Class-11 EVS notes

 EVS 


LESSON-1


मानव और परिवेश












Lesson-1
Long question-8 marks

V.I .

Q.1.पर्यावरण की परिभाषा दो। भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण से तुम क्या समझते हो ? पर्यावरण एवं वासस्थान में क्या संबंध है ? (Define environment. What are meant by 'physical' and 'social' environment ? What is the relationship between 'environment' and 'habitat'?)


Ans. पर्यावरण की परिभाषा (Definition of environment) : पर्यावरण सभी जैविक (सजीव) एवं अजैविक (निर्जीव) घटकों का योग है जो जीवों को घेरता है एवं उसे प्रभावित करता है। पर्यावरणविद् सी० सी० पार्क के अनुसार "सभी कारकों का योग जो मनुष्य को स्थान एवं समय विशेष पर प्रभावित करता है, मानव का पर्यावरण कहलाता है।"


(i) भौतिक वातावरण (Physical Environment): भौतिक वातावरण के अन्तर्गत वायुमंडल (Atmosphere). जलमंडल (Hydrosphere), तथा स्थलमंडल (Lithosphere) आते हैं।


वायुमंडल (Atmosphere) : पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिसमें वायुमंडल पाया जाता है। वायुमंडल अनेक प्रकार के गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन सर्वाधिक पाया जाता है। यह पृथ्वी को घेरे रहता है जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है। जलमंडल (Hydrosphere) : जलमंडल के अन्तर्गत सभी प्रकार की नदियाँ, समुद्र, भूमिगत जल, बर्फ एवं जलवाष्प आते हैं। जल एक अमूल्य संसाधन है जिसके अभाव में वनस्पति, जीव एवं वातावरण की अनेक क्रियाएँ असम्भव हैं। इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति जल से हुई है। हमारे जीवद्रव्य का मुख्य घटक जल ही है। इस पृथ्वी पर 97.5% जल नमकीन है। सिर्फ 2.5% जल ही मीठा जल है। इस 2.5% मीठे जल में भी 1.97% जल बर्फ के रूप में पाया जाता है। मात्र 0.02% जल नदियों, तालाबों एवं झीलों में पाया जाता है जबकि 0.01% जल मिट्टी में स्थित है। मात्र 0.5% जल ही भूमिगत जल है। अर्थात् 2.5% मीठे जल में सिर्फ 0.5% जल ही भूमिगत है और लोग उसी जल पर आधारित है। इसलिए इस पृथ्वी पर जल की बहुत कमी है। ऐसी भविष्यवाणी है कि इस पृथ्वी पर तृतीय विश्व युद्ध जल के लिए ही होगा। स्थलमंडल (Lithosphere) : पृथ्वी के बाहरी तथा ठोस हिस्से को स्थलमंडल कहा जाता है। 

पृथ्वी मुख्यतः तीन परतों की बनी होती है-

(a) अंतरिम भाग या केन्द्र (Core) 

(b) मध्य भाग या केन्द्र (Mantle)

 (c) बाह्य भाग (Crust)- पृथ्वी के बाह्य भाग में ही समुद्र तथा महादेश स्थित हैं।


(ii) सामाजिक पर्यारवण (Social Environment) : पादत जगत एवं जन्तु जगत एक सामाजिक समूह तथा संगठन की रचना करते हैं, इसे ही सामाजिक पर्यावरण कहते हैं। जीवित प्राणी सामाजिक पर्यावरण में निवास करते हैं एवं भोजन तथा आवास के लिए उसी सामाजिक पर्यावरण में संघर्षरत रहते हैं। भौतिक पर्यावरण जैविक एवं सामाजिक पर्यावरण को प्रभावित करता है। जैसे अत्यधिक वर्षा होने से जीव प्रभावित होते हैं एवं उनका वास स्थान नष्ट हो जाता है। पर्यावरण (Environment) के अन्तर्गत अनेक प्रकार के वास स्थान (habitat) आते हैं।


Vi.Q.2.पर्यावरणीय शिक्षा के महत्व का संक्षेप में चर्चा करो। (Discuss briefy the importance of environmental education.)


Ans. पर्यावरण शिक्षा का महत्व:- सुन्दर परिवेश स्वस्थ जीवन एवं सुख-समृद्धि का आधार होता है। वर्तमान भौतिकता के युग में मनुष्य ने पर्यावरण का जिस तीव्रता से दोहन किया है, उसका दुष्प्रभाव अब सामने आने लगा है। इससे बचने के लिए सम्पूर्ण विश्व में एक अभियान चलाया जा रहा है। पर्यावरण शिक्षा, जागरूकता तथा प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण योगदान लोगों को पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षा तथा प्रबंधन में सक्रिय भागीदार बनाने में सहायक है। लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना जगाकर उसकी सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है। इसके फलस्वरूप ही स्थायी विकास प्राप्त किया जा सकता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जब तक लोगों में जागरूकता नहीं होगी तब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायगी। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार ने आवश्यक पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता की भावना पैदा करने के लिए निर्धारित कार्यक्रम अपनाया है। इसके लिए समाज के सभी वर्गों को पारम्परिक तथा आधुनिक संचार माध्यमों के द्वारा पर्यावरण के प्रति पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। विद्यालय को विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा भी पर्यावरण संरक्षण तथा प्रबंधन की जानकारी दी जा रही है। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने अनौपचारिक पर्यावरण की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित प्रयास किये हैं।


राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (National Environment Awareness Campaign- NEAC): राष्ट्रीय पर्यावरण जारूकता अभियान का शुभारम्भ 1986 ई० में किया गया था। इसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग के लोगों में जारूकता लाना था। यह अभियान पूरे वर्ष चलाया गया, जिसका मुख्य आलोच्य विषय था- 'जल-जीवन का सार तत्त्व (Water-Elixir of Life)। इसे कार्यरूप देने के लिए एक कार्यशाला (Workshop) का आयोजन किया गया था एवं सरकार ने कुछ ऐसे क्षेत्रों का चुनाव किया जिसमें लोगों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गयी।


(i) कूड़ा-कचरा से यौगिक खाद बनाना (Vermi-composting) : कृषि क्षेत्र में विकास के लिए रासायनिक खादों के कम प्रयोग के लिए विकल्प के रूप में घरेलू कूड़ा-कचरा द्वारा कम्पोस्ट खाद का उत्पान (ii) रद्दी कागजों का पुन: चक्रण (Waste paper recycling) : रद्दी कागजों को पुनः चक्रण पद्धति द्वारा कागज निर्माण करना। जिससे वनों की कटाई को कम किया जा सके।

 (iii) आस-पास के क्षेत्रों में जल-परीक्षण: (Water testing in neighbouring area): आस-पड़ोस में जल परीक्षण द्वारा शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराना।

(iv) छत के वर्षा जल-संग्रह का प्रदर्शन (Demonstration of roof water harvesting) : छत से गिरने वाले वर्षा के जल का संग्रह करके उसे उपयोग में लाना।

(v) जलाशयों की सफाई (Cleaning of water bodies) : जलाशयों की सफाई जिसमें तालाबों, नहरों, झीलों एव अन्य जल स्रोतों को गहरा कराना तथा उन्हें खर-पतवार से मुक्त करना, जिससे उसमें अधिक से अधिक जल संचय एव संग्रह किया जा सके।


Lesson-3
Long question -8marks

Vvi.Q.1पर्यावरणीय अवनति से तुम क्या समझते हो ? पर्यावरणीय अवनति के प्रमुख कारणों का वर्णन करो। (What do you understand by 'environmental degradation' ? Discuss the major causes for degradation of environment.)


Ans. मानवीय क्रिया-कलापों के कारण पर्यावरण में अवांछनीय तत्वों की उपस्थिति को ही पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) या पर्यावरणीय अवनति (Environmental degradation) कहते हैं। हम घरेलू कूड़े कचरे को घर के बाहर आस-पास की जमीन पर फेंक देते हैं। विभिन्न प्रकार के खरतनाक सह-उत्पादों तथा मानव के मल मूत्र जहाँ-तहाँ धरातल पर फैलाते हैं। ये सभी पदार्थ मनुष्यों के स्वास्थ्य तथा अन्य पशुओं एवं जीवधारियों के जीवन के लिए निश्चित रूप से हानिकारक होते हैं। पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है जिसकी ओर हमारा ध्यान जाना आवश्यक हो गया है, ताकि इसके दूरगामी परिणामों से हम मानव जाति को बचा सकें। विगत दो दशकों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के स्रोतों को पहचाना गया है, जो जल, वायु और धरातल की मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं। पर्यावरणीय प्रदूषण एक ऐसी सामयिक समस्या है, जिससे मानव सहित सम्पूर्ण जैव जगत के लिए जीवन की समस्याएँ कठिन होती जा रही हैं। इससे जीवन की प्रक्रिया बाधित होती है, प्रगति रुक जाती है। एवं सांस्कृतिक जीवन को क्षति पहुँचाती है। संकलित पर्यावरण में सभी घटकों का परिमाण निश्चित होता है, किन्तु जब पर्यावरणीय घटकों का परिमाण आवश्यकता से अधिक अथवा कम या अन्य हानिकारक तत्व पर्यावरण में प्रवेश करते हैं, तो इसे प्रदूषित कर देते हैं। इसे ही पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। स्रोत और परिणाम (Source and Consequences) : वायु को प्रदूषित करने वाले प्रमुख प्रदूषक एवं उनके स्रोत निम्नलिखित हैं :


(a) सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur dioxide) : सल्फर डाइऑक्साइड गैस एक अप्रिय, तीक्ष्ण गंधवाली गैस है। वायु में जब इस गैस की सान्द्रता 1ppm (Parts per million) के लगभग होने से गन्ध द्वारा इसका अनुभव होता है।


किन्तु वायु में जब इस गैस की सान्द्रता 3 ppm से अधिक हो जाती है तो मनुष्य की गंध-ज्ञान की संवेदना तीव्रता से नष्ट हो जाती है। क्षोभमंडल (Troposphere) में इस गैस की सान्द्रता 1 ppb (Parts per billion) से कम से लेकर अत्यधिक प्रदूषित भागों में 2ppm तक हो सकती है।


(b) नाइट्रोजन के ऑक्साइड (Oxides of Nitrogen) : नाइट्रोजन के ऑक्साइडों में तीन ऑक्साइड प्रमुख प्रदूषक हैं। इनमें नाइट्रस ऑक्साइड , नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वायु प्रदूषक हैं। पहली गैस का पर्यावरणीय व्यवहार एवं स्रोत अन्य दोनों गैसों से भिन्न है। अतः इसके विषय में अलग-अलग तरह से समझना होगा। नाइट्स ऑक्साइड एक हरित गृह गैस (Green House Gas) है। इसलिए यह वैश्विक उष्णता (Global warming) में सहायक गैस है। इसके साथ ही नाइट्रस ऑक्साइड NO समातप मंडल (Stratosphere) में प्रवेश कर नाइट्रिक ऑक्साइड गैस (NO) उत्पन्न करती है और इस प्रकार उस तंत्र को सहायता प्रदान करती है, जो ओजोन (O) की सान्द्रता का नियंत्रण करती है।

 (c) हाइड्रो-कार्बन (Hydro-carbon) : जैसा कि इसके नाम से ही मालूम होता है कि हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन एवं कार्बन से बना यौगिक है। इसका सबसे सरल रूप मिथेन (Methane-CH4 ) गैस के रूप में जाना जाता है।


(d) कार्बन के ऑक्साइड (Oxides of carbon) : कार्बन के दो प्रमुख ऑक्साइड कार्बन डाई आक्साइड एवं कार्बन - मोनो-ऑक्साइड हैं। इसके बारे में हम बारी-बारी से अध्ययन करेंगे। कर्बान डाइऑक्साइड (CO,) क्षोभमंडल (Tropo sphere) में उपस्थित रहती है। इसकी सांद्रता 360ppm है। वर्तमान में इसकी सांद्रता में वृद्धि हो रही है। यह एक चिन्ता का कारण है, क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख हरित गृह गैस (Green House Gas) है। इसलिए यह वैश्विक उष्णता (Global warming) में सहायता करती है।


(e) अधोमंडल (क्षोभमंडल) में लटके (तैरते) हुए कण (Suspended Particles in the Troposphere) : वायु में ठोस या द्रव्य कणों के तैरते (लटके) हुए कणों को एयरोसॉल (Aerosol) कहा जाता है। एयरो-सॉल (Aerosol) की उत्पत्ति कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं से होती है। मिट्टी के सूक्ष्म कणों को वायुमंडल में प्रवेश करने, समुद्री लहरों के थपेड़ों (Spray) द्वारा, परागकणों तथा बीजाणु (Spores) को वायु द्वारा उड़ाने, ज्वालामुखी क्रियाओं एवं खर-पतवार, पेड़-पौधों एवं मृत जन्तुओं को जलाने से एयरोसॉल (Aerosol) उत्पन्न होते हैं। अंतिम स्रोत को छोड़कर शेष सभी स्रोतों द्वारा बड़े कणों (व्यास 2.5pm. या अधिक) की उत्पत्ति होती है। ये कण शीघ्र ही धरातल पर निक्षेपण (Sedimentation) क्रिया या वर्षा के जल में घुलकर आ जाते हैं।


(f) सीसा यौगिक (Lead compound) : 90 प्रतिशत से अधिक सीसा यौगिकों का उत्पादन मनुष्यों के क्रिया-कलापों द्वारा होता है। इस प्रकार की विषाक्तता का परिमाण बढ़ता ही जा रहा है। यान वाहनों में पेट्रोल एवं डीजल के दहन के फलस्वरूप सीसा यौगिक भी उत्पन्न होते हैं। बीसवीं शताब्दी के दूसरे चरण में ग्रीनलैण्ड के बर्फीले भागों या बर्फबारी (Snowfall) के बर्फ में सीसा की मात्रा में नाटकीय रूप से अत्यधिक वृद्धि पायी गई है, जो एक प्रमाण है।


Vvi.Q.2.शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के पर्यावरणीय समस्याओं का संक्षिप्त तुलना करें। (Briefly compare the environmental problems of urban and rural areas.)

Ans-

जिसके कारण अस्पतालों एवं डॉक्टरों के निजी क्लीनिकों से बड़े मात्रा में जैव औषधीय अवशिष्ट पदार्थों (bio-medical waste products) का निष्कर्षण होता है। अतः ऐसे अवशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन पर्यावरण के हित में अति आवश्यक है।

भारत जो कि तीसरी दुनिया में से एक है उसमें भी शहरीकरण योजनाबद्ध तरीके से नहीं हुआ है जिसके कारण कई प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं की उत्पत्ति होने लगी हैं। इन समस्याओं में, विशेषकर, पीने लायक पानी की कमी, कूड़ा कचरा तथा नालियों के गंदे जल के निष्पादन की समस्या प्रमुख है। इसी प्रकार की अन्य अनेक समस्याएँ हैं जो देश के नागरिकों से सम्बन्धित हैं। परिणाम यह हुआ है कि शहरी जीवन आजकल अस्वास्थ्यकर हो गया है। शहरी लोगों को वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं जल प्रदूषण आदि का सामना करना पड़ रहा है।

विगत 30 वर्षों में वैश्विक कृषि (Global agriculture) ने भोजन के उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है। दुनिया की जनसंख्या कई गुना बढ़ गयी है। इसके साथ ही खाद्यान्न का उत्पादन भी तीव्र गति से बढ़ा है जिससे 1.5 खरब (बिलियन) अतिरिक्त लोगों को भोजन दिया जा सकता है। विकासशील देशों में यह आमदनी महत्वपूर्ण है। विकासशील देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, ब्राजील, मैक्सिको आदि देशों में सन् 1962 में प्रति व्यक्ति भोजन का वितरण 2000 कैलोरी प्रतिदिन से बढ़कर सन् 1995 में 2500 कैलोरी प्रतिदिन तक पहुँच चुका था। इसका कारण अच्छे बीज, खाद, सिंचाई के उत्तम साधनों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पादन में इतनी तेजी से वृद्धि भी है। विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं जो अपने खाद्यान का कुछ भाग समुद्र में डुबाकर नष्ट कर देते हैं। विकासशील देशों में उत्पादित पठार (Yield Plateau) या उत्पादित शिथिलता (Yield stagnation) की पहचान गेहूँ, धान (चावल), ज्वार-बाजरा के सन्दर्भ में किया गया है। दुर्भाग्यवश 800 मिलियन लोग आज भी कुपोषण के शिकार हैं जिनमें 200 मिलियन बच्चे शामिल हैं। उच्च फलनशील प्रजाति के धान और गेहूँ उत्पन्न करने के लिए विकासशील देशों में अधिक ऊर्जा, जल, रासायनिक खाद और फसलों की सुरक्षा के लिए रसायनों की आवश्यकता होती है। फसलों की सुरक्षा के लिए प्रयोग में लाए गये रसायनों ने मिट्टी की गुणवत्ता को बदल दिया है जिसके दुष्परिणाम पर्यावरण के परिवर्तन में देखे जा रहे हैं। फसलों की सुरक्षा के लिए जो रासायनिक यौगिकों का उत्पादन कृत्रिम रूप से बड़े पैमाने पर होता है, उससे फसलों की बेहतर उत्पादन क्षमता खर-पतवार को नष्ट करके ही विकसित होती है। इन रसायनों का उपयोग सेव, आम, संतरा आदि फलों के बगानों में कीटों तथा फलों को नुकसान करने वाले जन्तुओं से बचाने के लिए किया जाता है।

यह भी देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में कृषि कार्यों से बड़े पैमाने पर अवशिष्ट पदार्थों का निष्कर्षण होता है। विकासशील देशों जैसे भारत में कृषि से 36 से 44 प्रतिशत अवशिष्ट पदार्थों का निष्कर्षण होता है। मवेशियों के गोबर से बायोगैस तैयार हो रहा है एवं इसके बनने के बाद गोबर गैस प्लांट (Gobar Gas Plant) से जो पदार्थ मुक्त होता है उसका प्रयोग खेतों में उर्वरक के रूप में किया जाता है। मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम कर जैविक खाद्य के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। गाँवों के तुलना में शहर बहुत अधिक प्रदूषित है। भारतीय औषधि अनुसंधान परिषद द्वारा सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ है कि पशुओं के दूध में DDT तथा दूसरे कीटनाशक के अंश पाये जाते हैं। इसी प्रकार अनाज तथा फलों में शीशा, ताम्बा, जस्ता, कैडमियम और आर्सेनिक के अंश उपस्थित रहते हैं। इनके उपयोग से कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा होती हैं।


Vvi.Q.3.जल प्रदूषण क्या है ? इसके स्रोत, कारण एवं प्रभाव का वर्णन करो। (What is water pollution ? Discuss its sources, causes and effects.)


Ans. जल प्रदूषण (Water pollution) : जल के जैविक, भौतिक एवं रासायनिक गुणों में वैसे अनुचित परिवर्तन जो मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक हो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।

जल प्रदूषण के स्रोत (Sources of Water Pollution) : प्रदूषण के उद्गम (Origin of Pollutants) के आधार पर जल प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में बाँटा जाता है।

1. Point Source : वैसे स्रोत जिसके द्वारा प्रदूषक को निश्चित स्थान से सीधे नदियों में गिराया जाता है, उस स्रोत को Point Source कहते हैं। जैसे उद्योगों से निकला अपशिष्ट पदार्थ सालों भर नदियों में गिराया जाता है।

2. Non-point source : वैसे स्रोत जिसका कोई निश्चित स्थान नहीं है और प्रदूषक किसी भी रास्ते से नदियों में चला जाता है उसे Non-point source कहते हैं। जैसे वर्षा के समय प्रदूषक वर्षा के जल के साथ नदियों में प्रवाहित हो जाता है।

जल प्रदूषण के कारण (Causes of water pollution) : जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण है : 

1. घरेलू मल-जल (Sewage) :प्रायः सभी शहरों में पानी बहने के लिए नालियाँ बनी होती हैं। सभी घरेलू नालियाँ बड़ी-बड़ी नालियों में मिलती है। ये बड़ी नालियाँ शहर के किनारे बहती स्वच्छ जल की नदियों में गिरायी जाती है। इन • नालियों से सभी घरों के सड़े हुए फल, तरकारियाँ, रोटी, चावल आदि के साथ-साथ साबुन, सोडा, सर्फ में घुले कपड़ों के प्रैस, घर के कूड़े-कचड़े यहाँ तक कि छोटे-छोटे बच्चों के पाखाने-पेशाब भी नदियों में चले जाते हैं। इन गन्दे पानी के गिरने से जल तो दूषित हो हो जाता है साथ ही जल में ऑक्सीजन का अभाव भी हो जाता है। हाल में ही शोध कार्यों से यह पता है कि गंगा आदि बड़ी बड़ी नदियों के किनारे बसे शहरों की गन्दगी से किनारे का जल पीने योग्य नहीं रहा। चला


2. औद्योगिक गन्दगी (Industrial Wastes): देश में बढ़ते हुए बड़े-बड़े कारखाने भी प्रदूषण में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। कलकत्ता, कानपुर, दिल्ली, मुम्बई आदि औद्योगिक नगरों में अनेक बड़े-बड़े कारखाने हैं। इन कारखानों से निकले अपशिष्ट वर्ज्य पदार्थ (Waste products) बड़ी-बड़ी नालियों में बहाये जाते हैं जिससे वे नदियों में चले जाते हैं और नदियों के जल को दूषित कर देते हैं। बोकारो स्टील के कारखाने का अवशिष्ट पदार्थ दामोदर नदी में गिराया जाता है जिससे उसके जल में अमोनियम साइनाइट, फिनॉल, क्रोमेट तथा नेपथलीन जैसे विषैले पदार्थों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ गयी है।


3. कच्चा तेल (Crude Oil) : कुछ साल पहले बरौनी तेल शोधक कारखाने का कच्चा तेल गंगा नदी में गिरा दिया गया था जिसके कारण नदी में आग लग गयी जो चार-पाँच घंटे तक जलती रही। इससे सिर्फ गंगा का जल ही दूषित नहीं हुआ, बल्कि उसके जीव-जंतु भी काफी संख्या में मर गए।


4. कीट नाशक (Pesticides) : किसान भाई अपने खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। ये सभी रासायनिक कोटनाशक जैसे- DDT वर्षा के जल के साथ घुल कर नदियों में चले आते हैं जिससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। 5. विघटनाभिक पदार्थ (Radioactive substances): बहुत से विकसित देश जैसे अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि के समुद्रों में कई रेडियोएक्टिव परीक्षण किए गए जिससे समुद्र का पानी दूषित हो गया। उनके जल में रेडियोएक्टिव न्यूक्लाइड्स जैसे स्ट्रान्सियम (Strontium-90), सीसियम (Caesium-137) आदि घातक पदार्थों की मात्रा बहुत बढ़ गई। समुद्री मछलियाँ इनसे प्रभावित होती हैं।


6. गर्म जल (Hot water) : पावर स्टेशन से गर्म जल को नदियों में प्रवाहित किया जाता है जिससे नदियों के जल का तापमान बढ़ जाता है। इस घटना को (Thermal pollution) भी कहते हैं।


जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of water pollution) : जल प्रदूषण जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को प्रभावित करता है। जल प्रदूषण का जल पर प्रभाव निम्नलिखित है


1. जल की पारदर्शिता पर (On transparency of water) : जल की पारदर्शिता जल के गंदेपन (turbidity) पर आधारित है। जो जल जितना अधिक गंदा होगा उसकी पारदर्शिता उतनी ही कम होगी। जल की पारदर्शिता कम होने से सूर्य का प्रकाश जल की गहराइयों तक नहीं पहुँच पाता है जिससे जलीय पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं हो पाती है। 

2. घुलित ऑक्सीजन पर (On dissolved oxygen) : कार्बनिक तथा अकार्बनिक अवशिष्ट पदार्थ जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को कम करता है। घुलित ऑक्सीजन के आधार पर जल को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है। 

(a) Normoxic water : जब जल में ऑक्सीजन की मात्रा 6 से 7ppm होता है तो ऐसे जल को Normoxic water कहा जाता है।

 (b) Hypoxic water : जब जल में ऑक्सीजन की मात्रा 6ppm से कम हो तो ऐसे जल को Hypoxic water कहा जाता है। सभी प्रकार के प्रदूषित जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है।

(c) Hyperoxic water : जब जल में ऑक्सीजन की मात्रा 7ppm से अधिक हो तो वैसे जल को Hyperoxic water कहते हैं। बहते हुए जल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है।


Vvi.Q.4.ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा दो। ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव क्या हैं ? ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए किन्हीं चार उपायों का उल्लेख करें। (Define Noise pollution. What are the effects of Noise pollution ? Mention four probable measures to minimise Noise pollution.)


Ans. परिभाषा:- वह अवांक्षनीय ध्वनि (Unwanted sound) जो जीवों के व्यवहार एवं उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है। या जो ध्वनि कर्णप्रिय नहीं हो उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। 

ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव (Effect of Noise pollution) : ध्वनि प्रदूषण का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है:-


(a) श्रवण शक्ति पर : ध्वनि प्रदूषण का सबसे स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे श्रवण शक्ति पर पड़ता है जिससे मनुष्य में बहरापन (deafness) हो जाता है। बहरापन का पता audiometer से किया जाता है।

 बहरापन दो प्रकार के होते हैं :- (i) अस्थायी (Temporary) एवं (ii) स्थायी (Permanent)

यदि कोई अधिक समय तक ज्यादा तीव्रता वाले ध्वनि में रहता है तब स्थायी बहरापन हो जाता है।

(b) रक्तचाप पर (On blood pressure) : तेज हानिकारक ध्वनि से रक्तचाप बढ़ जाता है एवं हृदय में गंभीर रोग उत्पन्न हो सकता है।

(c) मानसिक तनाव पर (On mental tension) : अगर कोई मनुष्य आठ घंटे तक 80 डेसीबल की तीव्रता वाले ध्वनि में रहता है या काम करता है तो वह तनावमय जीवन जीने लगता है एवं हमेशा उसके शरीर में आपातकालीन हार्मोन (Emergency hormone) का स्तर बढ़ा रहता है। मानसिक तनाव के बढ़ने से धमनी एवं शिरा सिकुड़ जाती है तथा अमाशय की अम्लता बढ़ जाती है।

(d) जैव रसायनों में परिवर्तन होने पर (On biochemical change) : शोध से यह सिद्ध हुआ है कि जब कोई मनुष्य चार घंटे तक 150 डेसीबेल की तीव्रता में काम करता है या रहता है तो उसके शरीर के जैव-रसायनों के स्तर पर प्रभाव पड़ता है। जैसे उनके शरीर में कोलेस्टरोल (Cholesterol) का स्तर सामान्य स्तर से बढ़ जाता है साथ ही शकरा का स्तर भी बढ़ता है। ध्वनि प्रदूषण से लार भी अधिक स्रावित होता है।

(e) मस्तिष्क स्वास्थ्य पर (On mental health) : बहुधा कारखानों से निकली हुई ध्वनि, जेट विमानों की ध्वनि, मोटर र-ट्रक से निकली ध्वनि या नगरों में हर समय लाउडस्पीकर से निकलती ध्वनि जब सहनशक्ति के बाहर होती है तब यह मस्तिष्क को उत्तेजित करती है एवं स्मरण (Memory) से तो विद्यालय के छात्रों में सीखने की क्षमता कम होती है।


ध्वनि प्रदूषण का उपचार या नियंत्रण (Remedies or control of Noise pollution) : WHO के रिपोर्ट के अनुसार सभी प्रकार के प्रदूषणों में ध्वनि प्रदूषण का नियंत्रण सबसे आसान है। सिर्फ आवश्यकता है लोगों में जागरूकता पैदा करने की।


ध्वनि प्रदूषण निम्नलिखित विधि द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है :


1. ध्वनि प्रदूषण के बारे में लोगों में अधिक से अधिक जागरूकता पैदा किया जाय ताकि लोग स्वयं ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित कर सकें।


2. पेड़-पौधे भी ध्वनि के प्रभाव को कम करते हैं एवं ध्वनि को ऊपर वायुमण्डल में उड़ा देते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम हरे पौधों को अपने मकान के चारों तरफ अधिक से अधिक संख्या में लगाएं ताकि वातावरण में न केवल दूषित पदार्थ का प्रभाव कम हो अपितु ध्वनि का भी प्रभाव कम हो जाय।


3. सघन आबादी वाले गाँवों एवं शहरों के बीच जगह-जगह पर खुला स्थान या मैदान छोड़ना चाहिए जिससे ध्वनि प्रदूषण कम हो सके।


4. उत्सवों, चुनाव प्रचारों, पूजा-पाठ, समारोहों आदि में ध्वनि प्रसारक यंत्रों का प्रयोग मानक स्तर तक ही करना चाहिए जिससे आस-पास की जनसंख्या को किसी प्रकार की परेशानी न हो।


5. उच्च तीव्रता वाले ध्वनि में काम करने वाले लोगों को चाहिए कि वह कर्ण-सुरक्षक (Ear-protector) का प्रयोग करें। इससे ध्वनि की तीव्रता हमारे दोनों कानों में कम पहुँचती हैं। कर्ण-सुरक्षक के प्रयोग से ध्वनि की तीव्रता लगभग 5 dB से 10 dB तक कम हो जाती है। 



Vvi.Q.5.पर्यावरण में ओजोन छिद्र के प्रभाव का वर्णन करो। (Discuss the effects of ozone hole in environment.)


Ans. ओजोन क्षरण का परिणाम (Consequences of Ozone depletion) : ओजोन परत इस धरातल पर जीवन के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है। इसके क्षय से सूर्य से विकरित पराबैगनी किरणों की अधिक मात्रा पृथ्वी पर पहुँचने लगेगी, जिससे वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि होगी एवं प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया भी बंद हो जाएगी। इसका प्रभाव सभी जीव-जंतुओं के पोषण, ऑक्सीजन की कमी, हिमनद का पिघलना, समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि आदि रूपों में देखने को मिलेगा।

पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव का परिणाम मनुष्यों, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों एवं पदार्थों पर भी पड़ेगा।


(a) मानव स्वास्थ्य (Human health) : पराबैगनी किरणें त्वचा में कैन्सर (Skin cancer) रोग उत्पन्न करती हैं। कई क्षेत्रों में इन किरणों के कारण मेलानोमा (Melanoma) नामक विशेष त्वचीय-कैंसर रोग देखने को मिलता है, जो बहुत ही कम लोगों को होता है। किन्तु यह एक जानलेवा रोग है। इसके कारण लोगों की मृत्यु तक होती है। यह रोग उन क्षेत्रों के लोगों में होता है, जहाँ पराबैगनी किरणें अधिक मात्रा में पहुँचती हैं।

इसके अलावा मोतियाबिन्द (Cataract), प्रजनन क्षमता में कमी एवं रोग निरोधक क्षमता (Immunity) में कमी होती है। 

(b) घरातलीय पौधे (Terrestrial plants) : पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव से पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है। प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) क्रिया मन्द हो जाती है। इससे फल, फूल एवं बीज कम उत्पन्न होते हैं। पौधों के रासायनिक संरचना में परिवर्तन होने लगता है जिससे भोज्य पदार्थों की गुणवत्ता में कमी हो जाती है और मानव तथा पशु-पक्षियों के भोजन में कमी आ जाती है ।


(c) जलीय पारिस्थतिकतंत्र (Aquatic ecosystem) : पराबैगनी किरणों की मात्रा में वृद्धि के कारण छोटे-छोटे जलीय जीवधारियों का निश्चित रूप से विनाश हो सकता है। जल में तैरने वाले छोटे- छोटे जन्तु (Zooplanktons), केकड़ों के लार्वा (Larval crabs) नष्ट हो सकते हैं। छोटी-छोटी मछलियों की मृत्यु हो जाएगी, जिससे मछलियों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इनसे प्राप्त होने वाले भोजन, औषधि, तेल आदि के उत्पादन में कमी आएगी।


(d) जलवायु (Climate) : ओजोन परत (Ozone layer) के बिना समताप मण्डल (Stratosphere) की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतः समताप मण्डल में स्थित ओजोन परत में कमी से क्षेत्रीय तापमान में अचानक वृद्धि हो जाएगी। इसका असर वहाँ की जलवायु पर भी पड़ेगा। अतः जलवायु में परिवर्तन हो जाएगा। समताप मण्डल में स्थित ओजोन परत उस क्षेत्र को ठण्डा रखने में सहायता करती है एवं वायुमण्डल के तापमान में कुछ कमी लाने में सहायक है।


V.i.Q-6.वैश्विक उष्णता किस प्रकार हरित गृह प्रभाव से संबंधित है ? (How is "Global warming" related to "greenhouse effect"?)


Ans. हरित गृह प्रभाव एवं वैश्विक उष्णता (Green House effect and Global warming) : हम जानते हैं कि सूर्य से विकिरण के फलस्वरूप प्रकाश तथा उष्मा पृथ्वी पर पहुँचती है। अर्थात् पृथ्वी का वायुमण्डल सूर्य से होनेवाली विकिरण के लिए पारदर्शक है, किन्तु पृथ्वी से उष्मा का विकिरण नहीं हो पाता है। अर्थात् पार्थिव विकिरण के लिए एक पारदर्शक (opaue) आवरण की तरह कार्य करता है। इस प्रकार वायुमण्डल धरातल के तापक्रम को ऊँचा बनाए रखने में सहायता प्रदान करता है। वायमुण्डल के इस प्रभाव को हरित गृह प्रभाव (Green House Effect) कहते हैं। हरित गृह प्रभाव एक ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसमें मनुष्य अपनी सामर्थ्य से परिवर्तन ला सकता है या इसे बदल सकता है।


छोटी (कम) तरंग की लम्बाई के विकिरण को वायुमण्डल आसानी से गुजरने देता है, किन्तु पार्थिव दीर्घ तरंगों का विकिरण गर्म धरातल से नहीं हो पाता है। इसका कुछ भाग बातावरण में उपस्थित सूक्ष्म गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। इन सूक्ष्म गैसों (Trace gases) को ही हरित गृह गैसें (GHG's) कहा जाता है। मुख्य प्राकृतिक हरित गृह गैसों (GHG's) में कार्बन डाइऑक्साइड , मिथेन , नाइट्रस ऑक्साइड , जलवाष्प, एवं वायुमण्डलीय ओजोन आदि हैं जो समताप मण्डल में उपस्थित हैं। विगत दशकों में मानवीय क्रियाकलापों द्वारा नई हैलो फ्ल्युरो कार्बन गैसें HFC'S भी हरित गृह गैसों (GHG's) में शामिल हो गई हैं।


सूर्य से आने वाली विकिरण के लिए वायुमण्डल पारदर्शी है, किन्तु पार्थिव विकिरण से निकलने वाली उष्मा को अवशोषित करती है। फलत: हरित गृह प्रभाव (Green House Effect) उत्पन्न होता है। ब्रह्माण्ड की रचना के समय से ही यह प्रभाव प्राकृतिक रूप से होता रहा है। किन्तु बीसवीं शताब्दी से ही इस प्रभाव में मनुष्यों के क्रिया-कलापों द्वारा वृद्धि हो रही है, जो प्राकृतिक सामंजस्य को अस्थिरता प्रदान कर रही है। विभिन्न सूक्ष्म गैसें (Trace gases) जो वायुमण्डल में विद्यमान हैं, वे भी हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। इन सूक्ष्म गैसों में चार गैसे प्रमुख हैं, जो हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करने में सबसे अधिक सक्षम हैं। ये चार गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरो फ्ल्युरो कार्बन्स (CFC), मिथेन, एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx) हैं।


Lesson-4


ऊर्जा


Vvi.Q.1.गैर-पारंपरिक ऊर्जा संशाधनों का उल्लेख करो। ऊर्जा की वर्तमान अवस्था और पर्यावरण पर इसके प्रभाव का वर्णन करो। (Write about the non-conventional energy sources. Discuss the present state of energy and its influence on the environment.)

Ans.ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोत (Non-conventional sources of energy): गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के तात्पर्य उन स्रोतों से है जिनकी खोज अभी हाल में हुई है, जैसे सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा आदि। 

ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोतों के महत्त्व (Importance of Non-conventional sources of energy)

 (i) ये संसाधन कभी समाप्त न होने वाला प्रवाहमान संसाधन है। अतः इनका कितना भी उपयोग क्यों न हो ये समाप्त नहीं हो सकते हैं।

 (ii) गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधन भविष्य के संसाधन माने जाते हैं क्योंकि परम्परागत संसाधन बहुत दिनों तक साथ नहीं दे सकते।


(iii) गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधन प्रदूषण नहीं फैलाते, अपितु प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं। अत: पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इनका विकास आवश्यक है। 

 (iv) गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधनों का उपयोग होने पर परम्परागत शक्ति संसाधन भविष्य के लिए सुरक्षित रह सकते हैं।


(v) गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधन प्रकृति के द्वारा मानव को निःशुल्क दिये गये हैं।

 गैर-पारम्परिक ऊर्जा के स्रोतों की व्याख्या नीचे की जा रही है :


सौर ऊर्जा (Solar Energy): भारत उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। अतः विश्व के औसत से अधिक सौर ऊर्जा भारत को प्राप्त होती है। सूर्य से पृथ्वी तक जो ऊर्जा पहुँचती है, उसका परिमाण बहुत अधिक होता है। एक घंटे में सूर्य पृथ्वी को इतनी ऊर्जा देता है जिसका उपयोग हम एक वर्ष तक कर सकते हैं। ऊर्जा की इस विराट मात्रा को यदि बाँधकर रखना संभव होता तो मानवजाति को ऊर्जा के किसी और स्रोत व आवश्यकता ही नहीं पड़ती। वर्तमान समय में सौर ऊर्जा का प भाग ही हम उपयोग में लाने में समर्थ हैं। उष्ण प्रदेशों में स्वच्छ आकाश के समय दिन में kwm–² से अधिक ऊर्जा दोपहर के समय पृथ्वी को प्राप्त होती है। प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा को विभिन्न उपायों से उपयोग में लाया जा सकता है :


(a) क्रियाशील सौर्य उष्मा एवं शीतल प्रौद्योगिकी (Active Solar heating and cooling technologies) : सौर ऊर्जा से जल को गर्म किया जाता है एवं गर्म जल को पंपों या मोटरों की सहायता से दूसरे स्थानों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। सौर ऊर्जा के जल गर्म करने की अधिकांश व्यवस्थाओं में मुख्य दो भाग होते है- 'सौर संग्राहक और 'भंडार टंकी'। सौर संग्राहक जल को गर्म करता है फिर गर्म जल को पंपों या मोटरों के सहायता से 'भडार टंकी' में पहुंचाया जाता है। 'चपटी प्लेट वाला संग्राहक' एक साधारण प्रकार का संग्राहक होता है। यह एक आयताकार बक्सा है जिसे सूर्य की ओर समतल छत के ऊपर रखा जाता है। बक्से में धातु की नलियाँ होती हैं जो कि उष्मा को ग्रहण कर जल को भी गर्म कर देती है। सूर्य की उष्मा ग्रहण करने के लिए अवशोषक प्लेटें लगी होती है जिनका रंग काला होता है। इसका उपयोग घरेलू कामों के लिए गर्म जल उपलब्ध करने के लिए किया जाता है। इजराइल के लगभग 80 प्रतिशत घरों में जल गर्म करने के लिए सौर हीटर का प्रयोग किया जाता है।


(b) अप्रत्यक्ष सौर तापन- शीतलन एवं प्रकाश तकनीक (Passive Solar heating cooling and daylighting technology): इस तकनीक का उपयोग मोटर, पम्प आदि को चलाने में नहीं किया जाता है। इसकी उपयोगिता भवनों के अच्छे नक्शों (Good building design) पर आधारित होता है। एक सौर मकान या भवन की रूपरेखा ऐसी होती है दक्षिण की ओर बड़ी-बड़ी काँच की खिड़कियाँ होती हैं जो सूर्य की उष्मा को संग्रह करती हैं। सौर भवन में दक्षिण की तरफ सूर्य स्थल (Sun spaces) बनाए जाते हैं जो उष्मा अवशोषकों का कार्य करते हैं। इनके फर्श टाइलों एवं ईंटों के बने होते हैं जो दिन में गर्मी अवशोषित करते रहते हैं तथा रात को ठण्ड बढ़ने पर धीरे-धीरे उष्मा विकिरण करते हैं। ऊर्जा समर्थ (Energy efficient) घरों में इसका उपयोग मौसम ठंडा हो तो भवन को गर्म करने एवं गर्मी के दिनों में ठंडा करने के लिए किया जाता है।


(c) सौर कूकर (Solar Cooker) : विभिन्न प्रकार के सोलर कूकर का निर्माण हो रहा है। जैसे बाक्स सोलर कूकर, डिस सोलर कूकर, कार्ड बोर्ड सोलर कूकर, कम्युनिटी सोलर कूकर और सोलर स्टीम कुकिंग सिस्टम। हमारे देश में सोलर कूकर का उपयोग प्रचुरता से किया जा रहा है।


सोलर कूकर धातु का बना एक बक्सा होता दिन के समय सूर्य से उष्मा ग्रहण करने तथा गर्मी बनाए रखने के लिए यह भीतर से काला होता है। इसका ढक्कन एक परावर्तक सतह (Reflective surface) होता है जो सूर्य की गर्मी को परावर्तित कर बक्से में भेजता है। बक्से में काले रंग के बर्तन होते हैं जिसमें पकाने के लिए भोजन सामग्री रखी जाती है। 

(d) सौर विलवणीकरण (Solar desalination) : सौर विलवणीकरण (Solar desalination) को सौर स्टील भी कहा जाता है। इसके द्वारा समुद्री जल से मीठा पेय जल प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि में सूर्य से प्राप्त उष्मा जल को वाष्पीकृत कर देता है और अवशेष के रूप में कुछ नमक बचा रहता है। जलवाष्प सतह पर संघनित हो जाता है और एक संग्राहक पात्र में स्वच्छ पीने योग्य जल के रूप में संग्रह कर लिया जाता है।


खाने योग्य साधारण नमक के उत्पादन के लिए इसी पद्धति के सौर विलवणीकरण का उपयोग दीर्घ काल से होता आ रहा है। इस पद्धति में सौर उष्मा का उपयोग समुद्र के जल को वाष्पीकृत करने में होता है, जिससे सोडियम क्लोराइड, अन्य लवण तथा पेय जल उत्पन्न होता है।


(e) फोटो वोल्टीय तकनीक (Photo voltaic technique) : फोटो वोल्टीय तकनीक एक ऐसा तकनीक है जिसमें सोलर सेल की सहायता से सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। सोलर सेल डी० सी० विद्युत (Direct Current or D.C.) का निर्माण करता है जिसका उपयोग बैटरी चार्ज करने में किया जा रहा है। सोलर फोटोवोल्टीय पदार्थ (Photovolatic material) का बना होता है। फोटोवोल्टीय पदार्थ के उदाहरण मोनोक्रिस्टेलाइन सिल्कन, पोलीक्रिस्टेलाइन सिल्कन एवं एमोरफस सिलकन है जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं।


सर्वप्रथम अल्बर्ट आइन्सटीन (Albert Eistein) ने यह पता लगाया कि सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्म कण फोटोन (Photon) होते हैं । जब Photon फोटोवोल्टीय पदार्थ पर गिरता है तो इसे उत्तेजित कर देता है जिसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन्स अपने जनक (Mother atom) से अलग हो जाते हैं एवं विद्युत के रूप में प्रवाहित होते हैं। सौर बिजली के विकास में भारत विश्व में चौथा स्थान रखता है।




Vvvi. Q.2

भारत में गैर-पारंपरिक ऊर्जा की वर्तमान अवस्था एवं भावी संभावना की चर्चा करो। (Discuss the present status and future prospects of non-conventional energy source in India.)


Ans. गैर-परंपरागत ऊर्जा के स्रोत (Non-Conventional Source of Energy): परंपरागत शक्ति के साधनों की तुलना में गैर-परंपरागत ऊर्जा के स्रोत प्रवाहमान हैं एवं प्राय: प्रदूषण मुक्त हैं। इन्हें परिवर्धनीय शक्ति का साधन भी कहा जाता है। ये निम्नलिखित हैं.


1. सौर ऊर्जा (Solar Energy) : गैर परंपरागत या वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत के रूप में सूर्य एक ऐसा असीमित प्रकाश भंडार है जो पृथ्वी के अस्तित्व के साथ निरंतर प्रति क्षण अपनी 40 लाख टन हाइड्रोजन को खर्च कर हीलियम में परिवर्तित करके प्रकाशपुंज बना हुआ है तथा विशाल ऊर्जा उत्पन्न कर रहा है। इस विशाल ऊर्जा का कुछ भाग विकिरण द्वारा पृथ्वी तक पहुँचता है जिसका उपयोग उपकरणों (सौर पैनलों) की सहायता से ताप ऊर्जा तथा विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है।


2.जल शक्ति (Hydel Power): जल शक्ति एक प्रवाहमान शक्ति का साधन है। जल को ऊपर से नीचे टरबाइन पर गिराने से जेनरेटर को चालू कर विद्युत उत्पादन किया जाता है, जिसे जल विद्युत कहा जाता है। अधिकतर स्थानों पर जहाँ पानी स्वतः ही ऊंचाई से गिरता है वहाँ इसका उत्पादन आसान होता है तथा जहाँ कृत्रिम बांधों का निर्माण किया जाता है, वहाँ खर्च अधिक आता है।

 

भारत में जल विद्युत उत्पादन की पर्याप्त संभावना है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में 41 मिलियन किलोवाट विद्युत का दैनिक उत्पादन किया जा सकता है। भारत में जल-शक्ति उत्पादन की कई परियोजनाएं हैं जिनमें दामोदर परियोजना, भाखरा नांगल परियोजना, हीराकुड परियोजना आदि प्रमुख है। इसके अलावे हमारे देश में जल उत्पादन की छोटी-छोटी और भी कई परियोजनाएँ है।


जल विद्युत के प्रयोग से कई सुविधाएँ है। जैसे यह सबसे स्वच्छ तथा परिवर्धनीय है। इसकी उत्पादन लागत कम है। इनका जहाँ उत्पादन होता है ये अधिकांशतः बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं हैं। जल शक्ति कभी भी समाप्त न होनेवाली ऊर्जा संसाधन का स्रोत है।


3. पवन ऊर्जा (Wind energy) यह एक गतिज ऊर्जा (Kinetic enegy) है जो सामान्य बहती हुई वायु में उत्पन्न जाती है। यद्यपि इसका उपयोग सैकड़ों वर्ष कुआँ से पानी निकालने, जहाजों के संचालन, अनाज पीसने तथा अन्य का किया जाता था। लेकिन इधर कुछ दशकों पूर्व से इसके द्वारा बिजली उत्पन्न करके ऊर्जा के रूप में उपयोग किया जा है। विंड मिलों में वायु द्वारा उत्पन्न गतिज ऊर्जा का उपयोग केओ से पानी खीचने के लिए किया जाता है। वायु से उत्पन्न करने के लिए वायु की गति 18-20 किलोमीटर प्रति घंटा आवश्यक होता है, जिससे वायु ऊर्जा को विद्युत ऊर्ज बदला जाता है। वायु ऊर्जा भी प्रदूषण मुक्त है। इसमें किसी प्रकार के रख-रखाव पर कोई व्यय नहीं है। हमारे देश में ऊर्जा से विद्युत उत्पादन 46,000 मेगावट तक संभव है, जबकि वर्तमान समय में केवल 1080 मेगावाट का ही उत्पादन के रहा है जो कुल ऊर्जा की माँग का 1% से भी कम है। कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा के समुद्र किनारों पर इसके ज्यादा सफल होने की संभावन है। वर्तमान समय में सबसे अधिक वायु ऊर्जा उत्पन्न करने वाला राज्य आंध्र प्रदेश है।


4. भूगर्भिक ऊर्जा (Geothermal energy): पृथ्वी के अंदर चट्टानों के नीचे कई ऐसे स्थल है जहाँ अत्यधिक है और यह ताप कभी गर्म पानी के स्रोतों के रूप में और कभी ज्वालामुखी फटने के समय गर्म लावा के रूप में निकलता है। इस ताप को ऊर्जा के रूप में प्रयोग किये जाने का प्रयास पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है और सफलतापूर्वक विद्युत उत्पन्न करने अथवा शीत भंडारण (Cold Storage) चलाने हेतु उपयोग किये गए है। विश्व के तमाम हिस्से जो ज्वालामुखी क्षेत्र में आते हैं, इस प्रकार की ऊर्जा के उत्पन्न करने के अच्छे केन्द्र बन सकते हैं, जिनमें प्रशांत महासागर के तटीय भाग, अलास्का से चिली तक, न्यूजीलैण्ड से इन्डोनेशिया तथा जापान तक, केन्या, युगान्डा, इथियोपिया तथा भूमध्यसागर के आस-पास के क्षेत्र विशेष रूप से आते हैं। भारत में लगभग 350 ऐसे क्षेत्रों की जानकारी मिली है, जहां से भूगर्भिक ऊर्जा से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। उत्तर-पश्चिम हिमालय, पश्चिमी घाट, नर्मदा व सोन घाटी और दामोदर घाटी के क्षेत्र में इस ऊर्जा के असीम भंडार हैं।


5. ज्वारीय ऊर्जा (Tidal energy) : यह ऊर्जा समुद्र में उठने वाले ज्वार के चढ़ने और उतरने की क्रिया से हो प्राप्त प्रात की जा सकती है और इस प्रकार के ऊर्जा का उत्पादन विश्व के कई देशों ने किया है जिसमें चीन व रूस प्रमुख है। में कच्छ और खंभात की खाड़ी तथा सुन्दरवन क्षेत्र (हुगली नदी के किनारे) में ज्वारीय ऊर्जा से शक्ति उत्पादन संभव है। लक्षद्वीप तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में भी संभावनाएँ हैं। इस प्रकार की ऊर्जा की विशेषता यह है कि यह प्रदूषण रहित है चाहे थोड़ी मात्रा में हो, पर अनंत है और कालांतर तक मिलने वाली है।


6. तरंग ऊर्जा (Wave energy): अब तक सैद्धांतिक रूप से केवल जानकारी रखनेवाले देश भारत ने अपना पहल लहरों से ऊर्जा परिचालन के संचालन में सफलता प्राप्त कर विश्व में अपनी प्राथमिकता दर्ज कराई है। 

इस ऊर्जा के प्रमुख लाभ हैं:-

1. इससे किसी प्रकार के प्रदूषण की संभावना नहीं है।

2. यह निरंतर चलनेवाली लहरों के संचालन पर आधारित है। अतः इससे वर्ष भर ऊर्जा प्राप्त हो सकता है। 


7. जैव ऊर्जा (Biomass) : जैव ऊर्जा वह ऊर्जा है जो जैविक पदार्थ के दहन से प्राप्त होता है। यह मुख्य रूप से द भागों में विभक्त है- 

(i) लकड़ी एवं लकड़ी प्रसंस्करण से बचे अवशेष


(ii) जंतु वर्ज्य तथा कृषि अवशिष्ट, नागरीय वर्ज्य जैव ऊर्जा को विभिन्न तकनीकों द्वारा उष्मा, ईंधन (जो कि पेट्रोलिय तथा प्राकृतिक गैस का पर्याय है), और रासायनिक उद्योग के लिए कच्चे पदार्थों में बदला जाता है। यह पर्यावरणीय रूप स्वच्छ एवं वर्तमान में ग्रामीण अंचलों में ऊर्जा संकट का समाधान है। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 22425 मिलियन क्यूबिक मीटर जैव ईंधन का उत्पादन पशुओं के गोबर के ढेर से उत्पन्न होता है। जैव गैस के अतिरिक्त गोधर घोल से 206 मिलियन टन जैव खाद जो कि 104 मिलियन टन नाइट्रोजन आधारित खाद, 1.3 मिलियन टन फास्फोरस पेंन्टाक्साइड (फास्फेट के रूप में) तथा 0.9 मिलियन टन पोटाश की जगह खेतों में प्रयुक्त होता है। भारत में 1984 85 के दौरान 1,50,000 बायो गैस संयंत्र की स्थापना किया गया। वर्तमान में लगभग 3,30,000 बायो गैस संयंत्र कार्यरत हैं। भारत में 15-26 करोड़ ग्रामीण घरों में खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में बायो गैस का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैव ऊर्जा सस्ता एवं आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह एक पर्यावरण अनुकूलित ऊर्जा के विकल्प के रूप में व्यवहृत होता है। यह खास कर ग्रामीण अंचलों में व्यापक पैमाने पर परंपरागत ऊर्जा के रूप में प्रयुक्त हो सकता है। इससे सीमित मात्रा में विद्युत का उत्पादन होता है।


Vvi Q.3.जीवाष्म ईंधन के उपयोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन करो (State briefly the effects of use of fossil fuels on environment.)


Ans. जीवाष्म ईंधन का दोहन तथा पर्यावरण पर परिणाम (Fossil Fuel Harnessing and Environmental Consequences): वर्तमान समय में जीवाष्म ईंधन जैसे कोयला का समुचित उपयोग ही नहीं बल्कि इसका दोहन हो रहा है। वास्तव में आधुनिक उद्योगों का जन्म कोयले के सहारे हुआ है और उसी के सहारे ही ये उद्योग फल-फूल रहे हैं। कोयले ने ही संसार को भाप इंजन Steam engine दिया और भाप इंजन ने संसार के आर्थिक विकास में अद्भुत परिवर्तन दिया।


चूँकि कोयला ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है, अतः इसका दोहन जारी रहा तो आने वाले दिनों में कोयला का भंडार समाप्त हो जायेगा।


कोयले के खनन से पर्यावरण पर कई तरह का प्रभाव पड़ता है जो निम्नलिखित है 


(i) भूमिगत अवनति (Land degradation) : Open cast के दौरान कोयले के ऊपरी भागों से मिट्टी तथा चट्टान आदि को हटाया जाता है। इस कार्य के लिए भूमि के विस्तृत क्षेत्रों की आवश्यकता होती है जिसके कारण इस भूमि पर उगने वाली वनस्पतियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। अत: Open cast होने से भूमि का क्षय एवं भूमि की अवनति होती खदानों के आस-पास की भूमि बंजर होने लगती है।कोयला निकालने की दूसरी विधि सुरंग है। इस विधि में कोयला निकालने के लिए लम्बवत् सुरंग खोदना पड़ता है तथा भीतर तल में इसका विस्तार कर कमरे बनाए जाते हैं । इस विधि का दोष यह है कि कोयला निकालने के बाद यदि वहाँ बालू नहीं भरा जाता है तो ऊपर का जमीन धँस जाता है एवं जान-माल का भारी नुकसान होता है।


(ii) वायु प्रदूषण (Air pollution) : कोयलांचल में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण Suspended particulate matter (SPM), मिथेन, सल्फर डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड का मुक्त होना है। खदान से कोयला निकालने के समय एवं उसे एक दूसरे स्थान तक पहुँचाने में अनेकों प्रकार के मशीनरी यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी गशीनरी यंत्रों से वायु प्रदूषित होती है। यही कारण है कि कोयला खदानों के आस-पास के क्षेत्रों में लोगों को श्वसन से संबंधित व्याधियाँ होती हैं।


(iii) जल प्रदूषण (Water pollution) : खदानों से कोयला निकालने के बाद जो बेकार पदार्थ बच जाते हैं उन्हें आस पास की नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है जिससे जल प्रदूषित होती है एवं जल में अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। (iv) ध्वनि प्रदूषण (Noise pollution) : खदानों से कोयला निकालने के समय ब्लास्ट (Blast), एवं ड्रिलिंग (Drilling), किया जाता है जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है।


(v) जंगलों की कटाई (Deforestation) : Open cast project में कोयला के ऊपरी सतहों पर पड़े मिट्टी एवं चट्टानों को हटाया जाता है। अतः इसके लिए भूमि के ऊपरी सतहों पर जो भी पेड़ पौधे होते हैं उन्हें काटना पड़ता है।


VVi.Q.




Lesson-1

Vi.Q.पर्यावरण पर मानवीय क्रिया-कलापों के प्रभावों का वर्णन करो। (Discuss the impact of human activities on environment.)


Ans. पर्यावरण पर मानवीय क्रिया-कलापों का प्रभाव (Impacts of Human activities on Environment) :- पुरात्विक प्रमाणों के आधार पर लगभग 30 लाख वर्ष पूर्व अफ्रिका महादेश में सर्वप्रथम मानव होमो हैबिलिस (Homo habillis) की उत्पत्ति हुई। वे पत्थर के बने साधारण हथियारों और औजारों का उपयोग करते थे। लगभग 10 लाख वर्ष पहले एशिया तथा यूरोप महादेश में मनुष्य होमो इरेक्टस (Homo erectus) ने जनसंख्या वृद्धि प्रारम्भ किया। आधुनिक मानव प्रजाति होमो सेपिएन्स (Homo sapiens) की उत्पत्ति अफ्रिका में लगभग 13 लाख वर्ष पूर्व हुई थी। आधुनिक मानव ने अपनी जनसंख्या का विस्तार यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया आदि महादेशों में लगभग 4000 से 5000 वर्ष पूर्व किया। 3000 वर्ष पहले प्रथम मानव जो दक्षिणी गोलार्द्ध में रहना आरम्भ किया वह एशिया महादेश से विस्थापित होकर आया था।


आधुनिक मानव (Homo sapiens) कम से कम 60 हजार पीढ़ियों से पृथ्वी पर रह रहे थे। उस समय पृथ्वी पर जनसंख्या लगभग 600 मिलियन थी। 1700 ई० से अब तक जनसंख्या बढ़कर 6 खरब (बिलियन) हो गई है। विगत कुछ शताब्दियों में बढ़ती हुई जनसंख्या ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन प्रारम्भ कर दिया। आधुनिक मनुष्य की भौतिक तथा बौद्धिक क्षमता, और पारिस्थितिक तंत्र में उसकी स्थिति कई लाख वर्ष के क्रम विकास (Organic evolution) के फलस्वरूप हुई है। मनुष्य के क्रियाकलापों का वातावरण पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है।


1. भूमि (Land) : भूमि प्रकृति की निःशुल्क देन है। यह हमें भोजन एवं आवास प्रदान करती है। भूमि अधिक से अधिक उत्पाद (Products) प्रदान करता है जिसकी जरूरत हमें प्रतिदिन होती है। पृथ्वी पर मात्र 30% भूमि ही पायी जाती है। इस 30% भूमि में से 11% भूमि ही कृषि योग्य हैं एवं शेष भूमि मनुष्य के काम में नहीं आती है। विश्व की कुल जनसंख्या में से 16% जनसंख्या हमारे देश में पायी जाती है लेकिन हमारे पास मात्र 2.3% भूमि और 1.7% जंगल है जो जनसंख्या की तु में बहुत कम है। अधिक उत्पाद की चाह में मानव द्वारा व्यापक पैमाने पर रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। कल-कारखानों के द्वारा जो वर्ज्य पदार्थ निष्काषित होते है उसे भूमि पर बहा दिया जाता है जिससे मृदा प्रदूषित होती है।


2. जल (Water): हमारे जीवद्रव्य का मुख्य अवयव जल है। इस पृथ्वी पर जीवन का विकास भी जल से ही हुआ है। अतः जल हमारे दैनिक जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। जल का उपयोग पीने में, भोजन में, खेतों की सिंचाई में कल-कारखानों में किया जाता है, अर्था जल ही जीवन है। वर्तमान समय में जल की खपत कई गुना बढ़ गयी है। इस पु पर 97.5% जल नमकीन है। मात्र 2.5% जल ही मीठा है। मनुष्य के क्रिया-कलापों ने जल के भौतिक एवं रासायनिक गणे को भी प्रभावित किया है। भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से जल पाताल में चला गया है। कल-कारखानों से निकले। अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में प्रवाहित किया जाता है जिससे कि नदियाँ प्रदूषित हो रही है। वाहित मल के गिरने से में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और जलीय जन्तुओं, जैसे मछली को ऑक्सीजन का अभाव हो जाता है।


3. वायु (Air) : वायु की शुद्धता, सम्पूर्ण जैव समुदाय के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मानवीय किया-कलापों के द्वारा वायु प्रदूषित हो रही है। वायु प्रदूषण कई प्रकार से हो सकते हैं। इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि विभिन्न स्रोतों से निकली हुई गैसे वातावरण को हमेशा दूषित करती रहती हैं। दुनिया में लगभग एक बिलियन लोग दूषित वायु को साँस के रूप में ग्रहण करते हैं जिससे प्रतिवर्ष तीन मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण काल के प्रास हो जाते हैं। मानव द्वारा जंगलों के लगातार काटने से एवं ईंधनों के जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा वाय के बढ़ती जा रही है जो मानव जाति के लिए हानिकारक तो है ही, पर इससे और अन्य हानियाँ भी हैं ICO, गैस में सूर्य की इन्फ्रारेड किरणों को सोखने की क्षमता रहती है जो मनुष्य के लिए अनेक तरह से घातक है। वायु का जबर्दस्त प्रदूषण रेडियो एक्टिव पदार्थों, नाभिकीय हथियारों जैसे-परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, न्यूट्रॉन बम आदि के विस्फोटों से हो रहा है।


4. जंगल (Forest) : वन राष्ट्र की अमूल सम्पत्ति होते हैं जिनसे किसी भी देश को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। वैसे क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं उसे वन या जंगल कहते हैं। जंगल एक जैविक समुदाय है जहाँ वृक्षों, पौधों तथा छोटे पौधों का प्राकृतिक रूप से विकास होता है। जहाँ बीसवीं सदी के आरंभ में भारत की भूमि पर जंगल का क्षेत्र 30% था वह बीसवीं सदी के अन्त तक घटकर 19.4% हो गया। इसका मुख्य कारण मनुष्य अपनी जीविका एवं वास स्थान की सुविधा के लिए जंगलों का सफाया अंधाधुंध कर रहा है।


5. जैव विविधता (Biodiversity) : इस पृथ्वी पर अनेकों प्रकार के पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तु पाये जाते हैं। मनुष्य के क्रियाकलापों के द्वारा जैव विविधता प्रभावित होती है। लगभग 24% स्तनधारी, 12% पक्षी, 25% सरीसृप एवं 30% मछलियाँ मनुष्य के क्रिया-कलापों के द्वारा विलुप्त होने की स्थिति में हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण, जैव विविधता के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। मनुष्य अपने क्रिया-कलापों से वातावरण को प्रदूषित कर रहा है जिससे अनेकों वन्य प्राणी विलुप्त होने के कगार पर हैं। उदाहरण के तौर पर किसानों के द्वारा अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग करने से कौवे की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।


6. ऊर्जा (Energy): किसी भी देश के लिए ऊर्जा संसाधन आर्थिक व पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यनत महत्त्वपूर्ण होते हैं। वर्त्तमान समय में विकास का सम्पूर्ण ढाँचा ऊर्जा संसाधनों पर ही टिका हुआ है। पृथ्वी पर ऊर्जा खनिज संसाधनों कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, आणविक खनिज आदि से तथा भौतिक क्रियाओं ज्वार-भाटा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि से मिलती है। औद्योगिक उत्पादन तथा परिवहन ऊर्जा संसाधनों द्वारा ही सम्भव हो पाता है। जिन देशों के पास ऊर्जा संसाधनों का भण्डार है वे अमीर देश है। मध्य-पूर्व के देश पेट्रोलियम के बल पर ही साधन सम्पन्न बने हुए हैं।


वर्तमान समय में मनुष्य ऊर्जा की खपत अपने सुख-सुविधा के लिए व्यापक पैमाने पर कर रहा है। जीवाश्म ईंधन का प्रयोग दुनिया में इतनी तेजी से हो रहा है कि एक अनुमान के अनुसार इस सदी के अन्त तक जीवाश्म ईंधनप्रायः समाप्त हो जायेगे। 

7. वन्य जीवन (Wild life) : वन्य जीवन एक प्राकृतिक संसाधन (Natural resource) है जो पर्यावरण को संतुलित रखता है। वन्य जीवन का आर्थिक (Economic), सामाजिक (Social) एवं आध्यात्मिक (Spiritual) महत्व है। जानवर जो पालतू नहीं है तथा वैसी वनस्पतियाँ जिनकी खेती नहीं होती है, उन्हें वन्य जीवन (Wild life) कहा जाता है। मनुष्य के क्रिया-कलापों ने वन्य जीवन को भी प्रभावित किया है। वन (जंगल) वन्य प्राणियों का निवास स्थल है। वनों को लगातार कटाई होने से वन्य प्राणियों के जीवन पर संकट आ चुका है। हाल के दिनों में मानवीय क्रिया-कलापों के द्वारा भारतीय चीता विलुप्त हो चुका है। इसके अलावा शेर, बाघ, अजगर, गिद्ध आदि भी विलुप्त होने के कगार पर है।


Imp. Q.पर्यावरण के विभिन्न प्रमुख अवयवों का संक्षेप में वर्णन करो। (Describe briefly the different major components of environment.)


Ans. वातावरण के कारक (Components of Environment): आधुनिक धारणा के अनुसार वातावरण सिर्फ जल, हवा एवं मिट्टी को ही अपने में समाहित नहीं करता बल्कि वह सामाजिक एवं आर्थिक अवस्थाओं को भी शामिल करता है जिसमें हमलोग रहते हैं। वातावरण तीन अवयवों में बँटा होता है। ये तीनों अवयवें एक दूसरे से अन्तः संबंधित हैं।


(a) भौतिक वातावरण (Physical Environment) (b) जैविक वातावरण (Biological Environment) (c) सामाजिक वातावरण (Social Environment)


(a) भौतिक वातावरण (Physical Environment) : भौतिक वातावरण के अन्तर्गत वायुमंडल, (Atmosphere), जलमंडल (Hydrosphere) तथा स्थलमंडल (Lithosphere) आते हैं।


वायुमंडल (Atmosphere) : पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिसमें वायुमंडल पाया जाता है। वायुमंडल अनेक प्रकार के गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। यह पृथ्वी को घेरे रहता है जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है।

वायुमंडल लगभग समुद्रतल से 120 कि०मी० ऊपर तक पाया जाता है। यह अनेक परतों में बँटा होता है। जैसे क्षोभमंडल (Troposphere), समतापमंडल (Stratosphere) एवं मेसोसफियर (Mesosphere)


जलमंडल (Hydrosphere) : जलमंडल के अन्तर्गत सभी प्रकार की नदियाँ, समुद्र, भूमिगत जल, बर्फ एवं जलवाष्प आते हैं। जल एक अमूल्य संसाधन है जिसके अभाव में वनस्पति, जीव एवं वातावरण की अनेक क्रियाएँ असम्भव हैं। इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति जल में हुई है। हमारे जीवद्रव्य का मुख्य घटक जल ही है। इस पृथ्वी पर 97.5% जल नमकीन है। सिर्फ 2.5% जल ही मीठा है। इस 2.5% मीठे जल में भी 1.97% जल बर्फ के रूप में पाया जाता है। मात्र 0.5% जल ही भूमिगत जल है। अर्थात् 2.5% मीठे जल में सिर्फ 0.5% जल ही भूमिगत है और लोग उसी जल पर आधारित है। इसलिए इस पृथ्वी पर जल की बहुत कमी है।

स्थलमंडल (Lithosphere): पृथ्वी के बाहरी तथा ठोस हिस्से को स्थलमंडल कहा जाता है। पृथ्वी मुख्यतः तीन परतों की बनी होती है :


(i) अंतरिम भाग या केन्द्र (Core) (ii) मध्य भाग (Mantle) (ii) बाह्य भाग (Crust)


(b) जैविक पर्यावरण (Biological environment) : जैविक पर्यावरण को जैवमंडल (Biosphere) भी कहा जाता है। इस पृथ्वी के सभी पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) आपस में मिलकर जैवमंडल का निर्माण करते हैं। जैविक पर्यावरण वनस्पति, जंतु एवं सूक्ष्म जीवों (Microbes) का बना होता है। जैविक पर्यावरण को तीन भागों में विभक्त किया जाता है:-


(i) उत्पादक (Producers) (ii) उपभोक्ता (Consumers) (iii)अपघटनकर्त्ता (Decomposers)


(c) सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) : पादप जगत एवं जन्तु जगत एक सामाजिक समूह तथा संगठन की रचना करते हैं, इसे ही सामाजिक पर्यावरण कहते हैं। जीवित प्राणी सामाजिक पर्यावरण में निवास करते हैं एवं भोजन तथा आवास के लिए उसी सामाजिक पर्यावरण में संघर्षरत रहते हैं। भौतिक पर्यावरण जैविक एवं सामाजिक पर्यावरण को प्रभावित करता है। जैसे अत्यधिक वर्षा होने से जीव प्रभावित होते हैं एवं उनका वास स्थान नष्ट हो जाता है।


1 MARK QUESTIONS

 & ANSWERS (SAQ)


मानव और परिवेश


Q.1.'I.C.M.R' का पूरा रूप क्या है ? (What is the full form of 'I.C.M.R'?) 

Ans.इण्डियन काउन्सिल आफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research)। 


Q.2.भौतिक पर्यावरण का एक उदाहरण दो। (Give an example of physical environment.)

Ans. वायु, जल, मिट्टी (Air, Water, Soil)


Q.3.मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है ? (What is the scientific of the modern man ?)

 Ans. मनुष्य का वैज्ञानिक नाम है -Homo Sapiens,


Vi.Q.4. पर्यावरण की परिभाषा दो। (Give the definition of Environment.)

Ans. पर्यावरण की परिभाषा (Definition of environment) : पर्यावरण सभी जैविक (सजीव) एवं अजैविक (निर्जीव) घटकों का योग है जो जीवों को घेरता है एवं उसे प्रभावित करता है। पर्यावरणविद् सी० सी० पार्क के अनुसार - "सभी कारकों का योग जो मनुष्य को स्थान एवं समय विशेष पर प्रभावित करता है, मानव का पर्यावरण कहलाता है।"


Vi .Q.5.वायुमंडल में अम्ल वर्षा की उत्पत्ति कहाँ से होती है ? (From where the acid rain is created in the atmosphere.) 

Ans.अम्लीय वर्षा का निर्माण (Formation of acid rain) : जब जीवाश्म ईंधन ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलता है तब सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन के आक्साइड वायु में मुक्त होते हैं। ये दोनों सल्फर डाइ ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड जब जलवाष्प के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तब क्रमश: सलफ्यूरिक अम्ल एवं नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करते हैं। ये दोनों अम्ल जब वर्षा के पानी के साथ जमीन पर आते हैं तो इस वर्षा को अम्लीय वर्षा कहते हैं। 


Q.6.सामाजिक पर्यावरण के एक घटक का नाम बताओ (Name one component of social environment)

Ans. संस्कृति (Culture)


Vvi.Q.7.'M.I.C. का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of 'M.I.C. ?)

Ans.Methyl Isocyanate.


Q.8. कृषि- अपशिष्ट का एक उदाहरण दो। (Give an example of agro-waste.)

Ans.भूसा।


Q.9.'साइलेंट स्प्रिंग' पुस्तक के रचनाकार कौन हैं ? (Who authored the book "Silent Spring"?)

Ans. रिचेल कार्बन


 Vi Q.10. हमारी पृथ्वी की आकाश गंगा का नाम क्या है ? (What is the name of the galaxy of our earth ?)

 Ans.मंदाकिनी (Milkiway)


Q.11.वह कौन-सा ग्रह है जो सूर्य से सब से अधिक दूर है ? (What is the name of the planet which is farthest from the sun ?) 

Ans.वरुण (Neptune)।


Q.12.'गाइया' परिकल्पना के प्रस्तावक कौन थे ? (Who proposed the "Gaia hypothesis" ?) 

Ans.1970 ई० में जेम्स लवलॉक (James Lovelock in 1970s.)। 


Q.13.भारत में पाये जाने वाले एक बायोम का नाम बताओ। (Name one biome found in India.)

Ans.सवाना (Savanna )


Vi.Q.14.पर्यावरण एवं वासस्थान में क्या संबंध है ? (What is the relationship between "environment" and 'habitat'?)

Ans.पर्यावरण (Environment) के अन्तर्गत अनेक प्रकार के वासस्थान (Habitat) आते हैं।


Vi Q.15.मानव के स्वास्थ्य पर रेडियो-सक्रिय प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है ? (What are the effects of Radioactive polluation on human health.)

Ans. परमाणु बम के विस्फोट से रेडियोएक्टिव न्यूक्लाइड्स वातावरण में दूर-दूर तक फैलकर हरे पौधे आदि वनस्पतियों की पत्तियों को गिरा देते हैं। इन वनस्पतियों को जानवर खाते हैं जिनका दूध हम लोग पीते हैं। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला (Food chain) के माध्यम से रेडियो एक्टिव न्यूक्लाइड्स हमलोगों के शरीर में चले जाते हैं और इसका बुरा प्रभाव कई पीढ़ियों तक पड़ता रहता है ।


Vi.Q.16. अम्ल वर्षा का कारण क्या है ? (What are the causes of acid rain ?)


Ans.विद्युत उत्पादन में जो जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है उससे 70% सल्फर डाइऑक्साइड मुक्त होता है। यही अम्लीय वर्षा का सबसे बड़ा कारण है।


Vi.Q.17. यूट्रोफिकेशन क्या है ? (What is Eutrophication ?)


Ans.यूट्रोफिकेशन (Eutrophication): जब झीलों का जल बहुत अधिक पोषक हो जाता है तब उसके परिणामस्वरूप जल में शैवाल का विकास तेजी से होता है, और झीलों में जैव विविधता का ह्रास होता है।तो इस क्रिया को यूट्रोफिकेशन कहा जाता है।


Q.18.'C.F.C' का पूर्ण रूप क्या है ? (What is the full form of 'C.F.C'?)

Ans. क्लोरोफ्लुरो कार्बन (Chlorofluorocarbon)।


Q.19. WT.O' का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of "W.T.O'?) 

Ans.विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation)


Q.20.N.E.A.C का पूरा रूप क्या है ? (What is the full form of 'N.E.A.C?)

Ans.राष्ट्रीय पर्यावरण एवं जागरूकता अभियान (National Environmental Awareness Campaign)।

Q.21. भारत में चावल अनुसंधान केन्द्र कहाँ अवस्थित है ? (Where is Indian Rice Research Institute situated ?)

Ans.कटक (ओड़ीसा) (Cuttak (Orissa)

Q.22.'1.R.R.I.' का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of 'I.R.R.I.?) 

Ans.अंतराष्ट्रीय चावल अन्वेषण संस्थान (International Rice Research Institute)

पर्यावरण प्रदूषण एवं 

वैश्विक मुद्दे


vvi.Q.23. (1967 ई०) में कोयना में भूकम्प होने के पीछे क्या कारण था ? (What was the main reason behind the occurrence of Koyna earthquake (1967)?) 


Ans. Koyna earthquake (कोयना भूकंप )डैम में अधिक मात्रा में जल संग्रह के कारण हुआ था।

Q.24.प्राकृतिक गैस का प्रमुख अवयव क्या है ? (What is the major constituent of natural gas ?)

Ans.मिथेन (Methane), इथेन (Ethane) I


Vvi .Q.25.भोपाल गैस त्रासदी के पीछे मुख्य कारण क्या था ? (What was the main reason behind the Bhopal gas tragedy ?)


Ans. भोपाल गैस त्रासदी यूनियन कार्बाइड संयंत्र के फटने से हुआ था। इस संयंत्र के फटने से 80,000 पौण्ड मिचाइल आइसोसायनेट गैस मुक्त हो गया था।


Q.26.किस देश में रामसर सम्मेलन (दलदली भूमि से संबंधित) हुआ था ? (In which country as the Ramsar Convention (related to Wetland) held ?)

Ans. ईरान (Iran) |


Q.27.बायोगैस का मुख्य अवयव क्या है ? (What is the chief component of biogas ?)

Ans.मिथेन (Methane) ।


Q.28.पराबैगनी किरणों के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य की क्षति किस प्रकार की होती है ? (What damage on human health is caused by UV rays ?)

Ans. UV rays (पराबैंगनी किरणे) मनुष्य में कैंसर का कारक है। 


Vi.Q.29."GAP" का पूरा रूप क्या (What is the full form of "GAP" ?)

Ans.गंगा कार्रवाई योजना (GAP Ganaga Action Plan)।


Q.30 ध्वनि प्रदूषण के एक प्रमुख कारण का उल्लेख करो। (State one major cause of noise pollution.)

Ans.Noise pollution (ध्वनि प्रदूषण) का कारण मोटर गाड़ी से निकलने वाली ध्वनि है।


Q.31.मोटरगाड़ी से निकलने वाली एक गैस का नाम बताओ। (Name one gas emitted from motor vehicles.)

Ans. CO2

Q.32. क्या उल्कापात से वायु प्रदूषण होता है ? (Do meteoritic showers create air pollution ?)

Ans.हाँ (Yes) ।


Vvi.Q.33.चेरनोबिल आपदा कब घटी थी ? (In which year did Chernobyl disaster take place ?)

Ans. 28 अप्रैल 1986 ई० को ( 28th April 1986 ) । 


Q.34.वायु में कार्बन डाइआक्साइड के बढ़ जाने से कौन-सी समस्या की सृष्टि होती है ? (What is the main problem caused by carbon dioxide rise in the air ?) 

Ans.वैश्विक उष्णता (Global warming)


Vi.Q.35.ध्वनि की तीव्रता मापने के लिए किस इकाई का उपयोग होता है ? (What is the unit of measurement of the intensity of sound?)

Ans. डेसीबल (Decibel (db)


Q.36. गंगा प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बताओ (State one major cause of Ganga pollution.)

 Ans.औद्योगिक वर्ज्य (Industrial wastes)। 


Q.37.भारत में पेयजल में आर्सेनिक की सर्वाधिक मात्रा अनुज्ञेय है ? (What is the maximum permissible limit of arsenic in drinking water in India?)

Ans. 0.5 mg/litre


Q.38.बैटरी उद्योग से निष्कासित एक धात्विक प्रदूषक का नाम बताओ। (Name one metal pollutant discharged from battery industry.)

Ans.सीसा (Lead) |


Q.39..ब्लैकफूट' रोग क्या है ? (What is “Blackfoot disease” ?)


Ans. ब्लैकफूट रोग (Black foot disease) : जब पेय जल में आर्सेनिक की मात्रा मान्य मात्रा 0.5mg/lit से अधिक होता है तब उस जल के सेवन करने से black foot disease होता है। इस रोग में पैर और तलवों में काले धब्बे निकलते हैं।


Vvi.Q.40.दो हरित गृह गैसों के नाम बताओ। (Name two greenhouse gases.)

Ans.दो हरित गृह गैसें है : (i) मिथेन (ii) कार्बन डाइआक्साइड ।


 Q.41. "ppm" का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of "ppm"?)


Ans.प्रत्येक दस लाख का आशिंक हिस्सा (Partial part per million) I 


Q.42.मोटरगाड़ी में उपस्थित एक वायु प्रदूषक का नाम बताओ। (Name an air pollutant present in motor vehicle smoke.)

Ans.CO


Q.43. मेलानोसिस क्या है ? (What is Melanosis ?)


Ans.जब आर्सेनिक की मात्रा मान्य मात्रा से अधिक होती है तब आर्सेनिक प्रदूषित जल के सेवन करने वाले लोग को ब्लेक फूट डिजीज (Black foot disease) हो जाता है। इसके अलावा लोगों में पेट दर्द (Abdominal pain), उल्टी (Vomiting), डायरीया (Diarrohoea) एवं फेफड़े और त्वचा कैंसर (Lungs and Skin Cancer) हो जाता है। पूरे शरीर में काला काला धब्बा दिखाई पड़ता है जिसे "Melanosis" (मेलानोसिस) कहते हैं।


Vvi.Q.44.एड्स क्या है ? (What is AIDS ?)


Ans.•AIDS का पूरा नाम -Acquired Immuno Deficiency Syndrome है जो एक प्रकार के Retro virus से फैलता है। उस Retro virus का नाम HIV है। इस रोग में मनुष्य का रोग निरोधक क्षमता क्षीण हो जाता है। 


Vi.Q.45.एयरोसोल्स क्या हैं ? (What are aerosols ?)


Ans.वाहनों से निकलने वाले धुएँ में उपस्थित छोटे-छोटे कण जो 1 micron से 10 micron आकार के होते हैं उन्हें aerosols कहते हैं।


Imp.Q.46.स्मॉग क्या है ? (What is "smog" ?)


Ans. Smog एक प्रकार का द्वितीयक वायु प्रदूषक है। जब कोहरा (fog) एवं धुआँ आपस में मिलते है तब Smog का निर्माण होता है।


Vvi.Q.47.A.I.D.S.' का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of A.I.D.S. ?)

Ans Aquired Immuno Deficiency Syndrome. 


Q.48.ध्वनि प्रदूषण से होने वाले एक रोग का नाम बताओ (Name a disease caused by noise pollution.) 

Ans.बहरापन (Deafness)।


Q.49.ताप प्रदूषण का एक उदाहरण दो। (Give an example of thermal pollution.) 

Ans.गर्म जल (Hot water)


Vvi.Q.50.मानव निर्मित आपदा का एक उदाहरण दो। (Give an example of man-made disaster.)

Ans.भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) । 


Q.51.नगरपालिका अपशिष्टों से निकलने वाली एक गैस का नाम बताओं (Name agas which gets emanated from municipal wastes.)

 Ans.मिथेन।


Vvi.Q.52.किस देश में 'क्योटो विज्ञप्ति' हस्ताक्षरित हुआ था ? (In which country was the "Kyoto Protocol" signed?)

Ans. दिसम्बर, 1997 ई० में जापान के क्योटो शहर में "Kyoto Protocol" पर हस्ताक्षर हुआ था।


Vvi.Q.53 किस देश में मॉन्ट्रीयल प्रोटोकॉल हस्ताक्षरित हुआ था ? (In which country was the "Montreal Protocol" signed?) 

Ans. 16 दिसम्बर 1987 ई० में कनाडा में "Montreal Protocol" पर हस्ताक्षर हुआ था।


Q.54.एक गैस का नाम बताओ जो वैश्विक उष्णता का सृजन नहीं करता है। (Name a gas which does not create global warming.)

Ans. ऑक्सीजन। 


Q.55.मिट्टी में अम्लता वृद्धि के एक कारण का उल्लेख करों। (Mention one cause of increase of acidity in soil.)

Ans. उर्वरक का प्रयोग (Use of fertilizers)।


Vvi.Q.56..किस वर्ष में मान्द्रीयल विज्ञप्ति हस्ताक्षरित हुआ था ? (In which year was the Montreal Protocol signed?) 

Ans.1987 ई० मे।


Q.57.'G.H.G. का पूरा नाम क्या है ? (What is the full form of 'G.H.G. ?)

Ans. हरित गृह गैसें (Green House Gases)।


Q.58. क्योटो विज्ञप्ति किस वर्ष में हस्ताक्षरित हुई थी ? (In which year was the Kyoto Protocol signed?) 

Ans.1997 ई०।


Q.59. नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का एक उदाहरण दो। (Give an example of municipal solid waste.)

Ans.खाद्य अपशिष्ट (Food wastes)।


Q.60. धातु प्रदूषण का एक उदाहरण दो। (Give an example of metal pollution.)

Ans.कूड़ा-कर्कट (Garbage)।

ऊर्जा


Q.61. पवन ऊर्जा का एक उपयोग बताओ (State one use of wind energy.) 

Ans.पवन ऊर्जा (Wind Energy) का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है।


Q.62'O.T.E.C.' का पूरा रूप क्या है ? (What is full form of 'OT.E.C'?)

Ans.Ocean Thermal Energy Conversion.


Q.63.सौर ऊर्जा का एक उपयोग बताओ। (State one use of solar energy.) 

Ans.:-सौर ऊर्जा का उपयोग सोलर कूकर के द्वारा खाना बनाने में किया जाता है।


 Q.64. भू-तापीय ऊर्जा क्या है ? (What is geothermal energy ?)


Ans.भू-तापीय ऊर्जा (Geothermal energy) पृथ्वी के अन्दर गर्म, पिघली हुई चट्टाने हैं जिसे मैग्मा कहा जाता है। मैग्मा में उपस्थित संग्रहित ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भू-तापीय ऊर्जा के कारण हो भूमिगत जल गर्म रहता है।


Vvi Q.65.'L.P.G.' का पूरा रूप क्या है ? (What is the full form of 'L.P.G. ?)

Ans. Liquified Petroleum Gas.


Vvi Q.66."S.P.M." का पूरा रूप क्या है ? (What is the full form of "S.P.M."?)

Ans.S.P.M. = Suspended Particulate Matters.


Q.67.भारत का 'तारापुर' क्षेत्र क्यों प्रसिद्ध है? (Why is the "Tarapur" area of India famous for ?) 

Ans.तारापुर (Tarapur), महाराष्ट्र परमाणु ऊर्जा केन्द्र के लिए प्रसिद्ध है।


Q.68.एक बायो-डीजल संयंत्र का नाम बताओ (Name one bio-diesel plant.)


Ans.जेट्रोफा (Jetropha)।

































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