमकेतु प्रायः कितने साल में सूर्य का एक चक्कर लगा लेता है?

(क) 75-76 साल
(ख) 50-51 साल
(ग) 30-35 साल
(घ) 700-800 साल

उत्तर -(क) 75-76 साल।
28.हेली ने धूमकेतु के कब प्रकट होने की बात कही?

(क) 1902 ई० में
(ख) 1758 ई० में
(ग) 1896 ई० में
(घ) 2012 ई० में
उत्तर-(ख) 1758 ई० में।
29.किसकी सहायता से 'जोतो' को धूमकेतु के नजदीक पहुँचाया गया?
(क) वीहे यानों की सहायता से।
(ख) हवाई जहाज की सहायता से
(ग) 'नासा' की सहायता से
(घ) विश्व बैंक की सहायता से
उत्तर-(क) वीहे यानों की सहायता से

30.गुणाकर मुले किस क्षेत्र के जाने-माने हस्ताक्षर थे ?

(क) लिपि विज्ञान
(ख) अभिलेख विज्ञान
(ग) रसायन विज्ञान
(घ) भौतिक विज्ञान

उत्तर-(क) लिपि विज्ञान।
31.'वीहे' यान का नामकरण किसके नाम पर किया गया है? (क) वीनस तथा हिलमंड हिलेरी
(ख) वीनस तथा हिलेरी के नाम
(ग) वीनस तथा हीले हर्क्यूलस के नाम पर
(घ) वीनस तथा सूर्य के नाम पर
उत्तर-(ग) वीनस तथा हीले हर्क्यूलस के नाम पर ।

32.हेली का धूमकेतु पृथ्वी और सूर्य के समीप आएगा

(क) 2020 में
(ख) 3062 में
(ग) 2045 में
(घ) 2062 में
उत्तर-(ख) 3062

33.पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु को कहते हैं

(क) सॉनेट
(ख) कॉमेट
(ग) रॉकेट
(घ) सॉकेट
उत्तर-(ख) कॉमेट।

34.काँमेट का अर्थ होता है -

(क) कॉमेट
(ख) पुच्छल तारा
(ग) धूमकेतु
(घ) लम्बे बालों वाला ।
उत्तर-(घ) लम्बे बालों वाला

35. प्राचीन काल में धूमकेतु को प्रायः किसका सूचक माना जाता था?

(क) सौभाग्य का
(ख) समृद्धि का
(ग) भयंकर खतरे का
(घ) सुख का
उत्तर-(ग) भयंकर खतरे का ।

36.वराहमिहिर थे ?

(क) ज्योतिषी
(ख) वैज्ञानिक
(ग) शिक्षक
(घ) कुशल कारीगर
उत्तर-(क) ज्योतिषी ।

37. धूमकेतु पाठ के लेखक हैं

(क) श्रीधरन
(ख) डा० गुणाकर मुले
(ग) फादर कामिल बुल्के
(घ) वाराहमिहिर
उत्तर - (ख) डा० गुणाकर मुले

38. धूमकेतु हिन्दी की किस गद्य विधा की रचना है

(क) कहानी

(ख) एकांकी

(ग) निबंध

(घ) आत्मकथा

उत्तर - (ग) निबंध

39. वाराहमिहिर हुए

(क) पाँचवी सदी में
(ख) छठवीं सदी में
(ग) अठारहवीं सदी में
(घ) बीसवीं सदी में
उत्तर (ख) छठवीं सदी में

40. आकाश का राक्षस किसकी रचना है-
( क ) वाराहमिहिर
(ख) च्यवन ऋषि
(ग) नागार्जुन
(घ) आम्रोही पेरी
उत्तर- (घ) आम्रोही पेरी

41. धूमकेतु को देखकर लोग -

(क) भाग गए
(ख) सो गए
(ग) डर गए
(घ ) डर गए और मर गए

उत्तर - (घ) डर गए और मर गए

42.किसने सिद्ध किया कि धूमकेतु पृथ्वी एवं चन्द्रमा से बहुत दूर हैं-

(क) नीत्से ने
(ख) वाराहमिहिर ने
(ग) तीखे ब्राहे ने
(घ) आइजक न्यूटन ने

उत्तर - (ग) तीखे ब्राहे ने

43. तीखे ब्राहे कहाँ के थे -

(क) अफ्रीका महादेश के
(ख) एशिया महादेश के
(ग) यूरोप महादेश के
(घ) उत्तरी अमेरिका के
उत्तर - (ग) यूरोप महादेश के

44. तीखे ब्राहे ने किस सन् में सिद्ध किया कि धूमकेतु पृथ्वी और चन्द्रमा से बहुत दूर है

(क) सन् 1655 ई० में
(ख) सन् 1656 ई० में
(ग) सन् 1577 ई० में
(घ) सन् 1605 ई० में
उत्तर - (ग) सन् 1577 ई० में

45. एडमंड हेली मित्र थे -

(क) आइजेक न्यूटन के
(ख) तीखे ब्राहे के
(ग) हेली के
(घ) वाराहमिहिर के
उत्तर - (क) आइजेक न्यूटन के

46. धूमकेतु सदस्य हैं
(क) वायुमण्डल के
(ख) चन्द्रमण्डल के
(ग) सौरमण्डल के
(घ) मालूम नहीं
उत्तर - (ग) सौरमण्डल के

47.धूमकेतु परिक्रमा करते हैं -

(क) चन्द्रमा का
(ख) मंगल का
(ग) सूर्य का
(घ) पृथ्वी की
उत्तर- (ग) सूर्य का

48. हेली के अनुसार धूमकेतु दिखाई दिए थे

(क) 1531 ई० में
(ख) 1531 और 1682 ई० में
(ग) 1660-1600 ई० में
(घ) 1605 और 1703 में
उत्तर- ( ख ) 1531 और 1682 ई० में

50. धूमकेतुओं के उदय में कितने वर्षों का अंतराल होता है

(क) पचास से साठ वर्ष
(ख) 76 से 75 वर्ष 
(ग) 80 से 90 वर्ष
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर - ( ख ) 76 से 75 वर्ष

51. हेली ने क्या भविष्यवाणी की थी -

(क) 1760 ई० में धूमकेतु प्रकट होगा
(ख) 1758 ई० में धूमकेतु प्रकट होगा
(ग) 1780 ई० में धूमकेतु प्रकट होगा
(घ) 1742 ई० में धूमकेतु प्रकट होगा

उत्तर - ( ख ) 1758 ई० में धूमकेतु प्रकट होगा

52. हेली की मृत्यु हुई थी -

(क) 1792 ई० में
(ख) 1742 ई० में
(ग) 1805 ई० में
(घ) 1442 ई० में

उत्तर - (ख) 1742 ई० में

53. हेली का धूमकेतु पिछली बार दिखाई दिया था -

(क) 1910 ई० में
(ख) 1920 ई० में
(ग) 1905 ई० में
(घ) 1940 ई० में
उत्तर - ( क ) 1910 ई० में

54. खगोलविदों ने धूमकेतुओं की कक्षाएँ निर्धारित की हैं -

(क) 365
(ख) 1000
(ग) 1500
(घ) 220

उत्तर- (ग) 1500

55. धूमकेतु के भाग होते हैं -

(क) दो
(ख) तीन
(ग) पाँच
(घ) सात

उत्तर - (ख) तीन

56. धूमकेतु का अधिकांश द्रव्य होता है।

(क) पूँछ में
(ख) नाभिक में
(ग) सिर में
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर - (ख) नाभिक में

57. धूमकेतुओं की पूँछ का विस्तार हो जाता है -

(क) 20 किलोमीटर तक
(ख) 20 हजार किलोमीटर तक
(ग) 20 लाख किलोमीटर तक
(घ) 20 करोड़ किलोमीटर तक

उत्तर - (घ) 20 करोड़ किलोमीटर तक

58. धूमकेतुओं की पूँछ होती है

(क) सूर्य के सामने
(ख) सूर्य की विपरीत दिशा में
(ग) सूर्य के समानान्तर
(घ) अन्य ग्रहों के समानान्तर
उत्तर - (ख) सूर्य की विपरीत दिशा में

59. धूमकेतुओं की पूँछ होती है ।

(क) मटमैली
(ख) धुएँ की तरह
(ग) बहुत चमकीली
(घ) इन्द्रधनुषी

उत्तर - (ग) बहुत चमकीली

60.जापान ने हेली के धूमकेतु के पास कितने यान भेजा है

(क) दो
(ख) तीन
(ग) पाँच
(घ) दस
उत्तर - (क) दो

*61. धूमकेतु के नाभिक से प्रतिसेकेण्ड कितने टन धूलि उत्सर्जित होती है

(क) 20 टन
(ख) 30 टन
(ग) 10 टन
(घ) पाँच टन

उत्तर - ( ग ) 10 टन

62. धूमकेतु के (हेली के) नाभिक से गैसें उत्सर्जित होती हैं प्रतिसेकेण्ड -

(क) 10 टन
(ख) 25 टन
(ग) 30 टन
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर - (ग) 30 टन

63.'बिएला धूमकेतु' कितने वर्षों में सूर्य का चक्कर लगाता था ?
(क) पाँच वर्ष
(ख) नौ वर्ष
(ग) सात वर्ष
(घ) ग्यारह वर्ष
उत्तर - (ग) सात वर्ष

*64.गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की ?

(क) हेली ने
(ख) न्यूटन ने
(ग) आम्रोई ने
(घ) किसी ने नहीं ।

उत्तर- (ख) न्यूटन ने।

*65. धूमकेतु का अधिकांश द्रव्य कहाँ होता है ?

(क) इसके नाभिक में
(ख) इसके आँख में
(ग) इसके पूँछ में
(घ) इसके सिर में

उत्तर- ( क ) इसके नाभिक में

*66. खगोलविदों ने अब तक धूमकेतुओं की कितनी कक्षाएँ निर्धारित की हैं ?

(क) एक हजार
(ख) डेढ़ हजार
(ग) दो हजार
(घ) तीन हजार
उत्तर- (ख) डेढ़ हजार।

*★67. 'आकाश के राक्षस' क्या है ?

(क) कविता
(ख) उपन्यास
(ग) धूमकेतु
(घ) पुस्तक



लघूत्तरीय प्रश्न


1.धूमकेतु किन दो शब्दों के मेल से बना है ?
उत्तर - • धूमकेतु धूम और केतु दो शब्दों के मेल से बना है।

2. धूमकेतु का अर्थ क्या है ?
उत्तर- धूमकेतु का अर्थ है घूँए की पताका।

3. धूमकेतु पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर- धूमकेतु पाठ के लेखक हैं डा० गुणाकर मुले ।

4. धूमकेतु का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर- धूमकेतु का दूसरा नाम है पुच्छलतारा।

5. पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु को क्या कहते हैं ?
उत्तर - पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु को कॉमेंट कहा जाता है।

6. कॉमेट किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर - कॉमेट यूनानी भाषा का शब्द है।

7. कॉमेट शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
उत्तर - कॉमेट शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के कोमेते शब्द से हुई है।

8. कोमेते का क्या अर्थ है ?
उत्तर- कोमेते का अर्थ है 'लम्बे बालों वाला'।

9. अथर्ववेद में धूमकेतु के बारे में क्या शब्द है ?
उत्तर - अथर्ववेद में धूमकेतु के बारे में उल्का शब्द आते हैं।

10. किस महाकाव्य में धूमकेतु का उल्लेख है ?
उत्तर - महाभारत महाकाव्य में धूमकेतु का उल्लेख है।

11. पुराने जमाने में धूमकेतु, किसका सूचक माना जाता था ?
उत्तर - पुराने जमाने में धूमकेतु भयंकर खतरे का सूचक माना जाता था।

12. वाराहमिहिर क्या थे ?
उत्तर - वाराहमिहिर एक बहुत बड़े ज्योतिषी थे।

13. वाराहमिहिर किस सदी में पैदा हुए थे ?
उत्तर - वाराहमिहिर छठीं सदी में पैदा हुए थे।

14. वाराहमिहिर किस देश में पैदा हुए थे ?
उत्तर - वाराहमिहिर भारत देश में पैदा हुए थे।

15. वाराहमिहिर ने धूमकेतुओं के बारे में कौन-सा ग्रंथ लिखा ?
उत्तर - वाराहमिहिर ने वृहत्संहिता ग्रंथ की रचना की है।

16. धूमकेतु का पर्याय क्या है ?
उत्तर- धूमकेतु का पर्याय है पुच्छलतारा या कोमोते।

17. यूरोप के आकाश में एक धूमकेतु कब प्रकट हुआ था ?
उत्तर - यूरोप के आसमान में 1528 ई० में धूमकेतु प्रकट हुआ था।

18. आम्रोई ने अपनी किस पुस्तक में धूमकेतु के बारे में जानकारी दी है?
उत्तर - आम्रोई पेरी ने ‘आकाश के राक्षस' नामक पुस्तक में धूमकेतु के बारे में जानकारी दी है।

19. तीखे ब्राहे कौन थे ?
उत्तर- तीखे ब्राहे यूरोप के महान ज्योतिषी थे।

20. दूसरे देशों में धूमकेतुओं के बारे में क्या धारणा थी ? उत्तर- दूसरे देशों के लोग धूमकेतु के उदय से बहुत डरते थे।

*21. एडमंड हेली कौन थे ?
उत्तर- एडमंड हेली आइजेक न्यूटन के मित्र थे ।

22. एडमंड हेली क्या न्यूटन के समकालीन थे ?
उत्तर - हाँ, एडमंड हेली न्यूटन के समकालीन थे।

23. धूमकेतुओं से डरने का क्या कारण था ?
उत्तर - धूमकेतुओं से लोगों को डरने का कारण धूमकेतु के बारे में अज्ञानता थी।

24. न्यूटन प्रमुख सिद्धान्त का नाम क्या है ?
उत्तर- न्यूटन के प्रमुख सिद्धान्त का नाम गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त है।

25. हेली ने क्या सिद्ध किया है ?
उत्तर- हेली ने यह सिद्ध किया है कि धूमकेतु भी सौरमण्डल के सदस्य हैं।

26. धूमकेतु किसकी परिक्रमा करते हैं?
उत्तर - धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

27.धूमकेतुओं की पूँछ कितनी फैल जाती है?
उत्तर- धूमकेतुओं की पूँछ का विस्तार 20 करोड़ किलोमीटर तक हो सकता है।

28. धूमकेतुओं की पूँछ सूर्य के किस दिशा में होती है ?

उत्तर- धूमकेतुओं की पूँछ सूर्य के विपरीत दिशा में होती है।

29.सभी धूमकेतु किस तरह की कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं ?
उत्तर- सभी धूमकेतु अण्डाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

* 30.धूमकेतु सभी ग्रहों में अपवाद क्यों हैं?

उत्तर - क्योंकि धूमकेतु ग्रहों के समतल के साथ कई अंशों का कोण बनाते हुए परिक्रमा करते हैं।

31. छोटी अण्डाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करने वाले धूमकेतु कितने सालों में सूर्य की परिक्रमा कर लेते हैं।

उत्तर- तीन से दस साल के भीतर सूर्य की परिक्रमा कर लेते हैं।

32. धूमकेतु से प्रति सेकेण्ड कितनी धूलि उत्सर्जित होती है ?

उत्तर - धूमकेतु से प्रति सेकेण्ड 10 टन धूलि उत्सर्जित होती है।

33. धूमकेतु की पूँछ की रचना कैसे होती है ?

उत्तर - धूमकेतु की पूँछ की रचना उत्सर्जित धूलि गैसों एवं सूर्य के प्रकाश से होती है।

34. हैली का धूमकेतु पुनः पृथ्वी के समीप कब आएगा ? उत्तर - हेली का धूमकेतु पुनः 2062 ई० में सूर्य एवं पृथ्वी के समीप पुनः आएगा।

35. धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा किस कक्षा में करते हैं?

उत्तर - धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा अण्डाकार कक्षा में करते हैं।

36. क्या हेली की भविष्यवाणी सत्य हुई ?

उत्तर - हाँ, हेली की भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई, 1758 ई० में फिर वही धूमकेतु दिखाई दिया।

37.प्राचीन काल में धूमकेतु को किसका सूचक समझा जाता था?
उत्तर :प्राचीन काल में धूमकेतु को भयंकर खतरे का सूचक समझा जाता था।

38. आभोई पेरी ने 1528 ई० में दिखे धूमकेतु के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर :"यह धूमकेतु इतना भयंकर था कि डर के मारे कई लोग मर गए और बहुत से बीमार पड़ गए।

39. एडमंड हेली ने धूमकेतुओं के विषय में अपने अध्ययन से क्या निष्कर्ष प्रस्तुत किया?
उत्तर:-अन्य ग्रहों की तरह धूमकेतु भी हमारे सौर मंडल के सदस्य हैं और ये सूर्य की परिक्रमा करते हैं तथा यह 75-76 साल में सूर्य की परिक्रमा कर लेते हैं ।

40.हेली के अनुसार धूमकेतु कब-कब दिखाई दिए ?
उत्तर : 1531 ई० 1607 ई० तथा 1682 ई० में।

41.धूमकेतु के दिखाई देने के बारे में हेली ने क्या भविष्यवाणी की ?
उत्तर :यदि मेरी बात ठीक है तो 76 साल बाद 1758 ई० में यह धूमकेतु पुनः प्रकट होगा ।

42.धूमकेतु के कितने भाग होते हैं ।

उत्तर : नाभिक, सिर और पूँछ ।

43. धूमकेतु का नाभिक किससे बना होता है ?
उत्तर :धूमकेतु का नाभिक बर्फ से बनी हुई गैसों तथा अन्य पदार्थों के टुकड़ों के मेल से बने होते हैं ।

44-कौन-सा धूमकेतु सूर्य के प्रभाव से अपनी जान से हाथ धो बैठा?

उत्तर :बिएला का धूमकेतु।

45-बिएला का धूमकेतु अपने पूरे आकार में अंतिम बार कब देखा गया था?

उत्तर :19 39 ई० में।

46-आकाश में किसी एक स्थान से होनेवाली उल्काओं की वर्षा वास्तव में क्या होती है?

उत्तर :विखंडित धूमकेतु के कण।

47-ब्राहे ने 1577 ई० में क्या सिद्ध किया ?
(Board Sample Paper)

उत्तर :ब्राहे ने 1577 में यह सिद्ध किया कि धूमकेतु पृथ्वी से बहुत दूर होते हैं, चंद्रमा से भी अधिक दूर।

48- धूमकेतु क्या है ?(Board Sample Paper)

उत्तर :धूमकेतु बर्फ से बनी हुई गैसों तथा अन्य पदार्थों के टुकड़े के मेल से बने पिंड होते हैं।

49- धूमकेतुओं से पृथ्वी को डरने की बात क्यों नहीं है ?

उत्तर :किसी धूमकेतु के पृथ्वी से टकराने की संभावना नहीं के बराबर होती है। साथ ही यह उसकी पूँछों के बीच से भी आराम से गुजर जा सकता है इसलिए पृथ्वी को इससे डरने की कोई बात नहीं है।

50-धूमकेतु को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?

उत्तर :धूमकेतु को अन्य 'पुच्छल तारे' के नाम से जाना जाता है।

51-किस वेद में धूमकेतु का उल्लेख हुआ है?

उत्तर :'अथर्ववेद' में धूमकेतु का उल्लेख हुआ है।

52-भारत के किस पौराणिक ग्रंथ में धूमकेतु का उल्लेख है?

उत्तर :'महाभारत' में।

























उसने कहा था


चन्द्रधर शर्मा गुलेरी



प्रश्न-1. उसने कहा था' कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।

[मॉडल प्रश्न]

अथवा, उसने कहा था' कहानी के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखते हुए इस कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर - इस कहानी में लहना सिंह का चरित्र एक आदर्श प्रेमी के रूप में चित्रित है। हृदय के अन्तरतम प्रदेश से बहती हुई स्नेह सरिता का एक बूँद जल भी वासना के पंक से दूषित नहीं है। वह बात का धनी है और प्रेम के लिए शारीरिक कष्टों की चिन्ता न करते हुए आत्मबलिदान करता है। लहना सिंह के आदर्श चरित्र तथा मानवीय प्रतिष्ठा के कारण यह कहानी हिन्दी साहित्य की कालजयी कहानी है। उसके चरित्र को हम अधोलिखित शीर्षकों में व्यक्त कर सकते हैं- (1) आदर्श प्रेमी, (2) वीर सैनिक (3 ) बात का धनी (4) विवेकशील (5) सहनशील (6) कर्त्तव्यपरायण।

1)आदर्श प्रेमी - लहना सिंह के प्रेमी मन के उद्गार के दर्शन सर्वप्रथम हमें अमृतसर के बाजार में दीखते हैं।  वही कालक्रम में प्रेम-भाव का रूप धारण कर लेता है। अमर प्रेम का यह अमरदीप निरन्तर उसके मन-मन्दिर में जलता दिखाई पड़ता है। वर्षों बाद उसकी भेंट उस प्रेमिका से होती है, जो सूबेदारनी के रूप में उससे मिलती है।लहना सिंह एक आदर्श प्रेमी है । वह अपनी प्रेमिका लाडली होराँ के प्रति पलते अपने प्रेम | भाव की रक्षा के लिए अपने आपको उसके प्रेम की बलिवेदी पर अर्पित कर देता है। प्रेमिका के पति सूबेदार हजारा सिंह और पुत्र बोधा सिंह की रक्षा के लिए कहानी का नायक लहना सिंह स्वयं मृत्यु का आलिंगन कर लेता है।

2)वीर सैनिक : वह सैनिक धर्म का पालन युद्ध-भूमि में पूर्ण मनोयोग के साथ करता है। जर्मन सैनिक लपटन साहब की वर्दी पहनकर उसे धोखा देने का प्रयास करता है; किन्तु वह उसके पहले ही उसे मौत के घाट उतार का अपने शौर्य, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का अभूतपूर्व परिचय देता है |

3)बात का धनी : लहना सिंह बात का धनी आदमी एवं एक सच्चा इन्सान है। सूबेदारनी को दिए गये वचन को वह अत्यन्त कठिनाइयों को पार करते हुए भी पूरा करता है और अपनी बात से पीछे नहीं हटता है। मृत्यु का आलिंगन कर वह दिए गए वायदे को पूरा कर एक अमर प्रेम का अनूठा प्रमाण पेश करता है।

4)विवेकशील :- लहना सिंह की विवेकशीलता बराबर सजग रहती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नकली लपटन के साथ हुई बातचीत और व्यवहार में दिखाई पड़ता है। नकली लपटन साहब उसका विवेकशीलता के कारण ही मूर्ख बन जाते हैं और अन्त में मौत की गोद में हमेशा के लिए सो जाते हैं।

(5) सहनशील :- लहना सिंह का चरित्र सहनशीलता का अन्यतम उदाहरण है। वह भयंकर सर्दी के कष्ट झेलकर भी वह अपने गर्म कपड़े बीमार बोधा सिंह को पहनाकर उसके प्राणों की रक्षा करता है। युद्ध के मैदान में घायल होने पर भी वह किसी से भी घाव की बात नहीं करता। वह मन ही मन उस असहनीय पीड़ा और वेदना को झेलता रहता है और अन्ततः मृत्यु का ताज पहन कर उफ तक नहीं करता।

6)कर्त्तव्यपरायण :- उसके स्वामिभक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण नकली लपटन साहब के साथ उसको वार्तालाप है। वह अच्छी तरह स्थिति की समझकर एक तरफ लपटन साहब का काम तमाम करता है और दूसरी ओर सूबेदार हजारा सिंह की रक्षा कर अपने वायदे को पूरा करता है जिसके अतिरिक्त लहना सिंह सुचरित्र, वीर, धीर, साहसी, दूरदर्शी एवं कर्त्तव्यपरायण प्रेमी युवक है।

शीर्षक की सार्थकता :-किसी भी रचना का शीर्षक वह दर्पण है जिसमें सम्पूर्ण कहानी प्रतिबिम्बित होती है।
कहानी का शीर्षक उसने कहा था' कहानी की प्रसिद्धि के अनुकूल बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कौतूहलजनक है। यह पाठकों की जिज्ञासा को आदि से अंत तक सजाए और बनाए रखता है। किसने कहा था? कब कहा था? किससे कहा था? क्या कहा था और क्यों कहा था? -इन सभी प्रश्नों को मन में एक साथ रखकर पाठक कहानी को अंत तक पढ़ता है। वस्तुतः उसने कहा था शीर्षक ही सच्चे अर्थ में इस कहानी के कथानक, उद्देश्य, वातावरण एवं कथोपकथन का केन्द्र-बिन्दु है। यह शीर्षक इस अर्थ में सार्थक, सटीक और भावपूर्ण है।

* प्रश्न-2. कहानी कला की दृष्टि से 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
उत्तर - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी' जी द्वारा लिखित 'उसने कहा था' हिन्दी की अमर कहानियों में से एक है, जिसमें प्रेम एवं त्याग का अनूठा रूप प्रस्तुत किया गया है। कहानी कला की दृष्टि से भी यह अनुपम कहानी है। किसी भी कृति की समीक्षा के कुछ निश्चित मानक होते हैं, उनके आधार पर उसका समीक्षा की जाती है। वे मानक निम्नलिखित हो सकते हैं :

1)शीर्षक- किसी भी रचना का शीर्षक वह दर्पण है जिसमें सम्पूर्ण कहानी प्रतिबिम्बित होती है।
कहानी का शीर्षक उसने कहा था' कहानी की प्रसिद्धि के अनुकूल बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कौतूहलजनक है। यह पाठकों की जिज्ञासा को आदि से अंत तक सजाए और बनाए रखता है। किसने कहा था? कब कहा था? किससे कहा था? क्या कहा था और क्यों कहा था? -इन सभी प्रश्नों को मन में एक साथ रखकर पाठक कहानी को अंत तक पढ़ता है। वस्तुतः उसने कहा था शीर्षक ही सच्चे अर्थ में इस कहानी के कथानक, उद्देश्य, वातावरण एवं कथोपकथन का केन्द्र-बिन्दु है।
(2) कथानक : कथानक या कथावस्तु इस कहानी की अनूठी है । यह कहानी दो खण्डों में लिखी गई है कहानी का पूर्वाद्ध अमृतसर में घटता है जब एक सिक्ख लड़का और एक सिक्ख लड़की मिलते हैं। दोनों में नाटकीय ढंग से परिचय होता है फिर लड़का लड़की से पूछता है कि 'तेरी कुड़माई हो गई' है तो लड़की धत् कहकर भाग जाती है। ये बातें कई बार होती हैं। एक दिन लड़के द्वारा पूछने पर उसका जवाब हाँ में होता है हाँ, हो गई कल, देखते नहीं 'रेशम से कढ़ा यह सालू' लड़का इस प्रश्न का उत्तर सुनकर असुंतलित हो जाता है |
             कहानी का दूसरा खण्ड युद्ध की पृष्ठ भूमि में घटित होता है, जहाँ जीवन मृत्यु का खेल हो रहा है। वह सिक्ख लड़का लहना सिंह के रूप में 77 रायफल में जमादार के पद पर है और उस लड़की का पति हजारा और उसका बेटा बोधा भी उसी कम्पनी में एक साथ मोर्चे पर हैं। इन दोनों की हिफाजत लहना सिंह प्राणपण से करता है और इस प्रक्रिया में इन दोनों बाप-बेटे को सुरक्षा के घेरे में डालकर मृत्यु को वरण करता है। यह कहते हुए कि उसमें जो कहा था' उसे मैंने पूरा कर दिया। 25 वर्ष के लम्बे अंतराल में एक बार सूबेदार हजारा सिंह के घर जाने का लहना को मौका मिला था, जहाँ वह 'कुड़माई' वाली लड़की लहना को पहचानकर अपने पति और पुत्र के प्राणों की रक्षा की भीख माँगी थी। लहना सिंह ने अपनी जान देकर बाल्यपन के प्रीति की रक्षा की। इस प्रकार हम देखते हैं कि कथानक की दृष्टि से यह उत्कृष्ट कहानी है।

(iii) कथोपकथन-किसी भी कहानी, एकांकी या नाटक की जान और उसकी श्रेष्ठता कथानक के आधार पर मापी जाती है। इस दृष्टि से यह कहानी बेजोड़ है। कथोपकथन चुटीला एवं प्रभावोत्पादक है यथा -
"तेरी कुड़माई हो गई है?"

धत् कहकर भाग जाती है और कयामत आयी है और वह लपटन साहब की वर्दी पहनकर आयी है ये कुछ संवाद है जो अपने आप में बेमिसाल हैं।
4) पात्र एवं चरित्र-चित्रण- आलोच्य कहानी में पात्रों का चयन बेमिसाल है। वैसे पात्रों की संख्या
बहुत अधिक नहीं है । सूबेदार हजारा, बोधा, लहना, वजीरा आदि हैं पर उसमें लहना सिंह के चरित्र को उच्चता एवं श्रेष्ठता प्रदान करने में कहानीकार सफल हुआ है। कहानी का नायक लहना सिंह है जिसमें वे सारे गुण हैं जो किसी चरित्र नायक में होने चाहिए; जैसे- वीरता, साहस, विवेक, सेवा-भाव एवं बलिदान की भावना।लहना के चरित्रावलोकन करने पर हमें संदेश मिलता है कि प्रेम हमें मिलाता ही नहीं, दूर भी करता है।

5)देशकाल एवं परिस्थिति: इस कहानी की बुनावट में देशकाल एवं परिस्थिति का हर हालत में पालन किया गया है। कहानी युद्ध की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने में सफल हुई है । युद्ध की परिस्थिति में माहौल कैसा हो जाता है। बम एवं गोलों के फटने की आवाज, रिलीफ की गाड़ी का आना, सैनिकों की मृत्यु ये कुछ ऐसी बातें हैं जो युद्ध के वातावरण को स्पष्ट करने में सफल हुई हैं।
(6) भाषा शैली - यह कहानी सिक्ख समाज से सम्बन्धित है। पंजाब की पृष्ठभूमि पर लिखित है । अंत:
पंजाबी एवं उर्दू के शब्दों का प्रयोग समुचित मात्रा में हुआ है। साथ ही युद्ध चूँकि विदेशी भूमि पर लड़ा गया।
इसलिए पंजाबी उर्दू एवं हिन्दी के शब्दों के साथ ही साथ फिरंगी, मेम, स्वेटर आदि अनेक अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग कहानी में हुआ है । इस कहानी में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।

उद्देश्य : किसी भी बात को कहने के पीछे कुछ उद्देश्य होता है। इस कहानी के लिखे जाने का भी कुछ उद्देश्य है। इस कहानी के माध्यम से कहानीकार ने यह बताना चाहा है कि सच्चा प्रेम प्राप्ति की अपेक्षा नहीं रखता अपितु प्रेम में बलिदान दिया जाता है। चाहे वह प्रेम व्यक्तिगत हो या राष्ट्र या समाज से सम्बन्धित । प्रेमी जब अपने प्रेम की कीमत पा जाता है तो उसका प्रेम मर जाता है। प्रसाद जी के शब्दों में वह मिलता कहाँ है-

पागल रे मिलता है वह कब
उसको तो देते ही हैं सब

फिर तू क्यों कहता पुकार
मुझको न कभी रे मिला प्यार।

प्रेम प्रतिदान की अपेक्षा नहीं रखता।

*प्रश्न -3. 'उसने कहा था' कहानी की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 

अथवा,
 'उसने कहा था' शीर्षक कहानी की कहानी-कला की दृष्टि से आलोचना कीजिए।
अथवा,
 'उसने कहा था' शीर्षक कहानी आपके लिए क्यों एक सर्वाधिक प्रिय कहानी है? 

उत्तर- प्रस्तुत कहानी में दो व्यक्तियों के प्रेम और कर्तव्य का क्षेत्र इतने विशाल और व्यापक ढंग से लिया गया है कि इसमें एक ओर जीवन के पच्चीस वर्ष चित्रित हैं और दूसरी ओर भारत में फ्रांस की भूमि तक इसका चित्र-पृष्ठ (कैनवास) फैला हुआ है। अतएव कहानी का कथानक इतिवृत्तात्मक और लम्बा हो गया है। कहानी में वर्णनात्मकता को कम परन्तु विविध भाव चित्रों एवं चिन्तन शैली को अधिक स्थान मिला है। कहानी के प्रारम्भिक अंश पर प्रकाश डालने के उपरान्त लेखक ने पच्चीस वर्षों का स्थल रिक्त छोड़ दिया है। अन्त में नायक की मृत्यु के कुछ समय पूर्व उसकी स्मृति-पटल पर उसे लाकर उसने अपनी कलम को अत्यन्त चमत्कृत करने का सफल प्रयास किया है। इस प्रकार अन्त में मनौवैज्ञानिक स्थिति व्यक्त की गई है जो उस युग के लिए महत्त्वपूर्ण थी।

इस कहानी में कहानी-कला के वे तत्व उपलब्ध होते हैं जो एक उत्कृष्ट कहानी के लिए आवश्यक है। कहानी का आरम्भ आकर्षक है और अमृतसर की सड़कों का दृश्य आँखों के सामने उपस्थित हो जाता है। वर्णन में स्वाभाविकता और घटनाओं में संगठन है। कहानी का सर्वाधिक मर्मस्पर्शी अंश उसका अंतिम भाग है जहाँ श्रोता और पाठक की आँखें भीग जाती हैं।

लहना सिंह और लेफ्टिनेन्ट के संवाद में मनोविज्ञान का पूरा उपयोग किया गया है। घटनाओं का सामंजस्य, वातावरण की सृष्टि, दृश्य-चित्रण, कलात्मक संवाद, भाषा की सरलता, मुहावरों का प्रयोग आदि ऐसी विशेषताएँ हैं जिसके कारण यह कहानी और इसके कहानीकार अमर हो गए हैं। भाषा एवं शैली की दृष्टि से भी यह कहानी अनूठी है। कहानी में सर्वत्र पात्र और परिस्थिति के अनुकूल भाषा का प्रयोग हुआ है।

पात्र-योजना की दृष्टि से भी यह कहानी अनूठी है। इसमें लहना सिंह की वीरता तथा सहृदयता का जैसा मार्मिक चित्र खींचा गया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। उसकी सेवा, उसका उत्सर्ग दोनों अपूर्व है। बचपन का अशान्त स्नेह प्रौढ़ावस्था का प्रशान्त बलिदान बन गया है। शैशव की उत्सुक चंचलता वयस्कावस्था में गम्भीर कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति बन गई है।
         इन सब गुणों के साथ-साथ कहानी का प्रमुख आकर्षण रसानुभूति है। यह अनुभूति उथली रसिकता या मानसिक विलासिता का तरल द्रव नहीं है। यह जीवन के गंभीर और स्वस्थ उपयोग में से खींचा गया गाढ़ा रस हैं।

प्रश्न -4.उसने कहा था' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें। 
अथवा, 'उसने कहा था' लहना सिंह के प्रेम के बलिदान की कहानी है - समीक्षा करें। 
अथवा, 'उसने कहा था' कहानी के उद्देश्य को लिखें। (Board Sample Paper)

उत्तर : 'उसने कहा था' कहानी सन् 1915 में 'सरस्वती' में प्रकाशित हुआ था। इसमें कहानी-कला का पूर्ण विकसित रूप दिखाई पड़ता है। कहानी की शुरूआत में ही अमृतसर के बाज़ार का मनोरम वातावरण पाठकों का मन मोह लेता है। यहीं बालक लहना सिंह का मिलन उस लड़की से होता है जिससे वह मन ही मन प्रेम करने लगता है। इन दोनों की आपस की बातचीत पाठकों के हृदय में एक आकर्षण पैदा कर देती है - 
"तेरी कुड़माई हो गई?" 
"धत्।" 
पाठक अतृप्त भाव से कहानी की सरस और उत्तेजक घटनाओं को आगे-आगे पढ़ने के लिए ललायित हो उठता है। नायक और नायिका का प्रारंभिक मिलन दिखलाकर कहानीकार ने लड़ाई के मैदान के जीवन का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। लड़ाई की क्रूर और गतिमय पृष्ठभूमि में इस नाजुक सी प्रेम-कहानी की गंभीरता और भी निखर उठती है। 
पचीस वर्षों के बाद अमृतसर के बाजार की वही लड़की लहना सिंह से मिलती है। लेकिन अब वह सूबेदार हजारा सिंह की पत्नी है। सूबेदारनी पूरी कहानी में अपने संक्षिप्त परिचय के अलावे केवल दो वाक्य बोलती हैं "तेरी कुड़माई हो गई ?' के जवाब में – “देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू ?" और फिर पच्चीस वर्ष बाद औपचारिक बातों के साथ सूबेदारनी के ये वाक्य "ऐसे ही इन दोनों को बचाना" - लहना सिंह की आत्मा में बांध जाते हैं, उसकी जीवन-धारा को ही मोड़ देते हैं। पत्नी और माँ की भारतीय मर्यादा के बीच प्यार की यह सरस्वती पचीस वर्षों तक न जाने सूबेदारनी के मन में कितनी गहराई से बहती रही होगी। तभी तो उसने नि:संकोच लहना सिंह से उसका जीवन माँग लिया है। लहना सिंह अपने प्राण देकर सूबेदार हजारा सिंह तथा बोधा सिंह के प्राण बचाता है और बोधा सिंह से कहता है - "जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था, वह मैंने कर दिया।" लहना सिंह के बचपन की प्रेमिका सूबेदारनी ने न किसी को मोरी में ढ़केला, न किसी की दिनभर की कमाई खोई,
लड़ाई के मैदान में जाकर गोली भी नहीं खाई; चुपचाप कुड़माई कराके बहू और माँ बन गई, लेकिन उसके बचपन के प्यार और विश्वास ने ही लहना सिंह को एक अपराजेय गरिमा दे दी। लहना सिंह को सूबेदारनी याद न दिलाती तो कौन जाने  लड़ाई की भाग-दौड़ में इस सिपाही को कभी 'रेशम के सालू' वाली लड़की का ध्यान आता या नहीं........?      
         इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 'उसने कहा था' की घटना साधारण है, जैसी अक्सर होती है लेकिन उसके भीतर से प्रेम का स्वर्गिक स्वरूप झांक रहा है। इसकी घटनाएं ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने की आवश्यकता महसूस नहीं होती।- प्रेम के इस स्वर्गिक स्वरूप को ही प्रकाशित करना 'गुलेरी जी' का उद्देश्य रहा है।
      वातावरण की सजीवता, कहानी की लाक्षणिक भंगिमा, फ्लैश बैक (पूर्व दीप्ति) की यह शैली और कथा-शिल्प का जो संगम इस कहानी में दिखाई पड़ता है वह दूसरी कहानियों में दुर्लभ है। भले ही देवदास का त्याग और बलिदान वर्षों तक पाठकों को रूलाता जरूर रहा, लेकिन कहानी का यह शिल्प-कौशल उसमें भी नहीं है। इन सारी विशेषताओं के कारण इस कहानी का शीर्षक भी सर्वथा उपयुक्त है क्योंकि कहानी का सार इसके शीर्षक में खुशबू की तरह रचा-बसा है।       

खण्ड ख


उसने कहा था


व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


* 1. "बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।"

(प्रश्न):प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ का है?

उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश "उसने कहा था" पाठ से लिया गया है।

(प्रश्न): प्रस्तुत कथन के वक्ता और श्रोता के नाम लिखिए।
 उत्तर- प्रस्तुत कथन का वक्ता लहना सिंह है और श्रोता हजारा सिंह है। 
 
(प्रश्न):'घोड़ा और सिपाही' के वर्णन द्वारा क्या बताया गया है ?

उत्तर - घोड़ा और सिपाही के माध्यम से यह बताया गया है कि घोड़ा को फेरने से और सिपाही लड़ाई में जब लगा रहता है तो दोनों सक्रिय रहते हैं एवं उनकी गुणवत्ता बनी रहती है अन्यथा उनके गुण धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और दोनों अकर्मण्य बन जाते हैं।

(प्रश्न) : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।

उत्तर : लहना सिंह चाहता है कि बीच-बीच में आक्रमण करने का मौका मिलता रहे। युद्ध न होने से ऐसा लगता है कि मानो उसके शरीर में जंग-सी लग गई हो । उदाहरण के तौर पर वह कहता है कि बिना फेरे (खरहरा करना, ब्रश करना) से वह घोड़ा बिगड़ जाता है और बिना लड़े सिपाही। यही कारण है कि वह बीच- बीच में धावा करने का अवसर चाहता है।

(प्रश्न) उक्त अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर जब भारतीय सेना अंग्रेजों की तरफ से जर्मनी में जर्मन सेना से युद्ध करने गई थी। वहाँ भारतीय सेना की टुकड़ी एक खंदक में बैठी हुई थी और सैनिक दुश्मनों की प्रतीक्षा कर रहे थे ऐसी दशा में लहना सिंह अपने सूबेदार हजारा सिंह से कहता है कि बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही। मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाय तो फिर सात जर्मनों को अकेला मारकर न लौटू, तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो।



2.मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी।

(प्रश्न): प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है ? 

उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति 'उसने कहा था' पाठ से ली गई है।

 (प्रश्न): उक्त अंश के लेखक कौन हैं?

उत्तर - उक्त अंश के लेखक पं. चंन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी हैं।

 (प्रश्न) : वक्ता कौन है?

उत्तर : वक्ता लहना सिंह है।

(प्रश्न): 'जरसी की कथा सिर्फ कथा थी' इस अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - हवलदार लहना सिंह बीमार बोधा की सेवा प्राणपण से करता है। हम दूसरे की सेवा कष्ट उठाकर ही करते हैं। लहना नहीं चाहता था कि बोधा को मानसिक कष्ट पहुँचे इसलिए वह एक काल्पनिक कथा गढ़ता है जिसमें बोधा को आस्वस्त करते हुए कहता है कि अंग्रेज मेमें जर्सी बुनकर मोर्चे पर सैनिकों के लिए भेज रही हैं, वही जर्सी मेरे पास हैं।

(प्रश्न) : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : सूबेदारनी ने लहना सिंह को अपने पति और पुत्र बोध सिंह की रक्षा करने की भिक्षा माँगी थी। लहना सिंह
इसीलिए अपनी परवाह न कर बोधा सिंह का विशेष ध्यान रखता है। वह अपनी गरम जरसी भी बोधा सिंह को पहना देता है। मना करने पर वह बोधा सिंह को झूठी कहानी सुना देता है कि उसके पास दूसरी गरम जरसी है। विलायत से मेमें ये जरसी बुन-बुनकर भेज रही है। गुरूजी मेमों का भला करें।


3.मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति साफ हो जाती है। जन्म भर की धटनाएँ एक-एक कर सामने आती हैं। 
अथवा, सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं, समय की धुन्ध बिल्कुल उस पर से हट जाती है।

प्रश्न : प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' हैं।

(प्रश्न) :यहाँ किसकी स्मृति साफ होने की बात कही गई है ?

 उत्तर - यहाँ लहना सिंह की स्मृति साफ होने की बात कही गई है।

(प्रश्न):प्रस्तुत कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर - जब अंग्रेजों की तरफ से जर्मनी के खिलाफ लहना सिंह, हजारा सिंह और बोधा सिंह लड़ रहे थे, तो लहना सिंह ने हजारा सिंह और बोधा सिंह को लड़ाई के मैदान में सुरक्षित रखा और स्वयं अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ते हुए घायल हो गया। घायल होने के बाद भी वह हजारा सिंह और बोधा सिंह को पहले गाड़ी पर बैठा कर कैम्प में सुरक्षित भेज दिया। हजारा सिंह के जाते समय लहना सिंह ने कहा कि सूबेदारनी को चिट्ठी लिखना तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाना तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था, वह मैंने कर दिया। गाड़ी के जाने बाद लहना सिंह की हालत खराब होने लगी और उसे बचपन में होरा से अमृतसर में मिलने की घटना और सूबेदारनी को दिए गए वचन याद आ गये जो 'उसने कहा था।' क्योंकि मृत्यु के समय पहले स्मृति साफ हो जाती है। जन्म भर की घटनाएँ एक-एक कर सामने आती है।
 
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : लहना सिंह को दो-दो गोलियाँ लगी हैं। गोलियों के घाव के कारण वह अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
 जैसे-जैसे वह मृत्यु के करीब आता जाता है, उसकी स्मृतियाँ साफ हो जाती हैं। बचपन के प्रेम से लेकर अब तक की सारी घटनाएँ उसकी आँखों के सामने चलचित्र (सिनेमा) की तरह गुजर जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है।लहना सिंह भी इसी समय के दौर से गुज़र रहा है।

*4.फल और दूध की वर्षा कर देती है।लाख कहते हैं दाम नहीं लेती।

(प्रश्न):उक्त अंश के शीर्षक को लिखें। 
उत्तर -   प्रस्तुत अंश हमारी पाठ्य-पुस्तक साहित्य संचयन' के 'उसने कहा था' शीर्षक से लिया गया है।
 
(प्रश्न):उक्त अंश के प्रसंग को लिखें ।

उत्तर - जब लहना सिंह और हजारा सिंह अंग्रेजों कि तरफ से जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में खन्दकों में बैठे थे और मोर्चा संभाला था, लहना सिंह कहता है कि यहाँ दिन-रात खन्दकों में बैठे हड्डियाँ अकड़ गई हैं। लुधियाना से दस गुना जाड़ा और मेह तथा बरफ है। ऊपर से पिंडलियों तक कीचड़ में फंसे हुए हैं। तब हजारा सिंह कहता है कि तीन दिन और है। परसों रिलीफ' आ जाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी। अपने हाथों को झटका करेंगे और पेटभर खाकर सो रहेंगे। उस फिरंगी मेम के बाग में मखमल की-सी हरी घास है। मेम फल और दूध की वर्षा कर देती है। लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती। कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।



5."भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली पसली का घाव बह निकला। "
(मा०प० 2017)

(प्रश्न): किसको मूर्छा आ गई थी ?
 उत्तर - लहना सिंह को मूर्छा आ गई थी।

(प्रश्न): सूबेदारनी ने लहना सिंह से आँचल पसारकर क्या माँगा था ? 
उत्तर - सूबेदारनी ने लहना सिंह से आँचल पसारकर अपने पति हजारा सिंह एवं पुत्र जोधा की भीख माँगी थी।

*6.भइया, मुझे कुछ ऊँचा कर ले । अपने पट्टे पर मेरा सिर रख ले।'

(प्रश्न) :यह कथन किसका है ?

उत्तर -यह कथन लहना सिंह का है।

(प्रश्न): इस कथन का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर - मरणासन्न लहना सिंह का सिर वजीरा सिंह ने अपनी गोदी में रखा था। लहना द्वारा स्मृति में खोकर अपने भाई कीरत सिंह एवं भतीजे को याद करने के समय का यह प्रसंग है ।



7.क्या मजाल कि 'जी' और 'साहब' बिना सुने किसी को हटना पड़े।

प्रश्न : पाठ का नाम लिखें।

उत्तर : पाठ का नाम 'उसने कहा था' है ।

प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

 उत्तर : इस पंक्ति में राह चलते लोगों तथा उन्हें हटाने के लिए इक्केवाले की बोलियों का वर्णन किया गया है। राह
में चलनेवाले लोग इक्के-तांगेवाले की आवाज को अनसुनी कर देते हैं । जब तक तांगेवाले उन्हें 'जी' और 'साहब' के संबोधन से नहीं कहते तब तक वे रास्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं होते।

8.यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं, चलती है, पर मीठी छुरी की तरह महीन वार करती है।

प्रश्न : पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें

उत्तर : पंक्ति के रचनाकार पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं।

प्रश्न : कथन का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : गुलेरी जी ने कहना चाहा है कि ऐसी बात नहीं कि अन्य बड़े शहरों के तांगेवालों की तरह अमृतसर के तांगेवाले की जबान नहीं चलती। उनकी जबान भी चलती है और खूब चलती है। फर्क केवल इतना है कि उनकी बातें सुनने वाले पर सीधे-सीधे प्रहार नहीं करती। इनकी बातें मीठी छुरी की तरह वार करती हैं कि सुनने वाला कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहता।




लघूत्तरीय प्रश्न


प्रश्न: संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ का अवतार किसे बताया गया है? 

उत्तर :इक्के गाड़ीवालो को संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ का अवतार बताया गया है।

प्रश्न:हजारा सिंह अपने रेजिमेंट में किस पद पर हैं ? 

उत्तर :हजारा सिंह अपने रेजिमेंट में सूबेदार के पद पर हैं।

प्रश्न:क्या देखकर लहना सिंह का माथा ठनका ?

उत्तर :जब लहना सिंह ने लपटन साहब के चेहरे तथा बाल को देखा तो उसका माथा ठनका।

प्रश्न: पोलिश लोक-विश्वास के अनुसार छत पर पपीहे का बोलना क्या माना जाता है ? 

उत्तर :पोलिश लोक-विश्वास के अनुसार छत पर पपीहे का बोलना शुभ शकुन माना जाता है।

प्रश्न: "कलों के घोड़े" किसे कहा गया है ?

उत्तर :यह जर्मन सैनिकों के लिए कहा गया है।

प्रश्न:'तेरी कुड़माई हो गयी' - यह किसका कथन है ?

उत्तर :यह कथन बालक लहना सिंह का है।

प्रश्न:बोधा सिंह किसका पुत्र था ?

उत्तर :बोधा सिंह सूबेदार हजारा सिंह का पुत्र था।

प्रश्न:लेखक ने बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों के जबान की तुलना किससे की है ? 

उत्तर :लेखक ने बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की जबान की तुलना कोड़ों की चोट से की है।

प्रश्न:जबान के कोड़ों से घायल व्यक्ति से लेखक ने क्या प्रार्थना की है ?

उत्तर :ऐसे व्यक्ति अमृतसर के बम्बूकार्टवालों की बोली का मरहम लगाएं

प्रश्न:लड़की की कुड़माई होने की बात सुनकर लड़के पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर :जैसे ही लड़की की कुडमाई होने की बात लड़के ने सुनी उसे बहुत बुरा लगा। उसने रास्ते में एक लड़के को नाली में धकेला, एक ठेलेवाले ने दिनभर की कमाई खोई, एक कुत्ते को पत्थर मारा, एक गोभीवाले ठेले में दूध उँडेल दिया और किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधि पाई।

प्रश्न:कैसे पता चलता था लड़का और लड़की दोनों सिख हैं ?

उत्तर :लड़के के बालों से तथा लड़की के ढीले पाजामे से यह जान पडता था कि दोनों सिख हैं।

प्रश्न:जर्मनों के हमले में कितने सिक्खों के प्राण गए ?

उत्तर :पंद्रह।

प्रश्न:अस्पताल की गाड़ी पर लेटे बोधा सिंह से लहना सिंह ने क्या कहा ?

उत्तर :लहना सिंह ने बोधा सिंह से कहा कि मुझसे जो उन्होंने कहा था, वह मैंने कर दिया। 


प्रश्न:लहना सिंह को गाँव में किसकी चिट्ठी मिली ? 

उत्तर :लहना सिंह को गाँव मे रेजीमेंट अफसर की चिट्ठी मिली। 

प्रश्न: उस चिट्ठी में क्या लिखा था ?

उत्तर :उस चिट्ठी में लिखा था कि फौज लाम (लड़ाई)पर जाती है। फौरन चले आओ।


प्रश्न:'हाँ देश क्या है, स्वर्ग है' - किस देश के बारे में कहा गया है ?

उत्तर :फ्रांस के बारे में कहा गया है।

प्रश्न:हमले के बाद फील्ड अस्पताल से कितनी गाड़ियाँ आई ?

उत्तर :दो गाड़ियाँ।

प्रश्न:'मरें जर्मन और तुरक' - वक्ता कौन है ?

उत्तर :वक्ता वजीरा सिंह है।

प्रश्न:तुर्की मौलवी क्या करता था ?

उत्तर :तुर्की मौलवी गाँव की औरतों को बच्चे होने की ताबीज बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था।

प्रश्न:लहना सिंह के गाँव के डाक बाबू का नाम क्या था ? 

उत्तर :लहना सिंह के गाँव के डाक बाबू का नाम पोल्हूराम था।

प्रश्न:लहना सिंह ने तुर्की मौलवी के साथ क्या किया ?

उत्तर :लहना सिंह ने तुर्की मौलवी की दाढ़ी मूँड दी थी और फिर गाँव में पाँव न रखने की शर्त पर उसे भगा दिया था।

प्रश्न:लहना सिंह ने लपटन की तलाशी लेते समय किसकी तलाशी नहीं ली थी ?

उत्तर : पतलून के जेबों की।


प्रश्न:किस घटना को याद कर सूबेदारनी रोने लगी?

 उत्तर - सूबेदारनी को सरकार के द्वारा बहादुर का खिताब दिया गया और लायलपुर में जमीन दी गयी तब सूबेदारनी ने सोची कि यदि मुझे भी सूबेदार जी के साथ पलटन में भेजा गया होता तो उनके साथ ही शहीद हो गयी होती। एक बेटा है जिसे फौज में भर्ती हुए एक वर्ष हुआ है उसके पीछे चार और हुए परन्तु उसमें से कोई भी जीवित नहीं है यही घटना याद कर सूबेदारनी रोने लगा ।


प्रश्न:वजीरा सिंह कौन है ?

उत्तर - वजीरा सिंह पल्टन का विदूषक था। वह सैनिकों के मनोरंजन के लिए उल्टी सीधी बातें बोला करता था।

प्रश्न: लहना सिंह ने अपने वचन को कैसे निभाया ?

उत्तर - लहना सिंह ने स्वयं कष्ट उठाकर, अपने प्राणों की बाजी लगाकर हजारा सिंह और बोधा को युद्ध के मोर्चे से सुरक्षित स्थान पर भेजकर अपने वचन का निर्वाह किया।


प्रश्न: वैष्णवी से टकराने पर लहना को क्या उपाधि मिली ? 

उत्तर - वैष्णवी से टकराने पर लहना को अंधे की उपाधि मिली।


प्रश्न: लहना सिंह ने अपने लिए किस प्रकार की मृत्यु की कल्पना की थी? 

उत्तर - लहना सिंह की चाहत थी कि उसकी मौत शानदार हो। वह बुलेल की खड्ग के किनारे भाई कीरत सिंह की गोद में सिर रखकर अपनी आँगन के आम के पेड़ की छाया तले चिर शांन्ति से मरने की कल्पना की थी। 

प्रश्न: लपटन साहब के घायल होने पर लहना ने क्या भूल कर दी ।

 उत्तर - लपटन साहब के घायल होने पर लहना से भूल हो गई उसने लपटन के जेबों की तलाशी नहीं ली।


प्रश्न: मृत्यु के पहले स्मृति कैसी हो जाती है ?

उत्तर - मृत्यु के पहले स्मृति साफ हो जाती है। जन्मभर की घटनाएँ एक-एक करके सामने दृश्यों के रंग साफ होते हैं, समय की धुन्ध बिल्कुल उस पर से हट जाती है।

प्रश्न: लपटन साहब की वर्दी में कौन आया था ? 

 उत्तर - लपटन साहब की वर्दी में जर्मन सैनिक आया था।

प्रश्न: लहना सिंह कौन था?

उत्तर - लहना सिंह चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' लिखित कहानी "उसने कहा था" का प्रमुख पात्र है।
लहना सिंह एक वीर सैनिक था।

प्रश्न: 'तेरी कुड़माई हो गयी यह किसका कथन है?

उत्तर- लहना सिंह का।

प्रश्न:लहना सिंह फौज में किस पद पर था ? 

उत्तर - लहना सिंह फौज में जमादार के पद पर था।

प्रश्न: सूबेदारनी ने लहना सिंह से आँचल पसारकर क्या माँगा ?

उत्तर- सूबेदारनी ने लहना सिंह से अपने पति हजारा और पुत्र बोधा की रक्षा का वचन आँचल - पसारकर माँगा था।

प्रश्न: लहना सिंह ने लपटन साहब को हिन्दुस्तान के किस जिले में शिकार की याद दिलाई ?

उत्तर - जगधारी।

प्रश्न: सुबेदारनी लहना से क्या भिक्षा माँगी थी?

उत्तर -अपने पति तथा पुत्र के प्राणों की रक्षा।

प्रश्न: मरणासन्न लहना का सिर कौन गोदी में रखा है और क्या कर देता है?
 उत्तर - मरणासन्न लहना का सिर वजीरा सिंह लेकर बैठा है और वह लहना के कहने पर उसे पानी पिला देता है।


प्रश्न-एक सिक्ख सैनिक कितनों के बराबर होता है ?

उत्तर - एक अकालिया सिक्ख सवा लाख सैनिकों के बराबर होता है।

प्रश्न- लहना के मामा का घर कहाँ था?

उत्तर - लहना के मामा का घर अमृतसर में गुरु बाजार में था।

प्रश्न- उसने कहा था कहानी का सबसे कारुणिक पक्ष क्या है ? 
उत्तर - लहना का बार-बार स्मृति में खोकर अपने भाई-भर्तीजे को याद करना इस कहानी का सबसे कारुणिक पक्ष है।

प्रश्न- देखते नहीं, यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू' - किसने किससे कहा था ? 
उत्तर - सरदारनी हारो ने लहना सिंह से कहा।

प्रश्न-वेद पढ़कर जर्मन क्या जान गए हैं? किसने कहा था?

उत्तर - वेद पढ़कर जर्मन विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। तुर्की मौलवी ने ऐसा कहा था।






बहुविकल्पीय प्रश्न


1.'उसने कहा था' किस विधा की रचना है ?

(क) निबंध

(ख) संस्मरण

(ग) रिपोर्ताज

(घ) कहानी।

उत्तर -(घ) कहानी

2.'मुझे पहचाना' - वक्ता कौन है? 

(क) लड़की

(ख) सूबेदारनी

(ग) लपटन साहब

(घ) सूबेदार हजारा सिंह

उत्तर -(ख) सूबेदारनी।



3."मेरे तो भाग फूट गए" वक्ता कौन है?

(क) सूबेदारनी 

(ख) लहना सिंह

(ग) बोधा सिंह

(घ) तुर्की मौलवी

उत्तर -(क) सूबेदारनी।

4."यह मेरी भिक्षा है" - प्रस्तुत वाक्य किस पाठ से है ?

(क) नन्हा संगीतकार

(ख) चप्पल

(ग) नमक

(घ) उसने कहा था।

उत्तर -(घ) उसने कहा था

5.मेरे लिए वहाँ पहुँचकर गाड़ी भेज देना -इस कथन का वक्ता है

(क) बोधा सिंह

(ख) लहना सिंह

(ग) वजीरा सिंह

(घ) लपटन साहब

उत्तर -(ख) लहना सिंह

6.लपटन साहब की वर्दी पहनकर जो आया था उसकी राष्ट्रीयता थी

(क) भारतीय

(ख) जर्मन

(ग) अंग्रेज

(घ) सिक्ख

उत्तर -(ख) जर्मन



7.लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती - वक्ता कौन है ?

(क) लहना सिंह

(ख) वजीरा सिंह

(ग) सूबेदार हजारा सिंह

(घ) बोधा सिंह

उत्तर -(ग) सूबेदार हजारा सिंह



8. 'पाजी कहीं के, कलों के घोड़े' कौन, किसे कह रहा है ?
(क) लहना सिंह सूबेदार को

(ख) लहना सिंह जर्मन सैनिकों को

(ग) लहना सिंह तांगेवाले को

(घ) लप्टन लहना सिंह को
 

उत्तर - (ख) लहना सिंह जर्मन सैनिकों को।

9.किसके पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है ?

(क) हमले के पहले

(ख) जीत के पहले

(ग) मृत्यु के पहले।

(घ) बेहोशी के पहले

उत्तर -(ग) मृत्यु के पहले।


10.तांगेवाले का घोड़ा किस दुकान के पास बिगड़ गया था ?

(क) बड़ीवाली दुकान

(ख) दही वाले दुकान।

(ग) सब्जीवाली दुकान 

(घ) दूधवाली दुकान

उत्तर -(ख) दहीवाले दुकान

11.अपने मुर्दा भाइयों के शरीर पर चढ़कर कौन आगे घुसे आते थे ?

(क) भारतीय सैनिक 

(ख) जर्मन सैनिक

(ग) फ्रांसीसी सैनिक

(घ) बेलजियम सैनिक

उत्तर -(ख) जर्मन सैनिक।


12."हट जा करमा वालिए" - का अर्थ है :

(क) तू काम से हट जा

(ख) तू कर्महीन है।

(ग) तू कर्मों वाली है।

(घ) तू भाग्योंवाली है।

उत्तर -(घ) तू भाग्योंवाली है

13."हट जा पुत्तां प्यारिये" का अर्थ है :

(क) पुत्रों को लेकर हट जा 

(ख) तू पुत्रों को प्यारी है 

(ग) पति को प्यारी है

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -(ख) तू पुत्रों को प्यारी है।

14.कौन भारतीय सैनिकों के लिए फल और दूध की वर्षा कर देती है ?

(क) लड़की

(ख) होरां

(ग) फिरंगी मेम

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -(ग) फिरंगी मेम।

15."निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते'' – वक्ता कौन है

 (क) फील्ड अस्पताल का डॉक्टर

(ख) वजीरा सिंह।

(ग) अब्दुल

(घ) सूबेदार हजार सिंह

उत्तर -(ख) वजीरा सिंह।

16.खानसामा का नाम क्या था ?

(क) रहमान

(ख) रहीम

(ग) अब्दुला।

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -(ग) अब्दुला।

17.बीमार होने की गाड़ियाँ हमले के कितनी देर बाद खाई के पास पहुंचा ?

(क) एक  घंटा

(ख) डेढ़ घंटे ।

(ग) दो घंटे

(घ) ढाई घंटे

उत्तर -(ख) डेढ़ घंटे

18.सूबेदार किसे छोड़कर नहीं जाना चाहते थे ?

(क) बोधा सिंह

(ख) लपटन साहब

(ग) वजीरा सिंह

(घ) लहना सिंह।
उत्तर -(घ) लहना सिंह

19.नं. 77 सिख राइफल्स का जमादार कौन था ?

(क) हजारा सिंह

(ख) लहना सिंह।

(ग) बोधा सिंह

(घ) वजीरा सिंह

उत्तर -(ख) लहना सिंह

20."यहाँ वालों को शरम नहीं -
'यहाँ वालों' से कौन संकेतित हैं?

(क) भारतवासी

(ख) फ्रांसवासी

(ग) सिख राइफल्स के सैनिक 

(घ) जर्मनवासी

उत्तर -(ग) सिख राइफल्स के सैनिक।



21."उसने क्या कहा था ?' - वक्ता कौन है ?

(क) लहना सिंह

 (ख) सूबेदार

(ग) बोधा सिंह

(घ) वजीरा सिंह

उत्तर -(ख) सूबेदार

22.पलटन का विदूषक था -

(क) लहना सिंह

(ख) वजीरा सिंह

 (ग) हजारा सिंह

(घ) बोधा सिंह

उत्तर -(ख) वजीरा सिंह

23.'उसने कहा था' शीर्षक कहानी के लेखक हैं - 

(क) जयशंकर प्रसाद जी

(ख) श्री सुदर्शन जी

(ग) चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी

 (घ) भगवती चरण वर्मा जी 

उत्तर -(ग) चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी।

24.लपटन साहब की राष्ट्रीयता थी-

(क) भारतीय

(ख) जर्मन

(ग) अंग्रेज

(घ) सिक्ख

उत्तर -(ख) जर्मन।


25.लहना सिंह के मामा का घर कहाँ था? 

(क) मीनाबाजार

(ख) गुरुबाजार

(ग) चंडीगढ़

(घ) लाहौर

उत्तर -(ख) गुरुबाजार

26.'मीठी छुरी की तरह' किसे कहा गया है ?

(क) तांगेवाले को

(ख) तांगे को

(ग) तांगेवाले की जबान को

(घ) लोगों को

उत्तर -(ग) तांगेवाले की जबान को।


27."हट जा जीणे जोगिये " - का अर्थ है-

(क) तू हट जा

(ख) तू जीने योग्य है।

(ग) तू भाग जा

(घ) तू जीने लायक नहीं है

उत्तर -(ख) तू जीने योग्य है।

28.लड़की क्या लेने दुकान पर आयी थी ?

(क) दही

(ख) आटा

(ग) बड़ियाँ

(घ) बेसन

उत्तर -(ग) बड़ियाँ

29.बालक लहना सिंह ने किससे अंधे की उपाधि पाई ?

(क) लड़की से

(ख) लड़के से

(ग) छाबड़ी वाले से

(घ) वैष्णवी से

उत्तर -(घ) वैष्णवी से

30.लहना सिंह के भाई का क्या नाम था ? 
(क) बोधा सिंह
 (ख) हजारा सिंह 
 (ग) कीरत सिंह
  (घ) वजीरा सिंह

उत्तर - (ग) कीरत सिंह

31.कौन-सा बहाना बनाकर लहनासिंह खंदक में घुसा?

(क) खाना लाने का

(ख) दियासलाई लाने का

 (ग) राईफल लाने का

(घ) पानी लाने का

उत्तर- (ख) दियासलाई लाने का


32.लहना सिंह किस पद पर कार्यरत था ?

(क) हवलदार

(ख) सुबेदार

(ग) जमादार

(घ) सिपाही

उत्तर - (ग) जमादार

33.उसने कहा था कहानी का पूर्वाद्ध कहाँ घटित होता है -

(क) लुधियाना में

(ख) रोहतक में

(ग) चंडीगढ़ में

(घ) अमृतसर में

उत्तर - (घ) अमृतसर में।

34. मृत्यु के कुछ समय पहले - बहुत साफ हो जाती है

(क) पानी

(ख) पाप-पुण्य 

(ग) स्मृति

(घ) अंधकार

उत्तर - (ग) स्मृति


35.उसने कहा था कहानी का नायक है -

(क) लहना सिंह

(ख) सूबेदार हजारा सिंह

(ग) वजीरा सिंह

 (घ) लेफ्टिनेन्ट।

उत्तर -(क) लहना सिंह।


36.कौन न होता तो सब मारे जाते ?

(क) लहना सिंह

(ख) कीरत सिंह 

(ग) बोधा सिंह

(घ) वजीरा सिंह

उत्तर - (क) लहना सिंह


नन्हा संगीतकार

हेनरिक सेंकेविच 


1.'नन्हा संगीतकार' कहानी के मुख्य पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। [मा०प०-2018]

उत्तर - 'नन्हा संगीतकार' हेनरिक सेंकेविच की एक चर्चित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने एक ऐसे अनाथ बालक की अल्पकालीन जीवन यात्रा का वर्णन किया है, जिसे पढ़कर शायद ही ऐसा कोई कठोर दिल व्यक्ति होगा जिसकी आँखें गीली न हो गई हों। कहानी का प्रमुख पात्र नन्हा संगीतकार है ।

कहानी के आधार पर नन्हा संगीतकार की चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं - 

(1) कमजोर बालक - नन्हा संगीतकार जब इस दुनिया में आया तो बेहद कमजोर और दुर्बल था। यहाँ तक कि जन्म लेते ही पड़ोसी पालने के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए थे और बच्चे को देख आपस में अफसोस जाहिर करने लगे थे। एक स्त्री उसकी कमजोरी को देखकर बोली, "मेरे ख्याल से तो यह पादरी के आने तक भी नहीं बचेगा, बेहतर हो कि जल्दी नामकरण हो जाए वरना इसकी बेनाम आत्मा यहाँ-वहाँ भटकेगी।

(2) संगीत प्रेमी - जेन बचपन से ही संगीत प्रेमी था। हर किस्म की आवाज में उसे संगीत सुनाई देता था। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया लय और सुर में उसकी दिलचस्पी बढ़ती गई। वह भेड़-बरकरियाँ चराने जाता था या साथियों के साथ जंगल में बेर चुनने, खाली हाथ ही घर लौटता और माँ से तुतलाकर बोलता, "ओह माँ कैसा खूबसूरत संगीत था । कैसी मधुर तान थी - ला SSS ला SSS!" ऐसी बातों को सुनकर उसके पड़ोसियों ने उसका नाम ही रख दिया संगीतकार जेन्को।

(3) प्रकृति प्रेमी -जेन का मन जंगल में बसता था। वह सोचता रहता कि वहाँ कितने मधुर स्वर हैं, जो गूंजते और बजते रहते हैं, पूरा जंगल गाता है उसकी प्रतिध्वनि से जंगल गूंज उठता है। जब वह अपने साथियों के साथ जगल में जाता था तो वह उन प्रतिध्वनियों के बारे में बताता, लेकिन उसके संगी-साथी आश्चर्य जताते क्योंकि उन्हें वैसा संगीत का स्वर सुनाई नहीं देता था। जेन का अधिकांश समय जंगल में ही व्यतीत होता था।

(4) बेपरवाह - संगीतकार जेन अपने कार्यों, खान-पान और वेशभूषा के प्रति बेपरवाह था। अत: वह दिनोंदिन कमजोर और दुर्बल होता चला गया। उसकी आँखें हर वक्त चौकन्री और आँसुओं से भरी रहतीं । छाती और गाल धंसते जा रहे थे। वह कभी भी आम बच्चों की तरह तन्दुरुस्त नहीं हो पाया। फसलों की कटाई के वक्त तो वह केवल कच्चे शलजम खाकर जीवित रहता था। 


2.'नन्हा संगीतकार' शीर्षक कहानी की मार्मिकता पर प्रकाश डालिए।

अथवा, नन्हा संगीतकार कहानी की संवेदना को लिखिए।
(मॉडल प्रश्न पत्र, मा० प० 2017)


उत्तर - हेनरिक सेंकेविच की नन्हा संगीतकार' एक मर्मस्पर्शी कहानी है। इस कहानी में कहानीकार ने मानवीय संवेदना को प्रकट किया है । कहानी एक ऐसे अभागे बालक जेन की है जो जन्म से ही अभागा है। गरीबी और अभाव ने उसे असमय में ही सयाना बना दिया है। वह आठ वर्ष की उम्र में ही अपने पैरों पर खड़ा हो गया था। भेड़-बकरियाँ चराकर जंगल से खाद्य सामग्री का संग्रह कर वह अपनी भूख मिटाता, माँ की सहायता करता था। सभ्य समाज की आँखों के सामने दरिद्रता का नंगा नाच होता पर 'जेन' के प्रति किसी की सहानुभूति नहीं थी। ईश्वर ने उसका सबकुछ छीन कर उसके अंदर संगीत के प्रति अतिशय जुनून पैदा कर दिया था। जिस प्रकार सपेरा बीन बजाकर साँपों को मुग्ध कर देता है, उसी प्रकार संगीत सुनते ही वह दीवानगी की हद को पार कर जाता था।

         वायलिन का स्वर उसे प्राणों से प्रिय था। वायलिन के विकल्प के रूप में उसने स्वयं एक सारंगी बना ली थी। एक दिन उसने बंगले के वर्दीधारी सिपाही के यहाँ वायलिन दीवार पर टँगा देख लिया । उसे नजदीक से देखने, स्पर्श करने के लिए वह सिपाही के कमरे में रात में घुस गया। सिपाही द्वारा पकड़ लिया गया। कमजोर जेन की पिटाई वर्दीधारी सिपाही ने बेरहमी से की। उसे जरा भी दया नहीं आई एक नन्हें, कमजोर, पिलपिले बच्चे पर ज्यादती करते हुए। बच्चा रोता गिड़गिड़ाता रहा पर उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था। न्यायधीश ने भी जेन के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई। उसे बेत से पिटाई करने की सजा दी। यह एक सभ्य समाज का नंगा, बर्बरतापूर्ण ताण्डव था। क्या उस अभागे बच्चे के लिए यह सजा ठीक थी? क्या विवेकशील न्यायधीश को न्याय करते समय जरा भी दया नहीं आयी ? पद एवं प्रतिष्ठा की चकाचौंध में व्यक्ति इतना खो गया है कि उसमें जीवन-मूल्यों एवं मानवीय संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं। ऐसे समाज का ईश्वर ही मालिक है।



व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


















दीपदान



1)दीपदान' एकांकी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।
 * अथवा, ‘दीपदान' एकांकी के आधार पर पन्ना धाय की चारित्रिक विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए| [मॉडल प्रश्न पत्र]

अथवा, "अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है। इस कथन के आधार पर पन्ना धाय के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

*अथवा, सिद्ध कीजिए कि पन्ना के चरित्र में माँ की ममता, राजपूतानी का रक्त, राजभक्ति और आत्मत्याग की भावना है।[मा० प० 2017] 

अथवा, "यहाँ का त्योहार आत्म-बलिदान है" के आधार पर पन्ना की चारित्रिक - विशेषताओं को लिखें।

उत्तर -
पन्ना धाय का चरित्र चित्रण -

‘पन्ना धाय' डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित 'दीपदान' नामक एकांकी की मुख्य स्त्री-पात्र है। वह चित्तौड़ के महाराणा सांगा के 14 वर्षीय पुत्र उदय सिंह की धाय है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -

(1) राजभक्ति: :- पन्ना में अटूट राजभक्ति है। वह अपने प्राण और पुत्र के प्राण की बाजी लगाकर उदय सिंह के प्राणों की रक्षा कर लेती है।

(2) त्याग और बलिदान : :- पन्ना धाय में त्याग और बलिदान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उसमें अटूट कर्त्तव्यनिष्ठा है। उदय सिंह की रक्षा के लिए वह अपने पुत्र चन्दन को बलि-वेदी पर चढ़ा देती है जो उसके त्याग का एक जीता-जागता प्रमाण है।

(3) कमल-सा कोमल और बज्र-सा कठोर हृदय - पन्ना का हृदय कमल से भी कोमल है और वज्र से भी कठोर है। एक ओर उसके हृदय में अपने प्यारे चन्दन के प्रति ममता का सागर उमड़ रहा है तो दूसरी ओर कर्त्तव्य के प्रति जागरूक उसके हृदय में वज्र की सी कठोरता भी है।
(4) वीरांगना :- पन्ना एक वीरांगना क्षत्राणी है। वह अपने कर्त्तव्य की रक्षा के लिए शत्रु से लड़ना भी जानती है। वह बनवीर पर तलवार से प्रहार भी करती है।
(5) निर्लोभी :- पन्ना में किसी प्रकार का लोभ नहीं है। बनवीर उसे अपनी ओर मिलाने के लिए अनेक प्रलोभन देता है, किन्तु वह उसके प्रलोभन में न आकर अपने कर्त्तव्य के प्रति निष्ठावान है।
 (6) धैर्यवती :- पन्ना में धैर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है। वह पुत्र का वध होते अपनी आँखों से देखती है किन्तु कर्त्तव्य- -पथ से थोड़ा भी विचलित नहीं होती है।

(7) चतुर और दूरदर्शी पन्ना अत्यन्त ही चतुर और दूरदर्शी है। वह बनवीर के षड्यंत्र को - भाँप लेती है और उदय सिंह को पहले ही सुरक्षित स्थान पर भेज देती है।

(8) निर्भीक :- पन्ना स्त्री होते हुए भी अत्यन्त निर्भीक है। वह अकेले ही बनवीर का प्रतिरोध करती है।

2.दीपदान एकांकी के शीर्षक का औचित्य निर्धारित कीजिए। [मा० प० 2017]

उत्तर - शीर्षक किसी रचना का केन्द्र बिन्दु होता है। सम्पूर्ण कथावस्तु उसी के चारो ओर घूमती है। किसी रचना के कथ्य और उद्देश्य का पता उसके शीर्षक से ही चल जाता है। शीर्षक को संक्षिप्त, कौतूहलवर्द्धक रोचक और आकर्षक होना चाहिए।
       'दीपदान' एकांकी का शीर्षक अत्यन्त संक्षिप्त और आकर्षक है। शीर्षक को पढ़ते ही मन में कौतूहल और जिज्ञासा का अविर्भाव होता है कि कैसा दीपदान ? किसका दीपदान ? यह पाठक की भावना को उत्तेजित करने में भी पूर्णरूप से सक्षम है। इस तरह 'दीपदान' शीर्षक एकांकी उपयुक्त है।इस एकांकी में दीप-दान कई अर्थों में हमारे सामने आता है|
       दीप-दान - जो चित्तौड़ का एक सांस्कृतिक उत्सव है तथा इसमें तुलजा भवानी की अराधना कर दीप-दान किया जाता है। दूसरे अर्थ में दीप-दान का आशय अपने कुलदीपक चंदन के बलिदान से है। एक ओर जब सारा चित्तौड़ तुलजा भवानी के लिए दीप-दान कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर मातृभूमि तथा भावी राजा की रक्षा के लिए पन्ना अपने ही पुत्र चंदन को मातृभूमि की भेंट चढ़ा देती है|

       "आज मैंने भी दीपदान किया है, दीपदान ! अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है। ऐसा दीपदान भी किसी ने किया है।"

        तीसरे अर्थ में जहाँ एक ओर राज्य की सुख-समृद्धि के लिए चित्तौड़ के लोग दीपदान करते हैं, पन्ना मातृभूमि के लिए अपने पुत्र का ही दीपदान करती है वहीं बनवीर भी है जो अपनी सत्ता लोलुपता के कारण अपने रास्ते के काँटे कुँवर उदयसिंह के धोखे में चंदन का दीप-दान करता है -

         'आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीप-दान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूंगा। यमराज ! लो इस दीपक को। यह मेरा दीप-दान है।'
          प्रस्तुत एकांकी में ‘दीपदान' शब्द प्राण रूप में सर्वत्र व्याप्त है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि चाहे विषय की दृष्टि से हो, चाहे चित्तौड़ की संस्कृति की दृष्टि से हो या अपने कुल के दीप के दान करने की बात हो या फिर बनवीर द्वारा सत्ता पाने के लिए यमराज को दीपदान करने की बात हो हर दृष्टि से इस एकांकी का शीर्षक 'दीपदान' बिल्कुल सार्थक एवं उपयुक्त है।



*3. 'दीपदान' एकांकी के आधार पर बनवीर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर:खलनायक बनवीर का चरित्र चित्रण:-
'बनवीर' डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित एकांकी 'दीपदान' का खलनायक है। यह चित्तौड़ के महाराजा संग्राम सिंह के भाई पृथ्वी सिंह का दासीपुत्र है। निष्कंटक राज्य करने के उद्देश्य से राणा सांगा के 14 वर्षीय पुत्र कुँवर उदय सिंह का वध करने का षड्यंत्र करता है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) क्रूरता:- बनवीर में स्वार्थान्धता के साथ-साथ क्रूरता भरी हुई है। वह अपने स्वार्थ के लिए राजकुमार का वध करने में थोड़ा भी नहीं हिचकता ।

(2) निर्दयता :- बनवीर अत्यन्त ही निर्दयी है। सोये हुए बालक पर रात में आक्रमण करता है। पन्ना धाय के अनुनय-विनय पर वह थोड़ा भी नहीं पसीजता ।

(3) शराबी : बनवीर शराब पीता है। शराब के नशे में वह वध-जैसा अमानवीय कर्म करने को तैयार होता है।

(4) राजद्रोही और स्वार्थी:- बनवीर एक राजद्रोही है जो अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए उदय सिंह का वध कर डालने में भी हिचक नहीं मानता।

(5) कूटनीति:-बनवीर राजद्रोही होते हुए भी एक कुशल कूटनीतिज्ञ है। निष्कंटक राज्य करने के लिए वह राजपुरुषों से मिलकर 'दीपदान' का आयोजन करवाता है और उदय सिंह के वध का षड्यंत्र रचता है।

(6) कायर :- बनवीर अत्यन्त ही कायर है। उसमें खुलेआम विरोध करने की हिम्मत नहीं है। वह रात में उदय सिंह को सोते समय मारने जाता है। पन्ना धाय-जैसी स्त्री पर आक्रमण करता है, यही उसकी कापुरुषता का प्रमाण है।




TEST PAPER
SOLUTION

*प्रश्न:-'हाँ वहाँ के लोग भी शानदार हैं। कलाकारों का देश है। वाकई उनकी कला को देखने और उसे प्रोत्साहित करने में कितना आनन्द मिलता है?'

(i) उपर्युक्त पंक्तियाँ किस पाठ की है?

उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियाँ 'नन्हा संगीतकार' नामक पाठ की हैं। 
(ii) उपर्युक्त पंक्तियों के रचनाकार का नाम लिखिए।

उत्तर-उपर्युक्त पंक्तियों के रचनाकार हेनरिक सेंकेविच हैं।

(iii) यहाँ पर किस देश के लोगों की चर्चा की गई है? वह देश किसलिए प्रसिद्ध है? 
उत्तर - यहाँ पर इटली देश के लोगों की चर्चा की गई है। वहाँ के लोग (इटली) बड़े ही कलाप्रिय एवं कला को प्राथमिकता देनेवाले हैं।

(iv) उक्त कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - उक्त कथन में एक गहरा एवं मर्मस्पर्शी व्यंग्य किया हुआ है। यह कैसी विडम्बना है कि इटली जैसे कला के मर्मज्ञ देश में जेन्को जैसे कलाकार की ऐसी दुर्दशा, ऐसी उपेक्षा उस देश के कलाकारों के मुँह पर एक करारा तमाचा है। हमारी कथनी एवं करनी में सामंजस्य होना चाहिए।

*प्रश्न:-'होश में आओ ! कयामत आयी है और लपटन साहब की वर्दी पहनकर आयी है।' 
(क) उक्त अंश किस पाठ से लिया गया है ?

उत्तर - उक्त अंश 'उसने कहा था' नामक कहानी से लिया गया है । 
(ख) उक्त अंश के लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर - उक्त अंश का लेखक पं. चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी हैं। 
(ग) उक्त कथन का वक्ता कौन है, किसके प्रति यह बात कही गई है ?

उत्तर - उक्त कथन का वक्ता हवलदार लहना सिंह है। यह खंदक में पड़े वजीरा को संबोधित करते हुए कही गयी है।

(घ) उक्त अंश का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर - युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों के अंदर प्रत्युत्पन्नमति एवं उनकी आँखे खुली होनी चाहिए। युद्ध-क्षेत्र में शत्रु कौन सी चाल चलता है, उसकी गतिविधि के प्रति सैनिकों को सेचत रहना चाहिए।

*प्रश्न -'अरे क्यों नहीं' ? सबको पढ़ना लिखना चाहिए। बड़ी उम्र हो गई तो क्या हुआ ? 
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस पाठ से ली गई हैं ?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'चप्पल' शीर्षक पाठ से ली गई हैं।
 (ख) प्रस्तुत पंक्तियों के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियों के लेखक का नाम कावुटूरि वेंकट नारायण राव है।

(ग) प्रस्तुत पंक्तियों का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत अंश में यह बताया गया है कि शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार सबको है इसमें - उम्र का कोई बंधन नहीं है।

(घ) प्रस्तुत अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - प्रौढ़ शिक्षा के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए यह बताया गया है कि शिक्षा का अधिकार सबको है। इसमें उम्र की कोई बाधा नहीं है। शिक्षाविहीन मनुष्य बिना सींग एवं पूँछ के पशुतुल्य होता है।

Comments

  1. Dipdaan ke aadhar par banvir ka charit chitatan

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  2. Desh prem chapter short question answer

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