Class10 life science Project

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1.Pineal gland (पीनियल ग्रंथि)

यह मस्तिष्क के अग्र मस्तिष्क के पश्च भाग में होती है। यह ग्रंथि 7 -8  वर्ष के बच्चो में सक्रीय होती है। लेकिन बाद में धीरे धीरे नष्ट होकर कणो के रूप में शेष रह जाती है।  इसलिए इसे मस्तिष्क की रेत भी कहते है। पीनियल ग्रंथि मनुष्य की बजाय पशु-पक्षियों में अधिक सक्रीय होती है। पीनियल ग्रंथि को तीसरी आँख तथा जैविक घड़ी भी कहा जाता है। 
स्त्राव-
इससे मेलैटोनिन (Melatonin) हॉर्मोन स्त्रावित होता है जो मैलेनिन वर्णक को त्वचा पर एकत्रित करके त्वचा का रंग साफ करता है। 




2. Hypothalamus gland (हाइपोथैलेमस ग्रंथि):- 

 स्थिति :-अग्र मस्तिष्क के नीचे की और उपस्थित होती है। तथा इसको मस्तिष्क का एक भाग माना जाता है। इस ग्रंथि पर पीयूष ग्रंथि का नियंत्रण नहीं होता है , इसलिए इसे मास्टर ऑफ़ मास्टर ग्रंथि भी कहते है। हाइपोथैलेमस का प्रमुख कार्य शरीर का ताप नियंत्रण करना है।
स्त्राव-
ये न्युरोहोर्मोन्स स्त्रावित करते है।  इनसे पांच तरह के हार्मोन्स निकलते है।

     (A) Thyro tropin- releasing hormone:- (TRH)

ये Thyroid (थाइरोइड) ग्रंथि + pituitary gland (पीयूष ग्रंथि) से निकलने वाले हार्मोन्स पर नियंत्रण रखता है। 

     (B) Gn RH( Gonadotropin-releasing hormone):-

FSH तथा LH के स्त्राव पर नियंत्रण रखता है। ये SEX -Hormone (लैंगिक हॉर्मोन) को नियंत्रित करता है। 

    (C) GHRH (Growth hormone-releasing hormone):-

यह पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले Growth hormone पर नियंत्रण रखता है। 

     (D) CRH (Cortico tropin -releasing hormone):-

ये Neuro transmiter की तरह काम करता है।  ये मस्तिष्क के संकेतो को पीयूष ग्रंथि तक पहुँचता है। 

     (E) Dopamine(डोपामाइन हॉर्मोन ):-

यह हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कार्य :-यह न्यूरो ट्रांसमीटर की तरह काम करता है।  तथा प्रोलैक्टिन हॉर्मोन के अधिक स्त्राव को रोकने का काम करता है। रोग :- (पार्किंसन्स रोग) इसमें डोपामाइन कम स्त्रावित होता है। 

Note :- महिलाओ में प्रसव के समय दुग्ध ग्रंथि से स्त्रावित हॉर्मोन प्रोलैक्टिन हॉर्मोन होता है। 





3. Pituitary gland (पीयूष ग्रंथि )

यह स्फेनॉयड हड्ड़ी (Sphenoid bone) में गुहा के अंदर की तरफ मस्तिष्क में हाइपोथैलेमस ग्रंथि से जुड़ी हुए होती है। यह शरीर की सबसे छोटी अन्तः स्त्रावी ग्रंथि है। इसका आकार मटर के दाने के सामान होता है। पीयूष ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि भी कहते है , क्योकि यह ग्रंथि हाइपोथैलेमस ग्रंथि के अलावा अन्य सभी ग्रंथियों पर नियंत्रण रखती है। पीयूष ग्रंथि के तीन भाग होते है:-

Anterior lobe (अग्र भाग)Intermediate lobe (मध्य भाग)Posterior lobe (पश्च भाग)

स्त्राव-

पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स :-(Related Hormones)

अग्र भाग से स्त्रावित हॉर्मोन्स (Hormones secreted from the anterior pituitay gland ) :-

(A) GH (growth hormone) वृद्धि हॉर्मोन :-

यह हॉर्मोन शरीर की वृद्धि / विकास को नियंत्रित करता है। रोग:- (i) Gigantism (भीमकाय):- वृद्धि हॉर्मोन की अधिकता से शरीर की लम्बाई सामान्य से अधिक हो जाती है। यह रोग बच्चों  में होता है।                                                                                                (ii) Acromagly (कुरूप भीमकाय):- वृद्धि हॉर्मोन की अधिकता से शरीर की लम्बाई सामान्य से अधिक हो जाती है। यह रोग बड़ो  में होता है।                                                                                              (iii) Dwarfism (बौनापन):- वृद्धि हॉर्मोन के कम स्त्रावित होने से शरीर की लम्बाई सामान्य से कम हो जाती है।  

(B) TSH (Thyroid stimulating Hormone) थाइरोइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन :-

यह थाइरोइड ग्रंथि से थाइरॉक्सिन हॉर्मोन बनने को प्रेरित करता है।  

(C) ACTH (Adreno - Cartico tropic hormone) एड्रीनो कॉर्टिको ट्रॉपिक स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन :-

यह हॉर्मोन एड्रिनल ग्रंथि के कॉटेक्स (बाहरी  भाग) से हॉर्मोन बनाने को प्रेरित करता है। 

Note:- एड्रिनल ग्रंथि Triangle crown आकार में किडनी के ऊपर उपस्थित होती है। 


(D) FSH ( Follical Stumulating Hormone) फॉलिकल स्ट्रीमुलेटिंग हॉर्मोन :-

यह हॉर्मोन शुक्र जनन एवं अण्ड  जनन हेतु आवश्यक होता है। मादा में यह Ovalion follicle growth ( अण्ड निर्माण करने वाली कोशिकाओ की वृद्धि) में सहायक होती है। नर में यह Spermato genesis (स्पर्म बनाने) का कार्य करता है। 

(E) LH (Lutening hormone) ल्यूटेनिंग हॉर्मोन :-

यह हॉर्मोन महिलाओ में एस्ट्रोजन तथा पुरुषो में टेस्टेस्टेरॉन हॉर्मोन के लिए उत्तरदायी होता है।  मनुष्य के अंदर लैंगिक कार्य पर नियंत्रण रखता है। मादा शरीर में फॉलिकल (नष्ट अंडाणु की कोशिका) को बाहर की और निकलने का कार्य करता है। नर शरीर में टेस्टिस (वृषण) की कोशिकाओं के निर्माण करने का कार्य करता है। यह टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन के स्त्राव पर नियंत्रण रखता है। 

(F) Prolatctin (प्रोलैक्टिन):-

यह हॉर्मोन केवल महिलाओ में पाया जाता है , जो महिलाओ में दुग्ध ग्रंथि ( Mammary gland) से दूध के निर्माण को प्रेरित करता है। इस हॉर्मोन को Birth Hormone भी कहा जाता है। यह प्रेग्नेंसी के समय Labour Pain को कम करता है ,तथा बच्चे को बाहर निकलने में मदद करता है। यह प्रेग्नेंसी के समय Ovulation (अंडा बनने की प्रक्रिया) को बंद कर देता है। 

मध्य भाग से स्त्रावित हॉर्मोन्स (Hormones secreted from the Intermediatory pituitay gland ) :-

 (A) MSH (Melatocyle stimulating hormone) मेलेटोसाइट स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन :-

यह हॉर्मोन त्वचा पर मैलेनिन वर्णक को फैला देता है ,जिससे त्वचा का रंग गहरा हो जाता है। 

पश्च भाग से स्त्रावित हॉर्मोन्स (Hormones secreted from the posterior pituitay gland ) :-

(A) Oxytocin (ऑक्सीटोसिन) :-

यह हॉर्मोन महिलाओ में प्रसव के बाद दूध स्खलन को प्रेरित करता है ,इसलिए इसे दूध स्खलन काहॉर्मोन भी कहते है।  यह महिलाओ में प्रसव के समय दर्द उत्पन्न करता है ,इसलिए इसे प्रसव पीड़ा का हॉर्मोन कहा जाता है।  


(B) ADH (Antidiuretic Hormone) वैसोप्रेसिन :-

 यह हॉर्मोन मूत्र में जल की अतिरिक्त मात्रा को अवशोषित करता है।  इस हॉर्मोन की कमी से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। जिसे डाइबिटीज इन्सिपिडस रोग कहा जाता है। 





4.  Thyroid gland (थाइरोइड ग्रंथि या अवटु ग्रंथि ):-

यह सबसे बड़ी अन्तः स्त्रावी ग्रंथि है। यह ग्रंथि श्वास नली के दोनों और 'H' आकार की होती है। यह ग्रंथि एकमात्र ऐसी ग्रंथि है जो निष्क्रिय रूप में हॉर्मोन का संग्रहण करती है।
स्त्राव-
 इससे निकलने वाले हॉर्मोन्स :-

(A)Thyroid Hormone ( थाइरोइड हॉर्मोन ):-

यह शारीरिक और मानसिक विकास हेतु आवश्यक होता है। ये दो प्रकार के होते है :-(i) Triido thyronine (ट्राईआइडो  थाइरोनिन )  T3                                            (ii) Thyroxine (थायरोक्सिन ) T4 यह उपापचयन की गति को बढ़ाता है। यह पीयूष ग्रंथि के साथ सम्बंधित है , तथा शरीर में जल की मात्रा को संतुलित करता है। शरीर में विघुत आवेश को उत्पादित तथा परिवहन करता है। रोग :- 

थाइरोइड हॉर्मोन के कम स्त्राव से होने वाले रोग 

(i) Cretimism ( जड़वामनता ):-

यह रोग बच्चो में अधिक होता है। उनका शारीरिक व मानसिक विकास कम होता है। बच्चे मंदबुद्धि होते है। 

(ii) Myxidima (मिक्सिड़ीमा रोग ) :-

इसमें मनुष्य का वजन बढ़ता है। त्वचा खुरदरी हो जाती है। शरीर में सूजन आ जाती है। मनुष्य बुद्धिहीन हो जाता है। 

(iii) Goiter (गलसुडा /घेंघा रोग/गलगंड़ ):-

यह रोग  सामान्यतः आयोडीन की कमी से होता है। इसमें रस ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होता है। महिलाओ में अधिक होता है। 

Note :- महिलाओ में थाइरोइड ग्रंथि भारी होती है। 


(iv) Hoshimoto disease (हाशिमोटो रोग ):-

थायरॉइड ग्रंथि के उपचार में दी जाने वाली दवाइया इस ग्रंथि को नष्ट कर देती है ,तो इसे  हाशिमोटो रोग कहते है। इसे थाइरोइड की आत्महत्या भी कहा जाता है। 

थाइरोइड हॉर्मोन के अधिक स्त्राव से होने वाले रोग :-

थाइरॉक्सिन की अधिकता से आखे फूलकर बाहर आ जाती है डरावनी हो जाती है ,जिसे एक्स औक्थेल्मिक ग्वाइटर कहा जाता है। 


(B) कैल्सीटोनिन हॉर्मोन :-

कैल्सिटोनिन हॉर्मोन भी थाइरोइड ग्रंथि से स्त्रावित होता है जो रक्त से कैल्सियम की अतिरिक्त मात्रा को अवशोषित करके हडियो में जमा करता है ,जिससे हड्डिया मजबूत होती है। 





5. Parathyroid gland (पैराथाइरोइड ग्रंथि):-

यह ग्रंथि थाइरोइड ग्रंथि के पीछे स्थित होती है तथा संख्या में चार 4 होती है। 
स्त्राव-
इस ग्रंथि से पेराथार्मोन नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है , जो हड्डियों से कैल्शियम को अवशोषित करके रक्त में लाता है।  इस हॉर्मोन की अधिकता से हड्डिया कमजोर एवं छिद्रित हो जाती है , जिसे ऑस्टियोपोरोसिस रोग कहते है।   इस हॉर्मोन की कमी से हड्डियो में कैल्शियम की अधिकता हो जाती है , जिसे टेटनी रोग (tetany disease ) कहा जाता है तथा इससे मासपेशियो में संकुचन नहीं हो पता है। इस हॉर्मोन की अधिकता से Kidney stone (पथरी ) हो जाती है। यह हमारे शरीर में विटामिन D की सक्रीय करता है।   



6. Thymus gland (थाइमस ग्रंथि):-

यह ग्रंथि फेफड़ों के मध्य ,ग्रसिका के चारो तरफ ह्रदय  सामने स्थित होती है। यह ग्रंथि बाल्यावस्था से युवावस्था में पूर्ण रूप से सक्रीय होती है। लेकिन उसके बाद धीरे धीरे नष्ट होना शुरू हो जाती है ,तथा बुढ़ापे में केवल धागे के रूप में रह जाती है। यह ग्रंथि लिम्फोसाइट ( WBC का प्रकार ) के निर्माण हेतु आवश्यक होती है।  जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से सम्बंधित है। 
स्त्राव-
थाइमस ग्रंथि से थायमॉसिन हॉर्मोन (thymosins hormone ) स्त्रावित होता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है।  



 7. Pancreas gland (अग्नाशय ):-

यह ग्रंथि आमाशय के नीचे उदर गुहा में स्थित होती है। यह ग्रंथि शरीर की एकमात्र मिश्रित ग्रंथि है , जिसका 98% भाग बहिःस्रावी होता है ,जबकि 2% भाग अन्तःस्त्रावी होता है।  इस ग्रंथि का अन्तः स्त्रावी भाग पूरी ग्रंथि में बिखरा हुआ होता है ,जिसे लैंगरहेंस की द्वीप संरचना कहा जाता है। अग्नाशय ग्रंथि शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है। अग्नाशय ग्रंथि की आकार 6 inch है। 
स्त्राव-
अग्नाशय ग्रंथि में तीन प्रकार की कोशिकाए पाई जाती है :-

(A) 𝜶 अल्फा कोशिका :- इन कोशिकाओं से ग्लुकागोन नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है जो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित रखता है।  

(B) ℬ बीटा कोशिका :- इन कोशिकाओं से इन्सुलिन नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है , जो रक्त में शर्करा की मात्रा को संतुलित करता है।  

(C) 𝜸 गामा कोशिका :- इन कोशिकाओं से सोमेटोस्टेटिन नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है , जो ग्लुकागोन तथा इन्सुलिन में संतुलन बनाए रखता है।  




8. Adrenal gland (एड्रिनल ग्रंथि ):- 

यह ग्रंथि दोनों वृक्कों पर स्थित होती है। ये संख्या में 2 होती है। इस ग्रंथि का अन्य नाम Supra renal gland है। इस ग्रंथि का  बाहरी भाग कोर्टेक्स कहलाता है जो इस ग्रंथि का लगभग 80 %-90 % भाग होता है। इस ग्रंथि का आंतरिक भाग मेडयूला कहलाता है जो इस ग्रंथि का लगभग 10 %-20 % भाग होता है। 
स्त्राव-
कॉर्टेक्स से मुख्य रूप से तीन प्रकार के हॉर्मोन स्त्रावित होते है :-

(A) Mineralocorticoids (मिनरलोकोर्टिकॉइड्स ):- 

यह हॉर्मोनो का एक समूह है ,जिसका प्रमुख हॉर्मोन एल्डेस्टेरॉन है।  जो शरीर में आयनो +जल का संतुलन बनाए रखता है। इस हॉर्मोन की कमी से एडिसन रोग तथा अधिकता से कोन्स रोग हो जाता है।  इन दोनों रोगो में त्वचा का रंग कॉस्य हो जाता है ,तथा शरीर में आयनो का संतुलन बिगड़ जाता है। 

(B) Glucacorticoids ( ग्लूककोर्टिकॉइड्स ):-

इस समूह का प्रमुख हॉर्मोन कॉर्टिसन एवं कॉर्टिसोल है , जिन्हें जीवन रक्षक हॉर्मोन भी कहते है।  जो वसा , कार्बोहाइड्रेड आदि के उपापचयी में सहायक है। इस हॉर्मोन की अधिकता से Cushing Syndrome (क्यूसिंग सिंड्रोम ) रोग होता है।  इसमें घाव भरने की क्षमता कम हो जाती है। 

(C) सेक्स हॉर्मोन :- 

यह हॉर्मोन इस ग्रंथि द्वारा बहुत कम मात्रा में स्त्रावित होता है। 

मेड्यूला द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन :-

इस ग्रंथि से एड्रिनलिन हॉर्मोन स्त्रावित होता है , जो आपात कालीन परिस्थितियों से सामना करने के लिए तैयार करता है।  इसलिए इसे करो - मरो /लड़ो -उड़ो हॉर्मोन भी कहा जाता है।  इस ग्रंथि के दो भाग होते है :- (i) Adrenaline / Epinephrine  (ii)Nonepinephrine /Nonadrenaline इन दोनों भागो को संयुक्त रूप से Catecolamine कहा जाता है। 



9.  जनन ग्रंथिया:-

  

(A) Testis (वृषण) :-

यह ग्रंथि एक प्रकार जनन अंग है। यह केवल पुरुषो में उपस्थित होती है। यह उदर के बाहर ,Scrotal Sac में स्थित होती है।
स्त्राव-
 इस ग्रंथि से दो प्रकार के हॉर्मोन्स (i)Androgen (एण्ड्रोजन)   (ii) Testosterone (टेस्टोस्टेरोन) स्त्रावित होते है।   ये हॉर्मोन्स  द्वितीयक लैंगिक अंगो का विकास करता है।  तथा स्पर्म के निर्माण में सहायक होता है। 



(B) Ovary (अंडाशय ):-

यह ग्रंथि एक प्रकार जनन अंग है। यह केवल महिलाओ में उपस्थित होती है। यह उदर गुहा के अंदर होता है।
स्त्राव-
 इससे एस्ट्रोजन हॉर्मोन तथा प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन स्त्रावित होते है। एस्ट्रोजन हॉर्मोन महिलाओ में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों जैसे :-शरीर पर कम बालो का होना ,आवाज का पतला होना आदि के विकास के लिए उतरदायी होता है।  प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन महिलाओ में गर्भधारण को बनाए रखने में सहायक होता है , इसलिए इसे गर्भधारण का हॉर्मोन भी कहा जाता है।  



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