Class -7 Hindi Notes
Class -7 Hindi Notes
पाठ-1
उत्तर:-
पाठ-2
(ङ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर यथा निर्देश दीजिए-
(अ) छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
1. कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति के कवि श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं। यह संगठन कविता से उद्धृत है।
2. उक्त अंश में कवि क्या संदेश देता है और क्यों?
उत्तर : उक्त अंश में कवि संदेश देता है कि जब तक शरीर में रक्त की एक बूंद भी बची रहे, जब तक शरीर में प्राण का संचार रहे, तब तक दुनिया की कोई भी शक्ति हमारी प्यारी जन्मभूमि भारतवर्ष को छीन न सके।
कवि यह संदेश देता है क्योंकि देश की रक्षा तथा देश पर मर-मिटना हर भारतवासी का पुनीत कर्त्तव्य होना चाहिए।
(ब) गाएँ सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
1. सुयश और सुजन का अर्थ लिखिए।
उत्तर : सुयश का अर्थ है- सुन्दर प्रशंसनीय कीर्ति और सुजन का अर्थ है -भले लोग जो सदा अच्छा कार्य करते हैं।
2. संसार के लोग हमारा सुयश कैसे गा सकते हैं?
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ईश्वर से ऐसी शक्ति की याचना कर रहा है जिससे वह कर्त्तव्य मार्ग पर स्थिर बना रहे और प्रभु को न भूले । जिससे सारे संसार के लोग सानंद भारतीयों की कीर्ति का, महत्व का गुणगान करें।
(क) दधीचि ने क्या दान किया था तथा क्यों?
उत्तर : दधीचि ने अस्थि दान किया था। उनकी हड्डी से इन्द्र ने वज्र का निर्माण कर वृत्रासुर का बध किया। अंत: देवताओं की विजय तथा असुरों की पराजय के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियों का दान किया।
(ख) बौद्ध भिक्षु बनकर घूमनेवाले राजा कौन थे? इसका कारण क्या था?
उत्तर : बौद्ध भिक्षु बनकर घूमने वाले राजा अशोक थे। बौद्ध धर्म के प्रचार तथा मानवता के कल्याण के लिए सम्राट अशोक घर-घर जाकर दीन-दुखियों के प्रति दया तथा करुण भावना व्यक्त करते थे ।
(ग) निर्वासित राजा के प्रसिद्धि का क्या कारण है?
उत्तर : निर्वासित राजकुमार राम रावण का विनाश करने के लिए तथा देवताओं, ऋषियों, और मानवता के संकट को दूर करने के लिए सागर की छाती पर सेतु का निर्माण किया। यही उनकी प्रसिद्धि का कारण है।
(घ) हिमालय का आँगन किसे और क्यों कहा गया है ?
उत्तर : हिमालय का आँगन भारतवर्ष को कहा गया है, क्योंकि भारत हिमालय के चरणों में स्थित है। हिमालय भारत का गौरव है। हिमालय का सांस्कृतिक महत्त्व हैं।
बोध मूलक प्रश्न
(ख) "पुरन्दर ने अस्थियुग के इतिहास को वज्र से लिखा" - मेरे इतिहास में वर्णित इस पौराणिक कथा का वर्णन कीजिए।
उत्तर : देवासुर संग्राम की घटना का युग अस्थियुग था। देवताओं के राजा इन्द्र संग्राम में असुरों के सेनापति वृत्रासुर से भयभीत थे। ब्रह्मा के निर्देश से वे महर्षि दधीचि के पास आए। क्योंकि दधीचि की हड्डियों से निर्मित अस्त्र से ही वृत्रासुर का वध हो सकता था। राक्षस राज वृत्रासुर के संहार के लिए देवराज इन्द्र ने महर्षि दधीचि से अस्थिदान की माँग की। महर्षि ने देवत्व की रक्षा के लिए सहर्ष इन्द्र का प्रस्ताव स्वीकार कर प्राण त्यागकर अपनी हड्डियाँ दे दी। इन्द्र ने उनकी अस्थित से वज्र का निर्माण कर राक्षस राज वृत्रासुर का संहार किया। दधीचि का यह अस्थि त्याग भारतीय जाति के त्याग का अनुपम उदाहरण हैं।
(घ) निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या ससन्दर्भ कीजिए
1. हमारे संचय में था द्वान अतिथि थे सदा हमारे देव ।
उत्तर : यह अंश कविवर जयशंकर प्रसाद की रचना 'भारतवर्ष' कविता से उद्धृत है। इस पंक्ति में कवि ने अतीत में भारतीयों की दानशीलता तथा उदारता का चित्रण किया है। हमारे पूर्वज अपने सुख के लिए, भोग की कामना के लिए धन-संचय नही करते थे। अपने अर्जित धन से गरीबों-अनाथों को दान देकर उनकी सहायता करते थे। उनमें परोपकार की भावना थी। अतिथियों का देवतुल्य सत्कार करते थे। वे सच्चे अर्थों में अतिथि सेवी थे। 'अतिथि देवो भव' उनका सिद्धांत था।
2. बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय की शीतं ।
उत्तर : हमारे आदि पुरुष ने बीज रूप में सृष्टि की रक्षा की। प्रलय के समय सब कुछ जल- मग्न हो गया। अकेले मनु एक नाव में बैठकर हिमालय की चोटी पर पहुँच गए। प्रलय कालीन शीत लहरी को सहकर भी निडर बने रहे। श्रद्धा के सहयोग से उन्होंने सृष्टि को बचाया।
3. जिएँ तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष ।
उत्तर : यह अंश 'भारतवर्ष' कविता से उद्धृत है। इसके कवि श्री जयशंकर प्रसाद है। यहाँ कवि की राष्ट्रीय भावना तथा देश प्रेम की इच्छा व्यक्त हुई है। कवि का कथन है कि हमारा जीवन स्वदेश भारतवर्ष के लिए है। अतः हम जीएँ तो भारत के लिए और मरें तो भारत के लिए। हमें इस बात का अभिमान होना चाहिए कि हमारा जीवन अपने देश के लिए ही है। हमें स्वदेश के लिए अपना तन, मन, धन अर्थात् सर्वस्व अर्पण कर देने के लिए सदैव प्रस्तुत रहना चाहिए।
भाषा और बोध
(क) उपसर्ग एवं मूल शब्द अलग कीजिए ।
शब्द उपसर्ग मूल शब्द
आलोक आ + लोक
विमल वि + मल
अतिथि अ + तिथि
अभिमान अभि + मान
संगीत सम् + गीत
(ख) संधि विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए ।
हिमालय- हिम + आलय - स्वर संधि
संसृति - सम् + सृति - व्यंजन संधि
निर्वासित - नि: + वासित - विसर्ग संधि
संचय - सम् + चय - व्यंजन संधि
रत्नाकर - रत्न + आकर - स्वर संधि
(ग) सामासिक पदों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए ।
सप्तस्वर - सात स्वरों का समाहार - द्विगु समास
उत्थान-पतन -उत्थान और पतन - द्वन्द्व समास
शान्ति संदेश - शांति का संदेश - तत्पुरुष समास
अस्थियुग -अस्थि का युग - तत्पुरुष समास
(घ) प्रत्ययों से बने शब्द
इत- निर्वासित
ता - जातीयता, नम्रता
यों - जातियों
ई - हमी, वही
आ- लिखा
(ङ) अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग कीजिए
पुरन्दर -इन्द्र- पुरन्दर ने वज्र से वृत्रासुर का वध किया।
रत्नाकर - समुद्र - राम ने रत्नाकर की छाती पर पुल बना दिया।
सर्वस्व - सबकुछ - हमें स्वदेश पर सर्वस्व न्योछावर कर देना चाहिए।
नम्रता - विनय - हमारे पूर्वजों में सदा नम्रता बनी रही।
अभिनंदन – प्रशंसा - स्वागत, हमें महान पुरुषों का अभिनंदन करना चाहिए।
पाठ-4
जागरण गीत
सोहनलाल द्विवेदी
लघुउत्तरीय प्रश्न
Vvi.(क) 'उदयाचल' और 'अस्ताचल' शब्दों का क्या अर्थ है ?
उत्तर : उदयाचल का अर्थ है- पूर्व दिशा में स्थित वह काल्पनिक पर्वत जहाँ से सूर्य उदित होता है। यह जीवन में प्रगति का प्रतीक है।
अस्ताचल का अर्थ है पश्चिम का वह कल्पित पर्वत जिसके पीछे सूर्य का अस्त होना माना जाता है।
(ख) 'विपथ' होने का आशय क्या है?
उत्तर : यह उनके लिए कहा गया है जो अज्ञान और अकर्मण्यता के कारण सच्चे रास्ते को छोड़कर पथभ्रष्ट बन जाते हैं। अपने लक्ष्य पथ से भटक जाते हैं।
(ग) 'कल्पना में उड़ने' से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : कल्पना में उड़ने से तात्पर्य है- कल्पना के हवाई महल बनाना, मन में ऊँची-ऊँची कल्पनाएँ करना, मन में करोड़ों की संपत्ति जोड़ना। ऐसे लोग कर्मठ बनकर कार्य सिद्ध करने की चेष्टा नहीं करते। केवल बड़ी-बड़ी बातें किया करते रहते हैं।
(घ) मँझधार में कवि किसको और कैसे पार लगाएगा?
उत्तर : जो लोग मँझधार को देखकर घबड़ा जाते हैं उन्हें कवि पार लगाना चाहता है। उन्हें कवि सहारा दे रहा है कि पतवार लेकर घबड़ाएँ नहीं। कवि उन्हें तट पर थकने नहीं देगा, उन्हें पार लगाने की चेष्टा करेगा ।
बोध मूलक प्रश्न
(क) प्रस्तुत कविता में कवि किसे जगा रहा है तथा उन्हें क्या हिदायतें
दे रहा है?
उत्तर : प्रस्तुत कविता में कवि उन लोगों को जगा रहा है जो वास्तविक स्थितियों से मुँह मोड़कर कल्पनाओं की दुनिया में जीते हैं। कवि उन्हें हिदायत दे रहा है कि अब कल्पना करना छोड़कर वास्तविक जीवन जीने का प्रयास करें। अपने को पतन की ओर नहीं, प्रगति की ओर ले जाएँ। प्रयत्न करने से वे पीछे न हटें। आकाश छोड़कर धरती पर अपनी निगाह रखें। कर्मठ, कर्त्तव्य परायण बनें। अज्ञान की नींद छोड़कर सजग सावधान बनें।
(ख) मानव मन की किन संकीर्णताओं का वर्णन पाठ में हुआ है? उनका वर्णन करें।
उत्तर : कवि ने मानव मन की अनेक संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है। आज लोगों के मन में जाति, धर्म, संप्रदाय, अमीर, गरीब को लेकर संकीर्णताएँ बनी हुई हैं। लोगों में हीन ग्रंथि बनी हुई है। उनके मन को नाना प्रकार के सामाजिक बंधन, रूढ़ियाँ, अंध विश्वास जकड़ रखे हैं। जब तक मन में साहस शक्ति का संचार नहीं होगा, आत्मबल नहीं बढ़ेगा, तब तक वह प्रगति मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता।
(ग) कवि लोगों को क्या करने और क्या न करने का संदेश दे रहा है? उत्तर: कवि लोगों को यह संदेश दे रहा है कि वे सजग, सावधान होकर कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ें। कल्पना लोक में विचरना बंद कर वास्तविक जगत् में रहे। मन में कवेल ऊँची-ऊँची कल्पनाएँ न करें। वास्तविक जीवन के बारे में सोचें। धरती के प्राणी बनें। कठिन कार्य के निर्वाह में सच्चा सुख मिलता है। प्रतिकूल स्थिति तथा रास्ते की कठिनाईयों को देखकर वे विचलित न हो। मन की संकीर्ण रूढ़ियों के बंधन को तोड़कर उदारवादी तथा मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाएँ।
(घ) निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ।
1. प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ ।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति में कवि कह रहा है कि वह लोगों को प्रगति की ओर ले जाने के लिए प्रस्तुत है। कवि लोगों के मन में शक्ति, साहस का संचार कर रहा है और प्रेरित कर रहा है कि वे आलस्य, अकर्मण्यता छोड़कर कर्त्तव्य परायण बनें, कल्पना करना छोड़कर वास्तविक धरातल पर जीएँ। पथभ्रष्ट बनें, सच्चे रास्ते का परित्याग न करें, मन में कभी हीन भावना न लाएँ, अपने को कमजोर न समझें । तभी निश्चित् रूप से वे जीवन में उन्नति करेंगे और प्रगति की और बढ़ेंगे।
(ङ) शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।
उत्तर: कवि लोगों को आश्वस्त कर रहा है कि वे जिसे काँटा समझ रहे हैं। उसे वे फूल बनाने के लिए प्रस्तुत हैं। वे लोगों के दुःख को दूर कर उसे सुख के रूप में बदलना चाहते हैं। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ
करना ही सुख नहीं है। इस झूठे सुख में नहीं पड़ना चाहिए। साहस के साथ कठिन से कठिन कर्त्तव्य का निर्वाह करना ही सच्चा सुख है। सच्चा सुख उत्तरदायित्व के निर्वाह में ही मिलता है।
भाषा और बोध
(क) वाक्य प्रयोग -
प्रगति - उत्थान- कर्मठ बनकर ही मनुष्य जीवन में प्रगति कर सकता है। अरुण - लाल सूर्य - प्रभात होते ही बाल अरुण उदय होते हैं।
शूल - काँटा (दुःख) - मनुष्य प्रयत्न कर शूल को फूल बना सकता है।
श्रृंखला - बंधन - हमें सभी श्रृंखलाओं को तोड़ देना चाहिए।
पतवार -पार उतारने का साधन -हाथ में पतवार लेकर नाविक थकता नहीं।
(ख) विलोम शब्द -
आकाश -पाताल
कल्पना - यथार्थ
दुःख -सुख
गुरु - लघु
फूल - शूल
(ग) उपसर्ग लगे शब्द
प्र - प्रगति
वि - विपथ
अ - अतल
सम् - संकीर्णताएँ
पर्यायवाची शब्द
नभ - आकाश, गगन, आसमान ।
धरती - धरा, पृथ्वी, भू ।
फूल -पुष्प, सुमन, कुसुम ।
सिन्धु- सागर, समुद्र, रत्नाकर।
पाठ-5
रक्षा बन्धन
हरिकृष्ण'प्रेमी'
लघुउत्तरीय प्रश्न
(क) रक्षा बंधन कविता में किसके किस अत्याचार की बात कही जा रही है?
उत्तर : रक्षा बंधन कविता में अंग्रेज शासकों के अत्याचार की बात कही जा रही है, अन्यायी शासकों ने लाखों युवतियों को विधवा बना डाला। हमारे देश को बेसहारा बना दिया।
(ख) आश्रयहीन होने पर बहन का माथा ऊँचा कैसे होगा?
उत्तर : आश्रयहीन होने पर भी बहन का माथा इसलिए ऊँचा होगा कि उसका भाई मातृभूमि की आजादी के लिए, देश को जालिमों के अत्याचार से बचाने के लिए आत्म बलिदान कर दिया। देश के नवयुवक वीरों को का देश पर मिटने के लिए अलख जगाने का उसे अवसर मिल जाएगा।
(ग) बहन भाई के उपहार को क्या कहती है ?
उत्तर : भाई के उपहार आँसुओं की बूँदों को बहन मणियों की भाँति बहुमूल्य कहती है। क्योंकि उन मणियों पर संसार न्योछावर हो जाता है।
(घ) भाई अमर नशे में कब झूमने की कामना करता है?
उत्तर : भाई रणक्षेत्र में आत्म बलिदान करने के लिए प्रस्थान की तैयारी कर रहा है। वह अपनी बहन को उपहार के रूप में आँखों के आँसुओं को देना चाहता है। उसी समय वह बहन से कहता है कि बहन अपने चरण कमल बढ़ाओ मैं उन्हें चूम लूँ । उसी समय भाई उसके पवित्र स्नेह से अमर नशे में झूमने की कामना करता है।
बोध मूलक प्रश्न
**(घ)हमारा देश कब और किस प्रकार अनाथ हो गया?
‘उत्तर : हमारा देश जब पराधीन था, अत्याचारी अंग्रेज यहाँ के शासक थे उस समय हमारा देश अनाथ हो गया। अन्यायी सरकार ने भारतीयों पर अनेक जुल्म किये। हमारे देश की सारी संपत्ति लूट कर अपने देश ले गए। देश को वीरान बना डाला। देश की आजादी के लिए आवाज उठाने वाले नवयवकों को शूली पर चढ़ा दिए। न जाने कितनी युवतियों के सौभाग्य लूट गये। इस प्रकार देश अनाथ हो गया।
(ङ) निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ।
1. अपना शीश कटा जननी की, जय का मार्ग बनाना है।
उत्तर : इस पंक्ति में कवि का कथन है कि अन्यायी शासकों की प्यास बुझाने के लिए देश के लाखों वीर नवयुवक रण क्षेत्र के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। सभी देशभक्त वीर पुरुष अपना मस्तक बलिदान कर भारत माता के विजय पथ को प्रशस्त बनाएँगे। अर्थात् अपने को न्योछावर कर भारत को स्वाधीन बनाएँगे |
2. बहन पोंछ ले अश्रु, गुलामी का यदि दुःख मिटाना है।
उत्तर : भाई बहन से कह रहा है कि वह उसके आँसू पोंछ कर उसे निर्द्वन्द्व बना दे । जिससे वह निश्चिन्त होकर रणक्षेत्र में अपनी वीरता से देश को स्वाधीन बना सके। शासकों को परास्त कर ही पराधीनता के दुःखों से देश को छुटकारा दिलाया जा सकता है।
3. उठो बन्धुओं, विजय वधू को वरो तभी निद्रा लेना ।
उत्तर : कवि भारतीय वीर युवकों को प्रेरणा दे रहा है कि वे उठें, शक्तिशाली बनकर विजय प्राप्त करें, विजय रूपी दुल्हन का वरण करें। विजय हासिल कर लेने के बाद ही सुख की नींद सोएँ, जब तक विजय नहीं मिलती तब तक आराम से दूर रहें।
भाषा बोध
(क) इन शब्दों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।
भीषण - युद्ध में भीषण अस्त्रों का प्रयोग होता है ।
क्रूर - क्रूर शासकों ने देश पर जुल्म ढहाया ।
चकनाचूर - नौकरी न मिलने से उसके सपने चकनाचूर हो गए।
विमल - विमल जल पीने लायक होता है।
आँचल - वह आँचल फैला कर दया की भीख माँग रही थी।
(ख) शब्दों के अर्थ में अन्तर बतलाइए ।
स्नेह (छोटो से) - बच्चों से स्नेह ।
प्यार - प्रेम-लोगों से प्रेम ।
अमूल्य - बेहद कीमती - कोहीनूर हीरा अमूल्य है।
बहुमूल्य - कीमती - यह कपड़ा बहुमूल्य है ।
ऊँचा - उन्नत, ऊपर उठा हुआ।
ऊँचाई - उठान, श्रेष्ठता ।
डाल - शाखा, तलवार का फल |
ढाल - आघात रोकने का एक साधन ।
(ग) 'अ' और 'उप' उपसर्गों से शब्द बनाइए
अ- अमूल्य, अकर्म, अचल, अजर, अधर्म ।
उप - उपहार, उपकार, उपवन, उपकरण ।
(ख) इन, ईय, हीन प्रत्ययों के योग से शब्द बनाइए ।
इन - भिखारिन, मालकिन, नातिन, पड़ोसिन ।
ईय - स्वर्गीय, जातीय, भारतीय, राष्ट्रीय।
हीन- आश्रयहीन, जलहीन, शक्तिहीन
पाठ-3
संन्यासी
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए।
1. पालू किस राज्य का निवासी था ?
(क) गुजरात (ख) राजस्थान (ग) पंजाब (घ) महाराष्ट्र
उत्तर : (क) गुजरात
2. 'यह न होगा' किसका कथन है?
(क) पालू के पिता का (ख) बालू का (ग) पालू का (घ) सुचालू का
उत्तर : (ग) पालू का
3. पालू की स्त्री किस रोग का शिकार होकर मर गई? (क) मलेरिया (ख) हैजा (ग) टाइफाइड (घ) तपेदिक
उत्तर : (ख) हैजा
लघुउत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) पालू किस गाँव का रहने वाला था ?
उत्तर : पालू लखनवाल गाँव का रहने वाला था
(ख) पालू की भाभी अवाक् क्यों रह गई ?
उत्तर : पालू की भाभी को आशंका था कि पालू संपत्ति बाँटने के लिए झगड़ा करेगा, लेकिन पालू घर-बार छोड़ जाने को तैयार हो गया और भाभी से बोला कि अब वह घर में नहीं रहेगा। इसलिए उसके बेटे को संभालो। यह सुनकर अवाक् रह गई।
(ग) स्वामी विद्यानंद कौन थे ?
उत्तर : पालू संन्यास ग्रहण कर ऋषिकेश में रहने लगा और अब वही पालू ही स्वामी विद्यानंद के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
(घ) भोलानाथ कैसा पुरुष था ?
उत्तर : भोलानाथ हाँडा का बड़ा सज्जन पुरुष था। उसके मन में स्नेह, दया तथा परोपकार की भावना थी। पालू का वह सच्चा मित्र था। सुक्खू (सुखदयाल) के प्रति उसके मन सच्चा स्नेह था।
(ङ) लोहड़ी क्या है ?
उत्तर : लोहड़ी एक त्योहार है। यह त्योहार बड़े समारोह के रूप में मनाया जाता है।
(च) पालू अपने पुत्र को किसके आश्रय में छोड़ गया था?
उत्तर : पालू अपने पुत्र को अपनी भाभी के आश्रय में छोड़ गया था।
बोध मूलक प्रश्न
(क) पालू किस बात में उस्ताद था ?
उत्तर : पालू बाँसुरी और घड़ा बजाने में उस्ताद था। हीर राँझे का किस्सा पढ़ने तथा जोग सहती के प्रश्नोत्तर पढ़ने में भी वह बेजोड़ था ।
(ख) पालू मन ही मन क्यों कुढ़ता था?
उत्तर : गाँव के लोग पालू के व्यवहार, उत्सवों के प्रति उसकी तत्परता तथा कला को देख सुनकर मुग्ध होते और उसकी अतिशय प्रशंसा करते थे। पर उसके घर के लोग उसके गुणों की कदर न करते थे। घर में उसे ठंडी रोटियाँ माँ की गालियाँ, भाभियों के ताने मिलते थे। इसी कारण पालू मन ही मन कुढ़ता था।
(ग) पालू के जीवन में किस तरह का परिवर्तन आ गया?
उत्तर : पालू के तैंतीस वर्ष की अवस्था में शादी हो गई। स्त्री के आते ही उसका संसार ही बदल गया। बाँसरी किस्से, कहानी सब को वह भूल गया। अब घर उसके लिए फूलों की वाटिका बन गया। कभी वह दिन के अधिकांश समय घर के बाहर रहता था किन्तु अब वह घर के बाहर ही नहीं निकलता। इस प्रकार विवाह के पश्चात् पालू के चरित्र और व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आ गया।
(घ) स्वामी प्रकाशानंद के पास स्वामी विद्यानंद क्यों गए?
उत्तर : स्वामी विद्यानन्द की भक्ति की सर्वत्र धूम मच गई। पर उनके मन शांति नहीं मिली। सुख की नींद नहीं आती थी। पूजा-पाठ में मन एकाग्र नहीं होता। उनके मन में ऐसी आवाज आती थी कि वे अपने आदर्श से दूर जा रहे हैं। वे चौंक उठते, पर कारण समझ में न आता। वे घबरा कर रोने लग जाते, परंतु चित्त को शांति न मिलती। इसी अशांति के समाधान के लिए वे स्वामी प्रकाशानंद के पास गए।
(ङ) सुखदयाल का कलेजा क्यों काँप गया?
उत्तर : भोलानाथ के घर से सुखदयाल अपने घर पहुँचा। भोलानाथ के घर उसने चिमटे से ताई द्वारा मारने की जो बात कही थी, वह ताई के कानों तक पहुँच गई। ताई के क्रोध की कोई सीमा न रही। रात अधिक बीत जाने पर मुहल्ले की स्त्रियाँ अपने-अपने घर चली गई। अब अपना क्रोध उतारने के लिए ताई सुखदयाल को पकड़ कर डाँटने लगी । उसके रौद्र रूप और व्यवहार को देखकर सुखदयाल का कलेजा काँप गया।
(च) पालू के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर : पालू अनपढ़ था, पर मूर्ख नहीं था। गुणों की खान था। बाँसुरी बजाने, किस्से-कहानी सुनाने में वह बेजोड़ था। गाँव में होली, दीपावली, तथा दशहरे में होनेवाले उत्सवों में उसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। उसके घर के लोग उसके गुणों की कदर नहीं करते थे। घर के बाहर वह गाँव वालों के साथ बड़ा ही व्यावहारिक था। उसका रूप रंग सुन्दर था, शरीर भी सुडौल था। उसमें प्यार तथा स्नेह की भावना भरी थी। अपने नन्हें पुत्र तथा नई पत्नी से वह अत्यधिक प्यार करता था। वह अपने हठ तथा सिद्धांत पर अडिग रहने वाला दृढ़ पुरुष था।उसमें कष्ट सहिष्णुता भर थी। बनने पर वह पर्वत पर रहता तथा पत्थरों पर सोता था। उसमें ईश्वर भक्ति तथा आत्मसंयम की भावना थी। अपने गुण के प्रति उसमें गहरी श्रद्धा थी। वह सदाचारी था। गुरु के आदेश को स्वीकार कर ही वह पुनः गृहस्थाश्रम को स्वीकार किया।
(छ) संन्यासी कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर : इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि गृहस्थ के उत्तरादायित्व का निर्वाह करना ही वास्तविक संन्यास है। गृहस्थ जीवन का निर्वाह किए बिना संन्यासी बनने से मन को शांति नहीं मिलती। सेवा मार्ग वन में भटकने से श्रेष्ठ है होता है। पुत्र, परिवार और अपने आश्रित जनों की सेवा करने से ही शांति मिल सकती है। कर्त्तव्य पालन ही सच्चा संन्यास है।
यथा निर्देश उत्तर दीजिए :
(क) मनुष्य सब कुछ सह लेता है, पर अपमान नहीं सह सकता ।
1. इस पंक्ति के लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर : इस पंक्ति के लेखक का नाम सुदर्शन है।
2. सप्रसंग इस पंक्ति का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : पालू अनपढ़ था, पर मूर्ख नहीं था। पिता प्रकारान्त से उसे निर्लज्ज कहते, आलोचना करते पर वह स्वभाव से बेपरवाह था, इसलिए हँसकर टाल देता। पर भाई और भाभियाँ भी बात-बात में ताने देने और घृणा की दृष्टि से देखने लगी। पालू सब कुछ सह सकता था, पर अपना इस प्रकार का अपमान नहीं सह सकता था। इसलिए इस अपमान को देखकर वह प्रतिकार स्वरूप पिता के पास जाकर शिकायत किया।
(ख) सारे गाँव में तुम्हारी मिट्टी उड़ रही है। अब भी बताने की बात बाकी रह गई है।
1. 'तुम्हारी' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है? मिट्टी उड़ने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : यहाँ तुम्हारी शब्द का प्रयोग पालू के लिए किया गया है। मिट्टी उड़ने का तात्पर्य है बदनामी होना। पालू के पिता उसे बता रहे हैं कि समस्त गाँव में उसकी बदनामी हो रही है।
2. इस अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर : पालू के पिता पालू से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि तुम सदा स्त्री के पास ही बैठे रहते हो। तुम्हारा अनोखा विवाह हुआ है। अपना विचार प्रकट करते हुए कहने लगे कि गाँव भर में तुम्हारी बदनामी हो रही है। सार गाँव तुम्हारी आलोचना कर रहा है। इससे अधिक बात क्या हो सकती हैं। हमें कुछ बताने, कहने की जरूरत ही नहीं है।.
(ग) 'बात साधारण थी, परन्तु हृदयों में गाँठ बँध गई।'
1. यह पंक्ति किस पाठ से उद्धत है ?
उत्तर : यह पंक्ति 'संन्यासी' पाठ से उद्धृत है। 2. किनके हृदयों में गाँठ बँध गई और क्यों?
उत्तर : पालू और उसके पिता के हृदयों में गाँठ बँध गई। पत्नी को उसके घर भेज देने का पिता का प्रस्ताव स्पष्ट शब्दों में पालू ने अस्वीकार कर दिया, पिता क्रोधित होकर उसे घर से किनारे करने के लिए कह दिया। अब पालू भी कड़ा उत्तर देते हुए कहा कि वह कहीं नहीं जाएगा। इसी घर में रहेगा, खाएगा। कौन उसे निकल सकता है। इसी बात पर दोनों के हृदयों में गाँठ बँध गई।
(घ) 'स्वामी विद्यानंद की आँखों में आँसू आ गए।'
1. स्वामी विद्यानंद कौन थे?
उत्तर : पालू ही स्वामी विद्यानंद थे। गृहस्थ जीवन त्याग पालू ऋषिकेश जाकर स्वामी विद्यानंद के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
2. उनकी आँखों में आँसू क्यों आ गए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : स्वामी विद्यानंद घर के अंदर गए। उन्होंने भतीजियों को चमेली के फूल की तरह खिला हुआ देखा। पर कभी मैना के समान चहकने वाला भी प्यारा नटखट बालक सुखदयाल उदासीनता की मूर्ति बना था। उसका मुख कुम्हलाया हुआ था। बाल रूखे थे, वस्त्र मैल-कुचैले थे। लगता था किसी भिखारी का लड़का है। अपने उस प्यारे पुत्र की इस दशा को देखकर स्वामी विद्यानंद पालू की आँखों में आँसू आ गए।
भाषा- बोध
1. निम्नलिखि शब्दों से उपसर्ग एवं मूल शब्द अलग कीजिए :
अभिमान - अभि + मान
असंभव - अ +संभव
निष्ठुर - नि: + ठुर
निर्लज्ज - नि: (नि) + लज्ज
अनपढ़ - अ (अन) + पढ़
अपमान - अप + मान
प्रतिक्षण -प्रति + क्षण
2. निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय पृथक् कीजिए :
झाँकियों - झाँक + इयों
धीरता - धीर + ता
नम्रता- नम्र+ता -
व्याकुलता - व्याकुल + ता
प्रसन्नता -प्रसन्न+ ता
सुंदरता - सुंदर + ता
3. पर्यायवाची शब्द लिखिए:
विधाता - ब्रह्मा, विरंचि, चतुरानन ।
चिड़िया - खग, विहग, पक्षी ।
संसार - विश्व, जगत्, दुनिया ।
चित्र - तस्वीर, आकृति, आकार ।
वस्त्र- कपड़ा, अम्बर, वसन, पट।
वाटिका - उद्यान, बागीचा, बाग
4. विलोम शब्द लिखिए:
सुन्दर- असुंदर, कुरूप
मूर्ख - विद्वान
विष - अमृत
चंचल - शान्त, स्थिर
अशांति - शांति ।
5. वाक्य प्रयोग कीजिए :
पिंजरा - पिंजरा में कैद पक्षी उड़ नहीं सकता।
गृहस्थी - गृहस्था संभालना हर व्यक्ति का फर्ज है।
एकाग्र - एकाग्र चित्त होकर पढ़ना चाहिए।
धर्मशाला - धर्मशाला में यात्री ठहरते हैं ।
समारोह - विवाह का समारोह धूम-धाम से मनाया जा रहा है।
पाठ-4 संस्कृति
भदंत आनंद कौसल्यायन
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनिए ।
(क) लेखक अपने तरीके से क्या समझाने की बात करता है?
(i) धर्म-अधर्म को
(ii) न्याय-अन्याय को
(iii) संस्कृति और सभ्यता को
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर : (iii) संस्कृति और सभ्यता को
(ख) मोती भरा थाल का क्या अभिप्राय है?
(i) थाल में भरा हुआ मोती
(ii) आकाश में जगमगाते तारे
(iii) घास पर झिलमिलती ओस की बूँदें
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर : (ii) आकाश में जगमगाते तारे
(ग) मानव संस्कृति है
(i) एक विभाज्य वस्तु
(ii) एक अविभाज्य वस्तु
(iii) अकल्याणकारी वस्तु
(iv) अस्थायी वस्तु
उत्तर : (ii) एक अविभाज्य वस्तु
लघुउत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
1. संस्कृति क्या है?
उत्तर : जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल से व्यक्ति आविष्कार करता है उसे, उस व्यक्ति की संस्कृति कहते हैं, संस्कृति का शाब्दिक अर्थ है।
--संस्कार या परिष्कार ।
2. सभ्यता का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : संस्कृति का परिणाम ही सभ्यता है। हमारे खाने-पीने के तरीके हमारे पहनने के तरीके, हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके सब हमारी सभ्यता है।
3. संस्कृति पाठ के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर : 'संस्कृति' पाठ के लेखक का नाम भदंत आनंद कौसल्यायन है।
4. मनीषी का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : बुद्धिमान, मेधावी विचारशील व्यक्ति को मनीषी कहते हैं।
बोध मूलक प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
1. आग की खोज किन कारणों से हुई?
उत्तर : आग की खोज में पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। जब आग का आविष्कार नहीं हुआ उस समय स्वयं जिस मनुष्य ने पहले आग का आविष्कार किया होगा वह महान आविष्कर्ता होगा। उसे भी पेट की ज्वाला से ही प्रेरणा मिली होगी।
2. न्यूटन कौन थे? उन्होंने किस सिद्धांत की स्थापना की?
उत्तर : न्यूटन एक महान वैज्ञानिक थे। वे संस्कृत मानव थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की स्थापना थी।
3. संस्कृत व्यक्ति किसे कहा जाता है?
उत्तर : जिस व्यक्ति ने अपनी बुद्धि अथवा विवेक से मानव के कल्याण के लिए किसी नये तथ्य की खोज की, उसे संस्कृत व्यक्ति कहते हैं।
4. सिद्धार्थ ने अपना घर क्यों त्याग दिया?
उत्तर : सिद्धार्थ ने अपना घर इसलिए त्याग दिया कि किसी तरह तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सकें।
5. संस्कृति और सभ्यता में मौलिक अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : सभ्यता संस्कृति का परिणाम है। जिस योग्यता, प्रवृत्ति और प्रेरणा से कोई आविष्कार होता है, उसे सभ्यता कहते हैं।
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए :-
(क) जिस व्यक्ति में पहली चीज, जितनी अधिक व जैसी परिष्कृत मात्रा में होगी, वह व्यक्ति उतना ही अधिक एवं वैसा ही परिष्कृत आविष्कर्ता होगा।
1. यह पंक्ति किस पाठ से उद्धत है? पहली चीज का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : यह पंक्ति ‘संस्कृति' पाठ से उद्धृत है। पहली चीज है किसी व्यक्ति • विशेष की आग का आविष्कार करने की शक्ति। पहले व्यक्ति के मन में इसकी प्रेरणा उत्पन्न हुई होगी। फिर आविष्कार हुआ होगा।
2. प्रस्तुत पंक्ति की व्याख्या कीजिए!
उत्तर : लेखक ने स्पष्ट किया है कि जिस व्यक्ति में योग्यता होगी, तभी प्रेरणा होने पर वह आविष्कार करता है। योग्यता और प्रेरणा जितनी सुरुचिपूर्ण होगी वह उतनी ही अधिक सुन्दर खोज कर सकेगा।
(ख) 'संस्कृति' का यदि मानव कल्याण से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा ?
1. असंस्कृति और असभ्यता का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : मानव की जो योग्यता उससे आत्म विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है उसे असंस्कृति कहते हैं। जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म विनाश में जुटा रहता है उसे असभ्यता कहते हैं।
2. संस्कृति का कल्याण की भावना से नाता टूटने का परिणाम क्या होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति 'होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का परिणाम निश्चित रूप से असभ्यता होगा।
भाषा-बोध
1. उपसर्ग एवं मूल शब्द अलग कीजिए:
उपयोग - उप + योग
अनेक -अन + एक -
प्रवृत्ति- प्र + वृत्ति
अपरिचित - अ + परिचित
महानायक - महा नायक
अविभाज्य - अ + विभाज्य
2. प्रत्यय पृथक कीजिए:
सभ्यता - सभ्य + ता
योग्यता - योग्य + ता
पूर्वज - पूर्व + ज
मानवता - मानव + ता
रक्षणीय - रक्ष् + अणीय
आध्यात्मिक - अध्यात्म + इक
3. विलोम शब्द लिखिए:
एक - अनेक
बड़ा - छोटा
अनायास -आयास
अपेक्षा - उपेक्षा
प्रथम - अन्तिम
कल्याण - अकल्याण
4. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में कीजिए :
आविष्कर्ता - आग की खोज करने वाला महान आविष्कर्ता होगा।
संस्कृति - भारतीय संस्कृति गौरवपूर्ण है।
परिष्कृत - जिसका स्वभाव परिस्कृत हों वह सबका प्रिय बन जाता है।
संसार - संसार में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं।
पाठ-5
अजन्ता की चित्रकला
राय कृष्णदास
लघुउत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) अजंता पहुँचने के लिए किस स्टेशन से किस ग्राम तक जाना पड़ता है?
उत्तर : अजंता पहुँचने के लिए जलगाँव, औरंगाबाद तथा पहूर इन तीन रेलवे स्टेशनों में से किसी स्टेशन से फरदापुर ग्राम तक जाना पड़ता है।
(ख) अजंता जाते समय किस नदी को पार करना पड़ता है?
उत्तर : अजंता जाते समय बघोरा नदी को पार करना पड़ता है।
(ग) अजंता की घाटी में किस प्रकार का वन है?
(घ) अजंता की किस गुफा में केवल प्रार्थना या उपासना की जाती श्री.
उत्तर : स्तूप गुफा में केवल प्रार्थना या उपासना की जाती थी ।
(ङ) अजंता की किस गुफा में केवल संध्या के समय ही सूर्य को अंतिम किरणें प्रवेश कर पाती हैं?
उत्तर : अजंता की पहली गुफा में केवल संध्या के समय ही सूर्य की अंतिम किरणें प्रवेश कर पाती हैं।
बोध मूलक प्रश्न
(क) अजंता के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर : प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से अजंता बेजोड़ है। नीचे नदी बहती है जिसमें बड़े-बड़े शिलाखंड हैं। उनसे टकराता हुआ पानी गुफाओं के ठीक नीचे एक कुंड में इकट्ठा होता है। घाटी में चारों ओर हरसिंगार के वन हैं। साथ ही और अनेक प्रकार के पुष्प और फल यहाँ उत्पन्न होते हैं। चित्र विचित्र पक्षियों का एक मेला सा लगा रहता है।
(ख) अजंता के चित्र निर्माण विधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : अजंता के चित्र निर्माण की विधि इस प्रकार थी - दीवार में जहाँ चित्रण करना होता था, वहाँ का पत्थर तोड़कर खुरदरा बना दिया जाता था। जिस पर गोबर, पत्थर का चूना या धान की भूसी मिले गारे का लेवा चढ़ाया जाता था, यह लेवा चूने के पतले पलस्तर से ढका जाता था और इस पर जमीन बाँधकर लाल रंग की रेखाओं से चित्र टीपे जाते थे जिसमें बाद में रंग भरा जाता था। यथोचित्त हल्का साया लगाकर चित्रों के अवययों में गोलाई, उभार और गहराई दिखाई गई है। हाथ की मुद्राओं से, आँख की चितवनों से और अंगों की लोच आदि से बहुत से भाव व्यक्त हो जाते हैं।
(ग) अजन्ता के सोलहवीं गुफा के दो चित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : सोलहवीं गुफा के दो चित्र उल्लेखनीय हैं - 'गहरी रात में भगवान बुद्ध गृह त्याग कर रहे हैं। यशोधरा और शिशु राहुल सोया हुआ है। पास की परिचारिकाएँ भी निद्रा में डूबी थी। इस दृश्य पर निगाह डालते हुए बुद्धदेव अंकित किए गए हैं। उस दृष्टि में मोह-ममता नहीं, बल्कि उनका अंतिम त्याग अंकित है। एक स्थान पर एक मरती हुई राजकुमारी का चित्र है। मरने की अवस्था और आस-पास वालों की विकलता दर्शकों को द्रवित कर देती है।
(घ) अजन्ता के सत्रहवीं गुफा के माता-पुत्र के चित्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर : इस चित्र में एक माता अपने पुत्र को किसी के सामने साग्रह उपस्थित कर रही है और पुत्र भी अंजलि पसार कर उस व्यक्ति के सामने उपस्थित है। चित्रों के सामने एक विशाल महापुरुष स्थित है। जिसके हाथ में भिक्षा पात्र है। बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद जब भगवान बुद्ध पुनः कपिलवस्तु में आए तो उन्हें यशोधरा राहुल से बढ़कर और कौन-सी भिक्षा दे सकती थी। इस चित्र में आत्म-समर्पण की पराकाष्ठा बेजोड है।
(ङ) जिन जातक कथाओं पर अजन्ता की चित्रकला आधारित है, उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए
उत्तर : चम्पेय जातक की कथा में बोधिसत्व किसी समय नागराज के रूप जन्म लिया था। चित्र में नागराज आसन पर विराजमान काशिराज की उपदेश दे रहे हैं। छदं जातक की कथा में बोधिसत्व एक जन्म में छह दाँतों वाले श्वेत वर्ण गजराज थे। इस चित्र में गजराज ने राजकुमारी को क्षमा का उपदेश दिया। सारी चित्रावली सजीव प्रतीत होती है। एक अन्य जातक दृश्य में तीन सौ चेहरे गिने जा सकते हैं। एक स्थान पर आकाशचारी दिव्य गायकों के समुदाय का रमणीय चित्र है ।
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए:
(क) कला की अभिव्यक्ति के लिए जिन लोगों ने ऐसे अपूर्व स्थान को चुना उनके चरणों में शत्-शत् प्रणाम है ।
1. यह पंक्ति किस पाठ से उद्धृत है ?
उत्तर : यह पंक्ति 'अजंता की चित्रकला' पाठ से उद्धत है। 2. इस पंक्ति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : अजंता की मूर्तिकला, चित्रकला और वास्तुकला को देखकर लेखक मुग्ध हो जाते हैं । लेखक अजंता की इस कला की कलात्मकता को व्यक्त करने वाले कलाकारों के प्रति श्रद्धा का भाव प्रकट करता है। उसका कथन है कि जिन लोगों ने कला को मूर्त रूप देने के लिए इस अनुपम स्थान का चयन किया वे वन्दनीय हैं। लेखक उनके चरणों में प्रणाम करता है।
(ख) 'उनके लिए चारों ओर कुछ है ही नहीं या हो ही नहीं रहा है। ' 1. 'उनके लिए' किसे संकेतित किया गया है?
उत्तर : यहाँ 'उनके लिए' भगवान बुद्ध को संकेतित किया गया है। 2. इस पंक्ति का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 'काम' की सेना भगवान बुद्ध को घेर कर उन्हें विचलित करने की चेष्टा कर रही है। भयंकर मूर्तियाँ तथा कामिनियाँ अपने-अपने उपाय से उन्हें साधना से विचलित करना चाहती हैं। पर भगवान अपनी चेतना में लीन हैं, उन पर इन चेष्टाओं का कोई असर नहीं, उनके लिए वहाँ कुछ भी नहीं है। वे अपनी साधना में अडिग बने हुए है।
(ग) 'प्रत्येक भारतीय को अपने उन अज्ञात पूर्वजों पर गर्व है।'
1. प्रस्तुत पंक्ति के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति के लेखक का नाम राय कृष्णदास हैं।
2. प्रत्येक भारतीय को किन पर गर्व है और क्यों?
उत्तर : प्रत्येक भारतीय को उन पूर्वजों पर गर्व है क्योंकि उनके पूर्वज कलाकारों ने अजन्ता के आलौकिक चित्रों का निर्माण किया। इस महान कार्य को करने के बाद किसी ने अपना नाम तक नहीं छोड़ा। मानव हृदय के उदात्त भावों के सजीव चित्रण में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया।
भाषा- बोध
1. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग एवं मूलशब्द पृथक् कीजिए :
अपूर्व - अ + . पूर्व
सुसंबद्ध - सु + संबद्ध
अद्वितीय - अ + द्वितीय
यथोचित - यथा + उचित
प्रवृत्त - प्र + वृत्त
2. निम्नलिखित शब्दों से प्रत्यय पृथक् कीजिए :
गुफाएँ - गुफा + एँ
पहाड़ियाँ – पहाड़ + इयाँ
गहराई - गहरा + ई
आन्दोलित - आन्दोलन + इत
3. पर्यायवाची शब्द लिखिए:
प्रेम - स्नेह, अनुराग, प्रीति ।
धैर्य – धीरज, सब, धीरता ।
पक्षी - खग, विहग, चिड़िया
घोड़ा - तुरंग, अश्व, घोटक ।
हाथी - गज, कुंजर, करी, हस्ती ।
माता - माँ, जननी, अम्ब, महतारी
4. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में कीजिए :
वर्तुलाकार - वहाँ के कुछ चित्र वर्तुलाकार हैं ।
हस्त- कौशल - इन चित्रों का हस्त कौशल दर्शनीय है।
चित्ताकर्षक- उपवन की शोभा चित्ताकर्षक है।
रमणीय - बाग में एक सरोवर है।
निबंध
1)समय का सदुपयोग
विश्व में यदि सबसे अधिक मूल्यवान कोई भी वस्तु है, तो उस वस्तु को समय के नाम से जाना जाता है, क्योंकि हम अन्य वस्तुओं को तो दोबारा भी प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु समय को नहीं।समय एक बार बीत जाए तो उसको हम कभी भी दोबारा प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि समय कभी भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता वह तो स्वतंत्र रूप से चलता रहता है।
प्रकृति के समस्त कार्य समय के अधीन हैं, जन्म, बचपन,जवानी बुढ़ापा सब समय के साथ बीत जाते हैं, इसीलिए सभी मनुष्यों को समय के महत्व को जानना चाहिए और समय का सदुपयोग करना चाहिए।क्योंकि जो भी व्यक्ति समय के साथ चलते हैं, वह अपने जीवन में सब कुछ प्राप्त करते हैं और देश तथा समाज में सम्मान के पात्र होते हैं।
आज मनुष्य ने जो प्रगति की है, जो सुख के साधन मनुष्य के पास है वे समय के सदुपयोग के कारण ही है। अगर आप समय बर्बाद कर दोगे तो समय आपको बर्बाद कर देगा।इसलिए समय का महत्व सभी के लिए जरूरी है, चाहे वह विद्यार्थी हो या फिर कोई बिजनेसमैन सभी को समय की परख करनी चाहिए और समय के साथ निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए|
तभी वह व्यक्ति समय का सदुपयोग करके एक सफल व्यक्ति के रूप में उभर सकता है, जो लोग समय के महत्व को नहीं समझते समय का दुरपयोग करते है,वे अपने जीवन में सफल नहीं होते और जिंदगी भर पछताते है। उन्हें जिंदगी में कुछ हांसिल नहीं होता उन्हें कई दुख झेलने पड़ते है।
इसलिए समय के महत्व को पहचानकर प्रत्येक मनुष्य को सही दिशा में कार्य करते रहना चाहिए। संसार के जितने भी सफल व्यक्ति हैं, उनकी सफलता का मूल मंत्र समय का सदुपयोग ही है।
अगर कोई भी सफल व्यक्ति बनना चाहता है तो उसे समय के मूल्य को समझना चाहिए और उस पर विचार करके अपने आप को प्रगति के पथ पर अग्रसर करते रहना चाहिए, जिससे आप को अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त होगी और आप एक सफल व्यक्ति बन पायेंगे।
2) विद्यार्थी जीवन और अनुशासन
विद्यार्थी, जीवन का महत्वपूर्ण चरण जब हम बाल्यावस्था से निकल कर शिक्षा ग्रहण करने जाते है। इस काल में हम जीवन की मजबूत नींव रखना शुरू करते है और वह सारी चीजें सीखना शुरू करते है, जिससे हमारा सम्पूर्ण जीवन सफल और सुखमय बना सके। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन अनिवार्य गुण होता है, इसके बिना सफलता असंभव है।
अनुशासन जीवन को व्यवस्थित और आपके समय को उद्देशयपूर्ण बनाता है। इसके अभाव से अपरिपक्व विद्यार्थी पथ से भटक सकते है और अपना कीमती समय बर्बाद कर लेते है। इसके बिना सपनों को सच करना असंभव है।
आज विद्यार्थियों की दशा दयनीय होती जा रही है, इसके लिए हमारा नकारात्मक होता समाज उत्तरदायी है । आज विद्यार्थी की अनुशासनहीनता गंदे परिवेश की उपज है। हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली चरित्र निर्माण, नैतिक शिक्षा, उच्च संस्कार और जीवनशैली से कोशों दूर हो गई है। समाचार पत्र, टेलीविजन, चलचित्र इत्यादि में नकारात्मकता और उत्तेजना को भड़काने वालों का उदाहरण बन गया है। विद्यार्थी अभिनेताओं की नक़ल करने लगे है, उनकी नकारत्मकता उन्हें प्रेरित करती है। वे अभिनेताओं के अभिनय को सच मानने लगे है। शिक्षा संस्था में राजनीति भी अनुशासनहीनता का एक प्रमुख कारण है।
विद्यार्थी जीवन, जीवन का निर्माण का समय होता है। इस समय जीवन को अनुशासित और उद्देश्यपूर्ण बनाना आवश्यक होता है। इसके लिए सभी को आगे आना होगा और विद्यार्थियों को बेहतर परिवेश देना होगा।
अनुशासनहीन विद्यार्थी समाज के लिए खतरा बन सकता है। अतः उन्हें अनुशासित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे। विद्यार्थियों को भी अनुशासन के महत्व को समझकर स्वयं को अनुशासित करना चाहिए।
3)पुस्तके सर्वश्रेष्ठ मित्र
पुस्तक हमारे जीवन के आधार होते हैं और हर व्यक्ति को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर इनको साथी आवश्य बनाना पड़ता है। पुस्तक हमारे सच्चे दोस्त होते हैं जिनके रहते जीवन को एक सही दिशा मिलती है। कभी-कभी तो ये हमारे पक्के दोस्त भी होते हैं, जो हमे वर्णमाला से लेकर जीवन के कठिन सवालों तक के जवाब बड़े आसानी से दे देते हैं।
पुस्तकों का जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव
पुस्तकें ज्ञान का भंडार होते हैं और इनका साथ आपे जीवन में कई परिवर्तन ला सकता है। एक पुस्तक कभी आपको धोखा नहीं देता और सदैव आपके ज्ञान को बढाता ही है।
आप इसमें रोचक कहानियां, देश दुनिया में होने वाली गतिविधियाँ, कुछ नया सीखने का तरीका, आदि आसानी से सीख सकते हैं। पुस्तक पढ़ना एक अच्छी आदत है और हम सबको इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए।
हमारे इतिहास में कई महापुरुष रहे हैं और उनके वक्तव्य और ज्ञान भरी बातों को हम आसानी से पुस्तकों में पढ़ सकते हैं। जैसे की गांधीजी, जो भले आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी विचारधारा अभी भी जिन्दा है।
निष्कर्ष
पुस्तकों की उपयोगिता हमारे जीवन में बहुत अधिक है, वे हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करती हैं और बदले में हमसे कुछ लेती भी नहीं है। तो क्यों न इन्हें ही अपना साथी बना लिया जाये। पहले के ज़माने में पुस्तक नहीं हुआ करते थे और गुरूजी बच्चों को सब कंठस्थ कराया करते थे। परंतु पुस्तक के आविष्कार के बाद लोग पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान का हस्तांतरण एक युग से दुसरे युग में करने लगे। पुस्तकों के आविष्कार के कारण ही हम अपने इतिहास को जान पाए। शायद शब्द कम पड़ जाएँ लेकिन उनकी उपयोगिता कम नही होगी।इसलिए पुस्तके हमारी सच्ची मित्र होती है। एक बार आपका कोई दोस्त आपका साथ छोड़ सकता है, पर पुस्तके कभी हमारा साथ नहीँ छोड़ती। दुख में सुख में हंसी खुशी सभी मे पुस्तके एक सच्ची मित्र बनकर हमारा साथ निभाती है।
पत्र
अवकाश के लिए प्रधानाचार्य को पत्र
1) 2 दिन के अवकाश/छुट्टी हेतु प्रार्थना पत्र।
सेवा में,
श्री प्रधानाचार्य जी,
केंद्रीय विद्यालय,
कपूरथला,
विषय : 2 दिन के अवकाश/छुट्टी हेतु प्रार्थना पत्र।
आदरणीय महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि में कल रात से ज्वर से पीड़ित हूँ ।डॉक्टर ने मुझे 2 दिन आराम करने की सलाह दी है; अन्तः मैं 20 जनवरी से 22 जनवरी 2022 तक विद्यालय आने में असमर्थ हूँ।
अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि मुझे 2 दिनों का अवकाश प्रदान करें। इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।
धन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
नाम –
कक्षा – …..
दिनांक – 20 जनवरी , 2022
2)भाई की शादी के लिए 3 दिनों का अवकाश/छुट्टी
सेवा में,
प्रधानचार्य जी ,
चाणक्य इंटरनेशनल स्कूल,
कानपूर ,
विषय : भाई की शादी के लिए 3 दिनों का अवकाश/छुट्टी
मोहदय ,
सविनय निवेदन है की अगले सप्ताह मुझे बड़े भाई के विवाह के उपलक्ष्य में आगरा जाना पड़ रहा है | इसके फलस्वरूप में 22 अप्रैल से 25 अप्रैल तक विद्यालय में उपस्तिथ नहीं रह सकूंगा |
अन्तः आपसे विनम्र निवेदन है की मुझे 3 दिनों तक का अवकाश प्रदान करने की कृपा करे | मैं इसके लिए आपका सदैव आभारी रहूँगा |
आपका आज्ञाकारी छात्र
कक्षा सातवीं बी
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