Class 11 Hindi कविता notes

 

Class 11 Hindi कविता notes

कविता

पाठ-1
सूरदास के पद




खण्ड ख
 काव्य खण्ड (2x2 = 4)

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सूरदास के पद
Q.1.
"कहा करौं इहि रिस के मारै, खेलन हौं नहिं जात"
(क) कवि का नाम लिखिए। 
(ख) 'इहि रिस के मारै' का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : (क) कवि सूरदास हैं।

(ख) 'इहि रिस के मारै' का अर्थ है- इसी क्रोध के कारण। कृष्ण बलराम की शिकायत करते हुए कहते हैं कि बलराम मुझे यह कहते हैं कि तुम्हारा रंग सांवला है जबकि माता यशोदा गोरी हैं और पिता नन्द गोरे हैं, इसलिए तुम उनके पुत्र हो ही नहीं सकते। क्योंकि जिसकी माँ गोरी हो, पिता गोरे हो उसका पुत्र कभी सांवला हो ही नहीं सकता। मैं इसी क्रोध के कारण खेलने भी नहीं जाता। 

Q.2."नातरु कहा जोग हम छाँड़हि अति रूचि के तुम ल्याए"

(क) कवि का नाम लिखिए। (ख) इस अंश में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: (क) कंवि सूरदास हैं।

(ख) इस अंश में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि भला जिस योग को तुम इतनी रुचि से हमारे लिए लाए हो उससे भला हम कैसे इन्कार कर सकती हैं। हम तो स्याम की करनी को झाख रहे हैं जिन्होंने हमारा मन लेकर योग-संदेश भेज दिया है।

Q3. 'मैया मोहि दाऊ बहुत खिजाओ' -

(क) इस अंश के रचयिता का नाम लिखिए। (ख) निहित भाव स्पष्ट करें। उत्तर: (क) इस अंश के रचयिता सूरदास हैं।

(ख) प्रस्तुत अंश में कृष्ण भाई बलराम की शिकायत करते हुए यशोदा से कहते हैं कि मैया, मुझे दाऊ अर्थात् बलराम ने काफी चिढ़ाया है।

Q.4.'तू मोही को माँरन्ह सीखी, दाऊ 'कबहुँ' न खीजी' -

(क) प्रस्तुत अंश के रचनाकार कौन हैं? (ख) निहित भाव स्पष्ट करें। 

उत्तर:
 (क) प्रस्तुत अंश के रचनाकार सूरदास हैं।
(ख) जब कृष्ण बलराम की शिकायत यशोदा से करते हैं और उसका कोई प्रभाव यशोदा पर नहीं दिखाई देता है तो यशोदा की ही शिकायत पर उतर आते हैं। वे यशोदा से कहते हैं कि तुमने तो केवल मुझे ही मारना सीखा है, दाऊ पर तो तुम कभी क्रोध भी नहीं करती हो। 

Q.5. 'मोहन कौ मुख रिस-सॅमेत लख, जसुमत मँन अंत रीमी'

(क) रचनाकार का नाम लिखें। (ख) कृष्ण की किस बात से यशोदा मन ही मन उसपर रीझ जाती हैं ?

उत्तर: (क) रचनाकार सूरदास हैं।
(ख) जब यशोदा उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं देती तो कृष्ण उसपर पक्षपात करने का आरोप लगाते हैं। कृष्ण की इन्हीं बातों से यशोदा मन ही मन उसपर रीझ जाती हैं।

Q.6.'सुनहु कान्ह, बलमद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत' 
(क) रचनाकार का नाम लिखें। (ख) पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें।

उत्तर: (क) रचनाकार सूरदास हैं। 
(ख) जब दाऊ की शिकायत करने पर यशोदा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती तो यशोदा पर ही पक्षपात करने का आरोप लगाते हैं। इसी बात पर यशोदा कृष्ण को समझाते हुए कहती है कि कृष्ण सुनो, बलराम तो चुगलखोर है, वह जन्म से ही धूर्त है।

Q.7.'सूर स्याम मोहि गोधन की सौं, हौं माता तू पूत'

(क) प्रस्तुत अंश के रचनाकार कौन हैं? 
(ख) यहाँ कौन किसकी सौगंध खा रहा है और क्यों?

(क) प्रस्तुत अंश के रचनाकार सूरदास हैं।

(ख) कृष्ण यशोदा से यह कहते हैं कि वह कृष्ण के साथ इसलिए पक्षपात करती हैं क्योंकि वह उनका पुत्र नहीं है। यह सुनकर यशोदा का हृदय दो टूक हो जाता है। वे कृष्ण को विश्वास दिलाने के लिए कहती है कि मैं गायों की सौगंध खाकर कहती हूँ कि मैं माँ हूँ और तुम पुत्र हो।

Q.8. मधुवन तुम कत रहत हरे।
विरह बियोग स्याम सुन्दर के ठाढ़े क्यों न जरे ।

(क) रचनाकार का नाम लिखें। 
(ख) पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें।

उत्तर:
(क)रचनाकार भक्तिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास हैं। 
(ख)श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद गोपियाँ उनके विरह की आग में जल रही हैं। लेकिन उन्हें आश्चर्य होता है कि जिस मधुवन में कृष्ण गायों को चराते थे, विविध लीलाएँ किया करते थे उस पर कृष्ण के विरह का कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। इसलिए गोपियाँ मधुवन को इस बात के लिए कोसती हैं कि कृष्ण के वियोग में भी तुम किस प्रकार हरे-भरे हो? क्यों नहीं तुम उनके विरह में खड़े-खड़े ही जल जाते हो ?

Q.9.
मोहन बेनु बजावत तुम तर, साखा टेकि खरे । मोहे थावर अरु जड़ जंगम, मुनि जन ध्यान टरे ।।
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। 
(ख) ससंदर्भ पंक्तियों का आशय लिखें।

उत्तर:(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास द्वारा रचित 'भ्रमरगीत' से उद्धृत हैं। 
(ख)पद की इन पंक्तियों में गोपियाँ मधुवन को यह याद दिलाती हैं कि इसी मधुवन में कृष्ण शाखा के सहारे पेड़ के नीचे बाँसुरी बजाया करते थे । बाँसुरी की उस धुन को सुनकर बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी अपनी सुधबुध खो बैठते थे। यहाँ तक कि मधुवन के सम्पूर्ण जड़-चेतन भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं रह पाते थे। आज कृष्ण हमारे बीच नहीं हैं क्योंकि वे मथुरा चले गए हैं। क्या तुम्हें उनकी ये सारी बातें याद नहीं आती हैं ?

Q.10. वह चितवनि तू मन न धरत है, फिरि-फिरि पुहुप धरे ।

सूरदास प्रभु विरह दावानल, नख सिख लौं न जरे ।
 (क) वक्ता तथा श्रोता कौन है ? 
(ख) पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें । .

उत्तर : (क)वक्ता गोपियाँ हैं तथा श्रोता मधुवन है ।
 (ख)कृष्ण के विरह का मधुवन पर कोई प्रभाव पड़ता न देखकर गोपियाँ मधुवन से पूछती हैं कि क्या तुम्हें कृष्ण की मोहिनी सूरत की कभी याद नहीं आती है ? अगर तुम्हें उनकी याद आती तो तुम बार-बार पुष्प धारण नहीं करते। सूरदास कहते हैं कि प्रभु के विरहरूपी दावानल में तुम क्यों नहीं सिर से पैर तक जल जाते हो? मधुवन सुख के क्षणों में गोपियों के साथ था इसलिए गोपियाँ चाहती हैं कि वे दुःख के क्षणों में भी उनके साथ हो।

Q.11. "पुँन्ह पुँन्ह कहत कौन है माता, कौन तिहारौ तात"
(क) इस अंश के रचयिता का नाम लिखिए। 
(ख) निहित भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर:(क)प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास द्वारा रचित 'वात्सल्य के पद' से ली गई हैं। 
(ख)बालक कृष्ण बलराम की शिकायत यशोदा से करते हुए कहते हैं कि बलराम मुझे बार-बार सबके सामने चिढ़ाते हैं और इसी क्रोध के कारण मैं बाहर ग्वाल-बाल के साथ खेलने नहीं जाता हूँ। वे बार-बार मुझे यह कहते हैं कि बताओ, तुम्हारी माँ कौन हैं और तुम्हारे पिता कौन हैं? बलराम की यह बात बालक कृष्ण के कोमल हृदय को छू जाती है इसलिए वे इसकी शिकायत माता यशोदा से करते हैं। इन पंक्तियों में सूरदास ने कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाओं का बड़ा ही स्वाभाविक वर्णन किया है।

Q.12. "कहा करौं इहि रिस के मारै, खेलन हौं नहिं जात"

(क) कवि का नाम लिखिए। 
(ख) 'इहि रिस के मारै' का आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर: (क) कवि सूरदास हैं।.
'इहि रिस के मारै' का अर्थ है- इसी क्रोध के कारण। कृष्ण बलराम की शिकायत करते हुए कहते हैं कि बलराम मुझे यह कहते है कि तुम्हारा रंग सांवला है जबकि माता यशोदा गोरी हैं और पिता नन्द गोरे हैं, इसलिए तुम उनके पुत्र हो ही नहीं सकते। क्योंकि जिसकी माँ गोरी हो, पिता गोरे हो तो उसका पुत्र कभी सांवला हो ही नहीं सकता। मैं इसी क्रोध के कारण खेलने भी नहीं जाता।

Q.13. ऊधौ मन नहि हाथ हमारे ।

(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें ।
 (ख) ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें ।

उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा रचित 'भ्रमरगीत' से ली गई है।
(ख) उद्धव जब गोपियों को निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने को कहते हैं तो गोपियाँ अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहती है कि हे उद्धव! भला तुम्ही बताओ हम किस मन से निर्गुण ब्रह्म की उपासना करें हमारे मन पर तो कृष्ण का अधिकार है। जब हमारे मन पर हमारा अधिकार ही नहीं तो हम किस मन से निर्गुण ब्रह्म की उपासना करें।

Q14.रथ चढ़ाई हरि संग गए लै, मथुरा जबहि सिधारे ।
 नातरु कहा जोग हम छाँड़हि, अति रुचि कै तुम ल्याए ।

(क) रचनाकार का नाम लिखें। 
(ख) पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर:
(क)रचनाकार भक्तिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी हैं। 
(ख)गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि जब श्रीकृष्ण रथ पर चढ़कर मथुरा जा रहे थे तभी वे अपने साथ हमारे मन को भी लेते गए। अब तो हमारा मन हमारे हाथ में नहीं है, अन्यथा जिस योग को तुम इतने रुचि और प्यार से लाए हो उसे क्या हम बिना सीखे ही छोड़ देती। गोपियाँ अपनी विवशता को यहाँ उद्धव के सामने इस प्रकार भोलेपन से प्रस्तुत करती हैं कि उद्धव का सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है। 

Q.15.हम तौ झँखतिं स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए अजहुँ मन अपनौ हम पावैं, तुम तैं होइ तो होइ ।।

(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। 
(ख) पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : (क)रचना का नाम 'भ्रमरगीत' है तथा रचनाकार सूरदास हैं |
(ख)गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हम तो अपनी करनी का फल भोग रही हैं। भला हमने क्यों अपने मन को कृष्ण के साथ जाने दिया फिर भी हम तुमसे आग्रह कर रहे हैं कि तुम अपनी तरफ से प्रयत्न करके देखो। शायद तुम्हारे प्रयत्न से हमारा मन वापस मिल जाए। गोपियाँ उद्धव के सामने ऐसा प्रस्ताव रख देती हैं कि उद्धव से भी कुछ कहते नहीं बनता है ।

Q.16.सूर सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करेंगी सोइ ।

 (क) वक्ता कौन है ? 
(ख) पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें ।

उत्तर:(क)वक्ता गोपियाँ हैं।
(ख)गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि यदि तुम हमारे मन को श्रीकृष्ण से वापस ला दो तो हम करोड़ों कसम खाकर यह कहती हैं कि तुम हमें जो भी कहोगे, वह हम करेंगे। गोपियाँ इस बात को अच्छी तरह से जानती हैं कि उद्धव उनके मन को श्रीकृष्ण से वापस नहीं ला सकते हैं। इसीलिए वे इस शर्त को उद्धव के सामने रख देती हैं कि यदि उद्धव इसमें सफल हो गए तो वे उद्धव की सारी बातों को मानने को तैयार हैं।

Q.17.गोरे नंद जसोदा गोरी 'यै' कित स्याम शरीर । चुटकी दै-दै हँसत ग्वाल सब, सिखै देत बलवीर ।।

(क) वक्ता कौन है ?
 (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।

उत्तर : (क) वक्ता कृष्ण हैं।
(ख) कृष्ण बलराम की शिकायत करते हुए कहते हैं कि बलराम मुझे यह कहते हैं कि तुम्हारा रंग सांवला है जबकि माता यशोदा गोरी हैं और पिता नन्द गोरे हैं, इसलिए तुम उनके पुत्र हो ही नहीं सकते। क्योंकि जिसकी माँ गोरी हो, पिता गोरे हो उसका पुत्र कभी सांवला हो ही नहीं सकता। बलराम के सिखाने पर ग्वाल-बाल सभी तालियाँ बजाकर हँसते हैं। इन पंक्तियों में सूरदास ने बालक कृष्ण के भोलेपन का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है।

Q.18. ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ।

(क) रचना एवं रचनाकार का नाम लिखें।
 (ख) ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें । 

उत्तर:-(क)प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास के 'वात्सल्य के पद' से ली गई है ।
(ख) माखन चुराने के बारे में कृष्ण अपनी सफाई देते हुए यशोदा से कहते हैं कि ग्वाल-बालों ने शत्रुतावश माखन मेरे मुख पर लिपटा दिया है। ऐसा लगता है कि तुम्हें मुझ पर भरोसा ही नहीं है । बालक कृष्ण ने अपने पक्ष में इतने भोलेपन से सफाई दी कि यशोदा भी एकबार सोचने को विवश हो जाती हैं। 

Q.19.

देख तुही छींके दध-माँखन्ह, ऊँचे घर लटकायौ। मैं बालक बहियँन्ह को छोटी, कैसे कर कहि पायौ।।

(क) रचना एवं रचनाकार का नाम लिखें।
 (ख) पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर:
(क)रचना 'सूरदास के पद' है तथा रचनाकार सूरदास जी है। 
(ख)कृष्ण माखन चोरी में रंगे हाथों पकड़े जाते हैं फिर भी वे इस बात को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने माखन नहीं चुराया है। वे कहते हैं कि जिस छींके (सिकहर) में दही-माखन रखा जाता है वह तो काफी ऊंचाई पर लटका है। मैं तो बालक हूँ और मेरे हाथ भी छोटे हैं- भला मैं अपने इन छोटे-छोटे हाथों से उन्हें कैसे पा सकता हूँ। ऐसे में तो मेरे माखन चुराने का प्रश्न ही नहीं उठता है।

Q.20. मुख-दघ पोंछ चतुरई कीन्हीं, दोनोँ पीठ-दुरायौ ।
डार साँरि मुसकाइ जसोधा, स्याँमें कंठ लगायौ ।।

(क) ससंदर्भ पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें। (ख) ससंदर्भ पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : (क)प्रस्तुत अंश सूरदास द्वारा रचित 'सूरदास के पद' के वात्सल्य के पद से लिया गया है। 
(ख)कृष्ण माखन चुराकर खाते हुए पकड़े जाते हैं। अभी भी माखन उनके मुख पर लगा हुआ है। झट उन्होंने अपने मुख को पोंछ डाला तथा माखन का दोना पीठ पीछे छुपा लिया। कृष्ण का यह भोलापन देखकर यशोदा अपना सारा क्रोध भूल जाती हैं तथा हाथ की छड़ी फेंक कर कृष्ण को अपने हृदय से लगा लेती हैं। सूरदास ने यहाँ बालक कृष्ण के भोलेपन तथा यशोदा के माता-हृदय का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1-सूरदास के वात्सल्य-वर्णन की विशेषताओं को लिखें । 

अथवा,
 पाठ्यपुस्तक में संकलित पदों के आधार पर सूरदास के बाल-वर्णन की विशेषताओं का उल्लेख करें । 
अथवा, 
पठित पदों के आधार पर सूरदास के वात्सल्य रस का वर्णन कीजिए ।

उत्तर : सूर ने बंद आँखों से वात्सल्य की जो रंगमयी मधुर झाँकी प्रस्तुत किया है, सम्पूर्ण साहित्य-जगत में वैसा कोई दूसरा नहीं कर सका। सूर वात्सल्य रस के सम्राट हैं। कृष्णमार्गी शाखा के प्रमुख कवि एवं कृष्ण के अनन्य आराधक सूर का बाल वर्णन, जन्म की आनंद बधाई से प्रारम्भ होकर जीवन की विभिन्न रस-भूमियों पर सहजता, पुलक, हर्ष, विनोद के साथ शैशव से कौमार्य अवस्था तक बढ़कर चरमावस्था को प्राप्त करता है। इसी कारण इनके बाल-वर्णन में सजीवता और सरलता के साथ मौलिकता पायी जाती है। इसीलिये आचार्य शुक्ल ने भी कहा है, "सूरदास को माँ यशोदा का हृदय प्राप्त था, जिसमें वे बाल कन्हैया की लीलाओं का अवलोकन करते थे।"

सूर के वात्सल्य-वर्णन में केवल नंद और यशोदा ही नहीं, अपितु गोप, ग्वाल-बाल, ब्रजवासी, गोपियाँ, वयोवृद्ध ग्रामीण, यहाँ तक कि राह चलते पथिक के हृदय में भी कृष्ण की सुंदर मूर्ति अंकित है ।

 सूर ने कृष्ण की बाल-छवि के रमणीय चित्रों के अतिरिक्त उनके बाल सुलभ चेष्टाओं एवं विविध क्रीड़ाओं के भी अत्यंत स्वाभाविक एवं मनोमुग्धकारी चित्र अंकित किये हैं, जिनमें कहीं श्रीकृष्ण घुटनों के बल आँगन में चल रहे हैं, कहीं मुख पर दधि का लेपन कर दौड़ रहे हैं, कहीं अपने प्रतिबिम्ब को मणि खम्भों में निहार रहे हैं तो कहीं हँसते हुए किलकारी भर रहे हैं|

"किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत ।

मनिमय कनक नंद के आंगन, बिंब पकरिबैं धावत । "

माता यशोदा शिशु कृष्ण को चलना सिखा रही हैं, किन्तु वे अपनी बाल सुलभ प्रवृत्ति के साथ कैसे अपना हाथ माता को पकड़ाते हैं तथा किस तरह डगमगाते हुए पैर आगे बढ़ाते हैं, इसे सूर ने इस तरह चित्रित किया है|

"सिखवत चलनि जसोदा मैया ।

अरबराइ कर पानि गहावत, डगमगाड़ धरनी धरै पैंया।"

एक बार माँ यशोदा कृष्ण को चन्दा दिखाकर खुश करती हैं। कृष्ण चाँद को खिलौने के रूप में पाना चाहते हैं और माँ से चाँद लेने की जिद करने लगते हैं। चन्दा के न मिलने पर वे माँ को धमकी देते हैं कि वे धरती पर लोट जायेंगे, दूध नहीं पीयेंगे और चोटी भी नहीं गुथवायेंगे। इतना ही नहीं, वे अब यशोदा के नहीं नंदबाबा के पुत्र कहलायेंगे|

"चंद्र खिलौना लैहों मैया
जैहों लोट अबै धरती पर, तेरी गोद न अइहौं । । "

धीरे-धीरे कृष्ण बड़े हो जाते हैं और उनको माखन-दही चोरी करने की आदत पड़ जाती है। कुछ दिनों तक गोपियाँ चुप रही, किंतु उनके इस उत्पात से तंग आकर वे यशोदा से शिकायत करती हैं|

"देखो माई या बालक की बात ।
वन-उपवन सरिता सर मोहे देखत स्यामल गात । 
मारग चलत अनीति करत है हठ करि माखन खात ।।"

जब माँ से जिद करके खेलने जाते हैं, तब बलराम और साथी सब कृष्ण को चिढ़ाने के लिये कहते हैं—याके माय न बाप इतना सुनकर कृष्ण कुपित होकर घर आ जाते हैं। माँ के पूछने पर रोते-रोते बताते हैं|

"मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो । 
मोसो कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो ।
तू चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हँसत सबै मुसकात।"

माँ के द्वारा बलदाऊ को पीटने की बात सुनकर कृष्ण चुप हो जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि सूर ने कृष्ण के विविध क्रीड़ाओं का सरस वर्णन किया है। कृष्ण का जैसा अद्वितीय, अनूठा चित्रण सूर ने किया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है अतः हम नि:संकोच कह सकते हैं कि सूर वात्सल्य रस के सम्राट हैं।



पाठ-2
रसखान के सवैये


खण्ड ख
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रसखान के सवैये


Q.1.
'ताहि अहीर की छोछरियाँ छछिया छाछ पै नाच नचावै'
 (क) 'ताहि' से संकेतित पात्र कौन है ? 
(ख) इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर : (क)'ताहि' से संकेतित पात्र कृष्ण हैं।
(ख)जिस कृष्ण को देवता तथा मुनि भी लाख प्रयत्न के बाद प्राप्त नहीं कर पाए उस कृष्ण को अहीर को छोकरियाँ प्रेम के वश में करके थोड़े से छाछ के लिए अपने इशारे पर नचाती हैं। 

Q.2.'जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद, अभेद, सुवेद बतावैं'
 (क) इस अंश के रचनाकार कौन हैं? 
(ख) पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर(क) इस अंश के रचनाकार रसखान हैं। 
(ख) रसखान कहते हैं कि कृष्ण को वेदों ने अनादि, अनंत, अखण्ड, अछेद, अभेद तथा सुवेद आदि नामों से पुकारा है।

Q.3.
'पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयो कर छत्र पुरन्दर धारण'
(क) 'पुरन्दर' का क्या अर्थ है? 
(ख) पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :(क) 'पुरन्दर' का अर्थ है- इन्द्र ।
(ख)रसखान अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि वे अगले जन्म लें तो उसी पर्वत (गोवर्धन) का अंश बने जिसे कृष्ण ने गोकुलवासियों को इन्द्र के कोप से रक्षा करने के लिए अपनी ऊंगली पर धारण किया था।

Q.4. आठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख नंद की गाई चराड बिसारौं'. 
(क) इस अंश के रचयिता का पूरा नाम लिखें।
 (ख) आठ सिद्धियाँ तथा नौ निधियों के नाम लिखें।

उत्तर:
(क) इस अंश के रचयिता रसखान हैं जिनका पूरा नाम है सैयद इब्राहीम 
(ख)आठ सिद्धियाँ है- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकम्य, ईशित्व और वशित्व|
 नौ निधियों के नाम हैं- पद्म, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व।

Q.5. 'नारद से सुक व्यास रहें, पचि हारे तऊ पर न पावै' 
(क) रचनाकार का नाम लिखें। (ख) आशय स्पष्ट करें।

उत्तर:-(क)रचनाकार रसखान हैं।
(ख)रसखान कहते हैं कि नारद, शुकदेव तथा व्यास जैसे मुनि भी कृष्ण के स्वरूप का पता लगाते-लगाते हार गए पर उसका पता न लगा सके।

Q.6. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।

(क) प्रस्तुत पंक्ति किस भाषा में रचित है ?
 (ख) रसखान अगले जन्म में मनुष्य योनि में जन्म लेने पर कहाँ बसना चाहते हैं ? क्यों ?

उत्तर: (क) प्रस्तुत पंक्ति ब्रजभाषा में रचित है।

(ख) रसखान अगले जन्म में मनुष्य होकर ब्रज भूमि में ग्वाल-बाल के साथ बसना चाहते हैं। वे ऐसा इसलिए चाहते हैं क्योंकि भक्त को चाहे जिस अवस्था में रहना पड़े, उसे उसके आराध्यदेव की निकटता का आभास होता रहे, यही उसके जीवन का लक्ष्य होता है।

Q.7. जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन

(क) इस अंश के रचनाकार कौन हैं ? 
(ख) पक्षी-रूप में जन्म लेने पर रसखान कहाँ निवास करने की इच्छा प्रकट करते हैं ?

उत्तर : (क) इस अंश के रचनाकार रसखान हैं।
(ख) पक्षी- रूप में जन्म लेने पर रसखान यमुना नदी के किनारे कदम्ब की डालियों पर निवास करना चाहते हैं जिनपर बैठकर कृष्ण बाँसुरी बजाया करते थे।

Q.8."पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारण" 
(क) प्रस्तुत पद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
 (ख) इसमें कौन-सी अन्तर्कथा शामिल है?

उत्तर :(क) प्रस्तुत पद्यांश 'रसखान के सवैये' पाठ से लिया गया है।
(ख) कृष्ण के आदेश से ब्रजवासियों ने इन्द्र की पूजा छोड़कर गायों तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी आरंभ कर दी। इस बात से इन्द्र कुपित हो गए। उसने ब्रज को डुबोने के लिए मूसलाधार वर्षा कर दी। तब कृष्ण ने ब्रज तथा ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाकर छतरी की तरह ब्रज के ऊपर लगा दिया। इन्द्र ब्रज का कुछ भी न बिगाड़ सके और उनका सारा गर्व नष्ट हो गया।

Q.9.'ताहि अहीर की छोछरियाँ छछिया भर छाछ पै नाच नचावै'

(क) 'ताहि' से संकेतित पात्र कौन है? 
(ख) इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : (क) 'ताहि' से संकेतित पात्र कृष्ण हैं।
(ख) जिस कृष्ण को देवता तथा मुनि भी लाख प्रयत्न के बाद प्राप्त नहीं कर पाए उस कृष्ण को अहीर को छोकरियाँ प्रेम के वश में करके थोड़े से छाछ के लिए अपने इशारे पर नचाती हैं।



दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


Q-1पाठ में संकलित रसखान के सवैये का सार अपने शब्दों में लिखें|
अथवा, 
रसखान की भक्ति भावना पर प्रकाश डालें। 
अथवा, 
पठित सवैये के आधार पर रसखान की भक्ति-भावना का वर्णन करें।
 अथवा, 
भक्त कवि के रूप में रसखान का मूल्यांकन करें। 
अथवा, 
रसखान की भक्ति पद्धति का विवेचन करें।

उत्तर: राजनैतिक क्षेत्र में हिन्दु तथा मुसलमानों के संबंध चाहे जो भी रहे हों लेकिन साहित्यिक क्षेत्र में मुसलमानों ने हिन्दी की अमूल्य सेवा की, वे हिन्दुओं के अधिक निकट आए। मुसलमानों का मूलमन्त्र है- "ला इला इल अल्लाह"अर्थात् अल्लाह के सिवाय कोई दूसरा नहीं। इतना होते हुए भी वे भारतीय कृष्ण-भक्ति परंपरा से बड़े प्रभावित हुए। पुरुषों ने ही नहीं मुसलमान स्त्रियों (ललद्य, राबिया) ने भी कृष्ण की पावन लीलाओं का वर्णन किया है। पुरुषा में कुछ मुसलमान ऐसे हुए जो कृष्ण-भक्ति में और भक्ति काव्य के प्रणयन में हिन्दुओं से भी बढ़-चढ़कर थे। ऐसे ही मुसलमान कवियों में एक नाम रसखान का भी है, जिसकी प्रशंसा में एक दिन भारतेंदु हरिश्चंद्र के मुख से सहज ही यह पंक्ति फूट पड़ी थी - "इन मुसलमान हरिजनन पै कोटिन हिन्दू वारिये।"

रसखान का अपने आराध्य के प्रति इतना आत्मसमर्पण है कि वे युगों-युगों तक उसका सानिध्य प्राप्त करना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि यदि मुझे अगले जन्म में मनुष्य योनि मिले तो मैं वही मनुष्य बनूं जिसे बज और गोकुल के ग्वालों के मध्य खेलने का अवसर मिले। यदि पशु-योनि मिले तो उसका गाय का जो नंद की गायों के साथ विचरण कर सके। यदि पाषाण-योनि मिले तो उसी पर्वत की शिला बनूँ, जिन्हें कृष्ण ने इन्द्र का गर्व खण्डित करने के लिए अपने हाथ से उठाया था और यदि पक्षी बनूँ तो मुझे यमुना तट पर उगे हुए कदम्ब के वृक्षों पर निवास करने का अवसर मिले।

रसखान को कृष्ण की याद सता रही है। वे व्यथित होकर कह रहे हैं कि उस लाठी और कामरी के लिए मैं तीनों लोकों का राज्य छोड़ देने को तैयार हूँ नंद की गायों को चराने के लिए आठों सिद्धि (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व) तथा नवों निधियों (पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व) के सुख का त्याग करने को उद्यत हूँ। जबसे मैंने अपनी इन आँखों से ब्रज के वन और तालाबों को देखा है तब से मैं उसके लिए इतना आतुर हो गया हूँ कि मैं वैभव के प्रतीक इन करोड़ों के सोने-चाँदी के महलों को ब्रज के करील कुंजों के ऊपर न्यौछावर कर सकता हूँ।

कृष्ण के इसी निर्गुण स्वरूप का वर्णन करते हुए रसखान कहते हैं कि कृष्ण के गुणों का शेषनाग, गणेश, शिव, सूर्य और देवताओं के राजा इन्द्र निरंतर स्मरण करते हैं। वेदों ने जिसे अनादि, अनंत, अखंड, अछेद, अभेद्य आदि विशेषणों से पुकारा है। नारद, शुकदेव तथा व्यास जैसे प्रकाण्ड पंडित भी अपनी पूरी कोशिश करके जिसके स्वरूप का पता लगाते लगाते हार गए लेकिन पता नहीं लगा सके, उसी कृष्ण को अहीर की लड़कियाँ थोड़े-से छाछ के लिए अपने इशारे पर नचाती हैं।

रसखान वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी हैं, अतः इनकी भक्ति-पद्धति वैष्णव भक्ति है। लेकिन ये वैष्णव-भक्ति की बंधी हुई परंपरा को मानने वाले नहीं थे। रसखान के मन में अपने आराध्य के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण, विश्वास एवं अनुराग है किन्तु अन्य कृष्ण भक्तों की तरह इनका हृदय संकीर्ण नहीं है। उदाहरण के लिए सूरदास कृष्ण को छोड़कर अन्य देव की उपासना करना उसी प्रकार हास्यास्पद समझते हैं, जिस प्रकार कामधेनु को छोड़कर छेरी (बकरी) का दूध निकालना। पर रसखान में यह संकीर्णता नहीं है। शिव और गंगा के प्रति भी इनके मन में श्रद्धा-भाव है।  इस प्रकार हम देखते हैं कि रसखान की भक्ति-पद्धति भावों पर अधिक आधारित है। इनके मन में जितनी आस्था कृष्ण के प्रति है, उतनी ही अन्य देवताओं के प्रति विशेषत: गंगा और शिव के प्रति उदार मन की यह उदारता रसखान के अतिरिक्त न तो अन्य कृष्ण-भवतों में मिलती है और न ही स्वच्छंदतावादी कवियों में।



जो बीत गई सो बात गई



1)"वह कच्चा पीने वाला है"
'कच्चा पीने वाला' से क्या अभिप्राय है? 
यह किस भाषा में रचित है ?
उत्तर :
 'कच्चा पीने वाला' से अभिप्राय है- जो सांसारिकता में, मोह-माया के बंधन में बँधा हुआ है।
 यह खड़ी बोली हिन्दी में रचित है।

2)"जो छूट गए फिर कहाँ मिले"

(क) पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (ख) यह किस भाषा में रचित है ? 
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने जो बीत गया उसे भूलकर आगे बढ़ने का संदेश दिया है और इसी सन्दर्भ में प्रकृति से प्रेरणा लेने को भी सन्देश दिया है। यह जीवन दर्शन की कविता है। इस कविता का मूल भाग है कि जीवन और मरण दोनों को हमें सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए। 
(ख) यह शुद्ध खड़ी बोली में रचित है।

3) "थे उसपर नित्य निछावर तुम"
(क) कवि का नाम लिखिए। (ख) कवि क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर :(क) कवि का नाम हरिवंश राय बच्चन है। (ख) कविता की इन पंक्तियों में बच्चन जी ने वर्तमान के प्रति अपनी आस्था की है। उनका कहना है कि हर वस्तु क्षणिक होती है फिर भी हमें प्रत्येक क्षणिक वस्तु से स्थायी होने का भ्रम पाल लेते हैं। इसी बात को उन्होंने प्रकृति के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है।
4)"जो मुरझाई फिर कहाँ खिली"
(क) आलोच्य अंश के रचनाकार कौन हैं ?
(ख) आलोच्य अंश में मुरझाई फिर कहाँ खिली का प्रयोग क्यों हुआ है ?

उत्तर : (क) आलोच्य अंश के रचनाकार हरिवंश राय बच्चन हैं

(ख) अलोच्य अंश में मुरझाई फिर कहाँ खिली के माध्यम से यह संदेश दिया है कि नष्ट हो जाने के बाद कोई भी वस्तु फिर अपने मूल रूप को नहीं प्राप्त कर सकती । डाली से टूटे हुए पत्र या पुष्प फिर डाली में नहीं जुड़ सकते, इस सत्य को हमें स्वीकारना होगा तभी हम जी सकेंगे ।





अकाल और उसके बाद

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1)'अकाल और उसके बाद' कविता में निहित भाव को अपने शब्दों में लिखें। अथवा, 'अकाल और उसके बाद' कविता में किस समस्या को उठाया गया है आलोचनात्मक उत्तर लिखें।

अथवा, 'अकाल और उसके बाद' कविता में व्यक्त नागार्जुन के विचारों को अपने शब्दों में लिखे अथवा, 'अकाल और उसके बाद' कविता में चित्रित वातावरण तथा उसके प्रभाव का वर्णन अपने शब्दों में करें ।

अथवा, 'अकाल और उसके बाद' कविता की आलोचनात्मक समीक्षा करें ।

उत्तर : 'अकाल और उसके बाद एक संक्षिप्त, विचार प्रधान प्रगतिवादी रचना है। इस कविता में दो अलग-अलग भावचित्रों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया गया है। भारतीय समाज में दो तरह के वर्ग हैं अमीर तथा गरीब अमीरों के जीवन पर बाढ़, अकाल आदि प्राकृतिक आपदाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। गरीब कठिन स्थिति के आघात को नहीं सह सकता । इस कविता में वर्णित अकाल केवल अन्न का अकाल नहीं है बल्कि यह मानवीय संवेदना, आपसी संबंधों तथा आदर्शों का भी अकाल है।

प्रस्तुत कविता में अकाल के बाद निम्न मध्यवर्ग के घरेलू वातावरण का संपूर्ण चित्र है। अकाल की मार से मनुष्य ओझल हो गया, वातावरण भी शांत है, ठहरा हुआ है। चूल्हा तथा चक्की जैसी जड़ वस्तुओं में भी मानवीय भावनाएँ पसरी हुई हैं, उनका उपयोग नहीं हो रहा है। मनुष्य के साथ ही छिपकलियाँ तथा चूहे भी विषम परिस्थिति से पराजित हैं। यह हारा हुआ सच है। डॉ. नामवर सिंह के शब्दों में -

“चूल्हा, चक्की, छिपकलियाँ, चूहे और कौए के अलावा दाने और धुएँ जैसी रोज की जानी पहचानी मामूली चीजों के द्वारा दो परस्पर विरोधी स्थितियों को जिस प्रकार मूर्त किया गया है, वह साधारण कवि के वश की बात नहीं है।"

अकाल प्राकृतिक आपदा है। आपदा चाहे कोई भी हो, मानवीय संवेदना को विचलित करती है। अकाल की स्थिति जीवन की उमंगों को हर प्रकार से क्षीण कर देती है। गरीब जनता के पास इतने पैसे नहीं कि वह रोजमर्रा की जरुरत की चीजों को खरीद सके । भारतेन्दु युग के कवि 'प्रेमधन' ने भी अकाल की मार्मिकता का वर्णन निम्नोक्त शब्दों में किया है -
"अब नहीं यहाँ खाने भर को भी जुटता ।
नहीं सिर पर टोपी, नहीं बदन पर कुरता ।। 
कभी न इसमें आधा चावल चुरता । 
नहीं साग मिले नहीं कन्द-मूल का भुरता ।।"

इस कविता में नागार्जुन ने अन्न की समस्या को प्रमुखता से उठाया है। 'मंगलसूत्र' नामक उपन्यास में प्रेमचंद ने भी इस समस्या को गंभीरता से उठाया है -
 "क्यों एक आदमी जिंदगी भर कड़ी मेहनत करके भी भूखों मरता है, और दूसरा आदमी हाथ-पाँव न हिलाने पर भी फूलों की सेज पर सोता है। बुद्धि जबाब देती है, यहाँ सभी स्वाधीन हैं, सभी को अपनी शक्ति और साधनों के हिसाब से उन्नति करने का अवसर है मगर शंका पूछती है - सबके समान अवसर कहाँ है? बाजार लगा हुआ है, जो चाहे वहाँ से अपनी इच्छा की चीजें खरीद सकता है। मगर खरीदेगा तो वही जिसके पास पैसे हैं और जब सबके पास पैसे नहीं हैं सबका बराबर अधिकार कैसे माना जाए?''
प्रस्तुत कविता का मूक प्रश्न यह है कि अकाल के समय गरीबों के घरों का जो वातावरण है उसके लिए कौन जबाबदेह है? इसका उत्तर पाने के लिए हमें कविता की उन सरहदों को छूना होगा, जो पूरे सामाजिक यथार्थ से जुड़ा है।


(2×2=4 marks)

Q.1)कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद 'कई दिनों के बाद' से क्या अभिप्राय है ? किस कविता से है ?

उत्तर : 'कई दिनों के बाद' का अभिपाय उन दिनों से है जब घर में अनाज के दाने आए।
यह 'अकाल और उसके बाद' कविता से है।
Q.2) "चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद ' 
(क) यहाँ कवि ने किस स्थिति का वर्णन किया है? 
(ख) इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यहाँ कवि ने घर में अनाज आने के बाद की स्थिति का वर्णन किया है। निम्नमध्यवर्गीय परिवार के लिए भर पेट अन्न की समस्या सबसे बड़ी समस्या है - और वह भी अकाल के दिनों में । जब घर में दाने आते हैं तो घर का वातावरण ही बदल जाता है। कल तक जो कुछ प्राणहीन दिखाई पड़ रहा था आज उसमें नयी चेतना, नवजीवन का संचार हो जाता है। अनाज के घर में आने से न केवल घर भर की आँखें चमक उठती हैं बल्कि कौए में भी स्फूर्ति केवल यह सोचकर हो जाती है कि अब अन्न के कुछ दाने उसे भी मिलेंगे। अकाल के समय में अत्र के अभाव का ऐसा व्यापक चित्र केवल नागार्जुन ही खींच सकते थे ।

Q.3."कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास, कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास।"
प्रश्न : ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें।

उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियाँ नागार्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद' से ली गई हैं । कविता की इन पंक्तियों में अकाल के प्रभाव का वर्णन है । निम्नमध्यवर्गीय परिवार के अन्न के अभाव में भूखे रहने का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं, घर की अन्य वस्तुओं पर भी स्पष्ट दिखाई देता है । जब चूल्हा नहीं जला तो इससे चक्की भी उदास हो गई। सहानुभूति दिखाने के लिए कानी कुतिया कई दिनों तक चूल्हे के पास सोई रही। यहाँ चूल्हे तथा चक्की का मानवीकरण कर वातावरण की भयावहता को दिखाया गया है।

Q.4."कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।"
(क) रचनाकार का नाम लिखें। (ख) पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
 उत्तर: रचनाकार नागार्जुन हैं।
जब घर में चूल्हा नहीं जला जो घर के अन्य जीव भी इससे अछूते नहीं रह पाए। मारे भूख के दीवारों पर छिपकलियाँ भी गश्त लगाती रही तथा चूहों की हालत भी पतली हो गई। वैसे इन पंक्तियों से घर का नायक गायब है लेकिन जब छिपकलियों तथा चूहों की ये हालत है तो उसकी हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

Q.5."दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद,
धुआँ उठा अंगिन के ऊपर कई दिनों के बाद । "
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें ।
(ख) ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें ।
 उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्तियाँ नागार्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद' से ली गई हैं । (ख) कविता की इन पंक्तियों में अकाल के बाद के सुखद स्थिति का वर्णन है क्योंकि कई दिनों के फाके के बाद घर में अनाज के दाने आए, चूल्हे जले और उसका धुआँ आँगन के ऊपर उठा । अत्र के आने से घर में उत्सव के जैसा माहौल हो गया। निम्नमध्यवर्गीय लोगों के जीवन में क्या केवल अनाज ही खुशियाँ ला सकती है यह एक विचारनीय प्रश्न है।



जो बीत गई सो बात गई


निम्नलिखित पद्यांश का ससंदर्भ अर्थ स्पष्ट करें: 
Q.1.
जो बीत गई सो बात गई। जीवन में एक सितारा था, माना, वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया, अम्बर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहाँ मिले,

उत्तर : मिलना और बिछुड़ना तो प्रकृति का शाश्वत नियम है। इस नियम को बदला नहीं जा सकता। हमें भी कभी कभी अपने अत्यंत प्रिय से बिछुड़ना पड़ता है - बात दुःख की है लेकिन हमें इसे सहज रूप से स्वीकार करना चाहिए। इसके लिए हमेशा दु:ख में रहना सही नहीं है क्योंकि दुःखी व्यक्ति संसार से कट जाता है। वह संसार में ऐसे वृक्ष की तरह रहता है जिसकी कोई जड़ न हो। जड़हीन वृक्ष भला संसार को क्या दे सकता है इसलिए हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए तथा जावन में जो कुछ है - उसके प्रति आस्था बनाए रखना चाहिए। बच्चन जी ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से हमें यही संदेश देना चाहा है।

बच्चन जी कहते हैं कि आकाश में कितने ही तारे हैं और उनमें से कितने ही तारे रोज टूट जाते हैं। टूटे हुए तारे फिर कभी नहीं मिलते लेकिन आकाश उन टूटे हुए तारों के लिए कभी शोक नहीं मनाता है। जो तारे हैं वह उसी में अपनी खुशी तलाश लेता है। इसलिए बीते हुए दुखपूर्ण समय को या बिछुड़ गए प्रिय को याद करके दुःखी होना व्यर्थ है।

Q.2.
जीवन में वह था एक कुसुम,
थे उसपर नित्य निछावर तुम,
वह सूख गया तो सूख गया, मधुवन की छाती को देखो,
सूखीं कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ, जो मुरझाईं फिर कहाँ खिली, पर बोलो सूखे फूलों पर, कब मधुवन शोर मचाता है जो बीत गई सो बात गई

उत्तर : कविता की इन पंक्तियों में बच्चन जी ने वर्तमान के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है। कभी ऐसा होता है कि हम जिसे बहुत चाहते हैं - वह हमारा साथ छोड़ देता है - हमेशा-हमेशा के लिए। यह तो प्रकृति का नियम है। यह संसार क्षणिक है। हर वस्तु क्षणिक होती है फिर भी हम प्रत्येक क्षणिक वस्तु से स्थायी होने का भ्रम पाल लेते हैं। इसी बात को बच्चन जी ने प्रकृति के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। कवि कहते हैं कि हम फुलवारी को देखें- यहाँ कितनी ही कलियाँ, कितनी ही लताएँ रोज सूखती हैं, मुरझाती हैं और फिर कभी नहीं खिल पातीं। लेकिन फुलवारी उन सूखे फूलों के लिए अपनी छाती नहीं पीटता है। जो समय बीत गया, उसको पकड़ने का प्रयास व्यर्थ है क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा करके हम अपने वर्तमान को भी दुःख से भर लेंगे। जिस दिन यह रहस्य हम समझ लेंगे- हमारा जीवन तत्काल दुःख से ऊपर उठ जाएगा।

Q.3.
जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन-मन दे डाला था, वह टूट गया तो टूट गया,मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्याले हिल जाते हैं,गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, जो गिरते हैं, कब उठते हैं, पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है ? जो बीत गई सो बात गई!

उत्तर : कविता की इन पंक्तियों में बच्चन जी ने जीवन की क्षणभंगुरता को भुलाकर वर्तमान में जीने का संदेश दिया है। कवि कहते हैं कि जीवन में वह मधु का प्याला, जिसमें तुमने अपना तन-मन दे डाला था, एक दिन टूट जाता है। उस प्याले के लिये शोक मनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मधुशाला के आँगन में रोज कितने ही प्याले टूटते हैं। टूटकर वे मिट्टी में मिल जाते हैं - टूटे प्यालों के लिए मदिरालय कभी नहीं पछताता है क्योंकि परिवर्त्तन तो इस सृष्टि का नियम है। इस संसार में प्रत्येक वस्तु एक बुलबुला की तरह है, जो सूरज की किरणों में सुंदरता से चमकता है, इसके चारों ओर इन्द्रधनुष भी देखा जा सकता है, प्रकाश की एक सुंदर आभा। किंतु बुलबुला तो बुलबुला है- उसके लिए दुःख क्या मनाना।

अकाल और उसके बाद


Q.4.

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त|

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ नागर्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद' से ली गई हैं। नागार्जुन की कविताएँ सरल हृदय की उपज हैं। सरलता उनकी प्रकृति है। वे बनावटी भावों के कवि नहीं हैं। वे जिस देश, जिस युग में पैदा हुए हैं उसमें देश की बहुसंख्यक जनता को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए लोगों की दुनिया है।

इन पंक्तियों में अकाल के बाद निम्न मध्यवर्ग के घरेलू वातावरण का चित्रण किया गया है। अन्न के अभाव में मन शांत है, वातावरण भी शांत व ठहरा हुआ है, चूल्हा तथा चक्की जैसी जड़ वस्तुओं में भी मानवीय भावनाएँ फैली दिखाई देती हैं क्योंकि अन्न के अभाव में उनका भी उपयोग नहीं हो रहा है। मनुष्य के साथ-साथ छिपकलियाँ व चूहे भी विषम परिस्थिति से पराजित हैं - यह जीवन का हारा हुआ सच है।

हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि अकाल कभी अकेले नहीं आता। उससे बहुत पहले अच्छे विचारों का अकाल पड़ने लगता है। अच्छे विचार का अर्थ है- अच्छी योजनाएँ, अच्छे काम। अच्छी योजनाओं का अकाल और बुरी योजनाओं की बाढ़ ।
परिस्थिति की भयावहता को प्रकट करने के लिए चूल्हे तथा चक्की का मानवीकरण किया गया है। घर का पूरा वातावरण उदासीन है। घर में निवास करने वाला चरित्र या नायक भी अनुपस्थित है।

Q.5.
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद, धुआँ उठा आँगन के ऊपर कई दिनों के बाद। चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद, कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ नागार्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद' से ली गई हैं।

नागार्जुन की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अकाल के दिनों में भी पूंजीपतियों के गोदाम अन्न से भरे रहते हैं लेकिन से सामान्य जनता अन्न के अभाव में तड़पती रहती है। घर में अन्न के दाने आते ही जनता कैसे प्रसन्न हो उठती है, प्रस्तुत अंश में यह भावचित्र देखने योग्य है। अन्न के आने से घर में उत्सव का-सा माहौल हो जाता है|

"चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद 
कौवे ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।"

 अकाल प्राकृतिक आपदा है। आपदा कोई भी हो, मानवीय संवेदना को विचलित करती ही है। पूंजीवादी व्यवस्था में अन्न का अभाव उत्पन्न कर दिया जाता है। गरीब जनता के पास इतनी पूंजी नहीं होती कि वे आवश्यक सुविधाओं को खरीद सकें। 'कई दिनों के बाद' के प्रयोग उल्लासमयता का जो वातावरण प्रस्तुत किया गया है, वह अत्यंत प्रभावशाली है। यद्यपि कविता दुखांत नहीं है लेकिन यह हमारे सामने एक प्रश्न छोड़ जाती है कि क्या भारतीय निम्नमध्यवर्गीय जीवन का लक्ष्य एवं आवेग यहीं तक सीमित है? भारत की इस विशाल आबादी की प्रसन्नता की क्या यही परिभाषा है? क्या उनके सूने जीवन में खुशियों की सौगात लेकर केवल अन्न ही आ सकता है?


निम्नलिखित पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:

0.1.

सूरदास के पद

मधुवन तुम कत रहत रहे । विरह बियोग स्याम सुन्दर के ठाढ़े क्यों न जरे ।। मोहन बेनु बजावत तुम तर, साखा टेकि खरे । मोहे थावर अरु जड़ जंगम, मुनि जन ध्यान टरे ।। वह चितवनि तू मन न धरत है, फिरि-फिरि पुहुप घरे। सूरदास प्रभु विरह दवानल, नख सिख लौं न जरे ।

उत्तर : काव्यगत सौन्दर्य : 
(1) प्रस्तुत पद में गोपियाँ मधुवन के प्रति अपनी उलाहना-भाव को प्रकट कर रही है। 
(2) गोपियाँ जिस तरह कृष्ण की विरहाग्नि में जल रही हैं, वे चाहती हैं कि मधुवन भी उसी प्रकार जले।
 (3) प्रस्तुत पद के 'विरह बियोग', 'स्याम सुंदर', 'बेनु बजावत' तथा 'जड़ जंगम' में अनुप्रास अलंकार है |
(4) 'फिरि फिरि' में छेकानुप्रास अलंकार है ।
(5) भाषा ब्रजभाषा तथा रस शांत है ।

Q.2

ऊधौ मन नहिं हाथ हमारैं । रथ चढ़ाई हरि संग गए लै, मथुरा जबहिं सिधारे ॥ नातरु कहा जोग हम छाँड़हि, अति रुचि कै तुम ल्याए । हम तौ झैँखति स्याम की करनी मन लै जोग पठाए । अजहुँ मन अपनौ हम पावैं, तुम तैं होड़ तो होइ । सूर सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करेंगी सोइ ।।

उत्तर : काव्यगत सौन्दर्य : 
(1) गोपियों की विवशता का बड़ा ही सुन्दर चित्रण हुआ है । 
(2) गोपियाँ उद्धव से कृष्ण के द्वारा चुराए गए मन को वापस कर देने की चिरौरी करती हैं|

(3) गोपियाँ उद्धव को यह विश्वास दिलाने की चेष्टा करती हैं कि यदि वे गोपियों के मन को वापस करा पाए तो वे उनके योग-संदेश को सहर्ष ग्रहण कर लेंगी।

(4) प्रस्तुत पद के 'हाथ हमारे', 'सूर सपथ' तथा 'कही करैंगी' में अनुप्रास अलंकार है ।

(5) भाषा ब्रजभाषा एवं रस करुण है ।


रसखान के सवैये


Q.3. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।

जो पशु हौं तो कहा मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ।

पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धर्यो कर छत्र पुरन्दर-धारन ।

जौ खग हौं तो बसेंरो करों मिलि कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन ।। 1 ।।

उत्तर : काव्यगत सौंदर्य : 
(1) रसखान हिन्दू दर्शन के अनुसार पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं।

(2) यह बात यहाँ कृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण करने की कथा प्रसंग में आई है।

(3) 'बसौं ब्रज' में अनुप्रास तथा 'कालिंदी कूल कदंब की' में छेकानुप्रास अलंकार है।

(4) छन्द सवैया, शैली मुक्तक तथा रस शांत है।

(5) भाषा ब्रजभाषा है।

(6) रसखान ने अपना संबंध उन्हीं वस्तुओं से जोड़ने की इच्छा प्रकट की है, जिनसे कृष्ण का संबंध रहा है।

Q.4.
वा लकुटि अरु कामरिया पर राज तिहुँ पुर को तजि डारौं । आठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाइ चराइ बिसारौं । ए रसखानि जब इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। कोटिक ये कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर बारी||

उत्तर : काव्यगत सौंदर्य : 
1. यहाँ रसखान की भक्ति-भावना का उत्कर्ष दिखाई देता है। 
2. रसखान अपने अराध्य की निकटता पाने के लिए बड़ी से बड़ी चीजों का त्याग करने को भी तैयार हैं।

3. 'नवो-निधि’, ‘ब्रज के बन-बाग', 'कोटिक हूँ कलधौत के धाम' तथा 'करील की कुंजन' आदि में अनुप्रास अलंकार की सुंदर छटा है।

4. छन्द सवैया, शैली मुक्तक तथा रस शांत है।

5. भाषा ब्रजभाषा है।


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