Class 11 History 2nd notes

 Class 11 History

 2nd notes


22.मानव जातियों का उत्पत्ति स्थान था (The origin place of human species is) -


(a) यूरोप (Europe)

(b) एशिया (Asia) 

(c) अफ्रीका (Africa)

(d) आस्ट्रेलिया (Australia)


Ans-(c) अफ्रीका (Africa)


23.निम्नलिखित में से किस धातु का अविष्कार सबसे पहले हुआ था ? (of the following metals which was the first to be discovered ?)


(a) सोना (Gold)

(b) लोहा (Iron)

(c) कांसा (Bronze)

(d) ताँबा (Copper)


Ans-(d) ताँबा (Copper)


24.मेहरगढ़ किस नदी के किनारे स्थित है ? (Mehergarh is located on the bank of which river )-


(a) गंगा (Ganga)

(b) fer-et (Sindh)

(c) बोलन (Bolan) 

 (d) राबी (Rabi)

Ans-(c) बोलन (Bolan)

25.हड़प्पा सभ्यता है एक (Harappan civilization is a) -


(a) शहरी सभ्यता (Urban civilization) (b) ग्राम्य सभ्यता (Rural civilization) (c) पुरातत्विक सभ्यता (Palaeolithic civilization) (d) इनमें से कोई नहीं (None of the above)

Ans-

(a) शहरी सभ्यता (Urban civilization)


26. प्रारम्भिक मानव का पहला पालतु पशु थे (The early man first domesticated)


(a) कुत्ता (Dog)

(b) गाय (Cow)

(c) लोमड़ी (Wolf)

(d) गदहा (Donkey)

Ans-(a) कुत्ता (Dog) 


27.मिश्र सभ्यता विकसित हुआ है (Egyptian civilization developed in)


(a) 5000 BC ई० पू०

(b) 3000 BC ई० पू०

(c) 4000 BC ई० पू० 

(d) 2500 BC ई० पू०

Ans-(a) 5000 BC. ई० पू०


28.मिट्टी की पहिये की खोज सम्बन्धित है (Discovery of Potter's wheel is connected with)


(a) प्राचीन प्रस्तर युग (Palaeolithic age) 

(b) मध्य प्रस्तर युग (Mesolithic age) 

(c) नव प्रस्तर युग (Neolithic age)

(d) ताम्र प्रस्तर युग (Chalcolithic age)

Ans. (c) नव प्रस्तर युग (Neolithic age)


29.पाषण युग में थे (Stone age has)

 (a) एक अवस्था (One phases)

(b) दो अवस्थायें (Two phases)

(c) तीन अवस्थायें (Three phases)

 (d) चार अवस्थायें (Four phases)

Ans-(c) तीन अवस्थायें (Three phases)

30.मुद्राशास्त्र अध्ययन है (Numismatics is the study of) -


(a) मुद्रा का (Coins )

(b) शिलालेख का (Inscription)

(c) स्मारक का (Monuments)

(d) चित्रांकन का (Painting)


Ans-(a) मुद्रा का (Coins)

31.पेलीओलिथिक शब्द का अर्थ है (The word 'Palaeolithic' means) 

(a) पत्थर (Stone)

(b) पुराना पत्थर (old stone)

(c) नया (New)

(d) नया पत्थर (New stone)


Ans-(b) पुराना पत्थर (Old stone)

32.प्रथम युग था (The first age was)

 (a) प्राचीन प्रस्तर युग (Palaeolithic)

(b) हिम युग (Pleistocene)

(c) नव प्रस्तर युग (Neolithic) 

(d) ताम्र प्रस्तर युग (Chalcolithic)

Ans-(b) हिम युग (Pleistocene)


Q-1.

पूर्व पाषाण काल से क्या समझते हो ? इस काल के मानव सभ्यता का वर्णन कीजिए। अथवा, इस युग का मानव किस प्रकार में जीवन व्यतित करता था। उसका संक्षेप का विवरण दीजिए। (What do you mean by Pre Stone Age ? Describe the human civilization of that age.

 Or, What was the life style of man ? Write in Brief)


Ans. पूर्व पाषाण काल : पाषाण काल के पारम्भिक काल को पुरा पूर्व या प्राचीन पाषाण काल कहा जाता है। इस काल के पत्थर के हथियार वह उपकरण अनगढ़े और भोथरे होते थे। इसी आधार पर इस युग का नामकरण पूर्व पाषाण काल पड़ा है।


पूर्व पाषाण कालीन मानव सभ्यता : पूर्व पाषाण काल में मानव पूर्व रूप से असभ्य एवं जंगली था। वे भोजन की तलाश में जानवरों की तरह जगंल दर जगंल भटकते रहते थे। उस समय वही व्यक्ति जीवित रह सकता था जो बदलते पर्यावरण के साथ अनुकूलन बनाये रखने में सक्षम होता था। अतः इस आधार पर पूर्व पाषाण कालीन मानव का जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के सभ्यताओं का निम्न शीर्षक के रूप में व्यक्त किया जा सकता है -


(i) भोजन तथा वस्त्र : पूर्व पाषाण काल में मानव जगंली था। जगली कंद मूल (जड़) फल पशुओं के कच्चे मांस उनके भोजन थे। जब आग की खोज हो गयी तब वे मांस को भुनकर खाने लगे और यहीं से मनुष्य ने स्वादिष्ट भोजन बनाने का कार्य सीखा।


(ii) औजार व उपकरण : पूर्व पाषाण काल के मानव के हथियार तथा उपकरण चूना एवं स्पटिक पत्थर जानवरों के हड्डी तथा लकड़ी के बने होते थे जो अनगढ़े और खुरदरे होते थे। सबसे पहले इन्होंने पत्थर की कुल्हाड़ी का निर्माण और प्रयोग करना सीखा। इसके बाद वे दाऊ सूई से भाला छेनी धनुष बाण जैसे औजार बनाकर उपयोग करने लगे थे। से


(iii) निवास स्थान या वास: पूरा पाषाण काल मानव का जीवन खानाबदोस का था। वे प्राय: खुले आसमान के नीचे, वृक्षों के शाखाओं के नीचे टहनीयों तथा झीलों और नदियों के किनारे निवास करते थे तथा वर्षा और ठंड से बचने के लिए गुफाओं में रहना शुरू कर दिया। 

(iv) धार्मिक जीवन : पूरा पाषाण कालीन मानव किसी देवी देवता की पूजा नहीं करते थे। वे अपने पूर्वजों की उपासना,पूर्व जन्म में विश्वास करते थे। लोक-परलोक, जादू-टोना मरने पर शव को दफनाना और शव के पास

भोजन भूषण रख देना उनके धार्मिक जीवन के आधार थे।


(v) सामुदायिक जीवन :पूर्व पाषाण कालीन मानव का पूर्व रूप से पारिवारिक और समुदायी शुरू नहीं हुआ था। वे केवल भोजन एकत्र करने के लिए शिकार करने के लिए जानवरों के रक्षा के लिए समूह और टोली बनाकर रहते थे। उनके समूह का एक मुखिया होता था जो उनका निर्देशन करता था।


V.V.I.Q- 2.नव पाषण कालीन युग के सभ्यता से क्या समझते हो ? इस सभ्यता के विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (What do you understand by New Stone Age Civilization ? Describe the characteristics of this civilization.).


Ans. नव पाषण कालीन : मध्य पाषाण काल के बाद का सभ्यता नव पाषाण काल कहलाता है जो 8 हजार ई० पूर्व से लेकर 3 हजार ई० पूर्व तक लगभग 5 हजार वर्षों तक कायम रहा। इस काल में मनुष्य सभ्यता के क्षेत्र में पत्थर के नये नये हथियारों के अलावा धातुओं का प्रयोग स्थायी, कृषि, पशुपालन, पंहिये एवं गाड़ियों की खोज इस युग की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। इसी नयी सभ्यता के खोज के कारण इसे नव पाषाण काल कहा जाता है।


नव पाषाण काल के विशेषताएँ : नव पाषाण काल तक पहुँचते-पहुँचते आदि मानव प्राकृतिक दासता की सीमाओं को तोड़ कर नवीन सभ्यता की प्रगति को ओर पग बढ़ा चुका था। अतः इस काल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है (i) स्थायी कृषि और पशुपालन नव पाषाण कालीन सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ रही है। इस कारण मनुष्य ने स्थायी जीवन जीना शुरू कर दिया।


(ii) कृषि और पशुपालन व्यवसाय में मनुष्य ने जंगली जीवन त्याग कर छोटी-छोटी बस्तियाँ और घर बनाकर स्थायी जीवन यापन करने लगा।


(iii) नव पाषाण कालीन मानव ने पहिये की खोज की इस खोज ने आने जाने के लिए पहियें से चलने वाली गाड़ी की खोज में मदद की जिससे मनुष्य को आने जाने तथा माल ढोने में सुविधा हुई।


(iv) पहियें की खोज से इस काल के मानव मिट्टी से सुन्दर बर्तन बनाने का गुण सीखा और इन बर्तनों के  कारण मनुष्य खाना पकाने और उससे सुरक्षित रखने में सुविधा हुई।


(v) नव पाषाण कालीन मानव रूई (कंपास) पैदा करने तथा रूई से सूता बनाने और कपड़ा बनाने लगा था।इस काल में मानव ने धातु विशेषकर ताबाँ और कांसा के उपयोग का गुण सीख लिया था और उसका औजार और उपकरण बनाने लगा था।


 (vi) इस काल में मनुष्य भाषा, संगीत, चित्रकारी जैसे परम्पराएँ शुरू कर चुका था। वह सूर्य, पृथ्वी, गाय, वृक्ष, दवा,जल आदि प्राकृतिक शक्तियों का उप|सना करने लगा था।

(vii) नव पाषण कालीन मानव मृतकों को दफनाने, जलाने और उनकी समाधि बनाने की प्रथा शुरू कर चुका था। इस प्रकार नव पाषाण कालीन मानव प्राकृतिक सीमाओं को लांघकर उसे अपना अधीन कर अपनी सुविधा के अनुसार जीवन जीने का प्रयास शुरू कर दिया था।




Q-3

सिन्धु नदी घाटी सभ्यता के काल स्थिति विस्तार और विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (Describe the Characteristics of Indus River Valley civilization regarding age, locational extention.)

 Ans :सिन्धु नदी घाटी सभ्यता के काल :सिन्धु नदी घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम नदी घाटी सभ्यताओं में से एक है |इसकी खोज 1921 ई० में दयाराम साहनी और राखल दास बनर्जी ने की थी। सिन्धु घाटी सभ्यता आघ्य प्राप्त सभ्यता थी। जो 2500 ई० पूर्व से 5000 ई० पूर्व तक इसका काल माना जाता है। सिन्धु नदी घाटी सभ्यता के स्थिति एवं विस्तार : सिन्धु नदी घाटी सभ्यता सिन्धु नदी, बधर नदी, और सरस्वती नदी के किनारे स्थित थी। वर्तमान में इसका अधिकांश भाग पाकिस्तान में स्थित है। यह इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक तथा पश्चिम में बलुचिस्तान से लेकर पूरब में मेरठ तक के निश्चित क्षेत्र सिन्धु घाटी सभ्यता तक फैली थी। खुदाई में प्राप्त स्थलों को देखने से पता चलता है, कि सभ्यता पजांब, गुजरात, राजस्थान, बलुचिस्तान, सिन्धु और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में तक फैली थी।


सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ: सिन्धु घाटी सभ्यता एक आध इतिहास कालीन नगरीय सभ्यता थी इसकी विशेषताओं का अर्थ नगर योजना, जीवन, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक जीवन कला और साहित्य के विकास से है।

जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है 

(i) नगर एवं भवन निमार्ण योजना : सिन्धु घाटी सभ्यता के खुदाई में प्राप्त अवशेषों को देखकर पता चलता है, कि यह एक नगर योजना थी। हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, लोथल, जनहूदड़ो, चन्ढउधरे आदि सिन्धु घाटी की सहायकी नदी के किनारे इन्हीं नामों से नगरों का विकास हुआ। नगरों के चारों ओर परपोर्ट थे। नगर में लम्बी चौड़ी पक्की सड़क थी। जो नगर के साथ-साथ एक शहर से दूसरे शहरों को जोड़ती थी।


मकान छोटे-बड़े कच्चे-पक्के सभी प्रकार के थे। मकान सुनियोजित तरीके से पक्तिवध बने थे। प्रत्येक घरों में रसोई घर, नहाने के घर, सोने के घर अलग-अलग बने थे। घरों में रोशनी और हवा आने जाने की प्रयाप्त व्यवस्था थी। प्रत्येक घरों के पास जलाशय की व्यवस्था थी। घरों और नगरों की जल की निकासी के लिए लम्बी चौड़ी पक्की और बंद नालियाँ थी। मकानों में अनाज और वस्तुओं को रखने के लिए अलग-अलग घर थे। इस प्रकार सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर और भवन निर्माण योजनाओं को देखने से पता चलता है, कि उस समय नगर निर्माण योजना उन्नत किस्म की थी। जो आज के शहरी योजनाओं के विकास से मिलती-जुलती है।



(ii) सामाजिक जीवन : सिन्धु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन विकसित था। स्त्री-पुरूष दोनों मिलजूल कर कार्य करते थे। कृषि पशुपालन शिल्प व्यवहार उनके जीवन यापन के आधार थे। वे चावल, गेहूँ, तिल, मटर, चना, जौ की खेती करते थे और उसका उपयोग करते थे। इसके अलावा वे मांस फल और विशेष प्रकार के पेय भी पीते थे। स्त्रियाँ घाघरा और साड़ी पुरूष छोटी और सिर पर पगड़ी का उपयोग करते थे। वे स्वयं कपास से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे। स्त्री पुरुष दोनों सोना, चाँदी, हड्डी, ताँबा, पीतल के बने आभूषण कंघी, आयना, रंगने के बर्तन काजल का भी प्रयोग करते थे। वे मनोरंजन के लिए जानवरों की दौड़ शतरंज, नृत्य का भी उपयोग करते थे। वे लोग औषधि से परिचित थे। इस प्रकार उनका सामाजिक जीवन उन्नत था।


(iii) धार्मिक जीवन : सिन्धु सभ्यता के लोग देवी देवताओं में विश्वास रखते थे। वे मात्र देवी पुजक थे। वे सूर्य, अग्नि, जल, भूमि, वृक्ष, पशु, आग, हवा आदि प्राकृतिक शक्तियों के पूजारी थे तथा उनके यहाँ जलाने की प्रथा प्रचलित थी। इनके जीवन में जल का विशेष महत्व था। इसलिए उन्हें जल की विशेष उपासक भी कहा जाता था।


(iv) आर्थिक जीवन : सिन्धु सभ्यता के निवासियों या लोगों का आर्थिक जीवन विकसित था। वे कृषि पशुपालन व्यवहार कुटीर उद्योग मुर्ति कला, चित्र कला, धातु कला वस्त्र निर्माण कला आदि आर्थिक क्रियाओं का जीवन यापन करते थे। वे सिचाई की सहायता से चावल, गेहूँ, मटर, तिल, खजूर, कपास की खेती करते थे। पशुओं में गाय, बैल, कुत्ते, सुअर, आदि पशु पालते थे। वे पत्थर मिट्टी धातु के बर्तन, हथियार आभुषण मापने के बटखरे वस्त्र आदि निर्माण कर अफगानिस्तान, ईरान (फ्रांस), मेसोपोटामियाँ मिश्र आदि देशों में व्यवहार किया करते थे।


(v) कला और संस्कृति : सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग धातु के सुन्दर मुर्ति देवताओं, मनुष्यों की सुन्दर मुर्ति चित्र कला, पशुओं, मुद्रा विभिन्न प्रकार के सुन्दर ताबाँ, लोहा, सोना, चाँदी के बर्तन आभूषण बनाना जानते थे। वे नृत्य और संगीत कला से परिचित थे विभिन्न चित्रों और मुर्तियों में बनाये गये चित्रों संगीत के वाधयंत्रों को देखने से इस बात का पता चलता है कि सिन्धु सभ्यता के लोग लिखना पढ़ना सीख चुके थे। वे चित्रलिपि का प्रयोग करते थे। जिसमे 400 से भी अधिक चित्र और सकेंताक्षर है, जो आज तक ठीक ढंग से पढ़े नहीं जा सके।


सिन्धु घाटी सभ्यता की उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट हो जाता है, कि यह एक अपने समय की एक जानकार सभ्यता थी।


Vvvi.Q-4-हड़प्पा सभ्यता के नगर-निर्माण योजना का वर्णन करें। सिन्धु नदी घाटी सभ्यता के पतन होने के क्या कारण थे? (Describe town planning of Harappan Civilization and Sumerian Civilization. What were the causes of decline of this civilization ?) 4+4


Ans. (i) नगर निर्माण योजना -स्थलों के उत्खनन से ज्ञात होता है उस समय के लोग प्रायः नगरों में रहते थे।डॉ. पुलस्कर के अनुसार मोहनजोदड़ों में जाने वाले व्यक्ति उनके नगर निर्माण को देखकर चकित रह जाते होंगे। इन खण्डहरो के आकार से ऐसा प्रतीत होता है कि हम लंकाशायर के किसी आधुनिक नगर में खड़े हैं। नगर का निर्माण बड़ी योजना से किया गया है। डॉ० मैले ने इस सम्बन्ध में लिखा है- "It is interesting to note that these ancient cities of the Indus and earliest yet discovered where a scheme of town planning existed."


नगर में बड़ी-बड़ी सड़कें थी जो एक-दूसरे से मिलकर आधुनिक सड़कों के चौराहे बनाती थी। मैले के विचार में ये सड़कें और गलियाँ इस प्रकार बनी हुई थीं कि आने वाली वायु एक कोने से दूसरे कोने तक शहर को स्वयं साफ कर दे। यह कहना तो आसान नहीं है कि शहर की सफाई एक व्यक्ति के हाथ में था अथवा एक से अधिक के, परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि नागरिकों को सुखी बनाने के लिए जितना प्रबन्ध किया गया था वह शायद ही और कहीं प्राचीन समय में किया गया हो। गलियों में रोशनी का विशेष प्रबंध था। शहर की गन्दगी को शहर से बाहर खाइयों में फेंका जाता था परन्तु इस सभ्यता की सबसे आकर्षक बात यह है कि आजकल की तरह यहाँ के लोग सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से नालियों की सफाई करना जानते थे। उनकी ये नालियाँ खड़िया मिट्टी, चूने और एक प्रकार के सीमेंट से बनी हुई होती थी। वे अपनी नालियों को ऊपर से खुला नहीं छोड़ते थे। वर्षा का पानी शहर से बाहर भेजने के लिए एक बड़ी नाली बना रखी थी। सिन्धु घाटी के निवासियों के इतने अच्छे प्रबन्ध से यह पता चलता है कि वे सफाई पर विशेष ध्यान रखते थे।


(ii) सुमेर की नगर कल्पना एवं नगर जीवन (Town Planning and Town Life of Sumer) : सुमेर में जिस सभ्यता का उदय हुआ वह नगरीय सभ्यता थीं। यहाँ पर नगर राज्य का गठन प्रत्येक नगर को लेकर हुआ है।


निर्माण परिकल्पना : सुमेरी सभ्यता में अनेक नगरों का विकास हुआ। नगरों के साथ जनपद जुड़े हुए थे। नगर एवं जनपद का निर्माण एक परिकल्पित योजना के अनुसार होता था। एक-एक जनपद में अनेक मकान, मन्दिर एवं रास्ते आदि बनाये गये थे। उर, उरुक, लगास, किश, अक्काड आदि नगरों के बारे में खुदाई द्वारा बहुत-सी बातों की जानकारी प्राप्त होती है। साथ ही खनन से वहाँ पर राजमहल, मन्दिर, मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं।


नगरों की सुरक्षा व्यवस्था: सुमेर के नगरों में सदैव संघर्ष चलता रहता था। अतः नगरों के निर्माण के समय ही उसके चारों ओर नहरों का निर्माण किया जाता था, और ऊंची दीवार खड़ी की जाती थी तथा नगरों की सुरक्षा के लिए सदा सेना सतर्क रहा करती थी।


भवन और मंदिर : सुमेरी लोगों का मुख्य पेशा खेती करना था किन्तु उनमें ऐसे भी बहुत से लोग थे जो भिन्न-भिन्न पेशे अपनाए हुये थे। सुमेर के गरीब लोग तो झोपड़ियों में निवास करते थे किन्तु वहाँ के धनी नागरिक कभी-कभी अपने भवनों को ऊँचे टीलों पर बनाया करते थे जिनके ऊपर पहुँचने का एक ही मार्ग हुआ करता था।


मन्दिरों का निर्माण पत्थर से किया जाता था जिसमे जवाहरातों से ढँकी हुई ताँबे की पट्टियाँ जड़ी जाती थी। उर नगर में बना हुआ मन्दिर सारे मेसोपोटामिया में आदर्श माना जाता था। इसमें हल्के नीले और पालिसदार 'टाइल' जुड़े हुये थे। इसके दीवारों के निचले हिस्से में दुर्लभ वृक्षों की लकड़ी की पट्टी लगी हुई थी तथा संगमरमर और मूल्यवान सोने का प्रयोग किया गया था।


साफ-सुथरे रास्ते : सुमेरी सभ्यता के नगरों के रास्ते सदा साफ-सुथरा रहता थे। रास्तों को ईटों से बांधा जाता था, पर अधिकतर रास्ते पतले मिलते हैं।


(iii) सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन (Decline of Indus Valley Civilisation) : सिन्धुघाटी सभ्यता के विनाश के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-


(1) भूकम्प : सिन्धु सभ्यता में खुदाई करने पर सात परतें मिली हैं। अभी हाल मे दो परतें और मिली हैं। इससे ज्ञात होता है कि प्रत्येक विनाश के बाद लोगों ने नगरों का निर्माण किया। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि भूकम्प के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई।


(2) बाढ़ : नगर का गन्दा पानी और कूड़ा सुन्दर बहाव व्यवस्था के कारण सिन्धु नदी में जाकर गिरता था, फलस्वरूप अधिक कूड़ा-करकट जम जाने के कारण सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों का प्रवाह अवरुद्ध हो गया और नदी की तली उथली हो गयी। अतः मानसून के आगमन पर नदी में बाढ़ आ जाती रही होगी।


(3) बाहरी आक्रमण : यह सभ्यता प्राकृतिक कारणों से कमजोर होने लगी। सिन्धु सभ्यता के लोग शान्तिप्रिय व्यापारी वर्ग के तथा धार्मिक थे जिन्हें युद्ध से लगाव नहीं था। खुदाई में अनेक कंकाल मिले हैं जिन पर गहरे घावों एवं हथियारों के चोट के चिन्ह हैं। इससे ज्ञात होता है कि आक्रमणकारी ताकतवर और घुड़सवार थे। विशेष धातु निर्मित ग्रीस के बने हथियार मिले हैं। शायद विजय के बाद लौटते समय अपना हथियार छोड़ गये। ऋग्वेद में इन्द्रदेव को पुरन्दर या सृष्टि के विनाशकर्त्ता के रूप में जाना गया है।


ए० जी० वेल्स के अनुसार हड़प्पा की सभ्यता का विनाश आर्य भाषी लोगों द्वारा बेबीलोन के राजा हम्मूरावी के समय में किया गया। डॉ० डी० एन० झा के अनुसार आर्यों एवं अनार्यों के युद्ध में सिन्धुवासी हार गये। कुछ इतिहासकार आक्रमणकारियों को आर्य न मानकर बेबीलोन का मानते हैं। जो भी हो अधिकतर विद्वान इस सभ्यता के विनाश का कारण विदेशी आक्रमणों को ही मानते हैं।


Q-4
मेहरगढ़ सभ्यता के विस्तार के बारे में बताइये। मेहरगढ़ के महत्व पर विचार करें। (Point out the expanse of the Mehrgarh Civilization. What was the significance of Mehrgarh remains?)


Ans. मेहरगढ़ सभ्यता (Mehrgarh Civilization): मेहरगढ़ सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। यह लगभग दस हजार वर्षों के काल को मानव प्रगति का अनोखा वृतान्त है। 1984 ई० में फ्रांसीसी पुरातत्वविद् जो फ्रामोया जारिज तथा रिचर्ड मिडो ने सिन्ध प्रदेश के उत्तर-पश्चिम सीमान्त में स्थित बलूचिस्तान के सीबी जिले के बोलन नदी के किनारे मेहरगढ़ नामक केन्द्र में भारत तथा विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता की खोज की। यह उत्तर पाषाण युगीन सभ्यता थी।


सभ्यता का काल (Peiod of Civilisation) : फ्रांसीसी पुरातत्वविदों ने अमेरिकन पत्रिका Scientific American के माध्यम से यह घोषणा की है कि हमें इस प्राचीन केन्द्र के खनन में 8000 ई० पू० अर्थात् नव पाषाण काल के मानव सभ्यता के प्रमाण मिले है। यह सभ्यता 8000 ई० पू० से आरम्भ होकर 2000 ई० पू० तक स्थापित रही, जिसने विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र, मेसोपोटामिया, हड़प्पा आदि) के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।


सभ्यता का ग्रामीण स्वरूप (Rural Civilisation) : खुदाई में प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि यह एक ग्रामीण सभ्यता थी जिसकी तुलना पेलेस्टाईन के प्राचीन गाँव जेरिको तथा इराक के प्राचीन गाँव जार्मों से की जा सकती है। लोग स्थायी रूप से गाँवों में निवास करते थे लोग मिट्टी के बने मकानों में रहते थे खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा ज्ञात होता है कि बच्चों और बड़ों के रहने की व्यवस्था अलग-अलग थी।


कृषि का प्रारम्भ : प्राप्त अवशेषों से यह ज्ञात होता है कि इस सभ्यता का मनुष्य खेती-बाड़ी का कार्य समुचित तरीके से करता था। गेहूं, मक्का तथा जौ की खेती की जाती थी। कपास की खेती के भी प्रमाण मिले हैं।


पशुपालन: कृषि के विकास के साथ-साथ पशुपालन के भी प्रमाण प्राप्त हुए है। पशुओं से मांस, दूध, तथा ऊन प्राप्त किए जाते थे।


भवन निर्माण  : डॉ० मिडो के अनुसार 20 प्रकार के भवनों का पता चला है। लेकिन उनका किन कार्यों में प्रयोग किया जाता था उसका उल्लेख नहीं है। संभवत: कुछ को अनाज के भण्डारण के रूप में प्रयोग किया जाता रहा होगा।


कला (Arts) बर्तन तथा उन पर चित्रकारी के अलावा मनुष्यों तथा जानवरों की प्रतिमाओं के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं. जिससे ज्ञात होता है कि इस सभ्यता में कला का भी काफी विकास हो चुका था।


निष्कर्ष(Conclusion) :-उपरोक्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि अब तक जितने भी खोज हुए हैं, उनमें मेहरगढ़ की सभ्यता नवीन खोज है, किन्तु यह विश्व की सबसे प्राचीन जीवित सभ्यता है जिसका विकास 8000 ई० पूर्व भारत उप महाद्वीप में हुआ था जिसने विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं के विकास को गति दी।


V.i.Q.1प्राचीन मिश्र के सांस्कृतिक उपलब्धियों को उल्लेखित करो। (Assess the cultural achievement of ancient Egypt.)(8)


Ans. मिश्र में हुए सभ्यता के विकास के क्रम में लेखन कला का विकास, पिरामिड निर्माण आदि महत्वपूर्ण हैं। आलोच्य काल के दौरान एवं विज्ञान के क्षेत्र में भी विकास किया, जिसका वर्णन निम्नलिखित है:-


(i) लिपि और लेख (Script and literature) : प्राचीन मिश्र ने संसार को बहुत सी चीजें सिखाई है किन्तु उनमें सबसे महत्वपूर्ण है लिपि और अक्षर का विकास। मिश्र में भी सुमेरिया की भाँति आरम्भ की लिपि चित्रात्मक थी। जिस वस्तु के बारे में कुछ कहना होता था उसका चित्र बना दिया जाता था। जैसे घर शब्द को प्रकट करने के लिए आयत का चित्र बनाकर एक लम्बी भुजा की ओर उसे खोल दिया जाता था। चूँकि सूक्ष्म विचारों को किसी वस्तु के चित्र ऐसे बनाए जाने लगे जो किसी वस्तु को नहीं बल्कि किसी विचार को प्रकट करने लगे, जैसे- सिंह के अगले भाग के चित्र से शक्ति और सर्वोच्चता का बोध होने लगा; जैसा कि स्फिन्क्स की मूर्ति से प्रकट है।


(ii) आर्थिक जीवन (Economic life) : मिश्र के लोगों का आर्थिक जीवन कृषि, शिल्प और व्यापार पर आधारित था। तीन हजार और चार हजार वर्ष ई०पू० की मिश्री कब्रों में जो भिन्न-भिन्न वस्तुयें पायी गई हैं वे सब मिश्र की स्थानीय उपज नहीं हैं। उदाहरण के लिए सोना, हाथी दाँत आदि मिस्त्र की उपज नहीं समझी जाती हैं। ये वस्तुयें बाहर के देशों से अधिकतर भारत से ही वहाँ पहुँचती थीं। मिश्र की पुरानी कब्रों में भारत की नील तथा कुछ अन्य वस्तुयें भी भारत का ही बना हुआ माना जाता है। विश्वास किया जाता है कि ईसा पूर्व द्वितीय सहस्त्राब्दी तक मिश्र के राजा लोग दक्षिणी भारत से मलमल, आबनूस, दालचीनी आदि वस्तुयें मँगाते थे।


(iii) पिरामिड एवं मन्दिर स्थापत्य (Pyramids and temple architectures) : सबसे पहले राजा, जिसने पिरामिड बनवाया, शेर माना जाता है। यह मिश्र के तृतीय राजवंश का प्रथम राजा था। उसने सक्कारा में सीढ़ीदार पिरामिड बनवाया। इनमें सबसे बड़ा तथा प्रसिद्ध पिरामिड इस वंश के राजा खूफ का बनवाया हुआ है जो गीजा के स्थान पर है। चतुर्थ राजवंश के काल में पिरामिड युग खूब उन्नति पर था। बड़े-बड़े पिरामिड इसी काल में बने हैं। यह काल ईसा से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व का है। इस समय मिश्र की राजधानी मेम्फिस में थी जो आज के काहिरा नगर के समीप रेल नदी के डेल्टा में स्थित था। खूफू द्वारा बनवाये गये पिरामिड में पत्थर की पच्चीस लाख चट्टानों का प्रयोग हुआ है कुछ का वजन डेढ़ सौ टन तक का है और इनमें से लगभग सभी का वजन औसतन ढाई टन है| इसकी ऊँचाई 481 फुट है।पूरा पिरामिड बिल्कुल ठोस बना हुआ है। सिर्फ कुछ का तीन चट्टानें गायब हैं जहाँ से शायद कोई गुप्त मार्ग भीतर की ओर जाता है राजा के शव को अन्दर पहुँचाया गया था। इसी से यात्रियों को एक पथ प्रदर्शक अन्दर कब्र में ले जाता है। कुछ आगे जाने पर एक सौ सीढ़ियाँ मिलती हैं जो यात्रियों को पिरामिड केन्द्र में पहुँचा देती हैं। यहाँ अंधेरे में बनी कब्र में कभी खूफू और उसकी रानी के शव सुरक्षित रखे हुए थे।


(iv) धार्मिक विश्वास (Religious belief) : मिश्रवासियों में इतनी अधिक धार्मिकता थी कि वे जीवन के लगभग प्रत्येक रूप की पूजा करते थे। ताड़ का वृक्ष जो रेगिस्तान में उनको छाया देता था और नखलिस्तानों में बहने वाले झरने उनके लिए पवित्र थे। मिश्रवासी सांड, घड़ियाल, बकरा, भेड़, गाय, गरुड़ आदि प्राणियों की भी पूजा करते थे। इन जीवों को मंदिरों में उसी प्रकार विचरने दिया जाता था जिस प्रकार भारत में गाय को विचरने दिया जाता है।


(v) विभिन्न पेशा (Different Occupation) : मिश्र के राजा फेरो कहलाते थे। फेरो के बाद सामन्तों और पुरोहितों का दर्जा था। सामन्त लोग बड़े-बड़े भूमि-खण्डों के स्वामी होते थे। पुरोहित अपने खेतों में मजदूरों से खेती करवाते थे। बिना परिश्रम के ही वे काफी सम्पन्न बन गये थे क्योंकि मन्दिरों में जो चढ़ावा आता था उसपर एक मात्र इन्हीं का अधिकार होता था। आम जनता में अधिकांश लोगों का व्यवसाय कृषि करना और पशुपालन था। बहुत से लोग मजदूरी करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।


V.V.i.Q.2) नदी की चार सभ्यताओं के नाम लिखिए। इन सभ्यताओं का विकास नदी के किनारे ही क्यों हुआ?


उत्तर:- चार प्रमुख नदी सभ्यताओं में उल्लेखनीय हैं -


1) हड़प्पा सभ्यता, 2) मिस्र की सभ्यता, 3) मेसोपोटामिया की सभ्यता और 4) चीनी सभ्यता।


नदी के किनारे सभ्यता के कुछ उल्लेखनीय विकास हुआ क्योंकि-

अनुकूल जलवायु: नदी के किनारे की जलवायु बहुत सुखद थी जो मानव निवास के लिए बहुत सुविधाजनक थी। जैसे ही आदिम लोगों को इस बात का एहसास हुआ, वे नदी के किनारे बसने लगे।


जलापूर्ति : नदी के किनारे रहने वाले आदिम लोगों के पास पानी की कमी नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि उन्हें पानी खोजने के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ी और वे आसानी से नदी से अपना पानी इकट्ठा कर सकते थे।


उपजाऊ कृषि भूमि: नदी के किनारे की मिट्टी की उर्वरता के कारण उस मिट्टी में कृषि अच्छी होती है। और आदिम लोग इसे बहुत अच्छी तरह समझते थे। परिणामस्वरूप, वे नदी के किनारे बस गए और खेती शुरू की।


कृषि में सिंचाई के लाभ: नदी के किनारे उपजाऊ भूमि में कृषि गतिविधियों के शुरू होने के बाद, जब उस कृषि को पानी की आपूर्ति की जाती थी, तो प्राचीन लोगों ने नदी से विभिन्न नहरों को काट दिया और उन नहरों के माध्यम से अपनी भूमि की सिंचाई की।


यात्रा के लाभ: नदी या पानी से यात्रा करने और माल परिवहन में कम समय और कम श्रम लगता है। इसलिए आदिम लोगों ने माल के परिवहन और अपनी यात्रा की सुविधा के लिए नदी को चुना। और वे नदी के किनारे बस गए।


खाद्य आपूर्ति: नदी के किनारे रहने के परिणामस्वरूप आदिम लोगों को भोजन की तलाश में लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ती थी। क्योंकि वे नदी से मछली और अन्य जलीय जंतुओं को भोजन के रूप में एकत्र कर सकते थे। उन्हें गुफाओं से जंगली जानवरों का शिकार करने के बजाय नदी के किनारे एक सभ्यता बनाने के लिए और अधिक भोजन की तलाश नहीं करनी पड़ी। परिणामस्वरूप, वे नदी के किनारे बस गए।


पीने के पानी के फायदे :-नदी के किनारे रहने वाले आदिम लोगों के पास पीने के पानी की कोई कमी नहीं थी। वे नदी के पानी को पीने के पानी के रूप में इस्तेमाल करते हैं ,समय का सदुपयोग कर सके।

निष्कर्ष: उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है क्योंकि आदिम लोगों ने बसने के लिए नदी के किनारे को सबसे अच्छी जगह के रूप में चुना था। और इस तरह की बस्तियों के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे नदी के किनारे प्राचीन सभ्यताओं का निर्माण हुआ। 



Chapter-3

1)State the similarities and dissimilarities between Mughal and the Ottoman Empire.


2)महाजनपद क्या था ? प्राचीन भारत में जनपद तथा महाजनपद के मध्य अन्तर लिखिए ? (What was Mahajanapada? Point out the differences between a Janapada and Mahajanapad in ancient India?)
Ans-महाजनपद (Mahanjanpada): इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व से ही संघर्ष के आधार पर छोटे जनपद मिलकर एक बड़े भू-खण्ड में बदलने लगे। उन्हें ही महाजनपद कहा जाता है। महाजनपद का शाब्दिक अर्थ महा अर्थात् वृहद या बहुत बड़ा तथा जनपद का अर्थ भूखण्ड है। प्राचीन भारत में ये महाजनपद वृहद राज्य राष्ट्र होते थे।


3)गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ? (What were the causes of decline of Gupta Empire ?)


Ans. गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-


1. अयोग्य उत्तराधिकारी (Weak Successors) - विशाल गुप्त साम्राज्य को संभालने के लिए समुद्रगुप्त के बाद कोई सबल शासक न हुआ, अत: केंद्रीय सत्ता के कमजोर होते ही कई राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।


2. उत्तराधिकारी के नियम का अभाव (Lack of the Law of Succession) - उत्तराधिकार नियम के अभाव के कारण सम्राट के मरते ही गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। अतः जो शक्तिशाली होता था, वही राजगद्दी प्राप्त कर लेता था।


3. सीमावर्ती क्षेत्रों की अवहेलना (Negligence of the frontiers)- चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् किसी भी गुप्त शासक ने सीमावर्ती क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया। अतः विदेशी आक्रमणकारी बिना रोक-टोक भारत में प्रवेश कर लेते थे। 

4. बौद्ध धर्म का प्रभाव (Effect of Buddhism) - बौद्ध धर्म के प्रभाव ने राजाओं को अहिंसावादी बना दिया। दूसरे शब्दों में सेना बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण पंगु हो गई। अतः जिन-जिन गुप्त शासकों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया, मानो उन्होंने शत्रुओं को बुलावा दिया था।


5. विशाल साम्राज्य (Vast Empire) - गुप्त साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय यातायात के साधन नहीं के बराबर थे, अत: इतने बड़े राज्य पर नियंत्रण रखना कठिन था। इस प्रकार गुप्त साम्राज्य की विशालता भी पतन का एक कारण बनी।


6. सैनिक दुर्बलता (Military Weakness)- यद्यपि गुप्त काल सुख-समृद्धि का युग था, परन्तु बहुत लंबे समय तक युद्ध न होने से सैन्य बल सुख-प्रिय, विलासी एवं आलसी तथा शक्तिहीन हो गई।


7. आंतरिक विद्रोह (Internal Revolts) - जब गुप्त साम्राज्य शक्तिशाली था तो भारतीय राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, परन्तु गुप्त सम्राटों की सैनिक शक्ति जब कमजोर पड़ गई, तो वे शासक विद्रोह करने लगे। मालवा के राजा यशोधवर्मन तथा वाकाटक के राजा नरेंद्रसेन ने विद्रोह करके स्वयं को स्वतंत्र कर लिया।


8. हूणों के आक्रमण (Attack of Hunas)- गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण हूण जाति के आक्रमण थे। ये आक्रमण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद ही प्रारंभ हो गये थे। डॉ. वीसेन्ट स्मिथ के अनुसार - "पाँचवीं और छठी शताब्दी में हूणों के आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को छिन-भिन्न कर दिया और इस प्रकार कई नये राज्यों के जन्म के लिये क्षेत्र तैयार कर दिया।"


9. आर्थिक संकट (Economic Crisis) - धन की कमी भी गुप्त साम्राज्य के पतन का कारण बनी। स्कंदगुप्त को पुष्यमित्र की शुंग जाति और हूण जाति से बहुत से युद्ध करने पड़े। इससे सरकारी खजाना खाली हो गया। इस प्रकार आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ जाने से गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

Vvvvi Q.4.


Lesson-3

V.i.1) पोलिस की विशेषताएँ लिखिए ? इसके पतन का कारण बताओ।


उत्तर: परिचय: हिंदी में शहर राज्य या अंग्रेजी के लिए ग्रीक शब्द 'सिटी स्टेट' पोलिस है जिसका अर्थ है 'स्वायत्त राज्य'। प्राचीन समय में ग्रीस, एशिया माइनर, एजियन द्वीप, आदि में जनसंख्या और आकार में कई छोटे शहर-राज्य या पोलिस था।

प्राचीन यूनानी शहर-राज्य की विशेषताएं:

[1] राज्य का आकार और जनसंख्या: ग्रीक पोलिस आकार और जनसंख्या में छोटी थी। द रिपब्लिक में, प्लेटो कहता है कि एक आदर्श पोलिस की जनसंख्या 5,000 होनी चाहिए। अरस्तू का कहना है कि जिस तरह 10 नागरिकों का पोलिस आत्मनिर्भर नहीं हो सकता, उसी तरह 1,00,000 नागरिकों का पोलिस कुशलता से शासन नहीं कर सकता।


[[2] राजा की अनुपस्थिति: अधिकांश पोलिस में राजशाही अनुपस्थित थी। नीतियां विभिन्न प्रकार की थीं जैसे कुलीन, लोकतांत्रिक, निरंकुश। हालांकि स्पार्टा में एक वंशानुगत राजतंत्र है, निश्चित रूप से राज्य सत्ता अभिजात वर्ग के हाथों में चली गई।


[3] नागरिकों और विदेशियों का स्थान: प्रत्येक पोलिस में नागरिकों के अलावा कई विदेशी भी रहते थे। उनके पास नागरिक अधिकार नहीं थे, लेकिन उन्हें वहां रहने के लिए सामाजिक रूप से मान्यता दी गई थी। एथेंस के शासक पेरिकल्स ने कहा, "हम विदेशियों को किसी भी शिक्षा या दृश्य से बाहर नहीं करते हैं।" 

[4] प्रशासन में सार्वजनिक भागीदारी: ग्रीक पोलिस में नागरिकों को शासन में सीधे भाग लेने के लिए बताया गया है। अरस्तू ने अपनी पुस्तक पॉलिटिक्स में कहा है कि पोलिस का आकार इतना छोटा होना चाहिए कि वहां के प्रत्येक नागरिक के बीच सीधी पहचान हो सके।


[5] अद्वितीय: ग्रीस में प्रत्येक नीति अद्वितीय थी। प्रत्येक पोलिस की अपनी सरकार, सेना, कैलेंडर था। यह भी माना जाता है कि प्रत्येक पोलिस की अपनी मौद्रिक प्रणाली और नक्शा था हो गया ना। कुछ मामलों में पोलिस की पूजा भी अलग थी।


[6] शहरों और गांवों का संयोजन: ग्रीक शहर-राज्य केवल राज्य भर में शहरों के स्थान या शहर द्वारा गांव के शासन का उल्लेख नहीं करता है। प्राचीन यूनान में जितने उन्नत नगर-राज्य थे, उतने ही नगर-राज्य थे, जो बिल्कुल भी शहर नहीं था।


[[7] आर्थिक असमानता: ग्रीस में विभिन्न शहर-राज्यों के बीच आर्थिक असमानता थी। उदाहरण के लिए, कुरिन्थ और मिलेटस के लोग अपनी आजीविका के लिए उद्योग और वाणिज्य पर निर्भर थे, जबकि स्पार्टा, एलिस और अर्काडिया के लोग आपके भविष्य के लिए कृषि, सरदारों और भाड़े के सैनिकों, योद्धाओं और मंदिर की आय पर निर्भर थे।


ग्रीक पोलिस के पतन के कारण हैं:


थिब्स का उदय: पेलोपोनेसियन युद्ध के फैलने के बाद स्पार्टा का पतन अपरिहार्य था। एक शक्तिशाली राज्य के रूप में ग्रीस के उदय ने राजनीतिक और सैन्य संतुलन को बिगाड़ दिया, और एथेंस और थेब्स तब से राजनीतिक संघर्ष में उलझे हुए हैं। 311 ईसा पूर्व जब थेब्स ने स्पैटा को हराया, और थेब्स का यह उदय गिर गया, तो पूरा ग्रीस चौंक गया।

  मैसेडोनिया का उदय: बदली हुई परिस्थितियों में, मैसेडोन ने अपनी सैन्य शक्ति दिखाई, लेकिन ग्रीक पोलिस ऐसा करने में विफल रही। मैसेडोन का फिलिप द्वितीय कौशल और एक नए युद्ध के साथ सेना पर हमला करने वाला पहला व्यक्ति था


सामरिक रूप से सूचित ग्रीक पोलिश मैसेडोन के कुशल सैनिकों के हमले को विफल करने में विफल रहे क्योंकि उनके सैन्य कौशल मुगल के अनुकूल नहीं थे।


वित्तीय गिरावट: एथेंस को पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान भारी नुकसान हुआ, जिससे एथेंस आर्थिक रूप से कमजोर हो गया। युद्ध के मैदान में राजनीतिक उथल-पुथल और गिरावट, उद्योग और व्यापार में गिरावट और आर्थिक समस्याएं भी हुई हैं।

शासकों की यातना: पोलिश के शासक शुरू में लोगों के कल्याण के लिए होते हैं लेकिन बाद में वे दमनकारी, अत्याचारी और दमनकारी नीतियों के साथ सारी शक्ति अपने हाथों में लेना चाहते हैं।


नेताओं की कमी: पोलिश का प्रबंधन करने के लिए योग्य नेतृत्व की कमी थी। पुलिस के कमांडर-इन-चीफ सेना के प्रभारी थे लेकिन पेलोपोनेसियन युद्ध के अंत में एक नेता उभरा लेकिन बाद में वे अपनी मातृभूमि छोड़कर दूसरे राज्य में सेना में शामिल हो गए, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस का पतन हुआ।


नैतिक आपदा: अंत में, यह कहा जा सकता है कि यूनानी राष्ट्र की नैतिकता के कारण प्रथम पोलिश का पतन हुआ। न्याय की प्रकृति, ईमानदारी, बुद्धि, उतार और प्रवाह, पारंपरिक समाज का क्षरण और नैतिक पतन की राजनीति। सुकरात की तरह बुद्धिमान व्यक्ति को मार डाला गया था, इसलिए पुलिस को आसन्न विलुप्त होने से बचाने के लिए हर तरह से असंभव था।


V.V.I.Q.2.साम्राज्य क्या है? मौर्य एवं मेसिडोनिया साम्राज्य की तुलना कीजिए? (What is 'Empire).Compare between Mauryan and Macedonian Empire.) 4+4 


Ans. Empire (साम्राज्य): अंग्रेजी का 'Empire' शब्द लेटिन भाषा के शब्द 'imperate' से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है आदेश देना (To command) विश्व शब्दकोश में साम्राज्य को राजनीतिक इकाई कहा गया है। जिसका क्षेत्रफल बड़ा होता है या जो भौगोलिक क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और जो एक सम्राट या साम्राज्ञी के अधीन होता है। राष्ट्रों एवं राज्यों के उस समूह को साम्राज्य कहा जाता है जहाँ केन्द्रीय सत्ता विद्यमान हो परन्तु वहाँ विभिन्न जाति, भाषा एवं सम्प्रदाय के लोग एक साथ मिलकर निवास करते हो। उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का साम्राज्य रोम के तानाशाह जुलियस सीजर का साम्राज्य तथा फ्रांस का तानाशाह नेपोलियन का साम्राज्य इत्यादि। इतिहासकार बजदुलाल चौधरी के अनुसार- "वह राजनीतिक क्षेत्र जो राजकीय व्यक्ति द्वारा सामरिक (सैनिक) शक्ति के बल पर अधिकार में लिया जाता है, साम्राज्य कहलाता है।" जैसे भारत का मौर्य साम्राज्य इसी प्रकार से अस्तित्व में आया था।

(Egypt) मिस्र का सम्राट थारमोस (ई० पू० 15 वीं शताब्दी) को इतिहास का प्रथम साम्राज्य निर्माता माना जाता है। साम्राज्य निर्माताओं का वर्णन यही बतलाता है कि सभी साम्राज्यवादी आक्रामक विजेता और तानाशाह थे। परन्तु सभ साम्राज्यों पर ये बातें लागू नहीं होती है। साम्राज्य का स्वभाव परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता था। सभी सम्राट तानाशाह नहीं थे, पर यह बात सत्य है कि प्रजातंत्र साम्राज्य का शासन नहीं था। साम्राज्य की कुछ अपनी विशेषताएँ होती थी, जो निम्नलिखित हैं


(i) साम्राज्य की सबसे बड़ी एवं पहली विशेषता उसकी विशालता थी। जो लोग साम्राज्य के निर्माता होते थे वे एक के बाद एक राज्य को, राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाते थे। जैसे- मौर्य, गुप्त और मुगल साम्राज्य 

(ii) दूसरी विशेषता अपने साम्राज्य का शासन सुचारू रूप से चलाने के लिए अधिक से अधिक कर (Tax) वसूलना था। साथ ही अपना आर्थिक विकास करना था।


(iii) साम्राज्य के बाहर के लोगों को जब साम्राज्य का अंग बनाया जाता था तो उन पर नियंत्रण करने के लिए ताकत का सहारा लिया जाता था। परन्तु कुछ ऐसे भी सम्राट थे जो प्रजा को अपने पुत्र के समान समझते थे और उनसे प्रेम करते थे।जैसे- सम्राट अशोक

इस प्रकार साम्राज्य का शासक अपनी योग्यता तथा बहुमुखी प्रतिभा के बल पर शासन करता था और जनता भी शासक के आज्ञाकारी और वफादार होते थे। 

Compare between Mauryan and Macedonian Empire (मौर्य एवं मेसिडोनिया साम्राज्य की तुलना) :


प्राचीन काल (ई० पू०) में भारत में मौर्य साम्राज्य तथा युनान में मेसिडोनिया साम्राज्य की स्थापना हुई।

 (i) साम्राज्य का उद्भव : ई० पू० छठवीं शताब्दी में भारत में सोलह महाजनपद थे, जिनमें सबसे शक्तिशाली मग था। मगध को केन्द्र कर ई० पू० चौथी शताब्दी में चन्द्रगुप्त मौर्य ने नंद राजा घनानंद को पराजित कर एक विशाल मौर्य वंश की स्थापना की। यह साम्राज्य लगभग 137 वर्ष (324 ई० पू०- 187 ई० पू०) तक अस्तित्व में रहा। इसकी तुलना मेसिडोनिया साम्राज्य के संस्थापक फिलिप के शासन के पश्चात उसका पुत्र सिकन्दर ने साम्राज्य का विस्तार किया। यह साम्राज्य लगभग 34 वर्षो तक ही कायम रहा। में


(ii) साम्राज्य का विस्तार : मौर्य साम्राज्य की सीमा मेसिडोनिया साम्राज्य की तुलना में कम थी। मौर्य साम्राज्य का विस्तार सबसे अधिक भारत में हुआ था। इसके अलावा नेपाल तथा अफगानिस्तान भी इस साम्राज्य के अधीन थे। परन्तु मेसिडोनिया साम्राज्य का विस्तार एशिया, यूरोप, अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों तक था।


(iii) शासन व्यवस्था : सिकन्दर की अकस्मात् मृत्यु हो जाने के कारण वह एक सुदृढ़ संगठित प्रशासन की स्थापना करने में असफल रहा। दूसरी ओर चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक ने एक सुदृढ़, दक्ष और संगठित प्रशासन की स्थापना की। इन्होंने अपने साम्राज्य में केन्द्रीय शासन व्यवस्था लागू की। इसी प्रकार मेसिडोनिया के सम्राट ने भी एक छत्र शासन व्यवस्था कायम किया था। (iv) कला : मौर्य काल में विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य हुए। इस काल में अनेक गुफा और स्तम्भों का निर्माण हुआ था।अशोक ने साँची तथा सारनाथ में कई लेख स्तम्भों का निर्माण करवाया था। मेसिडोनिया के शासक किसी कला से नहीं जुड़े थे परन्तु, उनके शासन काल में कई नये नगरों को बसाया गया था। उसने रास्तों और बन्दरगाहों का निर्माण करवाया था।


(v) कृषि एवं व्यापार : मौर्य काल में सिंचाई के साधन तथा लोहे के यंत्रों के विकास के कारण कृषि में अभूतपूर्व उन्नति हुई थी । यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। जबकि मेसिडोनिया के निवासी कृषि के अलावा देशी व विदेशी व्यवसाय को अधिक महत्व देते थे।


मौर्यों का व्यापार देश के आंतरिक भागों तक ही सीमित था, जबकि मेसिडोनिया का व्यापार विदेशों तक फैला हुआ था। उनको व्यापार उत्तर में डेन्यूब से दक्षिण में इथोपिया तक तथा पूरब में भारत तक फैला हुआ था।


Imp.Q.3) एथेंस में लोकतंत्र की नींव कैसे स्थापित हुई?

Or, 

एथेन्स में गणतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना कैसे हुई ? ग्रीक के नगर राज्यों का पतन क्यों हुआ? (How was democracy founded in Athens ? Why did the Greek Polis decline?)(4+4)


Ans. एथेन्स में गणतांत्रिक व्यवस्था: एथेन्स मध्य यूनान में है। एथेन्स के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में अभिजात वर्ग सुविधाभोगी वर्ग था। अधिकांश जमीन उनके कब्जे में थी और निम्न वर्ग दरिद्र और प्रायः अधिकारों से वंचित वर्ग था। एथेन्स के सभी स्वतंत्र नागरिक एक स्थान पर एकत्रित होकर राष्ट्र के शासन के विषय में अपने मत प्रकट करते थे। जनसंख्या बहुत कम होने के कारण यह सम्भव होता था। एथेन्स के सभी अधिवासी स्वतंत्र नागरिक नहीं थे फलतः अभिजात वर्ग ही देश का प्रशासन कार्य चलाता था। बाद में धन के आधार पर अभिजात वर्ग का निर्माण होने पर वंश गौरव की मर्यादा का लोप हो गया। सोलन नामक एक ज्ञानी व्यक्ति ने शासन में सुधार कर एथेन्स में गणतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया। फलस्वरूप कृषक, व्यापारी, श्रमिक और गरीब कारीगरों को सुविधा हुई। उस युग में जनता सामाजिक दृष्टि से तीन भागी में विभाजित थी अभिजात, कृषक और व्यापारी एथेन्स के उच्च वर्ग के लोग विलासी जीवन व्यतीत करते थे। प्रायः सभी कार्य क्रीतदासों द्वारा कराए जाते थे। एथेन्स में बच्चों की शिक्षा के लिए अनेक विद्यालय थे। शिक्षक वेतन के विनिमय पर विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। साधारणतः वे चौदह वर्ष की आयु तक इन विद्यालयों में अध्ययन करते थे। वहाँ वे इतिहास, संगीत, चित्रकला, व्यायाम आदि की शिक्षा पाते थे। बड़े होने पर वे सेना में शामिल होते थे। लड़कियों को विद्यालय में पढ़ने की सुविधा थी। वे गृह कार्य के अतिरिक्त सूत काटने, कपड़ा बनने, संगीत, पढ़ना-लिखना आदि घर में ही रहकर सौखती थी। जमीन पर दास एवं मजदूर काम करते थे। दास सभी अधिकारों से वंचित थे। फलस्वरूप आकर्न नौ व्यक्ति राष्ट्र के प्रधान थे।


ग्रीक के नगर राज्यों के पतन का कारण:- पेरीक्लीज के संरक्षण में एथेंस का जनतंत्र पूर्णता को प्राप्त कर चुका था, किन्तु उसमें कुछ कमियाँ रह गयी थीं। पेरीक्लोज की जनतंत्रवादी व्यवस्था भी दोषपूर्ण थी। वैसे एथेंस में जनतंत्रवादी व्यवस्था थी पर कुल जनसंख्या के 1/7 भाग को ही नागरिकता के अधिकार प्राप्त थे। दासों को कोई अधिकार नहीं था। नागरिकों में नारियाँ भी नहीं आती थीं। सभी क्षमताओं एवं नैतिकताओं के बाद भी पेरीक्लोज ने नहीं माना कि प्रजातंत्र में दास प्रथा को कोई स्थान नहीं होता और दासों की संख्या में कमियों के कारण ग्रीक के नगर-राज्यों का पतन हो गया।



Lesson-4


V.v.iQ 1. दिल्ली सल्तनत के समय इक्ता प्रथा तथा उसके परिणामों के ऊपर टिप्पणी लिखिए? (Write a note on the evolution of the iqta system and its Consequens during the Delhi Sultanate.)

Ans. 'इक्ता' एक अरबी शब्द है। निजामुलमूल्क तुसी के रियासतनामा में इक्ता को परिभाषित किया गया है। गोरी की विजय के बाद उत्तर भारत में 'इक्ता' व्यवस्था स्थापित हुई। मोहम्मद गोरी ने 1191 ई० में ऐबक को हाँसी का इक्ता प्रदान किया। इक्तादार और सुल्तान के सम्बन्ध परिस्थिति पर निर्भर करते थे अर्थात् इक्तादारों की स्थिति तीन प्रकार की हो सकती थी। प्रथम प्रकार के इक्तादार वे थे जिन्हें जीते हुए प्रदेश में सुल्तान के द्वारा नियुक्त किया जाता था। दूसरे प्रकार के इक्तादारों पर सुल्तान की पकड़ अपेक्षाकृत कम होती थी। तीसरे प्रकार इक्तादार वे होते थे जो ऐसी भूमि पर इक्तादार नियुक्त किये जाते थे जो अभी तक जीती नहीं गयी होती थी और वैसे इक्तादार व्यावहारिक रूप से स्वतंत्र होते थे।

इक्ता के प्रशासक मुक्ति या बलि कहलाते थे। वे सम्बन्धित क्षेत्र में भू-राजस्व का संग्रह करते थे और उस क्षेत्र का प्रशासन देखते थे। इनसे अपेक्षा की जाती थी कि प्रशासनिक खर्च और वेतन को पूरा करने के पश्चात् जो शेष रकम बचती है उसे वे केन्द्रीय खजाने में भेज दें और ऐसी रकम फवाजिल कहलाती थी। समय-समय पर कुछ सुल्तानों के द्वारा इक्तादारों पर नियंत्रण स्थापित करने की भी कोशिश की गयी। सुल्तान और मुक्ति का परस्पर सम्बन्ध परिस्थितियों पर निर्भर करता था। बलवन ने मुक्ति को नियंत्रित करने के लिए 'इक्ता' में ख्वाजा नामक अधिकारी को नियुक्त किया। वह इक्ता की आमदनी का आंकलन करता था। अलाउद्दीन खिलजी ने 'इक्तादारों' के स्थानान्तरण पर बल दिया ताकि निहित स्वार्थ पैदा नहीं हो सके। उसने इक्ता में नौकरशाही के हस्तक्षेप को बढ़ा दिया। इसके अतिरिक्त दीवान-ए-बजारत को यह अधिकार दिया गया कि वह प्रत्येक इक्ता की आमदनी का निश्चित अनुमान लगाये। इक्ता के राजस्व में से इक्तादार की व्यक्तिगत आय तथा उसके अधीन रखे गये सैनिकों के वेतन में स्पष्ट विभाजन किया गया और ऐसा गयासुद्दीन तुगलक ने किया। मुहम्मद बिन तुगलक ने एक नया कदम उठाया। उसने भू-राजस्व संग्रह और प्रशासन के कार्यों का विभाजन कर दिया। अब मुक्ति के अतिरिक्त एक और अमीर नियुक्त किया गया। वह प्रशासन का कार्य देखता था।

इक्ता के आय-व्यय के निरीक्षण के लिए एक अमील नामक अधिकारी भी नियुक्त होने लगा। मुहम्मद बिन तुगलक इक्ता के सैनिकों का वेतन भी केन्द्रीय खजाने से देने का प्रावधान लाया ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके। उसके इस कदम के विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया हुई और यही वजह है कि उसके काल में इतने विद्रोह हुए। फिरोज तुगलक तुगलक ने मुहम्मद बिन तुगलक
 की नीति को उलट दिया और इक्तादार के पद को वंशानुगत बना दिया। फिरोज तुगलक उन्हें गाँव प्रदान करने लगा और ऐसे गाँव वजह कहलाते थे |

V.V.I.Q 2.पर्सिया के क्षत्रप तथा चीन के मंडारिन का वर्णन कीजिए। (Describe the 'Satraps' of Parsia and 'Mandarins' of China.)

Ans. क्षत्रप (Satraps) : पर्सियन साम्राज्य में प्रांतों के सुबेदारों (Governors) को क्षत्रप कहा जाता था। पर्सियन साम्राज्य के अतिरिक्त ससानिद और हेलेनिस्टक साम्राज्य (Hellenistic empire) में भी प्रांतीय गर्वनरों के लिये क्षत्रप शब्द का व्यवहार किया गया है जिन्होंने अपने महानतम कार्यों से पूरे विश्व को प्रभावित किया। क्षत्रप शब्द का मूल अवेस्ता है जो कि संस्कृत शब्द क्षत्रिय (Kshatriya) से लिया गया है। आधुनिक पर्सियन भाषा में क्षत्रप शब्द का अर्थ 'शहर का रक्षक' होता है। यहाँ प्रान्तों को 'क्षत्रिप' और रक्षकों को 'क्षत्रप' कहा जाता है।

चीन के मंडारिन (China : Mandarins) : चीन के इतिहास के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि चीन में विद्वता, दक्षता तथा शिकार में निपुण नौकरशाह नियुक्त होते थे। कुलीन वंश अथवा सम्पत्ति के आधार पर नहीं बल्कि दक्षता के आधार पर प्रशासनिक नियुक्तियाँ होती थीं। चीनी साम्राज्य के दीर्घकाल तक बने रहने में इन दक्ष राष्ट्रीय नौकरशाहों की भूमिका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। चीन के नौकरशाह का गठन 25,000 वर्ष पुराने कनफ्यूसियस के दर्शन के आधार पर हुआ था। स्थानीय स्तर पर कर अदायगी के लिए इनका उपयोग किया जाता था। इस प्रकार के नौकरशाह को पश्चिमी जगत में मंडारिन. ndarin) कहा जाता था। इस नाम का प्रचलन मूलतः अंग्रेजों ने किया था। यह चीन के श्रेष्ठ एवं विद्वान ही सम्राट को उनके शासन के कार्य में सहायता करते थे। साम्राज्य में न्यायाधीश के पद पर भी यह महत्वपूर्ण काम करते थे। ये प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक परिश्रम करते थे। 
तांग वंश (618-506 ई०) के शासनकाल ने चीन को इतिहास के स्वर्णयुग में पहुँचा दिया। शासन के लिए देश को प्रान्तों में बांटा गया। विधि संहिता तैयार की गई और नहरों का विस्तार कर व्यापार को प्रोत्साहन दिया गया। शिक्षा के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया तथा राजकीय नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली आरंभ हुई। फलस्वरूप श्रेष्ठ, कुशल, राष्ट्र को समर्पित नौकरशाही (मंडारिन Mandarin) की नियुक्ति होने लगी। शिल्प और निर्माण कलाओं में अत्यधिक उन्नति हुई।

मलेशिया के अध्यापक उगकू अब्दुल अजीज (Ungku Abdul Aziz) के अनुसार Mandria शब्द की उत्पति माल्य शब्दकोष से पुर्तगीज भाषा में प्रवेश किया और पुर्तगीज शब्द Mandarim से अंग्रेजी में Mandarin शब्द की उत्पत्ति हुई। 16वीं शताब्दी में यह शब्द यूरोप के विभिन्न भाषाओं में प्रयुक्त होने लगा। वर्तमान काल में मंडारिन शब्द का अर्थ उच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है।

मंडारिन के कार्यक्षेत्र : मंडारिन चीन के केन्द्रीय सरकार के सचिवालय के अधीन कार्य करते थे। प्रशासन के प्रधान प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते उन्हें कठोर परिश्रम करना होता था। वह सुबह पाँच बजे से ही अपना कार्य आरंभ कर देते थे जो दिन में दस घण्टे तक चलता था। वह सम्राट को सभी प्रशासनिक कार्यों में सलाह एवं मदद करते थे। प्रशासनिक कार्यों के अलावे राजस्व व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था आदि का संचालन भी मंडारिनों द्वारा सम्पन्न होता था। मंडारिनों का कार्य सराहनीय होता था और उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता था।

Vvi Q 3 नवीन राजतन्त्र और थामस क्रॉमवेल के योगदान पर संक्षिप्त विवरण लिखिए। (Write briefly on New Monarchy and Thomas Cromwell's contribution.)

Ans. New Monarchy (नया राजतंत्र) : सर्वप्रथम नया राजतंत्र शब्द का प्रयोग जॉन रिचर्ड ग्रीन (John Richard Green) ने किया था, परन्तु इस राजतंत्र की नींव हेनरी सप्तम ने इंग्लैण्ड में डाली। सोलहवीं शताब्दी में पूरे यूरोप में सामाजिक परिवर्तन के कारण एक नयी राजनीतिक सोच का जन्म हुआ। मध्य काल की सामंतवादी प्रथा धीरे-धीरे विलुप्त हो गई थी। अब नयी-नयी राजनीतिक दलों में एकता की भावना पनप रही थी। शासकों ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए इन दलों का खुलकर समर्थन किया जिसके परिणामस्वरूप शासक अत्यधिक शक्तिशाली हो गए। उत्पादन में वृद्धि से व्यापार एवं वाणिज्य में बेतहासा विकास ने इन शासकों के शक्ति को दुगुना कर दिया और ये शासक पूर्ण रूप से केन्द्रीय साम्राज्य की स्थापना पर जोर देने लगे। इस प्रकार नये साम्राज्य की स्थापना शुरू हुई । इस नवीन राजतंत्र ने समस्त इंग्लैण्ड में परिवर्तन की एक लहर पैदा कर दी, फलस्वरूप यहाँ संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी। इस नये साम्राज्य में शासक ने सामंतों और कुलीनों के सारे अधिकारों को छीन कर अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया। संसद के अधिकारों को कम कर दिया गया। सेना, अर्थव्यवस्था आदि सभी शासक के नियंत्रण में आ गए।
 इस नवीन (नया) राजतंत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं - - 
(i) नवीन राजतंत्र ने राजा को चर्च एवं मठों के प्रभाव से मुक्त कर दिया और इनकी सम्पत्तियों को राष्ट्र की सम्पत्ति घोषित कर दिया।

(ii) इस राजतंत्र ने सामंतवाद को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया तथा राजा की स्थिति को मज़बूत बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(iii) नवीन राजंत्र ने राज्य एवं राजदरबार के सभी षड्यंत्रकारियों तथा दूराचारियों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया। 
(iv) इस नवीन राजतंत्र ने जनता को प्रसन्न करने के लिए अनेक सुधारात्मक कार्य किया।
(v) नये राजतंत्र के द्वारा कार्यपालिका की शक्ति को मजबूत किया साथ ही राजा की स्वेच्छाचारिता और निरंकुशता की शक्ति को कुछ समय के लिये बढ़ा दिया।

अतः इस नवीन राजतंत्र व्यवस्था ने सामंतों, कुलीनों, चर्चों एवं मठों की शक्ति को क्षीण कर शासकों की स्वेच्छाचारिता एवं निरकुंशता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया जो सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक था। 

थामस क्रॉमवेल : थामस क्रामवेल इंग्लैण्ड का एक महान राजनीतिक था। वह इंग्लैण्ड के राजा हेनरी अष्टम का प्रधानमंत्री था। प्रधानमंत्री के रूप में इसने बहुत ख्याति अर्जित की। वह इंग्लैण्ड में सुधार करने का पक्षपाती था। उसने इंग्लैण्ड में नवीन राजतंत्र के सुदृढ़ीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था।

इंग्लैण्ड के राजा हेनरी अष्टम के प्रधानमंत्री के रूप में उसने निम्नलिखित कार्यो में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था:-

(i) ईसाई मठों का विनाश (Destruction of Monasteries) : सोलहवीं शताब्दी में चर्चों और मठों का बहुत बोलबाला था। शासक भी चर्चों और मठों की शक्ति से घबराते थे। वे हमेशा शासकों पर अपना वर्चस्व बनाए रखते थे। ऐसी परिस्थिति में इंग्लैण्ड का विकास अवरूद्ध हो गया था। थामस क्रॉमवेल ने राजा हेनरी को सलाह दी कि वे इसाई चर्चों एवं मठों के वर्चस्व को समाप्त कर दें। इनको नष्ट करने का सबसे बड़ा कारण उनकी अगाध सम्पत्ति को प्राप्त करना था। हेनरी ने अपनी शक्ति के बल पर चर्चों और मठों की शक्ति को क्षीण कर उनकी सम्पत्तियों पर अधिकार जमा लिया। इस प्राप्त धन से उसने अपनी आर्थिक समस्याओं को दूर किया।

(ii) सरकार की शक्ति एवं क्षमता में वृद्धि : क्रॉमवेल ने अपनी प्रतिभा के बल पर ऊँचा पद प्राप्त किया था। वह योग्य एवं सक्षम व्यक्ति था। उसने हेनरी सरकार की शक्ति एवं क्षमता में वृद्धि की तथा नवीन राजतंत्र के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्रामेवल के प्रयास से ही इंग्लैण्ड में सिविल सेवा की शुरूआत हुई थी। वह सरकार के सभी कार्यों का स्वयं देख-रेख करता था। उसने 'प्रीवी कांउसिल' नामक एक संस्थान की भी स्थापना की थी।

(iii) संसद और राजा के मध्यस्थ कड़ी के रूप में : इंग्लैण्ड के शासक हेनरी को चर्चों एवं मठों की शक्ति पर नियंत्रण करने के लिए क्रॉमवेल ने ही प्रेरित किया था। जब राजा संसद में पोप के अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए कानून पास कर रहा था तो क्रामवेल ने राजा का समर्थन पूर्ण रूप से की और राजा की हर संभव मदद की। संसद के समक्ष पेश किए गए बिल की जाँच-पड़ताल वह स्वयं करता था। इस प्रकार क्रामवेल वास्तव में राजा एवं संसद के मध्य एक कड़ी के रूप में काम करता था।

सही अर्थों में इंग्लैण्ड का शासक हेनरी अष्टम धर्म सुधारक नहीं था, वह केवल अनुदार था। दूसरी तरफ, क्रॉमवेल सही अर्थों में सुधारक और प्रगतिशील विचारों वाला व्यक्ति था। अपने कार्यों के द्वारा उसने राजा के साथ-साथ इंग्लैण्ड के प्रत्येक वर्ग के लोगों को प्रभावित किया।

Vvi Q.4.प्रशासनिक सिद्धान्त के सन्दर्भ में अर्थशास्त्र के महत्व विश्लेषण कीजिए। (Analyse the significance of Arthashartra as a text on administrative principles.)

Ans. कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्य काल के इतिहास को जानने के लिये एक महत्वपूर्ण साधन है। कौटिल्य चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था। इसीलिये उसके द्वारा रचित 'अर्थशास्त्र' नामक पुस्तक में मौर्य काल की राजनैतिक अवस्था और राज के विषय में एक प्रामाणिक जानकारी मिलती है - 
(1) राजा के सम्बन्ध में जानकारी (Knowledge regarding the king) कोटिल्य का कथन था कि राजा एकदम निरंकुश हो तथा सरकार की समस्त शक्तियाँ उसके हाथों में हों। राजा की शक्ति पर कोई अंकुश नहीं होना चाहिए। ब्रह्मणों का मान-सम्मान बहुत अधिक होनी चाहिये। राजा को अपने मंत्रियों से भी परामर्श लेना चाहिए। राजा को परिश्रमी होना चाहिए। उसे विद्वान एवं सभ्य होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा का शुभचिन्तक होना चाहिए। कौटिल्य ने लिखा है • राजाओं का बुराई की ओर जाना उनके पतन का कारण होता है। इसलिये राजाओं को छह शत्रुओं से जो पतन का कारण होता है, अवश्य बचना चाहिए। वे छह शत्रु हैं - काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, उच्छृंखलता और विलसिता। राजा को अधिक सुख (विलासितापूर्ण जीवन) की कामना नहीं करनी चाहिए।

(2) राजकीय आदेशों के सम्बन्ध में जानकारी (Knowledge regarding Royal orders) : कौटिल्य के अनुसार राजा का आदर्श होना चाहिये कि "प्रजा की भलाई में ही उसकी भलाई है।" वही चक्रवर्ती राजा है जो प्रजा को आन्तरिक शान्ति एवं सुव्यवस्था दे सके। वह बाहरी आक्रमणों से अपनी प्रजा की रक्षा कर सके। अन्य देशों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार करके अपने देश का गौरव बढ़ा सके। कौटिल्य का कथन है कि सैनिकों के युद्ध क्षेत्र में जाने से पूर्व उन्हें बता दिया जाए कि वे धर्म युद्ध के लिये जा रहे है। इससे उनका मनोबल तथा उत्साह बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप वे जो-जान से लड़कर विजयी होंगे। देशहित के लिये युद्ध का नाम, दाम, दण्ड, भेद सभी नीतियों को अपनाना चाहिए।

(3) मंत्रियों के विषय में जानकारी (Knowledge regarding ministers) : कौटिल्य के अनुसार राजा के मंत्रियों को विद्वान एवं विवेकपूर्ण होना चाहिए परन्तु राजा को उनके हाथों की कठपुतली नहीं बननी चाहिए। यदि यह समझे कि अमुक मामले में मंत्रियों से परामर्श लेना उचित नहीं है, तो वह ऐसा करने के लिये स्वतंत्र हैं। मंत्रियों में टीम जैसी भावना होनी चाहिये। मंत्रियों की सभा ऐसे स्थान पर होनी चाहिये, जहाँ परिन्दा पर भी न मार सके, अर्थात् ऐसे स्थान पर जिसका किसी को पता न हो। कौटिल्य कहते हैं कि जो राजा अपने राज-काज के रहस्यों को छिपा नहीं सकता, उसका शासन अधिक दिन नहीं चल सकता।

(4) प्रान्तीय सरकारों से सम्बन्धित जानकारी (Knowledge regarding the provincial government) : कौटिल्य के अर्थशास्त्र कई प्रान्तों पर 'राष्ट्रीय' नामक अधिकारी होता था। प्रान्त कुछ जिलों में और जिले गाँवों में विभाजित होते थे।

(5) नगरों के प्रबन्ध से सम्बन्धित जानकारी (Knowledge regarding town management) : बड़े-बड़े नगरों तथा राजधानी का प्रबन्ध सुव्यवस्थित ढंग से होता था। राजधानी को चार भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग को 'स्थानिक' नामक अधिकारी के अधीन कर दिया जाता था। पूरा नगर जिस अधिकारी के अधीन होता था, उसे नागरिक कहा जाता था। स्त्रियाँ भी गुप्तचर विभाग में शामिल होती थीं।

(6) नौ वहन सम्बन्धी जानकारी (Knowledge regarding shipping) : प्रत्येक बन्दरगाह पर एक विशेष अधिकारी नियुक्त होता था, जो समुद्र या नदियों में चलने वाले जहाजों, नावों आदि की गतिविधियों पर नजर रखता था। व्यापारियों, मछुआरों व यात्रियों से कर एकत्र किया जाता था। प्रायः सभी नाव व जहाज सरकारी होते थे। 
(7) प्रजा की आर्थिक व्यवस्था सम्बन्धी जानकारी (Knowledge regarding economic condition of the Subject) : कौटिल्य के अनुसार विद्रोह का सबसे बड़ा कारण प्रजा की आर्थिक दशा का बिगड़ना था। अतः देश में कोई व्यकि भूखा नहीं होना चाहिए क्योंकि यही कमियाँ विद्रोह को जन्म देती हैं। अतः प्रजा की आर्थिक दशा को सुधारने में राजा को सदैव तत्पर रहना चाहिए। 


VVi.Q.5.मध्य युगी यूरोपियन सामन्ती प्रथा में मेनर व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें? (Mention the main characteristics of Manor system in the European feudal economy of middle age.)

Ans. मेनर व्यवस्था (Manor System): मेनर व्यवस्था यूरोपीय सामंतवाद का एक प्रमुख आर्थिक संगठन था। मेनर (जागीर) एक महत्वपूर्ण राजनीतिक इकाई थी। जागीर छोटी एवं बड़ी कई प्रकार की होती थी। जागीर की एक छोटी इकाई में एक या एक से अधिक मेनर हो सकता था। छोटी जागीर 300-400 एकड़ तक तथा बड़ी जागीरें 5000 एकड़ तक फैली हो सकती थी। मेनर का समाज जागीर के चारों तरफ फैला हुआ था। गाँव के अगल-बगल की बंजर भूमि तथा चारागाह पर सभी लोगों का अधिकार था। गाँव का कोई भी व्यक्ति उस चारागाह का उपयोग कर सकता था। मेनर का भू-स्वामी अर्थात जागीरदार ही पूरी जागीर का संरक्षण करता था। प्रत्येक जागीर की भूमि को कई भागों में बाँटकर छोटे एवं बड़े किसानों को दे दिया जाता था। इसके अलावा मेनर का भू-स्वामी जमीन का कुछ भाग अपने पास रखता था और दास किसानों (सर्फ) के द्वारा अपनी खेती करवाता था ।

मेनर व्यवस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Manor System) किले और दूर्ग के अलावे सामंतों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन का मूल आधार मेनर व्यवस्था थी। जागीरदार अधिकतर कोई नाईट (Knight) सामंत या विशप होता था जिनके पास अपार धन सम्पत्ति होती थी। जागीरदारों (भू-स्वामियों) के मेनरों में बहुत से शयनकक्ष हालनुमा भवन, उपासना गृह, सार्वजनिक गृह आदि अलग-अलग होते थे जिनका उपयोग इनके सगे-संबंधी भी करते थे। इनके पास अपार धन-दौलत और वैभव था जिसके फलस्वरूप इनका जीवन विलासी हो गया था। मेनर के अन्तर्गत इनका अपना शासन चलता था। किसान झोपड़ियों में अलग रहते थे। परन्तु आक्रमण या युद्ध के समय वे अपने भू-स्वामी के किले के पास चले आते थे। खेती-बारी का सारा कार्य भूमिदास किसान करते थे। मेनरों में आवश्यकता की सभी वस्तुएँ जैसे - गेहूं, जौ और साग-सब्जी आदि गाँव में ही पैदा की जाती थी। मेनर के सीमा के भीतर ही आटा पीसने की ची होती इसके अलावा अन्नागार रहता था, जिनसे लोगों की आवश्यकताओं को जरूरत पड़ने पर पूरा किया जा मेनर के अनाज की कमी को दूसरा मेनर पूरा करता था। मेनर के अन्तर्गत ही शिल्पकार जैसे-बढई,कसाई आदि रहते थे जो जरूरत की सारी चीजें बनाते थे। 

मेनर की आर्थिक व्यवस्था स्वतंत्र थी परन्तु उसकी शासन व्यवस्था मेनर के स्वामी अर्थात जागीरदारों के अधीन थी।जागीरदार मेनर का स्वामी होता था और उसकी सहायता के लिए स्टीवर्ड (Steward), बैलिफ (Baliff) और रीव (Reeve) नामक तीन अधिकारी होतें थे। स्टीवर्ड मेनर पर नियंत्रण करता था और वही मेनर का न्यायाधीश होता था। स्वामी के खेतों की निगरानी बैलिफ करता था साथ ही किसानों से कर (Tax) भी वसूलता था। दासों एवं कृषकों के कार्यों की निगरानी भी वही करता था। किसानों को समय पर कर न चुकाने पर जुर्माना अथवा दण्ड देने का अधिकार भी बैलिफ को था। मेनर के भूमिदासों (Serfs) के सभी समस्यायों का समाधान वही करता था।

मेनर का समाज तीन वर्गों में बँटा हुआ था - पादरी वर्ग, कुलीन या सामंत वर्ग तथा निम्न वर्ग। कुलीन, सामंत और पादरी वर्ग के लोगों को सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे। वे सभी सुविधाओं का उपभोग करते थे और उनका जीवन विलासिता, आडम्बर, ढोंग एवं पाखण्ड से भरा हुआ था। समाज के निम्न वर्ग के लोगों को किसी भी प्रकार का सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था। ये ही सबसे कठोर परिश्रम करते थे और लगान (Tax) भी चुकाते थे। भूखमरी, शोषण, अत्याचार, बेरोजगारी निम्न वर्ग के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ थी।

मेनर के भीतर प्रत्येक जागीरदार सर्वशक्तिमान होता था। जनता पर कर (Tax) वही लगाता था। वह अपने इच्छानुसार कानून बनाता और मनोनुकूल मुकदमें का फैसला भी सुनाता था। जागीरदार को लोग अपना अधिपति मानते थे जिसके कारण जागीरदार और जनता के बीच कोई सम्पर्क नहीं था। फलस्वरूप उस समय राजनीतिक एकता का अभाव था।

मेनर व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष भूमि का सर्वेक्षण कर उसे तीन भागों में बाँट दिया जाता था। एक भाग में गेहूँ, दूसरे भाग में जौ और तीसरे भाग को खाली रखा जाता था। अगले वर्ष खाली जमीन में खेती की जाती थी और बारी-बारी से प्रति वर्ष जमीन का एक भाग खाली रखा जाता था ताकि मिट्टी की उर्वरक शक्ति को बचाया जा सके।

अत: मेनर एक आत्मनिर्भर इकाई थी जो जागीरदारों के संरक्षण में फल-फूल रही थी। जागीरदार ही सर्व-शक्तिमान होता था और उसी के उपर मेनर समाज की पूरा ढांचा टिकी हुई थी। जागीरदारों (सामंतों) के सामाजिक और अर्थनैतिक जीवन का मूल आधार मेनर व्यवस्था ही था।

Vvi .Q.6मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप के सामन्तवाद के विशिष्ट विशेषता क्या थे? यूरोप में सामन्तवाद के पतन के क्या कारण थे? (What were the salient features of feudalism in Medieval Western Europe? Discuss the causes of the decline of feudalism in Europe.)

4+4

Ans. भारत में सामन्त-तन्त्र का रूप यहाँ की अपनी विशिष्ट परिस्थितयों के अनुसार विकसित हुआ। वर्ण व्यवस्था व जाति-भेद की प्रबलता, स्वत्व की विशिष्ट अवधारणा, ग्रामीण स्वायत्तता की परम्परा, राजत्व का गौरव एवं नागरिक जीवन की अनुवृत्ति - इन सबके परिणामस्वरूप यहाँ 'सामन्तवाद' वह रूप कभी नहीं ले पाया जो इसने यूरोप में लिया। यहाँ प्राचीनकाल में सामन्तवाद प्रधानतः राजनीतिक रहा। प्राचीन भारत में तीन प्रकार की विजयों का प्रचलन था धर्म विजय, लोभ विजय और असुर विजय। इनमें असुर विजय, जिसके द्वारा एकतन्त्रात्मक निरंकुश शासन स्थापित होता था, कभी वाञ्छनीय नहीं मानी गई। इसके विपरीत धर्म विजय, जिसे प्रशस्त माना जाता था, एवं लोभ विजय, सामन्तवादी व्यवस्था का आधारभूत कारण था। धर्मविजयी नरेश परास्त राजाओं की मात्र श्री छीनता था, राज्य नहीं। उसकी इस उदारता के बदले में पराजित राजा उसे धन देकर और उसकी सेवा करके उसे सन्तुष्ट करते थे। कभी-कभी वे अपनी कन्याओं का विवाह भी स्वयं साम्राट अथवा राजपुत्रों से कर देते थे और कभी-कभी सम्राट की कन्या का पाणिग्रहण कर गौरवान्वित होते थे। ऐसे विजय के परिणामस्वरूप विजय नरेश के प्रभुत्व के अधीन राजाओं के संघ का अस्तित्व में आना स्वाभाविक था। अश्वमेधजयी नरेशों की दिग्विजय और उसके परिणामस्वरूप अस्तित्व में आने वाले साम्राज्य प्रायः इसी प्रकार के हुआ करते थे। 'रामायण में राम की, 'महाभारत' में युधिष्ठिर की तथा 'रघुवंश' में रघु की विजय इसके उदाहरण है|
भारतीय सामंतवाद एवं यूरोपीय सामंतवाद की तुलना करने पर स्पष्ट हो जायेगा कि भारतीय सामंतवाद एक वास्तविकता पर आधारित कहानी है। जो लोग भारत में सामंतवाद का समर्थन नहीं करते हैं वे भारत के प्राचीन युग के बाद तक के काल में भारत में सामंतवाद का निर्धारण करने में निम्नलिखित तथ्यों को रखते हैं:-
(1) यूरोप और भारत में अंतर भारत और यूरोप में सामाजिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था एवं जीवन के अन्य क्षेत्रों में मूलभूत अंतर है। इसलिए आवश्यक है कि मध्यकाल के भारत के लोगों के जीवन के विविध क्षेत्रों का अध्ययन देश में जो परिस्थितियों विद्यमान थी उस संबंध में किया जाय, उधार ली गयी यूरोप की सामंतवाद की अवधारणाओं के आधार पर नहीं।

(2) शक्तिशाली सामंत और महासामंत यूरोप के सामंतवाद का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ वंश पराम्परागत सामंती लार्ड था। वास्तव में वे लोग भी शक्तिशाली थे, पर भारत में जो अग्रणी सामंत थे वे अधिक शक्तिशाली थे। अतः ज्यों ही अवसर मिला, इन सामंतों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया और साम्राज्य को इतना क्षीण कर दिया कि सम्राट नाममात्र के सम्राट रह गये। उदाहरणस्वरूप थानेश्वर के वर्द्धन, कनौज के मौखरी एवं अन्य जो सामंत थे (सामन्त, महासामन्त आदि) गुप्त साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर उनका अधिकार छीन लिए एवं स्वतंत्र राज्य बन गये।

(3) ताकत से बनाये गये श्रमिक और सफडम (कृषि दास) समानार्थी नहीं: कृषि दासत्व पश्चिमी यूरोप के सामंतवाद की एक दृढ़ कड़ी थी। जैसाकि हरवंस मुखिया का कहना है, जो भारत में सामंतवाद के आलोचक हैं, यूरोप में सर्फ सामंती लार्ड की उत्पादन प्रक्रिया में लगाये गये थे। पर भारत में शायद ही किसानों को उत्पादन के उद्देश्य से लगाया जाता था। अतः भारत में जो श्रमिक लगाये जाते थे उनकी तुलना सर्फो से किसी प्रकार नहीं की जा सकती। भारत में उत्पादन का स्वरूप और दशा ऐसी थी कि इसमें कृषि दास श्रमिक की कोई आवश्यकता नहीं थी। 

(4) सामाजिक परिवर्तन बनाम भूमि अनुदान : यूरोपिय सामंतवाद और तथाकथित भारतीय सामंतवाद में मूलभूत अंतर है। यूरोप में सामंतवाद का उदय इसलिए हुआ कि दासप्रथा पर आधारित उत्पादन में संकट उपस्थित हो गया था। प्रो० मुखिया दोनों में अंतर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यूरोप का सामंतवाद निश्चित रूप से समाज के आधार में परिवर्तन था। दूसरी तरफ भारतीय सामंतवाद के समर्थक भूमि अनुदान के आधार पर कहते हैं कि भूमि अनुदान और कुछ नहीं बल्कि वेतन के बदले दी जाने वाली भूमि थी।

ऊपर के तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि यूरोप के सामंतवाद और भारत के सामंतवाद में समानता का कोई चिह्न स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर नहीं होता है।

Vvi.Q.7.भारत रोम के बीच व्यापार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हैं? भारत में तृतीय शहरीकरण के क्या कारण थे। What was the impact of Indo-Roman trade on the economy of Indian sub-continent? what were the reasons for the third urbanisation in the Indian subcontinent?)

Ans. भारत-रोम के बीच व्यापार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव : भारतीय उपमहाद्वीप का रोम से व्यापार बहुत दिनों तक चला। गुप्तकाल में इसका विशेष विकास हुआ। भारत का मोती रोम जाता था। भारतीय व्यापारी रोम और यूनान तक जाते थे। भारत से प्रशाधन सामग्री, वस्त्र, आभूषण तथा अनेक प्रकार की चीजें रोम में निर्यात होती थीं तथा वहाँ से स्वर्ण मुद्राएँ भारतीय उपमहाद्वीप में आती थीं। इस व्यापार का प्रभाव यह हुआ कि भारत का स्वर्ण भंडार बढ़ा और भारत की संपन्नता बढ़ी।

भारत में तृतीय शहरीकरण का कारण : भारत में तृतीय नगरीकरण सल्तनत काल (1206 से 1526 ई०) के दौरान हुआ। इस नगरीकरण का कारण यह था कि तुर्कों के आक्रमण के परवर्तीकाल में कृषि के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन आया एवं अर्थ व्यवस्था में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप शिल्प और वाणिज्य का कास हुआ और नगरीकरण तीव्रगति से शुरू - हुआ। बड़े नगरों के आधार पर अनेक नगरों की स्थापना हुई। तुर्कों ने अपने शासन के सुदृढ़ीकरण के लिए अनेक छोटे नगरों की स्थापना की। दौलतावाद, मुल्तान, लाहौर, कारा, लखनौती, काम्बे, फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर, जौनपुर, फिरोजाबाद, फिरोजा, जोधपुर आदि इस समय के स्थापित नगरों में उल्लेखनीय हैं।

Vvi.Q.8.अग्रहारा से आप क्या समझते हैं ? इसने किस प्रकार गुप्तकाल में सामंतवादी व्यवस्था स्थापित करने में मदद की ? (What do you mean and understand by the Agrahara system ? How did it help in establishing the feudal system during the Guptas ?)

Ans अग्रहारा व्यवस्था: गुप्तकाल में ही भारत उपमहाद्वीप में सामंतवादी व्यवस्था का प्रचलन हुआ, हालांकि धार्मिक ग्रंथ में भूमिदान करने की अनुशंसा की गई है गुप्तकाल के पहले भी व मगध नरेश तथा सातवाहन अलग अलग अवसरों पर ब्राह्मणों को भूमि दान दिया करते थे क्योंकि चाणक्य का मानना था कि कोष व सैन्य से राज्य का विघटन होता है। गुप्तकाल में शासन में विकेन्द्रीकरण की भावना प्रबल हुई।

गुप्तकाल में यह विचार प्रबल हुआ कि भू-स्वामी, भूमि का वास्तविक अधिकारी व उपभोक्ता होते थे। सामंतों द्वारा अमात्य, कुमारामात्य, उपरिक आदि उपाधियाँ ग्रहण की जाती थी, परंतु गुप्तकाल में सामंत स्वतंत्र नहीं थे। समुद्रगुप्त के जमींदार के लिए सामंत शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। सामंतों द्वारा प्रतिवर्ष राजा को कर देना पड़ता था। सामंतों का यह कर्तव्य था कि वह प्रतिवर्ष कर अदा करें, राजा के पास जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करें, राजा को पंखा झलें, साष्टांग प्रणाम करें, उसके द्वारपाल का कार्य करें तथा उसका यशगान करें। दरबार में सामंत मनोरंजन के लिए जुआ, पासा खेलना, चित्रकला, संगीत व पहेलियाँ सुलझाने के कार्य करते थे। सामंत युद्ध व संकट के समय राजा को सैनिक व अन्य सहायता प्रदान करते थे। गुप्त व गुप्तोत्तर काल में भूमिदान के रूप में नए विजि प्रदेश, बंजर भूमि, वन इत्यादि दिया जाता था। इस प्रकार, अर्थवस्था का विकास व नए प्रदेशों पर अधिकार कायम होता था।

दान में दी गई भूमि पर सामंत अर्द्धकृषकों से कृषि करवाते थे। गुप्तकाल में मंदिरों को काफी भूमिदान की गई थी। इसके साथ ही शिक्षण संस्थाओं को भी अग्रहारा दिया जाता था, ताकि शिक्षण संस्थाओं का खर्च चल सके। दामोदर गुप्त ने ब्राह्मणों को धार्मिक व शैक्षणिक कार्यों के लिए 100 गांव दान में दिया था। अर्द्धकृषकों का जीवन जमीन से बंधा होता था। ये बहुत हद तक यूरोप के सर्फ जैसे थे, यद्यपि उन पर सर्फो जितना अमानवीय अत्याचार नहीं होता था। दान में दी गई भूमि के साथ अर्द्धकृषक भी हस्तांतरित हो जाते थे। भारत में अर्द्धकृषक दो तरह के होते थे जोतकार एवं काश्तकार। जोतकार जमीन से बंधा हुआ अर्द्धकृषक मजदूर यूरोपीय सर्फ की तरह था। काश्तकार स्वतंत्र किसान थे, जो उपज का एक हिस्सा सामंत को करके रूप में देता था व वर्ष के कुछ समय बेगार खटता था। अर्द्धकृषक मजदूर किसी भी हाल में गांव का त्याग व दूसरी जीविका नहीं अपना सकता था। सामंतवादी व्यवस्था में गांव में आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु उत्पादित होती थी। सिक्कों की कमी के कारण व्यापार की अवनति हुई। अधिकारियों को नकद वेतन के बदले जमीन दी जाने लगी।

गुप्त व गुप्तोत्तर काल में प्रचलित सामंतवादी व्यवस्था का निम्नलिखित योगदान था -
 1. सामंतवादी व्यवस्था ने समाज में शोषक व शोषित वर्ग का निर्माण किया। महासामंत व जागीरदारों के पास किसानों व अर्द्धकृषकों से राजस्व वसूलने का अधिकार था। सामंत उनसे बेगार भी प्राप्त करते थे। अतः वे कृषकों व अर्द्धकृषको का शोषण करते थे। उनसे विभिन्न तरीकों से धन की उगाही करते थे। कई बार कृषक इन अत्याचारों से परेशान होकर या तो विद्रोह करते थे या जंगलों में चले जाते थे।

2. सामंतवादी व्यवस्था के कारण आदिवासियों का संस्कृतिकरण हुआ। इस व्यवस्था के कारण बंगाल, बिहार व मध्य भारत के दूरस्थ व वीरान स्थानों पर सभ्यता का विकास हुआ तथा गांव व शहरों की स्थापना हुई। सामंतवादी व्यवस्था में ब्राह्मणों ने समस्त देश का संस्कृतिकरण व ब्राह्मणीकरण करके सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया।

3. सामंतों को दान में अधिकतर बंजर भूमि, वन व नए विजित प्रदेशों को दिया जाता था। सामंत उस भूमि को कृषि योग्य बनाते थे। इससे कृषि का विस्तार हुआ तथा नए विजित प्रदेशों पर नियंत्रण कायम होता था। ब्राह्मणों को आदिवासी क्षेत्रों का दान दिया गया। ब्राह्मणों ने उन आदिवासियों को हल-बैल, खाद-सिंचाई, मौसम आदि की जानकारी दी।

4. सामंत अपनी जागीरों में कानून व व्यवस्था को बनाए रखते थे। वे अपनी जागीरदारी में राजस्व वसूलने तथा अन्य प्रशासनिक कार्यों का सम्पादन करते थे। सामंत अपने इलाके में शांति कायम रखते थे। अतः पूरे राज्य में शांति रहती थी। 
5. सामंतवादी व्यवस्था के कारण केंद्रीय सत्ता का विघटन हुआ। गुप्त शासकों के कमजोर पड़ते ही सामंतों ने विद्रोह कर दिया एवं अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम की।

Vi.Q.1
भारत के राष्ट्रीय जीवन में राजपूतों की उत्पत्ति तथा उनके योगदानों का वर्णन करें?(Discuss the origin of the Rajputs and their contribution in national life of India)(8)

Ans. राजपुतों की उत्पत्ति:- 647 ई० में हर्ष की मृत्यु के पश्चात् उत्तर भारत में राजपूतों का उदय हुआ। राजपूत शब्द संस्कृत के राजपुत्र से बना है, जिसका अर्थ था राजकुमार |ब्राह्मण साहित्य में राजपूतों को उच्च अभिजातीय स्थान प्रदान किया गया है। राजपूतों की उत्पत्ति विवादग्रस्त है जिसे निम्न रूप से जाना जाता है। 
(i) प्राचीन क्षत्रियों से उत्पत्ति: गौरीशंकर हीराचंद ओझा, सी०वी वैद आदि ने विभिन्न स्रोतों के आधार पर राजपूतों को प्राचीन क्षत्रिय जाति का माना। प्राचीन क्षत्रिय अपने को सूर्यवंशी, चंद्रवंशी तथा कालांतर में यदुवंशी कहते थे। (ii) अग्निकुंड से उत्पत्ति: चन्द्रवरदायी ने पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि वशिष्ठ मुनी द्वारा आबू पर्वत पर किए गये यज्ञ के अग्निकुंड से प्रतिहार, चालुक्य, परमार तथा चहमान नामक चार योद्धा निकले। अतः राजपूतों को अग्निवंशी कहा गया। 
(iii) विदेशी जातियों से उत्पत्ति अनेक विद्वानों यथा कर्नल टाड, स्मिथ क्रूक तथा भण्डारनायक ने राजपूतों को उत्पत्ति विदेशियों तथा अनार्यों से बतलायी हैं।
राजपूत वंश गुर्जर प्रतिहार वंश का उदय राजस्थान के गुर्जर प्रदेश में हुआ। प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण के वंशज मानते थे। प्रतिहारों की दो शाखाएँ थी उज्जयिनी और कन्नौज। नागभट्ट प्रतिहार वंश के सर्वश्रेष्ठ शासक थे। प्रतिहारों के बाद कन्नौज के यशाविग्रह में गहड़वाल राजवंश का उदय हुआ। इस वंश के जयचंद और मुहम्मद गौरी के मध्य 4194 ई० में युद्ध हुआ, जिसमें जयचंद पराजित हुआ था। शाकम्भरी के चौहान (चहमान) वंश की उत्पत्ति आबू पर्वत के अग्निकुंड से मानी गई हैं। पृथ्वीराज चौहान (तृतीय, राय पिथौड़ा) ने मुहम्मद गौरी के साथ तराईन का युद्ध किया था। प्रथम तराईन युद्ध (1191 ई०) में पृथ्वीराज चौहान विजयी हुए, परंतु द्वितीय तराईन युद्ध (1192 ई०) में पराजित हुए तथा मारे गए। इस प्रकार भारत पर मुस्लिम शासन प्रारंभ हुआ। गुहिलोत वंश के संस्थापक वाप्पा थे। परमार वंश की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई गई हैं। इस वंश के संस्थापक कृष्णराज अथवा उपेंद्र थे। सीयक। इस वंश के महान राजा थे। अन्हिलवाड़ा के सोलकी वंश का उदय प्रतिहार राज्य के ध्वंसावशेष पर मूलराज प्रथम द्वारा की गई। त्रिपुरी के कलचुरी वंश की उत्पत्ति भी प्रतिहार राजवंश के अवशेषों पर कोक्कल के द्वारा हुई। जैजाकभुक्ति के चन्देलों के राज्य के दक्षिण में कलचुरी राजपूतों का राज्य था।

महत्व: भारत के इतिहास में राजपूतों का बड़ा महत्व है। राजपूतों ने अदम्य साहस व उत्साह से लगभग पांच शताब्दियों तक विदेशी आक्रमणकारियों से देश की रक्षा की। राजपूतों ने भारतीय सभ्यता संस्कृति व धर्म की ना केवल रक्षा की, बल्कि इसका पोषण भी किया। वे अत्यंत ही स्वाभिमानी और साहसी थे। वे अत्यन्त वीर थे और मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान हो जाना परम भाग्य समझते थे। कला साहित्य के विकास में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण हैं, परंतु राजपूतों में एकता का अभाव था। राजपूत राज्य छोटी-छोटी बातों पर आपस में लड़ते रहते थे। राजनीतिक एकता के अभाव के कारण ही उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों से पराजित होना पड़ा।



VViQ.प्राचीन भारत की नारियों के सामाजिक स्थिति पर एक लेख लिखिए? (Write an essay on the social status of women in ancient India.)

Ans. भारतीय समाज में नारियों को सम्मानजनक स्थान दिया गया है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर नारियों की पूजा देवी के रूप में होती है, परंतु व्यावहारिक तौर पर नारियों का स्थान गौण है।भारतीय समाज में इतिहास में नारियों का वर्णन बहुत ही कम मिलता है। परंपरागत विचारधारा यह है कि पुरुष सभ्यता संवाहक है और नारियाँ इस कार्य में घर व परिवार की देखभाल करके साथ देती हैं।

पूर्ण भारतीय इतिहास पर दृष्टि डालने पर नारियों की स्थिति को जो जानकारी मिलती है, वे इस प्रकार है 
1. पुत्रकामना : वैदिक काल से ही परिवार में पुत्रों की कामना की जाती थी। पुत्र को परिवार का वंश वृद्धि बनाए रखने वाला: परिवार की आर्थिक समृद्धि, सैन्य बल व पितरों को अत्मिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता था। पुत्रियों के जन्म पर परिवार में मातम छा जाता था।

2. शिक्षा का अधिकार : वैदिक काल में स्त्रियों का भी उपनयन संस्कार होता था। उन्हें पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था, परन्तु मौर्य काल तथा उसके बाद नारियों की शिक्षा पर कम बल दिया जाने लगा। गुप्त काल के पश्चात तो उच्च कुल को छोड़कर नारियों की शिक्षा लगभग समाप्त ही हो गयी थी।

3. विवाह संस्कार : पुत्री का विवाह करना (कन्यादान) पिता का परम कर्त्तव्य था। नारियों के लिए विवाह आवश्यक. था। समाज में बहुपत्नी व बहुपति प्रथा मौजूद थी। परन्तु बहुपति प्रथा के उदाहरण गिने चुने हैं। विधवाओं के देवर के साथ विवाह के उदाहरण मिलते हैं। समाज में ऐसी मान्यता थी कि वैवाहिक बन्धन जीवन के बाद भी रहता है। इस विश्वास ने सती प्रथा को बढ़ावा दिया।

4. स्त्री धन / दहेज प्रथा : कन्या का विवाह के समय और विवाह के पश्चात् सगे-सम्बन्धियों से उपहार स्वरूप जो धन प्राप्त होता था, वह उसका स्त्री धन था, जिस पर केवल उसका अधिकार था। कालांतर में स्त्री धन ने दहेज का रूप ले लिया। वर पक्ष कन्या पक्ष से धन की मांग करना अपना अधिकार समझने लगा।

5. उत्तराधिकार : लड़कियों को पिता की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं था। अगर किसी पिता का पुत्र न हो तब हो उसकी पुत्री उसकी सम्पत्ति की उत्तराधिकारणों होगी। अगर कन्या अविवाहित है तो पिता अपनी सम्पत्ति राज्य या जनकल्याण के लिए दान में दे देता था। विवाह के पश्चात नारी का पति की सम्पत्ति पर अधिकार था पर वह अपनी इच्छा से इसे बेच नहीं सकती थी।

• इस प्रकार हम देख सकते हैं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से नारियों को कमजोर बनाया गया। पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना में नारियों की अपनी अलग पहचान नहीं थी। मनु ने लिखा है कि नारी को बाल्यावस्था में पिता की, विवाह पश्चात् पति की तथा वृद्धावस्था में पुत्र की आज्ञा की पालन करना चाहिए। 

Vvi.Q.भारतीय इतिहास में रजिया सुल्तान के योगदानों का संक्षिप्त विवरण करे। (Give a brief asessment about the contributions of Razia Sultana in Indian History.)

4+4

Ans. रजिया सुल्ताना गुलाम वंशीय सम्राट इल्तुतमिश के पाँच क्रमिक उत्तराधिकारी हुए जिनमें रजिया दूसरे क्रम में सुल्तान बनी।प्रथम शासक भाई सकुनूद्दीन था, किन्तु वह अयोग्य और विलासी था, अत: लोगों ने उसे कैद कर लिया और रजिया को सुल्तान बना दिया। रजिया ने 1236 ई० से 1240 ई० तक शासन की| अपने शासनकाल में निम्न प्रमुख कार्य किये:-

1. विरोधियों का दमन : बदायूँ, झाँसी, मुलतान व लाहौर के प्रांतीय गवर्नर उसके सुल्तान बनने के विरोधी थे तथा उन लोगों ने रजिया को बंदी बनाना चाहा किन्तु वे असफल रहे। रजिया ने बड़ी कूटनीतिक सूझ-बूझ के साथ उनमें फूट डाल दी और सैनिक शक्ति द्वारा उनका दमन कर दिया।

2. सुव्यवस्थित शासन: रजिया ने उच्च पदों पर अपने विश्वस्त लोगों को नियुक्त किया और एक अच्छा शासन स्थापित करने की चेष्टा की। वह एक न्यायप्रिय, उदार, प्रजाहितैषी और कुशल सेनापति थी। उसमें एक श्रेष्ठ शासक के सभी गुण थे किन्तु उसका दुर्भाग्य था कि वह एक महिला थी। उसने निरंकुश बनकर पुरुष वेश धारण कर शासन करना चाहा। वह परदा भी नहीं करती थी। कट्टरपंथी लोग उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।

3. याकूत से प्रेम : रजिया ने अपने कृपापात्र एक अबीसीनियन गुलाम याकूत को आखूर के पद पर नियुक्त किया। वह हर समय सुल्ताना के अंगरक्षक रूप में उसकी सेवा और सहायता करता था। अमीर दरबारियों को यह अच्छा नहीं लगा। वे उसे बदनाम - नगे। रजिया के चरित्र पर भी कलंक लगाया गया। रजिया के विरोधियों की शक्ति को इससे बल प्राप्त हुआ।

4. विद्रोह:- लाहौर के सूबेदार कबीर खाँ ने विद्रोह कर दिया। बेगम विशाल सेना लेकर पहुँची। कबीर खाँ भाग चला|रजिया दिल्ली वापस आ गई तभी भाटिया के गवर्नर ने अल्तूनिया के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।विद्रोहियों ने याकूत को मार डाला।रजिया कैद कर ली गई और इल्तुतमिश के तीसरे बेटे बररुम को गद्दी दी गई।

अल्तूनिया राजपद के विचार से रजिया से मिला। उसने रजिया से विवाह कर लिया। वह सेना लेकर दिल्ली के लिए चल पड़ा। रास्ते में डाकुओं ने कैथल के निकट दोनों का वध कर दिया।

5. मूल्यांकन : इतिहासकारों ने रजिया की खूब प्रशंसा की है। रजिया काफी कुशल स्त्री एवं शासिका थी। उसका स्त्री होना ही उसके लिए अभिशाप था। मुसलमानों को उसका घोड़े पर चढ़ना, पुरुष वेश धारण करना, खुले मुँह दरबार में आना आदि कार्य पसंद न थे। याकूत के प्रति उसके प्रेम व्यवहार ने भी उसे दरबारियों से अलग कर दिया। उसने कई इस्लामो नियमों का त्याग कर दिया था, जिसे कट्टर मुसलमान बर्दाश्त न कर सके।

डॉ० आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है, "निःसंदेह रजिया एक अत्यंत सफल तथा असाधारण शासिका थी। वह वीर, कर्मठ, योग्य सैनिक तथा सेनानायक थी। राजनीतिक कुचक्रों और कूटनीति में भी वह दक्ष थी। उसने भारत में तुर्की सल्तनत की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना की।

Very important



Important MCQ















Important Short question 

V.i.
24.भारतीय इतिहास में किस काल को प्रारम्भिक मध्यकालीन काल के रूप में जाना जाता है? (Which period is known as Early Medieval period in Indian history ?)(SAMPLE QUESTION)

Ans.भारतीय इतिहास में पूर्व मध्यकाल 500 ई० और 1200 ई० के बीच का काल कहलाता है। इस काल में गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ और उसके पश्चात् विशाल साम्राज्य के निर्माण के प्रयोग का अंत हो गया। छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों का उद्भव हुआ जिसके फलस्वरूप कई प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए। इस काल के परिवर्तनों को सामंतवाद के अभ्युदय के रूप में परिभाषित किया जाता है।

Q.25.इतिहास को परिभाषित करें (Define History.)

Ans.
इतिहास के जनक हेरोडोटस के शब्दों में, "इतिहास अतीत में मानव के कार्यकलापों का विज्ञान है।" अतः अतीत अपने आप में इतिहास नहीं हो सकता। अतीत की महत्वपूर्ण घटनाओं का क्रमबध्द लेखा जोखा इतिहास कहलाता है।

प्राचीन मानव से प्रारम्भिक सभ्यताओं तक
Lesson-2

Q.26.प्रथम ओलम्पिक खेल की शुरूआत कब हुई थी ? (When was the first Olympic Games started ?)
Ans. प्रथम ओलम्पिक खेल की शुरूआत 776 ई० में एथेन्स में हुई थी।

Q.27.पाचीन भारत में महाजनपद का विकास कहा हुआ था ? (Where did Mahajanpadas grow up in ancient India ?)
Ans.छठवी शताब्दी ईसा पूर्व० उत्तर भारत में 16 महाजनपदों का विकास हुआ था।

 Q.28.'पोलिस' कहने से आप क्या समझते है ? (What do you understand by the term 'Polis' ?) 

Ans.'पोलिस' (Polis) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है 'नगर राज्य' प्राचीन ग्रीस में नगर-राज्य को 'पोलिस' कहा जाता था।

0.29.निओलिथीक को परिभाषित करिये। (Define the term 'neolithic.)  
Ans.Neolithic भाषा के दो शब्द Neo और lithic से मिल कर बना है, जिसका अर्थ है नवीन प्रस्तर

Q.30.जिगुरत क्या है ? (What is Ziggurat?) 
Ans.सुमेरियन सभ्यता में ऊंचाई पर बने देवताओं के मन्दिर को जिगुरत कहा जाता था।

Q.31.मेहरगढ़ सभ्यता की खोज किसने और कब की थी ? (Who discovered Mehrgarh civilization and when ?) 

Ans.मेहरगढ़ सभ्यता की खोज जे० एफ० जारिज (J.F. Jarrige) और रिर्चड मिडो ने 1774 ई० से 1786 ई० के बीच की थी।

Q.32.हिरोग्लिफिक लिपि क्या है ? (What is the Hieroglyphic script ?) (SAMPLE QUESTION) 
Ans.हेरोग्लिफिक (Hieroglyphic) मिश्र की प्राचीन चित्रलिपी है.

Q.33.कासा या कांस्य नामक एक मिश्रित धातु को बनाने में कौन-कौन से धातु व्यवहार किये जाते थे ? (Which metals were used in making the alloy called bronze ?) 
Ans.क्रांस्य (Bronze) धातु वस्तुतः ताम्र और टिन को मिलाकर बनाया जाता था। इस प्रकार यह एक मिश्र धातु (Alloy Metal) था।
Q.34. हिम युग लगभग कितने वर्षों पूर्व आरम्भ हुआ है? (How many years ago did the Pleistocene age begin?)
Ans.भू-वैज्ञानिकों के अनुसार हिमयुग (Pleistocence age) लगभग 30 लाख वर्ष पहले शुरू हुआ था।

Q.35.चक्के का अविष्कार कब हुआ? (When invented the wheel ?) 
Ans.चक्के की खोज या आविष्कार नव-पाषाणकाल (Neolithic age) में हुई।
Q.36. प्राचीन भारत में प्रथम नगरीकरण का आरम्भ कब से माना जाता है (When did the first phase of urbanization begin in Ancient India ?)
Ans. प्राचीन भारत में प्रथम नगरीकरण का आरंभ अनुमानतः 1750 ई० पूर्व से 2350 ई० पूर्व माना जाता है।



राजनीति का अभ्युदय प्रशासन एवं इकाईयों की धारणा
Lesson-3


Q.37.उलेमा कौन थे ? (Who were the Ulemas ?)
Ans.इस्लामी या मुस्लिम समाज में पुरोहित या धार्मिक ज्ञान रखने वाला विशिष्ट वर्ग को उलेमा कहा जाता है।

Q.38 धर्मशासित राज्यों का मूल चरित्र क्या था ? (What is the basic character of theocratic state ?)
Ans.धर्मशासित राज्य धार्मिक नियमों द्वारा संचालित होते थे, जिनमें पुरोहित, व धर्म गुरूओं का विशेष प्रभाव था।

Q.39.टयूडर क्रान्ति क्या है ? (What is 'Tudor Revolution' ?)

Ans.इंग्लैण्ड के ट्यूडर वंश के राजा हेनरी अष्टम ने अपने शासन काल में अनेकों प्रशासनिक सुधार किये तथा राजतन्त्र के खोये हुए गौरव को पुनः स्थापित किया। इसका यही सुधार टयूडर क्रान्ति कहते है।.

Q.40. मंडारिन क्या है ? (What is 'Mandarin' ?)
 Ans. प्राचीन चीन में उच्च वर्ग के प्रशासनिक अधिकारियों को मंडारिन कहा जाता था।

Q.41. 'एक्ट आफ सुप्रीमेसी' कौन पारित किया और कब ? (Who passed the 'Act of Supremacy and when ?)
Ans.थामस क्रामवेल ने 1534 ई० में 'एक्ट आफ सुप्रीमेसी' पास किया था। 

Q.42.नगर-राज्य से क्या समझते हैं ? (What is meant by city-state' ?)
Ans. प्राचीन ग्रीस में 800 ई० पू० छोटे-छोटे नगरों को Polis (पोलिस) या नगर-राज्य कहते थे। 

Q.43.जनपद क्या था ? (What was the Janapada ?)
Ans. जनपद से तात्पर्य भारत में वैदिक काल या लौह काल के आगमन के समय उपजातियों को अनेक बस्तियों बस गयीं, वे जनपद कहलाई। 

Q.44.मेसीडोनियान एवं मौर्य साम्राज्य में एक समानता बताइये। (Mention one similarity between the Macedonian and the Mauryan Empire.)
Ans. मौर्य साम्राज्य में केन्द्रीय शासन व्यवस्था थी, इसी प्रकार मेसीडोनिया में भी केन्द्रीय सत्ता थी। दोनो साम्राज्य में सर्वोच्च शिखर पर सम्राट होता था। 

Q.45.पोलिस क्या है ? (What is a polis ?)
Ans.ग्रीस में छोटे-छोटे नगर राज्य थे जिन्हें पोलिस कहा जाता था। पोलिस का शाब्दिक अर्थ है।

Q.46.प्रथम ओलम्पिक खेलों का प्रारम्भ कब हुआ था ? (When was the first Olympic Games started ?)

Ans.प्रथम ओलम्पिक खेलों का प्रारम्भ वर्ष 776 ई० पू० में किया गया था।

Q.47.एकोपोलिस का क्या अर्थ है ? (What is meant by Acropolis ?) Ans.प्राचीन यूनान में बाहरी आक्रमणक से बचने के लिए ऊँचाई पर बनाये गये दुर्गनुमा नगर का एक्रोपोलिस कहा जाता था।

Q.48.उन दो महाजनपदों का नाम बताइये जहाँ राजतंत्रात्मक शासन नहीं था। (Name two Mahajanapads which did not have a monarchial form of government.) 
Ans.वज्जि (Vajji) और मल्ल दो ऐसे महाजनपद थे जहाँ राजतंत्रात्मक शासन नहीं था।

Q.49.पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था ? (When did the first battle of Panipath take place ?)
Ans.21 अप्रैल 1526 ई० को पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ था ।

Q.50.काबुलियत और पट्टा प्रथा किसने प्रचलित किया था ? (Who introduced the Kabuliyat and Patta system?) 
Ans.शेरशाह (Sher Shah)

Q.51.इलाहाबाद प्रशस्ति में किस राजा के उपलब्धियों का विवरण है? (Which king's achievements were stated in the Allahabad Prashasti?)
Ans.समुद्रगुप्त (Samudragupta)

Q.52.रोम शहर कब बना था ? (When was the city of Rome built?)
Ans.753 ई० पू० मे ।

Q.53.आर्य ग्रीस में कहाँ से आये थे ? (From where did the Aryans come to Greece ?)
Ans.आर्य ग्रीस में पूर्व के डेन्यूब घाटी से आये थे।

Q.54.रोमन साम्राज्य की स्थापना कब हुई ? (When was Roman empire established?
Ans. रोमन साम्राज्य की स्थापना ई० पू० 31 में हुई।

Q.55.किसके शासनकाल में मौर्य साम्राज्य अपने बुलंदी के शिखर पर था ? (Under whom did the Mauryan Empire reach the zenith of its power ?)
 Ans.सम्राट अशोक के शासन काल में मौर्य साम्राज्य अपनी बुलंदी के चरम शिखर पर था। मोर्या ने मगच में एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी जो भारत के साथ-साथ सिकंदर विजित प्रदेशों जैसे- काबुल, कंधार, हेराट और बलूचिस्तान तक फैला हुआ था।

Q.56.राज्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता लिखिए। (Write one important feature of a State.)
Ans. राज्य की एक विशेषता है कि इसका एक स्थिर निश्चित भू-भाग होना चाहिए। 

Q.57.प्रथम नगर-राज्य की उत्पत्ति कहाँ हुई थी ? (Where did the first city-State originate ?)
Ans.यूरोप के दक्षिण-पूर्व भूमध्यसागर के उत्तर-पूर्व के मूल भूखण्ड और छोटे-छोटे अनेक द्वीपों को मिलाकर यूनान बना है। इसी यूनान में सबसे पहले नगर-राज्य की उत्पत्ति हुई थी। 

Q.58.किस महाजनपद में गणतंत्रात्मक सरकार थी ? (Which Mahajanpada had a democratic government ?)
Ans.पंचाल, वज्जि और मल्ल में गणतांत्रिक शासन था।

Q.59.ग्रीस का स्वर्ण युग किसके शासनकाल को कहा जाता है ? (Which reign is called golden age of Greece ?) 
Ans.पेरोक्लीज के शासनकाल को ग्रीस का स्वर्णयुग कहा जाता है।

Q.60.किन्ही दो ग्रीक नगर-राज्य के नाम बताइये। (Name any two of the Greek City-States.) 
Ans.ग्रीक नगर-राष्ट्रों के रूप में, एथेन्स, स्पार्टा, थिल्स एवं मैसीडोन उल्लेखनीय हैं।

राज्य का स्वरूप और उसका संगठन


Q.61.प्राचीन भारत में अग्रहार व्यवस्था' के बारे में आप क्या जानते है ? (What do you understand by the 'Agrahara system' in ancient India ?) 
Ans.प्राचीन भारत में राजाओं व सामन्तों हा ब्राहमणों को भूदान देने की प्रथा को 'अग्रहार प्रथा' कहा जाता था।

0.62.दास अर्थव्यवस्था क्या है ? (What is Slave economy ?)
Ans.दासों के श्रम पर आधारित कृषि, उद्योग, पशुपालन व्यापार, आदि व्यवस्था को दास अर्थव्यवस्था कहते है।

Q.63.यूरोप में सामन्ती व्यवस्था कितने वर्गों में विभाजित थी ? वे क्या थे ? (In how many classes were divided the feudal system in Europe? What were they?) 
Ans.यूरोपीय सामन्ती व्यवस्था तीन वर्गों में विभाजित थी। वे तीन वर्ग थे 
(a) याजक 
(b) कृषक.
(c) अभिजात। 

Q.64.फिफ क्या है ? (What is 'fife’ ?)
Ans.यूरोप में उच्च स्तर के लार्ड (जमींदार) अपने अधिनस्थ सामन्तों को जो भूमि दान में देते थे, उसे फिफ कहा जाता था।.

Q.65.कार्वी क्या था ? (What was the corvee' ?)
Ans.कार्वी एक प्रकार का बेगारी श्रम था। प्राचीन फ्रांस में बेगारी करने वाले किसानों के श्रम को कार्वी कहा जाता था।

Q.66. अर्थ शास्त्र का प्रमुख विषय क्या था? (What was the main theme of the Arthashastra?)
Ans.अर्थशास्त्र का प्रमुख विषय राज्य, राज्य का शासन प्रबन्ध एवं आर्थिक व्यवस्था अर्थात राजनीति है|

Q.67. इक्ता शब्द का क्या अर्थ है ? (What is the meaning of the word 'Iqta' ?) 
Ans.'इवता' शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है दिल्ली सल्तनत काल में धन की जगह वेतन के रूप में भूमि प्रदान की जाती थी, उसे इक्ता कहते थे।

Q.68. मंडारिन व्यवस्था चीन में क्यों लागू की गई ? (Why was the Mandarin System introduced in China?)

Ans.चीन में साम्राज्य के कुशल शासन व्यवस्था के संचालन के लिए मंडारिन व्यवस्था लागू की गई थी। जिनकी नियुक्ति राजा द्वारा होती थी।

Q.69.थामस कॉमवेल कौन था ? (Who was Thomas Cromwell ?) 
Ans.थामस क्रॉमवेल इंग्लैण्ड के राजा हेनरी अष्टम का प्रधानमंत्री था। इसने इंग्लैण्ड में ईसाई मठों के वचस्व को समाप्त कर नवीन राजतंत्र की स्थापना की थी। 

Q.70. धार्मिक या देवी राज्य से तुम क्या समझते हो ? (What do you understand by a theocratic state ?)

Ans.जिस राज्य का प्रशासन धार्मिक नेताओं द्वारा चलाया जाता है, उसे धार्मिक या देवी राज्य (Theocratic state) कहते हैं। 'Theocracy' शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ 'दैवी' या 'धार्मिक' होता है। 

Q.71.सप्तांग सिद्धान्त के प्रस्तुत कर्त्ता कौन थे ? (Who was introduce Saptang theory ?)
Ans.कौटिल्य

Q.72.जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखित दो पुस्तकों का नाम लिखिए। (Write the names of the two books written by Ziauddin Barani.)
Ans. जियाउद्दीन वरनी ने फंतवा-ए-जहांदारी और तारीख-ए-फिरोजशाही नामक दो पुस्तकों की रचना की थी।

Q.73.भारत का तोता किसे और क्यों कहा जाता है ? (Who is called the 'Parrot of India and why ?)
Ans.अमीर खुसरो को भारत का तोता कहा जाता है। सल्तनत काल में भारतीय संस्कृति का अति मनोरंजक वर्णन करने के कारण इन्हें भारत का तोता कहा जाता है। 

Q.74. किसने ट्यूडर राजवंश की स्थापना की? (Who was established 'Tudor Monarchy ?)

Ans. हेनरी सप्तम ने ट्यूडर राजवंश की स्थापना की।

Q.75.सप्तांग सिद्धांत क्या है ? (What is 'Saptanga' theory ?) 
Ans. कौटिल्य द्वारा राज्य की सात प्रकृतियाँ निर्धारित की गई हैं, यथा स्वामी, आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष,बल एवं मित्र। इसे ही सप्तांग सिद्धांत कहा जाता है। 

Q.76.शिल्क मार्ग कहाँ स्थित था ? (Where was the Silk Route located ?)
Ans.भारत के उत्तर में चीन देश में स्थित था। जो चीन से भारत होते हुए यूरोपीय देशों तक जाता था। 

Q.77.कालिदास द्वारा लिखित किसी किताब का नाम बताइये। (Name any text written by Kalidasa.)
Ans.मेघदूत (Meghaduta)

Q.78. जजिया क्या था ? (What was zaziya ?)
Ans.जजिया मूल रूप में एक प्रकार का गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला धार्मिक कर था जिसके बदले में उनके जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा होती थी तथा वे सैनिक सेवा से मुक्त कर दिये जाते थे।

0.79.शकुमारचरित किसने लिखा ? (Who wrote Pashakumaracharita ?)
 Ans. (Dandin).

Q.80.पंचानबे शास्त्र किसने लिखा था ? (Who wrote the Ninety-five Thesis ?)
Ans.मॉर्टिन लूथर (Martin Luther)

Q.81. किस देश में सरकारी आधिकारी को mandorins देश कहा जाता है ? (in which country were the government officers known as the mandorins ?) 
Ans.चीन (China) में।

Q.82.'प्रिन्स' का लेखक कौन था ? (Who is the the author of the Prince ?) 
Ans.निकोलो मैक्यावली(Niccolo Machiavelli) | 

Q.83.तबकत-ए-हिन्द किसने लिखा ? (Who wrote A Tabaqat-l-hind or Kitab-ul-Hind?)
Ans.अलबरूनी (Al-Beruni) ने

Q.84. तारीख-ए-फिरोजशाही के लेखक कौन थे ? (Who was the author of Tarikh-a-firozsahi)

Ans. जियाउद्दीन बरनी 

0.85.अबुल फजल के अनुसार कितने प्रकार के मनसबदार थे ? (How many types of mansabdars were there according to Abul Fazal?) 
Ans.अबुल फजल के आईने ए अकबरी से ज्ञात होता है कि मनसबदारों की 66 श्रेणियाँ थी पर उनमें 33 श्रेणियाँ ही प्रचलित थी।

Q.86.मनुष्य स्वतंत्र जन्म लेता है लेकिन वह हर जगह एकसूत्र रहता है यह वाक्य किसने कहा ? (Who said "man is born free but he is everywhere in chains"?)
Ans.रूसो (Russeau)

Q.87.कौटिल्य कौन था ? (Who was Kautilya ?)
Ans.कौटिल्य भारत के महान कूटनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ विचार थे जिनके नेतृत्व में चन्द्र गुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की थी। वह यूनान के सिकन्दर महान तथा उसके गुरु अरस्तू के समकालीन थे। उनकी रचना अर्थशास्त्र एक प्रसिद्ध ग्रंथ है।

Q.88.मनसब शब्द का क्या अर्थ है ? (What does the word Mansab mean ?) 
Ans.मनसब फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है प्रतिष्ठा का स्तर पद। मनसबदारी व्यवस्था अकबर ने अपने शासन के 19वें वर्ष अर्थात् 1575 ई० में प्रारंभ किया। बाबर के समय प्रशासनिक अधिकारियों को वजहदार कहा जाता था और अकबर के समय से उन्हें 'मनसबदार' कहा जाने लगा।

Q.89.हॉब्स लेवियाथन की राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या थी ? (What was the political background to Hobbes Leviathan ?) (SAMPLE QUESTION)

Ans.टामस हॉब्स (1599-1679 ई०) आधुनिक काल के राजनीतिशास्त्र के विचारकों में प्रमुख थे। सतरहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में प्रियुदिरान क्रान्ति हुई जिसमें वहाँ का राजा चार्ल्स मारा गया। इसी समय टामस हॉब्स ने अपने राजनीतिक विचारों को उपस्थित किया। इस सम्बन्ध में 'लेवियाथन' (Leviathan) उनकी सबसे प्रमुख पुस्तक है।

Q.90.क्षत्रप कौन थे ? (Who were Satraps?)
Ans.पर्सियन साम्राज्य में प्रांतों के सुबेदारों (Governors) को क्षत्रप कहा जाता था। शब्द का मूल अवेस्ता है जो कि संस्कृत शब्द क्षत्रिय (Kshatriya) से लिया गया है। आधुनिक पर्सियन भाषा में क्षेत्रप शब्द का अर्थ "शहर का रक्षक' होता है। यहाँ प्रान्तों को 'क्षत्रिप' और रक्षकों को 'क्षत्रप' कहा जाता है।

0.91.इक्ता राजस्व के निरीक्षण के लिए किसे नियुक्त किया गया था? (Who was appointed to keep records of iqta lands?)

Ans.गियासुद्दीन तुगलक ने इक्ता के राजस्व में से इक्तादार की व्यक्तिगत आय तथा उसके अधीन रखे गए सैनिकों के काम में स्पष्ट विभाजन किया। मोहम्मद तुगलक ने एक नया कदम उठाया। उसने भू-राजस्व संग्रह और प्रशासन के कार्यों का विभाजन कर दिया। अब मुक्ति के अतिरिक्त एक और अमीर नियुक्त कर दिया। इक्ता के आय-व्यय निरीक्षण के लिए एक आमिल नामक अधिकारी नियुक्त होने लगा। 

Q.92यूरोपियन इतिहास के किस काल को मध्य युग कहा गया है ? (Which period of European history is considered as the Middle Age?)
Ans.476 A. D. से 1453 A.D. तक।

Q.93.प्रत्येक इक्ता द्वारा संग्रहित भू-राजस्व को क्या कहा जाता था? (What was the revenue collected from each iqta called?)

Ans.इक्ता के प्रशासक मुक्ति या बलि कहलाते थे जो सम्बन्धित क्षेत्र में भू-राजस्व का संग्रह करते थे और उस क्षेत्र का प्रशासन देखते थे। प्रशासनिक खर्च और वेतन को पूरा करने के पश्चात जो शेष रकम बचती थी वह फवाजिल कहलाती थी। 

Q.94. भारत की प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक क्या है? (Which is the first historical text of India ?)
Ans.भारत की प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक 'राजतरंगिणी' को माना जाता है । 

Q.95.नया राजतंत्र की स्थापना किसने की? (Who established the New Monarchy ?)

Ans.नया राजतंत्र (New Monarchy) की स्थापना इंगलैंड के ट्यूडर वंशी सम्राट हेनरी सप्तम ने की जो राजा के छाचारी और निरंकुश अधिकारों को त्यागकर संवैधानिक तरीके से नये शासनतंत्र की व्यवस्था थी।

अर्थव्यवस्था का स्वरूप


Q.96.व्रात्य क्षत्रिय कौन थे ? (Who were the Bratya Kshatriyas?) 

Ans.विदेशी जातिया जो भारतीय स्त्रियों से विवाह कर भारत में बस गये। उनकी सन्तानों को व्रात्य क्षत्रिय कहा जाता है 

Q.97.स्त्रीधन कहने से क्या समझते है ? (What is meant by 'Streedhan' ?)

Ans.•विवाह के समय वर एवं वधू पक्ष द्वारा कन्या को उपहार स्वरूप जो धन प्राप्त होता था। उसे स्वोधन धना जाता था। इस धन पर स्त्री का पूर्ण अधिकार होता था। 

Q.98.मिश्र की प्रथम महिला फराहो कौन थी ? (Who was the frist female pharaoh of Egypt?)

Ans.रानी हातसेपसुत (Queen Hatshepsut)।

 Q.99.गुप्तकाल की समाप्ति पर नगरों के पतन का एक कारण दीजिए। (State one reason for the decline of towns towards the end of the Gupta period.)
Ans.गुप्तकाल के अंत में व्यापार वाणिज्य के पतन से उत्पादन घट गया। इस कारण नगरों का पतन होने लग

Q.100.मध्यकालीन यूरोप में नाइट किसे कहा जाता था ? (Who were known as the Knights in Medieval Europe ?) 
Ans.मध्यकाल के यूरोप में सामन्ती व्यवस्था में सबसे नीचे स्तर का प्रशासनिक अधिकारी को नाइट कहा क था। यह कुछ निश्चित व्यवस्था के आधार पर भूमि का बंटवारा किसानों में करता था और उनके जीवन
और संपत्ति की सुरक्षा का वचन देता था। ये लोग शस्त्रधारी तरुण योद्धा होते थे।

[Q.101.] परवर्ती मौर्यकाल में भारत-रोम व्यापार का एक प्रभाव बताइये। (Mention anyone impact of Indo-Roman trade in the past Mauryan period.)

Ans.परवर्ती मौर्य काल में भारत से मसालों, सुगन्धित प्रशाधन सामग्री, वस्त्र, आभूषण का निर्यात रोम को था और वहां से स्वर्ण आता था। परिणामस्वरूप भारत का स्वर्ण भंडार बढ़ा। 

Q.102.मध्यकालीन यूरोप मे गिल्ड प्रथा क्या था? (What was the guild system in Medieval Europe?)

Ans.मध्ययुगीन यूरोप में व्यापारियों और कारीगरों की वह संस्था जो उत्पादन की गुणवत्ता, नियंत्रण रखती थी उसे गिल्ड कहा जाता था।

बिक्री एवं मूल्य


Q.103.प्राचीन भारत में द्विजा किसे कहा जाता था ? (Who were known as 'Dwija' in ancient India ?)
Ans.प्राचीन भारत में ब्राह्मणों को पुरोहित कार्य के लिए राजा द्वारा दी जाने वाली भूमि को द्विजा कहा जाता था।

Q.104.भारत में सतवाहन राजाओं काटों सिक्का बनाने में उपयोग होने वाले दो धातु क्या थे ? (What were the two metal coins used by the kings of Satbahansas in India ?) 
Ans. सातवाहन राजाओं ने चाँदी और ताँबा का धातु का उपयोग सिक्का बनाने में किया जाता था।

Q.105. निगम क्या है ? (What is Nigam ?) 
Ans.निगम व्यापार के लिए बना एक प्रकार का संघ था।

Q.106. मेनर से तुम क्या समझते हो ? (What do yor mean by Manor ?) 
Ans.मेनर व्यवस्था सामन्तवाद का एक संगठन था। यह एक राजनीतिक इकाई थी, जो छोटी-बड़ी हो सकते थी। इसमें एक किला होता था जिसमें सामन्त रहता था, अगल-बगल खेत होते थे जिसमें कृषक रहने व तथा खेती करते थे।

[Q.107.किस ग्रीक इतिहासकार ने मिश्र को नील नदी का देन कहा है ? (Which Greek historian described Egypt as "the gift of the Nile" ?)
Ans.हेरोडोटस ने मिस्र को नील नदी का देन (Gift of Nile) कहा है। 

Q.108.सर्फ कौन थे ? (Who were the serfs ?)

Ans. यूरोपीय सामन्ती व्यवस्ता में भूमि और कृषि कार्य से जुड़े निम्न स्तर के दासों को सर्फ कहा जाता 

Q.109. पृथ्वी का सबसे पुराना बन्दरगाह कहाँ अवस्थित था? (Where was the oldest port of earth located?) 
Ans..पृथ्वी का सबसे पुराना बन्दरगाह लोथल है जो गुजरात में अवस्थित था।

0.110.मध्यकाल के आरम्भ में भारतीय महाद्वीप में जल मार्गीय व्यापार किस बन्दगाह द्वारा होता था? (Name a sea-ports in the Indian subcontinent which were functional in the early medeval (medival) Period?)
Ans. मध्यकाल के आरंभ में भारतीय महाद्वीप में जल मार्गीय व्यापार मुख्यतः लोथल बन्दरगाह द्वारा होता था। लोथल संसार का सबसे प्राचीन बन्दरगाह था।

सामाजिक गतिशीलता


Q.111.राजपूतों की उत्पत्ति के दो कारणों का उल्लेख कीजिए। (Mention any two theories regarding the origin of the Rajputs.)
Ans.(i) एक सिद्धान्त बतलाता है कि राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई थी।
(ii) दूसरा सिद्धान्त यह बतलाता है कि राजपूतों की उत्पत्ति उन विदेशी आक्रमणकारी शासकों से हुई जिन्होंने भारतीयता को अपना लिया और ब्राह्मणों ने उनको यज्ञ द्वारा शुद्ध कर दिया। 

Q.112.अग्निकुल सिद्धान्त का संस्थापक कौन था ? (Who is the founder of 'Agnikul' theory?)
Ans.राजपूत (प्रतिहार, चालुक्य, परमार तथा सोलंकी) 'Agnikul' सिद्धान्त के संस्थापक माने जाते हैं।

Q.113. हेलोट्स कौन थे ? (Who were the Helots?)
Ans.हेलोट्स (Helots) एक प्रकार के जाति थे जो स्पार्टा के लोकोनिया और मेसेनिया के निवासी थे। इस जाति के लोग सामंती व्यवस्था के सर्फो की तरह जमीन से बंधे होते थे।

Q.114. प्रतिलोम विवाह व्यवस्था क्या था ? (What was the Pratiloma System of marriage ?)
Ans.निम्न वर्ग के पुरुष के साथ उच्च वर्ग की कन्या का विवाह प्रतिलोम विवाह कहलाता था। इस प्रकार के विवाह को निन्दनीय माना जाता था।

Q.115. नूरजहाँ का क्या अर्थ है ? (What does Noorjahan mean ?)
Ans.विश्व की रोशनी (Light of the World).

Q.116. मैगलेन किस देश का रहने वाला था ? (Which country did Magellan belong to ?)
Ans.स्पेन (Spain) का ।

Q.117.पतित क्षत्रिय कौन थे? (Who were the bratya-kshatriya ?)(SAMPLE QUESTION)

Ans.पतित (व्रात्य) क्षत्रिय: भारतीय समाज गठन पर विदेशी आक्रमणों का गहरा प्रभाव पड़ा था। विदेशों से जो आक्रमणकारी आये भारत में बस गये। मनु के अनुसार, यवन, शक, हूण जैसे विदेशी वास्तव में क्षत्रिय ही थे। वे क्षत्रियत्व के अपने मार्ग से विचलित हो गये थे, अतः उनकी प्रतिष्ठा कम हो गयी। इस प्रकार से इन विदेशियों को भारतीय समाज व्यवस्था में पतित (व्रात्य) क्षत्रिय कहा गया। 

Q.118.रानी दुर्गावती कौन थी? (Who was Rani Dugavati?)
Ans.रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदैल की एकमात्र संतान थी। उसका विवाह गोंडवाना के राजा दलपत शाह के साथ हुआ था। पति के मृत्यु के बाद 16 वर्षों तक उसने गोडवाना पर शासन किया। उसके शासन काल में गोंडवाना एक सुव्यवस्थित एवं समृद्ध राज्य था।

Q.119. गंधर्व विवाह क्या था? (What was the Gandharba form of marriage ?)
Ans. गंधर्व विवाह : यह प्रेम विवाह है, जिसमें वर व कन्या परस्पर प्रेम में पड़ कर विवाह करते थे। इस विवाह में माता-पिता की सहमति नहीं ली जाती थी उदाहरण- दुष्यंत व शकुंलता का विवाह।


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