Class 9 Hindi notes

 Class 9 Hindi notes

पद्य























धीरे-धीरे उतर क्षितिज से'


व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1.तारकमय नव वेणीबन्धन ।

शीश-फूल कर शशि का नूतन,

रश्मि-वलय सित धन अवगुण्ठन, मुक्ताहल अभिराम बिछा दे

चितवन से अपनी!

प्रश्न - (i) प्रस्तुत अंश के पाठ एवं रचयिता का नाम लिखिए। 
(ii) इस कविता में किसे सम्बोधित किया गया है ?

(iii) प्रस्तुत अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर- (i) प्रस्तुत अंश 'धीरे-धीरे उतर क्षितिज से' नामक पाठ से उद्धृत है एवं इसकी कवयित्री महादेवी वर्माजी हैं।

(ii) इस कविता में वसंत की रजनी को सम्बोधित किया गया है ।

 (iii) प्रसंग - प्रस्तुत प्रकृति-गीत में कवयित्री महादेवी वर्मा ने इस धरती पर वसंत की रजनी को आमंत्रित किया है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि हे वसंत रजनी! तुम क्षितिज से उतरकर धीरे-धीरे धरती पर आओ। तुम्हारी नवीन चोटी के बंधन में तारे जगमगाते हों। तुम्हारे माथे पर नवीन चंद्रमा फूल की तरह सजा हो। तुम किरणों के कंगन पहनकर और सफेद बादलों के घूँघट काढ़कर आओ। । तुम आँखों से सुन्दर मोती बिखराओ। तुम प्रसन्नचित्त पुलकित होकर आओ।

2.
पुलकित स्वप्नों की रोमावलि ।

कर में हो स्मृतियों की अंजलि,

मलयानिल का चल दुकूल अलि ।

घिर छाया सी श्याम, विश्व को

आ अभिसार बनी!

प्रश्न (i) प्रस्तुत अंश किस कवि के किस पाठ से उद्धृत है ?

(ii) छाया जैसी किसे कहा गया है ? 
(iii) प्रस्तुत अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर- (i) प्रस्तुत अंश महादेवी वर्मा की 'धीरे-धीरे उतर क्षितिज से' नामक पाठ से उद्धृत है। 
(ii) यहाँ वसंत रजनी को छाया जैसी कहा गया है।

(iii) प्रस्तुत अंश में छायावाद की प्रमुख स्तंभ महादेवी वर्मा ने वसंत रजनी का आह्वान किया है। कवयित्री की वसंत रजनी से अपेक्षा है कि उसके रोमकूपों में पुलकित कर देनेवाले सपने हों। उसके हाथों में मीठी यादों की अंजलि हो और वह मलय पर्वत से आनेवाली हवा का चंचल वस्त्र पहन कर आए। महादेवी कहती हैं कि छाया जैसी साँवली वसंत रजनी! तुम विश्व में प्रिय मिलन का सुअवसर बनकर आओ। तुम नवेली दुल्हन की भाँति सँकुचाती हुई आओ। 

3.सिहर सिहर उठता सरिता उर,

खुल-खुल पड़ते सुमन सुधा-भर,

मचल मचल आते पल फिर फिर,

सुन प्रिय की पद-चाप हो गई

पुलकित यह अवनी!

प्रश्न (i) इस अंश के पाठ एवं कवि के नाम लिखिए।
(ii) कौन किसके कदमों की आहट को सुनकर पुलकित होता है ? 
(iii) संदर्भ सहित इस अंश की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर- (i) प्रस्तुत अंश 'धीरे-धीरे उतर क्षितिज से' नामक पाठ से लिया गया है एवं इसकी कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं।

(ii) यह धरती वसंत रजनी के कदमों की आहट को सुनकर पुलकित हो उठती है। 
(iii) प्रस्तुत अंश में कवयित्री कहती हैं कि वसंत के आगमन का संकेत पाकर नदी का हृदय उत्साह से भरकर सिहर उठता है। अपने मन में मकरंद भरकर पुष्प मुकुलित हो जाते हैं। प्रिय मिलन के पल के लिए मन मचल उठता है। इस धरती का हृदय वसंत के कदमों की आहट सुनकर पुलकित हो जाता है।

अति लघूत्तरीय प्रश्न


1. महादेवी वर्मा का जन्म कहाँ हुआ था ? 
उत्तर महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था।

2. महादेवीजी ने कहाँ से एम०ए० की। 
उत्तर- महादेवीजी ने प्रयाग विश्व विद्यालय से एम०ए० की।

3.महादेवी किस काल की रचनाकार हैं ?

उत्तर- महादेवी आधुनिक काल की रचनाकार हैं।

4.महादेवी किस धारा की कवयित्री है ?

उत्तर :-महादेवी छायावादी धारा की कवयित्री हैं।
 5. महादेवी के समकालीन एक कवि का नाम लिखिए

उत्तर:-महादेवी के समकालीन कवि निराला जी हैं।

6. महादेवी मूलतः किसकी कवयित्री हैं ?
उत्तर: -महादेवी मूलतः करुणा और वेदना की कवयित्री हैं।

7. महादेवी की तुलना किससे की जाती है ? 
उत्तर:- महादेवी जी की तुलना मीराबाई से की जाती है।

8. किसे आधुनिक युग की मीरा कहा गया है?
उत्तर- महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा गया है।

9. महादेवी वर्मा ने जीवन को क्या कहा है ? 

उत्तर- महादेवी वर्मा ने जीवन को विरह का जलजात कहा है।

10. महादेवी किसमें चूर रहना चाहती हैं ?

उत्तर- महादेवीजी विरह में ही चूर रहना चाहती हैं।

11. महादेवी की रचनाओं में किसका स्वर मुखरित हुआ है ?

उत्तर- महादेवी वर्मा की रचनाओं में करुणा और वेदना का स्वर मुखरित हुआ है।
 12. कवयित्री वसंत रजनी को कहाँ से बुला रही हैं ?

उत्तर - वसंत रजनी को छितिज से बुला रही हैं।

 13. वसंत रजनी क्षिजित से कैसे उतर रही है ?

उत्तर- वसंत रजनी क्षितिज से धीरे-धीरे उतर रही है।

14 वसंत रजनी की बेणी में क्या गुँथे हुए हैं? 
उत्तर- वसंत रजनी की बेणी में तारे गुँथे हुए

15. कवयित्री वसंत रजनी को कैसे आने का आग्रह करती है ?

उत्तर- कवयित्री वसंत रजनी को पुलकित होकर आने का आग्रह करती है।

16. मर्मर ध्वनि कब सुनाई पड़ती है ? 

उत्तर- सूखे पत्तों पर पदचाप पड़ने या हवा के प्रवाह से मर्मर ध्वनि सुनायी पड़ती है।

17. भ्रमर कहाँ गुंजार कर रहे हैं?

उत्तर- भ्रमर कमल के पुष्पों पर गुंजार कर रहे हैं। 

18.कवयित्री वसंत रजनी को किसका कंगन पहन कर आने को कह रही है ?

उत्तर- कवयित्री वसंत रजनी को किरणों (चंद्र) का कंगन पहनकर आने को कह रही है।

 19. वसंत रजनी को आँखों से क्या बरसाने का निवेदन कवयित्री करती है ?

उत्तर- कवयित्री वसंत रजनी को आँखों से मोती विखेरने का आग्रह करती है।

20. वसंत रजनी के भाल पर क्या है ?

 उत्तर- वसंत रजनी के भाल पर फूलों का चाँद है।

21. वसंत को क्या कहा गया है?

उत्तर- वसंत ऋतुराज कहा गया है। 

22. किसको वसंत की दूती कहा गया है ?

उत्तर:- कोयल को वसंत की दूती कहा गया है।

23. पुष्प किससे मुकुलित हो जाते हैं?

 उत्तर :-पुष्प वसन्तागमन से मुकुलित हो जाते हैं।

24. किसका हृदय वसंत के आगमन से पुलकित हो जाता है ?

 उत्तर :-धरती का हृदय वसंत के आगमन से पुलकित हो जाता है।

25. कविता में किसको छाया जैसा कहा गया है ? 

उत्तर:- कविता में वसंत रजनी को छाया जैसे कहा गया है।

26. वसंत रजनी को किसका घूँघट काढ़कर आने को कहा गया है ?

 उत्तर- वसंत रजनी को सफेद बादलों का घूँघट काढ़कर आने को कहा गया है|

27. मलय पर्वत से आनेवाली वसंती हवा सुगंधित क्यों होती है ?

उत्तर- चंदन वन से गुजरने के कारण मलय पर्वत से आने वाली वसन्ती हवा सुगन्धित हो जाती है।

28:- नयी नवेली दुल्हन कैसे चलती है ?

उत्तर- नयी नवेली दुल्हन सँकुचाते हुए चलती है।

29:-नदी का हृदय कब पुलकित हो जाता है? 

उत्तर - वसंत के आगमन पर नदी का हृदय पुलकित हो|

30. भारत सरकार द्वारा महादेवी वर्मा को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं? उत्तर:- भारत सरकार ने महादेवी जी को पद्मश्री, पद्मभूषण, और पद्म विभूषण पुरस्कार दिया है।

31. महादेवी का निधन कब हुआ था ?
उत्तर- महादेवी का निधन 1987 ई० में हुआ था।

32.कविता में किसका आह्वान किया गया है ?

उत्तर कविता में वसंत रजनी का आह्वान किया गया है।

33. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महादेवी जी को कौन-सा पुरस्कार मिला था ?

उत्तर:-भारत भारती।

34. ज्ञानपीठ पुरस्कार क्या है ?
उत्तर - ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ रचना पर दिया गया एक पुरस्कार है।

35. कविता में वसंत रजनी को किस रूप में चित्रित किया गया है ? 

उत्तर :-पूरी कविता में वसंत रजनी को मानव के रूप में चित्रित किया गया है।

36. मानवीयकरण क्या है ?

उत्तर- मानवीयकरण एक अलंकार है।

37. मानवीयकरण में क्या होता है ?

उत्तर - प्रकृति में चेतना का आरोप ही मानवीयकरण कहलाता है।

 38.महादेवी की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखें।

उत्तर:- महादेवी की प्रमुख रचनाएँ दीपशिखा, यामा आदि हैं।


पाठ-3
पेड़ का दर्द
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना •


1)पेड़ का दर्द' कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर -पेड़ का दर्द सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक प्रतीकात्मक कविता है। यहाँ पेड़ अपनी जमीन से कटे व्यक्ति एवं जंगल समाज का प्रतीक है। 'मैं' शैली में लिखी गई कविता में कवि ने पेड़ के माध्यम से अपनी जड़ से कटे व्यक्ति की व्यथा को व्यक्त किया है।

चूल्हे में लकड़ी की तरह जलता है तो उससे कुछ धुआँ, लपटें, कोयले और राख निकलते हैं। इस आधुनिक होते समाज के लिए पेड़ का अपना अस्तित्व नष्ट होता रहता है। उस लकड़ी से निकलती आग से भले ही समाज की जरूरतें पूरी होती हों, लेकिन उसके जलने से समाज की कुछ क्षति भी होती है। उससे पर्यावरण को दूषित करनेवाला धुआँ भी निकलता है। पेड़ की आत्मा जलकर कोयला और राख में बदल जाती है। पेड़ नहीं चाहता है कि कोई उसे अपने जंगल की याद दिलाए । अपने जंगल की याद आने पर उसे बहुत कष्ट होता है।

लकड़ी बनने से पहले पेड़ का जंगल में अपना परिवेश था। वहाँ उसे उसके जीवन की संपूर्णता प्राप्त थी। जंगल के अन्य प्राणियों के साथ उसका सह-जीवन था। उसकी डालियों पर चिड़ियाँ चहचहाती थीं। उसके तने से लिपटकर धामिन साँप को सुख मिलता था और थका-माँदा गुलदार उसके ऊपर बैठकर सुस्ताता था। आधुनिकता की दौड़ में मदान्ध लोगों के लिये पक्षियों के कलरव का भले ही कोई महत्त्व नहीं हो । उन्हें धामिन और गुलदार (उत्तराखण्ड की जंगलों में पाया जानेवाला चीते जैसा एक शिकारी जानवर जो पेड़ पर चढ़ जाता है। भले ही हिंसक प्राणी लगते हों, लेकिन प्रकृति में उनका भी प्रयोजन है। जीव-जगत् के संतुलन के लिए उनका जीवित रहना जरूरी है। इस प्रकार पेड़ को जंगल के अपने परिवेश में घुल-मिलकर जीने का एक अलग ही आनन्द मिलता था

विकास के नाम पर पेड़ को जंगल से काटकर अलग किया गया। एक ओर जंगल सूना होता गया और दूसरी ओर पेड़ को जंगल के काटकर उससे उसकी संपूर्णता छीन ली गई। निष्प्राण लकड़ी बनने की प्रक्रिया में पेड़ को निर्मम कुल्हाड़े के वार झेलने पड़े। उस पर आरियों की तेज धार चली। उसके व्यक्तित्व को खंडित कर दिया गया। जंगल के नाम पर अब पेड़ की स्मृति में केवल उन कुल्हाड़े और आरियों की धार बसी है।]

जड़ विहीन पेड़ जब निष्प्राण लकड़ी बनकर चूल्हे में जलता है तो वह नहीं जानता कि उसका उपयोग किस निमित्त किया जाएगा उसकी आँच की ऊर्जा व्यर्थ जाएगी या उससे किसी का भला होगा चूल्हे पर चढ़ी हाँड़ी की खुदबुद झूठी भी हो सकती है। इससे किसी की आत्मा की तृप्ति का आश्वासन एक धोखा भी हो सकता है।

[लकड़ी बनकर जलता हुआ पेड़ नहीं जानता कि उसकी आँच की ऊर्जा देखकर किसका चेहरा नाराजगी से तमतमा रहा है और किसे गुस्सा आ रहा है ? कौन उसे लुकाटे की तरह अपने हाथों में उठाकर आन्दोलन के लिए निकलेगा और कौन पानी डालकर उसकी आँचरूपी ऊर्जा को नष्ट कर देगा से अपने इस अंजाम से अनभिज्ञ पेड़ लकड़ी बन जाने के उपरान्त अपने अतीत को भूल जाना चाहता है।

लकड़ी में तब्दील पेड़ केवल इतना जानता है कि उसकी आँच से उठती हुई चिंगारियाँ पत्तियों की तरह हैं। उनसे वह इस धरती को चूमना चाहता है, क्योंकि इसी धरती में कभी उसकी जड़ें थीं।









पाठ-4 

जरूरतों के नाम पर


1.'जरूरतों के नाम पर कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - आधुनिक हिन्दी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर कवि कुँवर नारायण की आरम्भिक कविताओं पर नई कविता के दौर की काव्यभाषा की स्पष्ट छाप है। इस छाप के बावजूद उनकी कविताओं में कविता के वाक्य विन्यास को आरोपित सजावट से मुक्त कर सहज वाक्य विन्यास कुँवर नारायण की कविता के लिए स्वभाव सिद्ध हो गया है। उनकी विशेषता है कि उन्होंने सहज वाक्य -विन्यास को बोध के सरलीकरण का पर्याय अधिकांशतः नहीं बनने दिया है।

'जरूरतों के नाम पर' शीर्षक कविता में कवि ने समाज में व्याप्त लोक-मानस की विसंगतियों को उजागर किया है। कवि कहते हैं कि समाज में जो भी गलत घटित होता है, उसे वे उद्घाटित कर देते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें सामाजिक लोगों से काफी बहस करनी पड़ती है। समाज के लोग अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं करते। इसके विपरीत वे कवि को ही गलतफहमियों का शिकार बताकर उन्हें बिल्कुल अकेला कर देते हैं। कवि जो कुछ अपने वक्तव्य में कहते हैं, उसके लिए व्यवहार की कसौटी पर अपनी बात को खरा साबित करने की उन्हें चुनौती दी जाती है।

समाज में ऐसे लोग भी हैं जो एक ओर बहस-मुबाहसों में जीत नहीं पाते हैं और दूसरी ओर वे कवि की सही बातों की जीत को सह भी नहीं पाते हैं। कवि ऐसे लोगों की मानसिकता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वे इतने असहनशील होते हैं वे उनसे इस प्रकार रिश्ता तोड़ लेते हैं, जैसे किसी अपमानजनक नाते को बेरहमी से तोड़ दिया जाता है।

कवि समाज में अपनी स्थिति को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अतार्किक लोग उन्हें रोचक प्रसंगों से अलग कर देते हैं, जैसे आम घरों में शिक्षाप्रद पुस्तकों की गति होती है। शिक्षाप्रद पुस्तकों को लोग लापरवाही से घरेलू उपन्यासों के पीछे रख दिया करते हैं। वे पुस्तकें घर में होती जरूर हैं, लेकिन उन्हें देखने या पढ़ने की जहमत कोई नहीं उठाता

कवि कहते हैं कि जिन लोगों के पास अपना कोई तर्क नहीं होता, वे अपना कुनबा बना लेते हैं। वे सामूहिक रूप से कवि की बहस को खारिज कर देते हैं। उन तर्कहीनों के पास एक थोथा तर्क होता है कि वे जो कर रहे हैं, वही जमाने की जरूरत है। ऐसे ही स्वाथी लोग जिन्दगी के मकसद को बदनाम करते हैं और उल्टे कवि से जिन्दगी के मायने पूछते हैं।

• कवि ने अत्यन्त सहज भाषा एवं सपाट शैली में अपनी बात और जमाने की सच्चाई सामने रख दी है। कवि का आशय है कि जरूरतों के नाम पर जिन्दगी हमें कुछ भी गलत या असंगत कार्य करने की इजाजत नहीं देती है। प्रत्येक जिन्दगी का यही मकसद होना चाहिए और उसे पूर्ण करने के लिए व्यक्ति को आमरण प्रयास करना चाहिए।







पाठ-5
कलकत्ता


1).कलकत्ता' कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। 
Or,
कलकत्ता' कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर - अरुण कमल संवेदना के कवि हैं। प्रस्तुत कविता में कवि कोलकाता से जुड़ी अपने बचपन की स्मृतियों को याद करता यह कहता है कि मैं बार-बार कोलकाता जाऊँगा। मैं कोलकाता तब से जा रहा हूँ जब उसका नाम कलकत्ता था। मैं वहाँ सबसे पहले अपने बाबा के कंधे पर बैठकर गया। मैं वहाँ सुन्दर पालकी में भी गया। जब मेरे गाँव से चटकल मजदूरों का पहला जत्था सत्तू की गठरी पीठ पर लादे कोलकाता गया। उस समय भी उनके साथ-साथ मैं महिषादल तक गया। कवि अपनी उस यात्रा को याद करता हुआ कहता है कि अब भी मुझे वह सुबह याद है जब मैं हावड़ा स्टेशन पर उतरा और हावड़ा पुल का मस्तूल चमकता हुआ दिखाई दिया।

कोलकाता नदी के इतना पास है मानो लगता है गंगा में समाहित सागर का अवक्षेप है। कलकत्ता शहर की सुन्दरता का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि यह शहर इतना सुन्दर है कि मानो दमकल जब घंटी बजाते हुए दौड़ता तो लगता हाथी गन्ने चूस रहा है। खेत-खलिहानों वाले ग्रामीण परिवेश से आए कवि, जिन्हें लाठी भर जगह छेकते हुए चलने की आदत है वे यहाँ के रेल-पेल अपनी चाल भूल गए। आज मैं पुनः दुनिया की इस रफ्तार में ढूँढ़ता हूँ अपनी चाल अपनी गति को ।

मेट्रो, ट्राम से लेकर हाथ रिक्शे तक इस जगत के समस्त साधनों के बीच में पैदल एक बेसहारा राहगीर की तरह वह जगह ढूँढ़ रहा हूँ जहाँ से इस चौराहे को पार कर सकूँ। कवि सोचता है लाल, हरी, पीली कौन सी बत्ती मेरे लिए है। अचानक कवि को बांग्ला के साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त आधुनिक कवि नृपेन्द्र चक्रवर्ती की कविता कोलकातार यिशु का नंग-धड़ंग शिशु याद आता है और दोनों तरफ ठहर गयी सारी गतियाँ, सब कुछ। आदिवासी बच्चे का जिक्र करते हुए कवि कहता है कि जो गति उसकी थी वही गति मेरी भी है। उस बच्चे के लंबे केश है। वह पसीने से लथपथ है। कवि अरुण कमल को कोलकाता में ट्रैफिक के शोर और रफ्तार के बीच असाध्य प्रतीत हुआ था।

कलकत्ता शहर की संवेदना का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि कोलकाता के प्रति ऐस सम्मोहन भरा प्यार है जिसे वे लंदन, पेइचिंग, न्यूयार्क केवल एक बार जाना काफी समझते हैं लेकिन उनके मन में कोलकाता बार-बार जाने की बलवती इच्छा है।















गद्य

पाठ-1

स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन

महावीर प्रसाद द्विवेदी


1)स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं - कुतर्कवादियों की इस दलील का खण्डन द्विवेदी जी ने कैसे, किया है, अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर:-द्विवेदी जी ने कुतर्कवादियों की स्त्री-शिक्षा विरोधी दलीलों का जोरदार खण्डन किया है। उन्होंने कहा कि यदि स्त्रियों को पढ़ाने में अनर्थ होते हैं तो पुरुषों को पढ़ाने से भी अनर्थ होते होंगे। यदि पढ़ाई को अनर्थ का कारण माना जाए तो सुशिक्षित पुरुषों द्वारा किए जाने वाले सारे अनर्थ भी पढ़ाई के दुष्परिणाम माने जाने चाहिए। अतः उनके लिए भी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए जाने चाहिए।

द्विवेदी जी ने दूसरा तर्क यह दिया कि शकुंतला ने दुष्यंत को कुवचन कहे। ये कुवचन उसकी शिक्षा के परिणाम नहीं थे, बल्कि उसका स्वाभाविक क्रोध था। 

तीसरा तर्क व्यंग्यपूर्ण है - 'स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अनपढ़ रखकर भारत का गौरव बढ़ाना चाहते हैं!
स्त्री-शिक्षा अनिवार्य - वास्तव में शिक्षा कभी अनर्थकारी नहीं होती। अनर्थ पुरुषों से भी होते हैं। अनपढ़ों और बे-पढ़े-लिखों से भी होते हैं। जो लोग स्त्रियों की शिक्षा का विरोध करते हैं और अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हैं, वे दण्डनीय हैं और समाज की उन्नति में बाधा डालने के अपराधी हैं।

शिक्षा बहुत व्यापक है। उसमें सीखने योग्य अनेक विषय हो सकते हैं। यदि आज की शिक्षा दोषपूर्ण है और स्त्रियों को सिखाने योग्य नहीं है तो उसमें सुधार होना चाहिए। पुरुषों की शिक्षा में भी दोष हैं परन्तु इस कारण स्कूल-कॉलेज बन्द नहीं किए जा सकते। लेखक निवेदन करता है कि यदि शिक्षा में दोष है तो उसपर बहस होनी चाहिए, संशोधन होना चाहिए, किन्तु उसे अनर्थकारी अथवा मिथ्या अथवा विनाशकारी नहीं मानना चाहिए|

2)कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया ?

उत्तर - द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर पुरातनपंथियों के तर्कों को नकारा और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया -

(1) स्त्रियों का नाटकों में प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। उन दिनों कुछ ही लोग संस्कृत बोल पाते थे। शेष शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्राकृत बोलते थे प्राकृत में तो सारा बौद्ध तथा जैन साहित्य लिखा गया है। हमारी आज की हिन्दी, गुजराती आदि भाषाएँ भी आज की प्राकृत भाषाएँ हैं। इसलिए प्राकृत भाषा बोलना अनपढ़ होने का प्रमाण बिल्कुल नहीं है।

(2) यद्यपि आज स्त्री-शिक्षा होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं है, किन्तु वे खो भी सकते हैं। अतः पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि प्राचीन समय में स्त्री- शिक्षा नहीं थी।
(3) भारत में वेद-मंत्र लिखने से लेकर तर्क, व्याख्यान और शास्त्रार्थ करने वाली सुशिक्षित नारियाँ हुई हैं। अतः प्राचीन नारी को शिक्षा से वंचित नहीं कहा जा सकता।

(4) शकुंतला का दुष्यंत को कटु वचन कहना उसकी शिक्षा का परिणाम नहीं था, उसका स्वाभाविक क्रोध था।


3)स्त्री शिक्षा के विरोधी पाठ का संदेश, उद्देश्य लिखो ?
उत्तर :
                    ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधियों पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने स्त्री-शिक्षा का समर्थन करते हुए वर्तमान-शिक्षा प्रणाली में कमियों की ओर निर्देश किया है और उसमें संशोधन का सुझाव दिया है। स्त्री-शिक्षा के अभाव में देश का गौरव बनाए रखना संभव नहीं है।एक बालक में अच्छे संस्कारों का सिंचन करने के लिए शिक्षित माँ की आवश्यकता है अतः यह तभी संभव है जब स्त्री-सुशिक्षित होगी। स्त्री-शिक्षा का ही प्रभाव है कि आज प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री, पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। हर क्षेत्र में उसने अपने हुनर का परिचय दिया है। परिवार, समाज, राष्ट्र को वैभवपूर्ण और समृद्ध बनाने के लिए खी-शिक्षा अनिवार्य है यही लेखक ने इस पाठ द्वारा संदेश दिया है।

              ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ का उद्देश्य यही है कि प्राचीन काल से चली आ रही स्त्री-शिक्षा विरोधी परम्परा को तोड़कर हर हाल में स्त्रियों को शिक्षा दी जाये। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। स्त्री और पुरुष दोनों में समानता लाने के लिए स्त्रियों का पढ़ना अति आवश्यक है। तभी दोनों के सोच-विचार में तालमेल लाना संभव हो पाएगा। स्त्री और पुरुष जीवनरूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। दोनों पहियों का समान होना आवश्यक है तभी जीवनरूपी गाड़ी ठीक प्रकार से चल सकेगी। अतः समाज के हित के लिए लेखक ने यही संदेश दिया है कि स्त्रियों को शिक्षित करना चाहिए। आज की मांग के हिसाब से यह अत्यंत प्रासंगिक भी है।

4) महावीर प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि आधुनिक है, सिद्ध करो ?
अथवा,
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उत्तर :
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने निबंध ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ में स्त्रियों की शिक्षा के प्रति अपने विचार प्रकट किए हैं और जो स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं, उन पर करारा व्यंग्य किया है। उस समय स्त्री-शिक्षा पर प्रतिबंध था। किन्तु द्विवेदीजी ने स्त्रियों को पढ़ाने के लिए अपना समर्थन दिया है।

जो स्त्री अशिक्षित होगी वह अपनी संतान में अच्छे संस्कारों का सिंचन नहीं कर सकती। विद्यालय जाने से पूर्व माँ ही उस बालक को प्रारंभ से ही अच्छे संस्कारों का सिंचन करेगी तो बालक आगे चलकर जागरूक और योग्य नागरिक बन सकता है। समाज की उन्नति में स्त्रियों का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है यदि वे शिक्षित हों। तभी द्विवेदीजी ने स्त्री-शिक्षा पर बल दिया है।

उनकी यह सोच दूरगामी है। इसका परिणाम हम आज देख सकते हैं। किसी भी क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से पीछे नहीं है। स्त्री-पुरुष समान रूप से घर-गृहस्थी संभालते हैं, समाज व देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। अत: हम कह सकते हैं कि महावीर प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि आधुनिक है,और यह निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है|



व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न


1. पुराने जमाने में स्त्रियों के लिए कोई विश्वविद्यालय न था।

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं ?
 (ii) इस गद्यांश में लेखक स्त्री-शिक्षा के बारे में क्या कहना चाहता है? 
 (iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
(iv) प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर (i) प्रस्तुत पंक्ति 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं।

ii) इस गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि प्राचीन भारत में भी स्त्री-शिक्षा थी। यदि आज उसके प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं तो वे खो भी सकते हैं। यह भी तो प्रमाण है कि वेद-मंत्रों की रचना करने वाली कई स्त्रियाँ भी थीं। इसलिए आज स्त्री-शिक्षा को पाप नहीं समझना चाहिए।

(iii) प्रसंग : उपर्युक्त गद्यांश में लेखक का तर्क है कि प्राचीन भारत में भी स्त्री-शिक्षा थी। आज उसके प्रमाण का अभाव है। परन्तु एक बात तो प्रमाणित है कि वेद-मंत्रं की रचना करनेवाली कुछ स्त्रियाँ भी थीं।
 (iv) अर्थ : प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कथन है कि यह बात सत्य है कि प्राचीन काल में स्त्रियों के लिए कोई नियमित पाठशाला, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय नहीं था, फिर भी कुछ स्त्रियों ने अपने स्वाध्याय से विद्वता को प्राप्त किया जिनमें गार्गी, शकुंतला आदि हैं। यही नहीं कुछ
स्त्रियों ने तो वेद-मंत्रों की भी रचना की है। अतः शिक्षा बिना किसी विश्वविद्यालय के भी समुचित रूप से प्राप्त की जा सकती है।

2. इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी!

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?
(ii) लेखक किस तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता पर बलिहारी जाता है और क्यों ? 
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
 (iv) प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर (i) प्रस्तुत पंक्ति 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं।

(ii) लेखक व्यंग्य करता है कि उन तर्कशास्त्रियों के ज्ञान और न्याय पर मैं बलिहारी हूँ जो प्रमाण के बिना विमान का होना तो स्वीकार करते हैं, किन्तु प्रमाण के अभाव में स्त्री-शिक्षा को स्वीकार नहीं करते। लेखक कटाक्ष करता है कि ऐसे लोगों के तर्क और न्याय व्यर्थ हैं।

(iii) प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति में लेखक उन लोगों पर व्यंग्य करता है जो स्त्री-शिक्षा के प्रबल विरोधी हैं।
(iv) अर्थ : लेखक का कहना है कि वह उन तर्क शास्त्रियों के ज्ञान और न्याय पर अपने को निछावर करता है जो प्रमाण के अभाव में विमान का होना तो स्वीकार करते हैं। किन्तु स्त्री शिक्षा को स्वीकार करने में अपनी हेयता मानते हैं।
          लेखक इस तरह के लोगों पर कटाक्ष करता है और उनलोगों के तर्क और न्याय को व्यर्थ मानता है।

Vvi.3)स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट!

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं
 (ii) किस बात पर हम स्त्रियों और पुरुषों के साथ अलग व्यवहार करते हैं?
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
 (iv) इस गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर (i) प्रस्तुत पंक्ति को 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं।

(ii) हम शिक्षा के नाम पर स्त्रियों और पुरुषों के साथ भिन्न व्यवहार करते हैं। हम पुरुषों की शिक्षा के पक्षधर हैं, किन्तु स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं। हम चाहते हैं कि कोई स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में पुरुष को परास्त न कर सके।
(iii) प्रसंगः लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो स्त्री-शिक्षा के नाम पर उन्हें पुरुषों से भिन्न मानते हैं। 
(iv) इस गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि हमें स्त्रियों की शिक्षा का विरोध नहीं करना चाहिए। पुरुषों को अपनी मनमानी करने और स्त्रियों को अनपढ़ रखकर उनपर हुक्म चलाने की आदत छोड़नी चाहिए।

Vi 4)बड़े शोक की बात है।

प्रश्न - (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन है?

(ii) 'शोक' का क्या अर्थ है ?

(iii) इस पंक्ति की व्याख्या कीजिए।

उत्तर (i) प्रस्तुत पंक्ति को 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' नामक पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं ।

(ii) शोक का अर्थ है दुःख, खेद ।

(iii) लेखक कहता है कि कुछ पढ़े-लिखे लोग भी स्त्री-शिक्षा के विरोध में अनावश्यक रूप से कुतर्क प्रस्तुत करते हैं कि स्त्रियों को शिक्षा देने से अनर्थ होगा। इसी विचार को लेखक ने बड़े शोक की बात कहा है। 

VVi5) बौद्धों के त्रिपिटक ग्रन्थ की रचना प्राकृत में किए जाने का एक - मात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत ही सर्वसाधारण की भाषा थी। 
 प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं ?
(ii) 'प्राकृत' से आप क्या समझते हैं? 
(iii) उपर्युक्त अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर (i) प्रस्तुत गद्यांश 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' नामक पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं ।

(ii) अशुद्ध संस्कृत भाषा को प्राकृत भाषा के नाम से जाना जाता है। गवारू एवं असंस्कृत भाषा को प्राकृत भाषा कहते हैं। एक तरह की भाषा जिसका प्रयोग प्राचीन संस्कृत नाटकों (कालिदास, भवभूति आदि के नाटकों) में हुआ है।

(iii) लेखक कहता है कि भगवान बुद्ध के समय पालि और प्राकृत दो भाषाएँ प्रचलन में थीं। अधिकांश लोगों की भाषा प्राकृत थी। इसीलिए बौद्ध ग्रंथों, की अधिकांश रचनाएँ- विशेषकर त्रिपिटक' की रचना प्राकृत में हुई ताकि जन-मानस में यह ग्रंथ लोक -प्रिय हो सके।

6)वेदों को प्रायः सभी हिन्दू-ईश्वरकृत मानते हैं। 
प्रश्न
(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं ?

(ii) हिन्दुओं का वेद के सम्बन्ध में क्या विचार है ?

(iii) 'वेदों' की रचना किसने की है?

(iv) वेद कितने हैं?

उत्तर - (i) प्रस्तुत पंक्ति 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन' नामक पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीजी हैं। 
(ii) हिन्दू लोग वेद को ईश्वर-कृत मानते हैं। अतः उनके लिए यह एक अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।

(iii) वेदों की रचना ब्रह्मा (ईश्वर) ने की है।

(iv) वेद चार हैं-(क) ऋगवेद (ख) यजुर्वेद (ग) अथर्ववेद (घ)सामवेद।










 

पाठ-2


हिंसा परमों धर्मः














अध्याय 3

संस्कृति है क्या'


1. 'संस्कृति है क्या' निबन्ध के आधार पर संस्कृति की व्याख्या कीजिए। अथवा, सभ्यता और संस्कृति के अन्तः सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - संस्कृति एक विशेष प्रवृत्ति है जो जन्मजात है। उसे स्थूलरूप से किसी परिभाषा में बाँधना सम्भव नहीं है। संस्कृति में आदान-प्रदान का गुण होता है और लेन-देन से वह फलती फूलती है। जिस प्रकार एक मनुष्य पर दूसरे मनुष्यों की संगति का असर होता है, उसी प्रकार दो भिन्न संस्कृति वाले लोग आपस में मिलते हैं, तो उनका प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है। उदाहरण के लिए जब भारत पर मुगलों का शासन था, तब मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव हमारे खान-पान, रस्म-रिवाज, साहित्य, कला स्थापत्य पर पड़ा। दो जातियों के मिलने से जिन्दगी की नई धारा फूट पड़ती है और दोनों उससे प्रभावित होते हैं।

अतः संस्कृति को परिभाषित करना कठिन है। वह अनुभूति का तत्त्व है, अभिव्यक्ति का नहीं। जिस प्रकार एक फूल की सुगन्ध को हम अनुभव कर सकते हैं लेकिन उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकते, ठीक उसी प्रकार संस्कृति हमारे जीवन में रची बसी सुगंध है जिसे जीवन से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

अंग्रेजी में एक कहावत है कि संस्कृति वह गुण है जो हममें घुला मिलता है और सभ्यता वह गुण है जो हमारे आस-पास है। संस्कृति और सभ्यता में यही अन्तर है। संस्कृति जन्मजात होती है, परन्तु सभ्यता हम अर्जित करते हैं। संस्कृति व्यक्ति का आंतरिक गुण है जो निर्धन-धनी किसी में भी हो सकता है। पोशाक पहनने की कला, भोजन करने की कला आदि संस्कृति से सम्बन्ध रखते हैं। सभ्यता की पहचान व्यक्ति के ठाठबाट और सुख-सुविधा से होती है परन्तु हमारे बोलने-चालने, उठने-बैठने के ढंग और व्यवहार का सम्बन्ध संस्कृति से है । सभ्य दिखनेवाला हर व्यक्ति सुसंस्कृत नहीं होता। अच्छी पोशाक पहनने वाला ही संस्कारशील होगा, यह जरूरी नहीं है। वह बात-व्यवहार में पशुवत हो सकता है। सभ्यता और संस्कृति में घनिष्ट सम्बन्ध है। संस्कृति हमारी आंतरिकता से जुड़ी है और सभ्यता हमारे वाह्य वातावरण से संस्कृति जन्मजात और सहजात होती है, सभ्यता अर्जित की जाती है।

संस्कृति और सभ्यता एक दूसरे के पूरक हैं। अपने विकास के लिए दोनों एक दूसरे पर आश्रित है। इनका विकास भी साथ-साथ होता है। दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं और प्रभावित भी होते हैं। जैसे घर बनाना सभ्यता का काम है परन्तु उसे सुरुचिपूर्ण तरीके से बनाना संस्कृति का कार्य है। सांस्कृतिक रुवि से जो घर बनाया जाता है, वह सभ्यता का अंग बन जाता है। गुफा से घर तक के सफर में भी सभ्यता एवं संस्कृति का मिलाजुला प्रभाव कार्य कर रहा था।

संस्कृति सभ्यता की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म होती है। संस्कृति सभ्यता के अन्दर इस प्रकार बसी रहती है जैसे फूलों में सुगन्ध, मृग में कस्तूरी। संस्कृति के बिना सभ्यता अधूरी है। सभ्यता के साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, उन्हें खरीदा जा सकता है परन्तु उनके उपयोग के तरीके तुरन्त नहीं आ जाते। यह संस्कृति का काम है।

सभ्यता के साधनों का साथ व्यक्ति के साथ तक सीमित रहता है क्योंकि सभ्यता भौतिक वस्तुओं, उपकरणों पर आधारित होती है। इनका साथ व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् टूट जाता है। परन्तु संस्कृति व्यक्ति के अन्दर की वस्तु है और उसका सम्बन्ध आत्मा से होता है। अतः व्यक्ति के साथ उसका जन्मजन्मान्तर का संग होता है। संस्कृति आत्मा का गुण होने के कारण आत्मा की ही तरह नित्य है, निरन्तर है। अतः संस्कृति और सभ्यता में घनिष्ट सम्बन्ध है।

व्यख्यामूलक प्रश्न:-

1-"संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है"
 प्रश्न- (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है ?

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के लेखक कौन हैं ?

(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।

(iv) प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

(i) प्रस्तुत पंक्ति को संस्कृति क्या है पाठ से लिया गया है ?

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के लेखक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी हैं।

 (iii) प्रसंग :- प्रस्तुत कथन में लेखक यहाँ स्पष्ट करना चाहा कि जैसे हमारे संस्कार होंगे, तदनुरूप हमारा पुनर्गठन होगा।

(iv) आशय : संस्कृति हमें विरासत में मिली है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारी संस्कृति का निर्माण होता है। जिस समाज में हम जन्म लेते हैं, उस समाज की संस्कृति हममें जन्मजात होती है। जिस प्रकार मृत्यु के बाद हम अपनी संपत्ति अपनी सन्तान के लिए छोड़ जाते हैं, उसी प्रकार अपने संस्कार भी विरासत में छोड़ जाते हैं। संस्कृति का सम्बन्ध आत्मा से है। जिस प्रकार आत्मा नित्य है, अविनाशी है, उसी प्रकार संस्कृति भी नित्य और अनश्वर है। जिस प्रकार शरीर के जल जाने पर आत्मा दूसरे शरीर के माध्यम जन्म ग्रहण करती है, उसी प्रकार संस्कृति भी दूसरे शरीर के माध्यम से जन्म ग्रहण करती है। सभ्यता की स्थूल वस्तुएँ नाशवान हैं, भूकम्प का झटका सुन्दर से सुन्दर इमारत को गिरा सकता है, प्रचंड तूफान सभ्यता निर्मित पुल, सड़क, रेल बहा ले जा सकता है, परन्तु संस्कृति मनुष्य की अंतरात्मा में बसी होती है। इसका प्रमाण हमें तब मिलता है जब हम बचपन से ही किसी बच्चे को विशेष संस्कारवान पाते हैं।








पाठ-4
ठेले पर हिमालय


'1)-ठेले पर हिमालय' पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-: ठेले पर हिमालय डा० धर्मवीर भारती का एक बहुचर्चित यात्रावृतांत है जिसमें लेखक ने हिमालय दर्शन का बड़ी ही चित्रात्मक शैली में वर्णन किया है। हिमालय के दर्शन की, हिम दर्शन की प्रेरणा लेखक को उनके मित्र शुक्लजी से मिलती है जो बार-बार इन्हें उकसाते रहते हैं। लेखक सपत्नीक कोसी पहुँचता है और वहाँ शुक्ल जी के आगमन की प्रतीक्षा करता है। क्योंकि लेखक के विचार में शुक्लजी पथ के ऐसे साथी हैं जो पूर्वजन्मों के पुण्यों के आधार पर मिलते हैं। इस कहानी में नैनीताल से कौसानी की यात्रा का वर्णन है।

शुक्लजी एक अजनबी के साथ कोसी आते हैं और यहाँ से बस द्वारा कोसानी की यात्रा आरम्भ हुई है। इस यात्रा का चित्रात्मक वर्णन बड़ा ही मनोरम होता है। घर छोड़ने के बाद कष्ट तो होता ही है। बड़ी कष्ट कर कोसी से कौसानी की यात्रा थी। पर उस यात्रा की थकान को प्राकृतिक दृश्य और सुखद माहौल दूर कर देता है। 24 मील की बस यात्रा में घने जंगल, पर्वत प्रदेश, छोटे-छोटे खेत, खेतों में बिछी हरियाली की कालीन, छोटी-छोटी नदियाँ, नदियों के बहाव के स्वर, मन को मोह लेते हैं। यात्रा का सारा अवसाद बर्फ की तरह पिघल जाता है। इस यात्रा के दौरान दो सुसज्जित प्रकृति की गोद में खेलती सी लगनेवाली घाटियाँ मिलती हैं। सोमेश्वर की घाटी और कत्यूर की घाटी। कत्यूर की घाटी कौसानी की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य लगभग 50 मील की चौड़ाई में फैली हुई है। घाटी की छटा बड़ी. ही निराली है। रंग-बिरंगे फूल, हरियाली, आसमान से अठखेलियाँ करनेवाले बादल, बादलों की खिड़की से झाँकते हिमालय में हिमशिखरों का वर्णन करने में शब्द छोटे पड़ जा रहे हैं।

प्रकृति के सुरम्य सौन्दर्य का पान करते हुए लेखक और उनके साथी कौसानी के डाक बंगले पर पहुँचते हैं। वहाँ बैठे बैठे ये प्रकृति का नजारा देखते हैं। खानसामा इनसे कहता है - आपलोग बड़े भाग्यशाली हो, यहाँ हफ्तों बैठकर 14 पर्यटक चले गए। उन्हें यह प्रकृति का नजारा नहीं देखने को मिला।

दूसरे दिन 12 मील का चक्कर लगाकर यह दल बैजनाथ पहुँचा। वहाँ गोमती नदी का नजारा देखने लायक था । गोमती के प्रवाह में हिमालय से ऊँचे शिखरों की परछाइ‌याँ खेल रही थी, बह रही थीं। जल में तैरते हिम शिखरों को देखकर निहाल हो गया है। वह इस दृश्य को अपनी आँखों के सहारे मन में उतार रहा है, उतारने में व्यस्त है। हिमालय यात्रा की टीस उसे अभी भी सालती रहती है। तभी वह हिमालय की फिर-फिर आने का अपना संदेशा भेजता है। सूर की गोपियों की तरह 'लला फिर आइयो खेलन होरी'।









पाठ-5

भोलाराम का जीव

1).भोलाराम का जीव नामक कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
Or,
चित्रगुप्त ने भोलाराम के जीव के गायब हो जाने के संबंध में क्या आंशका जताई स्पष्ट करो ।


उत्तर
- भोलाराम का जीव कहानी में पौराणिक पात्रों को आधार बनाकर कथानक को गया है। धर्मराज, चित्रगुप्त और यमराज तीनों इस बात से चिंतित हैं कि पाँच दिन पहले प्राण त्यागने वाले भोलाराम के जीव को लेकर यमदूत क्यों नहीं आया। चित्रगुप्त धर्मराज को पृथ्वी पर चल रहे रेलवे विभाग, राजनीतिक दलों एवं ठेकेदार, ओवरसीयर, इंजीनियर के भ्रष्ट कारनामे से अवगत कराते हैं।

मधुरेश जी का विचार है- भोलाराम का जीव देश की समूची व्यवस्था पर एक रनिंग कमेंट्री जैसी है। भालाराम ऐसे देश का वासी है, जहाँ दोस्तों को भेजी गई चीजें रेलवे वाले उड़ा लेते हैं और होजरी के पार्सलों के मोजे रेलवे के अफसर पहनते हैं। जहाँ राजनीतिक दला के लोग विराधी नेता को उड़ाकर बंद कर देते हैं ताकि विरोधी आवाज को दबाया जा सके। अपनी विशेष योग्यता और कार्यक्षमता के लिए जो लोग नरक में सहायता और नव-निर्माण के लिए भजे जात हैं, वे अधिकांश इमारतों के ठेकेदार हैं जो पूरे पैसे खाते हैं या फिर ओवरसीयर हैं जो उन मजदूरों की मजदूरी हड़पते हैं जो कभी काम पर आते ही नहीं ।

धर्मराज के लिए हैरत की बात यह है कि भोलाराम जैसे दीन-हीन आदमी से किसी को भला क्या लेना-देना हो सकता है। उन्हें चिंतित देखकर वहाँ पहुँचे नारद उनकी समस्या के लिए पृथ्वी पर जाने की योजना बनाते हैं। नारद पृथ्वी पर पहुँचते हैं। भोलाराम की पत्नी से नारद को ज्ञात होता है कि भोलाराम सेवानिवृत्ति के बाद पाँच वर्षों तक पेंशन के लिए कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें एक कौड़ी नहीं मिली। भोलाराम के जीव की तलाश में अनेक स्थानों पर भटकने के उपरान्त नारद एक दफ्तर पहुँचते हैं। वहाँ के कर्मचारियों की रिश्वत लेकर ही काम करने की पद्धति को देखकर वे हेरान ही नहीं, परेशान हो जाते हैं। उन्हें ज्ञात होता है कि अपनी पेंशन पाने के लिए भोलाराम ने रिश्वत नहीं दी थी और दफ्तर का दस्तूर है कि जबतक दरख्वास्तों पर वजन नहीं रखा जाता है, वहाँ कोई काम नहीं होता है। वहाँ रिश्वत के रूप में नारद को अपनी वीणा देनी पड़ती है। रिश्वत पाने के उपरान्त भोलाराम के पेंशन की फाइल खुलती है। साहब के द्वारा आवेदनकर्ता के नाम पूछे जाने पर नारद ऊँची आवाज में भोलाराम का नाम बताते हैं। अपना नाम सुनते ही भोलाराम का जीव, जो उन्हीं फाइलों में अटका हुआ था, की आवाज आती है कि उसे कौन खोज रहा है? क्या वह पोस्टमैन है ? क्या उसकी पेंशन का ऑर्डर आ गया? नारद उसे बताते हैं कि वे भोलाराम के जीव को स्वर्ग ले जाने के लिए आये हैं। भोलाराम का जीव उन फाइलों को छोड़कर स्वर्ग भी नहीं जाना चाहता है। वह कहता है- मुझे नहीं जाना। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता।

इसी कथा - सूत्र के व्यंग्यात्मक उपयोग द्वारा लेखक ने भ्रष्टाचार के अमानवीय रूप पर मार्मिक चोट किया है। एक आम इंसान को इस शासन-तंत्र में भ्रष्टाचार के कारण कितनी कठिनाई से गुजरना पड़ता है तथा इन सबके बावजूद वह सफलता हासिल नहीं कर सकता है।

दफ्तरों की भ्रष्टाचारी प्रवृत्तियों के कारण सामान्य जन की तकलीफें बहुत बढ़ गई हैं। वह इस प्रकार की व्यवस्था के आगे मजबूर है। भोलाराम की नियति इतनी फाइलबद्ध हो चुकी है कि उसका जीव उन फाइलों को छोड़कर स्वर्ग भी नहीं जाना चाहता। इस कहानी में ऐसा त्रासद व्यंग्य छिपा है जो सामाजिक, राजनीतिक स्थिति को अनावृत्त करता हुआ मनुष्य की स्थिति को उद्घाटित करता है। भ्रष्टाचार के इस खुलेआम व्यवहार को आम जनता जानती है और कुछ नहीं कर सकती है। क्रूर आर्थिक तंत्र में पिसते हुए आदमी की यातनापूर्ण स्थिति की ओर भी लेखक ने संकेत किया है।

व्यख्यामूलक प्रश्न: -

1)."भई, यह भी एक मन्दिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है, भेंट चढ़ानी पड़ती है। आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं, उनपर वजन रखिए।"
क) उक्त कथन का वक्ता कौन है?
उत्तर-उक्त कथन का वक्ता बड़े साहब है|
ख) मंदिर शब्द से यहाँ वक्ता क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर-बड़े साहब ने सरकारी दफ्तर को मन्दिर बताया और भेंट चढ़ाने की सलाह दी।जिस प्रकार आप मन्दिर जाते हैं तो कुछ-न-कुछ भेंट अवश्य चढ़ाते हैं|
ग) भेट किसलिए मांगी जा रही है ?
उत्तर-भोलाराम एक सेनानिवृत सरकारी कर्मचारी था। उसकी समस्या यह थी कि उसे पिछले पाँच वर्ष से पेंशन नहीं मिली थी।इसलिए भेट मांगी जा रही है |
घ) वक्ता ने समस्या का समाधान क्या बताया है?
उत्तर-वक्ता (बड़े साहब) ने समस्या को जल्दी हल करने का उपाय बताया कि नारद जी अपनी वीणा को वजन के रूप में भोलाराम की फाइलों पर रख दें। उसे सुनकर श्रोता (नारदजी) वीणा के छिनने के डर से घबराए, परन्तु बाद में उन्होंने वीणा बड़े साहब को फाइलों पर वजन रखने के लिए दे दी।

प्रश्न (1) उक्त कथन किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?

(ii) इन पंक्तियों में किस व्यक्ति के बारे में कहा गया है?
उसने मन्दिर किसे बताया और क्या सलाह दी ?

(iii) भोलाराम कौन था? उसकी क्या समस्या थी ?

(iv) वक्ता ने किस प्रकार का वजन रखने की सलाह दी ? इस पंक्ति द्वारा कहानी के लेखक ने सरकारी कार्यालयों की किस बुराई पर व्यंग्य किया है?
(v) वक्ता ने समस्या को जल्दी हल करने का क्या उपाय बताया? उसे सुनकर श्रोता पहले क्यों घबराया ? बाद में उसने क्या किया ?
(vi) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(vii) प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- (i) उक्त कथन भोलाराम का जीव नामक कहानी से लिया गया है तथा इसके लेखक हरिशंकर परसाईजी हैं।

(ii) इन पंक्तियों में बड़े साहब के बारे में कहा गया है। बड़े साहब ने सरकारी दफ्तर को मन्दिर बताया और भेंट चढ़ाने की सलाह दी।

(iii) भोलाराम एक सेनानिवृत सरकारी कर्मचारी था। उसकी समस्या यह थी कि उसे पिछले पाँच वर्ष से पेंशन नहीं मिली थी।

(iv) वक्ता ने पैसों या मूल्यवान वस्तु का वजन रखने की सलाह दी। इस पंक्ति द्वारा लेखक ने सरकारी कार्यालयों की रिश्वतखोरी की बुराई पर व्यंग्य किया है।

(v) वक्ता (बड़े साहब) ने समस्या को जल्दी हल करने का उपाय बताया कि नारद जी अपनी वीणा को वजन के रूप में भोलाराम की फाइलों पर रख दें। उसे सुनकर श्रोता (नारदजी) वीणा के छिनने के डर से घबराए, परन्तु बाद में उन्होंने वीणा बड़े साहब को फाइलों पर वजन रखने के लिए दे दी।

(vi) प्रसंग प्रस्तुत कथन उस बड़े साहब की है जिसके ऑफिस में नारदजी धड़धड़ाते चले - गए थे।

(vii) आशय बड़े साहब ने नारदजी से रौब में पूछा कि क्या काम है ? हमारे दफ्तर में बिना अनुमति के तथा पूर्व निर्धारित तिथि के बिना कैसे आ गए? नारदजी ने भोलाराम के पेंशन के सम्बन्ध में बताया। बड़े साहब ने नारदजी से कहा कि भोलाराम से एक बड़ी भूल यह हुई कि उन्होंने अपने दरख्वास्त पर 'वेट' नहीं रखा जिससे उनकी दरख्वास्त कही उड़ गई।

पुनः बड़े साहब नारदजी से कहते हैं कि जिस प्रकार आप मन्दिर जाते हैं तो कुछ-न-कुछ भेंट अवश्य चढ़ाते हैं, उसी तरह यह पेंशन ऑफिस भी एक मन्दिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है तब जाकर कार्य सिद्धि होती है। खैर! आप तो भोलाराम के अपने लगते हैं। आप ही दरख्वास्त पर वजन रख दें तो काम होने में कोई विलम्ब नहीं होगा।






 सहायक पाठ

पाठ-1

 








































पाठ-2

आचार्य जगदीश चन्द्र बसु





प्रश्न- 2. पठित पाठ के आधार पर आचार्य जगदीश चन्द्र बोस की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।

उत्तर:- पठित पाठ के आधार पर आचार्य जगदीश चन्द्र बोस की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-

(1) स्वाभिमान एवं देश भक्ति - आचार्य जगदीश चन्द्र बोस एक महान देशभक्त एवं स्वाभिमानी पुरुष थे।

(2) विज्ञान, कला और धर्म का संतुलित सामंजस्य - आचार्य जगदीश चन्द्र बोस में विज्ञान, कला और धर्म का अद्भुत एवं संतुलित सामंजस्य था।

(3) समकालीन दृष्टि - जिस संस्था की उन्होंने स्थापना की वह उनकी समकालीन दृष्टि का प्रमाण है। वह मात्र प्रयोगशाला न होकर एक मंदिर थी। कार्य करने की मेज एक वर्दी थी।

(4) भौतिकी एवं शरीर विज्ञान के प्रणेता - आचार्य जगदीश चन्द्र बोस ने अपने भौतिक प्रयोगों द्वारा विद्वानों के संदेह को दूर किया और भौतिकी एवं शरीर विज्ञान के निकटतम विषयों के प्रणेता के रूप में ख्याति अर्जित की।

(5) ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, महाकाव्य एवं पुराण जो वेदों के वेद हैं, पितरों की पूजा, आराधना, गणित, शकुन - विद्या, काल-ज्ञान, तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र और राजनीति, देवी विज्ञान, पवित्र ज्ञान-विज्ञान, तात्त्विक आत्म-ज्ञान, सर्पज्ञान और ललित कलाओं का उन्हें सम्यक ज्ञान था। 

(6)प्राकृतिक विज्ञान के शोध प्रणेता - आचार्य जगदीश चन्द्र बोस प्राकृतिक विज्ञानों में शोध के प्रणेता थे।

(7) गहन अन्तर्दृष्टि - इनके शोध कार्यों ने भारतीय ऋषियों की गहन अन्तर्दृष्टि को वैज्ञानिक व्याख्या और सत्यता प्रदान की। इन्होंने प्रमाणित किया कि जीवन-मृत्यु, सोना-जागना, बीमारी उपचार आदि पौधों में परिलक्षित होती है। इन्होंने प्रमाणित किया कि समस्त ब्रह्माण्ड में एक निरन्तरता और सुमेल है और उसकी क्रियाशीलता ने धातु, पौधों और पशुओं को एक ही नियम में बाँध रखा है।

(8) विनम्रता - सच्चा विज्ञान उसके प्रणेता को विनम्र बना देता है। आचार्य बोस भी बड़े ही मिलनसार, मृदुभाषी एवं विनम्र थे ।

(9) धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं - आचार्य बोस यह मानते थे कि विज्ञान एवं धार्मिक मान्यता में कोई अन्तर्विरोध नहीं है।

(10) विज्ञान और आत्मा में सम्बन्ध के पोषक - आचार्य बोस का मानना था कि वैज्ञानिक की जीवन्त आत्मा दैवी रहस्य का प्रतिबिम्ब है। आचार्य बोस का कहना है कि मानव का सृजन ईश्वर की प्रतिमा के रूप में हुआ है।]

(11) महत्त्वाकांक्षी - यह बोस की महत्त्वाकांक्षा थी कि हम लोग शोध और खोज कार्य जारी रखें, उसके परिणाम से विश्व को समृद्ध करें और स्थायी विश्व बंधुत्व के लक्ष्य को प्राप्त करें। मानवता के कल्याण और ईश्वर की गरिमा के लिए हम काम करें।



लघुत्तरीय प्रश्न



1. भारतीयों ने किस क्षेत्र में योग दिया है ?

उत्तर - भारतीय मनीषियों ने गणित, खगोल विद्या, व्याकरण, तर्कशास्त्र, प्रकृति विज्ञान और आयु विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
2. किसने भारत की प्रगति के लिए वैज्ञानिक ज्ञान पर बल दिया ?

उत्तर - महेन्द्र लाल सरकार ने भारत की प्रगति के लिए वैज्ञानिक ज्ञान के महत्त्व पर बल दिया ।

**3. किसने भारतीय संघ की स्थापना की थी ?

उत्तर - महेन्द्र लाल सरकार ने भारतीय संघ की स्थापना की थी। 
4. भारतीय संघ की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर - भारतीय संघ की स्थापना का उद्देश्य विज्ञान की सभी शाखाओं में शोध के लिए हुई थी ।

5. किन लोगों ने भारतीय संघ में काम किया ?
उत्तर - भारतीय संघ में काम करने वालों में प्रो० सी० वी० रमन और के० एस० कृष्णन जैसे वैज्ञानिकों ने काम किया।

**6. डॉ० बसु किस शोध के प्रणेता थे ?

उत्तर - • डॉ० जगदीश चन्द्र बसु प्रकृति-विज्ञानों में शोध के प्रणेता थे।

7. प्रोफेसर हीवरलैण्ड कौन थे ? 
उत्तर - प्रोफेसर हीवरलैण्ड जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक वनस्पति थे।

8. जगदीश चन्द्र बसु के शोध कार्य ने किसको सत्यता प्रदान की ? 
उत्तर - जगदीश चन्द्र बसु के शोध कार्यों ने भारतीय ऋषियों की गहन अन्तर्दृष्टि की वैज्ञानिक व्याख्या और सत्यता प्रदान की । 
9. भारतीय ऋषि विश्व को किस दृष्टि से देखते हैं ?

उत्तर - भारतीय ऋषि विश्व को सकल रूप में न देखकर पूर्ण रूप में देखते हैं।
 10. ब्रह्माण्ड के बारे में भारतीय ऋषियों की क्या धारणा रही है ?
 उत्तर - भारतीय ऋषियों के अनुसार पिण्ड और ब्रह्माण्ड एक दूसरे के बिम्ब-प्रतिबिम्ब हैं।

11. विश्व किस प्रकार का विस्तार है ? 
उत्तर - विश्व निष्प्राण विस्तार नहीं है अपितु यह प्राणवान ब्रह्माण्ड है।

12. इशोपनिषद में क्या कहा गया है ?
उत्तर - इशोपनिषद में यह कहा गया है कि प्राण तत्व के स्फुरण को सर्वत्र देखा जा सकता है। 
13. प्रकृति में कहीं व्यतिरेक नहीं है-कैसे प्रमाणित हुआ है ? 
उत्तर - कार्बनिक और अकार्बनिक तथा प्राणवान और पशु चेतना में निरंतरता ही इस कथन को पुष्ट करती है।

14. धर्मोतर अपने न्याय बिन्दु टीका में क्या लिखते हैं ? 
उत्तर - वे लिखते हैं कि रात में पक्षियों में संकुचन होता है।

15. लाजवंती या छुई-मुई घास में क्या देखी जा सकती है ?

उत्तर - लाजवंती या छुई-मुई घास में स्पर्श के प्रति संवेदनशीलता देखी जा सकती है।
 16. पौधों में क्या है? क्या वे भी सुख दुःख का अनुभव करते हैं
उत्तर -पौधों में चेतना है और वे भी सुख दुःख का अनुभव करते हैं।

 17. सूर्योदय के साथ कौन सा फूल विकसित होता है और सूर्यास्त के समय बंद हो जाता है ?
 उत्तर -कमल का फूल सूर्योदय के साथ खिलता है और वह सूर्यास्त के साथ ही बंद हो जाता है।

18. पशु क्षोभ का प्रदर्शन कैसे करते हैं?
उत्तर -पशु क्षोभ का प्रदर्शन विद्युत तरंगों अर्थात् गति के माध्यम से करते हैं।

19. पौधे किस प्रकार उदासी प्रकट करते हैं ?

उत्तर - पौधे बार-बार के प्रहारों से उदासी प्रकट करते हैं।

20. पत्थर की गुटिका और आम की गुठली में क्या समानता है ? 
उत्तर -पत्थर की गुटिका और आम की गुठली दोनों ठोस हैं और दोनों में भार होता है।

21. पत्थर की गुटिका और आम की गुढली में क्या अन्तर है ? 
उत्तर - • पत्थर की गुटिका सैकड़ों वर्षों तक उसी रूप में रहती है। आम की गुठली अनुकूलता पाकर वृक्ष के रूप में परिणत होकर आम का फल प्रदान करती है।
 22. सर चार्ल्स शेरिगटन 'मैन ऑन हिज नेचर' में क्या लिखते हैं?

उत्तर -सर चार्ल्स शेरिगटन 'मैन ऑन हिज नेचर' में लिखते हैं कि ऊर्जा की योजना में ऊर्जा एवं मानसिक अनुभव के मध्य समतुल्यता की खोज में हमें कुछ नहीं पता चलता।

23.जगदीश चन्द्र बसु ने क्या सिद्ध किया है ?
  उत्तर - जगदीश चन्द्र बसु ने यह सिद्ध किया है कि वनस्पति जगत भी सजीव है, चेतन है और उसे भी सुखःदुख का अनुभव होता है। 
24- जगदीश चन्द्र बसु ने सर्वप्रथम किस बात का पता लगाया ?
उत्तर - पेड़-पौधे भी हमारी तरह संवेदनशील हैं। उनमें भी जीवन है-इस बात का पता सर्वप्रथम जगदीशचन्द्र बसु ने लगाया ।

 25. जगदीश चन्द्र बसु ने अंग्रेज प्राध्यापकों की अपेक्षा कम वेतन लेना स्वीकार क्यों नहीं किया ?
 उत्तर - जगदीश चन्द्र बसु ने कार्य के प्रति निष्ठा होने के कारण प्राध्यापक पद तो स्वीकार कर लिया परन्तु स्वाभिमान की रक्षा हेतु अंग्रेज प्राध्यापकों की अपेक्षा कम वेतन लेने से मना कर दिया।

26.***वेदों का वेद किसे कहा गया है ? 
उत्तर-पुराण को वेदों का वेद कहा गया है।



पाठ- 3 
गोपाल कृष्ण गोखले













पाठ -4





























1. सकर्मक क्रिया (Transitive Verb) - जिस क्रिया का फल कर्त्ता पर न पड़कर किसी दूसरी वस्तु या कर्म पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।उदाहरण :-पंकज विद्यालय जाता है।
किसान हल जोतता है।

2. अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb) - जिस क्रिया का फल कर्त्ता पर पड़ता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं, इसमें कर्म नहीं होता है। जैसे- मोहन सोता है ।
 सोहन नहाता है।

सार्वनामिक विशेषण (Pronouns used as Adjective)- सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं और इसकी दूरी, समीपता आदि को बतलाते हैं तब वे सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जैसे- वह नौकर नहीं आया। यह गाय सुन्दर है।
























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