Madhyamik Hindi हिंदी लेखन

 Madhyamik हिंदी लेखन 

निबंध

1-

मेरे प्रिय साहित्यकार 

प्रस्तावना

संसार ने सबकी अपनी-अपनी रूचि होती है किसी व्यक्ति की रुचि चित्रकारी में है, तो किसी की संगीत में, किसी की रुचि खेलकूद में है तो किसी की साहित्य में। मेरी अपनी रुचि भी साहित्य में रही है। साहित्य प्रत्येक देश और काल में इतना अधिक रचा गया है। कि उन सबका पारायण तो एक जन्म में संभव ही नहीं है, फिर साहित्य में भी अनेक विधाएं हैं- कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध आदि। मैंने सर्वप्रथम हिंदी साहित्य का यथाशक्ति अधिकाधिक अध्ययन करने का निश्चय किया और अब तक जितना अध्ययन हो पाया है, उसके आधार पर मेरे सर्वाधिक प्रिय साहित्यकार हैं- जयशंकर प्रसाद। प्रसाद जी केवल कवि ही नहीं ,नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार, निबंधकार भी हैं। प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य में भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प सभी क्षेत्रों में युगांतरकारी परिवर्तन किए हैं। उन्होंने हिंदी भाषा को एक नवीन अभिव्यंजना शक्ति प्रदान की है। इन सब ने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया है और वह मेरे प्रिय साहित्यकार बन गए हैं।


साहित्यकार का परिचय

श्री जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन 1889 ई० में काशी के प्रसिद्ध सुँघनी-साहू परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री बाबू देवी प्रसाद था। लगभग 11 वर्ष की अवस्था में ही जयशंकर प्रसाद ने काव्य रचना आरंभ कर दी थी। 17 वर्ष की अवस्था तक इनके ऊपर विपत्तियों का बहुत बड़ा पहाड़ टूट पड़ा। इनके पिता, माता व बड़े भाई का देहांत हो गया और परिवार का समस्त उत्तरदायित्व इनके सुकुमार कंधों पर आ गया। गुरुतर उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए एवं अनेकानेक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना करने के उपरांत 15 नवंबर 1937 ई० को आप का देहावसान हुआ। 48 वर्ष के छोटे से जीवन में इन्होंने जो बड़े बड़े काम किए, उनकी कथा सचमुच अकथ्य है।


साहित्यकार की साहित्य संपदा

प्रसाद जी की रचनाएं सन 1907-08 ई० में सामयिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थी। यह रचनाएं ब्रज भाषा की पुरानी शैली में थी। जिनका संग्रह 'चित्राधार' में हुआ। सन 1913 ई० में यह खड़ी बोली में लिखने लगे। प्रसाद जी ने पद्य और गद्य दोनों में साधिकार रचनायें की। इनका वर्गीकरण इस प्रकार है-

(क) काव्य- कानन-कुसुम, प्रेम पथिक, महाराणा का महत्त्व, झरना,आँसू, लहर और कामायनी (महाकाव्य)

(ख) नाटक- इन्होंने कुल मिलाकर 13 नाटक लिखें। इनके प्रसिद्ध नाटक हैं- चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना और ध्रुवस्वामिनी।

(ग) उपन्यास- कंकाल, तितली और इरावती।

(घ) कहानी- प्रसाद की विविध कहानियों के पांच संग्रह हैं- छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी और इंद्रजाल।

(ङ) निबंध- प्रसाद जी ने साहित्य के विविध विषयों से संबंधित निबंध लिखे, जिनका संग्रह है- काव्य और कला तथा अन्य निबंध।


छायावाद के श्रेष्ठ कवि

छायावाद हिंदी कविता के क्षेत्र का एक आंदोलन है। जिसकी अवधि सन 1920-1936 ई० तक मानी जाती है। 'प्रसाद' जी छायावाद के जन्मदाता माने जाते हैं। छायावाद एक आदर्शवादी काव्यधारा है, जिसमें वैयिक्तकता, रहस्यात्मकता, प्रेम, सौन्दर्य तथा स्वछंदतावाद की सबल अभिव्यक्ति हुई है। प्रसाद की 'आंसू' नाम की कृति के साथ हिंदी में छायावाद का जन्म हुआ। 'आंसू' का प्रतिपाद्य है- विप्रलंभ श्रंगार। प्रियतम के वियोग की पीड़ा वियोग के समय आंसू बनकर वर्षा की भांति उमड़ पड़ती है।


जो घनीभूत पीड़ा थी, स्मृति सी नभ में छायी।

दुर्दिन में आंसू बनकर, वह आज बरसने आयी।।

प्रसाद के काव्य में छायावाद अपने पूर्ण उत्कर्ष पर दिखाई देता है। यथा- सौंदर्य निरुपण एवं श्रृंगार भावना, प्रकृति प्रेम, मानवतावाद, प्रेम भावना, आत्माभिव्यक्ति, प्रकृति पर चेतना का आरोप, वेदना और निराशा का स्वर, देश प्रेम की अभिव्यक्ति, नारी के सौंदर्य का वर्णन, तत्व-चिंतन, आधुनिक बौद्धिकता, कल्पना का प्राचुर्य तथा रहस्यवाद की मार्मिक अभिव्यक्ति। अंयत्र इंगित छायावाद की लागत विशेषताएं अपने उत्कृष्ट रूप में इनके काव्य में उभरी हुई दिखाई देती हैं।


'आंसू' मानवीय विरह का एक प्रबंध काव्य है। इसमें स्मृतिजन्य, मनोदशा एवं प्रियतम के अलौकिक रूप-सौंदर्य का मार्मिक वर्णन किया गया है । 'लहर' आत्मपरक प्रगीत मुस्तक है। जिसमें कई प्रकार की कविताओं का संग्रह है। प्रकृति के रमणीय पक्ष को लेकर सुंदर और मधुर रुपकमय गीत 'लहर' से संग्रहीत है।

बीती विभावरी जाग री।

अंबर-पनघट में डुबो रही;

तारा-घट उषा नागरी।


प्रसाद जी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना है, 'कामायनी' महाकाव्य जिसमें प्रतीकात्मक शैली पर मानव चेतना के विकास का काव्यमय निरुपण किया गया है। आचार्य शुक्ल के शब्दों में- "यह काव्य बड़ी विशद कल्पनाओं और मार्मिक उक्तियों से पूर्ण है। इसके विचारात्मक आधार के अनुसार श्रद्धा या रागात्मिका वृत्ति ही मनुष्य को इस जीवन में शांतिमय आनंद का अनुभव कराती है। वही उसे आनंद धाम तक पहुंचाती है, जबकि इड़ा या बुद्धि आनंद से दूर भगाती है।" अंत में कवि ने इच्छा, कर्म और ज्ञान तीनों के सामंजस्य पर बल दिया है; यथा

ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है, इच्छा पूरी क्यों हो मन की?

एक दूसरे से मिल न सके, यह विडंबना जीवन की।


श्रेष्ठ गद्यकार

गद्यकार प्रसाद की सर्वाधिक ख्याति नाटककार के रूप में है। उन्होंने गुप्तकालीन भारत को आधुनिक परिवेश में प्रस्तुत कर के गांधीवादी अहिंसामूलक देशभक्ति का संदेश दिया है। साथ ही अपने समय के सामाजिक आंदोलनों सफल चित्रण किया है। नारी की स्वतंत्रता एवं महिमा पर उन्होंने सर्वाधिक बल दिया है। उनके प्रत्येक नाटक का संचालन सूत्र किसी नारी पात्र के हाथ में ही रहता है। उपन्यास और कहानियों में भी सामाजिक भावना का प्राधान्य है। उनमें दांपत्य प्रेम के आदर्श रुप का चित्रण किया गया है। उनके निबंध विचारात्मक एवं चिंतन प्रधान है। जिनके माध्यम से प्रसाद ने काव्य और काव्य-रूपों के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।


उपसंहार

पद्य और गद्य की सभी रचनाओं में इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं परिमार्जित हिंदी है। इनकी अलंकारिक एवं साहित्यक है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इनकी गद्य रचनाओं में भी इनका छायावादी कवि हृदय झांकता हुआ दिखाई देता है। मानवीय भावों और आदर्शों में उदारवृति का सृजन विश्व कल्याण के प्रति इनकी विशाल हृदयता का सूचक है। हिंदी साहित्य के लिए प्रसाद जी की यह बहुत बड़ी देन है। प्रसाद की रचनाओं में छायावाद पूर्ण प्रौढ़ता, शालीनता, गुरुता और गंभीरता को प्राप्त दिखाई देता है। अपनी विशिष्ट कल्पना शक्ति, मौलिक अनुभूति एवं नूतन अभिव्यक्ति पद्धति के फलस्वरुप प्रसाद हिंदी-साहित्य में मूर्धन्य स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। समग्रतः यह कहा जा सकता है कि प्रसाद जी का साहित्यक व्यक्तित्व बहुत महान है जिस कारण वह मेरे सर्वाधिक प्रिय साहित्यकार रहे हैं।


2-

शिक्षा में खेलकूद का महत्व 

प्रस्तावना: शिक्षा हमारे जीवन के सर्वोत्कृष्ट विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. व्यक्ति को एक सच्चे मानव के रूप में स्थापित कर मानवता के गुणों को परिस्कृत करना शिक्षा का उद्देश्य होता हैं. शिक्षा ही हमारे मष्तिष्क का विकास करती हैं तथा हमें स्वस्थ बनाती हैं. जीवन की सार्थकता मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं चारित्रिक विकास में निहित हैं जिसे शिक्षा सम्भव बनाती हैं.


बहुत पुरानी कहावत हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता हैं. शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में आहार, खेलकूद एवं व्यायाम सबसे महत्वपूर्ण हैं. इसी कारण शिक्षा के साथ खेलकूद को उसके एक अंग के रूप में पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाया जाता हैं. हमारे देश के प्रत्येक विद्यालय में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता हैं, अलग से शारीरिक शिक्षक नियुक्त किये जाते हैं.

हमारे जीवन में खेलों का बड़ा महत्व रहा हैं. प्राचीन काल से ही खेल चलन में थे. सम्भवतः आदि काल में मानव ने समय व्यतीत करने व मनोरंजन के उद्देश्य से खेलों की खोज की होगी. उस समय मनोरंजन के बेहद सिमित साधन हुआ करते थे. शुरू शुरू में खेलकूद महज मनोरंजन की पूर्ति का साधन था, कालान्तर में यह हमारी जीवन शैली का एक अंग बन गया. समय बीतने के साथ ही खेलों के स्वरूप बदलते गये नयें नयें खेलों की खोज हुई और आज हम खेलकूद की प्रतियोगिता के जमाने में जी रहे हैं.


खेल खासकर छोटी उम्र के बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. खेलकूद के आयोजन से न केवल शारीरिक व्यायाम होता हैं बल्कि मानव को मानव से जोड़ने का काम भी करते हैं. आज के बच्चों के लिए अनगिनत प्रकार के खेल हैं. कुछ घर की चारदीवारी में खेले जाते हैं तो कुछ खेल मैदानों में. इन्टरनेट और मोबाइल फोन के आविष्कार ने ऑनलाइन गेम्स की परिपाटी को शुरू कर दिया हैं जो बेहद लोकप्रिय हैं.


खेलकूद शिक्षा में अच्छे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अति उपयोगी हैं ही साथ ही कई विद्यार्थी जो खेलों में अत्य धिक रूचि रखते हैं वे इसमें अपना करियर भी बना सकते हैं. देश के लिए विदेशों में खेलना बड़े गर्व की बात होती हैं. हमारे गाँवों के कई बच्चें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का तिरंगा लहरा रहे हैं. क्रिकेट का ही उदाहरण ले लीजिए कई बड़े स्टार खिलाडियों ने न केवल मान सम्मान, धन दौलत कमाई बल्कि इन सबसे बढ़कर विश्व भर में भारत की शान को बढ़ाया हैं.


वैसे हम बालक को जन्म से ही देखे तो वह खेलकूद के साथ सहज रूप से सीखता जाता हैं. घर के आंगन में ही उसकी उछल कूद से ही आरम्भिक शिक्षा शुरू हो जाती हैं. वह अपने माता-पिता मित्रों तथा परिवेश को समझने लगता हैं. छोटी उम्रः के बच्चों को खेल विधियों की मदद से पढाया जाता हैं. खेल खेल में शिक्षा शुरू हो जाती हैं. उनके खिलौने से कुछ नया करने और भौतिक चीजों को समझने के दृष्टिकोण और उसमें सामजस्य बिठाने की क्षमता का विकास हो जाता हैं.


खेलकूद में रूचि रखने वाले बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से तन्दुरस्त बनते हैं. उसकी शारीरिक शक्ति में वृद्धि होने लगती हैं. मांसपेशियों का समुचित विकास होने लगता हैं. चुस्ती और फुर्तीलापन भी आता हैं. साथ ही बालक जब खेल मैदान में खेलता हैं तो कई बार उनके चेहरे पर झलकती ख़ुशी, हंसी मुस्कान उसे तनाव से भी बचाएं रखती हैं. वह जीवन में भी नियम कायदों को मानने के लिए स्व प्रेरित होता हैं. अनुशासन की नींव खेलों के माध्यम से ही बच्चों में रखी जा सकती हैं.

अन्य कई मानवीय गुण जैसे सहयोग, मदद, स्व नियंत्रण, आत्मविश्वास, बलिदान, गलतियों में सुधार आदि का विकास होता जाता हैं. वह संकीर्ण मानसिकता से हटकर खुले दिमाग से सोचने लगता हैं. सिद्धांत आधारित खेलों का प्रत्यक्ष प्रभाव उनके जीवन में भी देखने को मिलता हैं. जो बालक थके हारे और हमेशा मायूस नजर आते हैं वे ठीक से अध्ययन में भी मन नहीं लगा पाते हैं. ऐसे बच्चों को खेलकूद के प्रति आकर्षित करके बड़ा बदलाव किया जा सकता हैं.


खेलों की आवश्यकता-


शिक्षा को जीवनोपयोगी और रोचक बनाने के लिए इसमें खेलकूद की महत्वपूर्ण भूमिका हैं. जो कुछ ज्ञान हम किताबों में सीखते हैं उन्हें खेल के मैदान में जीवन में अपनाने की कोशिश करता हैं. खेल से मस्तिष्क और बुद्धि का तीव्र विकास होता हैं. हर समय पढ़ते रहने से तनाव भी हावी होने लगता हैं, ऐसे में खेलकूद ही उसे तनाव मुक्त करती हैं. खेलों के माध्यम से हम अपनी गलतियों तथा मजबूत पक्ष को भी समझने लगते हैं तथा धीरे धीरे उनमें सुधार की कोशिश भी करता हैं. उनका यह गुण शिक्षा भी बेहद कारगर साबित होता हैं. खेलकूद और शिक्षा को एक दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता हैं. बच्चों को खेलकूद की तरफ अग्रसर करते रहना चाहिए जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और जीवन भर सीखने की गति को बरकरार रख सके.


खेलों के लाभ-

खेलकूद में भाग लेने से बालक की एकाग्र चित्त क्षमता में वृद्धि होती हैं. अपने साथियों के साथ मित्रवत भाईचारे का व्यवहार और सद्भावना के गुण खेल के मैदान में अपनाता हैं. जीवन में समय के सदुपयोग की सीख भी बच्चें खेलकूद के जरिये सीखते हैं. अनुशासन, प्रतिस्पर्धा और हार के गम को झेलना और ख़ुशी को स्वीकार करने की क्षमता का विकास होता हैं. पढाई के साथ साथ खेलकूद देश के भविष्य को स्वस्थ और बहुत मजबूत बनाता हैं.



3-

यदि मैं चिकित्सक

(डॉक्टर)होता 

भूमिका

आज कई कारणों से वातावरण और वायु – मण्डल अधिक – से – अधिक प्रदूषित होता जा रहा है । फलस्वरूप नयी – नयी बीमारियाँ भी बढ़ती जा रही हैं । तरह – तरह के नये रोग उत्पन्न होकर मानव – पीड़ा के कारण बन रहे हैं । शहरों में तो सरकारी अस्पताल हैं , धर्मार्थ चिकित्सालय होते हैं । प्राइवेट डॉक्टरों और नर्सिंग होमों की भी कमी नहीं रहती । अपनी हैसियत और सुविधा के अनुसार व्यक्ति कहीं भी जाकर अपना इलाज करा सकता या करा लेता है । परन्तु दूर – दराज के गाँवों में स्वतंत्रता – प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी सही चिकित्सा और पढ़े लिखें डॉक्टरों का अभाव है ।


वहाँ लोगों को या तो सामान्य किस्म के परम्परागत इलाजों , घरेलू टोटकों – टोनों आदि पर आश्रित रहना पड़ता है , या फिर नीम हकीमों के वश में पड़कर तिल – तिल कर रोगों से तो क्या अपने प्राणों से ही हाथ धोने पड़ते हैं। नगरों- महानगरों में रहने वाले लोगों में से भी जो गन्दे कटरों , झोंपड़पट्टियों आदि में निवास करते हैं , उनकी दशा भी लगभग ग्रामीणों जैसी ही हुआ करती है । उनकी सार लेने वाला कोई नहीं होता ! वास्तव में ऐसे लोगों को स्वस्थ रहने के उपाय ही पता नहीं होते । उन्हें बचाया ही नहीं जाता ।


साधनों के अभाव और लगातार बढ़ रही जनसंख्या के कारण आज आम आदमी का जीवन तरह – तरह के रोगों से पीड़ित होकर अस्वस्थ और दुर्बल होता जा रहा है । वह असहाय और विवश होकर सब झेल रहा है । चाह कर भी वह कुछ कर पाने में सफल नहीं हो पाता । अस्पतालों में इतनी भीड़ रहती है कि आम रोगी लाइनों में खड़ा होते ही मरणासन्न हो जाता है । विशेष जान – पहचान और रिश्वत के बिना सरकारी अस्पतालों में सही इलाज हो नहीं पाता । धर्मार्थ चिकित्सालय भी आजकल भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए , हैं । आम आदमी प्राइवेट डॉक्टरों की मोटी फीसें , नर्सिग होमों का बढ़ा – चढ़ा अनाप – शनाप खर्चा सहन नहीं कर पाता ! यहीं सब देख – सुनकर अक्सर मेरे मन में आता है — काश! मैं डॉक्टर होता ।


गरीबों की सेवा

यदि मैं डॉक्टर होता , तो नगरों के गन्दे कटरों , झोंपड़पट्टियों , ग्रामों में धूम – घूमकर लोगों को सबसे पहले यह समझाता कि तरह – तरह के प्रदूषण से भरे आज के वातावरण में अपने स्वास्थ्य का बचाव कैसे करना चाहिए । गन्दगी से बचाव और साफ – सुथरा वातावरण रोगों से बचे रहने की पहली शर्त है ! मैं साधन – सम्पन्न वर्गों में , पढ़े – लिखे लोगों में घूम – घूम कर साधन तो जुटाता ही , अपने जैसे सेवाभाव से काम करने वाले डॉक्टरों , नसों , अन्य युवकों का एक दल भी बनाता । इस दल में सभी प्रकार के रोगों के विशेषज्ञ सुलभ रहते ।


सबसे पहले हम लोग उपयुक्त स्थानों पर जाकर लोगों को हर प्रकार के रोगों के बारे में तो बताते ही , उनके होने और फैलने के कारण भी बताते ! वे उपाय भी बताते कि जिन्हें अपनाकर उन सभी प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है । फिर जगह – जगह जाकर आम असमर्थ लोगों के स्वास्थ्य का परीक्षण करते । किसी व्यक्ति में रोग के लक्षण पाये जाने पर यथासंभव अपने साधनों से उनका इलाज करते । छूत के रोगियों को बाकियों से दूर रखकर उनका विशेष उपचार करते , ताकि वे छूत के रोग बाकी लोगों में न फैलें।


स्वच्छता की ओर ध्यान आकर्षित करता

नगरों के गन्दे कटरों , झोंपड़पट्टियों और दूर – दराज के देहातों में गन्दा वातावरण , गन्दे पानी की निकासी का अभाव , पीने के लिए स्वच्छ पानी का अभाव आदि भी अनेक रोगों या अस्वस्थता का कारण बना करते हैं । यदि मैं डॉक्टर होता , तो अपने दल – बल के साथ लोगों को समझा – बुझाकर इन सारी बुराइयों को दूर करने का प्रयास करता । उन सरकारी और निर्वाचित संस्थाओं के द्वार भी खटखटाता जो सफाई और जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं ।


उनपर जनता का दबाव डालकर सारा काम करवाता । दबाव इस लिए , कि आजकल कोई भी काम इस प्रकार के संस्थानों में या तो रिश्वत के बल पर होता है , या फिर सामूहिक दबाव से । सो दबाव ही डलवाता , क्योंकि रिश्वत को मैं एक कोढ़ , एक भयानक रोग मानता हूँ । अपने डॉक्टर होने की इच्छा पालकर मैं शारीरिक रोगों से लड़ने की बात ही कह और कर सकता हूँ । सो , यदि मैं डॉक्टर होता , तो हर संभव ढंग से वह उपाय करता कि जिससे जन – स्वास्थ्य ठीक रह पाता !


स्वास्थ्य पर जागरूकता फैलाता

कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन बुद्धि और आत्मा का निवास हुआ करता है । सो राष्ट्र के मन , बुद्धि और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि उसका प्रत्येक जन स्वस्थ हो , निरोग हो । आम जनों की संख्या हमेशा अधिक हुआ करती है और खेद के साथ स्वीकार करना पड़ता है कि सबसे अधिक खिलवाड़ आम जन और उसके स्वास्थ्य के साथ ही हुआ करता है । आज भी हो रहा है ! इसका कारण हमारी मानसिक – आत्मिक अस्वस्थता ही है । यदि मैं डॉक्टर होता , तो भरसक इस प्रकार की अस्वस्थता के विरुद्ध भी जनमत बनाने का प्रयत्न करता ! जनमत का अधिक – से – अधिक जागरूक होना हर मोर्चे पर , हर प्रकार के इलाज के लिए बहुत आवश्यक है ।


सस्ती दवाओं की व्यवस्था कराता

आज के युग में हर वस्तु के दाम लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं । महँगाई जानलेवा होती जा रही है । साधारण रोगों का उपचार करने वाली दवाइयाँ ही जब मुनाफाखोरों के कारण महँगी बिक रही हैं , तब प्राणरक्षक दवाइयों के मूल्य का तो कहना ही क्या ? उन्हें ग़ायब करके कई – कई गुना अधिक दामों में चोरबाज़ारी से बेचा जाता है । कई बार तो पैसा जुटाकर भी आम आदमी कोई विशेष दवा प्राप्त नहीं कर पाता । मैं यदि डॉक्टर होता , तो यथासंभव उन लोगों का मुफ्त इलाज करता कि जो गरीबी की मान्य रेखा से नीचे रह रहे हैं । बाकी लोगों का इलाज उचित या एकदम सामान्य दाम लेकर करता । आवश्यक दवाइयाँ हर किसी को उचित दर पर उपलब्ध कराता ।


उपसंहार

आज की महँगाई के युग में मेरे या किसी भी डॉक्टर के लिए सभी का मुफ्त इलाज कर पाना तो संभव नहीं ! ऐसा तो केवल सरकार और संस्थाएँ ही कर सकती हैं । मुझे , यानि डॉक्टर को भी तो जीने के लिए उचित मात्रा में रुपया – पैसा चाहिए न ! सो , यदि मैं डॉक्टर होता , तो इस पवित्र काम को मोटी आमदनी का ज़रिया या एक व्यापार तो कभी भी नहीं बनने देता । समाज – सेवा का साधन मानकर उतना ही कमाता , जितना मेरे और मेरे घर – परिवार के लिए बहुत आवश्यक होता ।



4-

व्यायाम का महत्व

 या 

व्यायाम एक-लाभ अनेक 


भूमिका – गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ अर्थात् मानव शरीर बड़ी किस्मत से मिलता है। इस शरीर से सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने के लिए इसका स्वस्थ एवं नीरोग होना अत्यावश्यक है। यूँ तो स्वस्थ शरीर पाने के कई तरीके हो सकते हैं पर व्यायाम उनमें सर्वोत्तम है।


पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक – मानव जीवन के चार पुरुषार्थ माने जाते हैं। ये हैं-धर्म अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें पाने का साधन है- स्वास्थ्य। अर्थात् यदि मनुष्य का जीवन नीरोग है तभी इन पुरुषार्थों के माध्यम से जीवन को सफल बनाया जा सकता है। रोगी और अस्वस्थ व्यक्ति न तो धर्मचिंतन कर सकता है और न उद्यम करके धनोपार्जन कर सकता है, न वह काम की प्राप्ति कर सकता है और न मोक्ष की प्राप्ति। अतः उत्तम स्वास्थ्य की ज़रूरत निस्संदेह है और उत्तम स्वास्थ्य पाने का सर्वोत्तम साधन हैव्यायाम। वास्तव में व्यायाम स्वास्थ्य का मूलमंत्र है।


व्यायाम के लाभ – उत्तम स्वास्थ्य के लिए संतुलित पौष्टिक भोजन शुद्ध जलवायु, संयमित जीवन, स्वच्छता आदि आवश्यक है, परंतु इनमें सर्वोपरि है-व्यायाम। व्यायाम के अभाव में पौष्टिक भोजन पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाता है।


व्यायाम में चिरयौवन पाने का राज छिपा है। जो व्यक्ति नियमित व्यायाम करता है, बुढ़ापा उसके निकट नहीं आता है। इससे उसका शरीर ऊर्जावान बना रहता है और लंबे समय तक चेहरे या शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती हैं। व्यायाम हमारे शरीर की पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। सही ढंग से पचा भोजन ही रक्त, मज्जा, माँस आदि में परिवर्तित हो पाता है। व्यायाम हमारे शरीर कर रक्त संचार भी ठीक रखता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी उत्तम बनता है। इसके अलावा शरीर सुगठित, फुरतीला, लचीला और सुंदर बनता है।


व्यायाम का उचित समय – व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल है। इस समय पूरब की लालिमा शरीर में नवोत्साह भर देती है। इससे मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस समय बहने वाली शीतल मंद हवा चित्त को प्रसन्न कर देती है और शरीर को ऊर्जा से भर देती है। पक्षियों का कलख कुछ-कहकर हमें व्यायाम करने की प्रेरणा देता हुआ प्रतीत होता है। इस समय शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाए व्यायाम करना चाहिए। ऋतु और मौसम को ध्यान में रखकर शरीर पर सरसों के तेल की मालिश व्यायाम से पूर्व करना अच्छा रहता है। दोपहर या तेज़ धूप में व्यायाम से बचना चाहिए। यदि किसी कारण सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करना चाहिए।


ध्यान देने योग्य बातें – व्यायाम करते समय कुछ बाते अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। व्यायाम इस तरह करना चाहिए कि शरीर के सभी अंगों का सही ढंग से व्यायाम हो। शरीर के कुछ अंगों पर ही ज़ोर पड़ने से वे पुष्ट हो जाते हैं परंतु अन्य अंग कमजोर रह जाते हैं। इससे शरीर बेडौल हो जाता है। व्यायाम करते समय श्वास फूलने पर व्यायाम बंद कर देना चाहिए, अन्यथा शरीर की नसें टेढ़ी होने का डर रहता है। व्यायाम करते समय सदा नाक से साँस लेनी चाहिए, मुँह से कदापि नहीं। व्यायाम करने के तुरंत उपरांत कभी नहाना नहीं चाहिए। इसके अलावा व्यायाम ऐसी जगह पर करना चाहिए जहाँ पर्याप्त वायु और प्रकाश हो। व्यायाम की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए अन्यथा अगले दिन व्यायाम करने की इच्छा नहीं होगी।


उपसंहार – व्यायाम उत्तम स्वास्थ्य पाने की मुफ़्त औषधि है। इसके लिए बस इच्छाशक्ति और लगन की आवश्यकता होती है। हमें सवेरे देर तक सोने की आदत छोड़कर प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करना चाहिए।


5) कोरोना वायरस 


प्रस्तावना : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में 900 गुना छोटा है, लेकिन कोरोना का संक्रमण दुनियाभर में तेजी से फ़ैल रहा है।

 

* कोरोना वायरस क्या है?

 

कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है।

 

इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। यह वायरस दिसंबर में सबसे पहले चीन में पकड़ में आया था। इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है।


कोरोना से मिलते-जुलते वायरस खांसी और छींक से गिरने वाली बूंदों के ज़रिए फैलते हैं। कोरोना वायरस अब चीन में उतनी तीव्र गति से नहीं फ़ैल रहा है जितना दुनिया के अन्य देशों में फैल रहा है। कोविड 19 नाम का यह वायरस अब तक 70 से ज़्यादा देशों में फैल चुका है। कोरोना के संक्रमण के बढ़ते ख़तरे को देखते हुए सावधानी बरतने की ज़रूरत है ताकि इसे फैलने से रोका जा सके।

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?

 

कोवाइड-19 / कोरोना वायरस में पहले बुख़ार होता है। इसके बाद सूखी खांसी होती है और फिर एक हफ़्ते बाद सांस लेने में परेशानी होने लगती है।

इन लक्षणों का हमेशा मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फ़ेल होना और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह या हार्ट की बीमारी है उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। ज़ुकाम और फ्लू में के वायरसों में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं। 

 

* कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाए तब?

 

इस समय कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है लेकिन इसमें बीमारी के लक्षण कम होने वाली दवाइयां दी जा सकती हैं।

 

जब तक आप ठीक न हो जाएं, तब तक आप दूसरों से अलग रहें।

 

कोरोना वायरस के इलाज़ के लिए वैक्सीन विकसित करने पर काम चल रहा है।

 

इस साल के अंत तक इंसानों पर इसका परीक्षण कर लिया जाएगा।

 

कुछ अस्पताल एंटीवायरल दवा का भी परीक्षण कर रहे हैं।

 

* क्या हैं इससे बचाव के उपाय?

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 

 

इनके मुताबिक हाथों को साबुन से धोना चाहिए। 

 

अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है। 

 

खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढंककर रखें। 

 

जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों, उनसे दूरी बनाकर रखें। 

 

अंडे और मांस के सेवन से बचें।

 

जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें।

 

* मास्क कौन और कैसे पहनें?

 

अगर आप स्वस्थ हैं तो आपको मास्क की जरूरत नहीं है।

 

अगर आप किसी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो आपको मास्क पहनना होगा।

 

जिन लोगों को बुखार, कफ या सांस में तकलीफ की शिकायत है, उन्हें मास्क पहनना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

 

* मास्क पहनने का तरीका :-  

 

मास्क पर सामने से हाथ नहीं लगाना चाहिए।

 

अगर हाथ लग जाए तो तुरंत हाथ धोना चाहिए।

 

मास्क को ऐसे पहनना चाहिए कि आपकी नाक, मुंह और दाढ़ी का हिस्सा उससे ढंका रहे।

 

मास्क उतारते वक्त भी मास्क की लास्टिक या फीता पकड़कर निकालना चाहिए, मास्क नहीं छूना चाहिए।

 

हर रोज मास्क बदल दिया जाना चाहिए।

कोरोना का ख़तरा कैसा करें कम, 

कोरोना से मिलते-जुलते वायरस खांसी और छींक से गिरने वाली बूंदों के ज़रिए फैलते हैं।

 

अपने हाथ अच्छी तरह धोएं।

 

खांसते या छींकते वक़्त अपना मुंह ढंक लें।

 

हाथ साफ़ नहीं हो तो आंखों, नाक और मुंह को छूने बचें।

 

कोरोना का संक्रमण फैलने से कैसे रोकें?

 

सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, ऑटो या टैक्सी से यात्रा न करें।

घर में मेहमान न बुलाएं।

घर का सामान किसी और से मंगाएं।

ऑफ़िस, स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर न जाएं।

अगर आप और भी लोगों के साथ रह रहे हैं, तो ज़्यादा सतर्कता बरतें।

अलग कमरे में रहें और साझा रसोई व बाथरूम को लगातार साफ़ करें।

14 दिनों तक ऐसा करते रहें ताकि संक्रमण का ख़तरा कम हो सके।

अगर आप संक्रमित इलाक़े से आए हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जा सकती है। अत: घर पर रहें।

 

उपसंहार : लगभग 18 साल पहले सार्स वायरस से भी ऐसा ही खतरा बना था। 2002-03 में सार्स की वजह से पूरी दुनिया में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। पूरी दुनिया में हजारों लोग इससे संक्रमित हुए थे। इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा था। कोरोना वायरस के बारे में अभी तक इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस पार्सल, चिट्टियों या खाने के ज़रिए फैलता है। कोरोना वायरस जैसे वायरस शरीर के बाहर बहुत ज़्यादा समय तक ज़िंदा नहीं रह सकते।


कोरोना वायरस को लेकर लोगों में एक अलग ही बेचैनी देखने को मिली है। मेडिकल स्टोर्स में मास्क और सैनेटाइजर की कमी हो गई है, क्योंकि लोग तेजी से इन्हें खरीदने के लिए दौड़ रहे हैं। 

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन, पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड और नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) से प्राप्त सूचना के आधार पर हम आपको कोरोना वायरस से बचाव के तरीके बता रहे हैं। एयरपोर्ट पर यात्रियों की स्क्रीनिंग हो या फिर लैब में लोगों की जांच, सरकार ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए कई तरह की तैयारी की है। इसके अलावा किसी भी तरह की अफवाह से बचने, खुद की सुरक्षा के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं जिससे कि कोरोना वायरस से निपटा जा सकता है।





संवाद लेखन











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