Kharagpur Silver Jubilee High school Class-10Activity Task October Solutions

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Activity-3

Ans-

The Awaited Kolkata Book Fair

 Started


By Staff Reporter


Central Park, 6th November: Good days have started for the book lovers of Kolkata. The yearly Kolkata book fair started yesterday with the inauguration by the honourable chief minister of West Bengal. In her opening speech, the chief minister addressed all the book lovers of Kolkata and said that Kolkata's book fair always has the same splendid taste of nostalgia.This year the book fair will continue from 5th of February to 11th of this month. Every year the publishers' and booksellers' guild organizes the Kolkata book fair in allotted regions of Kolkata by the state government. Unlike all other years, this year the venue chosen for the book fair was the central park premises, Salt Lake.


According to the organising authority this year the total number of bookstalls can exceed up to even 4000. A passionate book lover can find his heaven among the all-around kingdom of books and magazines. Renowned authors like Sreejata Chatterjee, Tanima Gupta are supposed to be present in the book fair. Apart from bookstalls, a beautiful cultural function has also been arranged in the book fair.

Various renowned artists of all around the world are coming to perform in the program. The program schedule is available on the official website of Publishers and Booksellers Guild. Enough security measures have been taken in concern of the safety and the security of the book fair.



Hindi


1.क)-उत्तर - रैदास जी निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी दोनों ही धाराओं के कवि थे।

ख)-उत्तर- उक्त अंश में यह बताने का प्रयास किया गया है कि जीव अज्ञानता के कारण ही स्वार्थ की चक्की में निरंतर पिसा रहा है। वह ईश्वर से, कृष्ण से, जो जगदाधार हैं, जीव को अज्ञानता से मुक्ति दिलाने का आग्रह करता है।

2.‘आत्मत्राण' कविता में कवि स्वयं अपने बल पर अपने दुःखों से त्राण पाना चाहता है। वह दुःखों से मुक्ति नहीं चाहता, बल्कि दुःखों को सहने तथा उनसे उबरने की आत्मशक्ति चाहता है। इस तरह यह कविता हमें प्रेरणा देती है कि हम भी संसार के दुःखों से भागें नहीं। हम दुःखों को निर्भय होकर सहन करें, उनसे उबरें, उन पर विजय पाएँ और आस्थाशील बने रहें। हम दुःखों से क्षुब्ध होकर टूटें न, रोएँ न, निराशावादी न बनें, परमात्मा के प्रति संदेह और क्षोभ से न भरें। हमें परमात्मा कुछ माँगना ही है तो दुःख सहन करने की शक्ति माँगें। हम सुख में भी परमात्मा को याद करना, धन्यवाद देना तथा उनके प्रति विनय प्रकट करना न भूलें।

3. उत्तर - डा० गुणाकर मुले द्वारा लिखित धूमकेतु एक शोध निबंध है; जिसमें विद्वान लेखक ने धूमकेतुओं के बारे में बड़ी ही रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी प्रदान की है। धूमकेतुओं के बारे में सदियों से प्रचलित भ्रमित धारणाओं को निर्मूल सिद्ध करते हुए बताया गया है कि धूमकेतु भी अन्य ग्रहों की तरह सौर- मंडल के सदस्य हैं। ये भी अन्य ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और इनका भी एक भ्रमण पथ है जो अण्डाकार होते हुए भी अन्य ग्रहों से थोड़ा भिन्न है। धूमकेतु ग्रहों के साथ कई अंशों का कोण बनाते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इसी कारण ये कभी-कभी पिंडों के प्रभाव में आकर अपने भ्रमण कक्ष से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चले जाते हैं।
पन्द्रहवीं शताब्दी में एडमंड हेली ने अपने शोध के द्वारा हमें धूमकेतुओं के बारे में नई जानकारी से अवगत कराया और उसके प्रति व्याप्त हमारी गलत अवधारणा को समाप्त किया। हेली के अनुसार धूमकेतुओं की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी पूँछ से धरती निकल सकती है। इसके तीन अंग होते हैं सिर, नाभिक एवं पूँछ । सिर का घेरा हजारों लाखों किलोमीटर एवं पूँछ की लम्बाई 20 करोड़ किलोमीटर तक हो सकती है इसीलिए आम्रोई पेरी ने इन्हें आकाश के राक्षस की संज्ञा दी है।
प्रस्तुत निबंध में धूमकेतुओं के बारे में जो जानकारी मिली है उसके अनुसार धूमकेतु भी सौरमंडल के सदस्य हैं, अन्य ग्रहों की तरह ये भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी उनके बारे में हमें पूर्ण जानकारी नहीं है इसके लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एवं अन्य विकसित देशों ने अपने यान प्रक्षेपित किए हैं। भविष्य में इससे हमें और अधिक एवं प्रामाणिक जानकारी मिलेगी।

4.)प्रस्तुत कहानी में दो व्यक्तियों के प्रेम और कर्त्तव्य का क्षेत्र इतने विशाल और व्यापक ढंग से लिया गया है कि इसमें एक ओर जीवन के पच्चीस वर्ष चित्रित हैं और दूसरी ओर भारत में फ्रांस की भूमि तक इसका चित्र-पृष्ठ (कैनवास) फैला हुआ है। अतएव कहानी का कथानक इतिवृत्तात्मक और लम्बा हो गया है। कहानी में वर्णनात्मकता को कम परन्तु विविध भाव चित्रों एवं चिन्तन शैली को अधिक स्थान मिला है। कहानी के प्रारम्भिक अंश पर प्रकाश डालने के उपरान्त लेखक ने पच्चीस वर्षों का स्थल रिक्त छोड़ दिया है। अन्त में नायक की मृत्यु के कुछ समय पूर्व उसकी स्मृति पटल पर उसे लाकर उसने अपनी कलम को अत्यन्त चमत्कृत करने का सफल प्रयास किया है। इस प्रकार अन्त में मनौवैज्ञानिक स्थिति व्यक्त की गई है जो उस युग के लिए एक महत्त्वपूर्ण की थी ।

इस कहानी में कहानी-कला के वे तत्व उपलब्ध होते हैं जो एक उत्कृष्ट कहानी के लिए आवश्यक हैं। कहानी का आरम्भ आकर्षक है और अमृतसर की सड़कों का दृश्य आँखों के सामने उपस्थित हो जाता है। वर्णन में स्वाभाविकता और घटनाओं में संगठन है। कहानी का सर्वाधिक मर्मस्पर्शी अंश उसका अंतिम भाग है जहाँ श्रोता और पाठक की आँखें भींग जाती हैं।

लहना सिंह और लेफ्टिनेन्ट के संवाद में मनोविज्ञान का पूरा उपयोग किया गया है। घटनाओं का सामंजस्य, वातावरण की सृष्टि, दृश्य-चित्रण, कलात्मक संवाद, भाषा की सरलता, मुहावरों का प्रयोग आदि ऐसी विशेषताएँ हैं जिसके कारण यह कहानी और इसके कहानीकार अमर हो गए हैं। भाषा एवं शैली की दृष्टि से भी यह कहानी अनूठी है। कहानी में सर्वत्र पात्र और परिस्थिति के अनुकूल भाषा का प्रयोग हुआ है।

पात्र-योजना की दृष्टि से भी यह कहानी अनूठी है। इसमें लहना सिंह की वीरता तथा सहृदयता का जैसा मार्मिक चित्र खींचा गया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। उसकी सेवा, उसका उत्सर्ग दोनों अपूर्व है। बचपन का अशान्त स्नेह प्रौढ़ावस्था का प्रशान्त बलिदान बन गया है। शैशव की उत्सुक चंचलता वयस्कावस्था में गम्भीर कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति बन गई है।

इन सब गुणों के साथ-साथ कहानी का प्रमुख आकर्षण रसानुभूति है। यह अनुभूति उथली रसिकता या मानसिक विलासिता का तरल द्रव नहीं है। यह जीवन के गम्भीर और स्वस्थ उपयोग में से खींचा गया गाढ़ा रस है।
"उसने कहा था'"शीर्षक कहानी प्रेम के आदर्श रूप को प्रतिस्थापित करती है ।" मैं इस कथन से सहमत हूँ|

5.
हिन्दी अनुवाद- मानव व वृक्ष का सम्बन्ध मानव इतिहास जैसा ही पुरातन है। वे कई मायनों में हमारे लिए उपयोगी हैं। वे थके यात्रियों को ठण्डी छाया प्रदान करते हैं। चिड़ियाँ उनमें अपने घोंसले बनाती हैं।वे वर्षा लाते हैं और जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपनी जड़ों से मिट्टी को जकड़ कर मिट्टी कटाव को रोकते हैं।


Math












History






Geography












PHYSICAL SCIENCE















विद्युत मोटर की शक्ति बढ़ाने का उपाय (How the power of electric motor is increased.) (i) क्षेत्र चुम्बक की शक्ति को बढ़ाकर (ii) आर्मेचर में तार के फेरों की संख्या बढ़ाकर (iii) आर्मेचर से प्रवाहित होने वाली धारा का मान बढ़ाक






Life Science










पश्चावस्था (Anaphase)-

 (1) गुणसूत्र बिन्दु के लम्बवत विभाजन से ही पश्चावस्था की शुरूआत होती है ।

(2) गुणसूत्र बिन्दु के विभाजन के पश्चात् प्रत्येक अर्धगुणसूत्र संतति गुणसूत्र के रूप में जाने जाते हैं। 

(3) सन्तति गुणसूत्र अब ध्रुव (Pole) की तरफ बढ़ने लगते हैं। इस प्रकार की गति को पश्चावस्था गति भी कहते हैं । यह गति निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है ।


(क) गुणसूत्र तन्तु की सूक्ष्मनलिकायें धीरे-धीरे लुप्त होने लगती हैं तथा ध्रुवों पर तनाव का चाप बनने लगता है । इस तनाव चाप के कारण सन्तति गुण सूत्र ध्रुवों की तरफ खिचने लगते हैं ।

 (ख) सूक्ष्म नालिकाओं के अनवरत तन्तुओं के केन्द्र की तरफ जमा होने के कारण गुणसूत्र ध्रुव की तरफ गतिशील होने लगते हैं ।


(ग) गुणसूत्रों के मध्यवर्गी स्थान में मध्यवर्ती तन्तु बनने लगते हैं, जो गुणसूत्रों को ध्रुवों की तरफ सरकाते रहते हैं ।

(घ) पश्चावस्था गति के समय गुणसूत्र का आकार अंग्रेजी के अक्षर 'V' (Metacentric), 'L' (Sub metacentric), 'J' (Sub-telocentric), इत्यादि प्रकार के हो जाते हैं। इनका आकार सेन्ट्रोमीयर के मौजूद स्थिति पर निर्भर करता है ।


(ङ) गुणसूत्रों के ध्रुवों पर जमा होने के साथ ही पश्चावस्था गति रूक जाती है ।


(च) पश्चावस्था गति के समय प्रत्येक गुणसूत्र 2.5um (माइक्रो म्यू) प्रति मीटर के हिसाब से चलता है ।


प्राणी कोषों में (In animal cells) 


(छ) पश्चावस्था गति (Anaphase movement) मध्यरेखीय क्षेत्र (Equitorial plane) के सिकुड़ने तथा कोष शरीर के लम्बाई में बढ़ने के कारण होती है ।


(ज) मध्य रेखीय क्षेत्र जब सिकुड़ता है तो तर्कुतन्तु सिकुड़ कर शरीर बनाते है, शरीर के लम्बाई में बढ़ने के कारण गुणसूत्र ध्रुवों (Pole) की तरफ गतिशील होते रहते हैं।


(IV) अन्त्यावस्था (Telophase) :


(1) पश्चावस्था गति (Anaphase movement) के रूकने साथ अन्त्यावस्था (Telophase) की शुरूआत होती है ।

(2) इन्डोप्लाज्मिक जालिका (Endoplasmic-reticu से केन्द्रकला (Nuclear membrane) बनाती है (3) गुणसूत्र फिर से बिखर के लम्बे धागों में परिवर्तित हो जाते हैं ।


(4) ये सूक्ष्म सूत्र आपस में जुड़कर के जालिका (Reticulum) बनाते हैं ।


(5) गुणसूत्रों के बीच न्यूक्लियस का पुनः निर्माण होता है ।


(6) केन्द्रकं फिर से, घोल की क्रिया (Hydrated) और 'परिपूर्ण' (Saturated) हो जाता है|


(7) इस प्रकार समान गुणधर्म वाले 2- केन्द्रक बन जाते हैं । इन केन्द्रकों (Nuclei) के गुणसूत्र मातृत्व केन्द्रक के गुणसूत्रों के समान होते हैं । इसलिये इस प्रकार के कोष विभाजन की समीकरणीय विभाजन (Equational division) कहते हैं ।








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