Madhyamik Hindi हिंदी व्याकरण Notes

Madhyamik हिंदी व्याकरण  Notes 

कारक

प्रश्न 1. कारक किसे कहते हैं? हिन्दी में कितने कारक हैं? उनके नाम लिखिए।

अथवा, कारक किसे कहते हैं? हिन्दी में प्रचलित विभिन्न कारकों के नाम का उल्लेख करते हुए उनके साथ लगने वाले चिह्नों (परसर्गों) को लिखिए। (1+4) (मा.प.2008)

उत्तर :संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं। 
अथवा 
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) क्रिया से सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक कहते हैं।

कारक के भेद

हिन्दी में कारक आठ प्रकार के होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान,सम्बन्ध,अधिकरण,सम्बोधन। 
 हिन्दी कारकों की विभक्तियों के 'चिह्न' इस प्रकार हैं

कारक.                                      विभक्तियाँ

कर्ता                                        ने,(या कोई चिह्न नहीं)०

कर्म                                       को,(या कोई चिह्न नहीं)०

 करण                                     से, के द्वारा, के साथ

सम्प्रदान                                 के लिए, को

अपादान                         से (पृथकता प्रकट करने वाला)

सम्बन्ध                                  का, के, की; रा, रे, री

अधिकरण                               में, पर

सम्बोधन                              हे,अरे,अजी,अहो,०


सूत्र->कर्ता-ने,कर्म-को,करण-से,सम्प्रदान-के लिए,अपादान-से, सम्बन्ध-का, के, की,अधिकरण-में,पर,सम्बोधन - हे,अरे



Note:कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय (चिह्न) लगाये जाते हैं, उन्हें व्याकरण में 'विभक्तियाँ कहते हैं। कुछ लोग इन्हें परसर्ग भी कहते हैं।

प्रश्न - 2. अकारक किसे कहते हैं? सम्बन्ध तथा सम्बोधन को कारक क्यों नहीं माना जाता?

उत्तर - संस्कृत में कारकों की संख्या आठ मानी गयी है, किन्तु हिन्दी भाषा में इन आठ कारकों में से केवल छः को ही कारक माना गया है, क्योंकि इनका क्रिया के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। शेष दो कारक 'सम्बन्ध' तथा 'सम्बोधन' को इस आधार पर कारक नहीं माना गया क्योंकि क्रिया के साथ इनका कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। इन्हीं दो कारक 'सम्बन्ध' तथा 'सम्बोधन' को उपकारक या अकारक कहते हैं।




निबंध

1.

कोरोना वायरस 

प्रस्तावना : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में 900 गुना छोटा है, लेकिन कोरोना का संक्रमण दुनियाभर में तेजी से फ़ैल रहा है।

कोरोना वायरस क्या है?

कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। 
 कोविड 19 नाम का यह वायरस अब तक 70 से ज़्यादा देशों में फैल चुका है। 

* क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?

कोविड-19 / कोरोना वायरस में पहले बुख़ार होता है। इसके बाद सूखी खांसी होती है और फिर एक हफ़्ते बाद सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
इन लक्षणों का हमेशा मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फ़ेल होना और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह या हार्ट की बीमारी है उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। ज़ुकाम और फ्लू के वायरसों में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं। 

क्या हैं इससे बचाव के उपाय?

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 
1-इनके मुताबिक हाथों को साबुन से धोना चाहिए। 
2-अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है। 
3-खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढंककर रखें। 

मास्क कौन और कैसे पहनें?

अगर आप स्वस्थ हैं तो आपको मास्क की जरूरत नहीं है।
अगर आप किसी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो आपको मास्क पहनना होगा।
जिन लोगों को बुखार, कफ या सांस में तकलीफ की शिकायत है, उन्हें मास्क पहनना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

* मास्क पहनने का तरीका :-  
मास्क पर सामने से हाथ नहीं लगाना चाहिए।
अगर हाथ लग जाए तो तुरंत हाथ धोना चाहिए।
मास्क को ऐसे पहनना चाहिए कि आपकी नाक, मुंह और दाढ़ी का हिस्सा उससे ढंका रहे।
मास्क उतारते वक्त भी मास्क की लास्टिक या फीता पकड़कर निकालना चाहिए, मास्क नहीं छूना चाहिए।
हर रोज मास्क बदल दिया जाना चाहिए।

कोरोना का संक्रमण फैलने से कैसे रोकें?

सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, ऑटो या टैक्सी से यात्रा न करें।
घर में मेहमान न बुलाएं।
घर का सामान किसी और से मंगाएं।
ऑफ़िस, स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर न जाएं।
अगर आप और भी लोगों के साथ रह रहे हैं, तो ज़्यादा सतर्कता बरतें।
अलग कमरे में रहें और साझा रसोई व बाथरूम को लगातार साफ़ करें।
14 दिनों तक ऐसा करते रहें ताकि संक्रमण का ख़तरा कम हो सके।
अगर आप संक्रमित इलाक़े से आए हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जा सकती है। अत: घर पर रहें।

उपसंहार : लगभग 18 साल पहले सार्स वायरस से भी ऐसा ही खतरा बना था। 2002-03 में सार्स की वजह से पूरी दुनिया में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। पूरी दुनिया में हजारों लोग इससे संक्रमित हुए थे। इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा था। कोरोना वायरस के बारे में अभी तक इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस पार्सल, चिट्टियों या खाने के ज़रिए फैलता है। कोरोना वायरस जैसे वायरस शरीर के बाहर बहुत ज़्यादा समय तक ज़िंदा नहीं रह सकते।
कोरोना वायरस को लेकर लोगों में एक अलग ही बेचैनी देखने को मिली है। मेडिकल स्टोर्स में मास्क और सैनेटाइजर की कमी हो गई है, क्योंकि लोग तेजी से इन्हें खरीदने के लिए दौड़ रहे हैं। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन, पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड और नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) से प्राप्त सूचना के आधार पर हम आपको कोरोना वायरस से बचाव के तरीके बता रहे हैं। एयरपोर्ट पर यात्रियों की स्क्रीनिंग हो या फिर लैब में लोगों की जांच, सरकार ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए कई तरह की तैयारी की है। इसके अलावा किसी भी तरह की अफवाह से बचने, खुद की सुरक्षा के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं जिससे कि कोरोना वायरस से निपटा जा सकता है।


2.
जीवन में स्वच्छता का महत्व

प्रस्तावना:
स्वच्छता का अर्थ होता है – हमारे तन, मन को और आसपास के चारो तरफ की साफ सफाई रखना | हर इंसान को स्वच्छ रखनी चाहिए |
जब हर कोई इंसान स्वच्छता रखेगा तभी वो हर बिमारियों से मुक्त रहेगा | उसको कोई बिमारी नही हो जाएगी | हर इंसान को अपने बच्चो को भी स्वच्छता के बारे में बताना होगा | हर इंसान को स्वच्छता का महत्व जानना जरुरी है |

स्वच्छता का महत्व

स्वच्छता हर मनुष्य के जीवन में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तरीके से स्वस्थ रहने के आवश्यक होती है | हर इंसान स्वच्छता खुद करनी चाहिए |
भारत के संस्कृति में ऐसा माना गया है की जहाँ स्वच्छता रहती है वहाँ लक्ष्मी का निवास होता है | भारतीय धर्मो में साफ सफाई के बारे में बहुत उपदेश दिए गए है |
देश में कई जगह और मंदिरों में बहुत गन्दगी दिखाई देती है | धार्मिक स्थल पर अलग – अलग प्रकार के कार्यक्रमों पर बहुत सारे भक्त लोग वहाँ पहुचते है | लेकिन स्वच्छता के महत्व के बारे में पता रहकर भी वो जैसे पता नही वैसे दिखाते है और वहा पर बहुत गन्दगी फैलाते है |
स्वच्छ शरीर के लिए और मन के लिए स्वच्छता बहुत जरुरी होती है | आज के दुनिया में स्वच्छता का बहुत महत्व है | स्वच्छता की वजह से आचार और विचार में शुद्धता रहती है|

स्वच्छता की जरुरत

स्वच्छता यह एक मनुष्य का प्राकृतिक गुण है | हर मनुष्य को अपने आसपास के परिसर को स्वच्छ रखना चाहता है |
अगर हर मनुष्य साफ सफाई नही रखेगा तो कीड़े मकोड़े और अन्य जीव जन्तु, कीटाणु घर में प्रवेश करेंगे | इसलिए हर मनुष्य को साफ सफाई रखनी चाहिए |

 
स्वच्छता अभियान

स्वच्छता का जीवन में बहुत महत्व है | स्कूल में कॉलेज में स्वच्छता के बारे में बताया जाता है | स्वच्छता अभियान भी रखा जाता है |
सबसे पहले अपने देश में स्वच्छता अभियान महात्मा गांधीजी ने शुरू किया था | स्वच्छता का महत्व पुरे देश को बताया था |

स्वच्छता के लिए उपाय

अगर मनुष्य साफ सुथरा रहेगा तो हर एक बिमारी से वंचित रहेगा | मनुष्य साफ सफाई रखकर अपने मन को प्रसन्न रख सकता हैं | सफाई मनुष्य को हर एक प्रकार के रोगों से बचाती हैं | कोई भी इंसान साफ सफाई रखेगा तो पूरा वातावरण प्रदूषित होने से बच सकता हैं |
कुछ साफ सफाई के महत्व को बहुत कम समझते हैं | वो ऐसे जगह पर रहते हैं की जहाँ पर कूड़ा कचरा फैला रहता हैं | मनुष्य को अपने जीवन में परिवर्तन करना चाहिए |

उपसंहार–
हर एक व्यक्ति को स्वच्छ रहना चाहिए और अपने आसपास के वातावरण को भी स्वच्छ और सुंदर बनाके रखना चाहिए | सभी लोगों को मिलकर स्वच्छता के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए | उनको नदी, नाले, समुद्र और तालाब इन सभी चीजों को गंदा होने से रोकना चाहिए |
अगर हम देश में स्वच्छता रखेंगे तभी देश के लोग भी स्वस्थ रहेंगे | इसलिए हम सभी को साफ सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए और उसके महत्व को समझना चाहिए |


3.

प्रदूषण की समस्या और समाधान 

प्रस्तावना-
प्रदूषण का अर्थ–
प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में होनेवाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक दूसरे जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थानों तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुंचाता है।

जीवधारी अपने विकास और व्यवस्थित जीवनक्रम के लिए एक सन्तुलित वातावरण पर निर्भर करते हैं। सन्तुलित वातावरण में प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा में उपस्थित रहते हैं। कभी–कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा कम अथवा अधिक हो जाया करती है या वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। परिणामत: वातावरण दूषित हो जाता है, जो जीवधारियों के लिए किसी–न–किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। इसे ही प्रदूषण कहते हैं।
 
विभिन्न प्रकार के प्रदूषण–प्रदूषण की समस्या का जन्म जनसंख्या की वृद्धि के साथ–साथ हुआ है। विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे ने जल ही नहीं, वायु और पृथ्वी को भी प्रदूषित किया है। भारत जैसे देशों में तो घरेलू कचरे और गन्दे जल की निकासी का प्रश्न ही विकराल रूप से खड़ा हो गया है।
विकसित और विकासशील सभी देशों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण विद्यमान हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

(क) वायु–प्रदूषण–वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। जीवधारी अपनी क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बनाए रखते हैं। अपनी श्वसन प्रक्रिया द्वारा हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहते हैं।
हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है, किन्तु मानव अपनी अज्ञानता और आवश्यकता के नाम पर इस सन्तुलन को बिगाड़ता रहता है। इसे ही वायु–प्रदूषण कहते हैं।
वायु–प्रदूषण का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास सम्बन्धी बहुत–से रोग हो जाते हैं। इनमें फेफड़ों का कैंसर, दमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग सम्मिलित हैं। वायु में विकिरित अनेक धातुओं के कण भी बहुत–से रोग उत्पन्न करते हैं। 
कैडमियम श्वसन–विष का कार्य करता है, जो रक्तदाब बढ़ाकर हृदय सम्बन्धी बहुत–से रोग उत्पन्न कर देता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड से फेफड़ों, हृदय और आँखों के रोग हो जाते हैं। ओजोन नेत्र–रोग, खाँसी उत्पन्न करती है। इसी प्रकार प्रदूषित वायु एग्जीमा तथा मुँहासे आदि अनेक रोग उत्पन्न करती है।

(ख) जल–प्रदूषण–सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। पौधे भी अपना भोजन जल के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक–अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है।


 
'केन्द्रीय जल–स्वास्थ्य इंजीनियरिंग अनुसन्धान संस्थान’ के अनुसार भारत में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों में से 360 व्यक्तियों की मृत्यु आन्त्रशोथ (टायफाइड, पेचिश आदि) से होती है, जिसका कारण अशुद्ध जल है। शहरों में भी शत–प्रतिशत निवासियों के लिए स्वास्थ्यकर पेयजल का प्रबन्ध नहीं है।देश के अनेक शहरों में पेयजल किसी निकटवर्ती नदी से लिया जाता है और प्रायः इसी नदी में शहर के मल–मूत्र और कचरे तथा कारखानों से निकलनेवाले अवशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित कर दिया जाता है, परिणामस्वरूप हमारे देश की अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है।

(ग) रेडियोधर्मी प्रदूषण–परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणु परीक्षण के फलस्वरूप जल, वायु तथा पृथ्वी का प्रदूषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह प्रदूषण आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं, वरन् आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा। परमाणु विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर वे ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बहुत छोटे–छोटे धूल के कणों के रूप में वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।
द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से बहुत–से मनुष्य अपंग हो गए थे। इतना ही नहीं, इस प्रकार के प्रभावित क्षेत्रों की भावी सन्तति भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो गईं।

(घ) ध्वनि–प्रदूषण–अनेक प्रकार के वाहन; जैसे मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर बाजे एवं कारखानों के सायरन व विभिन्न प्रकार की मशीनों आदि से ध्वनि–प्रदूषण उत्पन्न होता है। ध्वनि की तरंगें जीवधारियों की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं।अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य के सुनने की शक्ति का ह्रास होता है और उसे ठीक प्रकार से नींद भी नहीं आती। यहाँ तक कि ध्वनि–प्रदूषण के प्रभावस्वरूप स्नायुतन्त्र पर कभी–कभी इतना दबाव पड़ जाता है कि पागलपन का रोग उत्पन्न हो जाता है।
 
(ङ) रासायनिक प्रदूषण–प्रायः कृषक अधिक पैदावार के लिए कीटनाशक, शाकनाशक और रोगनाशक दवाइयों तथा रसायनों का प्रयोग करते हैं। इनका स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। आधुनिक पेस्टीसाइड्स का अन्धाधुन्ध प्रयोग भी लाभ के स्थान पर हानि ही पहुँचा रहा है।
जब ये रसायन वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों द्वारा सागर में पहुँच जाते हैं तो ये समुद्री जीव–जन्तुओं तथा वनस्पति पर घातक प्रभाव डालते हैं। इतना ही नहीं, किसी–न–किसी रूप में मानव–शरीर भी इनसे प्रभावित होता है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण–
पर्यावरण में होनेवाले प्रदूषण को रोकने व उसके समुचित संरक्षण के लिए विगत कुछ वर्षों से समस्त विश्व में एक नई चेतना उत्पन्न हुई है। औद्योगीकरण से पूर्व यह समस्या इतनी गम्भीर कभी नहीं हुई थी और न इस परिस्थिति की ओर वैज्ञानिकों व अन्य लोगों का उतना ध्यान ही गया था, किन्तु औद्योगीकरण और जनसंख्या दोनों ही की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है।

प्रदूषण को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सरकारी दोनों ही स्तरों पर प्रयास आवश्यक हैं। जल–प्रदूषण के निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 ई० से ‘जल–प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम’ लागू किया है।

इसके अन्तर्गत एक ‘केन्द्रीय बोर्ड’ व सभी प्रदेशों में ‘प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड’ गठित किए गए हैं। इन बोर्डों ने प्रदूषण नियन्त्रण की योजनाएँ तैयार की हैं तथा औद्योगिक कचरे के लिए भी मानक निर्धारित किए हैं।

उद्योगों के कारण उत्पन्न होनेवाले प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया है कि नए उद्योगों को लाइसेंसू दिए जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था तथा पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति भी प्राप्त करनी ग्री। इसी प्रकार उन्हें धुएँ तथा अन्य प्रदूषणों के समुचित ढंग से निष्कासन और उसकी व्यवस्था का भी दायित्व लेना होगा।


 
वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए हैं। इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि नए वनक्षेत्र बनाए जाएँ और जनसामान्य को वृक्षायण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। पर्यावरण के प्रति जागरूकता से ही हम आनेवाले समय में और अधिक अच्छा एवं स्वास्थ्यप्रद जीवन व्यतीत कर सकेंगे और आनेवाली पीढ़ी को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति दिला सकेंगे।

उपसंहार
जैसे–जैसे मनुष्य आपदी वैज्ञानिक शक्तियों का विकास करता जा रहा है, प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। विकसित देशों द्वारा वातावरण का प्रदूषण सबसे अधिक बढ़ रहा है।

यह एक ऐसी समस्या है, जिसे किसी विशिष्ट क्षेत्र या राष्ट्र की सीमाओं में बाँधकर नहीं देखा जा सकता। यह विश्वव्यापी समस्या है, इसलिए सभी राष्ट्रों का संयुक्त प्रयास ही इस समस्या से मुक्ति पाने में सहायक हो सकता है।

4.विद्यार्थी और राजनीति 

या,

छात्र जीवन में राजनीति


 
प्रस्तावना-
आज का युग राजनीतिक जागरण का युग है। आज का इतिहास राष्ट्रीय आन्दोलनों का इतिहास है। ऐसे समय में जन-जन में राजनीति के प्रति आकर्षण हो जाना स्वाभाविक है। आज हम देखते हैं कि खेतों में काम करने वाला किसान, मिलों में काम करने वाला मजदूर, दफ्तर में काम करने वाला बाबू, व्यापार में लगा हुआ व्यापारी, अध्यापन में लगा हुआ अध्यापक आदि सभी राजनीतिज्ञ बन गये हैं, सब में राजनीतिक जागरूकता है।
पान की दुकान पर, किसान की चौपाल पर सब जगह राजनीतिक वाद विवाद होता है। सभी लोग राजनैतिक गतिविधियों में रुचि लेते हैं। भारत जैसे देशों में जहाँ प्रजातन्त्र शासन प्रणाली है, यह राजनैतिक जागरूकता विशेष रूप से मुखर दिखाई पड़ती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि विद्यार्थी भी राजनैतिक दृष्टि से जागरूक समाज का अंग है और इसी कारण वह भी राजनीति से अलग नहीं रह सकता।

अब प्रश्न यह उठता है कि विद्यार्थी का राजनीति में भाग लेना कहाँ तक उचित है? क्या राजनीति में सक्रिय भाग लेता हुआ विद्यार्थी अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है?

विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य
 
विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य विद्यार्थी शब्द का अर्थ होता है-“विद्या एव अर्थ: यस्य सः’ अर्थात विद्या प्राप्त करना ही जिसका प्रयोजन हो, उसे विद्यार्थी कहते हैं। तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी जीवन ज्ञानोपार्जन का समय है। विभिन्न प्रकार के ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करके जीवन का सर्वतोन्मुखी विकास करना ही विद्यार्थी के जीवन का मुख्य उद्देश्य है। यह जीवन का निर्माण का समय है।
विद्यार्थी जीवन में ही शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास करते हुए भावी जीवन की रूपरेखा तैयार की जाती है। यह व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के निर्माण का समय है। साहित्य, संगीत, इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र, दर्शन, आध्यात्मिक-विद्या, भौतिक-विज्ञान आदि अनेक विद्याओं का उपार्जन करते हुए आदर्श नागरिक के रूप में जीवन को सुनियोजित करना ही विद्यार्थी का परम उद्देश्य है।
कहना न होगा कि अन्य विद्याओं के साथ राजनीति शास्त्र का अध्ययन करना भी विद्यार्थी के लिए परम आवश्यक है, तभी वह आगे चलकर सफल नागरिक बन सकता है।


 
विद्यार्थी और राजनीति-
हम कह चुके हैं कि राजनीति शास्त्र का ज्ञान विद्यार्थी के लिए परम आवश्यक है। आज का विद्यार्थी ही कल का नेता और राजनीतिज्ञ होगा। परन्तु ध्यान देने की बात यह है कि यह समय राजनीति तथा अन्य विषयों के ज्ञान प्राप्त करने का है, उनका प्रयोग करने का नहीं। सिद्धान्त को समझने के लिए विज्ञान आदि विषयों के प्रयोग करके प्रयोगशालाओं में विद्यार्थियों को दिखाए अवश्य जाते हैं किन्तु ये प्रयोग सिद्धान्तों के प्रयोगात्मक रूप को समझाने के लिए होते हैं। उन प्रयोगों का उद्देश्य केवल विद्यार्थियों का व्यक्तिगत विकास करना होता है।

तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी को अपने अध्ययन काल में सभी प्रकार का सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। भले ही सिद्धान्तों को समझने के लिए प्रयोगशालाओं में नमूने के लिए उनके प्रयोग करके भी दिखाये जायें। वास्तव में विद्यार्थी प्रयोगशाला में सिद्धान्तों का प्रयोग नहीं करते बल्कि सीखते हैं कि आगे चलकर ये प्रयोग किस प्रकार होंगे।

यही बात राजनीति के सम्बन्ध में भी समझ लेनी चाहिए कि राजनीति का सैद्धान्तिक ज्ञान विद्यार्थी के लिए आवश्यक है। गुरुजनों की सहायता से उसके प्रयोग की विधि जानना भी अनिवार्य है। किन्तु जानने तक ही विद्यार्थी का लक्ष्य होना चाहिए, सक्रिय रूप में भाग लेना उसके लिए अहितकर हो सकता है। जिस दिन उसे राजनीति में भाग लेना इष्ट हो, उस दिन उसे कालेज छोड़ देना चाहिए और विद्यार्थी जीवन से आगे बढ़कर सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में प्रवेश कर लेना चाहिए।

 
विद्यार्थी रहते हुए जो राजनीति में सक्रिय भाग लेते हैं, वे अपने उद्देश्य से पतित होते हैं और अपने पथ से भ्रष्ट होते हैं और उनकी दशा उस आदमी जैसी होती है जो जल्दी से लक्ष्य स्थान पर पहुँचने की इच्छा से स्टेशन पर गाड़ी रुकने से पहले ही चलती रेलगाड़ी के डिब्बे से कूद पड़े।


आज का विद्यार्थी

 यह खेद की बात है और देश का दुर्भाग्य है कि आज का विद्यार्थी अपने ज्ञानार्जन के उद्देश्य को भूलकर राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगा है। इस समय उसका कर्तव्य होता है विद्यालय के अनुशासन का पालन करते हुए ज्ञान का विस्तार करना, उसका अधिकार होता है अध्ययन की सब प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त करना। परन्तु विद्यार्थी अपने कर्तव्यों को भूल कर नागरिक अधिकारों के लिए लड़ना आरम्भ कर देता है।

क्या होगा उस देश का जहाँ के विद्यार्थी, जो कल देश के कर्णधार बनेंगे, अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते? आज जब विद्यार्थियों को सड़कों पर नारेबाजी हो-हल्ला करते देखते हैं, जब अपने गुरुओं एवं किसी प्रशासकीय व्यवस्था के विरुद्ध आन्दोलन करते सुनते हैं और जब समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि विद्यार्थियों ने बस के शीशे तोड़ दिये, सरकारी भवनों में आग लगा दी, पुलिस की मुठभेड़ में तीन मरे, दस घायल इत्यादि, राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुँचाई जाती है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि विद्यार्थी देश का जनाजा निकाल रहा है, अपने पूर्वजों का अपमान कर रहा है, अपनी उन्नति के मार्ग में स्वयं रोड़ा अटका रहा है, देश के विकास में बाधा डाल रहा है।

उपसंहार- छात्र देश के भावी नागरिक हैं, अतः देश की समस्याओं से अछूते नहीं रह सकते। उनका दायित्व है कि वे भले-बुरे की पहचान कर अच्छाई की ओर अग्रसर हों और ऐसा तभी सम्भव हैं जब वे राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका का निर्वाह न करें। छात्र यदि समय रहते सजग न हुए तो उनके अध्ययन में बाधा उत्पन्न होगी और वे अपने मूल लक्ष्य से भटक जाएंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

5-

इंटरनेट वरदान या अभिशाप

प्रस्तावना
‘इंटरनेट’ शब्द को आज सभी लोग जानते हैं। बच्चे हों या बड़े सभी लोग इसका प्रयोग करना अच्छी तरह से जानते हैं। अगर सही अर्थों में देखा जाए तो आज इंटरनेट हम सभी के लिए जीने की वजह बन चुका है। इंटरनेट ने आज हमारी बहुत सी मुश्किलों को आसान कर दिया है जिसकी वजह से हमें हर काम बहुत आसान लगता है।
100 साल पहले किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि इंसान खुद ही किसी ऐसी चीज़ की रचना कर देगा, जिससे दुनिया की तमाम सारी जानकारी एक ही स्थान पर बहुत ही आसानी से मिल जाएगी और दुनिया के लगभग सभी देश आपस में जुड़े होंगे।.
इंटरनेट हमारे आज के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। आज के समय में इंटरनेट दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय नेटवर्क बन चुका है। इंटरनेट को आधुनिक और उच्च तकनीकी विज्ञान का आविष्कार भी माना जाता है। दुनिया भर के सभी नेटवर्क इंटरनेट से जुड़े हुए हैं इस तरह से हम इसे नेटवर्कों का नेटवर्क भी कह सकते हैं।

इंटरनेट का अर्थ

इंटरनेट आई. टी. के क्षेत्र में क्रांति लाने वाला विश्व का सबसे बलशाली और सबसे बड़ा नेटवर्क है। इसे संक्षिप्त में नेट भी कहा जाता है क्योंकि इंटरनेट एक दूसरे से जुड़े बहुत सारे कम्प्यूटरों का जाल है जो कि उपग्रहों, केवल तंतु प्रणालियों, एल.ए.एन, और वी.ए.एन प्रणालियों तथा टेलीफोनों के जरिए सम्पूर्ण विश्व के करोड़ों कम्प्यूटर्स एवं उपनेटवर्क्स को आपस में जोड़ता है।
दूसरे शब्दों में कहे तो संसाधनों को साँझा करने अथवा सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए टी.सी.पी/आई.पी प्रोटोकॉल के द्वारा दो अथवा कई कम्प्यूटर्स को एक साथ जोड़कर अंत:सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया को इंटरनेट कहते हैं तथा इनके बीच की साँझा करने की प्रकिया को कंप्यूटर नेटवर्क्स कहते है। कंप्यूटर नेटवर्क्स के अनेकों रूप हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख है एल.ए.एन, इंटरनेट एवं इंट्रानेट।

इंटरनेट के लाभ

(i) इंटरनेट की सहायता से हम किसी भी प्रकार की जानकारी और किसी भी सवाल का हल कुछ ही पलों में प्राप्त कर सकते हैं।
(ii) इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में बैठे किसी भी व्यक्ति से बिना शुल्क के घंटों तक बातें कर सकते हैं।
(iii) इंटरनेट एक वर्ल्ड वाइड वेब है, जिसकी सहायता से हम दुनिया के किसी भी कोने में अपनी मेल या जरूरी दस्तावेजों को पलक झपकते ही भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं।
(iv) इंटरनेट मनोरंजन का एक बहुत अच्छा माध्यम है। इंटरनेट के माध्यम से संगीत, गेम्स, फिल्म आदि को बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के डाऊनलोड कर सकते हैं और अपनी बोरियत को दूर कर सकते हैं।
(v) इंटरनेट की सहायता से बिजली, पानी और टेलीफोन के बिल का भुगतान घर पर बैठे बिना किसी परेशानी के और बिना लंबी लाईनों में खड़े हुए किया जा सकता है। इंटरनेट से हमें घर बैठे रेलवे टिकेट बुकिंग, होटल रिसर्वेशन, ऑनलाइन शौपिंग, ऑनलाइन पढाई, ऑनलाइन बैंकिंग, नौकरी आदि सुविधाएँ मिल जाती हैं।
(vi) इंटरनेट के माध्यम से होने वाले वित्तीय एवं वाणिज्यिक प्रयोगों ने बाजार की अभिधारणाओं को एक नई रूप रेखा प्रदान की है।
(vii) सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से हम नए-नए दोस्त बना सकते हैं जिससे हमें बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है।
(viii) सोशल नेवर्किंग साइट्स के माध्यम से हम किसी भी खबर को एक ही पल में एक ही शेयर से बहुत सारे लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
(ix) जो लोग किसी समस्या की वजह से रेगुलर क्लास लगाकर नहीं पढ़ सकते उनके लिए इंटरनेट क्रांतिकारी बदलाव लाया है। आज के समय में ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से कोई भी व्यक्ति घर पर ही पढकर परीक्षा दे सकता है।
(x) सुयोग्य वर-वधु की तलाश को भी इंटरनेट ने आसान कर दिया है। इंटरनेट पर ऐसी बहुत सी मैट्रीमोनी साइट्स है जिन पर आप अपनी पसंद के जीवन-साथी की तलाश कर सकते हैं।
(xi) जो लोग पार्ट टाइम जॉब करके पैसा कमाना चाहते हैं उनके लिए भी इंटरनेट एक वरदान के समान है। आज के समय में बहुत सारी ऑनलाइन जॉब्स उपलब्ध हैं जिससे घर बैठे ही पैसा कमाया जा सकता है।
(xii) कुकिंग सीखने के लिए भी अब कोई कुकिंग क्लासेज में पैसा बर्बाद करने की जरूरत नहीं है। आपको जो भी सीखना हो वो आप यू-ट्यूब पर लाइव देखकर सीख सकते हैं।
(xiii) इंटरनेट सेवा के माध्यम से अब ई कॉमर्स और ई बाजार कर बढ़ते चलन ने सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के बीच की दूरी को मिटा दिया है।
(xiv) इंटरनेट एक-दूसरे से जोड़ने में मदद करता है। आज के समय में इंटरनेट पर ऐसे बहुत से माध्यम मौजूद हैं जिनकी सहायता से हम एक-दूसरे से जुड़े रह सकते हैं। इससे हमें किसी के दूर होने का अहसास नहीं होता है।
(xv) इंटरनेट हमारी पढाई में भी बहुत मदद करता है। आज के समय में बाजार में किताबें बहुत ही महंगी आती हैं और प्रत्येक व्यक्ति उन्हें खरीद नहीं सकता है। आप उन्हें इंटरनेट की सहायता से पढ़ सकते हैं और डाऊनलोड भी कर सकते हैं।

इंटरनेट की हानियाँ

इंटरनेट का उपयोग लेना लाभप्रद है लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग करना नुकसानदायक भी हो सकता है। क्योंकि जहाँ लाभ होता है वहाँ हानि भी छुपी होती है। लाभ और हानि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
(i) इंटरनेट पर सुविधा की वजह से व्यक्तिगत जानकारी की चोरी बढ़ गई है, जैसे- क्रेडिट कार्ड नंबर, बैंक कार्ड नंबर आदि।
(ii) आज के समय में इंटरनेट का प्रयोग जासूसों के द्वारा देश की सुरक्षा व्यवस्था को भेदने के लिए किया जाने लगा है जो कि सुरक्षा दृष्टि से खतरनाक है। आज के समय में गोपनीय दस्तावेजों की चोरी भी होने लगी है।
(iii) गोपनीय दस्तावेजों की चोरी के लिए स्पामिंग का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक अवांछनीय ई-मेल होती है जिसके माध्यम से गोपनीय दस्तावेजों की चोरी की जाती है।
(iv) इंटरनेट से रेलवे टिकेट बुकिंग, होटल रिसर्वेशन, ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन बैंकिंग, नौकरी की खोज आदि सुविधाएँ घर बैठे ही मिल जाती हैं लेकिन इससे पर्सनल जानकारी जैसे आपका नाम, पता और फोन नंबर का गलत उपयोग होने का खतरा भी बना रहता है।
(v) इंटरनेट के बढ़ते उपयोग की वजह से कैंसर की बीमारी होने लगी है। इंटरनेट के चलन की वजह से कुछ असामाजिक तत्व दूसरों के कंप्यूटर की कार्य प्रणाली को नुकसान पहुँचाने के लिए वायरस भी भेजते है।
(vi) जो व्यक्ति एक बार इंटरनेट का प्रयोग कर लेता है, उसे इसकी आदत हो जाती है और फिर उसका एक दिन भी इंटरनेट के बिना गुजारना मुश्किल हो जाता है।
(vii) इंटरनेट पर कुछ साईट पर अत्यधिक मात्रा में अश्लील सामग्री विद्यमान है। जिसका बुरा प्रभाव सबसे अधिक बच्चों पर और युवा पीढ़ी पर पड़ा है।
(viii) इन साइट्स को देखकर लोग गलत रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं और अपराध की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। इस प्रकार की अश्लील सामग्री इंटरनेट पर डालने वाले लोग बहुत अच्छी आमदनी कमा रहे हैं। यह हमारे समाज के लिए जहर की तरह है जिसके खतरनाक परिणामों को हम हर रोज़ देखते हैं। इसलिए इस प्रकार की सामग्री इंटरनेट पर डालने से रोकने के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए।
(ix) इंटरनेट की वजह से सोशल साइट्स का चलन बढ़ गया है। अब लोग परिवार में बैठकर बातें करने की जगह पर अकेले रहना पसंद करते हैं। क्योंकि सोशल साइट्स पर ही उनकी एक अलग दुनिया बन गई है जिससे परिवार बिखरने लगे हैं।
(x) इंटरनेट पर तरह तरह की जानकारियां उपलब्ध रहती है जो कि अगर बच्चे देख, सुन और पढ़ ले तो उनके लिए हानिकारक हो सकती है।
(xi) आजकल प्रत्येक व्यक्ति के पर्सनल और प्रोफेशनल दस्तावेज़ इंटरनेट पर सेव रहते है, इसलिए इनके चोरी होने का खतरा भी बना रहता है क्योंकि इंटरनेट पर कई प्रकार की गलतियाँ होती रहती है जिससे या तो पासवर्ड लीक हो जाता है या फिर कंप्यूटर विशेषज्ञ द्वारा आपका
कंप्यूटर हैक करके जानकारी दे दी जाती है, जिससे आपका भविष्य खराब हो सकता है।
(xii) इंटरनेट के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभाव भी होने लगते है इसलिए हमेशा इंटरनेट को जरूरत के समय ही इस्तेमाल करना चाहिए।
(xiii) वर्तमान में ज्यादातर बच्चे और युवा लोग इंटरनेट पर ही समय व्यतीत करते हैं। आप अपने आसपास नजर घुमा कर देखिए ,बस स्टैंड पर ,दुकान पर ,घर पर, खेल के मैदान में सभी जगह लोग मोबाइलों में इंटरनेट चलाते दिख जाएँगे। इससे उनका जरूरी कार्य रुक जाता है और समय का दुरुपयोग होता है।
(xiv) इंटरनेट का अत्यधिक इस्तेमाल करने से बच्चों में चिड़चिड़ापन होने लग जाता है क्योंकि इंटरनेट पर कई हिंसक गेम, वीडियो इत्यादि सामग्री उपलब्ध है जोकि चिड़चिड़ापन को बढ़ावा देती है।
(xv) इंटरनेट के माध्यम से कई गैर-कानूनी विधियां की
जाती हैं जैसे गैर कानूनी माल की सप्लाई के लिए जानकारी देना, आतंकवादी गतिविधियों बढ़ाने के लिए आतंकवादी इंटरनेट का इस्तेमाल ही करते है और भी अनेक कार्य है जो कि गैर-कानूनी है और इंटरनेट पर छुपा कर किए जाते है।

उपसंहार

इंटरनेट आज की दुनिया में हर किसी के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इंटरनेट जानकारियों का समूह है जो दुनिया के सभी कंप्यूटरों से जानकारी प्राप्त करके हमें सर्च इंजन और अन्य वेबसाइटों की सहायता से सूचनाएँ प्रदान करता है। आजकल सरकारी, गैर-सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों, हॉस्पिटलों, बैंक, छोटे से लेकर बड़े व्यापार में इंटरनेट का प्रयोग किया जाता है।
इंटरनेट के कारण दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को इससे लाभ पहुंचा है, लेकिन आज भी हमारे देश के कई ऐसे स्थान हैं जहाँ पर इंटरनेट पहुँच नहीं पाया है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति तक इंटरनेट पहुँचना चाहिए। इंटरनेट का उपयोग मात्र मनोरंजन के लिए करना सही नहीं है क्योंकि इंटरनेट से हम कई प्रकार के ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और विश्व को एक नए स्तर पर ले जा सकते हैं।
इंटरनेट का उपयोग राष्ट्र के विकास के लिए करना चाहिए ना कि इसे बेकार की चीजों में उपयोग करके अपने समय को बर्बाद करना चाहिए। इंटरनेट विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार है। इस के आविष्कार के बाद विज्ञान को जैसे पंख ही लग गए है। इससे दुनिया के हर क्षेत्र में विस्तार हुआ है इंटरनेट का उपयोग अगर सही काम के लिए किया जाए तो यह बहुत ही अच्छा है।
लेकिन इसका दुरुपयोग किया जाए तो इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते है इसलिए इंटरनेट को हमेशा सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करना चाहिए। इंटरनेट की सहायता से हम लोग विश्व की किसी प्रकार की भी जानकारी मात्र चंद सेकेंडों में प्राप्त कर सकते हैं। वास्तव में इंटरनेट ने मानव इतिहास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का कार्य किया है|


6-

शिक्षा में खेलकूद का महत्व 

प्रस्तावना: शिक्षा हमारे जीवन के सर्वोत्कृष्ट विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. व्यक्ति को एक सच्चे मानव के रूप में स्थापित कर मानवता के गुणों को परिस्कृत करना शिक्षा का उद्देश्य होता हैं. शिक्षा ही हमारे मष्तिष्क का विकास करती हैं तथा हमें स्वस्थ बनाती हैं. जीवन की सार्थकता मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं चारित्रिक विकास में निहित हैं जिसे शिक्षा सम्भव बनाती हैं.

बहुत पुरानी कहावत हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता हैं. शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में आहार, खेलकूद एवं व्यायाम सबसे महत्वपूर्ण हैं. इसी कारण शिक्षा के साथ खेलकूद को उसके एक अंग के रूप में पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाया जाता हैं. हमारे देश के प्रत्येक विद्यालय में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता हैं, अलग से शारीरिक शिक्षक नियुक्त किये जाते हैं.
हमारे जीवन में खेलों का बड़ा महत्व रहा हैं. प्राचीन काल से ही खेल चलन में थे. सम्भवतः आदि काल में मानव ने समय व्यतीत करने व मनोरंजन के उद्देश्य से खेलों की खोज की होगी. उस समय मनोरंजन के बेहद सिमित साधन हुआ करते थे. शुरू शुरू में खेलकूद महज मनोरंजन की पूर्ति का साधन था, कालान्तर में यह हमारी जीवन शैली का एक अंग बन गया. समय बीतने के साथ ही खेलों के स्वरूप बदलते गये नयें नयें खेलों की खोज हुई और आज हम खेलकूद की प्रतियोगिता के जमाने में जी रहे हैं.

खेल खासकर छोटी उम्रः के बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. खेलकूद के आयोजन से न केवल शारीरिक व्यायाम होता हैं बल्कि मानव को मानव से जोड़ने का काम भी करते हैं. आज के बच्चों के लिए अनगिनत प्रकार के खेल हैं. कुछ घर की चारदीवारी में खेले जाते हैं तो कुछ खेल मैदानों में. इन्टरनेट और मोबाइल फोन के आविष्कार ने ऑनलाइन गेम्स की परिपाटी को शुरू कर दिया हैं जो बेहद लोकप्रिय हैं.

खेलकूद शिक्षा में अच्छे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अति उपयोगी हैं ही साथ ही कई विद्यार्थी जो खेलों में अत्य  धिक रूचि रखते हैं वे इसमें अपना करियर भी बना सकते हैं. देश के लिए विदेशों में खेलना बड़े गर्व की बात होती हैं. हमारे गाँवों के कई बच्चें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का तिरंगा लहरा रहे हैं. क्रिकेट का ही उदाहरण ले लीजिए कई बड़े स्टार खिलाडियों ने न केवल मान सम्मान, धन दौलत कमाई बल्कि इन सबसे बढ़कर विश्व भर में भारत की शान को बढ़ाया हैं.

वैसे हम बालक को जन्म से ही देखे तो वह खेलकूद के साथ सहज रूप से सीखता जाता हैं. घर के आंगन में ही उसकी उछल कूद से ही आरम्भिक शिक्षा शुरू हो जाती हैं. वह अपने माता-पिता मित्रों तथा परिवेश को समझने लगता हैं. छोटी उम्रः के बच्चों को खेल विधियों की मदद से पढाया जाता हैं. खेल खेल में शिक्षा शुरू हो जाती हैं. उनके खिलौने से कुछ नया करने और भौतिक चीजों को समझने के दृष्टिकोण और उसमें सामजस्य बिठाने की क्षमता का विकास हो जाता हैं.

खेलकूद में रूचि रखने वाले बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से तन्दुरस्त बनते हैं. उसकी शारीरिक शक्ति में वृद्धि होने लगती हैं. मांसपेशियों का समुचित विकास होने लगता हैं. चुस्ती और फुर्तीलापन भी आता हैं. साथ ही बालक जब खेल मैदान में खेलता हैं तो कई बार उनके चेहरे पर झलकती ख़ुशी, हंसी मुस्कान उसे तनाव से भी बचाएं रखती हैं. वह जीवन में भी नियम कायदों को मानने के लिए स्व प्रेरित होता हैं. अनुशासन की नींव खेलों के माध्यम से ही बच्चों में रखी जा सकती हैं.
अन्य कई मानवीय गुण जैसे सहयोग, मदद, स्व नियंत्रण, आत्मविश्वास, बलिदान, गलतियों में सुधार आदि का विकास होता जाता हैं. वह संकीर्ण मानसिकता से हटकर खुले दिमाग से सोचने लगता हैं. सिद्धांत आधारित खेलों का प्रत्यक्ष प्रभाव उनके जीवन में भी देखने को मिलता हैं. जो बालक थके हारे और हमेशा मायूस नजर आते हैं वे ठीक से अध्ययन में भी मन नहीं लगा पाते हैं. ऐसे बच्चों को खेलकूद के प्रति आकर्षित करके बड़ा बदलाव किया जा सकता हैं.

खेलों की आवश्यकता-

शिक्षा को जीवनोपयोगी और रोचक बनाने के लिए इसमें खेलकूद की महत्वपूर्ण भूमिका हैं. जो कुछ ज्ञान हम किताबों में सीखते हैं उन्हें खेल के मैदान में जीवन में अपनाने की कोशिश करता हैं. खेल से मस्तिष्क और बुद्धि का तीव्र विकास होता हैं. हर समय पढ़ते रहने से तनाव भी हावी होने लगता हैं, ऐसे में खेलकूद ही उसे तनाव मुक्त करती हैं. खेलों के माध्यम से हम अपनी गलतियों तथा मजबूत पक्ष को भी समझने लगते हैं तथा धीरे धीरे उनमें सुधार की कोशिश भी करता हैं. उनका यह गुण शिक्षा भी बेहद कारगर साबित होता हैं. खेलकूद और शिक्षा को एक दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता हैं. बच्चों को खेलकूद की तरफ अग्रसर करते रहना चाहिए जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और जीवन भर सीखने की गति को बरकरार रख सके.

खेलों के लाभ-
खेलकूद में भाग लेने से बालक की एकाग्र चित्त क्षमता में वृद्धि होती हैं. अपने साथियों के साथ मित्रवत भाईचारे का व्यवहार और सद्भावना के गुण खेल के मैदान में अपनाता हैं. जीवन में समय के सदुपयोग की सीख भी बच्चें खेलकूद के जरिये सीखते हैं. अनुशासन, प्रतिस्पर्धा और हार के गम को झेलना और ख़ुशी को स्वीकार करने की क्षमता का विकास होता हैं. पढाई के साथ साथ खेलकूद देश के भविष्य को स्वस्थ और बहुत मजबूत बनाता हैं|




7-
व्यायाम का महत्व

प्रस्तावना
आज के युग में सारा काम मशीन से ही हो जाता है, जिस कारण से मानव दिन-प्रतिदिन आलसी होता जा रहा है। यही आलसपन की वजह से लोग कई बीमारियों का शिकार हो रहे है। मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन आलसपन होता है, आलस आने से आपका मन किसी भी काम में नहीं लगता है। सिर्फ दिनभर खाना, बैठे रहना, आलसी रहना और फिर धीरे – धीरे आपका शरीर कई बीमारियों से घिर जाता है।

अपने जीवन की सुरक्षा का ध्यान रखना हर व्यक्ति का अपना कर्तव्य होता है। अपने खानपान और शरीर की सुरक्षा के लिये हर तरह के व्यायाम करें ताकि बीमारियों से अपने शरीर को सुरक्षित रख सके। व्यायाम करने से मानसिक तनाव कम होता है और हमारे शरीर के किसी अंग मे दर्द हो तो व्यायाम करने से दर्द दूर हो जाता है। व्यायाम करने से मांस पेशीयाँ मजबूत होती है। किसी खुले स्थान में जाकर व्यायाम करने से ऑक्सीजन फेफड़े तक पहुँचता है।

मानव शरीर एक जटिल और नाजुक मशीन की तरह है, जिसमें कई छोटे-छोटे हिस्से होते हैं। एक हिस्से में जरा सी खराबी से मशीन खराब हो जाती है। इसी प्रकार यदि ऐसी स्थिति मनुष्य के शरीर में उत्पन्न हो जाए तो यह भी शरीर की खराबी का कारण बनती है। व्यायाम स्वस्थ जीवन शैली में से एक है जो इष्टतम स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में योगदान देता है। जो लोग नियमित रूप से व्यायाम करते हैं वे मृत्यु के जोखिम को कम कर सकते हैं। व्यायाम करने से निष्क्रिय लोगों की तुलना में सक्रिय लोगों की जीवन प्रत्याशा दो साल बढ़ जाती है। नियमित व्यायाम और अच्छी शारीरिक फिटनेस कई तरह से जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है। शारीरिक फिटनेस और व्यायाम हमें अच्छा दिखने, अच्छा महसूस करने और जीवन का आनंद लेने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, व्यायाम ख़ाली समय बिताने का एक सुखद तरीका प्रदान करता है।

व्यायाम करने का सही स्थान और समय
व्यायाम करने के लिए सही जगह खुले वातावरण और स्वच्छ हवा वाला स्थान होना चाहिए। व्यायाम करने के लिये सही खुली जगह जैसे कि छत, पार्क, किसी छाया वाले पेड़ आदि जगहों मे व्यायाम करना चाहिये, जिस से हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है। ज्यादातर पेड़-पौधे के आस-पास रहकर व्यायाम करने से हमें स्वच्छ वायु मिलती है और हमारा मन भी स्वच्छ रहता है।
कसरत करने के लिए कोई सही समय नहीं होता है लेकिन फिर भी व्यायाम करने का समय सुबह और शाम का होता है। आप चाहे तो सुबह 1-2 घंटे और शाम को 1-2 घंटे व्यायाम कर सकते है। सुबह का समय व्यायाम करने का सबसे अच्छा समय होता है क्योंकि सुबह की ताजी हवा और अनुकूल वातावरण रहता है।
सुबह व्यायाम करने का सही समय सुबह 4 बजे से लेकर 7 बजे तक समय में 1 घंटे टाइम निकालकर रोज़ व्यायाम करें ताकि आपकी बॉडी बिल्कुल फ्रेश और तंदुरुस्त रहे।

व्यायाम करने से लाभ
व्यायाम करने से कई लाभ होते है, जो इस प्रकार होते है।
1-व्यायाम करना हमारे शरीर के लिए वैसे ही जरूरी होता है जैसे कि हमारे शरीर के लिये भोजन करना जरूरी होता है। अगर एक दिन भोजन नहीं करते तो बीमार हो जाते है, उसी तरह रोजाना व्यायाम करना हमारे शरीर के लिए जरूरी होता है।
2-प्रतिदिन व्यायाम करने से हमे डॉक्टर की लिखी गई दवाइयों को खाने की नौबत ही ना आएगी। अगर हम अच्छे से व्यायाम करेंगे तो किसी बीमारी के शिकार नहीं होंगे।
3-शारीरिक, मानसिक तनाव, डिप्रेशन जैसी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिये हर रोज़ व्यायाम करना आवश्यक होता है।
4-जो लोग हार्ट के मरीज होते है, उनकी बॉडी में रक्त जम जाता है और वह डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते लेकिन डॉक्टर दवाई देता है और दवाई के साथ साथ व्यायाम करने की सलाह देता है। ताकि व्यायाम करने से कोलेस्टॉल को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।
5-कुछ बुजुर्ग के हड्डियों में खिंचाव आ जाता है, जैसे कि उनके गर्दन और कमर खिंचाव आने से दर्द बना रहता है तो अगर रोज़ 1 घंटे व्यायाम करें तो धीरे-धीरे उनकी हड्डियों का दर्द ठीक हो जायेगा।
6-व्यायाम करने से हमारे शरीर की थकान दूर होती है और व्यायाम हमारे शरीर को तंदुरुस्त और स्वच्छ बनाये रखने में मदद करता है। सारी बीमारियों को हम से दूर रखता है।
7-कसरत से मांसपेशिया मजबूत होती ही है और हमारे शरीर मे ब्लड का संचालन सही मात्रा में होता है, जो हमारे जीवन के लिए लाभदायक होता है।

निष्कर्ष
व्यक्ति, समाज, समुदाय और राष्ट्र को समृद्ध बनाए रखने में व्यायाम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि किसी देश के नागरिक स्वस्थ हैं तो देश जीवन के हर क्षेत्र में ऊंचाइयों को छूता है। देश की स्वस्थ पीढ़ी विभिन्न क्षेत्रों में उच्चतम अंक प्राप्त कर सकती है और इस तरह अपने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति और गौरव हासिल करने में सक्षम बनाती है। पहला कदम हमेशा सबसे कठिन होता है। हालाँकि, अगर हम इसे दूर कर सकते हैं, और लगातार 21 दिनों तक व्यायाम कर सकते हैं, तो यह स्वस्थ जीवन के लिए एक नई शुरुआत होगी।

अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करें-

1-Newspaper reading has become an essential part of our life. As we get up in the morning, we wait eagerly for the daily paper. Twentieth century was an age of newspapers.
Press is the third eye of man. Through it we gather information about different countries
(parts) of the world.

हिन्दी अनुवाद - अखबार पढ़ना हमारे जीवन का आवश्यक अंग हो गया है। जैसे ही हम सुबह उठते हैं, बड़ी उत्सुकता से दैनिक अखबार की प्रतीक्षा करते हैं। बीसवीं सदी अखबारों का युग था। प्रेस मनुष्य की तीसरी आँख है। इससे हम दुनियाँ के विभिन्न देशों की सूचनाएँ प्राप्त करते हैं।


2-

हिन्दी अनुवाद - सच्चा मित्र वही होता है जो जीवनपर्यन्त हमारे साथ सत्यतापूर्वक रहता है। वह हमारे सुख और दुःख में सहभागी रहता है। वह कठिन परिस्थियों में भी हमारा साथ देता है और सदा हमारी सहायता करने को तत्पर रहता है। वह अपने मित्र की रक्षा करने के लिए प्रत्येक जोखिम उठाने को तैयार रहता है। वह मनुष्य कितना भाग्यशाली होगा जिसके पास ऐसा सच्चा मित्र है। मित्रता जीवन पर्यन्त चल सकती है यदि इसमें मानसिक रूप से समानता हो।

3-
हिन्दी अनुवाद - स्त्री शिक्षा एक नहीं अनेकों कारणों से आवश्यक है। माताओं के रूप में, स्त्रियाँ बच्चों के
चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिक्षित स्त्रियां अपने बच्चों को सही रूप में प्रशिक्षित कर सकती
हैं। सुखी परिवार के निर्माण में स्त्रियों का योगदान महान है। एक सुसंस्कृत गृहिणी परिवार की सम्पत्ति है।
4-

हिन्दी में अनुवाद- शिक्षा द्वारा, बालिका शिशु बड़ी होगी और एक अच्छी माता बनेगी वह अपने बच्चों के महत्त्व को समझ सकने में सक्षम होगी। क्योंकि शिक्षित बनकर, वह अपने बच्चों का उचित मार्गदर्शन कर सकेगी।

5-

हिन्दी में अनुवाद - विक्रमशिला विश्वविद्यालय पाथरघाट पहाड़ियों के निकट आज के राजगिरि कस्बे के पास स्थित है। यह धर्मपाल के द्वारा स्थापित किया गया था यहाँ पर विद्यार्थियों को विविध विषय पढ़ाये जाते थे। वहाँ पर कम से कम 108 ख्यातिप्राप्त विद्वान शिक्षक के रूप में कार्य करते थे। विश्वविद्यालय की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। दूर देशों के विद्यार्थी जैसे तिब्बत के यहाँ अध्ययन के लिए आते थे।


6-Honesty is a great virtue. If you do not deceive others, if you do not tell a lie, if you are just and fair in your dealings with others, you are an honest man. Honesty is the best policy. An honest man is respected by all. No one can prosper in life if he is not honest.
हिन्दी में अनुवाद - ईमानदारी एक बड़ा गुण है । अगर आप किसी दूसरे को धोखा नहीं देते, अगर झूठ नहीं बोलते, अगर आप दूसरों के प्रति अपने व्यवहार में पूर्ण रूप से न्याय-संगत हैं, तब आप ईमानदार व्यक्ति हैं। ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। एक ईमानदार व्यक्ति सबसे सम्मानित होता है। ईमानदारी के बिना व्यक्ति जीवन में समृद्धि नहीं प्राप्त कर सकता।

7-Every free country has a flag of its own. It is the symbol of independence, unity,
honour. And dishonour to the national flag is considered to be a dishonour to the nation. The people of a country can sacrifice even their lives for the honour of their national flag. 
हिन्दी में अनुवाद - प्रत्येक स्वतंत्र देश का अपना ध्वज होता है। यह स्वतंत्रता, एकता और सम्मान का प्रतीक है। राष्ट्रीय ध्वज का किसी प्रकार का अपमान राष्ट्र का अपमान माना जाता है। देशवासी राष्ट्रध्वज के सम्मान में अपना सर्वस्व यहाँ तक कि अपने जीवन का बलिदान कर सकते हैं।

8-Games and sports are an essential part of education. Education is incomplete without them. Every boy or girl should take part in one game or the other. Sports strengthen our body and keep us healthy. Those who keep away from sports often remain sick.
हिन्दी में अनुवाद - खेल-कूद शिक्षा के आवश्यक अंग हैं । बिना इसके शिक्षा अपूर्ण है। प्रत्येक लड़के या लड़की को एक या दूसरे खेल में भाग लेना चाहिए। खेल हमारे शरीर को हृष्ठ-पुष्ठ व स्वस्थ रखता है। जो खेल कूद से दूर रहते हैं, वे प्रायः बीमार रहते हैं।

9)-It is very difficult to get rid of bad habits. So we should be very careful that we do not get into bad habits in our boyhood. Idleness is one such bad habit. Every boy and girl should be diligent.They should shun idleness as poison. It should be their duty to obey the superiors and carry out their orders.

हिन्दी में अनुवाद -: बुरी आदतों से छुटकारा पाना बड़ा कठिन है। इसलिए हमें बहुत सावधान होना चाहिए कि हम बचपन में बुरी आदतों में न पड़ जायँ । आलसीपन इसी तरह की एक बुरी आदत है। प्रत्येक बालक और बालिका को मेहनती होना चाहिए। वे आलस्य को विष समझकर त्याग दें। यह उनका कर्त्तव्य है कि वे अपने से बड़ों की आज्ञा मानें और उनके आदेशों का पालन करें (आदेशों को पूरा करें ।)

*(10) -Sardar Patel was a strict man. People call him the 'Iron Man of India'. He was, no doubt, an iron man. In the sense that he was an efficient administrator. But as a man to those who had the good fortune of coming into close contact with him, he was kind and gentle. At times he even be came emotional when his personal friends and followers were concerned.

हिन्दी में अनुवाद -सरदार पटेल एक दृढ़ व्यक्ति थे। लोग उन्हें 'भारत का लौह पुरुष' कहते हैं। निस्सन्देह वे एक लौह पुरुष थे। इस अर्थ में कि वे एक सक्षम प्रशासक थे। किन्तु जो उनके अतिनिकट आने में सौभाग्यशाली रहे, उनके लिए एक व्यक्ति के रूप में वे दयालु और भद्र थे। अपने व्यक्तिगत मित्रों और अनुयायियों के संदर्भ में वे अक्सर भावुक हो जाया करते थे। 

 11) -Food is the chief of essential materials which the body needs for its well being. Good food is indispensable for health at all stages of life and for satisfactory growth during infancy, childhood, adolescence and adulthood. Wholesome food is adequate. Quantities are the key to good health.

हिन्दी अनुवाद- भोजन आवश्यक पदार्थों में प्रमुख है जिसे शरीर अपने कल्याण के लिए जरूरी समझता है। जीवन की सभी अवस्थाओं में शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और प्रौढ़ावस्था के संतोषजनक विकास के लिए अच्छा भोजन स्वास्थ्य के लिए अपरिहार्य है। स्वास्थ्यकर भोजन पर्याप्त होता है। भोजन की मात्रा अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। 

(12) Music rouses various feelings and sentiments in us. It purifies the soul and gives us divine pleasure. When we hear a sweet and melodious song, we forget all our sorrows, anxieties and evil thoughts. A religious song fills our mind with a feeling of holiness. We are greatly inspired when we hear patriotic songs. Thus music is a great find to us. 

हिन्दी अनुवाद--संगीत हममें बहुत-सी अनुभूतियाँ और भावनाएँ जागृत करता है। यह आत्मा को शुद्ध करता है और हमें दैवीय आनन्द प्रदान करता है। जब हम एक मधुर और सुरीला गीत सुनते हैं, तब हम अपने सारे दुःखों, चिंताओं और बुरे विचारों को भूल जाते हैं। एक धार्मिक गीत हमारे मन को पवित्रता की अनुभूति से भर देता है। जब हम देशभक्तिपूर्ण गीत सुनते हैं तो हमलोग अत्यधिक प्रेरित होते हैं।  इस प्रकार संगीत हमारे लिए एक महान खोज है।

13)Once upon a time, two women, quarreling about the claim of a child, went to the judge for justice.The judge heard the women calmly, then called the executioner and ordered, "cut the child into two halves and give one half to each of the women." Hearing the verdict, one of the women remained silent but the other women began to weep.  Seeing this the judge changed the verdict and gave the child to the weeping woman, but the other woman was awarded punishment.Thus the greedy woman was paid in her own coin.

हिन्दी अनुवाद-एक बार (या किसी समय) दो स्त्रियाँ एक बच्चे पर अधिकार के लिए झगड़ती हुई न्याय के लिए न्यायाधीश के पास गयीं। न्यायाधीश ने (दोनों) स्त्रियों की बात शांतिपूर्वक सुनी, इसके बाद जल्लाद को बुलाया और आदेश दिया, “बच्चे को दो टुकड़ों में काट दो और आधा आधा प्रत्येक स्त्री को दे दो। इस निर्णय को सुनकर एक स्त्री मौन रही, परन्तु दूसरी स्त्री ने रोना आरंभ कर दिया। यह देखकर न्यायाधीश ने अपना निर्णय बदल दिया और बच्चा रोती हुई स्त्री को दे दिया। लेकिन दूसरी स्त्री को दण्ड दिया गया।  इस प्रकार लालची स्त्री अपनी ही शैली में मात खायी।



* (14) Time is everything" Said Napoleon the great. It is more valuable than money. It is worthier than health. It is greater than honour. We get all these things if we have time and if we utilise it proper. Time and tide wait for none. (मा०प०: 2013)

हिन्दी अनुवाद-"समय सबकुछ है।” नेपोलियन महान ने कहा। यह धन से अधिक कीमती है। यह स्वास्थ्य की अपेक्षा अधिक योग्य/उत्तम है। यह सम्मान से महान है। यदि हमारे पास समय है तथा यदि हम इसका ठीक उपयोग करें तो हम ये सभी वस्तुएँ प्राप्त करते हैं। समय और ज्वार-भाटा किसी का इन्तज़ार नहीं करता।


*(15) The relation between man and trees is as old as the history of mankind itself. They are useful to us in many ways. They give cool shade to the tired travellers. Birds build nests in them. They bring about rainfall and thus play a key role in the change of climatic conditions. They prevent soil erosion by binding the soil with their roots. (मॉडल प्रश्न) [मा० प० 2017]  

हिन्दी अनुवाद- मानव व वृक्ष का सम्बन्ध मानव इतिहास जैसा ही पुरातन है। वे कई मायनों में हमारे लिए उपयोगी हैं।  वे थके यात्रियों को ठण्डी छाया प्रदान करते हैं। चिड़ियाँ उनमें अपने घोंसले बनाती हैं।वे वर्षा लाते हैं और जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपनी जड़ों से मिट्टी को जकड़ कर मिट्टी कटाव को रोकते हैं।

(16)A man said to be healthy when he has got no bodily pain or disease. When a man is in the best of spirits, and has got enough vigour and strength he is called healthy. Health is the most important thing in life.

हिन्दी अनुवाद-


(17)Education is very important in our life, because without education we are blind. Light of knlowldge removes the darkness of illiteracy. It developes the intelligency of man.

हिन्दी अनुवाद-


(18)The teachers are regarded as the back bone of the society. They build the future citizens of country. They love students as their children. The teachers always encourage and inspire us to be good and great in life.

हिन्दी अनुवाद-

(19)We should try to prosper in life. But we should not give up our sense of morality, if we compromise, with dishonesty, it would be difficult for us to respect ourselves.So, it is important to choose the right way.

हिन्दी अनुवाद-


(20)Wealth is no doubt necessary for happiness in life. But it has a tendency to concentrate in the hands of a few. The results is the rich become richer and the poor poorer. This is certainly a misuse of wealth.

हिन्दी अनुवाद-





    

समास


प्रश्न - 1.
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में क्या अंतर है ?

उत्तर - कर्मधारय समासः- जिस समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है, उसे विशेषण-विशेष्य कर्मधारय समास की संज्ञा दी जाती है । यथा नीलकमल, रक्तकिसलय, महापुरुष आदि। इनमें प्रथम पद उत्तर पद का विशेषण है।

 बहुव्रीहि समास :- 'अनेकमन्य पदार्थ' अर्थात् जिस समास में अनेक पद हों तथा प्रधानता अन्य पद के अर्थ की हो अर्थात् जो पद समस्त हो, उनका स्वतंत्र अर्थ ज्ञान न होकर किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु का बोध हो वहाँ बहुव्रीहि समास होता है, जैसे- नीलकण्ठ (नीला है कण्ठ जिनका अर्थात् भगवान शंकर)- यहाँ अन्य पद भगवान शंकर की प्रधानता है। इसी प्रकार श्वेतवसना (सरस्वती),लम्बोदर (गणेश), चतुरानन, (ब्रह्मा) आदि इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न - 2. बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं? सोदाहरण बताएँ। [मा० प० 2017 , मा० प० 2018) 

उत्तर - बहुव्रीहि समास :- 'अनेकमन्य पदार्थ' अर्थात् जिस समास में अनेक पद हों तथा प्रधानता अन्य पद के अर्थ की हो अर्थात् जो पद समस्त हो, उनका स्वतंत्र अर्थ ज्ञान न होकर किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु का बोध हो वहाँ बहुव्रीहि समास होता है, जैसे- नीलकण्ठ (नीला है कण्ठ जिनका अर्थात् भगवान शंकर)- यहाँ अन्य पद भगवान शंकर की प्रधानता है। इसी प्रकार श्वेतवसना (सरस्वती),लम्बोदर (गणेश), चतुरानन, (ब्रह्मा) आदि इसके उदाहरण हैं।


वाक्य तथा वाक्यों के भेद
SENTENCE AND ITS TYPES


वाक्य : ऐसा सार्थक शब्द समूह जिससे पूरा आशय व्यक्त हो सके, वाक्य कहलाता है।

 महाभाष्यकार पतंजलि के अनुसार 'पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द समूह को वाक्य कहा जाता है।'



रचना के अनुसार वाक्य के भेद-

रचना के अनुसार हिन्दी वाक्य तीन प्रकार के होते हैं:-

(1) सरल या साधारण वाक्य (Simple Sentence)

(2) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence) 

(3) मिश्रित वाक्य (Complex Sentence)]

सरल या साधारण वाक्य - जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं। सरल वाक्य में एक ही मुख्य क्रिया होती है। जैसे- राम पढ़ता है, बालक सोता है आदि।

कुछ अन्य उदाहरण द्रष्टव्य हैं-
1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एक वीर नारी थीं।
2. राष्ट्रपति श्री अब्दुलकलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक भी हैं। 3. महामति चाणक्य ने वीर चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट बना दिया।
4. गद्दार व्यक्ति देशहित के लिए बहुत कम सोचते हैं। 
5. आज्ञाकारी बालक अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करता है।


 (2) संयुक्त वाक्य जिस वाक्य में दो या दो से अधिक खण्डवाक्य स्वतंत्र रूप से योजक द्वारा मिले हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे - (i) हम गये और तुम आये। (ii) मैंने खाना खाया और सोकर उठा तो वालीबॉल देखने चला गया

संयुक्त वाक्य की विशेषताएँ –

संयुक्त वाक्य के उपवाक्य आपस में योजकों- या, वा, अथवा, इसलिए, और, किंतु, परंतु, लेकिन, तथा, एवं आदि से जुड़े होते हैं।इनमें प्रयुक्त उपवाक्य स्वतंत्र अर्थ का बोध कराते हैं।इनमें प्रयुक्त उपवाक्य समान स्तर के होते हैं।इन्हें समानाधिकृत उपवाक्य अथवा समानाधिकरण उपवाक्य भी कहते हैं।

संयुक्त वाक्य के कुछ उदाहरण

आप नाटक देखने जाएँगे या सिनेमा।
मरीज फल खा लेगा अथवा खिचड़ी से काम चलेगा।
मदन को बस नहीं मिली इसलिए वह समय पर घर न आ सका।हम दोनों मंदिर गए और साथ-साथ पूजा की।
बादल घिरे किंतु बरसात न हुई। 
वाक्य-भेदवह दिन भर काम करता रहा परंतु पूरा न हो सका।बाज़ार से कलम लाना तथा पेंसिल अवश्य लाना।
उसने मेट्रो की सवारी की एवं ए०सी० का आनंद लिया।



अन्य उदाहरण-
1)मोहिनी के पिता कल मनोहर के पिता से मिले और खुलकर बातें कीं।
2)हमारी कक्षा के छात्र गत सप्ताह यहाँ से कश्मीर गये और वापसी पर आगरा में ताजमहल भी देख आए।


-योजक शब्द


(3) मिश्रित वाक्य - जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो तथा अन्य खण्ड वाक्य अधीन अथवा आश्रित होकर आएँ, उसे मिश्रित वाक्य कहते हैं। जैसे- मैंने सुना है कि वह यहाँ पहुँच गया है । इसमें 'मैंने सुना है' प्रधान उपवाक्य है तथा 'वह यहाँ पहुँच गया है' अधीन या आश्रित वाक्य है।

मिश्रवाक्य में आश्रित या गौण उपवाक्य प्रधान उपवाक्य पर निर्भर होते हैं।मिश्रवाक्य व्यधिकरण योजकों के युग्म-जैसा-वैसा, जो-सो, जिसकी-उसकी, जहाँ-वहाँ, जब-तब, जैसी-वैसी, यदि-तो, – जब तक-तब तक, जिन्हें-उन्हें आदि से जुड़े होते हैं।स्वतंत्र उपवाक्य को प्रधान उपवाक्य भी कहा जाता है।





मिश्रवाक्य के कुछ उदाहरण

माँ ने कहा कि शाम को जल्दी लौट आना।
जब मैं घर पहुँचा तब वर्षा शुरू हो चुकी थी।
जैसे ही बादल घिरे वैसे ही बिजली चमकने लगी।
जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ा है, तब-तब ईश्वर धरती पर अवतरित हुए हैं।
जहाँ-जहाँ सिंचाई की व्यवस्था है, वहाँ-वहाँ फसलें खूब पैदा होती हैं।

ध्यान दें

मिश्र वाक्य में आश्रित उपवाक्य वाक्य के आरंभ, मध्य या अंत में कहीं भी आ सकते हैं, जैसे –
आरंभ में – जो अपने आस-पास सफ़ाई रखते हैं, वे सदा स्वस्थ रहते हैं।
जिस लड़के ने सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं उसे पुरस्कृत किया जाएगा।
मध्य में – वे, जो अपने आस-पास सफ़ाई रखते हैं, सदा स्वस्थ रहते हैं।
वह लड़का, जिसने सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं, पुरस्कृत किया जाएगा।
अंत में – वे सदा स्वस्थ रहते हैं जो अपने आस-पास सफ़ाई रखते हैं।
उस लड़के को पुरस्कृत किया जाएगा जिसने सबसे ज्यादा पौधे लगाए हैं।

कुछ अन्य उदाहरण द्रष्टव्य हैं-
1. छात्र जानते हैं कि परिश्रम करना कठिन है। 
2. माता की इच्छा थी कि बेटा इंजीनियर बने।
3. इनसे पूछिये कि ये कौन हैं ?
4. यह वही आदमी है, जिसने कल चोरी की थी।
5. जो मेहनत करता है, उसे अवश्य सफलता मिलती है।
6. जब तुम स्टेशन पर पहुंचे, तब मैं घर से चला। 
7. यदि बोलना नहीं आता, तो चुप रहना चाहिए।
8.  जब मैं घर पहुँचा तब वर्षा हो रही थी।
9.  ज्योंही मैं स्कूल से बाहर आया, खेल आरम्भ हो गया । 
10. जहाँ तुम रहते हो, मैं भी वहीं रहता हूँ।
11.  जिधर हम जा रहे हैं, उधर आज कोई नहीं गया। 
12. आपको वैसा करना चाहिए, जैसा मैं कहता हूँ।
13.  बच्चे वैसा ही करते हैं जैसा उन्हें सिखाया जाता है।
14. उसने जितना परिश्रम किया, उतना ही अच्छा परिणाम मिला। 
15. यदि वर्षा अच्छी होती, तो उपज बढ़ जाती।
16. यदि गर्मी बढ़ेगी, तो काम करना कठिन होगा।
17. जो सदा सत्य बोलता है उसकी जीत होती है।
18. हमें यह सोचना है कि देश की एकता और अखंडता कैसे बनी रहे।
19.आपको चाहिए कि नित्य व्यायाम करें।
20 जहाँ-जहाँ भी नेताजी गये, उनका भव्य स्वागत हुआ।
21. जो परिश्रमी होते हैं, वे कभी भूखे नहीं मरते।

वाक्य रचनांतरण या रूपांतरण


किसी वाक्य से दूसरे वाक्य में इस तरह बदलना कि उसका मूलभाव अपरिवर्तित रहे, वाक्य रचनांतरण या रूपांतरण कहलाता है। वाक्य रूपांतरण के अंतर्गत सरल वाक्यों को संयुक्त और मिश्र में, संयुक्त वालों को सरल और मिश्रवाक्य में तथा मिश्रवाक्य को सरल और संयुक्त वाक्य में बदला जाता है; जैसे –

(i) धमाका होते ही लोग घरों से बाहर निकल आए। (सरल वाक्य)
धमाका हुआ और लोग घरों से बाहर निकल आए। (संयुक्त वाक्य)
जैसे ही धमाका हुआ लोग घरों से बाहर निकल आए। (मिश्र वाक्य)

(ii) पका आम देखते ही बच्चे के मुँह में पानी आ गया। (सरल वाक्य)
बच्चे ने पका आम देखा और उसके मुँह में पानी आ गया। (संयुक्त वाक्य)
जैसे ही बच्चे ने पका आम देखा उसके मुँह में पानी आ गया। (मिश्र वाक्य)

सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में बदलना-सरल वाक्यों को संयुक्त वाक्य बनाते समय उन्हें इस तरह से दो भागों में बाँटते हैं कि दो क्रियाएँ बन सकें। अब इन वाक्यों को और, या, वा, अथवा, किंतु, परंतु, लेकिन, इसलिए, आदि से जोड़ने का प्रयास करते हैं; जैसे –



सरल वाक्य से मिश्रवाक्य में रूपांतरण-सरल वाक्यों को मिश्रवाक्य बनाते समय उनके शुरू जब, जैसे ज्योंही, जो, जबसे आदि जोड़ते हैं, जैसे –



संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य बनाना-संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य बनाते समय समुच्चयबोधकों को अलग कर देते हैं तथा आवश्यक बदलाव कर मिश्र वाक्य में बदल देते हैं; जैसे –

संयुक्त वाक्य से सरल वाक्यों में रूपांतरण
मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य में रूपांतरण –
मिश्र वाक्य से सरल वाक्य में रूपांतरण –














प्रश्नोत्तर
*प्रश्न-1. वाक्य किसे कहते हैं। रचना के अनुसार वाक्य के भेदों के नाम सोदाहरण लिखिए।

(मॉडल प्रश्न : 2007)

उत्तर - वाक्य - ऐसा सार्थक शब्द-समूह जिससे पूरा आशय व्यक्त हो सके, वाक्य कहलाता है। 
महाभाष्यकार पतंजलि के अनुसार 'पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहा जाता है।

वाक्य के भेद - रचना के अनुसार वाक्य के तीन भेद होते हैं

1. सरल या साधारण वाक्य -राम पढ़ता है, बालक सोता है आदि।

2. संयुक्त वाक्य - हम गये और तुम आये।

3. मिश्रित वाक्य - मैंने सुना है कि वह यहाँ पहुँच गया है।

* प्रश्न-2. निम्नलिखित वाक्यों के उद्देश्य और विधेय लिखिए ।

(क) सीता घर जाती है।

उत्तर - उद्देश्य-सीता, विधेय-घर जाती है।

(ख) आचरण ही जीवन-सखा है।

उत्तर - उद्देश्य-जीवन-सखा, विधेय-आचरण ही है

(ग) राम और श्याम पढ़ रहे थे।

उत्तर - उद्देश्य - राम और श्याम, विधेय-पढ़ रहे थे ।

 (घ) हम पाठशाला की ओर जायेंगे।

उत्तर - उद्देश्य - हम पाठशाला की, विधेय ओर जायेंगे। .

* प्रश्न-3. संयुक्त वाक्य कि सोदाहरण परिभाषा लिखिए

[मा०प०2018]

उत्तर - संयुक्त वाक्य - जिस वाक्य में दो या दो से अधिक खण्डवाक्य स्वतंत्र रूप से योजक द्वारा मिले हों , उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं; जैसे - (i) हम गए और तुम आए। (ii) मैंने खाना खाया और सोकर उठा तो बालीबॉल देखने चला गया।

प्रश्न-4.अर्थ के अनुसार वाक्य के भेदों के नाम सोदाहरण लिखिए।


अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर हिन्दी वाक्यों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं-
(1) विधानवाचक वाक्य (Imperative Sentence), (2) निषेधवाचक वाक्य (Negative Sentence), (3) प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence), (4) विस्मयादिवाचक वाक्य (Interjective Sentence), (5) आज्ञावाचक वाक्य (Sentence-Denoting Order), (6) इच्छावाचक वाक्य (Sentence-Denoting Desire), (7) सन्देहवाचक वाक्य (Doubtful Sentence), (8) संकेतवाचक वाक्य (Indicative Sentence).

(1) विधानवाचक वाक्य-जिन वाक्यों से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं। किसी के अस्तित्व का बोध भी इस प्रकार के वाक्यों से होता है, जैसे सूर्य पश्चिम में अस्त होता है। जनता ने नेताजी का स्वागत किया। मैं कल दिल्ली गया था । हम स्नान कर चुके।

(2) निषेधवाचक वाक्य-जिन वाक्यों से किसी कार्य के निषेध (न होने) का बोध होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं, जैसे-मैं आज नहीं पढूँगा। माला नहीं नाचेगी। आज गणित के अध्यापक ने कक्षा नहीं ली। 
(3) प्रश्नवाचक वाक्य-जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाय अर्थात् किसी से कोई बात पूछी जाय, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-क्या तुम खेलोगे ? तुम पढ़ने कब जाओगे ? तुम्हारा नाम क्या है ? 
(4) विस्मयादिवाचक वाक्य-जिन वाक्यों से आश्चर्य (विस्मय) हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हो, उन्हें विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे -अरे! इतनी लम्बी रेलगाड़ी!
 ओह! बड़ा जुल्म हो गया!
   अहा! कैसा सुन्दर दृश्य है! 
अच्छा! तुमने भी स्नान कर लिया।

(5) आज्ञावाचक वाक्य -जिन वाक्यों से आज्ञा या अनुमति देने का बोध हो, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे
-आप चुप रहिये । यहाँ से चले जाइए। अपना-अपना काम करो। आप जा सकते हैं।
 (6) इच्छावाचक वाक्य-वक्ता की इच्छा, आशा या आशीर्वाद को व्यक्त करने वाले वाक्य इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं। जैसे-ईश्वर तुम्हें चिरायु करे। नववर्ष मंगलमय हो । भगवान् करे, सब कुशल लौटें।
  (7) सन्देहवाचक वाक्य -जिन वाक्यों में कार्य के होने में सन्देह अथवा सम्भावना का बोध हो, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-सम्भवतः वह सुधर जाए। शायद मैं बाहर चला जाऊँ। वह शायद आज आए।

(8) संकेतवाचक वाक्य-जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इन्हें हेतुवाचक वाक्य भी कहते हैं। इनसे कारण, शर्त आदि का बोध होता है। जैसे-वर्षा होती, तो फसल अच्छी होती। आप आते, तो इतनी मुसीबत न आती। यदि छुट्टियाँ समाप्त हुईं, तो हम कश्मीर अवश्य जाएँगे।



अर्थ की दृष्टि से वाक्य में परिवर्तन 

1. विधानवाचक से आज्ञार्थक में परिवर्तन

(i) विधानवाचक- शीला रोज पढ़ने जाती है। 
आज्ञार्थक-शीला! तुम रोज पढ़ने जाया करो।

(ii) विधानवाचक-रमेश को खेलने से रोका जाता है।
 आज्ञार्थक-रमेश को खेलने से रोको।

2. विधानवाचक से प्रश्नवाचक और निषेधवाचक में परिवर्तन

(i) विधानवाचक-वह जी खोलकर दान देता है। 
प्रश्नवाचक- क्या वह जी खोलकर दान देता है?

निषेधवाचक-वह जी खोलकर दान नहीं देता।

(ii) विधानवाचक- पुलिस को देखते ही चोर भाग गये ।

प्रश्नवाचक- क्या पुलिस को देखते ही चोर भाग गये निषेधवाचक- पुलिस को देखते ही चोर नहीं भागे।

3. विधानवाचक से विस्मयवाचक में परिवर्तन

(i) विधानवाचक-तुम आ गये हो।
 विस्मयवाचक- अरे! तुम आ गये हो!

4. इच्छावाचक वाक्य से प्रश्नवाचक और निषेधवाचक 
(i) इच्छावाचक- संसार में सब सुखी हो जाएँ।

प्रश्नवाचक-क्या संसार में सब सुखी हो जाएँ ?

निषेधवाचक-संसार में सभी सुखी न हों। 

5. विस्मयवाचक से प्रश्नवाचक और निषेधवाचक

(i) विस्मयवाचक-वाह! तुमने तो कमाल कर दिया!
प्रश्नवाचक-तुमने कौन-सा कमाल कर दिया?

निषेधवाचक-तुमने कोई कमाल नहीं किया।

 6. प्रश्नवाचक से विस्मयवाचक और निषेधवाचक

(1) प्रश्नवाचक- क्या वह इतना मूर्ख है?

विस्मयवाचक- बाप रे! वह तो बड़ा मूर्ख है।
 निषेधवाचक- वह इतना मूर्ख नहीं है।

7.निषेधवाचक तथा प्रश्नवाचक से विधानवाचक में परिवर्तन
 (i) निषेधवाचक-उसने कोई उपाय नहीं छोड़ा।

विधानवाचक-उसने सब उपाय कर लिए। 
(ii) प्रश्नवाचक-गाँधीजी का नाम किसने नहीं सुना ?

विधानवाचक-गाँधीजी का नाम सबने सुना है।





वाच्य

प्रश्न - 1.
वाच्य किसे कहते हैं? वाच्य के भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए। (मॉडल प्रश्न : 2007, मा०प० 2010,)
 उत्तर- वाच्य - 'वाच्य' क्रिया के उस रूपान्तर को कहते हैं, जिससे जाना जाता है कि वाक्य में कर्त्ता के विषय में विधान किया गया है या कर्म के विषय में अथवा केवल भाव के विषय में।

 प्रयोग के आधार पर हिन्दी में वाच्य के तीन निम्नलिखित प्रकार होते हैं-

1. कतृवाच्य - उदाहरण - बच्चे खेलते हैं।
 2. कर्मवाच्य - उदाहरण - बच्चों द्वारा खेला जाता है।
3. भाववाच्य - उदाहरण - बच्चों द्वारा खेला जा रहा है।

प्रश्न - 3. भाव वाच्य किसे कहते हैं ?[मा०प० 2018]
उत्तर - क्रिया के जिस रूप में वाक्य का उद्देश्य केवल भाव (क्रिया का अर्थ) ही जाना जाए वहाँ भाव वाच्य होता है। जैसे- (i) बच्चों से दौड़ा नहीं जाता। (ii) अब चला जाए।

★ प्रश्न - 4. कर्तृवाच्य से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर - कर्तृवाच्य :- क्रिया के जिस रूप से वाक्य के उद्देश्य (क्रिया के कर्ता) का बोध हो, वह कर्तृवाच्य कहलाता है। इसमें लिंग एवं वचन प्रायः कर्ता के अनुसार होते हैं।
जैसे - राम खेलता है।
     इस वाक्य में राम कर्ता है तथा वाक्य में कर्ता की प्रधानता है, अतः 'खेलता है', कर्तृवाच्य है।


कर्मवाच्य के प्रयोग स्थल: निम्नलिखित स्थलों पर कर्मवाच्य वाक्यों का प्रयोग होता है:

(क) जहाँ कर्ता अज्ञात हो; जैसे–पत्र भेजा गया।

(ख) जब आपके बिना चाहे कोई कर्म अचानक आ गया हो; जैसे – काँच का गिलास टूट गया।

(ग) जहाँ कर्ता को प्रकट न करना हो; जैसे – डाकुओं का पता लगाया जा रहा है।

(घ) सूचना, विज्ञप्ति आदि में, जहाँ कर्ता निश्चित नहीं है; जैसे – अपराधी को कल पेश किया जाए। रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

(ङ) अशक्यता सूचित करने के लिए; जैसे – अब अधिक दूध नहीं पिया जाता।

भाववाच्य – जहाँ वाच्य बिंदु न तो कर्ता हो, न कर्म बल्कि क्रिया का भाव ही मुख्य हो, उसे भाववाच्य कहा जाता है; जैसे –
बच्चों द्वारा सोया जाता है।
अब चला जाए।
मुझसे बैठा नहीं जाता।
भाववाच्य के प्रयोग स्थल

(क) भाववाच्य का प्रयोग प्रायः असमर्थता या विवशता प्रकट करने के लिए ‘नहीं’ के साथ किया जाता है; जैसे –

अब चला नहीं जाता।
अब तो पहचाना भी नहीं जाता।
(ख) जहाँ ‘नहीं’ का प्रयोग नहीं होता वहाँ मूल कर्ता सामान्य होता है; जैसे –

अब चला जाए।
चलो ऊपर सोया जाए।
कुछ विद्वान वाच्य के दो भेद कर्तृवाच्य और अकर्तृवाच्य मानते हैं तथा कर्मवाच्य और भाववाच्य को अकर्तृवाच्य का भेद स्वीकार करते हैं।

वाच्य संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु

कर्तृवाच्य में सकर्मक – अकर्मक दोनों ही प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग होता है।
कर्मवाच्य में क्रिया सदैव सकर्मक होती है।
भाववाच्य की क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिग, एकवचन में रहती है।
कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में कर्ता के बाद 'के द्वारा' या ‘से’ परसर्ग का प्रयोग किया जाता है। बोलचाल की भाषा में ‘से’ का प्रयोग प्रायः निषेधात्मक वाक्यों में किया जाता है। जैसे –
(क) मुझसे चला नहीं जाता।

(ख) उससे काम नहीं होता।

कर्मवाच्य तथा भाववाच्य के निषेधात्मक वाक्यों में जहाँ ‘कर्ता + से’ का प्रयोग होता है वहाँ एक अन्य ‘असमर्थतासूचक’ अर्थ की भी अभिव्यक्ति होती है; जैसे –
(क) मुझसे खाना नहीं खाया जाता।

(ख) माता जी से पैदल नहीं चला जाता।

(ग) उनसे अंग्रेज़ी नहीं बोली जाती।

(घ) बच्चे से दूध नहीं पिया जाता।

कर्तृवाच्य के सकारात्मक वाक्यों में इसी सामर्थ्य’ को सूचित करने के लिए क्रिया के साथ सक का प्रयोग किया जाता है; जैसे –
(क) वे यह गाना गा सकते हैं।

(ख) माता जी मिठाई बना सकती हैं।

(ग) बच्चे यह पाठ याद कर सकते हैं।

इसी तरह से कर्तृवाच्य के असामथ्र्यतासूचक वाक्यों में सक का प्रयोग होता है:
(क) मैं आपके घर नौकरी नहीं कर सकता।

(ख) वह अब दुकान नहीं चला सकता।

(ग) वे पत्र नहीं लिख सकते।।

(घ) बच्चे आज फ़िल्म नहीं देख सके।

कर्तृवाच्य के निषेधात्मक वाक्यों को कर्मवाच्य और भाववाच्य दोनों में रूपांतरित किया जा सकता है।
कर्मवाच्य के वाक्यों में प्रायः क्रिया में ‘+ जा’ रूप लगाकर किया जाता है’, ‘सोया जाता है’, ‘खाया जाता है’ जैसे वाक्य बनते हैं। लेकिन कुछ व्युत्पन्न अकर्मक क्रियाओं का प्रयोग भी कर्मवाच्य में होता है; जैसे –

1. मज़दूर पेड़ नहीं काट रहे।
 (क) मज़दूरों से पेड़ नहीं काटा जाता।
(ख) मज़दूरों से पेड़ नहीं कट रहा।

2. हलवाई मिठाई नहीं बना रहा।
 (क) हलवाई से मिठाई नहीं बनाई जा रही।
(ख) हलवाई से मिठाई नहीं बन रही।

हिंदी में अकर्तृवाच्य (कर्मवाच्य तथा भाववाच्य) के वाक्यों में प्रायः कर्ता का लोप कर दिया जाता है; जैसे –
(क) पेड़ नहीं काटा जा रहा।

(ख) पेड़ नहीं कट रहा।

(ग) मिठाई नहीं बन रही।

(घ) कपड़े नहीं धुल रहे।

हिंदी में क्रिया का एक ऐसा रूप भी है; जो कर्मवाच्य की तरह प्रयुक्त होता है, वह है सकर्मक क्रिया से बना उसका अकर्मक रूप जिसे व्युत्पन्न अकर्मक कहते हैं। जैसे –
(क) गिलास टूट गया। (‘तोड़ना’ से ‘टूटना’ रूप)

(ख) हवा से दरवाजा खुल गया। (‘खोलना’ से ‘खुलना’ रूप)


वाच्य परिवर्तन







(ख) प्रतिवेदन


Vvi.1. सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए समाचार-पत्र के लिए प्रतिवेदन लिखिए

उत्तर - सरकारी अस्पताल की बदहाली -8 जुलाई 2022 ज्ञानपुर संत रविदास नगर भदोही, गत रविवार को मैं एक रोगी को लेकर जिला अस्पताल ज्ञानपुर पहुँचा जहाँ की बदहाली या दुरावस्था वर्णन के परे है। अस्पताल में न तो पर्याप्त बिस्तर है, न दवायें, न नर्सों और न डाक्टर, चारों और गन्दगी का आलम है। पानी के नल टूटे हुए और बंद पड़े हैं। शौचालय साक्षात् नरक प्रतीत होता है। नलियों में गन्दा पानी सड़ रहा है। जिसमें कीड़े बिलबिला रहे हैं। अस्पताल की वर्तमान अवस्था में यदि कोई रोगी चिकित्सा हेतु आयेगा तो उसे यमलोक पहुँचने में तनिक भी सन्देह नहीं है। सार्वजनिक हित और लोककल्याण को ध्यान में रखते हुए यह अति आवश्यक है कि सरकार के बड़े अधिकारियों एवं स्वास्थमंत्री का अस्पताल की इस बदहाली की और ध्यान आकर्षित कराया जाये ताकि इसका जीवन प्रदान करने में उपयोग हो सके।

★ 2. केरला में आयी बाढ़ पर समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए प्रतिवेदन लिखिए। 
उत्तर- केरल: अगस्त 2015 में मानसून के अत्यधिक वर्षा के कारण केरल में भयंकर बाढ़ आ गयी। यह केरल में एक शताब्दी में आयी सबसे विकराल बाद है जिसमें लगभग 373 से अधिक लोग मारे जा चुके है। राज्य के सभी जिलों को हाई एलर्ट पर रखा गया है। राज्य में 24 घंटे में ही 310 मिलीमीटर वर्षा हुई है। अतः सभी बाँधों का जलस्तर बढ़ने से सभी बाँधों के द्वार खोल दिये गये हैं और उनके सटे निम्न क्षेत्रों में बाढ़ आ गयी है। केरल के कई जिलों में पीने का शुद्ध पानी मिलना बंद हो गया है। राज्य के अलग-अलग स्थानों पर बाढ़ पीड़ितों के लिए कई राहत शिविर खोले गये हैं बाढ़ के कारण सैकड़ों गाँव, सड़कें तथा लाखों पर क्षतिग्रस्त हो गये हैं। रेलवे ने कई क्षेत्रों में अपनी सेवायें निलम्बित कर दिये हैं। राज्य के कई हिस्सों में विद्युत आपूर्ति बंद है भारत के कई राज्य सरकारों ने केरल को मदद देने की घोषणा की है। भारत के प्रधानमंत्री ने केरल के लिए 500 करोड़ रुपये की मदद की घोषणा

★ 3. आपके मुहल्ले में आयोजित साफ-सफाई पर हुए कार्यक्रम को समाचार पत्र में छपने के लिए प्रतिवेदन लिखिए। 


उत्तर-आलमबाजार में साफ-सफाई अभियान-

आलमबाजार- दक्षिनेश्वर के समीप आलमबाजार में लोगों ने स्वच्छता के महत्व को ध्यान में रखते हुए बाजार के समीप सफाई अभियान चलाया और उसके पहले स्वच्छता के महत्व के ऊपर एक सभा का भी आयोजन किया गया। क्षेत्र के कई लोग उपस्थित होकर अपना विचार व्यक्त किये और बताया कि स्वच्छता एक अच्छी आदत है जिसे हमें अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन के लिए अपनाना चाहिए। हमें अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ पर्यावरण को स्वच्छता, पालतू जानवरों की स्वच्छता अपने आस-पास की स्वच्छता और कार्य स्थल को स्वच्छता आदि करनी चाहिए। स्वच्छता हमें मानसिक, शारीरिक सामाजिक और बौद्धिक रूप से स्वस्थ रखता है। स्वस्थ जीवन और लम्बी आयु के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। पूजा के पहले भी स्वच्छता आस-पास की जाती है अर्थात् ईश्वर से पहले स्वच्छता है। स्वच्छता हमारे जीवन में खाने और पीने की तरह आवश्यक है। गंदगी से आस- पास के क्षेत्रों में कई तरह के कीटाणु बैक्टीरिया तथा हानिकारक फंगस पैदा होते हैं, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। संक्रमित रोग फैलाते हैं। साफ-सफाई केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि स्वच्छता पर समाज देश के हर नागरिक को जिम्मेदारी है। हमे प्रतिज्ञा करना चाहिए कि हम स्वयं तो स्वच्छ रहेंगे और समाज को भी स्वच्छ बनायेंगे।

 ★ 4. शहर कोलकाता में प्रेम के प्रतीक "दुर्गा उत्सव" पर समाचार पत्र में छपने के लिए एक प्रतिवेदन लिखिए।

उत्तर- कोलकाता में दुर्गापूजा पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर को दुर्गापूजा विश्व प्रसिद्ध है। हर साल अलग थीम से बनाये जाने वाले दुर्गापूजा पण्डाल लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। एक पण्डाल के बारे में काफी चर्चा है जो कोलकाता के बेहला में बनाया गया है। इस पण्डाल में ग्लूकोज के बोतल, ट्यूब और पट्टियों का प्रयोगकरके ट्रांसजेन्डर समुदाय की दुर्दशा और दिक्कतों को दर्शाया गया है। राज्य के कई स्थानों पर थीम आधारित पूजा का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। पूजा आयोजनों की भव्यता महंगाई के मार से बेअसर है। लाखों लोग पण्डालों को देखने के लिए उमड़ पड़े हैं। दुर्गापूजा का हर जाति एवं धर्म के लोग सामान्य रूप से आनन्द लेते हैं। इस साल कोलकाता में पद्मावती और चित्तौड़ का किला भी सजीव हो उठा है। कई काल्पनिक चित्र साकार दिखाई देते हैं। पण्डालों में राजनीतिक दल के लोग भी सक्रियता से भाग ले रहे हैं।

★ 5. शहर कोलकाता के पुस्तक मेला पर स्थानीय समाचार-पत्र में छपने के लिए एक प्रतिवेदन लिखिए।

उत्तर - पुस्तक मेला का आयोजन कोलकाता, 28 फरवरी 2007: इस वर्ष फरवरी महीने में साल्टलेक स्टेडियम में पुस्तक मेले का आयोजन किया गया है। इस बार पुस्तक मेले में कुल पाँच सौ प्रकाशन संस्थाओं ने भाग लिया। पुस्तक मेले में विभिन्न विषयों की पुस्तकें एक साथ पाठकों को उपलब्ध थीं। पुस्तक मेले में कोलकाता की कई साहित्यिक-सांस्कृतिक द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। कोलकाता के वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी इस पुस्तक मेले में भाग लिया। यह पुस्तक मेला दस दिनों तक चला।

★ 6. "आपके शहर में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन सम्बन्धित एक प्रदर्शनी आयोजित कर एक सप्ताह हेतु जागरूकता अभियान चलाया गया।" - दैनिक समाचार पत्र में छपने हेतु एक प्रतिवेदन लिखिए। उत्तर - आयोजन - आर्य विकास विद्यालय में पर्यावरण संरक्षण एवं समबर्द्धन सम्बंधित एक प्रदर्शनी का कोलकाता, आर्य विकास विद्यालय में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन सम्बन्धित एक प्रदर्शनी आयोजित करके एक सप्ताह हेतु जागरुकता अभियान चलाया गया है। विद्यालय के शिक्षक प्रभारी श्री बी० एम० शुक्ला के नेतृत्व में छात्रों ने विद्यालय प्रांगण में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया इस प्रदर्शनी को देखने के लिए केवल विद्यालय के शिक्षक और छात्र भी आये। विद्यालय के छात्र, अभिभावक और मोहल्ले के लोग ही नहीं आये बल्कि आस-पास के विद्यालय के छात्रों द्वारा पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन हेतु मोहल्ले में रैली भी निकाली गयी। एक दिन काशीपुर विधान सभा की विधायिका श्रीमती माला साहा की अध्यक्षता में एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। जिसमें क्षेत्र के कई माननीय एवं शिक्षाविदों ने भाग लिया। इस गोष्ठी में आदर्श माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक डॉ० ए० पी० राय ने कहा कि मानव अपने प्रकृति का एक अंग है अपनी अविवेकी बुद्धि के कारण अपने को प्रकृति का मालिक मानकर उसके दोहन करने की भूल करने लगा है जिससे पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत अनिवार्य पर्यावरण संकट उपस्थित हो गया है। पृथ्वी को इस संकट से बचाने के लिए प्रदूषण को नियंत्रित करना आवश्यक है।दरअसल पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है। 

★7. 'रेल दुर्घटना' पर समाचार-पत्र में छपने के लिए एक प्रतिवेदन लिखिए।

उत्तर - कानपुर में भयानक रेल दुर्घटना :

कानपुर : 21 नवम्बर 2016, कानपुर से 60 किमी दूर एक भयंकर रेल दुर्घटना हुई, जिसमें मरने वालों की संख्या 142 तक पहुँच गई है। रेल विभाग के अधिकारी ने स्थानीय पत्रकार को बताया कि अतबक 142 शव बरामद किये जा चुके हैं, जबकि घायलों की संख्या 180 है। हादसे में पटना-इंदौर इंटरसिटी रेलगाड़ी के 14 डिब्बे पटरी से उतर गये थे। ट्रेन इंदौर से पटना जा रही थी। सुबह लगभग तीन बजे पोखरायां में यह दुर्घटना हुई। दुर्घटना के कारण ट्रेन के 4 स्लीपर डिब्बे बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये। आशंका है कि इन डिब्बों में अभी भी कई लोग फँसे हो सकते हैं। सैकड़ों घायलों को समीपवर्ती अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सेना रात में राहत और बचाव कार्य जारी रखेगी। रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने हादसे के पीछे रेल की पटरी पर आई दरार के वजह होने की आशंका व्यक्त की है। रेलमंत्री ने कहा कि दुर्घटना के कारणों की जाँच की जा रही है और दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। प्रधानमंत्री ने हादसे में मारे जाने वालो के परिजनों के लिए 2 लाख रु० और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 5 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है। गंभीर रूप से घायल लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार 50000 और सामान्य रूप से घायल लोगों को 25000 रुपये देगी।

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