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Physical science
5.1.बॉयल का नियम-
"स्थिर तापमान पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन उसपर आरोपित दाब के व्युत्क्रमानुपाती होता है "
Constants in Boyle's Law : Boyle's Law में (i) गैस का तापक्रम (ii) गैस की मात्रा
5.2."किसी भी पदार्थ (तत्व या यौगिक) के एक ग्राम अणु में अणुओं की संख्या सर्वदा निश्चित होती है । इसी निश्चित संख्या को Avogadro's Number कहते हैं।"
एवोगैड्रो संख्या का मान 6.022x10^23 होता है।
5.3. स्कूटर, मोटरकार तथा बस इत्यादि में वाहन च|लको द्वार| उत्तल दर्पण का उपयोग साइड मिरर (side mirror) और पीछे देखने के आइने (rear-view mirror) के रूप में होता है, क्योंकि वे किसी वस्तु का हमेशा सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं, यद्यपि वह छोटा होता है। इनका दृष्टि क्षेत्र विकसित होता है क्योंकि वे बाहर की ओर वक्रित होते हैं तथा अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र का देख सकते हैं।
5.4ओम का नियम-"यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएं (जैसे मोटाई, लम्बाई) एवं तापक्रम आदि स्थिर हो, तो चालक के सिरों का विभवान्तर उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के सीधा समानुपाति होता है।
फ्यूज तार का काम:जब परिपथ में अचानक बहुत अधिक शक्ति की विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो अधिक उष्मा उत्पन्न होने के कारण फ्यूज पिघल जाता है और विद्युत परिपथ टूट जाता है जिससे वल्व तथा अन्य विद्युतीय उपकरण नष्ट होने से बच जाते हैं।
5.5)बाजारों में उपलब्ध तापदीप्त बल्ब (incandescent bulbs) ग्रहण की गयी अधिकतर विद्युत ऊर्जा को उष्मा ऊर्जा के रूप में व्यर्थ में खर्च कर देते हैं। अतः, ऊर्जा के आर्थिक दृष्टिकोण से इस प्रकार के बल्ब उतना अधिक दक्ष (efficient) नहीं है। इस दृष्टिकोण से CFL (Compact fluourescent lamp) एवं LED (Light emitting | diode) बल्ब अधिक दक्ष है अर्थात् CFL एवं LED बल्ब कम विद्युत ऊर्जा खर्च कर अधिक प्रकाश उत्पन्न करते हैं । तापदीप्त (incandescent) बल्बों की तुलना में CFLs बल्ब /, से / हिस्से तक विद्युत शक्ति (electric power) का उपयोग करते हैं आजकल सफेद रंग के LED लैम्प अपनी उच्च दक्षता (high efficiency) के कारण | CFLs की तुलना में अधिक पसंद किए जा रहे हैं। अत: बाजार में CFls लैंप एवं बल्ब की तुलना में LED लैम्प एवं बल्ब की माँग अधिक है।
5.6) आधुनिक आवर्त सारणी, मोसले की देन है।
लघु आवर्त में 8 तत्त्व होते हैं|
5.7)Na,Na+ आयन में Na+सबसे अधिक स्थिर है ,चूंकि
सोडियम परमाणु तथा सोडियम आयन के केन्द्रक पर उपस्थित प्रोटानों तथा न्यूट्रानों की संख्या समान होती है। लेकिन सोडियम परमाणु का इलेक्ट्रानिक विन्यास (2,8,1) तथा सोडियम आयन का इलेक्ट्रानिक विन्यास (2,8) होगा क्योंकि एक इलेक्ट्रान त्या निष्क्रिय गैस नियान की परमाणु संरचना प्राप्त कर लेता हैं ।
5.9.विद्युत विच्छेद्य (Electrolytes) - वे पदार्थ जिनका जलीय घोल या पिघली हुई अवस्था से विद्युत प्रवाह हो सकता है तथा विद्युत धारा प्रवाहित करने पर रासायनिक परिवर्तन हो जाता है तथा नये पदार्थों की सृष्टि हो जाती है अर्थात वे अपने अवयवी पद में विच्छेदित हो जाते हैं; ऐसे पदार्थों को विद्युत विच्छेद्य कहते हैं ; जैसे- अम्ल, क्षार,लवणों के जलीय घोल (HCl, NaOH, KOH)
विद्युत विच्छेदन का उपयोग (uses of electrolysis)
1. धातुओं के शुद्धिकरण करने में जैसे Cu,Ag, Zn, Al आदि ।
6.2
6.4)
Math
3-1-
3-5- WRONG QUESTION
6-
7-
8-
Life Science
6.1 -साइनाप्स (Synapse)-एक एक्सॉन (Axon) के अंतिम छोर की प्रशाखाओं तथा दूसरे न्यूरॉन की डेन्ड्राइट्स प्रशाखाओं के मध्य कार्यात्मक (Physiological) सम्बन्ध को साइनैप्स (Synapse) कहते हैं।
6.2-ACTH-Adreno Cortico Tropic Hormone
6.3-Ans. कोशिका चक्र के दो महत्त्व - (i) एक कोशीय जाइगोट से बहुकोशीय जीव का निर्माण होता है। (ii) शरीर की वृद्धि, टूटे-फूटे अंगों का मरम्मत एवं घाव भरता है।
6.4-स्वपरागण से लाभ (i) जनकों के गुण संतति में सुरक्षित रहते हैं।
स्वपरागण से हानि (i) पीढ़ी दर पीढ़ी एकान्तरण होने से वह प्रजाति कमजोर हो जाती है।
6.5-Allele or Allelomorph-- सजातीय क्रोमोजोम (Homologous chromosomes) के एक ही लोकस पर स्थित विरोधी लक्षणों के प्रत्येक जोड़े जीन को एलील या एलीलोमार्फ कहते हैं|
जैसे लम्बा-बौना (T1), सफेद-काला (Bb), गोल-झुर्रीदार (Rr) आदि|
6.6-पार्थेनोजनेसिस-प्रजनन की वह विशेष विधि जिसमें अण्डा (Egg or ova) बिना निषेचित हुये एक नये जीव के रूप में विकसित हो जाता है। इस क्रिया को पार्थेनोजनेसिस कहते हैं। पार्थेनोजनेसिस की क्रिया निम्न श्रेमी के पौधों जैसे भालवाक्स (Volvox). Spirogyra , Mucor आदि में होती है|
6.7-Ans. थैलेसिमिया से बचने के उपाय -
(i) विवाह से पूर्व आनुवांशिक सलाह और वाहक की जाँच के लिए एवं रक्त परीक्षण के लिए प्रेरित करना।
(ii) विवाह के उपरान्त भी आनुवांशिक सलाह लेनी चाहिए और गर्भावस्था के 8 से 11 सप्ताह में ही डी एन ए जाँच करा लेनी चाहिए।
7.2-ऑक्सिन
निर्माण स्थल (Site of formation) : इसका संश्लेषण प्ररोह के अग्रस्थ प्रविभाजी ऊतक (एपिकल मेरिस्टेम apical meristem), तरूण पत्तियों, विकसित बीजों और जड़ के सिरों पर होता है।
ऑक्सिन के कार्य (Functions of Auxins) : इनके निम्नलिखित मुख्य कार्य हैं (1) इनके प्रभाव से अग्रस्थ कलिका में वृद्धि अधिक होती है परन्तु कक्षस्त कलिका की वृद्धि जाती है। (2) इसके प्रभाव से तने के कटे भाग से जड़ें शोघ्र निकलती है। (3) यह पार्थिनोकॉर्पी (Parthenocarpy) ) में भी सहायक है। पार्थिनोकॉर्पी द्वारा बीजरहित फल तैयार किए जाते हैं। (4) ऑक्सिन के छिड़काव से हानिकारक घासों (weeds) को नष्ट किया जा सकता है । (5) यह गुरुत्वानुवर्तन और प्रकाशानुवर्तन को प्रभावित करता है । (6) यह फलों एवं पत्तियों को समय के पूर्व गिरने से रोकता है। (7) इसके प्रभाव से कोशिकाएं लम्बी हो जाती हैं। (8) यह कोशिका भित्ति को अधिक पारगम्य बनाता है जिससे अवशोषण की दर बढ़ जाती है।
7.3-Ans-
माइटोसिस
यह विभाजन Somatic cell में होता है। यह दो अवस्थाओं में पूरी होती है।
1-Karyokinesis- केन्द्रक विभाजन की विधि है जिससे केन्द्रक दो पुत्री केन्द्रक में विभाजित हो जाता है। इसकी चार अवस्थायें होती हैं ।
(a) Prophase -
(i) क्रोमोजोम की सृष्टि होती है ।
(ii) क्रोमोटिड कुण्डलित रूप धारण करता है। अर्थात (Spiralization)
(iii) केन्द्रक झिल्ली तथा न्यूक्लिओलस गायब होने लगता है ।
(b) Metaphase
(i) Spindle तथा Spindle fibre का निर्माण ।
(ii) क्रोमोजोम Equatorial zone में Spindle fibre द्वारा युक्त या अंटके रहते हैं ।
(iii) केन्द्रक झिल्ली तथा न्यूक्लिओलस पूर्ण रूप से विलुप्त हो जाते हैं।
(iv) क्रोमोजोम अधिक स्पष्ट हो जाते हैं जिन्हें सरलता पूर्वक गिना जा सकता है ।
(c) Anaphase
(i) प्रत्येक क्रोमोजोम दो पुत्री क्रोमोजोम में टूट जाता है।
(ii) आधी पुत्री क्रोमोजोम उत्तरी ध्रुव पर तथा आधी दक्षिणी ध्रुव की ओर गतिशील हो जाती हैं जिसे Chromosomal movement कहते हैं ।
(iii) स्टेम वाडी ( Stem body ) का गठन होता है।
(d) Telophase
(i) Spindle fibres धुवों पर उपस्थित पुत्री क्रोमोजोम को घेर लेते है।
(ii) केन्द्रक झिल्ली का पुनः hum निर्माण हो जाता है।
(iii) न्यूक्लिओलस पुनः प्रकट हो जाता है।
(iv) दो पुत्री केन्द्रक का निर्माण हो जाता है।
2- Cytokinesis : (i) साइटोप्लाज्म की विभाजन की विधि है।
(ii) दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है।
Hindi
GEOGRAPHY
E.1.
बरखान (Barkhan or Barchan): अर्द्धचन्द्राकार बालुका स्तूप जो वायु की दिशा में आगे बढ़ता रहता है, बरखान कहते हैं।
इसका पवनोन्मुखी भाग उत्तल ढाल तथा पवन विमुखी भाग अवतल ढाल वाला होता है इसके मध्य के रिक्त भाग को 'गामी' कहते हैं।
2.यारडांग (Yardang):- जब कठोर व मुलायम चट्टानों की लम्बवत् संरचना पायी जाती है तो वायु के घर्षण द्वारा मुलायम चट्टानें कटती जाती हैं । कठोर चट्टानों के ऊपरी भाग नुकीले होते जाते हैं । इसे यारडांग (Yardang) कहते हैं|यारडंग का विकास स्थान पवन की दिशा के समानान्तर होता है |
3.हिमोढ़ (Moraines) : जब हिमनदी पिघलने लगती है या पीछे हटने लगती है तो वह अपने साथ लाई हुई सामग्री का निक्षेप करने लगती है जिसे हिमोढ़ कहते हैं|
4.ऍस्चुरी (Estuary):- जब नदी के मुहाने के पास समुद्र की जल धारा काफी तीव्र रहती है तो मुहाने पर नदी द्वारा जमा किया गया अवसाद मुख्य घाटी की धारा के साथ-साथ कुछ दूर तक सागर की ओर फैल जाता है। नदी एक धारा के रूप में सीधे सागर में गिरती है। ऐसी नदी मुख को एस्चुरी या मुहाना कहते हैं। भारत की नर्मादा, ताप्ती, नदियाँ डेल्टा का निर्माण न करके सिर्फ एस्चुरी का निर्माण करती हैं ।
F.
1.
2.भारत में मोटर गाड़ी उद्योग (Auto Mobile Industries of India)
वर्तमान समय में आर्थिक विकास की प्रगति के साथ ही साथ ऑटोमोबाइल उद्योग का महत्व बढ़ता जा रहा है और इस उद्योग ने इन्जीनियरिंग उद्योग में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। दो पहिया वाहन बनाने में भारत का विश्व में दूसरा स्थान तथा व्यावसायिक वाहन बनाने में भारत का विश्व में पांचवां स्थान है विश्व में सबसे ज्यादा ट्रैक्टर भारत में बनाये जाते हैं तथा कार बनाने में भारत का स्थान विश्व में नौवां है। जापान, दक्षिणी कोरिया और थाईलैण्ड के पश्चात भारत एशिया का चौथा बड़ा कार निर्यातक देश है।
इस समय देश में मोटर गाड़ी निर्माण के निम्नलिखित कारखानें हैं-:
1. हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड, हिन्दमोटर, कोलकाता :- यह देश की सबसे बड़ी मोटर कम्पनी है। यहाँ एम्बेसडर कार के अलावा बेडफोर्ड ट्रक का भी निर्माण होता है। यह कोलकाता के समीप उत्तरपाड़ा में है।
2. प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स, मुम्बई:- यहाँ प्रीमियर, प्रेसीडेण्ट एवं पद्मिनी मोटर कारों के अलावा ट्रकें भी बनती हैं।
3. स्टैण्डर्ड मोटर प्रोडक्ट्स ऑफ इण्डिया लिमिटेड, चेन्नई यहाँ स्टैण्डर्ड मोटर बनती हैं।
4. महेन्द्रा ऐण्ड महेन्द्रा कम्पनी लि० मुम्बई- यहाँ बिली जीप बनती है।
5. टाटा मर्सीडीज बैंज लिमिटेड, चेन्नई- यहाँ टाटा मर्सडीज ट्रक बनती हैं।
6. अशोका लेलैण्ड लिमिटेड, चेन्नई- यहाँ अशोका लेलैण्ड ट्रक बनती है।
7. मारुति कार का कारखाना, गुड़गाँव (हरियाणा)- यहाँ मारुति नामक छोटी और मझोली कारें बनती हैं।
3.दक्षिणी भारत में तालाबों द्वारा सिंचाई के कारण- दक्षिणी भारत में तालावों द्वारा सिंचाई होने के निम्नलिखित कारण हैं--
1. कठोर चट्टानें- दक्षिणी भारत में कठोर चट्टानें पाई जाती हैं जिससे यहाँ नहरों व कुओं का खोदना कठिन है। साथ ही कठोर चट्टानों से होकर जल नीचे नहीं प्रवेश कर पाता। अतः यहाँ के गड्ढे प्राकृतिक तालाब का कार्य करते हैं।
2. असमतल धरातल- दक्षिणी भारत का धरातल असमतल एवं ऊबड़-खाबड़ है। यहाँ नहरें बनाना तो कठिन है परन्तु धरातल असमतल होने से यहाँ प्राकृतिक गड्ढे अधिक पाए जाते हैं। इन गड्ढों में वर्षा का जल एकत्र करके तालाब बनाना आसान है।
3. नदियों का सदावाहिनी न होना- दक्षिणी भारत की नदियाँ ऊँचे हिमाच्छादित शिखरों से नहीं निकलती है।इसलिए ये नदियाँ गर्मी में सूख जाती हैं इसलिए इस समय तालावों में एकत्र जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।
4. नदियों की तंग घाटियाँ- नदियों की तंग घाटियों में बाँध बनाकर उनमें पानी रोककर कृत्रिम तालाब बनाने की सुविधा है।
2-
3-पवन के निक्षेपण कार्य (Depositional work of the wind):- पवन की गति मन्द होने अथवा उसके मार्ग में रुकावट आने पर पवन अपने द्वारा उड़ाए गए धूल-कणों को धरातल पर यत्र-तत्र बिछा देता है। कुछ हल्के पदार्थ पवन के साथ बहुत दूर तक उड़ जाते हैं और वहाँ वे बिछा दिए जाते हैं। पवन के निक्षेपण द्वारा निम्नलिखित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
(1) बालू का टीला (Sand-dune) :- तीव्र आँधी के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा आने पर वहाँ बालू के कण संचित हो जाते हैं जिससे कहीं गोल, कहीं नवचन्द्राकार तथा कहीं अर्द्धवृत्ताकार टीले बन जाते इन्हें बालुका स्तूप कहते हैं। जिस ओर से पवन चला करता है उस ओर उसका ढाल मन्द तथा विपरीत ढाल खड़ा होता है।
आकार के अनुसार बालुका स्तूपों के दो मुख्य भेद हैं-
(i) अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप (Longitudinal Sand-dunes) :- (i) वायु के प्रवाह की दिशा के समानान्तर बनने वाले स्तूपों को अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप या सीफ (Seif) कहते हैं। सीफ अरवी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है तलवार (Sword)। ये स्तूप वालू की अधिकता वाले स्थानों में बनते हैं। (ii) ये कई किलोमीटर लम्बे तथा 40 से 70 मीटर ऊँचे होते है। (iii) ये स्तूप प्राय: स्थिर रहते हैं अतः इन्हें निष्क्रिय स्तूप (Inactive dunes) भी कहते हैं। सहारा, आस्ट्रेलिया के महान मरुस्थल एवं थार मरुस्थल में ये टीले अधिक पाए जाते हैं।
(ii) अनुषस्व वालुका स्तूप (Transverse Sand-dunes ) : बालू के वे टीले जिनका विस्तार पवन के बहाव की दिशा के लम्बवत् होता है, अनुप्रस्थ वालुका खूष कहलाते हैं। अर्द्धचन्द्राकार बालू के अनुपस्थ टीलों को बरखान (Barkhan) कहते हैं। (ii) ये टीले 120 मीटर तक ॐदे तथा 3 किलोमीटर तक लम्बे देखे जाते हैं। (III) ये वरखान एक ही स्थान पर स्थिर नहीं होते हैं। हवा की दिशा बदल जाने पर ये अपना स्थान या दिशा बदल देते हैं। इसी से इन्हें क्रियाशील या जीवित स्तूप (Active or Live dunes) भी कहते हैं। पीरू, टर्की तथा सहारा में बरखान अधिक पाए जाते हैं।
पवन द्वारा बालू के कण बालू के स्तूप के शिखर को पार करके आगे गिरते रहते हैं जिससे बालुकास्तूप आगे की ओर खिसकता रहता है।
बालुका स्तूप के निर्माण के लिए निम्नलिखित चार दशाओं का मिलना आवश्यक है (1) बालू की प्रचुरता, (ii) तीव्र पवन प्रवाह का होना, (iii) पवन के मार्ग में बाधा या अवरोध का होना और (iv) बालू संचय होने के लिए पर्याप्त स्थान का होना।
(iii) लोयस (Loess) :- यह अत्यन्त महीन कणों वाली मिट्टी है, जो पवन द्वारा अत्यन्त दूर प्रदेश से उड़ाकर बिछाई जाती है। इस मिट्टी में पर्त नहीं मिलते हैं। इसका रंग पीला अथवा हल्का भूरा होता है। इसकी गहराई अधिक पाई जाती है। यदि इसे मुट्ठी में भरकर दवाया जाय तो यह आटे की तरह लगती है और हाथ पर अपना रंग छोड़ देती है। पानी में डालते ही यह शीघ्र घुल जाती है। इसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है। यह मिट्टी काफी उपजाऊ होती है। जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहाँ लोयस मिट्टी के प्रदेश में काफी पैदावार होती है। लोयस मैदान के मुख्य क्षेत्र उत्तरी चीन का लोयस का मैदान, मिसीसिपी बेसिन तथा मध्य यूरोप हैं। वायु के निक्षेपण से बने मैदानों को लोयस के मैदान (Loess Plain) कहते हैं।
(iv) तरंग चिह्न (Ripple Marks) :- मरुस्थलों में पवन के निक्षेपण द्वारा जल की लहरों की तरह ऊँचे नीचे चिह्न बन जाते हैं। इनकी ऊँचाई एक इंच से भी कम होती है। इनकी पंक्तियाँ वायु की दिशा से लम्बवत् होती हैं। । वायु की दिशा बदल जाने पर तरंग चिह्नों का क्रम भी बदल जाता है।
Thank you so much sir ❤️❤️😍😍❤️
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