Class 11 HINDI NOTES
गद्य
महाजनी सभ्यता
बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न
1.मानव-स्वभाव अखिल विश्व में एक जैसा ही है - इस पंक्ति के रचयिता कौन हैं ?
(क) विद्यानिवास मिश्र
(ख) अज्ञेय
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) प्रेमचन्द ।
Ans-(घ) प्रेमचन्द ।
2.मान-प्रतिष्ठा की लालसा दिल से मिटाई नहीं जा सकती - किस पाठ से ली गई है।
(क) बहता पानी निर्मला
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) बिगड़ैल बच्चे
(घ) मैं नर्क से बोल रहा हूँ।
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता।
3.उसमें 'भावुकता के लिए गुंजाइश नहीं है - 'उसमें' से क्या संकेतित है ?
(क) नर्क
(ख) व्यवसाय ।
(ग) भ्रम
(घ) नौकरी
Ans-(ख) व्यवसाय ।
4.पठित पाठ के आधार पर बताइए कि बौद्ध धर्म ने कहाँ जन्म ग्रहण किया ?
(क) श्रीलंका
(ख) उत्तर भारत ।
(ग) पूर्व भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं।
Ans-(ख) उत्तर भारत
5."धन्य है वह सभ्यता" यह किस पाठ से है ? -
(क) महाजनी सभ्यता
(ख) मैं नर्क से बोल रहा हूँ
(ग) बिगड़ैल बच्चे
(घ) बहता पानी निर्मला ।
Ans-(क) महाजनी सभ्यता।
6."मनुष्य समाज दो भागों में बँट गया है" - इस पंक्ति के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) यशपाल
(ग) विद्यानिवास मिश्र
(घ) जैनेन्द्र|
Ans-(क) प्रेमचन्द ।
7.महाजनी सभ्यता का पहला सिद्धांत क्या है ?
(क) खाओ-पीओ, मौज करो
(ख) समय किसी का नहीं है।
(ग) समय धन है एक सफल व्यक्ति का
(घ) मानव-मानव एक समान
Ans-(ग) समय धन है एक सफल व्यक्ति का।
8.सारी दुनिया किसके सौरभ (खुशबू) से बस गई ?
(क) हिन्दूधर्म के सौरभ से
(ख) ईसाई धर्म के सौरभ से।
(ग) जैन धर्म के सौरभ से
(घ) इस्लाम धर्म के सौरभ से
Ans-(ख) ईसाई धर्म के सौरभ से।
9.'नई सभ्यता' का क्या अर्थ है ?
(क) महजनी सभ्यता
(ख) समाजवादी सभ्यता
(ग) पूँजीवादी सभ्यता
(घ) राजतांत्रिक सभ्यता
Ans-(ख) समाजवादी सभ्यता
10.'मनुष्य समाज दोश में बँट गया है' प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से उद्धृत है ? (क) आज़ादी की नींद
(ख) महाजनी सभ्यता
(ग) पानी निर्मला
(घ) बिगड़ैल बच्चे
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
11.'समय धन है एक सफल व्यक्ति का।' यह कथन किस पाठ से लिया गया है
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
12.'उनको कोई पूछनेवाला
नहीं'-यह कथन किस पाठ से लिया गया है?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
13.'बिजनेस' में दोस्ती कैसी?' यह वाक्य किस पाठ से उद्धृत है ?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
14. 'वह काले से काले रंग में रँगी जा रही है' - कथन किस पाठ से उद्धृत है ?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
15.'जड़ न खोदकर केवल फुनगी की पत्तियाँ तोड़ना बेकार है'- यह वाक्य किस पाठ से है?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
16.'जिसके पास पैसा है, देवता स्वरूप है' - यह वाक्य किस पाठ से लिया गया है ?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
17.सभी धन की दहेली पर माथा टेकनेवालों में हैं- पाठ का नाम लिखें ।
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
18.'वह मिनटों को अशर्फियों से तौलता है' - यह वाक्य किस पाठ से लिया गया है?
(क) बिगडैल बच्चे
(ख) महाजनी सभ्यता।
(ग) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
(घ) बहता पानी निर्मला
Ans-(ख) महाजनी सभ्यता
19.महाजनी सभ्यता का दूसरा सिद्धांत क्या है ?
(क) मनी इज मनी
(ख) ओल्ड इज गोल्ड
(ग) मैन इज मैन
(घ) बिजनेस इज बिजनेस
Ans-(घ) बिजनेस इज बिजनेस
20.महाजनी सभ्यता में किसी देश पर राज करने का क्या उद्देश्य था ?
(क) रोब-दाब कायम रखना
(ख) महाजनों, पूंजीपतियों को अधिक मुनाफा कराना
(ग) प्रजा के दुःख-सुख में शरीक होना
(घ) अपमान का बदला लेना
Ans-(ख) महाजनों, पूंजीपतियों को अधिक मुनाफा कराना।
21.इस महाजनी सभ्यता में जीवन की सार्थकता क्या है ?
(क) कुछ कमा लेना
(ख) कुछ चुरा लेना
(ग) कुछ चापलूसी कर लेना
(घ) महाजनों की उपेक्षा करना
Ans-(क) कुछ कमा लेना।
22.सबसे अधिक रक्तपिपासु वाला सिद्धांत कौन-सा है ?
(क) व्यवसायवाला सिद्धांत
(ख) सामाजिक समानता का सिद्धांत
(ग) विद्या-अर्जन करने का सिद्धांत
(घ) समाजवाद का सिद्धांत
Ans-(क) व्यवसायवाला सिद्धांत।
23.गहनों से लदकर कोई स्त्री क्या बनती है ?
(क) सुंदरी
(ख) ईर्ष्या का पात्र
(ग) व्यभिचार का पात्र
(घ) घृणा का पात्र ।
Ans-(घ) घृणा का पात्र
24.महाजनी सभ्यता की आत्मा किसे कहा गया है?
(क) छायावाद को
(ख) व्यक्तिवाद को।
(ग) प्रगतिवाद को
(घ) प्रयोगवाद को
Ans-
(ख) व्यक्तिवाद को
निम्नलिखित लघूत्तरीय प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 30 शब्दों में लिखिए।
प्रथम प्रश्नांश के लिए एक वाक्य तथा दूसरे
प्रश्नांश के लिए दो वाक्यों का प्रयोग
कीजिए:
खण्ड क
गद्य खण्ड (2x3 = 6)
1.अब इसका सबसे बड़ा सदुपयोग पैसा कमाना है।
यहाँ किस सदुपयोग की बात कही गई है ?
लेखक का नाम बताइए।
उत्तर:यहाँ समय के सदुपयोग की बात कही गई है।
लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं ।
2."मनुष्य के अच्छे भाव लुप्त नहीं हो गए थे" -
(क) पाठ का नाम बतलाइए। (ख) 'मनुष्य' से किनकी ओर संकेत है ?
उत्तर : (क) पाठ का नाम 'महाजनी सभ्यता है'।
(ख) 'मनुष्य' से जागीरदार की ओर संकेत किया गया है।
3."मनुष्य के अच्छे भाव लुप्त नहीं हो गये थे"
(क) इस पंक्ति के रचयिता का नाम लिखिए।
(ख) किस समय की बात का उल्लेख है ?
उत्तर:: (क) इस पंक्ति के रचयिता मुंशी प्रेमचंद हैं।
(ख) यहाँ उस समय की बात कही गई है जब राजतंत्र था। राजाओं के साथ-साथ उनके अधीर रहने वाले जागीरदार भी प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करते थे। वे प्रजा के दुःख-सुख के भागीदार होते थे। अगर वे किसी राज्य पर विजय भी प्राप्त करते थे तो उनका उद्देश्य प्रजा का खून चूसना नहीं होता था।
4."नि:संदेह इस नयी सभ्यता ने व्यक्ति स्वातंत्र्य के पंजे, नाखून और दाँत तोड़ दिये है|"
(क) यहाँ नई सभ्यता से क्या आशय है ? (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर : (क) नई सभ्यता का आशय समाजवाद से है ।
(ख) पूँजीवादी व्यवस्था के थोड़े-से लोगों के वैभव और विलास के लिए समाज के बहुसंख्यक लोगों के सुख की बलि चढ़ा दी थी लेकिन समाजवादी विचारधारा ने लोगों को सच्चाई से अवगत कराया तथा इस विचारधारा के तहत पूँजीवादियों के शोषण पर अंकुश लगाया । पूँजीवादियों के जो पंजे, नाखून और दाँत श्रमिक वर्ग का शिकार कर रहे थे उन्हें इस सभ्यता ने उन्हें नाकाम कर दिया।
5. "वह खुद समाज से बिल्कुल अलग है ।"
(क) प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है ? (ख) 'वह' कौन है ? वह समाज में बिल्कुल अलग क्यों है ?
उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्ति प्रेमचंद के निबंध 'महाजनी सभ्यता' से ली गई है। (ख) वह 'पूँजीपति' है। वह समाज से अपने आप को इसलिए अलग रखता है क्योंकि वह अपने को है जन-साधारण से श्रेष्ठ समझता है। इसका समाज से इतना ही संबंध है कि वह समाज के लोगों को उल्लू बनाकर जितना चाहे, उतना लाभ उठा ले।
6. जिसके पास पैसा है, वह देवता स्वरूप है, उसका अंतःकरण कितना ही काला क्यों न हो"
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर: (क) रचना 'महाजनी सभ्यता' है तथा इसके रचनाकार मुशी प्रेमचंद हैं। (ख) इन पंक्तियों में मुंशी प्रेमचंद ने यह कहना चाहा है कि इस महाजनी सभ्यता में लोग आदमी के अवगुणों को नहीं देखते। इस सभ्यता में पैसा ही सबकुछ है तथा इस समाज में पैसेवाले देवता की तरह पूजे जाते हैं।
7. "उसकी विजय का उद्देश्य प्रजा का खून चूसना कदापि न होता था"
(क) यहाँ किसकी विजय के बारे में कहा गया है ? (ख) पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर: (क) यहाँ बादशाहों की विजय के बारे में कहा गया है।
(ख) वे दूसरे देश पर चढ़ाई किसी अपमान अपकार की बदला लेने या राज्य विस्तार तथा अपने शान को बढ़ाने के उद्देश्य से किया करते थे। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं था कि वे प्रजा का खून चूसते थे। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं कि वे प्रजा के दुःख-सुख में शरीक होते थे तथा गुणीजनों के गुणों की कद्र करते थे।
8.'गहनों से लदकर कोई स्त्री सुंदर नहीं बनती, घृणा की पात्र बनती है ।"
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) रचना 'महाजनी सभ्यता' है तथा इसके रचनाकार मुंशी प्रेमचंद हैं । (ख) यहाँ प्रेमचंद ने यह कहना चाहा है कि आभूषण सुंदरता को बढ़ाता है, कुरूप को सुंदर नहीं बनाता है। स्त्री का असली सौंदर्य तो उसका रूप-शील है। केवल गहनों से लदकर कोई स्त्री सुंदर नहीं बन सकती। गहनों से लदने का अभिप्राय लोगों के शोषण से धन उपार्जन करने का है। जहाँ समाजवादी व्यवस्था है, वहाँ ऐसी स्त्रियाँ घृणा का पात्र ही बनती हैं।
9."मानव समाज अखिल विश्व में एक ही है। छोटी-मोटी बातों में अंतर हो सकता है, पर मूल स्वरूप की दृष्टि से सम्पूर्ण मानव जाति में कोई भेद नहीं।"
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : (क) रचना 'महाजनी सभ्यता' तथा रचनाकार मुंशी प्रेमचंद है।
(ख) पूरा विश्व भले ही कई देशों में बँटा हुआ है तथा कई बातों में उनमें अंतर भी दिखाई पड़ता है लेकिन सबका मूल स्वरूप एक ही है। संसार का कोई भी धर्म हो वह आपस में बैर-विरोध रखना या लड़ना झगड़ना नहीं सिखलाता। वह तो मात्र सत्य को पहचान कर प्रेम, भाई-चारे तथा मानवता की शिक्षा देता है। जब किसी राष्ट्र पर प्राकृतिक आपदा आती है तो पूरा मानव समुदाय दुःखी होता है तथा उस दुःख को बाँटने का प्रयास करता है वहाँ देश, जाति या धर्म की भावना इसके आड़े नहीं आती।
10. "मनुष्य के अच्छे भाव लुप्त नहीं हो गये थे"
(क) इस पंक्ति के रचयिता का नाम लिखिए। (ख) किस समय की बात का उल्लेख है?
उत्तर:
(क) इस पंक्ति के रचयिता मुंशी प्रेमचंद है।
(ख) यहाँ उस समय की बात कही गई है जब राजतंत्र था। राजाओं के साथ-साथ उनके अधीर रहने वाले जागरीरदार भी प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करते थे। वे प्रजा के दुःख-सुख के भागीदार होते थे। अगर वे किसी राज्य पर विजय भी प्राप्त करते थे तो उनका उद्देश्य प्रजा का खून चूसना नहीं होता था।
11."निस्संदेह इस नयी सभ्यता ने व्यक्ति स्वातंत्र्य के पंजे, नाखून और दाँत तोड़ दिये हैं।"
(क) यहाँ नई सभ्यता से क्या आशय है ? (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : (क) नई सभ्यता का आशय समाजवाद से है।
(ख) पूँजीवादी व्यवस्था के थोड़े-से लोगों के वैभव और विलास के लिए समाज के बहुसंख्यक लोगों के सुख की बलि चढ़ा दी थी लेकिन समाजवादी विचारधारा ने लोगों को सच्चाई से अवगत कराया तथा इस विचारधारा के तहत पूँजीवादियों के शोषण पर अंकुश लगाया। पूँजीवादियों के जो पंजे, नाखून और दाँत श्रमिक वर्ग का शिकार कर रहे थे उन्हें इस सभ्यता ने उन्हें नाकाम कर दिया।
12."मनुष्य समाज' दो भागों में बैट गया है"
(क) यहाँ किस मनुष्य समाज के बारे में कहा गया है? (ख) वह किन दो भागों में बँट गया है?
उत्तर: (क) यहाँ जन-साधारण के समाज के बारे में कहा गया है।
(ख) यह समाज दो भागों में बंट गया है पहला बड़ा भाग मरने और खपनेवालों का है। दूसरा भाग छोटा भाग उन लोगों का है जो अपनी ताकत तथा प्रभाव के कारण पहले बड़े भाग पर अपना शासन चला रहे है कि इन पूँजोपति मालिकों के लिए खून-पसीना बहाते हुए एक दिन इस दुनिया से विदा हो जाएँ।
निम्नलिखित में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में लिखिए :
Q.1.नई सभ्यता ने व्यक्ति स्वातंत्र्य के पंजे, नाखून और दाँत तोड़ दिये हैं इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
अथवा,
इस धन-लोभ ने मनुष्यता और मित्रता का नाम शेष कर डाला है।
-किस पाठ से है ? यहाँ निबन्धकार क्या कहना चाहते है ?'
अथवा,
इस महाजनी सभ्यता ने नये-नये- नीति नियम गढ़ लिए हैं इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
अथवा, 'महाजनी सभ्यता' पाठ में लेखक क्या कहना चाहते हैं ?
अथवा
'धन लोभ ने मानव भावों को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है'
- इस पंक्ति के आधार पर लेखक द्वारा व्यक्त विचारों को स्पष्ट कीजिए। अथवा,
प्रेमचंद द्वारा रचित 'महाजनी सभ्यता' में व्यक्त लेखक के विचारों को लिखें। अथवा,
'महाजनी सभ्यता' शीर्षक निबंध का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें ।
अथवा, 'महाजनी सभ्यता' शीर्षक निबंध की समीक्षा करें ।
अथवा,
प्रेमचंद ने 'महाजनी सभ्यता' में महाजनी सभ्यता की किन बुराइयों की ओर संकेत किया है ?
अथवा, "परंतु अब एक नई सभ्यता का सूर्य सुदूर पश्चिम से उदय हो रहा है, जिसने इस नाटकीय महाजनवाद या पूँजीवाद की जड़ खोदकर फेंक दी है"- पंक्ति के आधार पर 'महाजनी सभ्यता' निबंध की समीक्षा करें ।
अथवा,
'महाजनी सध्यता' में निहित लेखक के संदेश को अपने शब्दों में लिखें
अथवा, 'महाजनी सभ्यता' निबंध का उद्देश्य लिखें।
अथवा, 'महाजनी सभ्यता' निबंध के आधार पर प्रेमचंद के पूंजीवाद संबंधी विचार पर प्रकाश डालें।
उत्तर : ‘महाजनी सभ्यता’ प्रेमचंद का विचारात्मक निबंध है। इस निबंध में उन्होंने महाजनी सभ्यता की खुली आलोचना की है क्योंकि यह सभ्यता पूँजीवाद पर आधारित है तथा पैसा ही इस सभ्यता का भगवान है । महाजनी सभ्यता से प्रेमचंद का इशारा पूँजीवादी सभ्यता की ओर है। वे इस सभ्यता को इसलिए बुरा बताते हैं क्योंकि इसमें मानव मात्र की, उसकी भावनाओं की, उसके गुणों की कोई कद्र नहीं है। व्यक्ति की हैसियत, उसके गुणों का आधार पैसा है- केवल पैसा। सारे लोग पैसे के पीछे भाग रहे हैं चाहे वे डॉक्टर हों, वकील हों, शिक्षक हो या नौकरीपेशा लोग। पैसे की भूख ने आदमी-आदमी के बीच भावनात्मक रिश्ते को खत्म कर दिया। किसी के लिए किसी के पास समय नहीं है यदि उस व्यक्ति से कोई लाभ नहीं है। पैसों के लिए अपने लोग भी पराए हो जाते हैं। यह सबकुछ धन-लिप्सा (धन की भूख) के कारण हो रहा है। भावी पीढ़ी के लिए यह बड़ा खतरा है इसलिए प्रेमचंद सावधान करते हैं कि धन लिप्सा को इतना बढ़ने न दिया जाय कि वह मनुष्यता, मित्रता, स्नेह-सहानुभूति सबको निकाल बाहर करे।
इस महाजनी सभ्यता का खून चूसनेवाला सिद्धात है-'बिज़नेस इज बिज़नेस' अर्थात् व्यवसाय में भावुकता की कोई गुंजाइश नहीं है। इस सिद्धांत ने दोस्ती, इन्सानियत तथा मुरौवत (दया) की भावना को मिटा दिया है। दोस्त दोस्त का शोषण करने से नहीं चूकता क्योंकि बिज़नेस इज बिज़ेनस ।"
आगे प्रेमचंद कहते हैं कि अब वह दिन दूर नहीं जब इस महाजनी सभ्यता का अंत हो जाएगा। कारण यह है कि एक नयी सभ्यता का सूर्य- सुदूर पश्चिम से उदय हो रहा है. - वह सूर्य है 'समाजवाद'। सारी दुनिया के पूँजीवादी इसकी आलोचना कर रहे हैं क्योंकि इसने महाजनी सभ्यता के व्यक्ति स्वातंत्र्य के पंजे, नाखून और दाँत तोड़ दिए हैं। अब पूँजीपति मजदूरों का शोषण नहीं कर पाएंगे। प्रेमचंद का मानना है कि यह पूँजीवाद ही है जो अपने साथ सारी बुराइयाँ लाता है। इसने सारी दुनिया को नरक बना दिया है।
प्रेमचंद समाजवाद का गुणगान करते हुए कहते हैं कि अगर यह व्यवस्था दूसरे देशों के लिए कल्याणकारी है तो निश्चय ही यह भारत के लिए भी कल्याणकारी होगी- इसमें कोई संदेह नहीं । भले ही महाजनी सभ्यता के लोग अपनी शक्ति भर इसका विरोध कर लें लेकिन वह दिन दूर नहीं जब इसकी विजय होगी क्योंकि सत्य की हमेशा विजय होती है|
प्रेमचंद के इन विचारों का कारण यह नहीं है कि वे गाँधी जी के कारण राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे । उन्होंने फरवरी 1919 के ‘ज़माना' में ही लिखा था, “आनेवाला ज़माना अब किसानों और मज़दूरों का है । दुनिया की रफ्तार इसका साफ सबूत दे रही है ।" इस लेख में उन्होंने रूसी क्रांति की भी चर्चा की थी "इंक़लाब के पहले कौन जानता था कि रूस की पीड़ित जनता में इतनी ताकत छिपी हुई है ? बात नहीं कि जिस देश में आबादी किसानों की हो उस देश में कोई किसान-सभा, कोई क्या यह शर्म की किसानों की भलाई का आंदोलन, कोई खेती का विद्यालय किसानों की भलाई का कोई व्यवस्थित प्रयत्न न हो ।”
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत निबंध का उद्देश्य यह है कि प्रेमचंद आम भारतीयों के जीवन स्तर को सुधारने के हिमायती थे और इसी समाजवादी विचारधारा में उन्हें आम भारतीयों का भविष्य दिख रहा था जो शोषण मुक्त होगा।
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ'
बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न
लघूत्तरीय प्रश्न
खण्ड क
गद्य खण्ड (2x3 = 6)
Q.1.. मैं मरकर, बोल रहा हूँ|
वक्ता कौन है ? कहाँ से बोल रहा है ?
उत्तर- वक्ता लेखक है। वह नर्क से बोल रहा है।
Q-2.'लेकिन आज ही एक घटना और यहाँ इस लोक में घट गयी'
- किस पाठ से है ? यह किस घटना की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर : यह 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' पाठ से है। यहाँ उस घटना की ओर संकेत किया गया है जब लेखक न रहते हुए अपने कुत्ते को स्वर्ग में देखता है ।
Q.3."फिर भी तुम नर्क में रहोगे'
(क) 'तुम' से संकेतित पात्र कौन है ? (ख) वक्ता ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर : (क) 'तुम' से संकेतित पात्र स्वयं लेखक है।
(ख) यह कथन भगवान के द्वारा लेखक के प्रति कहा गया है । लेखक पर आरोप था कि उन्होंने अपने जीवन में कभी अन्याय का प्रतिकार नहीं किया था । भ्रष्ट नेता और लेखक दोनों को नर्क नसीब हुआ। दोनों को समान रूप से दोषी ठहराया गया। नेता ने दूसरों पर अत्याचार किया और लेखक ने उसे सहन किया। अत्याचार करनेवाला और उसे चुपचाप सहन करनेवाला समान रूप से पाप का भागीदार बनता है ।
Q.4.- "तुम जीवन का तिरस्कार और मरण का सत्कार करते हो”
(क) किस पाठ से है ? (ख) 'तुम' से संकेतित पात्र कौन हैं ?
उत्तर : (क) रचना का नाम 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' है तथा इसके रचनाकार हरिशंकर परसाई हैं।
(ख) तुम से संकेतित पात्र आम आदमी अथवा पाठक है।
Q.5."तुम्हें जिन्दा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूँ।"
अथवा,
"जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आँख उठाकर नहीं देखते उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो।"
अथवा,
"जिंदगी-भर तुम जिससे नफरत करते रहे उसकी कब्र पर चिराग जलाने जाते हो।"
अथवा,
"मरते वक्त जिसे तुमने चुल्लू-भर पानी नहीं दिया, उसके हाड़ गंगाजी ले जाते हो।"
अथवा,
"तुम जीवन का तिरस्कार और मरण का सत्कार करते हो।" (H.S.2015)
(क) रचना और रचनाकार का नाम लिखें।
(ख) तुम से संकेतित पात्र कौन है?
(ग) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
(क) रचना का नाम 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' है तथा इसके रचनाकार हरिशंकर परसाई हैं ।
(ख) तुम से संकेतित पात्र आम आदमी अथवा पाठक है।
(ग) परसाई जी ने कहना चाहा है कि इस दुनिया की यह पुरानी आदत है कि यह व्यक्ति को जीते जी सम्मान नहीं दे सकती । इतिहास इस बात का गवाह है कि कोपरनिकस, अरस्तू. से लेकर गाँधी तक को सम्मान मरने के बाद ही मिला। जो जीते-जीते सम्मान नहीं पाता वह मरने पर अचानक ही श्रद्धेय हो जाता है। सबके मूल में कारण यह है कि हमने जीवन का सम्मान करना नहीं सीखा है। किसी की मृत्यु के बाद उसके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना इस दुनिया का दस्तूर बन गया है।
6. मेरे आश्चर्य और क्षोभ का ठिकाना न रहा कि मैं यहाँ नर्क में और मेरा कुत्ता उस ओर स्वर्ग में।"
(क) रचयिता का नाम लिखें।
(ख) पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर
(क) रचयिता हरिशंकर परसाई हैं।
(ख) जब लेखक अपने को नर्क में और अपने कुत्ते को स्वर्ग में पाता है तो उसे काफी आश्चर्य होता है। अभी तक लेखक यही मान रहा था कि बुरे कर्म करने वाले ही नर्क में जाते हैं। लेखक ने अपने जीवन में कोई बुरा काम नहीं किया था फिर भी उसे नर्क में डाल दिया गया। दूसरी ओर कुत्ता कई बार भगवान का भोग खाते पिटा। उसकी मृत्यु भी पकवान खाने के दौरान डंडे की चोट से हुई फिर भी उसे स्वर्ग मिला। परसाई जी ने यहाँ कहना चाहा है कि आज स्वर्ग भी उन्हीं को मिलता है जो जीवन में संघर्ष करते हैं, अत्याचार नहीं सहते क्योंकि अत्याचार सहना भी अपने आप में बड़ा अपराध है।
7. "इससे तो मेरे लिए मौत सस्ती थी"
(क) 'मेरे' किसके लिए आया है।
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर: (क) 'मेरे' शब्द लेखक के लिए आया है।
(ख) किसी देश के लिए इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि जहाँ लाखों टन अनाज सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण हर साल बर्बाद हो वहाँ आम आदमी अनाज के लिए तरसे। दिनों दिन बढ़ती महँगाई के कारण आज अनाज मौत से महँगी हो गई है। ये सारी कुव्यवस्था पूँजीपतियों-जमाखोरों की देन है जिसके कारण बनावटी अभाव तथा अकाल पैदा किया जाता है।
8."तुम जैसे अकर्मण्य, कायर, भीरू, मूर्ख को नर्क नहीं तो क्या इन्द्रासन मिलेगा ।"
अथवा,
"भगवन्, यह कैसा न्याय है !"
(क) रचना और रचनाकार का नाम लिखें।
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्ति परसाई जी की रचना 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' से उद्धृत है।
(ख) लेखक जब भगवान से अपनी पूरी आपबीती सुनाता है तो भी भगवान का निर्णय यही होता है - "फिर भी तुम नर्क में रहोगे । और यह कुत्ता, स्वर्ग में रहेगा, और यह तुम्हारे बगल का कमरा उस झूठे मंत्री के लिए खाली होगा।"- इसपर लेखक भगवान से यह कहता है कि यह आपका कैसा न्याय है ? भगवान के इस निर्णय के पीछे कारण यह है कि एक पशु अपना पशुत्व विषम परिस्थितियों में नहीं छोड़ता और वहाँ मनुष्य अपना मनुषत्व खोकर हार मान लेता है। स्वर्ग का अधिकारी तो वही हो सकता है जो कर्मठ हो|
कायर तथा अकर्मण्य के लिए तो नर्क ही है|
9."दोनों मरे एक साथ मरे"
(क) किन दोनों के मरने की बात कही गई है ?
(ख) इस कथन के प्रसंग का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : (क) यहाँ लेखक और कुत्ते दोनों के मरने की बात कही गई है ।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति हरिशंकर परसाई रचित "मैं नर्क से बोल रहा हूँ" व्यंग्यात्मक कहानी से उद्धृत है। इस पंक्ति के द्वारा लेखक भगवान से अपने और कुत्ते की मौत का वृत्तान्त सुना रहा है। कुत्ते को स्वर्ग मिलता है और लेखक को नर्क इसी बात की शिकायत लेखक भगवान से करते हैं और कहते हैं कि वे भूख से मरे । ईमानदारी का जीवन जिए हैं। कुत्ता चोरी करते मार खाकर मरा है फिर भी ऐसा अनर्थ क्यों ?
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.)'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा,
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' कहानी में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
अथना,
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' कहानी के मूल प्रतिपाद्य को अपने शब्दों में लिखें।
अथवा,
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' कहानी का उद्देश्य लिखें।
अथवा,
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' कहानी की समीक्षा करें।
अथवा,
हरिशंकर परसाई की रचना 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' में निहित उद्देश्य एवं संदेश को लिखें।
अथवा,
व्यंग्यात्मक कहानी की विशेषताओं की दृष्टि से परसाई जी की कहानी 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' की विवेचना या समीक्षा करें।
अथवा,
"तुम जैसे अकर्मण्य, कायर, भीरु, मूर्ख को नरक नहीं तो क्या इन्द्रासन मिलेगा" - के आधार पर संबंधित पाठ की समीक्षा करें।
अथवा,
'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' में किए गए व्यंग्य से परसाई जी क्या कहना चाहते हैं? अपना मत प्रस्तुत करें।
उत्तर : हरिशंकर परसाई जी की कहानी 'मैं नर्क से बोल रहा हूँ' एक ऐसी कहानी है जिसमें व्यंग्य की तीखी मार स्पष्ट रूप से झलकती है। इस कहानी के बारे में कुछ चर्चा करने से पहले उस पृष्ठभूमि को जानना आवश्यक है, जिस पर इसकी रचना की गई है।
भारत की आज़ादी से पहले जिस सुनहरे भविष्य की कल्पना की गई थी उस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ। बड़े बड़े उद्योग-धंधे अवश्य लगे लेकिन भ्रष्टाचार तथा सही नेतृत्व के अभाव में गरीबी तथा भुखमरी को ही बढ़ावा मिला। चापलूस अफसर और सत्ता से चिपके नेता झूठे वायदों और नारों से जनता को बेवकूफ बनाते रहे। इन सबके बीच ही परसाई जी की कहानी अपना आकार ग्रहण करती है।
लेखक को नर्क से ही अपनी बात कहने का मौका मिलता है क्योंकि इस दुनिया को जिन्दा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं है।
लेखक की मृत्यु भूख से हुई और उसे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि वह तो नर्क में है लेकिन उसका कुत्ता स्वर्ग में जीवन भर कोई बुरा काम नहीं करनेवाला, चोरी न करके भूखों मर जाने वाला लेखक नर्क में था और उसका कुत्ता जो खाना चोरी करते समय पिटने से मर गया, वह स्वर्ग में था। लेखक भगवान से यह पूछता है कि भला ऐसा क्यों?
भगवान ने कहा कि तुमने आत्महत्या की थी इसलिए नरक में हो। लेकिन लेखक का जबाब सुनकर भगवान आसमान से गिरते-गिरते बचे क्योंकि लेखक भूख से मरे थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी झूठा बना दिया गया था कि इनकी मौत आत्महत्या से हुई।
दरअसल लेखक जिस जगह रहते थे- वहाँ चारों ओर अन्न ही अन्न था लेकिन गरीबों के लिए नहीं। वह तो जमाखोरों और चूहों के लिए था। जिस दिन लेखक की मौत हुई, पड़ोस में एक रईस के लड़के की शादी थी तथा वहाँ से तरह-तरह के पकवानों की अच्छी सुगंध आ रही थी। लेखक को इस बात का संतोष था कि कम से कम पकवानों के बीच उसकी मौत हुई। लेखक और कुत्ते की मौत में इतना ही फर्क था कि उनका कुत्ता खाकर मरा और लेखक बिना खाए मरा।
इतना ही नहीं, मरने के बाद भी लेखक का दाह-संस्कार लकड़ियों के अभाव में अच्छी तरह नहीं हो पाया। नर्क में रहने के बाद भी लेखक ने भगवान से कोई शिकायत नहीं की क्योंकि वह पृथ्वी पर नर्क से भी बदतर स्थिति में जी रहा था।
लेखक की सारी कहानी सुनने के बाद भी भगवान ने उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई क्योंकि पाप-पुण्य के चक्कर में संघर्ष न कर वह भूखों मरा जबकि कुत्ते ने अपनी पूरी शक्ति-भर संघर्ष तो किया था। इसलिए भगवान ने कहा कि तुम नर्क में रहोगे और यह कुत्ता स्वर्ग में रहेगा। इतना ही नहीं, यह तुम्हारे बगल का कमरा उस झूठे मंत्री के लिए खाली होगा। भगवान ने उल्टे लेखक को ही प्रताड़ित करते हुए कहा - "मैंने तुम्हें बुद्धि दी है, हाथ-पैर दिए हैं, कार्य-शक्ति दी है - और तू अकर्मण्य, बुजदिल कीड़े- -सा मर गया।.... तू कुत्ते से भी हीन है।...........तुम जैसे अकर्मण्य, कायर, भीरु और मूर्ख को नर्क नहीं तो क्या इन्द्रासन मिलेगा ?"
अंत में नर्क में धकेल दिए जाने पर लेखक को अपनी गलती का एहसास होता है कि अपने अधिकारों के लिए न लड़कर कायर की तरह मरने से अच्छा है कि उस कुत्ते की तरह संघर्ष करके मरा जाए।
बिगड़ैल बच्चे
1)मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी 'बिगड़ैल बच्चे' का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
अथवा,
'बिगड़ैल बच्चे' कहानी की समीक्षा करें ।
अथवा,
'बिगड़ैल बच्चे' शीर्षक कहानी की कथावस्तु का संक्षिप्त विवेचन करें
अथवा,
मनीषा कुलश्रेष्ठ ने 'बिगड़ैल बच्चे' कहानी में जिस परिस्थिति की चर्चा की है उसका उल्लेख करते हुए कहानी की मूल संवेदना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
'अथवा,
'बिगड़ैल बच्चे' कहानी के माध्यम से लेखिका क्या संदेश देना चाहती हैं सोदाहरण समझाकर लिखिए।
अथवा,
'बिगड़ैल बच्चे' कहानी के माध्यम से लेखिका क्या कहना चाहती है ?
अथवा,
'बिगड़ैल बच्चे' कहानी में लेखिका ने किस सामाजिक सच्चाई को उजागर किया है ?
उत्तर : 'बिगड़ैल बच्चे' मनीषा कुलश्रेष्ठ की श्रेष्ठ कहानियों में से है, जिसमें दो पीढ़ियों के अंतराल तथा उनको मानसिकता को लेकर कुछ सवाल उठाए गए हैं। कहानी का प्रारंभ लेखिका की पिंक सिटी ट्रेन की यात्रा से होता है। जिस डब्बे में लेखिका अपनी बेटी तथा नवासी को जयपुर से लाने के लिए यात्रा कर रही थीं उसी डब्बे में तीन युवा-दो लड़के और एक लड़की चढ़े। तीनों गोवा के थे। लड़की युवा तथा जरा लुनाई लिए सांवली थी जबकि उसका छोटा भाई बिल्कुल काला, जिसने अपने कानों में वॉकमैन का इयरप्लग लगा रखा था। बड़ा लड़का लड़की का मित्र था जिसके हाथों में गिटार था। उन तीनों ने जिस तरह डब्बे में प्रवेश किया तथा अपना सामान लापरवाही से सामने की सीट पर पटक दिया, उससे लेखिका के मन में उन लोगों के प्रति थोड़ी विरक्ति जगी।
लेखिका के पास बैठे एक डॉक्टर तथा उनकी अध्यापिका पत्नी को भी उनका हाव-भाव नागवार गुज़र रहा था तथा उनलोगों ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार व्यक्त की-----
"यह हाल है हमारे देश की युवा पीढ़ी का ।... दिन पर दिन बदतमीज होते जा रहे हैं। संस्कार बचे ही नहीं ।"
"बात खाली एक जाति की नहीं है, हमारी यंग जेनरेशन पूरी की पूरी ही ऐसी है।.. ..दरअसल ये भोगवाद में विश्वास करते हैं ।"
उन तीनों के हाव-भाव तथा गतिविधियों को देखकर लेखिका अपने मन में सोच रही थी कि उसने अपने बच्चों को सुरक्षित और कठोर अनुशासन में रखकर बहुत महान काम किया है। लेकिन इनके उनमुक्त सोच तथा व्यवहार को देखकर एक अपराध-बोध भी मन में जग रहा था कि अगर उसने अपनी बेटी को भी थोड़ी आज़ादी दी होती तो आज वह पति तथा उसके परिवारवालों की गुलामी की ज़िंदगी नहीं जी रही होती। साधन-संपन्न होते हुए भी उसे एक-एक पैसे के लिए अपने पति का मुँह देखना पड़ता है।
तभी एक चायवाले के आने से लेखिका की तंद्रा भंग होती है- उसने चाय लेना चाहा पर खुले पैसे नहीं थे। खुले पैसे के लिए पूछने पर छोटेवाले लड़के ने अपनी ओर से चायवाले को पैसे चुका दिए। इतना ही नहीं लड़के ने चाय के साथ लेने के लिए भुने हुए हल्के-हल्के छिल्कों वाले कुछ नमकीन काजू भी लेखिका को दिए। लेखिका आश्चर्यचकित होने के साथ-साथ कृतज्ञ भी हुई.
अलवर स्टेशन आने ही वाला था। तभी लेखिका को याद आया कि वह अपने बेटी-दामाद तथा बच्चियों के लिए मिठाई लेना तो भूल गई । उसने तय किया कि ट्रेन के अलवर में रूकने पर वह वहीं से दो किलो मिल्ककेक ले लगी।
ट्रेन रूकने पर लेखिका मे मिल्ककेक खरीदा। लोगों की भीड़ इतनी अधिक थी कि इसे चीरकर ट्रेन तक पहुँचने के दौरान उन्हें दूरदर्शन का एक विज्ञापन याद आ रहा था कि भारत में ट्रेनों पर यात्रा करनेवाले कम और उन्हें स्टेशन तक छोड़ने वाले ज्यादा होते हैं। तभी ट्रेन ने सीटी दे दी। अभी भी लेखिका ट्रेन से दूर थी। जैसे-तैसे सरकती हुई ट्रेन का हैंडल पकड़ने की उन्होंने कोशिश की हैंडल हाथ में नहीं आया और वह प्लेटफार्म पर गिर पड़ी। जब उन्हें होश आया तो उन्होंने पाया कि वही तीन युवा उन्हें रेलवे के रिटायरिंग कमरे में घेरे बैठे हैं। तभी एक अजनबी, रेलवे के डॉक्टर ने पूछा, "चिंता की कोई बात नहीं है.... .ये यंगस्टर्स नहीं होते तो. ..इनका और खुद का शुक्रिया अदा ... करें, गनीमत है कि कोई सीरियस इंजरी नहीं हुई । पुराना खाया-पिया काम आ गया ।"
दरअसल उन तीनों युवाओं ने ही गिरने के बाद ट्रेन को रूकवाया था तथा उनकी देखरेख की थी। लेखिका के लिए उन्होंने अपनी गाड़ी भी छोड़ दी। डब्बे में जो लोग सभ्यता, संस्कृति आदि की बातें कर रहे थे – उनका कोई अता पता नहीं था । लेखिका युवाओं को जिन संस्कारों की पाठ पढ़ाने की सोच रही थी वह पाठ उन्होंने पहले से ही सीख रखा था— "हमको हमारा मम्मी बोला इन्सान का सेवा ही यीशू का सेवा है। आप बतलाओ न, आपकी जगह हम होते तो आप नहीं रूकते क्या हमारे लिए ?'
युवाओं का यह प्रश्न अब लेखिका के संस्कारों को चुनौती दे रहा था और वे सोच रही थीं". .. बचपन में पढ़ी कहानी 'मनुष्य, भेड़ और भेड़िया' से मैं क्या बनती ? भेड़िया तो नहीं, इन्सान बनने की हिम्मत जुरा पाती कि शायद.......उस डॉक्टर की तरह जल्दी गन्तव्य पर पहुँचने की चाह में आँखे मूँद भेड़ बनकर आगे बढ़ जाती ।"
यही वह कहानी का चरमोत्कर्ष है जहाँ हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं क्या हमारी नयी पीढ़ी बिल्कुल फालतू जोश वाली है ? क्या इनमें अक्ल और हिम्मत नहीं है ? क्या इनमें हमारे प्राचीन संस्कार जिंदा नहीं बचे हैं ?
लेकिन निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कहानी का अंत यही संदेश देता है कि हमारी युवा पीढ़ी आज भी अपने संस्कारों से नहीं कटी है, उनमें भी अक्ल और हिम्मत है और वे अपने जोश को समाज के लिए हमसे बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं।
लुनाई का मतलब - (नमकीन, चमक)
व्यख्यामूलक प्रश्न उत्तर:
1.मैंने अपने बेटे-बेटी को बहुत संयम और कठोर अनुशासन में पाला है।
पाठ का नाम लिखिए|
इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : पाठ का नाम 'बिगड़ैल बच्चे' है। लेखिका साथ यात्रा कर रहे तीनों युवाओं के चाल-ढाल, लापरवाही तथ उनके खुलेपन को सहन नहीं कर पा रही थी। वह मन में ही सोचती है कि यदि उन्होंने अपने बेटे-बेटी को कठोर अनुशासन और संयम से नहीं पाला होता तो वे भी इनकी तरह बिगड़ैल हो जाते।
2.जो भी हो इन्हीं पर हमारा भविष्य टिका है-
लेखक कौन है ?
किसपर भविष्य टिकने की बात कही गई है ?
उत्तर:मनीषा कुलश्रेष्ठ।
आज के युवावर्ग पर भविष्य टिकने की बात कही गई है।
.3. "एक लड़की तो थी ही, बाकी दो लड़के थे।"
(क) यह किस पाठ से है ?
(ख) लड़की और लड़के से किनकी ओर संकेत है ?
उत्तर : 'बिगड़ैल बच्चे' |
लड़की और लड़के से उन दो लड़के और एक लड़की क संकेत है जो लेखिका के रेल के डब्बे में बैठे थे।
4. "अचानक वे तीनों जोर से हँस पड़े'
(क) इस अंश के लेखक कौन हैं ?
(ख) किन तीनों की बात कही गई है ?
उत्तर:(क) इस अंश की लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ है।
(ख) यहाँ लेखिका के साथ पिंक सिटी से यात्रा करने वाले गोआ के तीन युवाओं छोटा लड़का, उसकी बहन तथा उसके युवा मित्र की बात कही गई है।
5."यह तो रोज का किस्सा है"
(क) यह वाक्य किस पाठ से है?
(ख) यहाँ किस किस्से के बारे में कहा गया है ?
उत्तर : (क) यह वाक्य 'बिगड़ैल बच्चे' पाठ से लिया गया है।
(ख) लेखिका ने यहाँ भारतीय रेल में रोज होने वाले चेन पुलिंग के किस्से के बारे में कहा है। यह कितनी बुरी बात है कि लोग सौ पचास कदम चलने की बजाय चेन पुलिंग करते हैं। इससे अन्य यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुँचने में कितने घंटे देर होते हैं तथा रेलवे को कितना नुकसान होता - इसकी परवाह नहीं करते। चेन पुलिंग के कारण विदेशियों की नजर में भी हम भारतीयों की छवि खराब होती है।
6. "एक आम भारतीय उत्सुकता के तहत उनकी निजता के पारदर्शी तरल को छूकर देखना चाहती थी।
" (क) पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें।
(ख) पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : (क) पंक्ति की रचनाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ हैं।
(ख) लेखिका को चाय के लिए खुले तीन रुपये तथा अपने घर के भुने हुए काजू के दाने देने पर उन युवाओं के प्रति लेखिका के विचार कुछ नरम पड़ते हैं। अब वह उन युवाओं तथा उसकी ममतामयी माँ के निजी पारिवारिक जीवन के बारे में जानने को और भी उत्सुक हो गयी थीं। इतना ही नहीं, लेखिका उन सारे सवालों के उत्तर भी पा लेना चाहती थी जो घंटों से मन में उमड़-घुमड़ रहे थे- जैसे, वह लड़की छोटे लड़के का क्या लगती है? लड़की को उसकी माँ ने एक पराये लड़के के साथ क्यों भेजा होगा? वे लोग कहाँ जा रहे हैं तथा कब तक वापस लौटेंगे आदि-आदि।
7."बचपन में पढ़ी कहानी 'मनुष्य, भेड़ और भेड़िया' में से मैं क्या बनती ?"
(क) यह कहानी किसने अपने बचपन में पढ़ी थी?
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:(क)यह कहानी लेखिका ने अपने बचपन में पढ़ी थी।
(ख) इस कथन का आशय यह है कि मनुष्य वही है जो मुसीबत में दूसरों की मदद करे, भेड़ इनसे आँखें मूंदकर आगे चल देनेवाले तथा भेड़िया अपना लाभ उठाने की बात सोचता है। जिस प्रकार उन तीन युवाओं ने लेखिका को सहायता दी थी क्या उनकी मुसीबत में भी लेखिका उनके काम आ पाती – यह सवाल लेखिका के मन में आता है। या फिर क्या वे यह बहाना करके अपनी पीछा छुड़ा लेती कि वे तो जवान हैं लेकिन लेखिका तो प्रौढ़ हैं- उनके लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं होता ।
8) "उन युवा और नेक फरिश्तों ने मुझे पूरी तरह से सँभाल रखा था।"
(क) युवा और नेक फरिश्ते कौन थे?
(ख) पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :(क) युवा और नेक फरिश्ते वही थे, जिन्हें लेखिका बिगड़ैल बच्चे कह रही थी।
(ख) शुरू में लेखिका जिन युवाओं को बिगड़ैल कह रही थीं दुर्घटना के समय वही नेक फरिश्ते के रूप में लेखिका के सहयोग के लिए सामने आते हैं। लेखिका के लिए उन तीनों ने अपनी यात्रा तक स्थगित कर दी। कहानी का यह अंत इस बात का प्रतीक है कि यह खाई अभी उतनी गहरी नहीं हुई है जिसे पाटा न जा सके। हमारे युवावर्ग की संवेदनाएँ अभी भी उनलोगों से तो बेहतर है जो बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन जब कुछ करने का वक्त आता है तो मूक दर्शक बनकर देखते रहते हैं।
9."यह तो रोज का किस्सा है"
(क) यह वाक्य किस पाठ से है ?
(ख) यहाँ किस किस्से के बारे में कहा गया है ?
उत्तर :
(क) यह वाक्य 'बिगड़ैल बच्चे' पाठ से लिया गया है।
(ख) लेखिका ने यहाँ भारतीय रेल में रोज होने वाले चेन पुलिंग के किस्से के बारे में कहा है। यह कितनी बुरी बात है कि लोग सौ-पचास कदम चलने की बजाय चेन पुलिंग करते हैं। इससे अन्य यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुँचने में कितने घंटे देर होते हैं तथा रेलवे को कितना नुकसान होता है इसकी परवाह नहीं करते। चेन पुलिंग के कारण विदेशियों की नजर में भी हम भारतीयों की छवि खराब होती है।
10.''अचानक वे तीनों जोर से हँस पड़े"
(क) इस अंश के लेखक कौन हैं ?
(ख) किन तीनों की बात कही गई है ?
उत्तर :
(क) इस अंश की लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ हैं।
(ख) यहाँ लेखिका के साथ पिंक सिटी से यात्रा करने वाले गोआ के तीन युवाओं छोटा लड़का, उसकी बहन तथा उसके युवा मित्र की बात कही गई है।
11."एक लड़की तो थी ही, बाकी दो लड़के थे।"
(क) यह किस पाठ से है ?
(ख) लड़की और लड़के से किनकी ओर संकेत है ?
उत्तर :
(क) यह 'बिगड़ैल बच्चे' नामक पाठ का है।
(ख) लड़की से 'लीजा' और लड़के से कीथ और रोजर की ओर संकेत हैं।
12. "अब वह एक-एक पैसे को पति का मुँह देखती है।"
अथवा, "मुझे निशि के हालात पर रोना आने लगा था।"
(क) प्रस्तुत कथन किसका है ?
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) प्रस्तुत कथन लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ का है।
(ख) पहले तो युवाओं का उन्मुक्त व्यवहार देखकर लेखिका के मन में आता है कि उसने अपने बच्चों को कठोर अनुशासन में रखकर महान काम किया है लेकिन अगले ही पल वह इसके दुष्परिणाम के बारे में भी सोचती है। अगर उसने अपनी बेटी को इतने कठोर अनुशासन में न पाला होता तो आज वह इतनी दब्बू, पराश्रित तथा सत्ताइस वर्ष की उम्र में पैंतीस की नहीं दिखती। इतना ही नहीं, अपनी जरूरत के लिए भी एक-एक पैसे के लिए वह पति तथा उसके परिवार पर आश्रित है।
1)'बहता पानी निर्मला' पाठ का उद्देश्य क्या है?
अथवा, 'बहता पानी निर्मला' के माध्यम से अज्ञेय जी ने हमें क्या संदेश देना चाहा है?
अथवा, 'बहता पानी निर्मला' में लेखक के व्यक्त विचारों एवं संदेश को लिखें। अथवा, 'जीने की कला' सबसे पहले एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की कला है कथन के माध्यम से लेख के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालें।
अथवा, 'बहता पानी निर्मला' शीर्षक से क्या अभिप्राय है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए|
उत्तर: अज्ञेय अपनी यायावरी अर्थात् घुम्मकड़ प्रवृत्ति के लिए विख्यात हैं। उनके अनुसार जीवन का वास्तविक आनंद तो भ्रमण करने में ही है।
अगस्तीन ने कहा है - "संसार एक महान पुस्तक है। जो घर से बाहर नहीं निकलते, वे केवल इस पुस्तक का एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं।'' हमारे यहाँ संस्कृत के वाणभट्ट से हिन्दी के राहुल सांकृत्यायन तक महान साहित्यकार इसलिए हैं क्योंकि उनका सम्पूर्ण साहित्य देशाटन का चलचित्र है। राहुल सांकृत्यायन ने तो इस विधा पर एक पुस्तक ही लिख डाली है- 'घुम्मकड़शास्त्र' ।
भ्रमण करने से अनेक लाभ हैं। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में भ्रमण की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है ‘चेरेवेति चेरेवेति' अर्थात् चलते रहो, चलते रहो। इस तरह भ्रमण करने से सहिष्णुता, उदार विचार, व्यवहारकुशलता आदि गुणों का भी विकास होता है तथा मनुष्य पूर्वाग्रहों से भी मुक्त होता है। कवि कुलगुरु कालिदास ने यदि भारत भ्रमण नहीं किया होता तो उनके लिए अपने 'मेघदूत' में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश का प्राकृतिक सौंदर्य उतारना संभव नहीं होता। इतना ही नहीं, मार्कोपोलो, ह्वेनसांग, मेगास्थनीज, फाहियान, वार्नियर, खलदून इत्यादि के जो यात्रा वृतांत हैं, वे तत्कालीन समाज के प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज हैं।
जब हम कहीं अपने देश की यात्रा करते हैं तो इससे उस राज्य के रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, आचार-व्यवहार, पर्व-त्योहार, साहित्य-इतिहास आदि न जाने कितनी ही चीजों की जानकारी प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए पाठ में आए कुछ अंशों को देख सकते हैं - "कुछ नाम ऐसे भी होते हैं कि अर्थ जानने पर ही उनका जादू चलता है जैसे, 'लू-हित' । ऊपरी
ब्रह्मपुत्र के इस नाम को संस्कृत करके लोहित्या बना लिया गया है जिससे अनुमान होता है कि वह या ताम्रवर्ण की होगी पर वास्तव में लू-हित का अर्थ है- 'तारों की राजकन्या' या ऐसा ही कुछ।" X X "सोनारी एक छोटा-सा गाँव है - अहोम राजाओं की पुरानी राजधानी शिवसागर से कोई अठारह मील दूर ।" "अज्ञेय ने अपने जीवन में जितनी भी यात्राएँ की हैं उससे पाठकों को चकाचौंध से प्रभावित करने की कोई कोशिश नहीं की है। जिन-जिन स्थानों पर अज्ञेय गए हैं, वहाँ के समग्र वातावरण से परिचित होने की आकांक्षा उनमें झलकती है, वहाँ की लोक-कथाओं से, वहाँ के इतिहास से, मध्यवित्त गृहस्थ के घर की वास्तुकला तक से।
स्वयं अज्ञेय ने भी भ्रमण तथा इससे जुड़े साहित्य की उपयोगिता के बारे में लिखा है "अपने यात्रा संस्मरणों में मेरा यह प्रयत्न रहा है कि उन यात्राओं में मेरे होने की बात उन्हें तत्कालिक अनुभव की प्रामाणिकता और टटकापन देने के लिए सामने आए, नहीं तो वे वृतांत एक समग्र दृष्टि को उभारने में ही योग देंगे जिससे भविष्यत् यात्री अपने-अपने अनुभव को और भी समृद्ध बना सकें।"
अतः भ्रमण के शौक की जितनी भी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। यदि हम अखंड विश्व की भावना अपने आप में विकसित करना चाहते हैं, तो हमें अवश्य देश-देशांतर घूमना चाहिए।अपने जीवन में अपने देश के चारों छोरों
पर बसे चारों धामों की कम से कम एक यात्रा हमारे धर्मशास्त्र में पुण्य कर्तव्य कही गई है। इस पुण्य के पीछे धर्मशास्त्र की धारणा यही थी कि इससे हम कम से कम अपने सारे देश को तो देख, समझ अवश्य लेंगे।भूगोल की दीमक खायी मोटी-मोटी पुस्तकों की तोतारटंत से तो लाख गुणा कितनी अच्छा यह
है कि हम प्रकृति के स्वर्णिम पुस्तक के कुछ ही पृष्ठ यदि पढ़ जाएं तो न जाने
हमारे ज्ञान और चरित्र में वृद्धि हो जाए क्योंकि-
"इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्जा है
कहीं बादल घिर-घिर आते हैं
कहीं चश्मा है कहीं दरिया है
कहीं ऊँची महल अटरिया है
कहीं महफिल है, कहीं मेला है।"
बहता पानी निर्मला(2×2=4)
Q.1."मैं दूसरे तरीके का कायल हूँ"
(क) इस पाठ के लेखक कौन हैं ? (ख) 'दूसरे तरीके' से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : (क)इस पाठ के रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हैं।
(ख) यहाँ लेखक ने यात्रा करने के इस दूसरे तरीके की बात कही है. 'आप इरादा तो कीजिए कहीं जाने का, छुट्टी भी लीजिए, और पूरी योजना भी चाहे घोषित कर दीजिए, पर ऐन मौके पर चल दीजिए कहीं और को।’’- लेखक के अनुसार अकस्मात् कहीं की यात्रा पर निकल पड़ने में जो रोमांच और आनंद है, वह पहले वाले व्यवस्थित तरीके में नहीं है ।
Q.2. "पर ध्वनि ही मोह लेती है"
(क) 'यह वाक्य किस पाठ से उद्धत है ? (ख) किस ध्वनि की चर्चा है ?
उत्तर :(क) यह वाक्य 'बहता पानी निर्मला' पाठ से उद्धत है।
(ख) यहाँ अमरकंटक के गाँवों के नाम से उत्पन्न होने वाली ध्वनि की चर्चा जो हमारे मन को मोह लेती है। उदाहरण के लिए, 'निरूकूरंगुड़ि' नाम से जो ध्वनि पैदा होती है उससे ऐसा प्रतीत होता है मानो हिरणों को झुंड चौकड़ी भरता जा रहा हो ।
Q.3."उसका काँटा अभी तक सालता ही है"
(क) इस वाक्य के वक्ता का पूरा नाम लिखिए। (ख) यहाँ किस काँटे के बारे में कहा गया है ?
उत्तर : (क)इस वाक्य के वक्ता सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' हैं ।
(ख) लेखक ने बचपन से ही अमरकंटक जाने का सपना देखा था। लेकिन अभी तक वहाँ जाना नहीं हो पाया। वहाँ न जा पाने का काँटा लेखक को अभी तक सालता है, दुःख देता है ।
V.I.Q.4."एक कील की वजह से राज्य खो जाता है ।"******
(क) यह किस भाषा की कहावत है ? पाठ का नाम लिखें ।
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:(क) यह वाक्य 'बहता पानी निर्मला' पाठ से उद्धत है।
यह अंग्रेजी भाषा की कहावत है।
(ख) लड़ाई में अगर एक कील की वजह से घोड़े का नाल खुलकर गिर जाता है और घोड़ा तेज दौड़ने में असमर्थ हो जाता है जिससे लड़ाई में हार हो जाती है और हार के कारण राजा को राज्य से भी हाथ धोना पड़ जाता है। कहने का आशय यह है कि कभी-कभी एक छोटी-सी चीज भी बड़ी मुसीबत का कारण बन जाती है।
Q.5."मैने लौटने का निश्चय किया ।"
(क) पाठ और रचनाकार का नाम लिखें। (ख) किसने कहाँ लौटने का निश्चय किया और क्यों ?
उत्तर:(क)पाठ का नाम 'बहता पानी निर्मला' तथा रचनाकार अज्ञेय हैं।
(ख)लेखक ने शिवसागर लौटने का निश्चय किया । एक दिन सुबह लेखक एक नया दांत ब्रश लेने तथा जीप का एक नट-बोल्ट कसवाने के लिए शिवसागार
चले गए। वहाँ से तीन घंटे बाद वापस लौटते समय उन्होंने पाया कि बाढ़ का पानी सड़क के ऊपर से बह रहा था। कुछ जगहों पर सड़क टूट भी गई थी। सोनरी जाने के सारे रास्ते जलमग्न हो चुके थे, इसलिए लेखक सोनारी न जाकर वापस शिवसागर लौटने का ही निश्चय किया।
Q.6."मन में घोड़े पर सवार होकर कहीं चले जाइए, कोई रोक नहीं, अड़चन नहीं ।"
(क) 'मन के घोड़े' का क्या अर्थ है ?
(ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर:(क) मन के घोड़े का अर्थ है- 'कल्पना की उड़ान' ।
(ख)लेखक को जितने भ्रमण की लालसा है, वह पूरी नहीं हो पाई। मन में हमेशा यही भाव रहता है- कहीं और चलें, कोई नई जगह देखें। दरअसल वास्तव में यात्रा करने में जिन बाधाओं का सामना करना पड़ता है – काल्पनिक यात्रा में किसी संकट या बाधा का कोई डर नहीं रहता और इस काल्पनिक यात्रा के बारे में कोई यह पूछनेवाला भी नहीं होता कि हज़रत कहाँ रमे रहे ।
Q.7."यात्रा करने के कई तरीके हैं।"
(क) रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें ।
(ख) लेखक के अनुसार यात्रा करने के कौन कौन-से तरीके हैं ?
उत्तर:(क) रचना का नाम 'बहता पानी निर्मला' तथा रचनाकार अज्ञेय हैं।
(ख)लेखक के अनुसार यात्रा करने के दो तरीके हैं। पहला तरीका यह है कि कहीं जाने के बारे सबकुछ पहले से तय कर लें और फिर उसी के अनुसार सारी व्यवस्था करें और फिर चल पड़ें। यह व्यवस्थित तरीका है लेकिन इसमें उतना मजा नहीं है।यात्रा करने का दूसरा तरीका यह है कि इरादा कहीं और का करें पूरी योजना भी उसी के अनुसार बनाएं तथा अपने मित्रों के बीच भी घोषणा कर दें लेकिन ऐन वक्त पर कहीं और जा निकलें।
Q.8."इस तरह इधर भी निराशा थी ।"
(क) पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें। (ख) निराशा क्यों थी ?
उत्तर :(क)पंक्ति के रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हैं|
(ख) लेखक ने बाढ़ के कारण सोनारी जाने वाली सड़क के बंद हो जाने पर दूसरे रास्ते से जाने की बात सोची। इस रास्ते में भी एक नदी पड़ती थी। लेखक अपनी जीप को किसी तरह नाव पर लादकर नदी के दूसरे किनारे पर पहुँचे लेकिन सोनारी से आए दो लोगों से यह पता चला कि वहाँ भी कंधे तक बाढ़ का पानी आ चुका है। ऐसी स्थिति में जीप को नहीं उतारा जा सकता था, इसलिए लेखक को निराशा हुई।
Q.9."ब्रह्मपुत्र का सौंदर्य जिन्होंने नहीं देखा उनकी तो बात ही क्या, जिन्होंने देखा भी है वे भी क्या इस नाम को जानकर 'तारों की राजकन्या' के तरूण लावण्यमय रूप देखने को ललक न उठेंगे।"
(क) यह अंश किस पाठ से लिया गया है ? (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:- (क) प्रस्तुत अंश 'बहता पानी निर्मला' पाठ से लिया गया है।
(ख) कभी-कभी हम किसी स्थान को देखने के बाद भी उसके नाम में छिपे सौंदर्य को जानकर पुन: उसे देखने को लालायित हो उठते हैं । 'लू-हित' नाम में भी ब्रह्मपुत्र का लावण्यमयी रूप छिपा है और यौवन किसे प्रिय नहीं होता? जैसे-जैसे ब्रह्मपुत्र नदी आगे बढ़ती जाती है उसका रूप-सौंदर्य नवयौवना युवती की तरह निखरता ही चला जाता है । उदाहरण के लिए जिसने पुरी के सागर तट के दर्शन नहीं किए, उसके मन में भी यह भाव उठे बिना नहीं रहेगा कि समुद्र की उत्ताल तरंगे क्यों बेचैनी से किनारों को चूमने के लिए दौड़ती रहती है
Q.10."मुझे बचपन से नक्शे देखने का शौक है।"
(क) रचनाकार तथा रचना का नाम लिखें। (ख) पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर:(क) रचनाकार का नाम 'सच्चिदानंद हीरानद वात्स्यायन 'अज्ञेय' है तथा रचना का नाम 'बहता पानी निर्मला' है।
(ख)अज्ञेय के मन में भ्रमण करने की तीव्रतर इच्छा बचपन से ही थी। उनकी इस रूचि को देखकर उनकी नानी भी कहा करती थी- "यह लड़का न जाने कैसी घड़ी में जन्मा है। उल्टी गंगा बहाएगा।" बचपन में भ्रमण करने का अवसर तो था नहीं इसीलिए वे नक्शों के सहारे ही काल्पनिक यात्रा पर निकल पड़ते थे।
Q.11. "इस लालसा ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा है।"
(क) पाठ का नाम लिखें । (ख) किस लालसा ने अभी तक किसका पीछा नहीं छोड़ा है ?
उत्तर:(क)पाठ का नाम है- 'बहता पानी निर्मला' ।
(ख)अज्ञेय ने अपने पूरे जीवन में बहुत सारी यात्राएँ की फिर भी उनका मन भ्रमण से अतृप्त ही रहा । हमेशा उनके मन में यही भाव रहा कि कहीं और चलें, कोई नई जगह देखें इस लालसा ने अज्ञेय का पीछा - कभी नहीं छोड़ा।
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ReplyDeleteThanq 💜
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