CLASS 12 HINDI GADYA NOTES

CLASS 12 HINDI

 GADYA NOTES 

कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : एक' 

Vvvvi****प्रश्न- 1.मुक्तिबोध की डायरी 'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : एक' का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
अथवा,
'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी एक' की समीक्षा करें।
अथवा,
'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी एक' का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखें। 
अथवा,
डायरी विधा के रूप में 'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी एक' की समीक्षा करें।
अथवा,
'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी एक' में व्यक्त लेखक के विचारों को अपने शब्दों में लिखें।(H.S. 2016)
अथवा,
'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : एक' में निहित संदेश को संक्षेप में लिखें।
अथवा,
'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी' भाग एक में निहित लेखक की काव्य संबंधी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।(H. S. 2018)
अथवा,
कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी क्या है ? संबंधित पाठ के आधार पर लिखें।
अथवा,
 कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी की परिभाषा लिखते हुए संबंधित पाठ की आलोचना करें ।

उत्तर:- 'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : एक मुक्तिबोध की डायरी है जो 'वसुधा' पत्रिका में छापी थी जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इसमें कलाकार या रचनाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी को विषय बनाया गया है। डायरी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसमें विस्तार की कोई गुंजाइश नहीं होती है रचनाकार अपनी बात सीधे कह डालता है | यही कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी होती है। अगर इस दृष्टि से देखें तो यह डायरी अपने आप में डायरी की सारी खूबियों को समेटे हुए है ।

लेखक अपनी डायरी पढ़कर यशराज को सुनाते हैं, जो बी.एस.सी., बी.टेक., एल. एल. बी. की डिग्री के बावजूद बेरोजगार हैं। डायरी सुनना खत्म करते ही यशराज की प्रतिक्रिया होती है - "यह डायरी एकदम फ्रॉड है ।" उसने लेखक की डायरी को फ्रॉड इसलिए कहा क्योंकि उसकी राय में किसी भाव या विचार को उसी स्वरूप में करना नाकाफी है जैसा कलाकार या रचनाकार महसूस करते है ।
अपने तर्क की पुष्टि के लिए यशराज नयी कविता का उदाहरण देता है उसका कहना है कि जिस प्रकार नयी कविता की बुनियाद गलत होने का असर काव्य-शिल्प पर पड़ा उसी प्रकार ज्ञान एवं बोध वही सही है जो लोगों के ज्ञान एवं बोध से मेल खाए क्योंकि काव्य एक सांस्कृतिक संस्था है, व्यक्तिगत कमरा नहीं कि उसे अपनी मनमर्जी से सजाया जाए। अगर किसी वस्तु के प्रति कलाकार का आकलन विश्व दृष्टि से मेल नहीं खाता है तो सही नहीं है । यशराज का यह अंतिम निष्कर्ष था कि इस आधार पर जिसे तुम 'नयी कविता' कहते हो, उसमें भी फ्रॉड की कमी नहीं है|

अपनी सारी खूबियां एवं कमियों के बावजूद 'कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : एक' अच्छे डायरी का उदाहरण है | डायरी-लेखन के आवश्यक गुणों में से अनेक गुण जैसे नए व्यक्तियों, स्थानों, घटनाओं, विचारों तथा प्रतिक्रियाओं को निष्कपट शैली में लिखना आदि इसमें मौजूद है शीर्षक के अनुरूप ही मुक्तिबोध ने अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी को दिखलाते हुए संदेश भी देना चाहा है कि डायरी-लेखन एक उत्कृष्ट कोटि की साहित्यिक कला है तथा इसमें किसी प्रकार का बनावटीपन या कल्पनाशीलता नहीं होनी चाहिए।

 कुटज

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1-'कुटज' के सम्बन्ध में द्विवेदी जी के विचारों को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (H.S. 2015]

Or,

2-'कुटज' निबंध के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

Or,

3-कुटज की विशेषताएं लिखिए ।

Or,

4-कुटज अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है।" - इस कथ्य को प्रमाणित कीजिए।(H.S.2019)

OR,

5-द्विवेदी जी ने मानव-जीवन के आदर्श के रूप में कुटज का वर्णन किया है- अपने विचार लिखें।


उत्तर - हिन्दी साहित्य - जगत में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबन्धों का अद्वितीय स्थान है। ललित भाषा,गम्भीर विचार और उन्नत भावों की त्रिवेणी द्विवेदी जी के निबंधों की विशेषताएं हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जीवन की सामान्य घटनाओं, वनस्पति जगत के पेड़-पौधों का वर्णन करते हुए विचारों की अतल गहराई में उतर जाते हैं और दर्शन के मोती ढूँढ लाते हैं।


          'कुटज' आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध ललित निबंध है, जिसमें लेखक ने कुटज जैसे एक पहाड़ी पौधे के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि कुटज के भीतर से हजारी प्रसाद द्विवेदी की वाणी का झरना प्रवाहित हो रहा है। उनकी अपनी दृष्टि 'कुटज' में रम जाती है और उनका वैयक्तिक विचार कभी भाव, कभी उपदेश और कभी जीवनादर्श के रूप में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है- "जीवन जीना चाहते हो तो कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह करो, वायुमंडल को चूसकर, झंझा-तूफान को रगड़कर, अपना प्राप्य वसूल लो, आकाश को चूमकर अवकाश की लहरी में झूमकर उल्लास खींच लो।" कुटज का यही उपदेश है। 'कुटज' हमें बताता है कि जड़ समाज में जड़ हो गई मान्यताओं के बीच कुल, गोत्र और नाम के महत्त्व को स्वीकारा जाता है।


         अचानक द्विवेदी जी को ध्यान आया कि यह तो 'कुटज' है जिसका उल्लेख कालिदास ने अपने मेघदूत में किया है। मनोहर कुसुम स्तवकों से झबराया हुआ प्रसन्नता से झूमता हुआ कुटज। विरही यक्ष ने मेघ की अभ्यर्थना करते के हुए कुटज फूल ही उसे अर्पित किए। उस सूने गिरिकान्तार में जब कोई फूल उपलब्ध नहीं हुआ तब कुटज के फूलों ने ही साथ दिया। बड़भागी है यह फूल जो गाढ़े का साथी है। हिन्दी के कवि रहीमदास जी ने भी कुटज का उल्लेख अपने एक दोहे में किया है :


                वे रहीम अब बिरछ कहँ, जिनकर छाँह गंभीर ।

                बागन बिच-बिच देखियत सेंहुड़, कुटज, करीर ।।


         कुटज हमें अपराजेय जीवनी शक्ति का संदेश देता है। भीषण गर्मी में भी यह हरा भरा एवं फूलों से लदा खड़ा है। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने अस्तित्व को जो बनाए रख सकता है, वही संघर्षशील एवं साहसी है। कुटज का यही उपदेश है। झंझा-तूफान को रगड़कर, पाषाण को भेदकर यह अपने लिए भोजन-पानी की व्यवस्था कर ही लेता है। कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए अपना प्राप्य वसूल लो और निरन्तर उल्लसित रहो। कुटज की यह दुरंत जीवनी शक्ति हमें जिजीविषा बनाए रखने की शिक्षा देती है।


प्राण ही प्राण को उल्लसित करता है, जीवनी शक्ति ही जीवनी शक्ति की प्रेरणा देती है। कुटज की जीवनी शक्ति निश्चय ही हम सबके लिए प्रेरक है।


          कुटज भीख नहीं माँगता, वह भयभीत नहीं रहता, वह धर्म और नीति का उपदेश नहीं देता, न किसी के तलुए सहलाता है और न धार्मिक अंधविश्वास से ग्रस्त होकर ग्रह गोचर से बचने के लिये रत्नों की अंगूठी पहनता है। वह अवधूत की भाषा में कहता है - 'चाहे सुख हो या दुःख, प्रिय हो या अप्रिय, जो मिल जाए उसे शान के साथ हृदय से बिल्कुल अपराजित होकर, सोल्लास ग्रहण करें। हार मत मानें।'


         द्विवेदी जी ने संदेश दिया है कि दुःख और सुख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वह है जिसका मन वश में है, दुःखी वह है जिसका मन परवश है। परवश व्यक्ति खुशामद करता है, दाँत निपोरता है, जी हजूरी करता है। वह अपने को छिपाने के लिये आडम्बर रचता है, दूसरों के लिए जाल बिछाता है। कुटज इन मिथ्याचारों से मुक्त है। 

वह जनक की भाँति घोषणा करता है-'मैं स्वार्थ के लिये मन को सदा दूसरे के मन में घुसाता नहीं फिरता, इसलिये मैं मन को जीत सका हूँ, उसे वश में कर सका हूँ।' द्विवेदी जी कहते हैं कि कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता। मानव मात्र को कुटज का यह संदेश ग्रहण करना चाहिए।


(2) 'कुटज' शब्द की उत्पत्ति के संबंध में लेखक ने क्या-क्या विचार व्यक्त किए हैं? उसके आधार पर कुटज की विशेषताओं की चर्चा कीजिए।[H.S.2017]


 उत्तर:- कुटज शब्द की उत्पत्ति-:निबन्ध के मध्य भाग में द्विवेदी जी कुटज शब्द की व्याख्या उपस्थित करते हैं। कुछ का अर्थ घर और घड़ा है। घड़े से उत्पन्न होने के कारण अगस्त्य मुनि को भी कुटज कहा जाता है। किन्तु द्विवेदी जी इसे स्वीकार नहीं करते। उनकी दृष्टि में संस्कृत में कुटहारिका और कुटकारिका दो शब्द है जिसका अर्थ है- दासी। ढंग की दासी को 'कुटनी' कहा जाता है। 'कुटिया' और 'कुटीर' भी कुटहारिका या कुटकारिका से ही सम्बन्धित होते हैं। इससे संभव है कि अगस्त्य का जन्म भी नारद की भाँति किसी दासी से हुआ हो। घड़े से जन्मने की बात न तो अगस्त्य के विषय में ठीक उतरती है और न कुटज के विषय में हो। कुट तो जगलों में पाया जाता है, वहाँ गमला या घड़ा कहाँ ?

इस संदर्भ में लेखक को विभिन्न भाषा शास्त्रियों का स्मरण हो जाता है। वह सिलवोलेवी के कथन पर विचार करने लगता है, जिसमें कहा गया है कि 'संस्कृत भाषा में फूलों, वृक्षों और खेती, बागवानी के अधिकांश शब्द आग्नेय भाषा परिवार के हैं।' इसी संदर्भ में लेखक यह भी स्पष्ट कर देता है कि पहले आस्ट्रेलिया और एशिया के महाद्वीप एक दूसरे से मिले थे, किन्तु भयंकर प्राकृतिक विस्फोट के कारण वे हो गए। इसलिए अधिक संभव है कि उन्हों की भाषा का शब्द हो क्योंकि आस्ट्रेलिया के सुदूर जंगलों की बस्तियों की भाषा एशिया में बसी हुई कुछ जातियों की भाषा से सम्बद्ध है। पण्डितों के अनुसार भी उस भाषा के अनेक शब्द संस्कृत में आज भी विद्यमान हैं। कम्बल, कम्बु आदि उन्हीं में से हैं।


(ii) सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

Vvvi**(क) 'दुःख और सुख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वह है जिसका मन वश में है, दु:खी वह है जिसका मन परवश है। परवश होने का अर्थ है खुशामद करना, दाँत निपोरना, चाटुकारिता, हाँ-हुजूरी ।”[Sample Paper-2014]

★ अथवा,

Vvvi** "दुःख और सुख तो मन के विकल्प हैं। "

[H. S.-2016, 2020] 

उत्तर - सन्दर्भ :- प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गए ललित निबन्ध 'कुटज' से अवतरित किया गया है। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी पाठ-संचयन में संकलित है। 

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण में कुटज की अपराजेय एवं दुःख जीवनी शक्ति पर प्रकाश डालते हुए उसके प्रेरणादायक परमार्थी जीवन के प्रति लेखक ने अपनी श्रद्धा प्रकट की है और निबन्ध का उपसंहार प्रस्तुत करता हुआ कुटज को अपनी श्रद्धा अर्पित करता है|

व्याख्या : दु:ख और सुख कोई बनी-बनाई वस्तु नहीं है अपितु मन के वैकल्पिक भाव हैं। जिसका मन वश में है, वह सुखी है और जिसका मन परवश है, वह दु:खी है। दूसरों की खुशामद करना, उनके आगे घिघियाना, उनकी चापलूसी करना आदि इनके पराधीनता के चिह्न हैं|

कुटज की इसी विशेषता के कारण उसको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लेखक कहता है कि - हे कुटज! अपने मन को वश में रखने के कारण तुम मेरे मित्र हो और धन्यवाद के पात्र हो ।

2-"रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज सत्य ।' [H.S.2018]

उत्तर:- • प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति में रूप और नाम में कौन बड़ा है इस प्रश्न पर लेखक यहाँ विचार करता है और इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि नाम के बिना रूप की पहचान नहीं हो सकती, अतः नाम को रूप से बड़ा मानना स्वाभाविक है। 

व्याख्या:- लेखक कहता है कि रूप का सम्बन्ध व्यक्ति से है। रूप व्यक्ति के साथ सम्बद्ध है अत: वह व्यक्ति सत्य है, किन्तु व्यक्ति या रूप की पहचान नाम से जुड़ी हुई है। किसी वस्तु या व्यक्ति की पहचान उसके नाम से होती है । अतः नाम की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता।



** इस अंश के सभी प्रश्नों के उत्तर अनधिक पाँच छ शब्दों में लिखिए।
किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए:(1×4)


1. इस गिरिकूट बिहारी का नाम क्या है?" यह पंक्ति किसको संकेतित है?[H.S. 2020]


उत्तर -कुटज


2. सिर्फ जी ही नहीं रहे हैं, हँस भी रहे हैं? यह पंक्ति किसको संबोधित है?

[H.S. 2019]


उत्तर- कुटज को


3. "जीता है और शान से जीता है' यह पंक्ति किसको संकेतित है?

[H.S.2018]


उत्तर: यह पंक्ति कुटज को संकेतित है।


 4. "कहते हैं, पर्वत शोभा निकेतन होते हैं।" किसे शोभा निकेतन कहा गया है ?


उत्तर- पर्वत प्रदेश को शोभा निकेतन कहा गया है।


5. कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफी गहरी पैठी रहती हैं बेहया का शाब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर- 'बेहया' का शाब्दिक अर्थ हवा (लाज, शर्म नहीं होना यह एक प्रकार की वनस्पति का नाम है।


6. रहीम को मैं बड़े आदर के साथ स्मरण करता हूँ। यहाँ मैं कौन है? 

उत्तर - यहाँ मैं लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।


7. छाँह ही क्या बड़ी बात है, फूल क्या कुछ भी नहीं ? क्या छाँह ही बड़ी बात होती है, फूल नहीं ? 

उत्तर- नहीं, दोनों का अपना-अपना महत्त्व है। गंध ही गुण है, वही स्थायी रहता है, गंध ही अधिक आदरणीय होता है।


8. रूप व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य । रूप और नाम में कौन बड़ा है ?


उत्तर - रूप और नाम में नाम बड़ा है।


9. याज्ञवल्क्य ने जो बात धक्कामार ढंग कह थी वह अंतिम नहीं है- कौन सी बात कही थी ?

 उत्तर - याज्ञवल्क्य ने कहा था कि सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं।


★ 10. शिवालिक कहाँ स्थित है ?[H.S. 2015]


उत्तर - शिवालिक हिमालय के पाद प्रदेश में स्थित है।


11. भोग्य का क्या अर्थ है ? 

उत्तर - भोग्य का अर्थ है प्राप्य ।


12. कुटज किसका नाम है ?


उत्तर - कुटज एक वनस्पति (पेड़ का नाम) है।


13. नाम बड़ा होता है या रूप ?


उत्तर - नाम बड़ा होता है क्योंकि नाम ही स्थायी रहता है, रूप तो क्षणिक है, अस्थायी है।


14. अगस्त्य मुनि कुटज क्यों कहे जाते हैं? 

उत्तर - अगस्त्य मुनि का जन्म भी घड़े से हुआ माना जाता है, इसलिए उन्हें भी कुटज कहा जाता है।


15. आग्नेय परिवार को भाषा क्यों कहा गया ?


उत्तर - दक्षिण पूर्व या अग्निकोण की भाषा होने के कारण इसे अग्नि परिवार भाषा कहा गया है।


* 16. याज्ञवल्क्य कौन थे?[H.S.2016]


उत्तर - याज्ञवल्क्य बहुत बड़े ब्रम्हवादी ऋषि थे।


17. सुख और दुःख क्या है ?


उत्तर - सुख और दुःख मन के विकल्प हैं।


★ 18. द्विवेदी के अनुसार कौन सुखी है और कौन दुःखी है ?[H.S.2015]


उत्तर- लेखक के अनुसार सुखी वह है जिसका मन वश में है, दुःखी वह जिसका मन वश में नहीं है।


*19. 'कुटज' निबन्ध में किसे शोभानिकेतन कहा गया है ? किसने ऐसा कहा है ?[H.S.2017]


उत्तर : 'कुटज' निबन्ध में पर्वत को शोभानिकेतन कहा गया है। लेखक ने ऐसा कहा है।


बहु विकल्पीय प्रश्न 



***29 no. MCQ ka all options wrong hai 
सही जवाब->साहेब
 

भाई-बहन


★1. हरिराम ने निज व्यय से कौन-सी दुकान खोली ?[H.S. 2020]

उत्तर : मातृ भण्डार ।

★ 2. रामचंद्र शुक्ल ने किसे 'बंग महिला' के नाम से संबोधित किया ?[H.S. 2019]

उत्तर : राजेन्द्रबाला घोष।

3. 'मैं यह मोल लूंगी', 'वह मोल लूँगी'।

प्रश्न- (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है ?

उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति को भाई-बहन पाठ से लिया गया है।

4. "निज अवस्था में संतुष्ट रहना और उसी के अनुसार चलना बुद्धिमानों का काम है।"

(i) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति की रचयिता 'बंग महिला' हैं।
(ii) यह किस पाठ से लिया गया है?

उत्तर- यह 'भाई-बहन' नामक पाठ से लिया गया है।
 (iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट करें।

उत्तर- प्रसंग :-प्रस्तुत पंक्ति सुन्दर के संतोषी स्वभाव के बारे में कहा गया है। (iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- भाव- जो मनुष्य अपने कर्म और भाग्य से प्राप्त फल से सन्तुष्ट रहकर जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं वही बुद्धिमान कहलाते है।

5. "लड़कपन में जिस बात का प्रभाव मनुष्य पर पड़ जाता है, बड़े होने पर वह उसी अनुसार व्यवहार करता है।"

(i) प्रस्तुत पंक्ति के रचयिता कौन हैं?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति की रचयिता 'बंग महिला' हैं।

(ii) यह किस पाठ से लिया गया है ? 
उत्तर- यह 'भाई-बहन' नामक पाठ से लिया गया है।
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का प्रसंग स्पष्ट करें।

उत्तर- प्रसंग श्रीराम साहब को देश की भलाई के लिए अच्छे कामों को करने की सीख देते हैं।
 (iv) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- भाव- यदि बच्चों को सही शिक्षा बचपन से ही दिया जाए तो वह अच्छी शिक्षा के प्रभाव से भविष्य में अच्छे कामों को कर देश व समाज में सम्मान अर्जित कर सकते हैं।

6. 'मैं यह मोल लूंगी', 'वह मोल लूँगी'।- प्रस्तुत पंक्ति में 'मैं' कौन है? और वह क्या लेना चाहती है?
 उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में 'मैं' सुन्दरिया है वह मेले में केला, नारंगी, अमरूद, रेवड़ी और नान- खटाई आदि खरीदना चाहती है।

7. इन सब कारणों से साहब का हौसला पूरा न हुआ। - साहब का हौसला क्यों नहीं पूरा हो सका ?

उत्तर - साहब का हौसला इसलिए पूरा नहीं हो सका क्योंकि उसे संतोष नहीं था।

 8. जिसके हृदय में संतोष है उसी ने सब कुछ भर पाया।- संतोष क्या है?

उत्तर - संतोष एक मानसिक अवस्था है।

9. भाई-बहन कहानी का मूल संदेश क्या है?

उत्तर - भाई बहन कहानी का मूल संदेश है, देश प्रेम एवं स्वदेशी की भावना को विकसित करना।

★ 10. भाई और बहन के नाम क्या थे?[H.S.2015]

उत्तर : साहब और सुन्दरिया / सुन्दर देई ।

★11. जिसके हृदय में संतोष है उसी ने सब कुछ भर पाया। किस प्रसंग में यह कथन व्यक्त है ?

उत्तर - साहब तथा सुन्दरी पिता के साथ मेला देखने जा रहे थे। सुन्दरी के पास कुल तीन चार पैसे ही हैं जबकि साहब के पास बहुत पैसे हैं। सुन्दरी को पता है कि वह इतने कम पैसों से अपनी इच्छा की पूर्ति नहीं कर सकती फिर भी उसके अंदर संतोष है और संतोष से बड़ा कोई धन नहीं होता।

★ 12. सुंदर देई को लोग प्यार से क्या पुकारा करते थे और उसके भाई का क्या नाम था ?

उत्तर - सुन्दर देई को लोग प्यार से सुन्दरिया पुकारा करते थे और उसके भाई का नाम साहब था।

13. 'शायद यह दोष तुम्हारे नाम से उत्पन्न होगा। ' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - सुंदरी मेले से मिट्टी का खिलौना खरीदकर अपने बड़े भाई श्रीराम को बड़े उत्साह से दिखाती है। साहेब उस पर हँसने लगता है क्योंकि उसकी रेलगाड़ी चाभी लगाने पर दौड़ती है। तब श्रीराम साहेब से कहता है कि दूसरे पर हँसने एवं रुआब दिखाने का उसका यह गुण शायद उसके 'साहेब' नाम के दोष के कारण उत्पन्न हुआ है।

★ 14. बाबू श्रीराम और हरिराम में क्या सम्बन्ध है ?[H.S. 2018]

उत्तर : बाबू श्रीराम और हरिराम में भाई का सम्बन्ध है। बड़े भाई श्रीराम और छोटे भाई हरिराम हैं।

15. 'भाई-बहन' कहानी में अपने देश के कारीगर भूखे क्यों रह जाते हैं? [H.S.2016]
उत्तर- देशी वस्तुओं को न खरीदकर विदेशी वस्तुओं को क्रय करने से हमारे देश के कुम्हार और कारीगर भूखे रह जाते हैं।

16. 'दूसरा देश कैसा' ? - यह कौन कहता है और क्यों कहता है? [H.S.2017]
उत्तर : यह साहेब कहता है क्योंकि वह गाड़ी रामदीन बिसाती से मोल लिया था।



Long question 

Vvi***(1) बंग महिला द्वारा रचित कहानी 'भाई-बहन' की प्रासंगिकता व उद्देश्य लिखिए।
 अथवा, भाई-बहन कहानी में स्वदेश-प्रेम का संदेश है। स्पष्ट कीजिए।
[H.S.2016) [H. S. 2020)
अथवा
'भाई-बहन' कहानी की समीक्षा करें। 
अथवा
'भाई-बहन' कहानी 'स्वदेशी आंदोलन' से प्रेरित कहानी है- समीक्षा करें।
 अथवा,
 'भाई-बहन' कहानी के माध्यम से बंग महिला ने देशवासियों को क्या संदेश देना चाहा है- लिखें।
अथवा, 
'भाई-बहन' कहानी के माध्यम से लेखिका के विचारों को अपने शब्दों में लिखे।
अथवा,
 'भाई-बहन' कहानी में निहित संदेश को अपने शब्दों में लिखें।
अथवा, 
'भाई-बहन' कहानी में व्यक्त लेखिका के उद्देश्य को लिखें। (H.S. 2016)
अवधा, 
'भाई-बहन' कहानी का उद्देश्य बच्चों में स्वदेश और स्वदेशी की भावना का प्रसार करना है- समीक्षा करें।
अथवा, 
बंग महिला की कहानी 'भाई-बहन' की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें

 उत्तर- "भाई-बहन" बंग महिला रचिंत स्वदेश प्रेम और बच्चों की कहानी है। यह उनके बाल मन को दर्शाती हुई उनकी इच्छा और उससे भी आगे की इच्छा को बताती है, पर मनोवैज्ञानिकता के साथ प्रस्तुत कहानी में बच्चों के
माध्यम से यह दर्शाया गया है कि अपने देश का निर्माण हम खुद ही कर सकते हैं कोई दूसरा नहीं। उसे उत्कर्ष और अपकर्ष पर हम ही खड़ा कर सकते हैं। उसकी समृद्धि और सफलता हमारे ही हाथों में है। सुन्दर और साहब दो स भाई-बहनों में अपनी-अपनी अलग-अलग इच्छा है। एक को विदेशी चीजें अच्छी लगती हैं जबकि एक को स्वदेश निर्मित देशी वस्तुएँ। साहब की सम्पन्नता अर्थात् अधिक पैसे होने से उसकी इच्छा बढ़ी हुई है। उसे अपने देश की वस्तुएँ पसन्द नहीं है। जबकि सुन्दर उससे छोटी है और समझदार है। उसको यह पता है कि कम पैसों में अधिक उपयोगी और मूल्यवान वस्तुएँ खरीद ली जाय। उसको अधिक खर्च और कम खर्च का मूल्य भी मालूम है। इतना ही नहीं इसका कारण क्या है कि वह छोटी है और माँ ने बताया है कि साहब तो बड़ा है। इसलिए भी उसे कम पैसे खर्च करने चाहिए, कम सामान लेने चाहिए और हर चीज-वस्तु में कम की ही इच्छा रखनी चाहिए। यही सब आज के भी दौर में हो रहा है। हर तरन बेटे-बेटी का, बड़े-छोटे का फर्क साफ नजर आ रहा है। इस कहानी की प्रासंगिकता यहाँ पर आकर जुड़ जाती है। कहानी का प्रकाशन वर्ष सन् 1908 ई० है। तत्कालीन समय राजनैतिक दृष्टि से देखा जाय तो गाँधीवाद का प्रभाव भी इसमें साफ झलकता है। उस समय विदेशी चीजों का बहिष्कार बहुत तेजी से हो रहा था। कहानी में यही बात साहब की रेलगाड़ी को लेकर देखा जा सकता है। वहाँ साहब द्वारा विदेशी रेलगाड़ी खरीदकर विदेशी कारीगर को लाभ पहुँचा की बात श्रीराम जी के द्वारा कही गयी है और साथ ही सुन्दर द्वारा मिट्टी का खिलौना खरीदने पर उसे अच्छा बताया जाता है। तत्कालीन समय में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार बहुत तेजी से चल रहा था। आज भी इन चीजों की खपत और खरीददारी का ज्यादा से ज्यादा बोलबाला हो गया है। हर कोई व्यक्ति विदेशी वस्तु का उपभोग करना चाहता है, उसे देशी वस्तु रखने से घृणा हो गयी है। उसके अन्दर तुच्छ भाव जैसे पैदा हो गया है। यदि किसी ने स्वदेशी वस्तु रख भी ली है तो विदेशी रखने वाले उसे तुच्छ निगाह से देखते हैं। यही कहानी का उद्देश्य भी है कि वह स्वदेश निर्मित वस्तुओं को अपनाए और अपने देश की श्री वृद्धि में योगदान करें, इससे हमारे देश में आर्थिक मजबूती आयेगी और हमें अपने आप पर गर्व भी महसूस होगा। यही स्वदेश प्रेम कहानी में कहानीकार ने छोटे से बच्चों के माध्यम से हमें यह संदेश भी दिया है। 

(2) बंग महिला कृत कहानी 'भाई-बहन' में आये पात्र साहब का चरित्र चित्रण कीजिए। 

उत्तर- भाई-बहन कहानी के आधार पर साहब का चरित्र चित्रण हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं।

(1) बालक मन भाई-बहन कहानी में साहब अर्थात् हरिराम शर्मा का जिक्र उनके बाल मन से होता है। जैसा कि सभी बच्चों का मन मेला देखने को करता है। ठीक उसी प्रकार साहब का मन भी मेला देखने को कर रहा है और इसीलिए वह अपने पिता जी के साथ मेला देखने जा भी रहा है।

(2) अत्यधिक खर्चीला- साहब मेले में अपने सारे पैसे खर्च देता है। वह सारा सामान खरीदना चाहता है। वह दिखावे के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च कर सामानों को इकट्ठा करता है।
 (3) बातूनी - औरों की तरह वह भी अत्यधिक बातूनी है। वह सुन्दर को अपने से नीचा दिखाना चाह रहा है। वह उसे नीचा दिखाने के लिए कहता है - वाह जी! तुम्हारे पास तो तीन चार पैसे कुल हैं, तुम इतनी चीजें कैसे ले सकती हो? मेरे पास तो बहुत से पैसे हैं मैं सबकुछ खरीद लूँगा ।

(4) आज्ञाकारी साहब आज्ञाकारी बालक भी है। वह शुरू में तो कुछ नहीं समझता पर बाद में जब उसे श्रीराम जी ही स्वदेश प्रेम करने और भविष्य में उसे और बनाये रखने की बात करते हैं, तो वह मान लेता है। साथ ही वह अपने नाम 'साहब' की जगह 'हरिराम' कह कर पुकारा जाने लगा। इन सब बातों से साहब के आज्ञाकारी होने का पता चलता है।

(5) देशभक्त हरिराम उर्फ साहब प्रबल देश प्रेमी है। बचपन में अपने भाई द्वारा देश भक्ति की शिक्षा को पाकर वह जीवन भर उसे याद रखता है। आजीवन उस शिक्षा का पालन भी करता है। उसने मातृ भण्डार नामक दुकान खोलकर उसका समुचित परिचय भी दिया है, जिसमें स्वदेश निर्मित वस्तुओं का मिलना संम्भव हो सकता था। कहानी के अन्त में आया है कि - इस भाँति स्वदेश प्रेम और अपने उपदेश का प्रभाव देखकर बाबू श्रीराम बहुत ही सुखी होते है।

(6) स्वदेशी वस्तुओं से प्यार करने वाला साहब को शुरू में तो विदेशी वस्तुओं से प्यार था। यह आकर्षण उसके बचपना का बचकाना आकर्षण था, पर ज्योहि उसके बड़े भाई ने अपने देश की वस्तुओं और उसके लागत, अच्छाई तथा देशहित के बारे में बताया, तो उसकी आँख खुल गयी। वह विदेशी वस्तुओं को छोड़कर देशी वस्तुओं का प्रयोग करने लगा। अब उसे अपने देश की हर एक चीज अच्छी लगने लगी थी।

(7) मिश्रित साहब बड़ा होकर एल०एल० बी० परीक्षा पास कर शहर का एक प्रतिष्ठित वकील बनता है।उस समय वकालत का जमाना जोरों पर था। वह सरकारी काम का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता था।

 (2) भाई-बहन कहानी के आधार पर सुन्दरिया का चित्रण कीजिए।

उत्तर - (1) प्रसन्नमना -सुन्दरिया एक प्रसन्नमना बालिका है। वह अपने पिता जी के साथ प्रसन्न मन से नाटी इमली का मेला देखने को जाती है। वह चम्पक स्वभाव की बालिका है। कहानी में उसके मेला देखने का उत्साह देखा जा सकता है|

(2) आज्ञाकारिणी बालिका - सुन्दरिया एक आज्ञाकारिणी बालिका है। वह अपनी माँ की बतायी गयी बात पर हमेशा ध्यान रखती है कि वह उम्र में छोटी है इसलिए उसे ही चीजों में कमती हिस्सा लेना चाहिए। इसका पता कहानी के एक वाक्य से चलता है- "तुम्हें सब चीज में भैया से कमती हिस्सा लेना चाहिए।"

(3) सन्तोषीमना – सुन्दरिया अपने आप में एक सन्तोष करने वाली बालिका है। उसे जो भी मिलता है। उसे उसी में सन्तोष करना पड़ता है। मेला देखने के लिए उसे एक आना मिलता है, वह उसी एक आने को लेकर मेला देखने को चली जाती है और विश्वास रखती है कि वह इतने ही पैसे में सब चीज मोल ले आयेगी।

(4) समझदार-मेला देखने के लिए कम पैसा मिलने पर भी वह समझदारी से काम लेती है। अपने चार पैसे में ही सब कुछ खरीदने का साहस रखती है और बड़े ही समझदारी से एक स्वदेशी मिट्टी का खिलौना खरीदती है। उसे कम हिस्सा मिलता है तो भी उसे कुछ महसूस नहीं होता है। कम या ज्यादा उसे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है।

(5) सद्गुणी महिला - सुन्दरिया बड़ी होकर अपने ससुराल को चली जाती है। वहाँ जाकर एक अच्छी गृहिणी की भाँति अपने सास-ससुर की और पति की सेवा करती है। एक आदर्श बहू के सारे गुण उसमें विद्यमान हैं। इस प्रकार छोटी-सी बालिका सुन्दरिया में सदगुणी, सन्तोषी, समझदार, आज्ञाकारिणी और आदर्श गृहिणी के सारे गुण विद्यमान हैं।



(ii) ससंदर्भ व्याख्या कीजिए :

भाई-बहन


(क) "यह एक भारी दोष है कि जितना कहते हैं उसका चौथाई भी नहीं कर सकते।" H. S. 2019)

उत्तर - संदर्भ : प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' में संकलित है जो कहानी 'भाई बहन' नामक पाठ से ली गयी है। इसकी लेखिका बंग महिला हैं। 

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियों में श्रीराम द्वारा सामानों का अपने देश में और विदेश में बनने से किस देश को फायदा होता है – इसकी ओर इशारा किया है, साथ ही साथ अपने देश की दुर्दशा के लिए देशवासियों को भी दोषी ठहराया है जो स्वदेशी वस्तुओं को छोड़ विदेशी वस्तुएँ खरीदते हैं एवं अपने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं। 
व्याख्या : श्रीराम अपने देश की दुर्दशा के लिए भारतवासियों को भी दोषी ठहराता है। हम देश की बिगड़ती दशा पर चिन्तित तो हैं तथा बातें भी बड़ी-बड़ी करते हैं, परन्तु बड़ा सवाल यह है कि हम अपनी बातों पर अमल कितना करते हैं। जितनी बड़ी-बड़ी बातें हम हाँकते हैं यदि उसका चौथाई भी कार्य रूप में दिखे तो देश का भला हो जायेगा।

Vi★ * (ख) 'इसमें दूसरों का दोष नहीं, हम सब अपनी दीन से दीन, गरीब से गरीब, अधम से अधम हो रहे हैं, पर तब भी चेत नहीं होता। हम लोगों में यह भारी दोष है कि जितना कहते हैं उसका चौथाई भी नहीं कर सकते।' [H.S. 2015] 

उत्तर - संदर्भ: प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ- संचयन' में संकलित है जो कहानी 'भाई बहन' नामक पाठ से ली गयी है। इसकी लेखिका बंग महिला हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियों में श्रीराम द्वारा सामानों का अपने देश में और विदेश में बनने से किस देश को फायदा होता है इसकी ओर इशारा किया है, साथ ही साथ अपने देश की दुर्दशा के लिए देशवासियों को भी दोषी ठहराया है जो स्वदेशी वस्तुओं को छोड़ विदेशी वस्तुएँ खरीदते हैं एवं अपने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं।

व्याख्या : श्रीराम अपने देश की दुर्दशा के लिए भारतवासियों को भी दोषी ठहराता है। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसे खुद में कोई दोष नहीं दिखता, वह दूसरों में दोष खोजता है। आज यदि हम दीन-हीन हैं तो इसमें हमारा भी दोष है। स्वदेशी रोजगार नष्ट हो रहे हैं तथा विदेशी वस्तुओं से हमारा बाजार भरा पड़ा है। अन्दर ही अन्दर हमारा देश आर्थिक रूप से खोखला हो रहा है, तब भी हमें इसका ज्ञान नहीं। हम देश की बिगड़ती दशा पर चिन्तित तो हैं तथा बातें भी बड़ी-बड़ी करते हैं, परन्तु बड़ा सवाल यह है कि हम अपनी बातों पर अमल कितना करते हैं। जितनी बड़ी-बड़ी बातें हम हाँकते हैं यदि उसका चौथाई भी कार्य रूप में दिखे तो देश का भला हो जायेगा।

(ग) वह लोग तो हर तरह मोटे ताजे हैं और बेचारे यहाँ के जो कुम्हार और कारीगर हैं, उन्हें दिन भर में नमक-रोटी भी मुश्किल से मिलती है, वे लोग यदि पाँच आने पैसे पावें तो उनके पेट भर खाने को मिल जाए।"

उत्तर - संदर्भ - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' में संकलित हैं जो कहानी 'भाई 'बहन' नामक पाठ से ली गयी है। इसकी लेखिका बंग महिला जी हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में श्रीराम द्वारा सामानों का अपने देश में और विदेश में बनने से किस देश को फायदा होता है तथा विदेशी वस्तुएँ खरीदने से हमारा क्या नुकसान है, इसका वर्णन है।

व्याख्या - साहेब को लगता है कि वह मेले से अपनी रेलगाड़ी रामदीन से खरीदा है। उसे इस बात का ज्ञान नहीं है कि यह रेलगाड़ी जर्मनी निर्मित है जो हमारे बाजार में आकार हमारे स्वदेशी रोजगार को नष्ट करेगी। इस पर श्रीराम उसे समझाता है कि भले ही रेलगाड़ी तुमने रामदीन से खरीदी है, लेकिन रामदीन ने इसे नहीं बनाया अर्थात् यह स्वदेश निर्मित नहीं है। इसे जर्मनी के कारीगर से खरीदने में हमारे देश का पैसा गया। इस तरह जब हम कोई विदेशी वस्तुएँ खरीदते हैं तो हमारे पैसे से विदेशी कारीगर सुखी होते हैं, परन्तु वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के कारीगर बेरोजगार होकर दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं। उन्हें पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता।

Vvi.★ (घ) "जो दूसरे किसी को नीचा दिखाना चाहता है, वह पहले आप ही नीचा देखता है।" 

उत्तर- संदर्भ: प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' में संकलित है जो कहानी 'भाई बहन' नामक पाठ से ली गयी है। इसकी लेखिका बंग महिला है।

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्ति में साहब अपने खिलौने के माध्यम से सुन्दर को नीचा दिखाना चाहता था। 
व्याख्या : प्रस्तुत पंक्ति से स्पष्ट होता है कि कभी किसी को छोटा समझकर उसका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए क्योंकि परिस्थिति कभी भी ऐसी आ सकती है कि दूसरों का मजाक उड़ाने वाला कभी भी स्वयं मजाक का पात्र बन सकता है।

★ (ङ) 'आज तुम लड़के हो, कल तुम्हीं युवा पुरुष हो जाओगे, यदि चाहोगे तो अपने हाथ से इस गिरे हुए देश की बहुत भलाई कर सकोगे।'

उत्तर- संदर्भ: प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' में संकलित है जो कहानी 'भाई बहन' नामक पाठ से ली गयी है। इसकी लेखिका बंग महिला है।

प्रसंग:इस पंक्ति के माध्यम से लेखिका ने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग करने के बारे में बताया है। 

व्याख्या:लेखिका ने बताया है कि विदेशी वस्तुओं के प्रयोग करने से हमारे देश को हानि और दूसरे देश को लाभ पहुँचता है। कई लाख रुपये प्रतिवर्ष हिन्दुस्तान से बाहर के देशों में चला जाता है। इसमें दूसरों का कुछ दोष नहीं है। हम अपनी करनी से ही दीन से दीन, गरीब से और अधम से अधम हो रहे हैं। श्रीराम अपने छोटे भाई साहब को समझाते हुए कहते हैं कि अभी तुम लड़के हो कल तुम युवा पुरुष हो जाओगे। यदि तुम चाहोगे तो अपने हाथ से इस गिरे हुए देश की बहुत कुछ भलाई कर सकोगे। तुमको चाहिए कि अपने देश की भलाई के लिए उपाय एवं विचारों को लड़कपन में ही सीखो, क्योकि जिस बात का प्रभाव मनुष्य पर पड़ जाता है, बड़े होने पर वह उसी अनुसार व्यवहार करता है।


 

नशा

बहु विकल्पीय प्रश्न 



नशा


1. कौन प्रकृति से विलासी और ऐश्वर्य प्रिय था ?[H.S.2020)

उत्तर : ईश्वरी।

2. 'दफ्तर माँ घुस तो पावत नाहीं, उस पै इत्ता मिजाज ?' कौन, किसको कहता है ?
उत्तर : ग्रामीण वीर से कहता है।

★ 3. ईश्वरी कैसा व्यक्ति था ?[H.S. 2016]

उत्तर- ईश्वरी बड़े जमींदार का लड़का था। वह जमींदारों के पक्ष में बोलता था।

4. ईश्वरी का स्वभाव कैसा था ?

उत्तर- ईश्वरी विनम्र स्वभाव का था। बहस में हार जाने के बावजूद वह मुस्कुराता रहता था। ईश्वरी के अन्दर जमींदारों के अहंकार भरे हुए थे। वह स्वभाव से विलासी और ऐश्वर्य प्रिय था।

5. यह 'दूसरा दर्जा है सेकेण्ड क्लास' है। इस कथन में लेखक की कैसी मानसिकता की झलक मिलती है?
 उत्तर- इस कथन से लेखक की अज्ञानता और उसके छिछोरेपन की झलक मिलती है। 

6. रियासत अली ने ईश्वरी से क्या पूछा था ?

उत्तर – रियासत अली ने ईश्वरी से उसके साथ में आये हुए लेखक के बारे में पूछा था। यह पूछा था कि क्या ये आप के साथ पढ़ते हैं।

7. एक बार महाराज चाँगली के साथ क्या हुआ था ?

उत्तर - महाराज चाँगली को कोई पहचान न सका और उन्हें मजदूर समझकर कर बेगार में पकड़ लिया गया था। 

8. ईश्वरी बहस के दौरान गर्म क्यों नहीं होता था ?

उत्तर - ईश्वरी अपने पक्ष की कमजोरी समझता था, इसलिए वह गर्म नहीं होता था |

9. गाँव जाते हुए ईश्वरी ने लेखक से क्या कहा था ?

उत्तर - गाँव जाते हुए ईश्वरी ने लेखक से कहा था कि वह गाँव में जाने पर जमींदारों की निन्दा न करे, क्योंकि उसके घर वालों को बुरा लगेगा।

10. आसामियों को क्या समझा देने पर जमींदारों का पता नहीं लगेगा ? 
उत्तर - आसामियों को यह समझा देने पर कि आसामी और जमींदार में कोई मौलिक भेद नहीं है तो जमींदारों का पता नहीं लगेगा।

11. खानसामों को ईश्वरी ने ईनाम में क्या दिया ?
उत्तर - ईनाम में ईश्वरी ने खानसामों को एक अठन्नी दिया।

12. यह 'दूसरा दर्जा है सेकेण्ड क्लास' है। इस कथन में लेखक की कैसी मानसिकता की झलक मिलती है ?
उत्तर - इस कथन से लेखक की अज्ञानता और उसके छिछोरेपन की झलक मिलती है।

 13. दोनों मित्रों (लेखक और ईश्वरी) को किस स्टेशन तक यात्रा करनी थी ?
उत्तर - लेखक और ईश्वरी को प्रयाग से मुरादाबाद तक की यात्रा करनी थी। 

*14. 'तुम कौवे होकर हंस के साथ कैसे ?" कौवे' और 'हंस' किसे इंगित करते हैं?
उत्तर : कौवे 'वीर' को और हंस 'ईश्वरी' को इंगित करते हैं।

15. 'मैनें उसे कभी गर्म होते नहीं देखा था'। [H.S. 2018 ]
(i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।
(ii) 'उसे' कौन है ? वह क्यों क्रोधित नहीं होता था? उत्तर- 'उसे' से यहाँ 'ईश्वरी' की ओर संकेत है। वह जमींदार का बेटा था लेखक और उसके बीच जब
जमींदारी प्रथा पर बहस होती थी तो वह क्रोधित नहीं होता था, क्योंकि वह अपने पक्ष की कमजोरी समझता था।

16. "लेकिन भाई, एक बात का ख्याल रखना"। 
प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है?

उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता एवं स्रोता का नाम लिखिए।

उत्तर :-प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता ईश्वरी हैं और स्रोता लेखक हैं।

(iii) प्रस्तुत पंक्ति में वक्ता स्रोता को क्या ख्याल रखने के लिए कह रहा है? उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति में ईश्वरी लेखक से कहता है कि जब वह ईश्वरी के घर जाए तो वहाँ जमींदारों की निन्दा न करें।

17. 'अब सेकंड क्लास में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है?

उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) किसे और कब सेकंड क्लास में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

उत्तर - लेखक को, जब वे दशहरे की छुट्टियों में ईश्वरी के घर जा रहे थे तब सेकंड क्लास में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

18. "मैं मन में कटा जा रहा था"।

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है और इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द है।

(ii) कौन मन में कटा जा रहा था और क्यों ? 
उत्तर- 'मैं' यहाँ लेखक है। वह मन में कटा जा रहा है क्योंकि ईश्वरी अपने नौकरों से उसके सम्बन्ध बढ़-चढ़ कर बड़ाई करता है। इस गुणगान को सुनकर लेखक को भीतर ही भीतर शर्म महसूस होती है।

19. "ऐसी हवा बाँधी कि कुछ न पूछिए "

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है? 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) कौन किसके सम्बन्ध में हवा बाँधता है ?
उत्तर - ईश्वरी लेखक के सम्बन्ध में अपने पिता, चाचा, ताऊ और नौकरों के सामने हवा बाँधता है।

20. "पहले कुँवर साहब के पाँव दबा ।"

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है? 
उत्तर :-प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) यहाँ किसने किसे कुँवर कहा है ?
 उत्तर – यहाँ ईश्वरी ने नाई के सामने लेखक को कुँवर कहा है।

21. "मैं उन्हीं पर उबल पड़ा" ।

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है? 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) कौन किस पर उबल पड़ता है ?

उत्तर - लेखक (मैं) रियासत अली पर उबल पड़ता है क्योंकि शाम हो गई थी और किसी ने लैम्प नहीं जलाया था। लेखक स्वयं लैम्प जलाने में हीनता महसूस कर रहा था।

22. "एकाएक मुझे क्रोध आ गया"।

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है ? 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।

(ii) कब और किसे क्रोध आ जाता है ?
उत्तर - प्रयाग लौटते समय लेखक इंटर क्लास में बैठे थे। गाड़ी में भीड़ थी। एक आदमी पीठ पर गठरी बाँधे था। वह बेचैन होकर बार-बार दरवाजे पर खड़ा हो जाता था। लेखक दरवाजे के पास ही बैठे थे। गठरी लेखक के मुँह में सटती थी। लेखक को अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्हें क्रोध आ गया। उसे पीछे ढकेल कर लेखक ने दो तमाचे जड़ दिए।

23. "मेरा नशा अब कुछ-कुछ उतरता मालूम होता था।" 
प्रश्न (1) प्रस्तुत पंक्ति को किस पाठ से लिया गया है?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति को 'नशा' नामक पाठ से लिया गया है।
 (ii) किसका नशा कब उतरता मालूम हुआ ?

उत्तर - जब लेखक ने रेलगाड़ी पर एक आदमी को दो तमाचे जड़ दिए, तब यात्रियों ने उसका विरोध किया। ईश्वरी ने भी लेखक को अंग्रेजी में मूर्ख कहकर डाँटा, तब लेखक का रईस बनने का नशा उतरता हुआ मालूम हुआ। वे अपने यथार्थ में लौट आए।

24. यह कहना कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े हमेशा होते रहते हैं और होते रहेंगे, लचर दलील थी।
प्रश्न (i) इसका वक्ता कौन है?
उत्तर- इसका वक्ता ईश्वरी का मित्र वीर है। 
(ii) 'लचर दलील' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर - 'लचर दलील' से तात्पर्य है कमजोर तर्क किसी विषय में ऐसे तर्क देना जो सटीक और प्रभावशाली न हो। 

25. “दोनों सज्जनों ने मेरी ओर चकित नेत्रों से देखा। आतंकित हो जाने की चेष्टा करते हुए जान पड़े।"
 प्रश्न- (i) दोनो सज्जन कौन थे ?
उत्तर- दोनों सज्जन ईश्वरी के कर्मचारी रियासत अली और राम हरख थे।

 (ii) 'मेरी' से संकेतित व्यक्ति कौन है ?
उत्तर- 'मेरी' से संकेतित व्यक्ति ईश्वरी का सहपाठी मित्र वीर है। 

(iii) वे दोनो आतंकित हो जाने की चेष्टा करते हुए क्यों जान पड़े?
उत्तर - ईश्वरी ने रियासत अली के पूछने पर वीर की महिमा का जो वर्णन किया था उससे वीर के पहनावे एवं रहन-सहन का कोई तालमेल नहीं था। वीर अपने पोशाक से बिल्कुल साधारण आदमी लगता था, वह किसी भी कोण से जमींदार या अमीर नहीं लगता था। इसीलिए रियासत अली और राम हरख आतंकित हो जाने की चेष्टा करते हुए दिखे। उन्हें ईश्वरी के कथन पर विश्वास नहीं हुआ। 

26. 'नशा' कहानी का ठाकुर कैसा व्यक्ति था ? [H.S. 2015]
उत्तर : 'नशा' कहानी का ठाकुर गाँधी का भक्त और मनचला व्यक्ति था|

*27. कुछ मनचला आदमी था। महात्मा गाँधी का परम भक्त
-कौन मनचला आदमी था ?

उत्तर- ठाकुर मनचला आदमी था जो अक्सर ईश्वरी के घर आया करता था।

*28. भीतर का मेरा अपना सारा विचार-जगत् मूर्तिमान हो उठा।
- इस वाक्य में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - जहाँ लेखक मानसिक प्रतिक्रिया को संपादित और संशोधित करने की बात करता है, वहीं उसका मित्र यशराज भी वस्तुतथ्य के प्रति सही-सही मानसिक प्रतिक्रिया करने पर जोर देता है। ऐसे में लेखक तथा यशराज के विचारों में कोई विशेष अंतर नहीं है। तब लेखक के भीतर का विचार जगत मूर्तिमान हो उठा अर्थात् लेखक तर्क की मूल बात समझ गया। 

29. मैंने शून्य की ओर देखना शुरू किया।
- शून्य में उन्हें कौन सी बातें नजर आईं ?

उत्तर - शून्य में उन्हें दो बातें नजर आईं। एक तो यह कि यशराज के अनुसार मानसिक प्रतिक्रिया जिस वस्तु के प्रति होती है, उस वस्तु का भी चित्रण परमावश्यक है। दूसरी यह कि सत्यत्व के आविर्भाव के लिए यह जरूरी है कि कवि उक्त वस्तुतथ्य के प्रति सही-सही मानसिक प्रतिक्रिया करे।

30. 'तो तुम गलत समझते हो'
- वक्ता किस प्रसंग पर ऐसा कहता है?

उत्तर - जब दशहरे की छुट्टी बिताने के लिए ईश्वरी अपने गाँव जा रहा था तो उसने वीर को भी अपने साथ चलने का प्रस्ताव दिया। वीर तुरंत राजी हो गया तो ईश्वरी ने उसे समझाया कि वहाँ जाकर जमींदारों की निन्दा मत करना, अन्यथा बात बिगड़ जायेगी। इस पर वीर ईश्वरी की इस बात का विरोध करता है और यह वाक्य कहता है।

*31. "मेरी मिट्टी पलीद क्यों कर रहे हो ?" - यह कौन, किससे कहता है ?
[H.S.2016]
उत्तर- ईश्वरी के मित्र वीर ने ईश्वरी से कहा।

*32. 'तुमने बहुत अच्छा किया'- यह कौन, क्यों कहता है ?[H.S.2017]
उत्तर : ईश्वरी कहता है क्योंकि महरा ग्यारह बजे वीर का बिस्तर लगाने आया था। 
33. 'नशा' कहानी में किस नशे की बात कही गई है?[H.S.2017]
उत्तर : अमीर बनने की नशे की बात कही गई है जो गरीब होते हुए भी अपने आप को अमीर समझने लगा।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 


(क) मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'नशा' कहानी का सारांश लिखिए।

उत्तर - मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'नशा' कहानी मनुष्य की मनोभावनाओं एवं कुंठाओं की परतों को खोलती है। इस कहानी में न कोई बलवती धारणा है, न संयोग है। यहाँ प्रेमचन्द ने मानवता के चिरंतन संघर्षों और प्रतिक्रियाओं के द्वारा मानव-मन का विश्लेषण किया है। 'मैं' शैली में लिखी गई इस कहानी का शिल्प इसे विशेष रूप से विश्वसनीय बनाता है। नशा कहानी का सारांश हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त कर सकते हैं।

(1) नायक एवं सहनायक ईश्वरी का परिचय -कथानायक एक गरीब क्लर्क का एवं सहनायक ईश्वरी एक बड़े जमींदार का बेटा है। वे दोनों कॉलेज में एकसाथ पढ़ते हैं और हॉस्टल में एक साथ रहते हैं। उन दोनों की पृष्ठभूमि अलग है। अपने भिन्न विचारों के कारण वे आपस में बहसें किया करते हैं। नायक जमींदारों की बुराइयों पर बहसें किया करता है। नायक जमींदारों की बुराइयों को उजागर करता है। ईश्वरी की दलीलें नायक के सामने टिक नहीं पाती है। लेकिन पराजित होकर भी वह मुस्कुराता रहता है। इसका कारण यह है कि वह अपनी कमजोरियों से अवगत है।

(2) नायक एवं सहनायक ईश्वरी का स्वभाव -कथानायक से ईश्वरी का स्वभाव नम्रतापूर्ण है, लेकिन नौकरों से वह सीधे मुँह बात नहीं करता है। ईश्वरी के स्वभाव में अमीरी है। दीन-दशा में रहकर भी उसमें अमीर बने रहने की क्षमता है। कथानायक का लोकप्रेम सिद्धान्तों पर नहीं, बल्कि अपनी दीन दशा पर आधारित है। ईश्वरी मेहनती है और पढ़ाई में भी तेज है। नायक का स्वभाव जिद्दी एवं अड़ियल है।

(3) नायक का ईश्वरी के घर प्रस्थान -दशहरे की छुट्टियों में ईश्वरी नायक को अपने घर चलने का न्योता देता है। नायक के पास अपने घर जाने के लिए रुपये नहीं हैं। वह ईश्वरी का न्योता स्वीकार कर लेता है। नायक के मन में ईश्वरी के साथ परीक्षा की तैयारी की योजना है। ईश्वरी नायक को अपने यहाँ जमींदारों की निन्दा नहीं करने का सुझाव देता है। वह नायक को समझाता है कि वहाँ जमींदारों की निन्दा करने से उसके घरवालों को बुरा लगेगा। इतना समझाकर ईश्वरी इस मामले को नायक के विवेक पर छोड़ देता है।

(4) गाँधीवाद से नायक की गरीबी का सम्बन्ध - नायक को जीवन में पहली बार सेकेण्ड क्लास में सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। नायक और ईश्वरी रात के नौ बजे प्रयाग से प्रस्थान करते हैं और वे सुबह मुरादाबाद पहुँचते हैं। ईश्वरी अपने लोगों से नायक का परिचय जमींदार परिवार के गाँधीवादी विचारधारा के युवक के रूप में करवाता है। नौकर-चाकर एवं ईश्वरी के घर के लोग नायक की सादगी के लिये उसका खूब सम्मान करते हैं। नायक इस झूठ का विरोध करना चाहता है ईश्वरी इस झूठ को आवश्यक बताकर नायक को चुप कर देता है।

(5) नायक के स्वभाव में परिवर्तन- ईश्वरी के यहाँ लखनऊ आकर नायक की आदतें बदलने लगती हैं। वह अपना सारा काम नौकरों से करवाता है। वह अपने छोटे-से-छोटे काम के लिये भी नौकरों को डाँटता-फटकारता है। अब वह अमीरों के चोंचले सीख चुका है। वह ईश्वरी से भी ज्यादा नाजुक दिमाग बन गया है। ईश्वरी का परिहास करनेवाला नायक स्वयं रईस बनने का स्वांग करने लगता है। उस पर रईसी का नशा इस कदर चढ़ जाता है कि वह ईश्वरी से भी बढ़कर शान-शौकत दिखाने लगता है। पढ़ने के बजाय सैर-सपाटे एवं मनोरंजन में उसकी छुट्टियाँ बीत जाती हैं।

(6) नायक एवं सहनायक की वापसी -छुट्टी समाप्त कर वे दोनों प्रयाग लौटते हैं। दुर्गापूजा की छुट्टियाँ बिताकर लौटने वाले लोगों के कारण गाड़ी में काफी भीड़ है। वे लोग किसी प्रकार अंतिम गाड़ी के तीसरे दर्जे में चढ़ पाते हैं। अब नायक को तीसरे दर्जे में बैठना अच्छा नहीं लगता है। उसे द्वार के पास बैठने की जगह मिली है। अपनी पीठ पर गट्ठर लादे कलकत्ता जानेवाले एक यात्री की गठरी नायक के मुँह से रगड़ खाती है। नायक को इतना क्रोध आता है कि वह उस यात्री को पीछे धकेलकर दो-तीन तमाचे जड़ देता है। डिब्बे के यात्री नायक के इस आचरण का पुरजोर विरोध करते हैं। यहाँ तक कि ईश्वरी भी उसे फटकार लगाता है। नायक का नशा जो अबतक अपनी पराकाष्ठा पर था धीरे-धीरे उतर जाता है।

उद्देश्य :-कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने अत्यन्त कलात्मक ढंग से दर्शाया है कि धन के नशा को पचाने की क्षमता सबके पास नहीं होती है। धन का नशा सामान्य लोगों के माथे पर चढ़कर बोलने लगता है। रईसों धनवानों का विरोध करना आम बात है, लेकिन उस परिस्थिति में जाकर स्वयं पर संयम रखना एक कठिन साधना है।

 (ख) 'नशा' कहानी के पात्रों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- कथाकार प्रेमचंद द्वारा रचित 'नशा' कहानी में कथावाचक 'मैं' एवं ईश्वरी दो प्रमुख पात्र हैं। प्रेमचंद ने इन दोनों चरित्रों को आमने-सामने रखकर कथानक की संरचना की है। ईश्वरी का चरित्र सपाट एवं सरल है, जबकि कथावाचक 'मैं' के चरित्र में काफी उतार-चढ़ाव है। कथानक में 'मैं' के चरित्र को उजागर करने के लिये ईश्वरी के चरित्र की योजना की गई है। कथा का केन्द्रीय चरित्र कथावाचक 'मैं' है। पारम्परिक नायक के धीरोदात्त, धीरललित आदि गुणों के विपरीत 'नशा' कहानी का 'मैं' नकारात्मक चरित्र का स्वामी है। नायक एवं सहनायक के चरित्रों का तुलनात्मक ढंग से विवेचन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि कथावाचक 'मैं' नशा कहानी का प्रमुख पात्र है। लेखक का अभिप्रेत है कि हर व्यक्ति धन के नशा को नहीं साध पाता है। अपने अभिप्रेत को लेखक कथावाचक 'मैं' के द्वारा सिद्ध करता है।

कथावाचक 'मैं' गरीब क्लर्क का बेटा है। वह अमीरों की बुराई करता है। वह बहस में अक्सर उग्र हो जाता है, लेकिन ईश्वरी उसकी बातों का बुरा नहीं मानता। ईश्वरी के चरित्र में अमीरी है। वह नौकरों से सीधे मुँह बात नहीं करता है। कथावाचक 'मैं' का लोक-प्रेम किसी सिद्धान्त पर नहीं, बल्कि उसकी गरीबी पर आधारित है। दशहरे की छुट्टियों में अपने घर जाने के लिये उसके पास किराये के पैसे नहीं हैं; ईश्वरी उसे अपने घर लखनऊ चलने का न्यौता देता है। नायक उसके न्यौते को स्वीकार कर लेता है। ईश्वरी पढ़ाई में मेहनती और जहीन है। नायक ईश्वरी के साथ मिलकर परीक्षा की तैयारी करना चाहता है।
ईश्वरी नायक को भली-भाँति समझा देता है कि लखनऊ में वह जमींदारों की बुराई न करें, वरना बात बिगड़ सकती है। नायक दावा करता है कि वह वहाँ जाकर बदल नहीं सकता। नायक को पहली बार सेकेण्ड क्लास में सफर करने का अवसर मिला है। यहीं से उसके चरित्र में गुणात्मक परिवर्तन आरम्भ हो जाता है। खानसामा ईश्वरी को जिस प्रकार आदर देता है, वह भी उसी प्रकार के सम्मान की अपेक्षा उनसे करता है। प्रतापगढ़ में गाड़ी के रुकने पर वह यात्रियों को सेकेण्ड क्लास बताकर चढ़ने से मना करता है। दूसरे लोग भी सेकेण्ड क्लास में सफर कर सकते हैं, वह ऐसा सोच भी नहीं सकता है।

मुरादाबाद में उनकी आगवानी करने के लिये आये लोगों से उसका परिचय जमींदार परिवार के गाँधीवादी भक्त के रूप में करवाया जाता है। इस सफेद झूठ का नायक पुरजोर विरोध नहीं करता है। ईश्वरी अपने घरवालों से भी नायक का उसी रूप में परिचय करवाता है।

अमीरों के जिन चोंचलों का नायक पहले विरोध करता था, वह उन्हीं बुराइयों का शिकार बन जाता है। नाई से पैर दबवाना, नौकरों से विस्तर लगवाना, लैम्प जलवाना आदि नखरे अब उसे अच्छे लगने लगते हैं। अपनी सेवा टहल में विलम्ब होने पर वह सेवकों को फटकार लगाता है। ईश्वरी के घर आनेवाले एक ठाकुर के सामने वह झूठी शान बधारता है। वह बताता है कि स्वराज्य मिलने पर वह अपनी सारी जमीन इलाके के आसामियों में बँटवा देगा।

पूरी छुट्टी वह सैर-सपाटे में व्यतीत कर देता है। इलाहाबाद की वापसी में तीसरे दर्जे में सफर करना उसे अच्छा नहीं लगता है। कलकत्ता जानेवाले एक यात्री की गठरी नायक के मुँह से रगड़ खाती है। नायक को इतना क्रोध आता है कि वह उस यात्री को पीछे धकेलकर तमाचे जड़ देता है। उसके इस आचरण का यात्री विरोध करते हैं। यहाँ तक कि ईश्वरी भी उसे फटकार लगाता है।
नायक के चरित्र से स्पष्ट हो जाता है कि रईसों का विरोध करना आसान है, लेकिन उस परिस्थिति में जीकर स्वयं पर संयम रखना कठिन कार्य है।

VI.***(ग) 'नशा' कहानी के आधार पर इस शीर्षक की सार्थकता पर अपना विचार व्यक्त कीजिए। [H. S. 2015]

उत्तर- शीर्षक किसी भी रचना के सिंहद्वार की भाँति होता है, जिसकी भव्यता को देखकर रचना के महल में प्रवेश करने का कौतूहल उत्पन्न हो जाता है। रचना की आत्मा शीर्षक में निवास करती है। प्रायः प्रमुख घटना, प्रमुख पात्र या रचना के केन्द्रीयभाव के आधार पर शीर्षक का चयन किया जाता है।

शीर्षक की विशेषता की दृष्टि से कहानी का 'नशा' शीर्षक अतिसंक्षिप्त एवं कौतूहलवर्धक है। पाठक के मन में अंत तक कहानी के शीर्षक के प्रति जिज्ञासा बनी रहती है। यह कैसा नशा है? किस चीज का नशा है? यह प्रश्न पाठक को सम्पूर्ण कहानी पढ़ने के लिये प्रेरित करता है। ईश्वरी के यहाँ लखनऊ आकर नायक की आदतें बदलने लगती हैं। वह अपना सारा काम नौकरों से करवाता है। वह अपने छोटे-से-छोटे काम के लिये भी नौकरों को डाँटता-फटकारता है। अब वह अमीरों के चोंचले सीख चुका है। वह ईश्वरी से भी ज्यादा नाजुक दिमाग बन गया है। ईश्वरी का परिहास करनेवाला नायक स्वयं रईस बनने का स्वांग करने लगता है। उस पर रईसी का नशा इस कदर चढ़ जाता है कि वह ईश्वरी से भी बढ़कर शान-शौकत दिखाने लगता है। पढ़ने के बजाय सैर-सपाटे एवं मनोरंजन में उसकी छुट्टियाँ बीत जाती हैं।
छुट्टी समाप्त कर वे दोनों प्रयाग लौटते हैं। दुर्गापूजा की छुट्टियाँ बिताकर लौटने वाले लोगों के कारण गाड़ी में काफी भीड़ है। वे लोग किसी प्रकार अंतिम गाड़ी के तीसरे दर्जे में चढ़ पाते हैं। अब नायक को तीसरे दर्जे में बैठना अच्छा नहीं लगता है। उसे द्वार के पास बैठने की जगह मिली है। अपनी पीठ पर गट्ठर लादे कलकत्ता जानेवाले एक यात्री की गठरी नायक के मुँह से रगड़ खाती है। नायक को इतना क्रोध आता है कि वह उस यात्री को पीछे धकेलकर दो-तीन तमाचे जड़ देता है। डिब्बे के यात्री नायक के इस आचरण का पुरजोर विरोध करते हैं। यहाँ तक कि ईश्वरी भी उसे फटकार लगाता है। नायक का नशा जो अबतक अपनी पराकाष्ठा पर था धीरे-धीरे उतर जाता है।
सम्पूर्ण कहानी से गुजरने के उपरान्त पाठक की जिज्ञासा तृप्त हो जाती है। अंत में पाठक को ज्ञात होता है कि यह विशिष्ट नशा का नशा है। कवि बिहारी लाल ने अपने दोहे में किसी नशीले पदार्थ की अपेक्षा धन में सौगुनी ज्यादा मादकता का उल्लेख किया है
 'कनक- कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौरात नर, या पाये बौराय ।।

कथाकार प्रेमचंद ने स्पष्ट किया है कि धन का नशा साधने की क्षमता विरले व्यक्ति में होती है। 

(घ) कहानी कला की दृष्टि से नशा कहानी की समीक्षा कीजिए।

उत्तर- वर्तमान दौर में कथा समीक्षा के शिल्प में काफी विकास हुआ है। कथा परंपरा में कहानी का अवस्थान, उसकी प्रासंगिकता और प्रयोजनीयता आदि विषयों पर गंभीर विवेचन होने लगा है। आधुनिक पत्र-पत्रिकाओं में इसके उदाहरण उपलब्ध हैं। कहानी के निम्नलिखित छः तत्वों की कसौटी पर कहानी को परखने की एक सुविधाजनक परम्परा रही है 1. कथानाक 2. चरित्र 3. संवाद 4. देशकाल (वातावरण) 5. भाषा-शैली 6. उद्देश्य ।

कहानी - कला की इसी कसौटी पर 'नशा' कहानी की समीक्षा करना समीचीन होगा। 
(1) कथानक- कथानक के बिना कहानी की कल्पना नहीं की जा सकती। कथानक के निर्माण में कई का योगदान होता है। घटनाओं के घात-प्रतिघात से कथानक का विकास होता है, लेकिन घटनाओं की बहुलता कथानक को कमजोर बनाती है।

'नशा' कहानी में मुख्यत: तीन घटनाएँ हैं। पहली घटना है कि नायक और सहनायक ईश्वरी इलाहाबाद के एक कॉलेज में पढ़ते हैं और हॉस्टल में एक साथ रहते हैं। नायक गरीब क्लर्क का बेटा है और सहनायक ईश्वरी जमींदार का बेटा है। उनके बीच अमीरों की बुराइयों पर बहसें होती हैं।

इसकी घटना है कि नायक और सहनायक ईश्वरी दशहरे की छुट्टियों में लखनऊ जाते हैं। लखनऊ में नायक का परिचय जमींदार परिवार के गाँधीवादी व्यक्ति के रूप में दिया जाता है। वहाँ सैर-सपाटे में उनकी छुट्टी व्यतीत हो जाती है।" तीसरी घटना उनकी वापसी की है। कलकत्ता जानेवाले एक यात्री की गठरी नायक के मुँह से रगड़ खाती है। वह यात्री को धक्के देता है और उसे थप्पड़ मार देता है।

2. चरित्र - कहानी के पात्र चरित्र कहलाते हैं। कहानी में पात्रों के चरित्र का उद्घाटन होता है। कम-से-कम पात्रों की योजना कहानी की विशेषता मानी जाती है। पात्रों की सृष्टि उद्देश्य की पूर्ति के लिये की जाती है, जिनका मूल घटना से सम्बन्ध आवश्यक होता है।

'नशा' कहानी में नायक एवं सहनायक ईश्वरी प्रमुख पात्र हैं। इनके अतिरिक्त प्रमुख पात्र के चरित्र को उभारने के लिये रियासत अली, रामहरख, ठाकुर आदि गौण पात्रों की रचना की गई है। नायक के चरित्र में काफी उतार चढ़ाव है, जबकि ईश्वरी का चरित्र सरलरेखीय है। नायक के चरित्र की परिवर्तनशीलता को दर्शाना लेखक का अभिप्रेत (उद्देश्य) है।

3. संवाद -कहानी की स्वाभाविकता एवं विश्वसनीयता के लिये संवाद की योजना की जाती है। संक्षिप्त, सरल एवं पात्र के अनुकूल संवाद कहानी को सफल बनाते हैं। संवाद के अभाव में कहानी विश्लेषणात्मक एवं वर्णनात्मक बन जाती है।
'नशा' कहानी के संवाद सरल एवं संक्षिप्त हैं। नायक एवं ठाकुर के संवाद में हास्य-व्यंग्य का पुट है। नायक एवं सहनायक के संवाद में भी हास्य-विनोद का भाव द्रष्टव्य है।

मैंने ईश्वरी से कहा- 'तुम बड़े शैतान हो यार, मेरी मिट्टी क्यों पलीद कर रहे हो ?' ईश्वरी - 'इन गधों के सामने यही चाल जरूरी थी, वरना सीधे मुँह बोलते भी नहीं।' रियासत अली, राम हरख एवं ठाकुर आदि पात्रों के संवाद पात्रानुकूल हैं।

4. देशकाल (वातावरण) -कहानी किसी-न-किसी देश एवं किसी काल विशेष में लिखी जाती है। किसी श्रेष्ठ रचना में अपने कालखण्ड की पदध्वनि स्पष्ट सुनी जा सकती है। रचना अपने देश-काल से निरपेक्ष नहीं होनी चाहिए। 'नशा' कहानी में आजादी पूर्व सामंतयुगीन समय और समाज का चित्रण है। नाई से पैर दबवाना, नौकरों से विस्तर लगवाना, शिकार खेलना आदि सामंती प्रवृत्तियाँ हैं। रेलगाड़ी में तृतीय श्रेणी का उल्लेख तत्कालीन स्थितियों को दर्शाता है। 
5. भाषा-शैली भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और शैली भाषा की शोभा है। कहानी सच्ची हो या काल्पनिक हो, शैली उसे कला का रूप देती है। कला के बिना कहानी उत्कृष्ट नहीं हो सकती। सरलता, सहजता,बोधगम्यता भाषा की विशेषता है और शैली उसकी विशिष्टता वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक आदि कहानी की अनेक शैलियाँ हैं। कथा की माँग के अनुरूप कहानीकार शैली का चयन करता है। कथाकार प्रेमचंद अपनी भाषा शैली के कारण सामान्य और विशिष्ट दोनों वर्ग के पाठकों के प्रिय रहे हैं। 'नशा' कहानी की भाषा में पठनीयता है। इसकी 'आत्मकथात्मक शैली' इसे विश्वसनीय एवं रोचक बनाती है।

6. उद्देश्य- उद्देश्यविहीन रचना प्राणहीन काया के समान होती है। सन् 1936 ई० में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन में प्रेमचंद ने कहा था कि रुलानेवाला और सुलानेवाला साहित्य बहुत लिखा जा चुका, अब हमें जगानेवाला साहित्य चाहिये। प्रेमचंद ने अपने युग की तमाम समस्याओं को अपने लेखन का विषय बनाया। प्रेमचंद शिविरबद्ध होकर पक्षपातग्रस्त लेखन नहीं करते। उनकी रचना बहुआयामी होती है। वे सोद्देश्य लेखन के हिमायती रहे हैं।

'नशा' कहानी में प्रेमचंद ने ईश्वरी के माध्यम से जमींदार वर्ग की दरियादिली भी दिखाई है और ईश्वरी के परिवारवालों के माध्यम से उनका दिमागी दिवालियापन भी दर्शाया है। कथानायक के चरित्र के माध्यम से लेखक हर हाल में मानवता और मानवीय मूल्यों को बचाये रखने का संदेश देते हैं।

1)**"ये लोग गरीबों का खून चूसने के सिवा और करते क्या हैं ?" [H.S.2017] 

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित 'नशा' कहानी से उद्धृत है। 

व्याख्या - ठाकुर महात्मा गाँधी का परमभक्त था। वह वीर को महात्मा गाँधी का चेला समझकर बड़ा लिहाज करता था। एक दिन वह वीर को अकेला देखकर उसके पास गया और हाथ जोड़कर पूछा कि आप तो गाँधी के चेले हैं, लोग कहते हैं कि यहाँ सुराज हो जायेगा तो जमींदार नहीं रहेंगे। तब वीर ने कहा कि जमींदारी की आवश्यकता ही क्या है? वे तो गरीबों का खून चूसने के सिवा और क्या करते हैं?

2)Vvvi.**“हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थी।" [H.S.2016]
 उत्तर - सन्दर्भ - प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी 'नशा' शीर्षक से उद्धृत है।

व्याख्या - लेखक ने कहा है कि ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और वे गरीब कलर्क का, जिसके पास मेहनत - मजदूरी के सिवा कोई जायदाद न थी। लेखक जमींदारों की बुराई करते। वे जमींदारों को खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फुलने वाला बंझा कहते थे। ईश्वरी जमींदारों का पक्ष लेता था, पर उसका पहलू स्वभावतः कमजोर होता था। उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दली नहीं होती थी। इस प्रकार दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं।

3)"क्या कसूर किया था बेचारे ने ? गाड़ी में साँस लेने की जगह नहीं, खिड़की पर जरा साँस लेने खड़ा हो गया तो उस पर इतना क्रोध !

अथवा, अमीर होकर क्या आदमी अपनी इंसानियत बिल्कुल खो देता है!"
उत्तर – सन्दर्भ - प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी पाठ संचयन' के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी 'नशा' शीर्षक से उद्धृत है।

प्रसंग - दशहरे की छुट्टियाँ बिताकर ईश्वरी और वीर दोनों वापस प्रयाग के लिए चल पड़े। गाड़ी में तिल धरने की भी जगह नहीं थी। ऐसे में एक गरीब की गठरी बार-बार वीर के चेहरे से रगड़ा खा रहा था। क्रोध में वीर ने आव देखा न ताव- उसे चार-पाँच तमाचे जड़ दिये। यह देखकर डब्बे के लोग वीर पर बरस पड़े तथा उस पर तरह-तरह की फब्तियाँ कसने लगे। यह कथन उसी समय का है।

व्याख्या - निम्न मध्यम वर्ग की यह मानसिकता होती है कि वह सदा अपने से ऊँचे वर्ग से जुड़ने की आकांक्षा रखता है। कथानायक जमींदारों तथा अमीरों की खूब आलोचना करता है, किन्तु केवल तभी तक जब तक वह सब कुछ स्वयं उसके लिए अकल्पनीय रहता है। जैसे ही उसे वह परिवेश प्राप्त होता है, वह उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगता है। वह अपने स्तर के लोगों से घृणा करने लगता है। अमीरी का ढोंग करने लगता है। वह कलकता जानेवाले यात्री को न सिर्फ धकेलता है, बल्कि उसे कई तमाचे भी जड़ देता है। डिब्बे के यात्री वीर के इस आचरण का पुरजोर विरोध करते हैं। उस यात्री का कसूर भी क्या था? तीसरे दर्जे के डिब्बे में भीड़ तो स्वाभाविक है। ऐसे में यात्री को पीट देना कहाँ की इंसानियत है। अगर अमीर नाजुक मिजाज है तो उसे अव्वल दर्जे में ही सफर करना चाहिए। इस अवतरण का मूल भाव यह है कि यदि धनी होने के झूठे अभिमान में मनुष्य निर्धन को तमाचे मार सकता है तो वह वास्तविक में धनी होने पर क्या करेगा ?


मलवे का मालिक







1) रक्खे पहलवान ने चिरागदीन को क्यों मारा ?[H.S. 2020]

उत्तर : इसके नये मकान पर कब्जा करने के लिये।

 ★ 2. 'सब कुछ बदल गया पर बोलियाँ नहीं बदली' वक्ता का नाम बताइए।

उत्तर : बूढ़ा मुसलमान।

★ 3. मोहन राकेश के किसी एक बहुचर्चित नाटक का नाम बताइए।
 उत्तर :-आधे अधूरे, आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस

 4. लाहौर से आये मुसलमानों में अधिक संख्या में कैसे लोग थे ?

उत्तर - लाहौर से आये अधिसंख्य मुसलमानों में ऐसे लोग थे जिन्हें विभाजन के समय अमृतसर से जाना पड़ा था।

★5. बाजार बांसा क्या है ?[H.S.2015]

उत्तर - बाजार बांसा अमृतसर का एक बाजार है, जहाँ विभाजन से पहले निचले तबके के मुसलमान रहते थे।

6. बाजर बांसा में किस चीजें की दुकाने थीं? 
उत्तर - बजार बांसा में बांसों एवं शहतीरों की दूकाने थीं।

7. 'सब कुछ बदल गया पर बोलियाँ नहीं बदली' इस कथन में छिपी भावना क्या है? 
उत्तर - इस कथन में सब कुछ खोने का भाव एवं टीस के भाव का दर्द छिपा हुआ है।

8. 'कहिए मियाँ जी आप यहाँ क्यों खड़े हैं' यह बात किसने, किससे पूछा ? उत्तर - यह बात मनोरी ने गली में खड़े मियाँजी से पूछा ।

9. मनोरी कौन था उसके हाथ में क्या था ?
 उत्तर - मनोरी मुहल्ले का एक लड़का था। उसके हाथ में चाबियों का एक गुच्छा था।

10. गनी खाँ क्या ढूँढ रहा था ?[H.S.2016]
उत्तर - गनी खाँ अपने बच्चों और मकान को गली में ढूँढ़ रहा था।

11. रक्खा कौन था ?
उत्तर – रक्खा एक पहलवान था, जिसने गनी के हिन्दुस्तान में बसे परिवार को मार डाला था। यह घटना अमृतसर के बाजार बाँसा की थी।

12. किसने कहा था “हे प्रभु तू ही है, तू ही है, तू ही है' वक्ता के निहित भाव को स्पष्ट कीजिए ? 
उत्तर - यह कथन रक्खा पहलवान का है। इस कथन में वक्ता की आत्मग्लानि का भाव छिपा है।

13. रक्खे जैसे कठोर, हृदय हीन व्यक्ति का हाथ बूढ़े मियाँ के सामने क्यों जुड़ गया ? 
उत्तर - आदमी के अन्दर की आदमियत कभी मरती नहीं। अनुकूल अवसर पाकर वह प्रकट हो जाती है। यही कारण था कि रक्खे का हाथ गनी मियाँ को सलाम करने के लिए उठ गया।

*14. क्या इस तरफ के सब मकान जल गए थे ? संदर्भित प्रसंग की चर्चा कीजिए।

उत्तर - साढ़े सात साल बाद लाहौर से अमृतसर आने पर लोग अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे। इस बीच शहर में बहुत सारे परिवर्तन आ गये थे। उदाहरण के तौर पर कटरा जयमल सिंह अब चौड़ा हो गया था, क्योंकि इसके एक तरफ के सब के सब मकान जल गये थे। इसे देखकर लोग अफसोस कर रहे थे।

*15. बिसाती किसे कहा जाता है ?

उत्तर - बिसाती का अर्थ है कपड़ा या चटाई बिछाकर सामान बेचने वाला। 

*16. जहाँ हकीम आसिफ अली की दुकान थी, अब वहाँ पर क्या है ?

उत्तर - जहाँ हकीम आसिफ अली की दुकान थी, वहाँ अब एक मोची ने कब्जा कर रखा है।

**17.पर उसका भौंकना बन्द नहीं हुआ"- कौन, किस पर भौंकता है?(H.S.2018)
उत्तर : कुता, पहलवान पर भौंकता है।

18.चिराग को पाकिस्तान मिल चुका था'
-(i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से है?
उत्तर -प्रस्तुत पंक्ति को मलबे का मालिक नामक पाठ से लिया गया है।
(ii) प्रस्तुत पंक्ति के लेखक कौन है? 
उत्तर -प्रस्तुत पंक्ति के लेखक मोहन राकेश जी है।
(iii) इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए ? 
उत्तर - ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद जीव को जन्नत या स्वर्ग मिल जाता है जो अल्ला - ईश्वर का पर है। चिराग की हत्या कर रक्खे ने उसे पाकिस्तान दे दिया था। 

19. यह मस्जिद ज्यों की त्यों खड़ी है? इन लोगों ने इसका गुरुद्वारा नहीं बना दिया ?
प्रश्न- (i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मलबे का मालिक नामक पाठ से है।
(ii) प्रस्तुत पंक्ति के लेखक कौन हैं?
उत्तर -प्रस्तुत पंक्ति के लेखक मोहन राकेश जी हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्ति को किसने, किससे कहा?
 उत्तर प्रस्तुत पंक्ति को एक मुसलमान पात्र ने वली नाम के एक मुस्लिम पात्र से कहा है।
(iv) पंक्ति का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर- पंक्ति का केन्द्रीय भाव यह है कि जब विभाजन और बँटवारा हो रहा था तब बहुत से मकान तोड़े जा रहे थे। पाकिस्तान से आये हुए मुसलमानों को हर जगह याद थी। उनको यह भ्रम था कि जहाँ-जहाँ मस्जिद थी अब वहाँ मन्दिर या गुरुद्वारा बना दिया गया होगा। क्योंकि हिन्दू लोग मस्जिद को अब नहीं रहने दिये होंगे। पर वापस मस्जिद को पाकर वे आश्चर्य में पड़ जाते हैं।

20. गनी के छूने से उसके कई रेशे झड़कर बिखर गये ।

प्रश्न- (i) झड़कर बिखरना का क्या अर्थ है ?

उत्तर- झड़कर बिखरना का अर्थ नष्ट हो जाना है।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति का केन्द्रीय भाव क्या है?

उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का केन्द्रीय भाव यह है कि जब गनी ने अपने सात साल पहले जले हुए मकान के किवाड़ की चौखट को छुआ तो किवाड़ का चौखट छूते ही बिखर गया। 

21. देख, रक्खे पहलवान, क्या से क्या हो गया ? भरा-पूरा घर छोड़कर गया था और आज यहाँ मिट्टी देखने आया हूँ।

प्रश्न (i) उपरोक्त कथन किसने किससे की है ?
 उत्तर - उपरोक्त कथन को गनी मियाँ ने रक्खे पहलवान से कहा है।

(ii) क्या से क्या हो गया का अर्थ लिखिए।
उत्तर - क्या से क्या हो गया का अर्थ है कि सब कुछ बदल जाना अब सब कुछ बदल गया है। हिन्दू हिन्दू हो गया है और मुसलमान मुसलमान हो गया है।

(iii) उपरोक्त पंक्ति का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर - पंक्ति का केन्द्रीय भाव यह है कि गनी मियाँ को बहुत ही भरोसा था कि जब वह पाकिस्तान से वापस हिन्दुस्तान आयेगा तो सब कुछ सही सलामत पायेगा। परन्तु विभाजन की त्रासदी ने सब कुछ नष्ट कर दिया है। जब वह पाकिस्तान गया था तो उसका घर एक आलीशान मकान था, पर आज सात साल बाद वहाँ पर सिर्फ मलवा और राख ही बचा है।

22. रक्खे, उसे तेरा बहुत भरोसा था। कहता था कि रक्खे के रहते कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। 
प्रश्न- (i) तेरा बहुत भरोसा था कहानी में यह वाक्य किसके लिए आया है?
उत्तर - यह वाक्य कहानी में रक्खे पहलवान के लिए आया है।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति किस कहानी से ली गयी है?
उत्तर -प्रस्तुत पंक्ति मलबे का मालिक' नामक कहानी से ली गयी है।
(iii) प्रस्तुत पंक्ति का केन्द्रीय भाव लिखिए। 
उत्तर - गनी मियाँ रक्खे पहलवान से कहता है कि रक्खे पहलवान मेरा चिरागदीन हमेशा यही कहता था कि जब तक रक्खे पहलवान है गली में, उसका कोई कुछ भी बुरा नहीं कर सकता है। पर कहानी में रक्खे पहलवान ही गनी मियाँ के परिवार और उसके चिरागदीन का हत्यारा निकला।

23. "जो होना था, हो गया रक्खिआ ! उसे अब कोई लौटा थोड़े ही सकता है!

प्रश्न (i) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से है ?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति मलबे का मालिक नामक पाठ से ।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के लेखक कौन हैं?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के लेखक मोहन राकेश जी हैं।

(iii) वाक्य में यह कथन किसका है, किसके लिए कहा गया है ?
उत्तर -वाक्य में यह कथन गनी मियाँ का है रक्खे पहलवान के लिए कहा गया।

(iv) पंक्ति का केन्द्रीय भाव लिखिए।

उत्तर - गनी मियाँ ने जब देखा कि पहलवान का गला सूखने लगा है और उसकी आँखों के इर्द-गिर्द गहरे दायरे बन गये हैं तो गनी मियाँ उस मक्कार और झूठे रक्खे पहलवान को ही समझाता है कि जाने दे रक्खे जो हुआ सो हुआ। उसे टाला भी नहीं जा सकता था। यह अल्लाह की नियामत थी उसे कोई टाल नहीं सकता है। तू अपना जी छोटा मत कर।





'

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 


VI.★ (1) 'मलवे का मालिक' कहानी में मानवीय मूल्यों का विघटन उजागर होता है - स्पष्ट कीजिए।[H. S. 2019]
अथवा,
मलबे का मालिक' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें। 
अथवा,
'मलबे का मालिक' कहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। [SAMPLE QUESTION]
अथवा,
'मलबे का मालिक' कहानी भारत विभाजन की त्रासदी (दुःख) की कहानी है। समीक्षा करें।
अथवा, 
'मलबे का मालिक' कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश देना चाहा है?
अथवा
'मलबे का मालिक' काहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए। (H.S.2017)

उत्तर- मोहन राकेश की कहानी 'मलवे का मालिक' आजादी के बाद की कहानी है। नई कहानी के शुरुआती दौर का प्रतिनिधित्व करनेवाली इस कहानी का विषय वस्तु ही विभाजन की त्रासदी को दिखाना है। एक ऐसी परिस्थिति जो दो साथ-साथ रहनेवाले, एक ही गली-मुहल्ले में खेलने वाले, साथ ही एक ही जमीन पर पैदा होकर, पले-बढ़े इंसानों के बीच अचानक धर्म और राजनीतिक चालबाजी के कारण बँट जाना कितना भयानक होता है, को बखूबी दिखाती है। अपने पराये पन को ये इंसान भूलकर खुद मानवी गलतियों के बीच फँस जाते हैं। मलबे का मालिक में कहानीकार ने गनी मियाँ को विभाजन के कुछ वर्ष पूर्व ही पाकिस्तान चले जाने से उसके अन्दर बसे हिन्दुस्तान की सरजमों के प्रति प्यार टूटा नहीं है, यह दिखाने का सफल प्रयास किया है। चूँकि गनी मियाँ उस वक्त गया था जब विभाजन की बात नहीं थी, खींचतान हो रहा हो, हो सकता है। हंसी-खुशी और अच्छे माहौल में गया गनी मियाँ अपने साथ हिन्दुस्तान की खुशियों, अमन चैन की बात लेकर गया और उसी प्रकार वापस भी आता है। उसने न विभाजन देखा और न वह चाहता था। परन्तु जो लोग विभाजन के ठीक समय निर्वासित होकर पाकिस्तान कूच करते हैं, उनके दिल में विभाजन की भयावहता अमानवीय क्रूरता साथ चली जाती है या सरहद के इस पार भी रह जाती है। जबकि गनी मियाँ इन सबसे अनजान है। वह भोला है और स्थिर अमन चैन की बात करनेवाला है। वहीं दूसरी तरफ विभाजन की त्रासदी और बँटवारे में हिस्सा लगाने वाला (दूसरों की जमीन, जायदाद पर नजर रखनेवाला) रक्खे पहलवान क्रोधी और लोभी है। उसे बस मौके की तलाश है। विभाजन की बात उसके लिए एक सुअवसर है। जिसमें वह अपना काम अपने शार्गिदो के साथ कर सकता है। उसके लालचपन ने चिराग को मौत के घाट उतार दिया और उसके शारीरिक बहसीपन ने जुबैदा, किश्वर और सुलताना को भी अपने अनुसार मौत दे दी। साधारणतः यह कहा जाता रहा है कि अपनी जमीन जायदाद से बेदखल किये जाने और बँटवारा होने पर उन्हें अलग मुल्क प्रदान किये जाने पर मुसलमान लोग ही अत्याचारी और क्रूर दिखाई देते हैं। वे धर्म और जेहाद की बात करते हैं। हिन्दुस्तान की पराजय और पाक जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं, परन्तु कुछ ऐसे हिन्दू भी हैं जो इन विभाजन, आन्दोलन और बँटवारा की राह जोहते हैं। मौका पाकर निरीह की हत्या भी कर देते हैं और अपने आप को बादशाह बना बैठते हैं। कहानी में एक जगह लिखा भी गया है कि हिन्दुओं पर ही उसका दबदबा था, चिराग तो खैर मुसलमान था, उससे रक्खे पहलवान की बादशाहत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बादशाहत ने उसके अन्दर लालच पैदा कर दी और निर्दोष चिराग और उसके परिवारवालों की उसने हत्या कर दी।

मलवे का मालिक में मोहन राकेश हमें यह बताना चाहते हैं कि आखिर उस मलबे का अधिकारी कौन है? रक्खे पहलवान या विभाजन पूर्व गनी मियाँ कहानी यह भी बताती है कि इसका मालिक तो सरकार है। जिसे बाहे दे या न दे। परन्तु इन्सानी राजनैतिक प्रवृत्ति ने पहले घर बाँटा और अब दूसरों के जमीन, जायदाद पर अपनी कुदृष्टि गड़ाये हुए हैं। यह प्रवृत्ति इंसान की पशुवत प्रवृत्ति को दिखाती है। गनी को अपने मकान का मलबा देख कर ही खुशी होती है जबकि रक्खे पहलवान सारी जमीन पर अपना मालिकाना हक जमाने के बावजूद भी गनी मियों के आने पर सशंकित है। यह भी इंसान की एक प्रवृत्ति की ही बातों की तरफ ईशारा करती है। दुष्ट मनुष्य की प्रकृति के समान मलबे पर बैठा कुत्ता रक्खे पहलवान की पशु-प्रवृत्ति के प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है। वह कुत्ता जो अपने ही जाति के कुत्ते पर भौंकता है, उसी प्रकार रक्खे पहलवान की आन्तरिक कुप्रवृत्ति ही उसे हिला रही है और आज उस पर कुत्ता भोके जा रहा है। आज का इंसान सीमा की सरहद को पार कर गया है। वह जमीनी सरहद पर विश्वास करता है। उसके अन्दर संतोष नहीं बल्कि सामग्री संकलन की वृत्ति आ गयी है। जो इंसान के लिए और मेल-जोल भाईचारे के लिए भी खतरनाक है। विभाजन की त्रासदी तो राजनैतिक विसंगति का एक नमूना माना जा सकता है परन्तु कहानी के अनुसार हम मानें तो दिलों का बँटवारा तो अपने अन्दर है, उसे हम क्यों खोते हैं जिससे कि अमन चैन लुट जाय और आदमी की आदमीयत से विश्वास उठ जाय। जैसा कि कहानी की एक लाइन भी है

"रक्खे, उसे तेरा बहुत भरोसा था।"


  व्याख्या कीजिए :
Imp**1)सब कुछ बदल गया, मगर बोलियाँ नहीं बदलीं।

 प्रसंग : उपरोक्त कथन अब्दुल गनी का है।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्ति का केन्द्रीय भाव यह है कि विभाजन तो देश का हो गया है। दो दिलों के बीच रिश्ते भी नहीं हैं। यही कारण है कि इंसानों के बीच रहनेवाली हर एक वस्तु, घर, मकान, जायदाद सब कुछ बदल गया है.पर बोलियाँ अभी भी वही हैं।

*यहाँ कहाँ की बोली के बारे में कहा गया है?
उत्तर -यहाँ अमृतसर को बोली के बारे में कहा गया है।



























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