हिंदी व्याकरण

 हिंदी व्याकरण 


समास

परिचय

समास का अर्थ है-संक्षेपीकरण। इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर विभिन्न तरीकों से एक नए शब्द की रचना की जाती है। इस क्रम में शब्दों की विभक्तियों, योजक शब्दों आदि को हटाकर बचे शब्दों को पास-पास लाया जाता है। 

परिभाषा :

दो या दो से अधिक शब्दों को निकट लाने से नए शब्दों की रचना को समास कहते हैं।
उदाहरण –

तुलसी के द्वारा लिखा गया = तुलसीकृत
पानी में डूबा हुआ = जलमग्न
राह के लिए खर्च = राहखर्च
चार आनन का समूह = चतुरानन
लंबा उदर है जिसका अर्थात गणेश जी = लंबोदर

पूर्व एवं उत्तर पद – समास रचना में दो पद होते हैं। इनमें से पहले पद को पूर्वपद एवं बाद वाले पद को उत्तर पद कहते हैं।

समास के भेद – समास के छह भेद माने जाते हैं।
 इनके नाम हैं –

अव्ययीभाव समास
तत्पुरुष  समास
द्वंद्व समास
कर्मधारय समास
द्विगु समास
बहुव्रीहि समास

1. अव्ययीभाव समास जिस समास में पहला पद प्रधान और दूसरा गौण होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इस समास में पूर्वपद अव्यय तथा उत्तर पद संज्ञा या विशेषण होता है। इससे समस्तपद अव्यय का काम करता है।
जैसे –
आ (अव्यय) + जीवन (संज्ञा) = आजीवन
प्रति (अव्यय) + एक (विशेषण) = प्रत्येक

अन्य उदाहरण –







2. तत्पुरुष समास :

जिस समास का उत्तर पद प्रधान तथा पूर्वपद गौण होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे –
मोक्षप्राप्त – मोक्ष को प्राप्त
बिहारी रचित – बिहारी द्वारा रचित
रणभूमि – रण की भूमि
अध्ययनरत – अध्ययन में रत (लीन)

( क ) कर्म तत्पुरुष-जिस समास के पूर्व पद में कर्म कारक के विभक्ति चिह्न ‘को’ का लोप हो, उसे ‘कर्म तत्पुरुष’ कहते हैं; जैसे –

ख) करण तत्पुरुष-जिस समास के पूर्व पद में करण कारक के विभक्ति चिह्न ‘से, के द्वारा’ का लोप हो उसे करण तत्पुरुष कहते हैं; जैसे –


(ग) संप्रदान तत्पुरुष-जिस समास के पूर्व पद में संप्रदान कारक विभक्ति चिह्न ‘को’ ‘के लिए’ का लोप होता है, उसे संप्रदान तत्पुरुष कहते हैं; जैसे –




(घ) अपादान तत्पुरुष- जिस समास के पूर्व पद में अपादान कारक के विभक्ति चिह्न ‘से अलग’ का लोप होता है उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे –


ङ) संबंध तत्पुरुष-जिस समास के पूर्व पद में संबंध कारक के विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘की’, ‘के’, ‘रा’, ‘री’, ‘रे’ का लोप होता है, उसे संबंध तत्पुरुष कहते हैं; जैसे –


च) अधिकरण तत्पुरुष-जिस समास में अधिकरण कारक के विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ का लोप हो, उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे –


3. द्वंद्व समास :

जिस समास में न पूर्व पद प्रधान होता है और न उत्तर पद, बल्कि दोनों ही पद समान होते हैं, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में दो शब्दों के निकट आ जाने से उनको मिलाने वाले ‘और’ या अन्य समुच्चयबोधक अव्ययों का लोप हो जाता है, जैसे –

4. कर्मधारय समास

जिस समास में एक पद उपमेय अथवा विशेषण और विशेष्य हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

(क) विशेषण-विशेष्य



ख) उपमेय-उपमान


5. द्विगु समास :

जिस समस्त पद का पहला पद संख्यावाचक होता है उसे द्विगु समास कहते हैं; जैसे –

6. बहुव्रीहि समास :

जिस समास में न पूर्वपद प्रधान होता है न उत्तरपद, बल्कि अन्य पद की ओर संकेत करते हैं, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-पंकज समस्त पद का विग्रह हुआ – पंक + ज। अर्थात् – पंक (कीचड़) में जन्म लेता है जो। पंक में मछली, घोंघा, सीप, कीड़े-मकोड़े घास आदि-आदि पैदा होते हैं परंतु यहाँ पंकज ‘कमल’ के अर्थ का बोध कराता है। यह ‘कमल’ प्रधान होने के कारण यहाँ बहुव्रीहि समास है।

अन्य उदाहरण –


1. निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रहकर समास का नाम लिखिए –


उत्तरः
(i) माता और पिता – द्वंद्व समास
(ii) पशुरूपी धन – कर्मधारय समास
(iii) बुरी है मति – कर्मधारय समास
(iv) प्रधान है अध्यापक – कर्मधारय समास
(v) चक्र को धारण करता है अर्थात् विष्णु – बहुव्रीहि समास
(vi) उद्योग का पति –  तत्पुरुष
(vii) दो पहरों का समूह – द्विगुसमास
(viii) गण अर्थात् समूह का पति है जो अर्थात् गणेश जी – बहुव्रीहि समास
(ix) नीति में निपुण –  तत्पुरुष
(x) जितना शीघ्र हो सके – अव्ययीभाव समास
(xi) पंक में जन्म लेता है जो अर्थात कमल – बहुव्रीहि समास
(xii) तीन लोचन है जिसके अर्थात शिव जी – बहुव्रीहि समास
(xiii) कन्यारूपी धन – कर्मधारय समास
(xiv) धन के समान श्याम – कर्मधारय समास
(xv) हाथ ही हाथ में – अव्ययीभाव समास
(xvi) नौ निधियों का समूह – द्विगु समास
(xvii) चार नों का समूह – द्विगु समास
(xviii) कमल के समान नयन हैं जिसके अर्थात् श्रीराम – बहुव्रीहि समास
(xix) नीला है गगन – कर्मधारय समास
(xx) पाँच आबों का समूह – द्विगु समास
(xxi) लोगों की सभा – तत्पुरुष समास
(xxii) गीत और संगीत – द्वंद्व समास
(xxiii) गज के समान आनन है जिसके अर्थात् गणेश जी – बहुव्रीहि समास
(xxiv) हवन के लिए सामग्री –  तत्पुरुष समास
(xxv) ज्वर से पीड़ित –  तत्पुरुष समास
(xvi)  दो पहरों का समूह – द्विगु समास
(xvii) महान है जन – कर्मधारय समास
(xviii)सात सौ पदो का समूह – द्विगु समास
(xix) प्रत्येक गाँव में – अव्ययी भाव समास
(xxx) चार राहों का समाहार – द्विगु समास

2. नीचे कुछ विग्रह दिए गए हैं। उनके समस्त पद बनाकर समास का नाम लिखिए।


उत्तरः
(i) महात्मा कर्मधारय समास
(ii) अष्ट सिद्धि द्विगु समास
(iii) यथाशक्ति अव्ययीभाव समास
(iv) आज्ञानुसार तत्पुरुष समास
(v) गुरुदक्षिणा तत्पुरुष समास
(vi) तुलसीकृत तत्पुरुष समास
(vii) यथाशीघ्र अव्ययीभाव समास
(viii) दशानन बहुव्रीहि समास
(ix) रात-दिन द्वंद्व समास
(x) त्रिफला . द्विगु समास

विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न


1. निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रहकर समास का नाम लिखिए –
(i) अंशुमाली
(ii) धनहीन
(iii) दशानन
(iv) शताब्दी
(v) मृगनयनी
(vi) आजन्म
(vii) कलम-दवात
(viii) प्रतिजन
(ix) रथ यात्रा
(x) चाँद-सूरज
(xi) भवसागर
(xii) दिन-रात
(xiii) भवसागर
(xiv) रसोईघर
(xv) आजीवन
(xvi) गजानन
(xvii) गुरुदक्षिणा
(xviii) धनहीन
(xix) त्रिफला
(xx) दाल-रोटी
(xxi) गिरिधर
(xxii) पंच परमेश्वर
(xxiii) आय-व्यय
(xxiv) नील-कमल
(xxv) हार-जीत
(xxvi) रेखांकित
(xxvii) पंचतत्व
(xxviii) उद्योगपति
(xxix) दशानन
(xxx) माता-पिता

उत्तरः
(i) अंशु है माला जिसकी अर्थात् सूर्य – बहुव्रीहि समास
(ii) धन से हीन –  तत्पुरुष
(iii) दश आनन हैं जिसके अर्थात् रावण – बहुव्रीहि समास
(iv) एक सौ वर्षों का समय – द्विगु समास
(v) मृग के समान नयन है जिसके अर्थात् सीता जी – बहुव्रीहि समास
(vi) जन्म से – अव्ययीभाव समास
(vii) कलम और दवात – द्वंद्व समास
(viii) हर एक जन – अव्ययीभाव समास
(ix) रथ की यात्रा –  तत्पुरुष समास
(x) चाँद और सूरज – द्वंद्व समास
(xi) भवरूपी सागर – कर्मधारय समास
(xii) दिन और रात – द्वंद्व समास
(xiv) रसोई के लिए घर –  तत्पुरुष समास
(xv) जीवनभर – अव्ययीभाव समास
(xvi) गज के समान आनन है जिसके अर्थात् गणेश जी – बहुव्रीहि समास
(xvii) गुरु के लिए दक्षिणा अर्थात् दान – तत्पुरुष समास
(xviii) धन से हीन –  तत्पुरुष समास
(xix) तीन फलों का समूह – द्विगु समास
(xx) दाल और रोटी – द्वंद्व समास
(xxi) गिरि को धारण करते हैं जो अर्थात् श्रीकृष्ण – बहुव्रीहि समास
(xxii) पाँच परमेश्वरों का समूह – द्विगु समास
(xxiii) आय और व्यय – द्वंद्व समास
(xxiv) नीला है कमल – कर्मधारय समास
(xxv) हार और जीत – द्वंद्व समास
(xxvi) रेखा से अंकित –  तत्पुरुष समास
(xxvii) पाँच तत्वों का समूह – द्विगु समास
(xxviii) उद्योग का पति –  तत्पुरुष समास
(xxix) दश आनन है जिसके अर्थात् रावण – बहुव्रीहि समास
(xxx) माता और पिता – द्वंद्व समास





सन्धि



दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को 'सन्धि' कहते हैं।
सन्धि के भेद

वर्णों के आधार पर सन्धि के तीन भेद हैं ---
(क) स्वरसन्धि, (ख) व्यंजनसन्धि, और (ग) विसर्गसन्धि।







विसर्गसन्धि

परिभाषा - विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे 'विसर्गसन्धि' कहते हैं। जैसे----













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